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मंगलवार, 25 मई 2010

अशोक कुमार वर्मा'बिन��दु'द्वारा बेला रानी ,रुद्रपुर की कविता:पहचान चाहिए

आज नारी को आसरा नहीँ,साथ चाहिए

खमोशी नहीँ,सुलझी सी बात चाहिए

अब वो परदे के पीछे की आन नहीँ

घर की चारदीवारी की शान है

निकली है वो सपनोँ को पाने के लिए

लक्ष्य तक ले जाने वाला एक बाट चाहिए

अपनी व्यथा न कहकर

छुप छुपकर रोने के दिन बीत गए

सबके दिलोँ को चीरकर
रखनेवाली बुलन्द आवाज चाहिए


हमेशा से करती आई है
सबके लिए जीवन न्यौछावर

अब बिना पंखोँ के ही

न रुकने वाली उड़ान चाहिए

देवी नहीँ बनना चाहती है वो

बस उसे अब अपनी पहचान चाहिए .


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सोमवार, 24 मई 2010

प्रेम से साक्षात्कार !

प्रत्येक लोक मेँ प्रेम की बात है.जो इस धरती पर प्रेम है वही ईश्वरीय जगत मेँ भगवत्ता है.आत्मा स्वयं भागवत है,ईश्वर है.बताते हैँ कि गुप्त काल से पहले भगवान का अर्थ था-मोक्ष को प्राप्त व्यक्ति अर्थात आत्मा के स्वभाव मेँ अर्थात साँसारिकता मेँ अभिनय मात्र रहते हुए अपनी निजता मेँ जीना या अपनी स्वतन्त्रता मेँ रहना.अरविन्द घोष ने ठीक ही कहा है कि आत्मा ही स्वतन्त्रता है.निन्यानवे प्रतिशत व्यक्ति अपनी आत्मा मेँ नहीँ जीता.वह अपने मन मेँ जीता है जिसकी दिशा दशा इन्द्रियोँ ,शरीरोँ व सांसारिक वस्तुओँ की ओर होती है .किसी ने ठीक ही कहा है कि दो शरीरोँ मिलन या सांसारिक वस्तुओँ के भोग की लालसा काम है,जिसके प्रतिक्रिया मेँ किये जाने वाले कर्म चेष्टाएँ हैँ.प्रेम की सघनता आत्मीय है,जिसे प्राणी पा जाता है तो उसका अहंकार विदा हो जाता है और नम्रता आ जाती है.द्वेष खिन्नता आदि खत्म हो जाती हैँ.हमेँ ताज्जुब होता है ऐसी खबरेँ सुन कर कि असफल प्रेमी ने की आत्म हत्या,शबनम के एक तरफा प्रेमी ने की शबनम की हत्या,सन्ध्या उसकी न हो सकी तो किसी की भी न हो सकी,प्रेमी प्रेमिका ने एक साथ पटरी से कट कर दी जान,आदि.हमे तो यही लगता है कि अभी 99प्रतिशत लोग प्रेम की एबीसीडी तक नहीँ जानते.इन सब की कथाएँ 'प्रेम कथाएँ' नहीँ 'काम कथाएँ' थीँ.प्रेम आत्म हत्या नहीँ कराता,हिँसा नहीँ कराता,बदले की भावना नहीँ जगाता,उम्मीदेँ रखना नहीँ सिखाता,आदि.तुलसी दास आज के प्रेमियोँ जैसे होते तो उनसे क्या उम्मीद रखी जा सकती थी?किसी से प्रेम का मतलब यह नहीँ होता कि अपनी इच्छाओँ के अनुसार उसे डील करना या अपनी इच्छाएँ उस पर थोपना.प्रेम का मतलब है जिससे हमेँ प्रेम है वह जैसा भी है उसे वैसा ही स्वीकार करना.प्रेम मेँ जीने का मतलब अपनी इच्छाओँ मेँ जीना नहीँ है.आज किसी से प्रेम है कल किसी कारण उससे प्रेम खत्म हो जाए,वह प्रेम नहीँ.प्रेम किसी हालत मेँ खत्म नहीँ होता रूपान्तरित होता है.मैने अपने प्रेम से यही अनुभव किया है.प्रेम मेँ 'पाने'या 'खोने'से कोई मतलब नहीँ है;सेवा,त्याग व समर्पण से है.अपनी इच्छाओँ के लिए नहीँ उसकी इच्छाओँ के लिए जीना है.जिससे हमेँ प्रेम है,इसका मतलब यह नहीँ कि हम उसे पाना चाहेँ.यदि उसको न पाने से हम खिन्न उदास या अपराधी हो जाएँ तो इसका मतलब यही है कि हम प्रेमी नहीँ है.अरे! वह जैसे खुश वैसे हम खुश!वह हमेँ पसन्द नहीँ करती या करता तो क्या ?



हम किसी को चाहते चाहते खिन्न चिड़चिड़े आदि होने लगेँ तो इसका मतलब यही है कि हम जिसे चाह रहे हैँ उससे हमेँ प्रेम नहीँ है.अच्छा तो यही है कि हम सभी का सम्मान करेँ और जो हमेँ चाहेँ उनसे प्रेम करेँ.प्रेम मेँ तो हम तब है जब अहंकारशून्य होँ,नम्रता बिना हम प्रेमवान नही.


शेष फिर....

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सोमवार, 17 मई 2010

विज्ञान कथा: कलि न्या��� (सुप्रीम कोर्ट की ना��को परीक्षण पर ना '5मई2010'के प्रति विरोध जताते ��ुए यह कथा प्रस्तुत) लेखक:अशोक कुमार वर्मा'ब��न्दु'

चिली के उत्तरीय रेगिस्तान मेँ स्थित विशालतम दूरबीन के समीप स्थित भूमिगत एयर पोर्ट मेँ एक अन्य वैज्ञानिक के साथ भविष्य त्रिपाठी जेट सूट पहने प्रवेश किया.दोऩोँ के यान मेँ प्रवेश करते ही यान चालू होगया और कुछ देर बाद आकाश मेँ आ गया.जब यान ने छत्तीसगढ़ के आकाश मेँ प्रवेश किया तो भविष्य त्रिपाठी ने आकाश मेँ छलाँग लगा दी.

इधर धरती पर सेरेना--



" इन्सान मतभेद की मानसिकता से ग्रस्त रहने वाला प्राणी है.वह अनेक पूर्वाग्रहोँ भ्रम शंका अफवाह मेँ रह कर व्यवहार करने वाला है.जिससे न जाने कितने निर्दोष इन्सान बलि चढ़जाते हैँ."सेरेना फिर खामोश हो गयी.

"खामोश क्योँ हो गयीँ सेरेना ?"

"सन्ध्या बैरागी!आपकी माँ रजनी बैरागी पुरुष प्रधान दबंगवादी कामुक भेड़ियोँ के परिवेश मेँ क्या क्या न सही ? वो तो तुम...तुम अपनी माँ के पेट मेँ थीँ उस वक्त,जंगल के बीच एक नदी मेँ बहोश मिली थीँ उस तांत्रिक अर्थात जिसे तुम बाबा कह कर पुकारती हो,को तुम्हारी माँ."


" सेरेना,मैँ कभी कभी हीनता का शिकार हो जाती हूँ कि जिन .. " "सन्ध्या तुम भी .....तब ठीक था किअब ठीक है?बाबा के पास से पुष्प कन्नोजिया की लाश न लातीँ तो क्या होता?यदि बाबा कामयाब हो जाता तब तो ठीक,नहीँ.... "

" तभी तो सुकून कर लेती हूँ कि पुष्प कन्नोजिया का शरीर अब फिर जिन्दा है.तुम सब धन्यवाद के पात्र हो. "

सितम्बर सन2010ई0के प्रथम सप्ताह की बात है,ग्राम प्रधान के चुनाव का माहौल था.शाहजहाँपुर जनपद के निगोही कस्बे से लगभग बारह किलोमीटर दूर एक गाँव-अहिरपुरा,जहाँ एक जाटव परिवार मेँ एक युवती थी-अनेकता भारती.वह प्रतिदिन लगभग एक वर्ष से शाहजहाँपुर जा कर संगणक अर्थात कम्प्यूटर मेँ ट्रेनिँग पर जा रही थी.जिस कम्प्यूटर सेन्टर'सुनासिर कैरियर सेन्टर' पर वह ट्रेनिंग कर रही थी,उसका मालिक था पच्चीस वर्षीय एक युवक- बिन्दुसार वम्मा . अचानक अनेकता भारती लापता हो गयी,उसके परिजनोँ ने बिन्दुसार वम्मा के खिलाफ थाना मेँ रिपोर्ट दर्ज करवायी.क्या वास्तव मेँ बिन्दुसार वम्मा दोषी था?उसका जीवन अब तहस नहस होने की ओर था.उसके परिजनोँ ने उसकी मदद से हाथ पीछे खीँच लिए थे.कम्प्यूटर सेन्टर अपनी बिजनिस पार्टनर वैशाली जैसवार के सपुर्द कर अज्ञातबास मेँ चला गया .पन्द्रह दिन बाद अनेकता भारती की लाश खुटार के जंगल मेँ पायी गयी.इधर बिन्दुसार वम्मा की पत्नी रैना गंगवार एक साल से बिन्दुसार के परिजनोँ से असन्तुष्ट हो कर अपने मायके रह रही थी,जिसने आत्म हत्या कर ली .रैना गंगवार के भाई व पिता ने बिन्दुसार व उसके परिजनोँ पर दहेज व प्रताड़ना का आरोप लगा कर थाना मेँ रिपोर्ट लिखवा दी.

भ्रम ,शंका, अफवाह ,मतभेद, व्यक्तिगत ,स्वार्थ, भ्रष्टाचार ,कुप्रबन्धन ,झूठे -पाखण्डी -भेड़चाल भीड़, आदि के चलते क्या से क्या हो जाए कुछ पता नहीँ.ऐसे मेँ अचानक बिन्दुसार वम्मा का ध्यान पीस पार्टी की इस माँग पर गया कि विभिन्न पदोँ पर चयन के लिए नारको परीक्षण व ब्रेन रीडिँग को अनिवार्य किया जाए. इसी आधार पर युवा वैज्ञानिक भविष्य त्रिपाठी द्वारा निर्मित 'कम्प्यूट्रीकृत न्याय कक्ष' के सम्बन्ध मेँ वह भविष्य त्रिपाठी से मिला.

"दोस्त बिन्दुसार!आप ठीक कहते हैँ लेकिन अभी हमारे इस निष्पक्ष न्यायवादी कम्पयूट्रीकृत रूम को भारत सरकार ने मान्यता नहीँ दी है और इस प्रोजेक्ट को मैँ विदेश लेजाना चाहता नहीँ."

" भविष्य फिर भी .......मेरे व मेरे परिजनो के सत्य को इस कक्ष के माध्यम से जाना जा सकता है.जिसके माध्यम से मीडिया व समाज को भविष्य के लिए एक मैसेज तो जाएगा."

" ठीक है!"

" थैँक यू!"


बिन्दुसार वम्मा व उसके परिजनोँ के परीक्षण के साथ साथ भविष्य त्रिपाठी विपक्ष के कुछ व्यक्तियोँ का परीक्षण करने मेँ सफल हुआ.जिसके आधार पर भविष्य त्रिपाठी ने बिन्दुसार त्रिपाठी व उसके परिजनोँ के निर्दोष होने की रिपोर्ट मीडिया व कुछ अन्य संस्थाओँ को दी जिसका पीस पार्टी व कुछ वैज्ञानिक संस्थाओँ के अलावा किसी ने समर्थन नहीँ किया.कुछ राजनैतिक दलालोँ व अपने बहनोई के कूटनीतिक सहयोग से पुलिस बिन्दुसार वम्मा व उसके परिजनोँ को गिरफ्तार करने मेँ सफल हुई.आगे चल कर बिन्दुसार वम्मा को अदालत के द्वार आजीवन काराबास की सजा सुनायी गयी ,उसके अन्य परिजनोँ को निर्दोष साबित कर छोँड़ दिया गया.

लगभग पन्द्रह साल बाद ऐसी घटनाएँ घटी जिन्होँने साबित कर दिया कि बिन्दुसार वम्मा निर्दोष है.अब तो मशीनेँ ही न्याय करने लगी थी.इन्सान तो मतभेद ,स्वार्थ, भ्रम शंका, अफवाह ,दबाव, आदि मेँ आकर अन्याय ही करता आया था.


भविष्य त्रिपाठी धरती पर आ कर सेरेना की ओर चल दिए.

रविवार, 16 मई 2010

अन्तरिक्ष मेँ भारत !

भारत एक सनातन यात्रा का नाम है.पौराणिक कथाओँ से स्पष्ट है कि हम विश्व मेँ ही नहीँ अन्तरिक्ष मेँ भी उत्साहित तथा जागरूक रहे हैँ.अन्तरिक्ष विज्ञान से हमारा उतना पुराना नाता है जितना पुराना नाता हमारा हमारी देवसंस्कृति का इस धरती से.विभिन्न प्राचीन सभ्यताओँ के अवशेषोँ मेँ मातृ देवि के प्रमाण मिले हैँ.एक लेखिका साधना सक्सेना का कुछ वर्ष पहले एक समाचार पत्र मेँ लेख प्रकाशित हुआ था-'धरती पर आ चुके है परलोकबासी'.


अमेरिका ,वोल्गा ,आदि कीअनेक जगह से प्राप्त अवशेषोँ से ज्ञात होता है कि वहाँ कभी भारतीय आ चुके थे.भूमध्यसागरीय सभ्यता के कबीला किसी परलोकबासी शक्ति की ओर संकेत करते हैँ.वर्तमान के एक वैज्ञानिक का तो यह मानना है कि अंशावतार ब्रह्मा, विष्णु ,महेश परलोक बासी ही रहे होँ?


मध्य अमेरिका की प्राचीन सभ्यता मय के लोगोँ को कलैण्डर व्यवस्था किसी अन्य ग्रह के प्राणियोँ से बतौर उपहार प्राप्त हुई थी. इसी प्रकार पेरु की प्राचीन सभ्यता इंका के अवशेषोँ मेँ एक स्थान पर पत्थरोँ की जड़ाई से बनी सीधी और वृताकार रेखाएँ दिखाई पड़ती हैँ.ये पत्थर आकार मेँ इतने बड़े है कि इन रेखाओँ को हवाई जहाज से ही देखा जा सकता है.अनुमान लगाया जाता है कि शायद परलोकबासी अपना यान उतारने के लिए इन रेखाओँ को लैण्ड मार्क की तरह इस्तेमाल करते थे.इसी सभ्यता के एक प्राचीन मन्दिर की दीवार पर एक राकेट बना हुआ है.राकेट के बीच मेँ एक आदमी बैठा है,जो आश्चर्यजनक रुप से हैलमेट लगाए हुए है.

पेरु मेँ कुछ प्राचीन पत्थर मिले हैँ जिन पर अनोखी लिपि मेँ कुछ खुदा है और उड़न तश्तरी का चित्र भी बना है.दुनिया के अनेक हिस्सोँ मेँ मौजूद गुफाओँ मेँ अन्तरिक्ष यात्री जैसी पोशाक पहने मानवोँ की आकृति बनाई या उकेरी गई है.कुछ प्राचीन मूर्तियोँ को भी यही पोशाक धारण किए हुए बनाया गया है.जापान मेँ ऐसी मूर्तियोँ की तादाद काफी है.सिन्धु घाटी की सभ्यता और मौर्य काल मेँ भी कुछ ऐसी ही मूर्तियाँ गढ़ी गयी थीँ.इन्हेँ मातृदेवि कहा जाता है.जिनके असाधारण पोशाक की कल्पना की उत्पत्ति अभी भी पहेली बनी हुई है.


ASHOK KUMAR VERMA'BIND'

A.B.V. INTER COLLEGE,
KATRA, SHAHAJAHANPUR, U.P.

बुधवार, 5 मई 2010

AIRCEL:UNLIMITED INTERNET

तन्हाई दूर करने मेँ इण्टरनेट सहायक तो हो रहा है लेकिन ऐसा न हो कि जीवन की सहजता व प्राकृतिकता से दूर हो जाएँ?

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