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सोमवार, 31 दिसंबर 2012

आज के भारत मेँ हजारोँ दयानन्द व विवेकानन्द पर एक मैकाले काफी ?

इस वक्त पूरे देश मेँ अंग्रेजोँ के नववर्ष पर युवाओँ मेँ 'HAPPY NEW
YEAR' का तांता लगता है.आखिर ऐसी क्या खास बात है कि इन डेढ़ हजार वर्षोँ
मेँ भारतीयता का रुप हिन्दुत्व से बदलकर विचलन का शिकार हो गया है
.वर्तमान मेँ भारतीय का मतलब INDIAN हो महानगरीय सभ्यता मेँ भारतीयता की
टांगे बिल्कुल तोड़ चुका है.घर से बाहर निकलकर जिधर से भी जिस कोण पर चल
किन्हीँ कहीँ से भी किन्हीँ सौ घरोँ के सदस्योँ का मनोवैज्ञानिक अध्ययन
करेँ सबका नजरिया व चाहतोँ का संसार भोगवाद ,भौतिकता व पश्चिम से
प्रभावित है.अध्यात्म व धर्म से नाता दूर दूर तक नजर नहीँ आता.जो है भी
वह मात्र शारीरिक रीतिरिवाज व कर्मकाण्डोँ तक.विकसित देशोँ मेँ जहाँ अब
भी क्रिकेट के लिए सारा दिन या रात गंवा कर अपनी दैनिक दिनचर्या मेँ खलल
नहीँ डालना चाहते वहीँ यहाँ कुछ दैनिक आवश्यक या अनुशासित कार्य तक
तिलांजलि देते हैँ .


पश्चिम का एक मैकाले यहाँ पर यहाँ के हजारोँ दयानन्द व विवेकानन्द के
प्रभावोँ पर हावी रहता है ?पश्चिम देश जब उठे तो विश्व व विदेश नीति के
साथ लेकिन हम इन 1500-1700 वर्षोँ मेँ उठे कब ?उठे तो किस स्तर तक ?


--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

शनिवार, 15 दिसंबर 2012

सच!देश को कड़ुवी दवा की जरुरत .

वैश्विक आर्थिक मंदी पर चिन्ता व्यक्त करते हुए वित्तमंत्री पी चिदंबरम
कहते हैँ कि अर्थव्यवस्था की सेहत के लिए कुछ कड़वी दवाएं जरुरी हैँ .बिना
त्याग,बलिदान,धैर्य व संयम के सुप्रबंधन नहीँ लाया जा सकता.जो वास्तव मेँ
अभी जनता भी नहीँ चाहती.प्रजातंत्र मेँ मैँ प्रजा को ही दोषी मानता हूँ
.प्रजातंत्र मेँ प्रजा का नजरिया व उसकी जीवनशैली ही कुप्रबंधन व
भ्रष्टाचार के लिए दोषी है.समस्याओँ की मूलजड़ोँ पर मट्ठा डालने वाला
कौटिल्य कौन बनना चाहते है?वैश्वीकरण व संबैधानिक व्यवस्था के बीच हमेँ
कूपमण्डूक व निजी नजरिया व जीवनशैली पर पुनर्विचार की आवश्यकता है .ऐसा
तो है नहीँ कि जितने नजरिया व जीवनशैली उतने राष्ट्र व राज्य खड़े तो किए
नहीँ जा सकते. जहाँ अब विश्वसरकार व दक्षेस सरकार तक की बात होने लगी है
.

ग्राहकोँ तक आते आते किसी वस्तु की कीमत या खर्चा यदि 920 रुपये
आता है तो वह व 920रुपये से कम मेँ ग्राहकोँ कोँ दी जाएं.?लगभग 40करोड़
व्यक्ति गरीब है तो इसके लिए दोषी कौन है?सरकार या ये 40करोड़ गरीब या इन
40करोड़ गरीब को जन्म देने वाले ?किसी अर्थशास्त्री ने कहा है कि गरीबी का
कारण गरीब मानसिकता है.अपने शरीर को पाल नहीँ पाते लेकिन शादी कर बैठते
हैँ,फिर बच्चे.क्या ये मानसिकता गरीबी का कारण नहीँ है?हूँ ,बच्चे भगवान
की देन हैँ.?यदि बच्चे भगवान की देन हैँ तो फिर उनके हालात भी भगवान पर
ही छोंड़ो न.सरकारोँ के सामने रोना क्योँ?दूसरी और मध्यम व उच्चवर्ग के
द्वारा देशभर मेँ औसत रुप से होली पर रंगबाजी,दीपावली पर आतिशबाजी आदि के
नाम से करोड़ोँ रुपये खर्च होजाता है.अनेक जलसोँ व उत्सवोँ मेँ देशभर
लाखोँ टन खाद्यान्न बर्बाद कर दिया जाता है.जो शादी दस हजार मेँ हो सकती
तो उसके लिए लाखोँ खर्च करना क्योँ ?ये क्या मानवता के साथ मजाक नहीँ
?क्या यही धर्म है ?यही धर्म है ?समाज के प्रति क्या कोई कर्त्तव्य
नहीँ?हमेँ यदि देश का नेतृत्व करने को दे दिया जाये तो मैँ तो वेतन
व्यवस्था ही समाप्त कर दूँ .कर्मचारियोँ के लिए सभी सुविधाएं सरकार के
द्वारा मुहैया कराऊँ,कर्मचारियोँ से सिर्फ सरकारी कार्य करवाये
जायेँ,उनके बच्चोँ के लिए सुविधाएँ ,चिकित्सा आदि की व्यवस्था सरकार की
हो,डयूटी इस डयूटी,डयूटी के वक्त कर्मचारी डयूटी ही करे .यदि उसके परिवार
का मेम्बर बीमार है या घर मेँ कोई सामान जुटाना है तो इसके लिए सरकारी
डाक्टर या अन्य कर्मचारी लगेँ.किसी की कोई व्यक्तिगत सम्पत्ति न रह पाये
,सब सम्पत्ति सरकार की हो जाए,न ही कोई वस्तु किसी व्यक्ति की,सभी
वस्तुएं सरकार की रहे .बस,व्यक्ति उनका इस्तेमाल करे.हमने सुना है चीन
मेँ एकल व परिवार नियोजन युक्त परिवार को सरकारी सुविधाएं देने मेँ
वरीयता दी जाती है ?इण्डिया की सरकार उनके लिए क्या विशेष आरक्षण मुहैया
क्योँ नहीँ कराती जो एकल,द्वि या त्रि सदस्यीय परिवार हैँ या जो
सेक्यूलरवादी हैँ और अन्तर्जातीय शादी को बढ़ावा देते हैँ या संवैधानिक
मर्यादाओँ व योजनाओँ को लेकर चल रहे हैँ ?

किसी का सर्वे कहता है कि नब्बे प्रतिशत भारतीयोँ के दिमाग मेँ
कूड़ाकरकट भरा है तो क्या ये गलत है?एक नागरिक को कैसा होना चाहिए ?आदर्श
नागरिक की परिभाषा क्या है?अपनी बन पड़ती है तो कानून का रास्ता दिखता
है,वैसे रोजमर्रे की जिन्दगी मेँ कानून,मर्यादा,सत आदि की बात करने वाला
सनकी माना जाता है . ऐसा है यहाँ की जनता का बौद्धिक व मानसिक स्तर.


--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

11दिसम्बर ओशो जन्मदिन : जीवन व मनुष्यता के श्रेष्ठ व्याख्याकार !

आंखेँ न जाने क्या क्या देखती हैँ?मन न जाने क्या क्या महसूस करता
है?शरीर को न जाने क्या क्या करना पड़ जाता है ?लेकिन कब तक ? व क्योँ ?
अज्ञानता व कूपमण्डूकता बस या फिर सर्वोच्च ज्ञान व सार्वभौमिक सत्य
बस?मनुष्य जाति क्या सत्य व स्वस्थ नजरिये की ओर है ?मनुष्य अभी क्या
मनुष्य के पद पर भी क्या पहुंच पाया है?महानता व सार्वभौमिक सत्य की ओर
अग्रसर होना तो काफी दूर की बात.मनुष्य प्रतिदिन जिन शब्दोँ का इस्तेमाल
करता है,उनके अर्थ,परिभाषा व दर्शन से भी क्या परिचित रह गया है?मनुष्योँ
के कुछ ऐसे मनुष्य आते रहे हैँ जो भीड़ व भीड़ को नेतृत्व करने वालोँ से
हट कर अपना व्यक्तित्व रखते हैँ.एक गांव के करीब एक रेलवेस्टेशन पर से
गुजरने वाली एक ट्रेन से एक दिन महात्मा गांधी को निकलना था.गांव के
काफी लोग महात्मा गांधी के स्वागत के लिए इकट्ठे हो गये थे लेकिन महात्मा
गांधी नहीँ आये.ग्रामीण इन्तजार कर कर वापस चले गये.दिन गुजरा रात होने
को आयी.बस,एक किशोर अब भी खड़ा था.सूनसान स्टेशन पर वह अकेला खड़ा था.कुछ
रेलवे कर्मियोँ ने उसे वापस जाने को कहा.सबको नहीँ लग रहा था कि महात्मा
गांधी अब आयेंगे भी लेकिन उस किशोर को विश्वास था कि महात्मा गांधी अवश्य
आयेंगे. आखिर आये,कस्तूरबा के साथ वे ट्रेन से उतरे.उस किशोर से उनकी
बात हुई.महात्मा गांधी बोले कि बा,अब मुझे कोई अपने टक्कर का मिला है.

समय गुजरा,अनेक वर्ष बीत गये.अधेड़ावस्था मेँ एक सन्यासी भाँति वस्त्र
पहने ट्रेन यात्रा पर थे.

एक दम्पत्ति ने अपने बच्चे से कहा पैर छुओ,बाबा जी हैँ.साधुओँ का सम्मान
करना चाहिए.


''मैँ कोई सन्यासी या साधू नहीँ हूँ .''


'' हिन्दू तो हो?"


"हिन्दू भी नहीँ हूँ ."


"तो कौन हो ? "

"इन्सान हूँ ."


दम्पत्ति खामोश हो गये?वे आपस मेँ बात कर रहे थे.


"ऐसे सन्यासी खतरनाक होते हैँ."


वह किशोर ही अब ये अधेड़ सन्यासी था.ऐसे सन्यासी खतरनाक क्योँ होते
हैँ?इसलिए क्योँकि ये तुम्हारे नजरिया,मर्यादा,रीतिरिवाज,कूपमण्डूकता आदि
पर सवाल करने वाले होते हैँ.जब ऐसे लोग धरती पर होते हैँ तो इनके धरती पर
होते इन्हेँ कुछ लोग ही समझ पाते हैँ. पढ़े लिखे तक इन्हेँ नहीँ समझ
पाते.इन ओशो के प्रति पढ़े लिखोँ की क्या सोँच थी?व्यक्त करता हूँ.मैने
ओशो की पुस्तकोँ लेकर कुछ प्रयोग किये हैँ.जो ओशो की पुस्तकेँ पढ़ना तो
दूर देखना तक पसंद नहीँ करते थे.ओशो को अफवाहोँ के आधार बुरा कहते रहते
थे.उनके साथ मैने एक प्रयोग किया.डबल प्रतियोँ मेँ मैँ ओशो की कुछ
पुस्तकेँ रखता था.एक एक प्रति का मुख्य कवर व अन्दर के कुछ पृष्ठ इस तरह
फाड़ कर अलग कर देता था कि कोई पहचान न पाये कि ये ओशो की हैँ.जिन्हेँ
मैँ पुस्तक प्रेमियोँ को पढ़ने के लिए देता .वे रुचि से पढ़ते.जब वे कुछ
दिनोँ मेँ पुस्तक पढ़ लेते तो मैँ उनसे कहता ये उन्हीँ ओशो की पुस्तक
है,जिनसे तुम घृणा करते हो.विश्वास न हो तो ये पुस्तक देखो .मैँ दूसरी
प्रति देते हुए कहता.ऐसा है तुम्हारा समाज व तुम्हारे समाज के शिक्षित.

बच्चोँ! मैँ आप से कहना चाहूँगा कि आपसब सुनो सब की लेकिन करो अपने
विवेक की.मेडिटेशन व स्वाध्याय से अपने को सदा जोड़े रखो.समाज के आधार पर
नहीँ ,समाज के ही महापुरुषोँ व ग्रंथोँ की सुन समाज को जबाब देना
सीखो.ओशो जीवन से जुड़े तथ्योँ व नई मनुष्यता के एक श्रेष्ठ व्याख्याकार
थे.लेकिन उन्होने स्वयं कहा था न हमेँ याद करो न ही हमेँ
भूलो.बच्चोँ!अपना विकास चाहते हो तो अपने को पहचानो.हमारी कोई जाति नहीँ
न कोई मजहब.हम सब सजीव पचास प्रतिशत ब्रह्मांश व पचास प्रतिशत प्रकृतिअंश
हैँ .निर्जीव व क्रत्रिम वस्तुओँ व व्यवस्थाओँ का उसी हद तक पीछा करो जब
तक ब्रह्मांश व प्रकृतिअंश अधिकारोँ का हनन न हो.ब्रह्मांश व प्रकृतिअंश
का समअस्तित्व व समसम्मान ही हिन्दू पौराणिक परिकल्पना
श्रीअर्द्धनारीश्वरशक्ति का हेतु है .

मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

10दिसम्बर:मानवाधिकार दिवस और नई मनुष्यता के पग .

बच्चोँ को पहले पढ़ाया जाता था कि पर्व दो तरह के होते हैँ-राष्ट्रीय
पर्व व धार्मिक पर्व लेकिन अब ऐसा नहीँ है.प्रत्येक शहर व कस्बोँ मेँ
यहाँ तक कुछ गाँव मेँ भी अब अन्तर्राष्ट्रीय पर्व व प्रशासन से प्रेरित
होकर अन्य जागरुकता अभियान आयोजित किए जाने लगे हैँ.मेरा मानना है कि
आधुनिक तकनीकी व जीवन शैली के बीच अन्तराष्ट्रीय पर्व व विभिन्न
जागरुकता अभियान प्रकृति व मनुष्य को बचाने के लिए अतिआवश्यक हो गये हैँ
जो नई मनुष्यता के पग हैँ.जातीय,मजहबी ,क्षेत्रीय,भाषायी,व्यक्तिगत
कूपमण्डूक सोँच से निकल सार्वभौमिक सत्य व सर्वोच्च ज्ञान से जुड़ने के
लिए ये अन्तर्राष्ट्रीयपर्व विशेष रुप से मानवाधिकार दिवस व विश्व
पर्यावरणदिवस नई मनुष्यता के पग को मजबूत करने मेँ सहायक हो सकते हैँ.


प्रत्येक वर्ष के दस दिसम्बर को मानवाधिकार दिवस मनाया जाता
है.अच्छा है,अन्य पर्वोँ के अलावा इसे भी प्रतिवर्ष मनाये जाने के लिए
प्रत्येक संस्था,विद्यालय,विभाग आदि को प्रेरित किया जाना चाहिए लेकिन ये
पर्व मनाये जाने से ही सिर्फ काम नहीँ चलने वाला.पहले से ही सदियोँ से
मनाते चले आ रहे पर्वोँ से व्यक्ति क्या प्रेरणा ले रहा है?प्रेरणा लेना
तो दूर पर्व मनाने का मूल हेतु का विचार व भाव दर्शन भुलाया जा चुका है.
प्रत्येक पर्व भौतिकता के रंग मेँ रंग ढोँग,दिखावा,मनोरंजन,मूड परिवर्तन
का साधन,परम्परा आदि मात्र रह गया है.जिस के कारण ऋणात्मक सीख लेकर
व्यक्ति भड़क या उन्माद मेँ आ द्वेष,मनमानी,पक्षपात आदि को तो जन्म दे
सकता है लेकिन उदारता,धैर्य,सेवा,सत्य आदि के लिए प्रेरणा नहीँ ले
सकता.अब मानवाधिकार दिवस को ही लेँ,कोई भी देश हो या कोई मजहब या कोई
जाति,कहीँ भी व्यक्ति मानवाधिकारोँ के प्रति ईमानदारी से कितना सजग है
?जब अपने स्वार्थ व अपने नजरिये पर जब चोट पहुँचती है तभी व्यक्ति
मानवाधिकारोँ के प्रति सजग होता है और वह भी अपने पक्ष मेँ या अपने
परिवार या अपने जाति या मजहब या अपने देश के पक्ष मेँ लेकिन सारी
मनुष्यता को ध्यान मेँ रखकर नहीँ.जिन देशोँ ने मानवाधिकारोँ के प्रति
विश्व पटल पर अलख जगाने की कोशिस की है,उन देशोँ के अन्दर मानवाधिकारोँ
के हनन के केस कम नहीँ हैँ.यहाँ तक कि देश,जाति,मजहब आदि के नाम से
भेदभाव के आधार पर मानवाधिकारोँ के वास्ते दूसरे देश,जाति,मजहब आदि के
व्यक्तियोँ को निर्दोष अत्याचार व शोषण का शिकार बनाया जाता है .क्या इस
बात मेँ सच्चाई नहीँ है?


मानवाधिकारोँ का हनन अनेक स्तर से हो रहा है;परिवार व
अन्तर्परिवार,जाति व अन्तर्जातीय,राज्य व अन्तर्राज्यीय,राष्ट्र व
अन्तर्राष्ट्रीय,आदि स्तरोँ पर .इन सब स्तरोँ पर सत्तावाद ,पूँजीवाद व
सम्प्रदायवाद,प्रजातान्त्रिक व
संवैधानिक मूल्योँ आदि का गला घोट कर मानवाधिकारोँ का हनन कर रहा
है.आधुनिक तकनीकी व ज्ञान के वातावरण मेँ भी अपने दिमाग व ह्रदय का ताला
नहीँ खोला है.सभी शारीरिक व ऐन्द्रिक आवश्यकताओँ और कूपमण्डूकता की
दीवारोँ मेँ कैद हो सागर को नापने की संभावनाएं तलाश रहे हैँ.कोई
हिन्दुत्व के नाम से तो कोई इस्लाम के नाम से तो कोई सेक्यूलरवाद के नाम
से तो कोई समाजवाद के नाम से मनुष्यता व पर्यावरण के विकास के सागर को
नापना तो चाह रहा है लेकिन मानवाधिकारोँ का कहीँ न कहीँ पर प्रत्यक्ष या
अप्रत्यक्ष हनन जारी है. ये भुला दिया जाता है कि मानव की प्रकृति व
चेतना शक्ति के द्वारा कोई भी जाति,मजहब,वाद आदि निर्धारित नहीँ है.
विकास के नाम पर मनुष्यता को नये आयाम देने का प्रयास तो किया जा रहा है
लेकिन किस तरह का विकास ? जब कायदे कानूनोँ व नीतियोँ के अनेक विकल्प
मनमानी ढंग से निर्धारित कर लिए जाते हैँ तो किसी न किसी के मानवाधिकारोँ
का हनन होना स्वाभाविक है. मानवसेवा,नैतिकता ,ईमानदारी,व अध्यात्मिकता के
बिना किसी न किसी का विकास तो किया जा सकता है लेकिन सारी
मनुष्यता,प्रकृति व मानवाधिकारोँ का सम्मान तब भी हो,विश्वास नहीँ किया
जा सकता .


मनुष्य आँखेँ खोलता है तो उसके सामने होता है-संसार .हालांकि उसके
साथ संसार तब भी होता है ,जब उसकी आँखेँ बंद होती हैँ.संसार मेँ होती हैं
सजीव,निर्जीव व मानव या जंतुओँ द्वारा निर्मित वस्तुएं .सत्रहवीं शताब्दी
से विश्व को उपलब्ध हुए विकास व सभ्यता ने व्यक्ति का नजरिया व जीवनशैली
बदली है. सत्रहवीँ शताब्दी पूर्व नजरिया था कि प्रकृति से छेड़ छाड़ ठीक
नहीँ लेकिन अब आधुनिक विकास व सभ्यता ने निरा भौतिक भोगवाद की उत्पत्ति
की है और प्रकृति विदोहन काफी तीव्र गति से हुआ ही, मानव मानव के बीच
सम्बंध समीकरण बदले हैँ.इन नये मानवीय समीकरणोँ ने ऋणात्मक व धनात्मक
दोनोँ तरह की स्थितियां प्रकट की हैँ.सब कुछ बदल रहा है लेकिन प्रकृति व
मानव की सहजता मिट रही है.भौतिक विकास की अन्धदौड़ ने विभिन्न स्तर पर
विभिन्न विक्रतियां उत्पन्न की है. विकास व सभ्यता के नाम पर मानव व
प्रकृति ने काफी कुछ खोया है. शारीरिक व मानसिक दोनोँ रुप से मानव असहज
हुआ ही है,प्रकृति भी प्रदूषित हुई है.वैश्वीकरण व समीपता बढ़ाने के
बावजूद अविश्वास,धोखा,बेईमानी,असत्य,हिँसा,भय आदि मेँ वृद्धि हुई
है.नैतिकता व चरित्रता कम हुई हैँ.प्रेम के प्रति नजरिया बदल कर काम(sex)
हो गया है.ऐसे मेँ अपराधी मन विकसित हुए है . धन व भौतिक लालसा मेँ
वृद्धि लेकिन ईमानदारी से परिश्रम व कर्मठता का महत्व कम हुआ है.अपने निज
स्वार्थोँ के लिए मानवाधिकारोँ का हनन स्वाभाविक है.


24 अक्टूबर 1945 को स्थापित संयुक्त राष्ट्र संघ के छह अंगोँ मेँ से
एक आर्थिक एवं सामाजिक परिषद ने मानवाधिकार के प्रति सम्मान को महत्व
देते हुए 10दिसम्बर1948 मेँ मानवाधिकार की घोषणा की थी. इसका एक मात्र
उद्देश्य है कि जाति,भाषा या धर्म के आधार पर कोई भेदभाव न हो .न ही निजी
स्वार्थोँ के आधार पर मानवाधिकारोँ का हनन हो.भारत मेँ अक्टूबर 1993मेँ
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन किया गया.उप्र मेँ 04अप्रैल 1996 मेँ
मानवाधिकारआयोग का गठन किया गया.

<अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'>

सोमवार, 26 नवंबर 2012

ओ माई गाड ! तू क्या सिर्फ निर्जीब वस्तुओँ के पूजने से खुश होता है ?

बीसलपुर रेलवे स्टेशन ,(पीलीभीत) ! 3. 06PM ! दिन रविवार.भीड़ से जूझने के
बाद टिकिट लेकर मैँ प्लेटफार्म पर आ गया था.मैँ आगे चलता चला जा रहा था
कि बिना किसी अन्त: या बाह्य सूचना के मैँ रुक गया.नीले वस्त्रोँ मेँ एक
खालसा पंथी की बात मेरे दिलोदिमाग मेँ कौंधी कि ईश्वर भक्त को कहीँ कष्ट
नहीँ होता .
उस खालसा पंथी के समीप मैँ रुक गया जो कुछ बच्चोँ से ईश भक्ति के फायदोँ
का बखान कर रहा था.पीलीभीत जाने वाली ट्रेन आ चुकी थी ,शाहजहाँपुर जाने
बाली ट्रेन आना बाकी थी.मुझे बिन बोले न रहा गया,मैँ बोला कि लाखोँ मेँ
एक दो भक्त होते हैँ .संत कबीर आये थे,उन्हेँ भी कहना पड़ गया कि मैँ जो
चीज देने आया हूँ वो कोई लेने ही नहीँ आता .हर कोई मेरे पास सांसारिक
सुखोँ के लिए प्रार्थना लेकर आता है.धर्म तो माया,मोह,लोभ,काम आदि से
मुक्ति व सांसारिक वस्तुओँ के साथ अभिनय करने की बात करता है लेकिन यहाँ
धर्मस्थल व धर्मस्थलोँ के ठेकेदार ही माया,मोह,लोभ आदि के जाल मेँ फंसे
हैँ .कहीँ से एक पौराणिक साधु आकर बोला कि माया मोह मेँ तो सारी दुनिया
है .कलियुग का कहना है कि जो धर्म को याद रखेगा,जो धर्म के साथ
सांसारिकता को भी याद रखेगा उसे ही मैँ सबकुछ सुख वैभव दूँगा .जो सिर्फ
धर्म व अध्यात्म को याद रखेगा ,कष्ट पायेगा.रावण के पास किस ऐशोआराम की
कमी थी.?बिन विभीषण राम भी उसे नहीँ मार पाते .मैँ खामोश हो गया ? वह
खालसा पंथी तो मूल मर्म की बात करता था लेकिन वह पौराणिक हिन्दू साधू
नहीँ . मैने देखा कि खालसा पंथी भी खामोश हो गया है तो मैँ आगे चल दिया.

केजरीवाल की 'आम आदमी पार्टी' पर जहाँ तहाँ प्रतिक्रिया सुनने को मिलने
लगी थीँ.शाहजहाँपुर जाने वाली ट्रेन जब आगयी तो मैँ ट्रेन के एक डिब्बे
मेँ सवार हो गया.सफर के दौरान facebook पर 'आम आदमी पार्टी' पेज पर के
कमेण्टस पर मेरी निगाह थीँ.वजीरपुर हल्ट पर जब ट्रेन रुकी तो मैने देखा
कि समीप की प्राईमरी स्कूल की बिल्डिंग मेँ कुछ बच्चे ताश खेल रहे थे .एक
बालक एक को रुपये दिखा रहा था.

भारत मेँ आम आदमी की स्थिति क्या है ?इस पर इन दिनों चिन्तन मेँ था.यहाँ
के आम आदमी का यथार्थ क्या है ?आम आदमी क्या निजी तौर पर ईमानदार है?समाज
व देश के विभिन्न मुद्दोँ की ही उसे जानकारी नहीँ है ,उनके प्रति
ईमानदारी से विचार करना तो अलग की बात है.वह अपने शारीरिक व ऐन्द्रिक
स्वार्थ, परिवार ,जाति ,मजहब ,क्षेत्र ,भाषा आदि के शरहदोँ से निकलकर
सार्वभौमिक सत्य व ज्ञान की ओर अग्रसर हो ही नहीँ पाता और जो मुट्ठी भर
लोग जागरुक हैँ,उनके वोट से क्या चुनाव जीता जा सकता है?एक सीट पर यदि
बीस , अठारह ,बारह ,बारह,दस,........आदि प्रतिशत के आधार पर मतदाता
विभिन्न जातियोँ बंटा है .जो जाति आधारित वोटिंग करता है व वोट करते वक्त
उसके नजरिया मेँ राष्ट्रवादी सोँच नहीँ होती.तो कैसे ये आम आदमी देश का
भला कर सकता है ?जो सरे आम जागरुक व्यक्तियोँ व कानून की खिल्ली उड़ाता
है.मैँ जब आज सुबह कालेज पहुँचता हूँ तो एक अध्यापक कहते हैँ कि केजरीवाल
की आम आदमी पार्टी केजरीवाल के अलावा एक भी सीट नहीँ जीत सकती .यहाँ का
आदमी ज्ञान व कानून के आधार पर नहीँ अपने निजी स्वार्थोँ,जातीय व मजहबी
आधारोँ पर वोट करता है.मैँ बोला कि आम आदमी स्वयं है क्या ?वह तो अपने
फैमिली मैम्बरोँ या पड़ोसियोँ के प्रति भी यदि निष्पक्ष व ईमानदार सोँच
रखता है तो ये बड़ी बात है .फेसबुक चलाने व इण्टरनेट पर विचार रखने वालोँ
के वोट मात्र से क्या काम चलने वाला है?जो पचास प्रतिशत वोट मेँ रुचि
नहीँ रखते ,उनके वोट करने से परिवर्तन दिखायी दे सकता है .नहीँ तो नेताओ
के पीछे ,मतदाताओँ की लाइन मे लगे लोगोँ का अध्ययन से यही पता चलता है कि
वे देश की समस्याओँ व मुद्दोँ को नजर मेँ रख कर वोट नहीँ करते.बाबू जी
बोले कि आज के समय मेँ यदि जो ऐसा नहीँ है ,उसका हाल बड़ा खराब है
.ईमानदारी मेँ रोटी मिलना तक मुश्किल हो जाएगी ?मैँ मन ही मन सोँचने लगा
कि तो काहे कि ईशभक्ति ?धर्म व अध्यात्म भक्ति ?


प्रार्थना के बाद बार्ड मेम्बर का पुत्र अर्पित सिँह चौहान जो कि कक्षा
9अ का छात्र है,मेरे पास आकर बोला कि मंदिर के लिए जगह निश्चित हो गयी है
व अपने शर्मा जी के बड़े भाई ने 21 हजार रुपये व एक मूर्ति लगवाने का
वचन दिया है. मैँ उससे बोल दिया कि मैँ तो इन निर्जीब धर्मस्थलोँ के
खिलाफ हूँ .मेरे विचारोँ को जानना हो तो पहले O MY GOD फिल्म
देखना.तुम यदि मेरा चेला बनना चाहते हो तो कुछ समय मुझे दिया करो .तब
विभिन्न मुद्दोँ पर उन विचारोँ को रखूँ जो सार्वभौमिक व सर्वोच्च ज्ञान
पर आधारित होँ .हम सब पचास प्रतिशत ब्रह्मांश व पचास प्रतिशत प्रकृति
अंशहैँ .जिसके आधार पर ही हमेँ अपना नजरिया बनाना चाहिए.हमसब अपने को
ईशभक्त ,धार्मिक ,अध्यात्मिक आदि मानते तो हैँ लेकिन ये सब मानना ढ़ोंग के
सिवा कुछ भी नहीँ .नहीँ तो फिर जिन्दगी मेँ तूफान न आ जाये जब कोई हादसा
घट जाये ?तब हादसोँ के बीच खामोश या मुस्कुराते लोग तुम्हेँ पागल व सनकी
लगते हैँ .श्री कृष्ण जीवन भर मुस्कुराते ही रहे यहाँ तक लाशोँ के सामने
भी .वे रोये तो सुदामा के हालत पर.

शनिवार, 24 नवंबर 2012

गुरु तेगबहादुर बलिदान एक जबाब : दिवस अपने मिशन के लिए कैसे होँ ?

किसी ने कहा है कि जिसके जीवन मेँ ऐसा कोई लक्ष्य नहीँ जिसके लिए हम मर सकेँ ,उसका जीवन निरर्थक है .गुरु तेगबहादुर बलिदान दिवस व गुरु गोविन्द सिंह के जीवन से हमेँ प्रेरणा मिलती है कि हमेँ अपने मिशन के लिए क्या होना चाहिए .गुरु तेगबहादुर सिंह को बलिदान की प्रेरणा उनके पुत्र गोविन्द (बाल्यावस्था) से मिली. गोविन्द ही आगे अपने पिता के न रहने पर गुरु की पदवी पर विराजमान हुए .अपने पुत्रोँ को उन्होंने बलिदान के लिए प्रेरित किया.पंचप्यारे की घटना से भी बलिदान की प्रेरणा मिलती है .

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सोमवार, 12 नवंबर 2012

आजकल के नेता ही प्रजातंत्र विरोधी ?

प्रजातंत्र मेँ नेता का मतलब क्या होना चाहिए? विभिन्न स्तर के नेताओँ को देखकर नहीँ लगता कि ये नेता प्रजातांत्रिक मूल्योँ का सम्मान करने वाले हैँ?ये नेता आमआदमी के न होकर जाति,मजहब, धन,बल आदि के ठेकेदारोँ,चापलूसोँ आदि के बीच अपना जीवन जीते हैँ.बैठकोँ,सत्र आदि के अतिरिक्त नेताओँ का समय जनता के बीच डोर टू डोर होना चाहिए,जिस भांति चुनाव के दौरान वे डोर टू डोर नजर आते हैँ.यदि ये वास्तव मेँ नेता हैँ तो अपनी जातिशून्य क्षेत्र से चुनाव लड़ने से क्योँ घबराते हैँ?यदि ये जनसेवक ही हैँ तो चुनाव के वक्त ही डोर टू डोर जनता के बीच सिर्फ क्योँ नजर आते हैँ?बाद मेँ या पहले जनता के बीच नजर क्योँ नहीँ आते?हर जाति व मजहब के आम आदमी के बीच ये क्योँ नहीँ नजर आते?क्या ये स्वयं कानून का उल्लंघन करते नजर नहीँ आते?या क्या ये अपराधियोँ का समर्थन करते नजर नहीँ आते?या क्या ये जनता की ओर से कुछ कड़ुए सत्य प्रश्नोँ का जवाब धैर्य से देने के लिए तैयार रहते हैँ?इसके बाबजूद कि ये जानते हैँ कि जनता को अधिकार है सूचना प्राप्त करने का.ये क्या अपने को जनता का सेवक मानते हैँ?क्या ये प्रजा के सम्मान मेँ तत्पर रहते हैँ ?

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गुरुवार, 8 नवंबर 2012

वित्तविहीन मान्यताप्राप्त विद्यालयोँ के शिक्षक आन्दोलन के रास्ते पर ....?!

वित्तविहीन मान्यताप्राप्त विद्यालयोँ के अध्यापकोँ को मजबूरन आन्दोलन के रास्ते पर चल पड़े हैँ .स्थानीय व जिला स्तर पर उनका आन्दोलन तेज हो चुका है .उ.प्र राजधानी लखनऊ भी चूक करने वाले हैँ .

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बुधवार, 7 नवंबर 2012

जाति का बहिष्कार क्योँ नहीँ ?

जो व्यक्ति जातिवादी है और विभिन्न व्यवहार एवं अपने बच्चोँ की
शादी,खानपान आदि जातिभावना से ग्रस्त होकर करते हैँ ,वे क्या संविधान
विरोधी ,मानवता विरोधी ,अज्ञानी ,कूपमण्डूक ,मूर्ख ,प्रकृति विरोधी
,ईश्वर विरोधी आदि नहीँ हैँ ?


जाति का बहिष्कार क्योँ न हो ? उन व्यक्तियोँ व परिवारोँ का बहिष्कार
क्योँ न हो जो कुछ जाति के व्यक्तियोँ या परिवारोँ से खानपान या वैवाहिक
सम्बंध स्थापित करने के विरोधी हैँ ?या सिर्फ अपनी जाति के व्यक्तियोँ व
परिवारोँ से ही खानपान या वैवाहिक संबंध स्थापित रखना पसंद करते हैँ या
जातिविरोधी व्यक्तियोँ व परिवारोँ के खिलाफ होते है .?ऐसे लोगोँ के खिलाफ
सामाजिक व राष्ट्रिय एकता के खिलाफ तत्व मानकर कानूनी कार्यवाही क्योँ न
की जाए ?ऐसे लोग व परिवार तो ईश्वरीय व आध्यात्मिक ज्ञान के विरोधी भी
हैँ तथा ढोँगी व पाखण्डी हैँ .ऐसोँ को भी वैचारिक व मानसिक अपराधी मानकर
सरकारी नियुक्तियोँ , आश्रय व सुविधाओँ आदि से क्या वंचित नहीँ किया
जाना चाहिए?ऐसे सर्वोच्च ज्ञानहीन व्यक्ति व परिवार मानवता के लिए भी
कलंक हैँ. प्रकृतिअंश व ब्रह्मांश के स्तर पर जाकर अपनी सोँच व कार्यशैली
न रखकर जातीय व मजहबी सोँच व कार्यशैली रखने वालोँ को समाज ,कानून धर्म
,अध्यात्म व अन्य स्तरोँ पर वरीयता दिया जाना मूर्ख प्रशासन व शासन या
प्रबंधन का परिणाम है ?हम सब तो पचास प्रतिशत प्रकृतिअंश व पचास प्रतिशत
ब्रह्मांश हैं .अत: हमेँ इसी स्तर पर जाकर विचार व आचरण करना चाहिए.

जय सनातन ! जय इस्लाम !!
ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'
<www.manavatahitaysevasamiti.blogspot.com>

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

करवा चौथ क्योँ सिर्फ स्त्रियोँ के लिए ?

विवाहित हिन्दू स्त्रियां प्रतिवर्ष करवाचौथ पर्व मनाती हैँ. किसी विद्वान का मानना है कि ये पर्व कभी सिर्फ राजस्थान मेँ मनाया जाता था.इसमेँ कितनी सच्चाई है ये तो रिसर्च का विषय है.लेकिन मेरे अन्दर एक सवाल कौधता रहता है कि ऐसे पर्व पुरुषोँ के लिए क्योँ नहीँ?ऐसे पर्व पुरुष प्रधान समाज की देन हैँ.हाँ ,एक बात और करबा,सुराई आदि आकार के बर्तनोँ का प्रयोग कभी रेगिस्तान ,अरब आदि क्षेत्र मेँ जल के दुरपयोग को कम करने के लिए करते थे.इन्हीँ क्षेत्रोँ मेँ चांद का भी बड़ा सांस्कृतिक व भौगोलिक महत्व रहा है.

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बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

सारी .ओ माई गाड !

एक फिल्म आयी है-O MY GOD .
जिसे देखने के बाद मैँ चिन्तन करता रहा रात भर.

क्या?


धर्म माया,मोह,लोभ,काम व क्रोध से मुक्त होने की बात करता है लेकिन
धर्मस्थलोँ के ठेकेदार क्या इसमेँ लिप्त नहीँ हैँ ?क्या अदालत मेँ इस बात
को लेकर केस नहीँ होना चाहिए?करोड़ोँ की सम्पत्ति की धर्मस्थलोँ व उनके
ठेकेदारोँ को क्या जरुरत?यदि जरुरत है तो इसका मतलब क्या यह नहीँ कि वे
धार्मिक नहीँ,वे अध्यात्मिक नहीँ?अब इस विषय पर भी क्या अदालत मेँ केस
नहीँ होना चाहिए ?क्या इनसे मनोवैज्ञानिक प्रश्नावलियां भरवा कर अदालत
मेँ जमा नहीँ करवायी जानी चाहिए ?प्रत्याशी चयन ,विभिन्न नियुक्तियोँ आदि
के अलाव इनका भी नारको परीक्षण व ब्रेन मेपिंग आदि नहीँ होना चाहिए ?

हम महापुरुषोँ व धर्मग्रंथोँ की माने या इन धर्मस्थलोँ व
धर्मस्थलोँ के ठेकेदारों की बातोँ को ?

अभी तक के स्वाध्याय,अध्ययन,सत्संग,चिन्तन,स्वपन,मेडिटेशन आदि से
मैँ यही जाना हूँ कि धर्मस्थलोँ व धर्म के ठेकेदारोँ को दान करना आवश्यक
नहीँ है ?दान हाथोँ से नहीँ ह्रदय से होता है ?ईश्वर व धर्म के नाम पर हम
किसे दान करेँ?जिसको दान करने से जिसे संतुष्टि होती हो ?जिसके कष्ट दूर
होते होँ ?ईश्वर,धर्म,अध्यात्म आदि के नाम पर जो भी ग्रंथोँ व महापुरुषोँ
के आधार पर हम कर रहे हैँ ,उसमेँ धर्मस्थलोँ व धर्मस्थलोँ के ठेकेदारोँ
आदि का क्योँ हस्तक्षेप ?ऐसे मेँ क्या हम अदालत की शरण नहीँ ले सकते क्या
?


युरोप क्रान्ति मेँ धार्मिक कारणोँ का महत्व ?


अनेक भाषा मेँ अनुवादित बाइबिल जब आम आदमी के हाथ पहुँची तो आम आदमी ने
जाना कि अरे,लिखा तो ऐसा है और चर्च व पुरोहित पादरी कर ऐसा रहे हैँ
?यहां भी अब ऐसा होने लगा है .शिक्षा का स्तर बढ़ा है ,लोग स्वयं ग्रंथोँ
व महापुरुषोँ की वाणियां पढ़ने लगे हैं .सच्चाई सामने आने लगी है .ग्रंथों
व महापुरुषोँ को पढ़कर लगने लगा है कि ब्राह्मण जाति ,क्षत्रिय जाति व
वैश्य जाति मेँ सभी के आचरण व जीवन लक्ष्य शास्त्रानुकूल नहीँ हैँ?अब
गिने चुने ही सवर्ण देखने को मिलते हैँ .धर्मस्थलोँ व इनके ठेकेदारोँ का
आचरण जरुरी नहीँ ग्रंथोँ के अनुरुप हो ?जरुरी नहीँ इनको सार्वभौमिक ज्ञान
हो ?


ईश्वर का स्मरण क्योँ ?


किसी ने कहा है कि ईश्वर सिर्फ सत्य को पाने का बहाना है.फिर भी,हम पचास
प्रतिशत ब्रह्मांश व पचास प्रतिशत प्रकृतिअंश हैँ.हमारे जीवन का हेतु
पूर्ण तभी है जब हम दोनोँ अंशोँ मेँ समअस्तित्व,समसम्मान व समभोग रखते
हुए दोनोँ की आवश्यकताओँ को समझना चाहिए.अपना सारा जीवन अपने शरीर,अन्य
शरीर,सांसारिक वस्तुओँ आदि मेँ गँवा कर सुख की कामना करना या फिर इसके
साथ साथ ईश्वर,धर्म व अध्यात्म के नाम पर सिर्फ कुछ शारीरिक क्रियाएं
करना मूर्खता है.
मानसिक क्रियाएं व मन प्रबंधन बिना सब निरर्थक है .ईश्वर व अध्यात्म के
लिए अहंकारशून्यता चाहिए.माया मोह लोभ से मुक्ति चाहिए.
स्व का अर्थ है आत्मा या परमात्मा ,जिसका सम्बंध विचार ,ज्ञान ,संकल्प
,स्वपन ,कल्पना आदि के सार्वभौमिक स्तर से है न कि आपके जातीय व मजहबी
शारीरिक आचरणोँ से ?वास्तव मेँ हम ईश्वरभक्त हैँ ही नहीँ.ईश्वरभक्त की
कोई सांसारिक इच्छा नहीँ होती ?हां,वह सुप्रबंधन के लिए परिवार समाज व
विश्व मेँ अपनी शारीरिक हलचल कर सकता है .ईश्वरभक्त होने के लिए
धर्मस्थलोँ,धर्मठेकेदारोँ,जातीय व मजहबी रीतिरिवाजोँ की आवश्यकता जरुरी
नहीँ है .
कस्तूरी मृग की तरह भटकने की जरुरत नहीँ है .


जैन ,बुद्ध , हजरत,कबीर,रहीम,नानक आदि की वाणियां ?

ईश्वरता,धार्मिकता व अध्यात्मिकता समझने के लिए
जैन,बुद्ध,हजरत,कबीर,रहीम,नानक आदि की वाणियां समझना अति आवश्यक है
.हमारा नजरिया इन सबसे हटकर ही है तो कैसी आपकी ईश्वरता,धार्मिकता व
आध्यात्मिकता ?आपतो इनके विपरीत खड़े हो .नानक अपना खेत रखाने जाता है तो
वह अपने खेतोँ मेँ से दाना चुंगती चिड़ियोँ को भगाता नहीँ.हजरत के ऊपर एक
औरत कूड़ा डालती है लेकिन वे उस औरत से नाराज नहीँ होते .उदारता व
अहंकारशून्यता बिना आप हम कैसे ईश्वरता,धार्मिकता व आध्पयात्मिकता
स्वीकारे माने जा सकते हैँ.हमारा हेतु मोझ न रह कर काम है .

ईश्वर ज्ञान से जुड़ेँ ?


हम बच्चे ही होते हैँ ,सांसारिक लालसाओँ मेँ ढकेले जाने लगते हैँ.ईश्वरीय
ज्ञान ,विचार ,भाव आदि से हमेँ दूर ही रखा जाता है .वह कुछ शारीरिक
क्रियाओँ के अतिरिक्त . मानसिक क्रियाएं हमारी शारीरिक ऐन्द्रिक लालसाओँ
मेँ ही लगी होती हैँ .ईश्वरीय ज्ञान हमारे सिर के ऊपर से निकल जाता है
.हम जीवन भर इसी सोँच मेँ रहते हैँ कि हमारे यहां ये होता है ,हमारे यहां
ये नहीँ होता है .क्या हम जानते हैँ कि ईश्वर हमसे क्या चाहता है ?मनुष्य
के बनाये नियमोँ से क्या उसे मतलब है ?कि उसे प्रकृति व मन की स्थिति से
मतलब है?

धर्मस्थलोँ मेँ करोड़ोँ की सम्पत्ति का क्या हो?


ब्राह्मण,धर्मस्थल व धर्मठेकेदारोँ का उद्देश्य धन व सम्पत्तिलोलुपता
नहीँ होता,मैने तो यही सीखा है.क्षत्रीय का उद्देश्य समाज व धर्म की
रक्षा करना होता है.धर्म स्थलोँ मेँ करोड़ोँ की सम्पत्ति व धन है,जिससे
गरीबी मिटायी जा सकती है.इस सम्पत्ति व धन पर किसका अधिकार है?क्या ये
फिर मोहम्मद गजनबियोँ की तलाश मेँ है?या ऐसे शासकोँ की तलाश मेँ जो इस
सम्पत्ति को अपने कब्जे मेँ कर गरीबोँ व विकलांगों को बाँट दे? इस
सम्पत्ति व धन की ईश भक्तोँ ,धार्मिकोँ व आध्यात्मिकोँ क्या जरुरत ?जिसे
इसकी जरुरत है उसे ये बांट नहीँ देनी चाहिए क्या?

महापुरुषोँ की वाणियोँ व ग्रंथोँ के आधार पर क्या इन सवालोँ के जबाब
चाहने के लिए हमेँ अदलात का दरबाजा नहीँ खटखटाना चाहिए?


जैन के त्रिरत्न व पंचमहाव्रतोँ को कैसे भुलाया जा सकता है?बुद्ध के चार
आर्य सत्य,अष्टांगिक मार्ग,दस शील व आचरण को कैसे भुलाया जा सकता है?अब
जो मतभेदोँ मेँ जीते हैँ वे हमेँ जैन या बुद्ध से जोड़कर देख सकते
हैँ.लेकिन सत्य सत्य है चाहे वो आपको किसी भी के पक्ष मेँ जाता दिखाई
दे.
सारी !

रविवार, 28 अक्तूबर 2012

वाल्मीकि जयंती पर एक विचार गोष्ठी !

मीरानपुर कटरा,शाहजहांपुर! मानवता हिताय सेवा समिति के द्वारा आदर्श बाल विद्यालय इण्टर कालेज मेँ एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया.जिसका विषय था-'जातिवाद का प्रजातंत्र मेँ फैला जहर'.
इस अवसर पर समिति हेतु सदस्यता अभियान चलाने पर भी विचार किया गया.समिति के संस्थापक अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'
ने कहा कि समिति का मुख्य उद्देश्य है सर्वोच्च ज्ञान के आधार पर सभी प्राणियोँ मेँ एकत्व का भाव लेकर चलना तथा जातिवाद से प्रभावित मानवीय आचरणोँ पर चोट करना.इसके लिए आनलाइन इण्टरनेट से भी जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है.सर्वोच्च ज्ञान के आधार पर हम सब सजीव पचास प्रतिशत ब्रह्मांश अर्थात आत्मा व पचास प्रतिशत प्रकृतिअंश है.जिसकी कोई जाति नहीँ जिसका कोई मजहब नहीँ.सार्वभौमिक ज्ञान को प्राप्त हुए बिना हम अपूर्ण हैँ तथा जातिवाद की भावना मेँ जीना एक विकार है.जो प्रजातंत्र के लिए एक जहर है.कोषाध्यक्ष सुजाता देवी शास्त्री ने कहा जातिवाद कलंक है.

विचारगोष्ठी का संचालन खुशीराम वर्मा व अध्यक्षता अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु' ने की.इसमेँ रुकुम सिंह.मनोज.राजकुमार,शेरसिह,विशाल मिश्रा.वैभव सक्सेना आदि उपस्थित थे .

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शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

May you have success with in this election !

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------Original message------
From: akvashokbindu@gmail.com <akvashokbindu@gmail.com>
To: "president@messages.whitehouse.gov" <president@messages.whitehouse.gov>
Date: Saturday, October 27, 2012 10:17:34 AM GMT+0000
Subject: May you have success with in this election !

The Hon. Barak Obama !


May you have success with in this election!Hoping so,I am writing a letter to you.

I want to remind you that the world is fully divided on the basis oe castism,commumalism and conservation. The system of justice should run on the well managed democratic road,For this we will have to speed up our proceedings.

I am the inhabitant of the state U.P. in India.I am usually bound to face the narrowmindedness,ignorance and differences of the people In my country,the votess decide the success of the comdidetes on the grounds of their caste,religion and selfishness.

At lower levels, the people are trying for awakening.But they are unable to impress the public.

"What kind of should the world be?"...It is evident because of Osho's world journey.there is no one friend or enemy in the view of law and order..


In the awaiting of your Letter...

ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'


The Hon. Mr. Barak Obama
White house
Washington
The United State of America

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सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

प्रकृति सम्मान का ही धार्मिक स्वरुप नवरात्र!

आवेश दो प्रकार का होता है-ऋणावेश व धनावेश.सारी सृष्टि इन्हीँ दो आवेशोँ के परस्पर संबंधोँ पर टिकी है.फिजिक्स ,कैमेस्ट्री,भूगोल,खगोल,मनोविज्ञान आदि विषय के मूल मेँ भी यही है.जगत की सारी भौतिक व अभौतिक अप्रत्यक्ष प्रत्यक्ष क्रियाएं इसी पर टिकी हैँ.हिन्दूपौराणिक व अन्य दर्शन मेँ सृष्टि उत्पत्ति का आधार यहीँ से शुरु होता है.मानव उत्पत्ति का श्रीगणेश भी यहीँ से है.आदमहब्बा या शंकरपार्वती उपस्थिति के साथ मानवसत्ता का उदय होता है.सभी प्राणियोँ के शरीर,सूक्ष्मशरीर प्रकृतिअंश ही है.आत्मा व परमात्मा (ब्रह्म) अनन्त भगवान (शून्य के बाद ब्लेक होल व व्हाईट होल के पार) के अंश हैं.प्रकृति मेँ इन दोनोँ के समअस्तित्व को हिन्दूपौराणिक श्री अर्द्धनारीश्वर का स्वरुप मेँ प्रस्तुत किया गया है.हमसब के शरीर व सजीवोँ का अस्तित्व इन्हीँ दोनोँ के समअस्तित्व का परिणाम है .हम पचास प्रतिशत ब्रह्मंश व पचास प्रतिशत प्रकृतिअंश. हमसब अपने लिए काफी कुछ करना तो चाहते हैं लेकिन स्थिति अंधेरे की है.हम न अपने प्रकृतिअंश न ही अपने ब्रह्मांश के लिए ईमानदारी व ज्ञान बोध के साथ नहीँ जीते. किसी का नर या मादा होना प्राकृतिक है.

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नेहरु,पटेल व जिन्ना की थकावट का परिणाम देश का विभाजन:जसवंत सिँह ,पुस्तक 'जिन्ना भारत विभाजन के आईने मेँ'

नेहरु और पटेल शुरु मेँ न चाहते हुए भी अंतत:बंटवारे के लिए अपनी सहमति दे गए .('आधी रात की आजादी' लैरी कालिन्स दामिनिक लैपियर की इस पुस्तक मेँ पटेल व नेहरु दोनोँ को लार्ड माउंटबेटन के झांसे मेँ आने के कारण दोनोँ को दोषी माना गया . )जब कई सालोँ बाद लियोनार्ड मोजले ने नेहरु से पूछा कि आपने इस बात को क्योँ मान लिया ? तो उन्होने स्पष्टवादिता से ,लेकिन दुख के साथ जवाब दिया ,'तब तक हम बहुत थके हुए लोग थे और काफी समय तक जेल मेँ रह चुके थे....'

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मेरी प्रतिक्रिया:


ये भी सत्य है कि ये नेता थक चुके थे .अम्बेडकर के अनुसार कांग्रेस सत्तावादियोँ के हाथ मेँ आ चुकी थी.जो पश्चिम से प्रभावित थे .लोहिया के अनुसार,इन सत्तावादियोँ के बीच गांधी अकेले पड़ चुके थे.सत्ता के नशे ने देश का विभाजन करवाया और साम्प्रदायिक दंगे करवाये.यहां तक कि कुछ दिनोँ बाद नेहरु व उनकी टीम को लगा कि देश को संभालना बड़ा मुश्किल है तो फिर वापस माउण्टबेटन को सत्ता गोपनीय तौर पर सौप दी.
नेहरु व बेटन पैक्ट को सुभाषवादी अब भी संदिग्ध समझते हैँ.सुभाष व शास्त्री की मृत्यु पर कांग्रेस को संदिग्ध रुप से देखते हैँ.

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वह धार्मिक व आध्यात्मिक नहीँ ? अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'

इस जगत मेँ जो अपने को कहता फिरता है कि मैँ हिन्दू हूँ ,मैँ मुसलमान हूँ ,मैँ कुणवी हूँ,मैँ ठाकुर हूँ ,मैँ बिहारी हूँ ,मैँ मराठी हूँ ,मैँ जापानी हूँ ,मैँ हिन्दुस्तानी हूँ आदि.ये हमारा वास्तविक परिचय नहीँ है .ये हमारी धार्मिकता व धार्मिकता नहीँ.


"सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तय: सम्भवन्ति या : ।
तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रद पिता ।।"

श्रीमद्भगवद्गीता (14.4) के अनुसार सभी योनियोँ के जीवोँ का जन्म इस भौतिक प्रकृति से होता है और बीज परमसत्ता चेतनास्वरुप से प्राप्त होता है .मैँ तो यह कहता हूँ कि हमसब पचास प्रतिशत ब्रह्मंश व पचास प्रतिशत प्रकृतिअंश हैँ.इसके अलावा हमारा अन्य परिचय ड्रामा ,अभिनय ,पाखण्ड आदि है.ऐसे मेँ मैँ यदि समाज के अन्य व्यक्तियोँ की भांति धार्मिकता व आध्यात्मिकता मेँ सरीक नहीँ होता ,विरोध करता हूँ तो लोग मुझे बागी या असामाजिक मानते हैँ और न जाने क्या क्या कमेंटस करते हैँ .जिससे प्रेरणा पाकर मैने इस ब्लाग को नाम दिया-<सामाजिकता के दंश> .क्योँकि सामाजिकता को स्वीकार करने का मतलब है,कूपमण्डूकता ,जातिवाद,मजहबवाद ,चापलूसी,हाँहजूरी ,अज्ञानता,गैरकानूनी तथ्य आदि को स्वीकारना.

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रविवार, 14 अक्तूबर 2012

जो सत्य से मुकरे वही दुख पाये ....?

सुप्रबंधन के लिए प्रतिपल आन्दोलनरत रहने की आवश्यकता होती है अर्थात प्रतिपल जेहाद की आवश्यकता होती है .देश के हालातोँ के लिए हम सब दोषी हैँ.हमसब क्या अपने ईमान की हिफाजत कर रहे हैँ ?

मर्यादाओँ के लिए हम अपनी भौतिक लालसाओँ का त्याग करने को तैयार नहीँ .हम होते तो क्या करते?क्या जंगल जंगल भटकना पसंद करते ?रामचंद्र शुक्ल का कहना है-"महाराणा प्रताप जंगल जंगल मारे मारे फिरते थे ,अपनी स्त्री और बच्चोँ को भूख से तड़पते देखते थे ,परन्तु उन्होने उन लोगोँ की बात न मानी जिन्होँने उन्हेँ आधीनतापूर्वक जीते रहने की सम्मति दी,क्योँकि वे जानते थे कि अपनी मर्यादा की चिन्ता जितनी अपने को हो सकती है ,उतनी दूसरे को नहीँ. "

लेकिन हम ?!

हम चंद रुपयोँ की खातिर क्या नहीँ कर सकते ?सिर्फ हर हालत मेँ मर्यादाओँ को स्वीकार नहीँ कर सकते .

हम महापुरुषोँ के संदेशोँ को जीवन मेँ उतारना नहीँ चाहते.वर्तमान हालातोँ के लिए हम नेताओँ को दोषी मानते हैँ लेकिन प्रजातंत्र मेँ हम ही दोषी हैँ ,हम सत्य से मुकरे हुए हैँ अर्थात हम काफिर हैँ.हम जाति जाति मेँ बंट अखण्ड भारत को खण्ड खण्ड करते रहे है .


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शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

21 अक्टूबर 1943 : सिंगापुर मेँ भारत की अस्थायी सरकार

मीरानपुर कटरा (शाहजहांपुर) ,नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु सन
1945ई0मेँ वायुयान दुर्घटना मेँ नहीँ हुई थी ,ऐसा मुखर्जी आयोग की
रिपोर्ट मेँ भी कहा जा चुका है .सन 1945 के नेता जी के जीवन पर पर्दा
डालने वाली कांग्रेस खामोश क्योँ है ?

उपर्युक्त विचार यहाँ सम्पन्न हुई एक विचारगोष्ठी मेँ रखते हुए
मानवता हिताय सेवा समिति के संस्थापक अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु' ने कहा
कि कभी न कभी कांग्रेस को जनता के सवालोँ का जवाब देना ही पड़ेगा ?क्या
भारत अब भी ब्रिटेन के औपनिवेशिक देशोँ के संगठन मेँ शामिल नहीँ है ?यदि
शामिल है तो फिर वह इस संगठन मेँ अभी तक देश को क्योँ शामिल किए बैठे
हैँ?नेहरु व बेटन समझौता को कांग्रेस उजागर क्योँ नहीँ करना चाहती है
?सुभाष व शास्त्री की मृत्यु सम्बंधी दस्तावेज सार्वजनिक क्योँ नहीँ किए
जा रहे हैँ ?अमेरीका द्वारा ओशो को थेलियम दिए जाने के वक्त क्या
कांग्रेस अमेरीका के दबाव मेँ न थी?


आजाद हिन्द सरकार के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य मेँ सम्पन्न इस विचार
गोष्ठी मेँ उन्होने बताया कि आम जनता व प्रजातंत्र के हित मेँ देश की
आजादी काफी दूर है .आजादी के पैँसठ साल होने के बाबजूद भी अभी कुछ मुट ठी
भर लोगोँ के हाथ मेँ देश की सत्ता व शक्तियां मौजूद हैँ .लैरी कालिन्स
दामिनिक लैपियर ,अबुल कलाम आजाद ,सरस्वती कुमार ,जयगुरुदेव ,भारतीय सुभाष
सेना आदि की माने तो देश को आजादी भ्रष्टाचार व सत्तालोलुपता की नीँव पर
मिली मात्र सत्ता हस्तान्तरण थी .लैरी कालिन्स दामिनिक लैपियर की पुस्तक
'आधी रात को आजादी' , अबुल कलाम आजाद की पुस्तक'इण्डिया विन्स फ्रीडम' और
काशी के सरस्वती कुमार की पुस्तक'सलीब पर एक और ईशा' आदि पुस्तकोँ मेँ
देश की आजादी व विभाजन को एक काला अध्याय ही माना गया है . असली सरकार तो
21 अक्टूबर 1943 को नेता जी सुभाष चंद्र बोस के द्वारा सिँगापुर मेँ
स्थापित की गयी थी ,हालांकि जो अस्थाई थी लेकिन आम जनता का हित उसी मेँ
निहीत था .


सिंगापुर मेँ भारत की अस्थायी सरकार गठित करने के बाद नेताजी सुभाष
चंद्र बोस ने 'दिल्ली चलो'का नारा दिया था.उन्होने सिंगापुर तथा रंगून
मेँ सेना के दो मुख्यालय स्थापित किए थे.महात्मा गांधी को 'राष्ट्रपिता'
नाम सुभाष जी ने इसी वक्त गांधी से आशीर्वाद मांगते हुए 'जय हिन्द' का
नारा देने के साथ दिया था.उनके व उनकी सेना की राष्ट्रीयता तथा वीरता को
कलंकित करके नहीँ देखा जा सकता.वहीँ दूसरी ओर देश के कुछ नेता अंग्रेजोँ
की चापलूसी मेँ लगे थे .?देश की आजादी के वक्त सत्तालोभी नेता जहाँ
दिल्ली मेँ अंग्रेजोँ के साथ जाम से जाम लड़ा रहे थे सम्भवता ? वहीँ दूसरी
ओर महात्मा गांधी दिल्ली से बाहर आम गरीब जनता के बीच थे,जो साम्प्रदायिक
आग मेँ उलझी थी .सरस्वती कुमार के अनुसार गांधी की हत्या के पीछे ये
सत्तालोभी लोग भी थे,जिन्होने गांधी को अकेला छोड़ दिया था .लोहिया ने भी
लिखा है कि आजादी के वक्त गांधी अकेले पड़ चुके थे .


सरस्वती कुमार लिखते हैँ -"मुझे पूर्ण विश्वास है जब तक भारत राष्ट्र
इस परिवार के चंगुल से अपने को अलग नहीँ कर लेता तब तक राष्ट्र को सही
दिशा नहीँ मिल सकती.इस परिवार के लोगोँ को अपने नाम के आगे गांधी शब्द
लिखना सबसे बड़ा धोखा है जबकि इन्हेँ गांधी शब्द का उच्चारण भी नहीँ करना
चाहिए . "

इस अवसर पर खुशीराम वर्मा ने कहा कि 'आम जनता की आजादी' अभी काफी
दूर है .हालांकि इसको पाने के लिए पहला कदम रखा जा चुका है .नेहरु व नकली
गांधी परिवार की असलियत अब इण्टरनेट सोशल मीडिया मेँ उजागर होने ही लगी
है .बस,अब उसको जमीन पर उतरना है .सच्चे देशभक्तोँ को आगे बढ़ाना है जो आम
आदमी के हित मेँ जाकर देश मेँ सुप्रबंधन ला सके व न्याय की व्यवस्था
,सेवाभाव ,श्रम आदि को महत्व दे सके .


विचारगोष्ठी का संचालन सत्यम विद्यार्थी व अध्यक्षता अशोक कुमार वर्मा
'बिन्दु' ने की .

श्राद्व पक्ष : क्या सनातन धर्म के पक्ष मेँ आज की सोंच !

पुरखोँ व बड़ोँ का सम्मान कैसे ?


वर्तमान मेँ श्राद्ध पक्ष चल रहा है.हिन्दुओँ मेँ कुछ हट कर इस समय चल रहा है.
पुरखोँ का सम्मान हम कैसे कर सकते हैँ ? बड़ा कौन है ?श्राद्ध करने का क्या सर्वोच्च ज्ञान समर्थन करता है? तरक्की का मतलब क्या ये है कि हम समाज का अंधानुकरण करेँ व महापुरुषोँ के संदेशोँ को नजरअंदाज कर देँ ?संश्लेषण व विश्लेषण मेँ जाने के बाद पाता हूँ कि उपर्युक्त सवालोँ के जबाब के अनुरुप श्राद्ध मनाने वालोँ का आचरण , हेतु ,नजरिया व ज्ञान नहीँ होता .श्राद्ध करने से पितरोँ का उद्धार होता है ,ऐसा कहने वाले गीताज्ञान के क्या विरोधी नहीँ हैँ? श्री अर्द्धनारीश्वर शक्तिपीठ ,बरेली,उप्र के संस्थापक भैया जी का भी कुछ ऐसा ही मानना है कि श्राद्ध करने या न करने से पितरोँ के उद्धार का कोई मतलब नहीँ है.यदि मतलब है तो गीता के ज्ञान का विरोध है .पितरोँ का उद्धार कैसे ?काम,क्रोध,लोभ,माया ,मोह आदि पर नियंत्रण कर महापुरुषोँ के संदेशों पर चल कर ही हम भूत व पितर योनि की सम्भावनाओँ से निकल कर पितरोँ का उद्धार कर सकते हैँ.जो जैसा कर्म करता है,वह वैसी योनि पाता है .पितरोँ को उनकी योनि से कैसे उद्धार ... ?

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मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

केजरीवाल की नयी डगर:डा.आनन्द अखिला , पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक ,लखनऊ

दो अक्टूबर को अरविन्द केजरीवाल ने अपनी पार्टी का घोषणापत्र जारी
किया.अभी तो पार्टी का नाम भी रखा जाना बाकी है .भ्रष्टाचार के विरुद्ध
लड़ रहे अरविन्द के घोषणा पत्र से ऐसा लगता है कि वह खुद इधर उधर के
चाटुकार राजनीतिज्ञोँ से घिरे हुए हैँ और अन्य राजनैतिक दलोँ की भांति
जनता को लुभाने वाले मसले डीजल पेट्रोल गैस के दामों की घोषणा कर रहे हैँ
,वह भी डेढ़ साल बाद की .इस तरह की बातें तो सभी राजनैतिक दल करते हैँ
.उनसे अपेक्षा है कि वह स्पष्ट बताएं और मापदण्ड निर्धारित करेँ कि किस
प्रकार के लोगोँ को वह अपनी पार्टी की सदस्यता देंगे ?उनमेँ क्या क्या
खूबियां होनी चाहिए ?सिर्फ लोकपाल बिल एजेण्डा न होकर रोजमर्रा के जीवन
मेँ भ्रष्टाचार से कैसे लड़ा जाएगा,इस पर भी बात होनी चाहिए .कैसे और कहां
लोग अपनी समस्या बताएं ? सभी जानते हैँ कि चुनावोँ मेँ 80से90प्रतिशत
काले धन का इस्तेमाल होता है .जो लोग ये पैसा देते हैँ वह अपने प्रत्याशी
खड़े करना चाहते हैँ .प्रत्याशियोँ की परख कैसे होगी ?देश के हालात देखकर
ऐसा लगता है कि आने वाले चुनावोँ मेँ जनता कांग्रेस से दूर भागेगी परन्तु
किसके पास ?अरविन्द के पास अच्छे विकल्प होने चाहिए न कि वही घिसे पिटे
पुराने मुद्दे .दूसरे दलोँ से निकाले गये या लिफ्ट न मिलने पर रिजेक्ट
लोगोँ से कैसे परहेज करेंगे ?अभी तो जनता को यही पता नहीँ है कि अरविन्द
केजरीवाल से कैसे मिला जाए ?


- डा.आनन्द अखिला

MERI NAJAR मेरी नजर :

(1) वार्ड व गांव स्तर पर बौद्विक कमेटियां गठित की जायेँ ,जिनमेँ
प्रत्येक जाति के लेखक ,वकील ,शिक्षक आदि शामिल किए जायें .
(2)प्रत्याशियोँ के चयन के लिए नारको परीक्षण अनिवार्य किया जाना चाहिए .
(3)प्रत्याशी आय व्यय का बजट जनता के सामने रखेँगे
(4)नामांकन के वक्त एक शपथ पत्र लगाना अनिवार्य हो जिसमेँ घोषणा की गयी
हो कि वादोँ को न निभाने पर इस्तीफा दे दूंगा .
(5)चुनाव क्षेत्र मेँ अधिक जनसंख्या वाली जाति के व्यक्ति को तभी
प्रत्याशी चुना जाएगा जब वह जाटव , वाल्मीकि जाति के लोगोँ के घर जा कर
भोजन ग्रहणकरता हो व क्षेत्र मेँ गैरजाति मेँ विवाह करने वाले युवक
युवतियोँ की मदद करता हो .
(6)अन्य

रविवार, 7 अक्तूबर 2012

17 अक्टूबर 1940 : सविनय अवज्ञा आन्दोलन के समय ?

सितम्बर1939ई0को द्वितीय विश्वयुद्ध दैत्य रुप मेँ आया.कांग्रेस ने
जुलाई 1940मेँ ब्रिटिश सरकार के समक्ष यह माँग रखी कि अगर सरकार केन्द्र
मेँ भारतीयोँ को लेकर एक ऐसी सरकार बना दे,जो विधानसभा के प्रति
उत्तरदायी हो और सरकार युद्ध के पश्चात भारत को स्वाधीनता प्रदान करे तो
कांग्रेस युद्ध मेँ सरकार को सरकार को सहयोग दे सकती है लेकिन ब्रिटिश
सरकार ने इसका समर्थन नहीँ किया. भारतियोँ को संतुष्ट करने के लिए
वायसराय लिनलिथियो ने आठ अगस्त 1940 को अपना 'अगस्त प्रस्ताव' प्रस्तुत
किया. कांग्रेस ने यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया क्योंकि वह देश की
स्वतंत्रता व अपनी सरकार की मांग कर रही थी और फिर अगस्त प्रस्ताव मेँ
अल्पसंख्यको को जरुरत से ज्यादा महत्व प्रदान किया गया था.सन1939 से 1945
तक चलने वाले द्वितीय विश्व युद्ध मेँ जो परिस्थितियां बनी उसी के
फलस्वरुप इंग्लैण्ड मेँ सत्ता परिवर्तन हुआ.इधर मुस्लिम लीग और कांग्रेस
के बीच कड़ुवाहट अपनी उच्चता पर थी.देश के अनेक हिस्सोँ मेँ साम्प्रदायिक
दंगे हो रहे थे.देश का वायसराय था लार्ड बावेल.उसका कहना था कि आजादी
देने के पहले साम्प्रदायिक गुत्थी को सुलझा लेने दिया जाय.अगर इस समय
सत्ता का हस्तान्तरण हुआ तो साम्प्रदायिक आग मेँ भारत को झोँकने का कलंक
ब्रिटिशसरकार पर लगेगा.ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली से मतभेद के मद्देनजर
बावले ने त्यागपत्र दे दिया .24मार्च को लार्ड माउण्टबेटन भारत आया जिसे
आदेश मिला था कि 30जून 1948 तक भारत मेँ सत्ता का हस्तान्तरण हो जाय.लंदन
के लिए उड़ान भरने से पूर्व जो फाइल लार्ड बावेल ने लार्ड माउण्टबेटन को
चार्ज मेँ दी थी उस फाइल के मुखपृष्ठ पर लिखा था-'आपरेशन मैडहाउस'यानी
पागलखाने का अभियान.लार्ड माउण्टबेटन ने फाइल के कवर को बदल दिया और उस
पर लिख दिया-'वशीकरण अभियान'अर्थात आपरेशन सीडक्सन.(पृष्ठ 05,सलीव पर एक
और ईशा)
वशीकरण किस पर? पहले नेहरु पर फिर पटेल पर ?'सलीव पर एक और ईशा' पुस्तक
लिखने वाले सरस्वती कुमार का कहना है -देश मेँ वर्तमान समस्याओँ की जड़
'नेहरु माउण्टबेटन पैक्ट' है.

खैर!17 जनवरी 1941 को सुभाष चुपचाप जर्मनी रवाना हो चुके थे .जहाँ बर्लिन
मेँ एक भारतीय सैन्य दल का गठन किया था . 08आगस्त 1940 को प्रस्तुत आगस्त
प्रस्ताव को कांग्रेस अस्वीकार कर चुकी थी .इस समय की कांग्रेस व सन 1947
के बाद की कांग्रेस मेँ अन्तर है. क्या वास्तव मेँ अंतर है ?नरम दल वाले
क्या सभी जनहित के न होकर सत्ता के हित मेँ नहीँ थे ?1938-1939 मेँ
कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चंद्र बने थे परन्तु इन नरम दलियोँ या कहेँ की
सत्ता के चापलूसोँ के वशीभूत लोगोँ से घिरे गांधी जी के विरोध करने पर
सुभाष को अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देना पड़ा,फारवर्ड ब्लाक की स्थापना
करनी पड़ी .ये नरम दली तो द्वितीय विश्वयुद्ध मेँ ब्रिटेन सरकार की ही
मदद करना चाहते थे. जनता मेँ प्रिय बने रहने की नीति के कारण ये लोग जन
लुहावने कार्य करते रहे लेकिन सन 1885 मेँ कांग्रेस की स्थापना का
उद्देश्य क्या था? एक पुस्तक लिखती है कि यह आन्दोलन केवल थोड़े से
शिक्षित मध्यवर्गीय बुद्धिजीवी वर्ग तक ही सीमित था,जो पाश्चात्य
उदारवादी और अतिवादी विचारधारा से प्रेरणा लेता था.मेरा अपना निजी विचार
यही है कि ये राष्ट्रवादी व आन्दोलनकारी सिर्फ जनता की नजर मेँ भला दिखने
के लिए थे.जिनमेँ अंग्रेजीयत की बू थी.कांग्रेस मेँ नरमदलीय नीतियोँ के
खिलाफ 1895से ही असंतोष व्यक्त किया जाने लगा था.बनारस कांग्रेस मेँ
प्रिंस आफ वेल्स (जार्ज पंचम) के स्वागत पर कांग्रेस दो फाड़ हो गयी थी
.तिलक ने कांग्रेस को 'चापलूसोँ का सम्मेलन' कहा था.सन1928मेँ कांग्रेस
के द्वारा पेश संविधान प्रारुप 'नेहरु रिपोर्ट' पर विचार विमर्श के लिए
लखनऊ व दिल्ली मेँ सर्वदलीय सम्मेलनोँ मेँ कांग्रेस का वामपंथी युवा वर्ग
जिसका नेतृत्व नेहरु व सुभाष कर रहे थे और जो औपनिवेशिक स्वतंत्रता से
संतुष्ट नहीँ थे,ने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग को कांग्रेस का उद्देश्य
बनाना चाहा था.लेकिन सन 1947-48 औपनिवेशिक स्वतंत्रता को न चाहने वाला
नेहरु क्या बदल गया?15अगस्त1947को सत्ता हस्तान्तरण के बाद भी क्या
ब्रिटेन का औपनिवेशिक राज्य नहीँ है?आखिर देश की आजादी व नेहरु माउण्टन
पैक्ट,सुभाष सम्बंधी दस्तावेज आदि सार्वजनिक क्योँ नहीँ किये जा रहे
?वर्तमान मेँ सुभाष सेना के लोग अब भी देश ब्रिटेन का औपनिवेश मान रहे
हैँ व देश की आजादी को मात्र सत्तापरिवर्तन दिवस मानते हैँ .डा.भीमराव
अम्बेडकर लिखते हैँ-" भारत मेँ आजादी का जो कोलाहल मचा है,उसमेँ यदि कोई
हेतु है तो वह है अछुतोँ का हेतु.हिन्दुओँ और मुसलमानोँ की लालसा
स्वाधीनता की आकांक्षा नहीँ है .यह तो सत्ता संघर्ष है,जिसे स्वतंत्रता
बताया जा रहा है .....कांग्रेस मध्यमवर्गीय हिन्दुओँ की संस्था है,जिसको
हिंदू पूंजीपतियोँ का समर्थन प्राप्त है,जिसका लक्ष्य भारतीयोँ की
स्वतंत्रता नहीँ,बल्कि ब्रिटेन के नियंत्रण से मुक्त होना और वह सत्ता
प्राप्त कर लेना है,जो इस समय अंग्रेजोँ की मुटठी मेँ है.(अध्याय दो,बाबा
साहेब डा.अम्बेडकर सम्पूर्ण वांग्यमय ,खण्ड 17)". द्वितीय विश्व युद्ध
मेँ कांग्रेस ब्रिटिश सरकार का सहयोग करना चाहती थी लेकिन नेता जी सुभाष
चंद्र बोस का विचार इसके विपरीत था.सुभाष का मानना था कि ब्रिटेन की
समस्या से फायदा उठाया जाये .स्वयं बुलाये गये समझॉता विरोधी सम्मेलन मेँ
उन्होँने कांग्रेस के ब्रिटिश सहयोग की आलोचना की.जनता के बीच कांग्रेस
की साख गिरने लगी.जिससे बचने के लिए कांग्रेस को सविनय अवज्ञा आन्दोलन
शुरु करना पड़ा.प्रथम सत्याग्रही विनोवा भावे हुए.जिसमेँ नेहरु भी शामिल
हुए.केवल उत्तर प्रदेश मेँ ही 20000व्यक्ति गिरफ्तार किए गे परन्तु गांधी
उस समय तक जेल से बाहर ही थे.इधर मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग
प्रस्तुत की.1909मेँ पृथक प्रतिनिधित्व प्राप्त करके,कांग्रेस की नम्रता
और अंग्रेजोँ को प्रोत्साहन प्राप्त कर मुस्लिम साम्प्रदायिकता तीव्रतर
होती जा रही थी .

बुधवार, 3 अक्तूबर 2012

सर्वशिक्षा अभियान का मतलब ये तो नहीँ ...........

सर्वशिक्षा अभियान का मतलब तब तक अधूरा है जब तक बालकोँ मेँ शिक्षा के प्रति रुचि पैदा नहीँ हो जाती व वे ज्ञान के प्यासे नहीँ हो जाते .

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From: akvashokbindu@gmail.com <akvashokbindu@gmail.com>
To: "go@blogger.blogspot.com" <go@blogger.blogspot.com>
Date: Wednesday, October 3, 2012 2:56:22 PM GMT+0000
Subject: सर्वशिक्षा अभियान का मतलब ये तो नहीँ ...........

सर्वशिक्षा अभियान के नाम से सरकारेँ करोड़ोँ रुपया खर्च कर रही है लेकिन इससे विद्यार्थियोँ मेँ गुणवत्ता कहां तक है.?कक्षा आठ तक प्रत्येक कक्षा मेँ विद्यार्थी उत्तीर्ण/प्रोत्तीर्ण होकर आगामी कक्षा मेँ आजाते हैँ,इसका एक मात्र कारण कक्षा आठ तक किसी भी छात्र को अनुत्तीर्ण न करना.इससे शिक्षा का स्तर गिर रहा है.मैँ लगभग सोलह साल से शिक्षा जगत से साक्षात्कार कर रहा हूँ .स्पष्टता यही है कि ईमानदारी से परीक्षा व कापी जांच प्रणाली मेँ बीस प्रतिशत से ज्यादा छात्र उत्तीर्ण होने की स्थिति मेँ नहीँ होते.प्राईमरी एजुकेशन का प्रमुख लक्ष्य है बालक मेँ ज्ञान के प्रति जिज्ञासु बनाना लेकिन बालक प्राईमरी से निकल जूनियर मेँ आ जाते हैँ लेकिन वे जिज्ञासु नहीँ हो पाते. शिक्षा जगत के सामने मेरी नजर मेँ सबसे बड़ी समस्या यही है कि जो प्यासा नहीँ है उसकी प्यास बुझाने का प्रयत्न किया जा रहा है व जो ज्ञान के लिए नहीँ धन दौलत के लिए जीना चाहते हैँ वे शिक्षक बन बैठे हैँ.सर्बशिक्षा अभियान का मतलब वैदिकता का विरोध है?सब को शिक्षा कैसे?सबका स्तर अलग अलग ऐसे मेँ एक स्तर व एक ढंग से सबको शिक्षित कैसे किया जा सकता है ?

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शनिवार, 29 सितंबर 2012

एक समान शिक्षा..... (सरकारी कर्मचारियोँ,अध्यापकोँ,मंत्री,विधायकोँ,सांसदोँ आदि के बच्चे सरकारी स्कूलोँ मेँ ही पढ़ने चाहिए.)

देश मेँ समान शिक्षा का न होना मेरे दृष्टि मेँ एक दोष है .जिसके लिए
भी कांग्रेस दोषी है .चाहेँ भिखारी या मजदूर का बच्चा हो या मंत्री
विधायक या किसी पूंजीपति का,सभी के लिए शिक्षा के अवसर समान होना
चाहिए.या फिर सर्वशिक्षा अभियान पर रोक लगा दी जानी चाहिए.सर्वशिक्षा
अभियान की जिम्मेदारी प्राइवेट विद्यालयोँ को सौप दी जानी चाहिए .सरकारी
स्कूलोँ मेँ ये अभियान फ्लाप हो चुका है .सरकारी
कर्मचारियोँ,विधायकोँ,मंत्रियोँ,सांसदोँ आदि के बच्चोँ के लिए सरकारी
स्कूलोँ मेँ शिक्षा अनिवार्य किया जाना चाहिए.शिक्षा सभी के अनिवार्य की
जानी चाहिए .जो अभिभावक अपने बच्चोँ को स्कूल न भेजेँ उनसे सरकार को
टेक्स लेना चाहिए .

किसी भी नियम व व्यवस्था का विकल्प नहीँ होना चाहिए .कम से कम सरकारी
नियमोँ व व्यवस्थाओँ का विकल्प नहीँ होना चाहिए न ही दूसरे विक्लपोँ को
सरकारी मदद मिलना चाहिए.एक और राजकीय इण्टर कालेज दूसरी और नवोदय
विद्यालय आदि .अनेक तरह की संस्थाएं नहीँ चलनी चाहिए .इन सबका एकीकरण कर
एक प्रकार का नामकरण व व्यवस्था की जानी चाहिए .इससे हटकर अन्य
विद्यालयोँ का सरकारी करण कर उन्हेँ एक व्यवस्था से जोड़ा जाना चाहिए.नये
प्राईवेट विद्यालयोँ को खोलने पर रोक लगायी जानी चाहिए .'एक व्यवस्था एक
मैनेजमेंट ' नीति को स्वीकार किया जाना चाहिए .जो सेक्यूलर होँ.जाति व
मजहब के आधार पर चलने वाले विद्यालयोँ को सरकारी अनुदान समाप्त किया जाना
चाहिए.इनके छात्रोँ को सरकारी नौकरियोँ से वंचित किया जाना चाहिए .कुल
मिला कर पूरे देश मेँ प्रत्येक क्लास के लिए एक पाठ्यक्रम,एक व्यवस्था
,एक से स्कूल ,एक सा स्तर आदि लागू किया जाना चाहिए.
गैरसरकारी सवित्तमान्यता प्राप्त विद्यालयोँ व अन्य विद्यालयोँ मेँ
अभिभावक शिक्षक संघ अनिवार्य किया जाना चाहिए.

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

कथांश : रीति के जीवन क्षण

जो हमेँ सर्वभौमिक सत्य से जोड़े उसी की नजर मेँ हम जिएं .

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From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: <akvashokbindu@gmail.com>
Cc: <go@blooger.com>
Date: Friday, September 28, 2012 10:23:25 AM GMT+0800
Subject: कथांश : रीति के जीवन क्षण






वह कक्षा आठ की छात्रा थी .नाम था उसका रीति .शाम का वक्त ,स्कूल से आने के बाद मैँ कपड़े चेँज कर हाथ मुंह धोने के बाद भोजन परोस कर खाने को बैठ ही पाया था कि रीति अपने भाई रमन के साथ कमरे मेँ आ पहुँची थी .
रमन बोला -"मेरा आज बर्थडे है,सर ."
रीति बोली -"सात बजे आ जाना,सर."

जब दोनोँ बापस चले गये तो मैँ सोंचने लगा कि आजकल के ये बच्चे अभी से सुस्त सुस्त मुर्झाये से.भोजन ग्रहण करने के बाद मैँ पंजाब केसरी समाचारपत्र को पढ़ने बैठ गया.

* * *

रमन की बर्थडे पार्टी से मैँ जब बापस कमरे आया तो दीवारघड़ी 10.00PMबजा रही थी.कपडे चेंज करने के बाद मैँ विस्तर पर आ गया .
शीत ऋतु थी ,मैँ पैरोँ पर रजाई डालकर डायरी लिखने लगा .लिखते लिखते एक घण्टा बीतने को आया....

"सर! " - कमरे का दरबाजा खोलते हुए रीति .

"सर!कुछ बातेँ करनी हैँ आपसे."

"आओ .....लेकिन इतनी रात?"

"तो क्या हुआ?फिर नींद भी नहीँ आ रही थी .मम्मी भाई दीदी से कहकर आयी हूँ .आप तो अपने से ही हैँ फिर मैने आपके मकानमालिक की लड़की से सुन रखा है कि आप रात भर जागते रहते हैँ ."

"डायरी पर क्या लिख रहे थे ?"
"क्योँ?तुमको क्या बताने की जरुरत?"
"सारी!"
मैँ फिर लिखने बैठ गया .कुछ मिनट बाद मैने डायरी बन्द कर दी .
"हाँ,बोलो देवी जी."
"रीति हूँ मैँ ,देवी जी नहीँ ."
"हाँ,ठीक है.बोलो,क्या बात करनी है?"
"आप घर पर मामा जी से बातेँ कर रहे थे .मैँ पीछे विण्डो से आपकी बातें सुन रही थी ,अच्छा लग रहा था सुन .अब हमेँ लगने लगा है आपसे बात कर हमेँ सुकुन मिल सकता है .वैसे मैँ कभी कभी मरने तक की सोंचती हूँ ."-फिर वह सिसकने लगी.

"अरे,तुम तो रोने लगीँ .? "
"रोने दो .अकेले मेँ तो रोती ही हूँ .किसी के सामने आज पहली बार ......किसी के सामने भी रोने दो .आप ही तो मिले हैँ ऐसे कि लगता है आपके सामने रो भी सकती हूँ .नहीँ तो.....?!लगता है आप हमारे आँसू पोंछ भी सकते हैँ .यह जमाना यहाँ तक कि फैमिली भी जैसे काटने को दौड़ती हो .मैँ ऊपर ऊपर मुस्कुरा लेती हूँ ,हँस लेती हूँ -इससे क्या?"

उसने अपना सिर मेरे दायेँ कन्धे पर रख दिया .

"सर !सुबह चार बजे उठ जाती हूँ फिर रात दस बजे के बाद ही बिस्तर पकड़ पाती हूँ .विस्तर पर भी बेचैन... परेशान... दिन भर की सोँचना...कहीँ होमवर्क पूरा नहीँ,कहीँ क्लासवर्क पूरा नहीँ... लिखना भी,याद करना भी.हर वक्त तो बिजी रहती हूँ लेकिन तब भी टीचरोँ व मम्मीपापा की डाँट सुननी पड़ती है.यह याद नहीँ किया.. वो याद नहीँ किया..यह भूल गयी..यह अभी लिखना बाकी, वह लिखना बाकी राईटिंग गंदी हो रही है...घर पर
यहाँ झाड़ू नहीँ,वहाँ झाड़ू नहीँ लगी.. बर्तन साफ करने को पड़े हैँ... कपड़े साफ करने को पड़े हैँ.. न जाने क्या क्या...? भ ईया और दीदी भी अपना हुकुम चलाते रहते हैँ .मैँ परेशान सी हो जाती हूँ ,खिन्न सी हो जाती हूँ .पापा हैँ ,हर वक्त गुस्सा उनके नाक पर रखी रहती है .पापा की स्थिति से आप परिचित ही हैँ .दारु जुआँ की लत मेँ .."

"रीति!यह सब जो है ,उससे अपने मन को मत जोड़ो.सोँचो,हमेँ क्या करना है ?हमेँ क्या बनना है ?हमेँ क्या फर्ज निभाने हैँ?जिसकी जैसी बुद्धि उसे वैसा करने दो.हमेँ जैसा करना है ,हमेँ जैसा बनना है उसके लिए प्रयत्न करते रहे ,बस .प्रतिकूलताएं भी हमारी परीक्षाएं बनकर आती हैँ,ऐसा समझो.ध्रुव की कथा पता है,पिता की गोद मेँ न खेल पाने की खिन्नता ने उन्हेँ महान बना दिया.अपनी खिन्नता हतासा निराशा
आदि को महान दिशा दे दो."

"कैसे तैयार करुँ खुद को इसके लिए ? "

"मुझसे मुलाकातेँ व सम्वाद ! ...और मेडिटेशन एवं महान नारियोँ की जीवनगाथा पढ़कर ! "

"मन तो ,मन....."

"बोलो,क्या बोलना चाहती हो ?"

"सर!"फिर वह खामोश हो गयी.

"मन को लयता दो,मन को संगीत दो .मस्ती दो .मन मेँ धैर्य व शान्ति लाओ.सिर्फ वर्तमान मेँ जियो .सोँचो मत ,जो कर्म कर रही हो,उसमेँ ही लीन हो जाओ.वर्तमान मेँ लीन रहो.शिवनेत्र पर ध्यान दो,श्वास प्रक्रिया पर ध्यान दो .पुस्तकेँ पढ़ो,हमवर्क क्लासवर्क पूरा करो .तुम कहती हो दिनभर बिजी रहती हूँ .एक पल को भी चैन नहीँ .अच्छा है यह अच्छा है,व्यस्त रहना अच्छा है .थकान आये तो विश्राम भी जरुरी है
.थकान से बचने के लिए शवासन भी कर सकती हो और फिर सोँचो मैँ नहीँ थकी हूँ .मैँ तो आत्मा हूँ .मैँ नहीँ थक सकती ."


"निराशा के दौरे से पड़ जाते हैँ .मरने तक की सोंचने लगती हूँ ."

"क्योँ क्योँ ?सोँचो ,जिन कारणोँ से ऐसा होता है उनको मन मेँ मत लाओ .अपनी सोँच को बदलो.जिस देवी देवता या महापुरुष महानारी को मानती हो उसे सोँचो या फिर मेडिटेशन या अध्ययन . व्यस्त रहने वाले को तो रोने की भी फुर्सत नहीँ होना चाहिए.अपने को पहचानो ,तुम सिर्फ शरीर नहीँ हो .तुम देवी हो ,माँ स्वरुप हो .तुममेँ पुरुष से भी ज्यादा शक्तियाँ हैँ .तुम आत्महत्या नहीँ कर सकती.हाँ,तुम उनके
मन्सूबोँ की हत्या कर सकती हो इस समाज को गंदा कर रहे हैँ,परिवार व समाज की व्यवस्थाओँ को गंदा कर रहे हैँ .स्त्री तो शक्ति का भी प्रतीक है .अपने को पहचानो."


मैने उसकी दोनोँ आंखोँ के बीच माथे पर अपनी एक अंगलु रख दी .

"रीति!अपनी आंखेँ बंद करो.बंद आंखोँ से देखने की कोशिश करो इस स्थान को .तुम सिर्फ शरीर नहीँ हो,शरीर तो मर ही जायेगा आज नहीँ तो कल.तुम आत्मा हो ,अलिँगी हो ,चेतना हो.... अपने को पहचानो.दुनिया की नजर मेँ सफल नहीँ हो पाओ तो कोई बात नहीँ .अपनी नजर मेँ सफल बनो.जातिभेदी,लिगभेदी,कूपमण्डूक,अहंकारी आदि की नजर मेँ क्या सफल होना चाहती हो ?"


समय गुजरा...

रविवार, 23 सितंबर 2012

...तो क्या समाज झूठ के रास्ते पर चलता है ?

विभिन्न परिस्थितियोँ मेँ मैँ यही विचार देता रहता हूँ कि समाज के आधार पर चलना अलग बात है व अपने ग्रंथोँ और महापुरुषोँ के दर्शन के मूलतत्वोँ के आधार पर चलना अलग बात है.जो समाज के आधार पर चलने के साथ साथ धर्म,धर्मग्रंथोँ व अपने महापुरुषोँ के सम्मान की बात करता है वह मेरी नजर मेँ ढोँगी व पाखण्डी है.विशेष रुप से शिक्षा के जगत से बच्चोँ व परिवारोँ को ये प्रेरणा मिलनी चाहिए कि अध्यात्म व नैतिक शिक्षा का प्रयोग जीवन मेँ कितना महत्वपूर्ण है?इसके बिना व्यक्ति,परिवार,समाज व विश्व को क्या क्षति पहुंच रही है?संस्कारोँ का मानव जीवन मेँ क्या महत्व है?लेकिन ...?लेकिन इन प्रश्नोँ का उत्तर जानने व समझने से पहले हमेँ विभिन्न शब्दोँ की परिभाषा को जानने की जरुरत है.धर्म ,संस्कार,इबादत ,पूजा आदि शब्दोँ की परिभाषा ही हम भूल चुके है.अफसोस की बात ये है कि समाज का मस्तिष्क कहा जाने वाला शिक्षक व कानून के रखवाले ही ज्ञान व कानून से अलग अपना नजरिया व आचरण बनाए बैठे हैँ. समाज के हिसाब से चलो ,ये अब शिक्षक ही उनसे तक कहते है जो सार्वभौमिक ज्ञान की खोज मेँ लगे व ग्रंथोँ व महापुरुषोँ से प्रेरणा लेना चाहते है

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शनिवार, 22 सितंबर 2012

दधीचि जयन्ती : सत्ता दंश

किसी ने कहा है कि जगत को विकारयुक्त करने के लिए पूँजीवाद और सत्तावाद दोषी है . सत्ता रुपी इन्द्र वैसे तो सुरा अप्सरा मेँ व्यस्त रहता है लेकिन जब उसका सिंहासन हिलता है तो दधीचि की अस्थियां तक लेने को दौड़े चले आते हैँ .

आचार्य चतुरसेन अपने रचित वयं रक्षाम : पुस्तक मेँ 19 इन्द्र पर लिखते हैँ कि इन्द्र ने नारद और दूसरे मित्रोँ की सहायता ले देवभूमि मेँ एक नई वैदिक संस्कृति की नीव डाली . यद्यपि इन्द्र का यह प्राधान्य आदित्योँ को पसन्द न था . परन्तु इन्द्र एक खटपटी और धूर्त व्यक्ति था . उसने मान पुरस्कार देकर आदित्योँ को अपने अनुकूल बना रखा था . इन्द्र का राज्य दैत्योँ और दानवोँ की राज्य सीमाओँ से लगा हुआ था , जो काश्यप सागर तट पर दूर तक फैले हुए थे .बेबीलोनिया जाति के जत्थेदारोँ से इन्द्र की मित्रता थी .ईरान व पाक ही कभी देवलोक रहा होगा .
दैत्य दानव देव आदि सब कश्यप की ही सन्ताने थे .सत्तावाद ने इन सबके बीच खाईंयां पैदा कीं .और कुल व जन विभिन्न जातियोँ मेँ बदल गये .

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गुरुवार, 20 सितंबर 2012

लहसुन प्याज बनाम सत्विकता !

स्वस्थ्य शिक्षा के बिना हमारी शिक्षा अधूरी है .हमारे ऋषियोँ मुनियोँ ने आयुर्वेद के अन्तर्गत हमेँ बताया कि हमेँ अपने शरीर व मन के लक्षणोँ व दशा को जान उसके उपचारात्मक खानपान व आचरण करना चाहिए .अपने शरीर के प्रबंधन के साथ साथ मन का प्रबंधन भी आवश्यक है . मन को सात्विक दिशा व दशा दिए बिना हम स्वस्थ जीवन की कल्पना नहीँ कर सकते.सात्विकता सिर्फ सात्विक भोजन से ही नहीँ आती .हमारा नजरिया ,कर्म व लक्ष्य भी सात्विक होना चाहिए.कुछ व्यक्ति लहसुन प्याज का इस्तेमाल नहीँ करते लेकिन अपने कर्म व विचारोँ से सात्विक नहीँ होते .आयुर्वेद मेँ लहसुस व प्याज का महत्व कम नहीँ .
हमेँ सात्विक भोजन के साथ साथ अपना नजरिया भी सात्विक रखना चाहिए .सात्विक नजरिया के बिना सात्विक भोजन का महत्व कितना ?आठ योगांगोँ मेँ से यम ,नियम ,प्राणायाम ,ध्यान को अपने दैनिक आचरण मेँ उतारना अति आवश्यक है .

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लहसुन प्याज बनाम सात्विकता ?

जो लहसुन प्याज का इस्ते

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बुधवार, 19 सितंबर 2012

अनुयायी अर्थात स्वयं को न जगाने वाला ?

मैँ अपने शिष्योँ से कहता हूँ कि समाज व परिवारोँ की नजर मेँ अपना चरित्र बेहतर न जी सको तो कोई बात नहीँ ,महापुरुषोँ की नजर मेँ बेहतर बनो .ये नानक के भक्तोँ अपने पुत्रोँ को क्या नानक जैसा होना पसंद करोगे या नानक जैसै का तुम अपने जीवन मेँ सम्मान करोगे ? जो नानक अपना खेत रखाते वक्त चिड़ियोँ से कहता है कि चिड़ियों सब चुँग जा खेत सब प्रभु का . ऐ मोहम्मद साहब के अनुयायियोँ !तुम्हेँ भी याद होगा वह प्रसंग कि उनके ऊपर कूड़ा डालने वाली औरत का भी वे हालचाल पूछने जाते हैँ .

मेरा अनुभव कहता है कि अनुयायी झूठे व निरेभौतिकवादी होते हैँ कुछ अपवादोँ को छोँड़कर .मैँ किसी का अनुयायी नहीँ हूँ और न ही मुझे किसी का अनुयायी होने की जरुरत है ,मैँ सार्वभौमिक ज्ञान व सत्य का खोजी हूँ .महापुरुषोँ से प्रेरणा लेने की कोशिस करता रहता हूँ .





मे



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गुरुवार, 9 अगस्त 2012

श्रीकृष्णजन्माष्टमी : काहे की कृष्णभक्ति ?

भक्तोँ की कमी नहीँ लेकिन धरती पर भक्ति संतुष्ट नहीँ .उसके पुत्र
वैराग्य व ज्ञान उपेक्षित व कमजोर पड़ ही चुके हैँ .भक्ति भी विछिप्त हो
चुकी है .बिन वैराग्य व ज्ञान के स्वस्थ भक्ति कहाँ ?आज के भक्त भक्ति की
आड़ मेँ शारीरिक व ऐन्द्रिक लालसाओँ मेँ ही लीन हैँ.


श्रीकृष्णजन्माष्टमी के अवसर पर मैँ कहना चाहूँगा कि महापुरुषोँ को ताख
या लाकेट मेँ लटकाने व उनकी तश्वीरोँ के सामने धूपवत्ती व आरती दिखाने से
क्या लाभ जब हम उन महापुरुषोँ की शिक्षाओँ के विपरीत खड़े हैँ ?मेरा तो
यही मानना है कि महापुरुषोँ ,धर्म व अध्यात्म के आधार पर चलने का मतलब है
-माया,मोह,लोभ व काम पर नियंत्रण .बात है मेरी ,मैँ न महापुरुष हूँ न
धार्मिक व न ही आध्यात्मिक.मैँ साधक बनने के प्रयत्न मेँ हूँ .योग के आठ
अंगोँ मेँ से प्रथम दो अंग यम व नियम अतिआवश्यक हैँ .

श्रीकृष्णभक्तोँ से मैँ कहना चाहूँगा कि लाशोँ व निर्जीव वस्तुओँ के लिए
रोना बंद करो .श्रीकृष्ण जीवन भर मुस्कुराए हैँ रोए हैँ तो सुदामा की दीन
दशा पर रोये है .यदि श्रीकृष्ण के सच्चे भक्त बनना चाहते हो तो किसी को
भी न अपन समझो न पराया .मेरा अनुभव कहता है कि जितना हम धर्म से जुड़ते
जाएंगे उतना भीड़ से दूर होते जाएंगे .भीड़ मेँ हम अभिनयमात्र रहेगे .जब हम
अपने को जान जाएंगे तो हम भी लीलाधर हो जाएंगे .

@ यदुवंशियोँ से निवेदन @
पुराणोँ का अध्ययन करेँ तो वंशावलियोँ से ज्ञात होता है कि चंद्रवंश
अर्थात यदुवंश से अस्सी प्रतिशत पिछड़ी व जनजातियां सम्बंधित है.जिनका
इतिहास गौरबशालीभारत का इतिहास है .अब फिर वक्त आना है जब यदुवंश का शासन
देश मेँ स्थापित हो सकता है लेकिन कैसे ?श्रीकृष्ण की शिक्षाओँ को आचरण
मेँ लाते हुए परोपकार व ईमानदारी की भावना लानी होगी ,कुप्रबंधन व
भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान मेँ सहयोग करना होगा .कालाधन वापस भारत लाने
के लिए आन्दोलन छेड़ना होगा ,सेक्यूलरवाद को स्वीकार करते हुए पुरातत्विक
स्रोतोँ के सच को स्वीकार करना होगा .लोहिया का "जाति तोड़ो समाज जोड़ो
"आन्दोलन को आगे बढ़ाना होगा .

गुरुवार, 19 जुलाई 2012

विज्ञान का ईश्वरीय कण !

विज्ञान का ईश्वरीय कण प्रकृति की ही बात है जो कि शिव (कल्याण)कण के
अर्द्धनारीश्वर घटना (नाभिकीय विखण्डन) के बाद का है .


ब्लैकहोल के बाद अनन्त भगवान !

इस जगत मेँ जो भी ईश्वर हैँ वे इसी जगत के हैँ व बुद्धत्व को प्राप्ति के
पहले के हैँ . बुद्धत्व के बाद शून्य है .जिसके बाद फिर ब्लैक होल अवस्था
है .ब्लैक होल के बाद कहीँ अनन्त भगवान हैँ . जहाँ तक श्रीकृष्ण व
श्रीकृष्ण के साथ अर्जुन जैसे ही पहुँच सकते हैँ .

सागर मेँ हम कुम्भ !

चेतना रुपी सागर मेँ हम व हमारा जगत कुम्भ के समान है जिसमेँ भी सागर
समाया है .कुम्भ टूट टूट कर विखर भी जाता है तो भी वह सागर लीन है .हमारा
शरीर व प्रकृति चेतना के बीच ही बनती बिगड़ती है .


ब्लैक होल की खोज !
<www.akvashokbindu.blogspot.com>
ईश्वरीय कण की खोज के बाद भी काफी कुछ बाकी है खोजना .ब्लैक होल पर से
रहस्य के पर्दे उठना जरुरी है .जो भी अभी खोजा जा चुका है वह व्हाईट का
है ,अभी तो व्हाईट का ही काफी कुछ खोजा जाना बाकी है . ब्लैक का खोजना तो
काफी दूर का मसला है .वैसे तो बुद्धत्व की प्राप्ति के बाद हम अद्वैत मेँ
प्रवेश कर जाते हैँ लेकिन वह अद्वैत इस जगत मेँ अन्तर्मन के लिए ही है
.बुद्धत्व के बाद शून्य के बाबजूद भी द्वैत है ,व्हाईट व ब्लैक का .ब्लैक
का खोजना बाकी रह जाता है .

BY : ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU'
<www.twitter.com/AKVASHOKBINDU>

रविवार, 1 जुलाई 2012

जाति तोड़ो समाज जोड़ो !

देश के अंदर विभिन्न अवसरों पर जातिवाद का असर स्पष्ट दिखायी देता आया है.उप्र मेँ इस वक्त स्थानीय निकाय के चुनाव का दौर है.कुछ मतदाता कहते नजर आते हैँ कि अपनी बेटी व अपना वोट अपनी बिरादरी बालोँ को ही देना चाहिए.इसी तरह जब यहाँ बेटियां सयानी हैं तो उनके पिता उनके लिए रिश्ता देखने अपनी बिरादरी मेँ ही जाते हैँ .क्योँ न उन्हेँ अपनी बेटियोँ के लिए अपनी बेटियोँ के अनुरुप उचित वर नजर न आ रहा हो.चुनाव व शादी के अवसरों के अतिरिक्त अन्य अवसरों पर जातिवाद नजर आता है.जातिवाद के मद्देनजर व्यक्ति को गैरजाति के व्यक्तियोँ के पक्षपात व अन्याय करते तक देखा गया है.ये उपर्युक्त व्यवहार क्या भारतीय संविधान के अनुरुप व देश समाज मेँ एकता लाने वाले होते हैँ .यदि नहीँ तो फिर क्या देश मेँ संविधान का उल्लंघन करने वालोँ बहुलता नहीँ है ?यदि ऐसा है तो इन्हेँ अपराधी मान कर सरकारी सुविधाएं पाने का अयोग्य क्योँ न माना जाए?देश के अंदर जाति विरोधी मुहिम युवकोँ को शुरु करना चाहिए.आर्यसमाज,कबीर पंथ आदि संस्थाओँ को इस मुहिम मेँ आनाचाहिए.सवर्ण वर्ग तो इस मुहिम मेँ शामिल हो नही सकता क्योँ न वह जातिगत आरक्षण का विरोधी हो ?

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शुक्रवार, 29 जून 2012

भविष्य कथांश : पाँच तत्वोँ के पूजक या प्रदूषक ?

बहुरुपिया बने दोनोँ एलियन एक भव्य विल्डिंग मेँ प्रवेश किए .जहाँ प्रांगण मेँ यज्ञ हो रहा था.

एक बोला -"चटपकुचटापच! हूँ ,ये यज्ञ कर रहे हैँ ?मूल हेतु व दर्शन खो चुके हैँ ये ? "

"पांच तत्वों की पूजा करने से क्या फयदा जब कि ये पांच तत्वोँ को दूषित करने मेँ लगते है ."
"ये सब तामसी प्रवृत्ति के ही हैँ क्योँ न ये मांस मदिरा व लहसुन प्याज का प्रयोग न करेँ ."
"यज्ञ का हेतु प्रकृति संरक्षण(अपना स्वास्थ्य भी) था लेकिन बेजान वस्तुओं के बीच उलझी सभ्यता व विकास प्रकृति का गलाघोटने पर ऊतारु हो जाता है ."

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मंगलवार, 29 मई 2012

देश के नासूर : साम्प्रदायिकता व भ्रष्टाचार

इसके लिए दोषी हैँ नब्बे प्रतिशत नेता !

---------- Forwarded message ----------
From: KhabarIndiya <admin@khabarindiya.com>
Date: Sat, 19 May 2012 02:23:51 -0400
Subject: देश के नासूर: सा प्रदायिकता व भ्रष्टïाचार and more
To: akvashokbindu <akvashokbindu@gmail.com>

*

*** देश के नासूर: सा प्रदायिकता व भ्रष्टïाचार and more -
http://www.khabarindiya.com/

** In This Issue...

- देश के नासूर: सा प्रदायिकता व भ्रष्टïाचार

- क्षेत्रीय दलों की यह कैसी धर्म निरपेक्षता

- अमन की बात

- मां तो बस मां ही होती है

- शायद!

- यूनिवर्सिटी पॉलीटेक्निक में स्वरचित कविता प्रतियोगिता का भव्य आयोजन

- कंधे पर नदी

- अगर पेड़ में रुपये फलते

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** देश के नासूर: सा प्रदायिकता व भ्रष्टïाचार -
http://feedproxy.google.com/~r/khabarindiya/~3/wT2zNrjVlFA/4217_desh_dunia

भारतवर्ष एक ओर जहांविश्व के कुछ गिने-चुने विकसित देशों के बराबर खड़े
होने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, वहीं दुर्भाग्यवश इसी देश में कुछ
समस्याएं ऐसी हैं जो हमारे देश के विकास के लिए बाधा साबित हो रही हैं।
इनमें जहां देश में सा प्रदायिक शक्तियों का निरंतर होता जा रहा विस्तार
एक अहम समस्या है, वहीं भारतवर्ष में लगभग सभी क्षेत्रों में फैला
भ्रष्टïाचार भी सा प्रदायिकता से कम $खतरनाक नहीं है। हम भारतवासी केवल
इस बात के लिए $खुदा के शुक्रगु$$जार हो सकते हैं कि स भवत: $िफलहाल इस
देश के प्रधानमंत्री, राष्टï्रपति तथा भारत के मु य न्यायाधीश व लोकसभा
अध्यक्ष जैसे पदों पर ऐसे कोई व्यक्ति विराजमान नहीं हुए जिनपर
भ्रष्टïाचार के आरोप सिद्ध हुए हों। अन्यथा भ्रष्टïाचार के प्रसार तथा
विस्तार की सीमाओं को तो शायद आंका…

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** क्षेत्रीय दलों की यह कैसी धर्म निरपेक्षता -
http://feedproxy.google.com/~r/khabarindiya/~3/jCvQn1o9Mkg/4216_desh_dunia

यदि हम भारतीय जनता पार्टी तथा शिवसेना के अतिरिक्त देश के अन्य राजनैतिक
दलों की बात करें तो लगभग सभी ने अपने अपने संगठनों को स्वयंही धर्म
निरपेक्ष राजनैतिक दलों की उपाधि दे डाली है। इन दलों द्वारा अपने को
धर्मनिरपेक्ष साबित करने के लिए ही समय-समय पर विभिन्न राजनैतिक अखाड़ों
में तरह तरह के प्रयोग किए जाते रहे हैं। उदाहरण के तौर पर वी.पी. सिंह,
भारतीय जनता पार्टी के सहयोग से देश केप्रधानमंत्री बने। यानी बो$फोर्स
मामले में कथित रूप से भ्रष्टïाचार में आकंठ डूबी कांग्रेस जो कि स्वयं
को भी देश का सबसे बड़ा धर्म निरपेक्ष दल मानती है, को सत्ता से हटा कर
एक धर्म निरपेक्ष मोर्चा (वी.पी.सिंह के नेतृत्व में) ने कथित रूप से सा
प्रदायिक माने जाने वाले संगठन भारतीय जनता पार्टी से हाथ मिलाकर $गैर
कांग्रेस वादी गठबन्धन…

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** अमन की बात -
http://feedproxy.google.com/~r/khabarindiya/~3/LfH6R_e9jdY/4214_sahitya_khabar

(कविता)

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** मां तो बस मां ही होती है -
http://feedproxy.google.com/~r/khabarindiya/~3/djwu9NEs_Ds/4213_sahitya_khabar

मां तो बस मां ही होती है

मां प्रभु की इनायत होती है

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** शायद! - http://feedproxy.google.com/~r/khabarindiya/~3/oSxvAVJPjIE/4212_sahitya_khabar

शर्मिष्ठा ने सारी उम्र सेवा में बिताई. शादी से पहले अपनी मां के…

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** यूनिवर्सिटी पॉलीटेक्निक में स्वरचित कविता प्रतियोगिता का भव्य आयोजन
- http://feedproxy.google.com/~r/khabarindiya/~3/bIHJ6V2Yhgw/4211_sahitya_khabar

मुरादाबाद: तीर्थंकर महावीर यूनीवर्सिटी के माननीय कुलाधिपति श्री सुरेश
जैन जी, ग्रुप वाइस चेयरमेन श्री मनीष जैन जी,कुलपति प्रो. आर.के. मित्तल
जीतथा कुलसचिव प्रो. आर.के. मुदगल जी की प्रेरणा एवं पॉलीटेक्निक कालेज
के प्राचार्य प्रो. टी.पी. अग्रवाल, डीन एम. आर. खुराना और सहायक कुलसचिव
नितिन अग्रवालके विशेष सहयोग से पॉलीटेक्निक कालेज के प्रथम एवं द्वितीय
वर्ष के छात्र-छात्राओं के लिए स्वरचित कविता प्रतियोगिता का आयोजन
दिनांक ९ मई बुधवार, अपरान्ह २ बजे, लेक्चर थिएटर में किया गया।
कार्यक्रम का शुभारम्भ सर्वश्री माहेश्वर तिवारी, शचीन्द्र भटनागर, महेश
दिवाकर,प्राचार्य प्रो. टी.पी. अग्रवाल, एम. आर. खुराना, एस. सी. सिंघल,
नितिन अग्रवाल द्वारा माँ सरस्वती की अर्चना एव वंदना से हुआ।

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** कंधे पर नदी -
http://feedproxy.google.com/~r/khabarindiya/~3/5rhDTmBkxGU/4210_sahitya_khabar

यदि हमारे बस में होता

नदी उठाकर घर ले आते

अपने घर के ठीक सामने

उसको हम हर रोज बहाते|

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** अगर पेड़ में रुपये फलते -
http://feedproxy.google.com/~r/khabarindiya/~3/ZbIKPr0gqZA/4209_sahitya_khabar

टप् टप् टप् टप् रोज टपकते|

अगर पेड़ में रुपये फलते|

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- बंदर कही बिगाड़ू कहीं दयालु
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सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

मतादाता ही दोषी ?!

जनतंत्र मेँ शासक चुनने की शक्ति जनता मेँ निहित होती है .अभी तक संसद व विधानसभा मेँ जो अपराधी चुन कर जाते रहे हैँ उनको चुनने के लिए जनता ही दोषी है. आगामी संसद व विधानसभा सत्रोँ मेँ क्या कोई अपराधी चुनकर संसद या विधान सभाओँ मेँ नहीँ जाएंगे क्या ? यदि जाएंगे तो इसके लिए जनता ही दोषी होगी .

हरहालत मेँ जनता ही दोषी है .जनता आखिर भ्रष्टाचारी व अत्याचारी को चुनती ही क्योँ है? इसका मतलब क्या ये है कि उन्हेँ चुनने वाली जनता ही क्या भ्रष्ट नहीँ ?


अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'

संस्थापक ,

मानवता हिताय सेवा समिति,उप्र

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मंगलवार, 24 जनवरी 2012

मतदाता दिवस : हम क्योँ मतदान करेँ ?

आज मतदान दिवस है . हम क्यों मतदान करेँ ?वर्तमान मेँ जो मतदान करते हैँ वे क्या जागरुक मतदाता है?हम क्या जागरुक नहीँ हैं ? कि हम ये निश्चित नहीँ कर पा रहे हैँ कि हम किसे वोट देँ ?जो चुनाव मेँ खड़े होते हैँ वे क्या अपराधियोँ ,मिलावटखोरोँ,दूध मिलावटखोरोँ ,नकली दवाई बिक्रेताओँ, वन माफियोँ ,शिक्षा माफियोँ ,जातिवादियोँ ,सम्प्रदायवादियोँ ,आदि का नेतृत्व नहीँ करते ?

यहाँ तीन मार्च को विधानसभा का चुनाव है. आज जो कह रहे है कि मतदान आवश्यक है ,उनसे मेँ 02मार्च को सभी उम्मीदवारोँ के ब्योरा साथ बात करने को तैयार हूँ कि मैँ क्योँ किसी को वोट दूँ ? मेरी कसौटी पर तो कोई खरा नहीँ उतरता तो मैँ किसे वोट दूँ ?मैँ नशाखोरोँ ,अपराधियों ,जातिवादियोँ ,आदि का नेतृत्व व संरक्षण करने वालोँ को कैसे वोट दे सकता हूँ ?यदि ऐसे मेँ मैँ जब किसी को वोट नहीं दे सकता तो क्या मैँ अलोकतान्त्रिक हूँ ?क्या अपराधियोँ ,विभिन्न क्षेत्रोँ के माफियाओं , आदि को वोट देना क्या लोकतांत्रिक है ?


इस देश मेँ जिस दिन बुद्धिजीवियोँ व मानवतावादियोँ के हाथोँ नेतृत्व आयेगा तभी देश का उत्थान होगा व पुन: जगतगुरु बनेगा..

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सोमवार, 23 जनवरी 2012

सुभाष जयन्ती :जनता के दिलोँ मेँ अब भी सुभाष

सोमवार , 23 जनवरी 2012ई0; आज देश नेता जी सुभाष चन्द बोस को याद कर रहा है .सुभाष बाबू की याद आते ही हमेँ सन 1937ई से कांग्रेस का चरित्र संदिग्ध लगने लगता है .सुभाष जी की प्रसिद्धी को तब ही कांग्रेस सम्भवत: पचा नहीँ पा रही थी ? जापान पर अमेरिका द्वारा परमाणु हमला के बाद जापान के सहयोग से 'दिल्ली चलो' अभियान प्रारम्भ करने वाले सुभाष बाबू ब्रिटिश सेना से जंग बीच मेँ ही छोंड जब बापस जापान जाने लगे तो ब्रिटिश सरकार के अधीन रेडियो चैनल्स ने कह मजाक उड़ायी कि 'दिल्ली चलो ' का नारा देने वाले वापस लौट चले है और.....?! तब सुभाष बाबू ने कहा कि 04 फरबरी का इन्तजार कीजिए .


इसके बाद क्या हुआ ? इतिहास गवाह है .नौसेना विद्रोह ........?! भारत मेँ ब्रिटिश शासन के स्तम्भ और कर्मचारी हड़ताल पर उतारु हो गये .आजाद हिन्द सरकार व फौज के कर्मचारियोँ के खिलाफ ब्रिटिश कार्यवाही से देश की जनता व भारतीय कर्मचारी बैखला गये और भारत छोड़ो आन्दोलन सुभाषमय व समाजवादी होकर काफी तीव्र हो गया था .

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मंगलवार, 10 जनवरी 2012

कुर्बानियोँ के ढेर पर !

हम रहेँ चाहेँ न रहेँ ,
मगर देश रहना चाहिए .
कुर्बानियोँ के ढेर पर

अब हमेँ सज जाना चाहिए !


अन्ना हो या रामदेव ,
हर किसी को तेरा प्यार चाहिए .
देश हित बुलन्द आवाज जो


उससे अपना स्वर मिलाना चाहिए.


इतिहास है गवाह

कुर्बानियोँ ने ही सजाया देश है .
निजस्वार्थोँ को त्याग कर


मानवता का हो जाना चाहिए.

हम मनुज सब एक हैँ ,
हर वस्तु को बनाया खुदा ने .
तो क्योँ करेँ नफरत किसी से

बस ,सच्चाई हित जी जाना चाहिए .

कुर्बानियोँ से भी क्योँ डरेँ ?

कुर्बानियोँ के ढेर पर -

अब हमेँ सज जाना चाहिए ,


अब हमको सज जाना चाहिए

कुर्बानियोँ के ढेर पर

अब हमको सज जाना चाहिए ,
हम रहेँ चाहेँ न रहेँ

देश रहना चाहिए . .

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

हमारा विधायक कैसा हो? :अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु' आदर्श बाल विद्यालय इण्टर कालेज ,मीरानपुर कटरा ,शाहजहाँपुर .उप्र

हमारा विधायक कैसा हो ?हम चाहते हैँ कि हमारा विधायक चुनाव से पूर्व अपना व्यक्तिगत घोषणापत्र नोटरी शपथपत्र के साथ नामांकन के वक्त जमा करे,जिसमेँ यह हो कि यदि मैँ अपने घोषणापत्र के अनुसार कार्य करने मेँ असफल रहा तो अपने पद से इस्तीफा दे दूँगा . नामांकन से पूर्व मेरा विधायक अपना नारको परीक्षण , ब्रेन मेपिँग ,आदि जांच कराकर उसकी रिपोर्ट नामांकन पत्र के साथ जमा कर चुका होगा . वह अपने क्षेत्र की जनता के साथ जाति ,मजहब ,वोट राजनीति ,आदि के आधार पर भेदभाव न कर संवैधानिक दायरोँ मेँ रहकर कार्य करेगा . उसके विधिसाक्षर होने के नाते विधानसभा मेँ उसकी शपथ मात्र एक औपचारिकता नहीँ होगी.वोट की राजनीति से ऊपर उठ कर वह प्रति विधान सभा सत्र मेँ क्षेत्र की समस्याओँ को अनिवार्य तौर पर रखते हुए बाढ़ प्रकोप,खाद्य मिलावट ,दूध मिलावट ,नकली दवाईयोँ,आदि पर अपनी बात दमदारी से कहेगा .पुवायां तहसील को जिला बनाने व रुहेलखण्ड राज्य के प्रस्ताव को विधान सभा मेँ अवश्य रखेगा .यदि थाने की राजनीति करना विधायक का कानूनी कर्तव्य नहीँ है तो वह थाने की राजनीति कदापि नहीँ करेगा .

अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु '

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