Powered By Blogger

शनिवार, 29 सितंबर 2012

एक समान शिक्षा..... (सरकारी कर्मचारियोँ,अध्यापकोँ,मंत्री,विधायकोँ,सांसदोँ आदि के बच्चे सरकारी स्कूलोँ मेँ ही पढ़ने चाहिए.)

देश मेँ समान शिक्षा का न होना मेरे दृष्टि मेँ एक दोष है .जिसके लिए
भी कांग्रेस दोषी है .चाहेँ भिखारी या मजदूर का बच्चा हो या मंत्री
विधायक या किसी पूंजीपति का,सभी के लिए शिक्षा के अवसर समान होना
चाहिए.या फिर सर्वशिक्षा अभियान पर रोक लगा दी जानी चाहिए.सर्वशिक्षा
अभियान की जिम्मेदारी प्राइवेट विद्यालयोँ को सौप दी जानी चाहिए .सरकारी
स्कूलोँ मेँ ये अभियान फ्लाप हो चुका है .सरकारी
कर्मचारियोँ,विधायकोँ,मंत्रियोँ,सांसदोँ आदि के बच्चोँ के लिए सरकारी
स्कूलोँ मेँ शिक्षा अनिवार्य किया जाना चाहिए.शिक्षा सभी के अनिवार्य की
जानी चाहिए .जो अभिभावक अपने बच्चोँ को स्कूल न भेजेँ उनसे सरकार को
टेक्स लेना चाहिए .

किसी भी नियम व व्यवस्था का विकल्प नहीँ होना चाहिए .कम से कम सरकारी
नियमोँ व व्यवस्थाओँ का विकल्प नहीँ होना चाहिए न ही दूसरे विक्लपोँ को
सरकारी मदद मिलना चाहिए.एक और राजकीय इण्टर कालेज दूसरी और नवोदय
विद्यालय आदि .अनेक तरह की संस्थाएं नहीँ चलनी चाहिए .इन सबका एकीकरण कर
एक प्रकार का नामकरण व व्यवस्था की जानी चाहिए .इससे हटकर अन्य
विद्यालयोँ का सरकारी करण कर उन्हेँ एक व्यवस्था से जोड़ा जाना चाहिए.नये
प्राईवेट विद्यालयोँ को खोलने पर रोक लगायी जानी चाहिए .'एक व्यवस्था एक
मैनेजमेंट ' नीति को स्वीकार किया जाना चाहिए .जो सेक्यूलर होँ.जाति व
मजहब के आधार पर चलने वाले विद्यालयोँ को सरकारी अनुदान समाप्त किया जाना
चाहिए.इनके छात्रोँ को सरकारी नौकरियोँ से वंचित किया जाना चाहिए .कुल
मिला कर पूरे देश मेँ प्रत्येक क्लास के लिए एक पाठ्यक्रम,एक व्यवस्था
,एक से स्कूल ,एक सा स्तर आदि लागू किया जाना चाहिए.
गैरसरकारी सवित्तमान्यता प्राप्त विद्यालयोँ व अन्य विद्यालयोँ मेँ
अभिभावक शिक्षक संघ अनिवार्य किया जाना चाहिए.

गुरुवार, 27 सितंबर 2012

कथांश : रीति के जीवन क्षण

जो हमेँ सर्वभौमिक सत्य से जोड़े उसी की नजर मेँ हम जिएं .

----------
Sent from my Nokia Phone

------Original message------
From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: <akvashokbindu@gmail.com>
Cc: <go@blooger.com>
Date: Friday, September 28, 2012 10:23:25 AM GMT+0800
Subject: कथांश : रीति के जीवन क्षण






वह कक्षा आठ की छात्रा थी .नाम था उसका रीति .शाम का वक्त ,स्कूल से आने के बाद मैँ कपड़े चेँज कर हाथ मुंह धोने के बाद भोजन परोस कर खाने को बैठ ही पाया था कि रीति अपने भाई रमन के साथ कमरे मेँ आ पहुँची थी .
रमन बोला -"मेरा आज बर्थडे है,सर ."
रीति बोली -"सात बजे आ जाना,सर."

जब दोनोँ बापस चले गये तो मैँ सोंचने लगा कि आजकल के ये बच्चे अभी से सुस्त सुस्त मुर्झाये से.भोजन ग्रहण करने के बाद मैँ पंजाब केसरी समाचारपत्र को पढ़ने बैठ गया.

* * *

रमन की बर्थडे पार्टी से मैँ जब बापस कमरे आया तो दीवारघड़ी 10.00PMबजा रही थी.कपडे चेंज करने के बाद मैँ विस्तर पर आ गया .
शीत ऋतु थी ,मैँ पैरोँ पर रजाई डालकर डायरी लिखने लगा .लिखते लिखते एक घण्टा बीतने को आया....

"सर! " - कमरे का दरबाजा खोलते हुए रीति .

"सर!कुछ बातेँ करनी हैँ आपसे."

"आओ .....लेकिन इतनी रात?"

"तो क्या हुआ?फिर नींद भी नहीँ आ रही थी .मम्मी भाई दीदी से कहकर आयी हूँ .आप तो अपने से ही हैँ फिर मैने आपके मकानमालिक की लड़की से सुन रखा है कि आप रात भर जागते रहते हैँ ."

"डायरी पर क्या लिख रहे थे ?"
"क्योँ?तुमको क्या बताने की जरुरत?"
"सारी!"
मैँ फिर लिखने बैठ गया .कुछ मिनट बाद मैने डायरी बन्द कर दी .
"हाँ,बोलो देवी जी."
"रीति हूँ मैँ ,देवी जी नहीँ ."
"हाँ,ठीक है.बोलो,क्या बात करनी है?"
"आप घर पर मामा जी से बातेँ कर रहे थे .मैँ पीछे विण्डो से आपकी बातें सुन रही थी ,अच्छा लग रहा था सुन .अब हमेँ लगने लगा है आपसे बात कर हमेँ सुकुन मिल सकता है .वैसे मैँ कभी कभी मरने तक की सोंचती हूँ ."-फिर वह सिसकने लगी.

"अरे,तुम तो रोने लगीँ .? "
"रोने दो .अकेले मेँ तो रोती ही हूँ .किसी के सामने आज पहली बार ......किसी के सामने भी रोने दो .आप ही तो मिले हैँ ऐसे कि लगता है आपके सामने रो भी सकती हूँ .नहीँ तो.....?!लगता है आप हमारे आँसू पोंछ भी सकते हैँ .यह जमाना यहाँ तक कि फैमिली भी जैसे काटने को दौड़ती हो .मैँ ऊपर ऊपर मुस्कुरा लेती हूँ ,हँस लेती हूँ -इससे क्या?"

उसने अपना सिर मेरे दायेँ कन्धे पर रख दिया .

"सर !सुबह चार बजे उठ जाती हूँ फिर रात दस बजे के बाद ही बिस्तर पकड़ पाती हूँ .विस्तर पर भी बेचैन... परेशान... दिन भर की सोँचना...कहीँ होमवर्क पूरा नहीँ,कहीँ क्लासवर्क पूरा नहीँ... लिखना भी,याद करना भी.हर वक्त तो बिजी रहती हूँ लेकिन तब भी टीचरोँ व मम्मीपापा की डाँट सुननी पड़ती है.यह याद नहीँ किया.. वो याद नहीँ किया..यह भूल गयी..यह अभी लिखना बाकी, वह लिखना बाकी राईटिंग गंदी हो रही है...घर पर
यहाँ झाड़ू नहीँ,वहाँ झाड़ू नहीँ लगी.. बर्तन साफ करने को पड़े हैँ... कपड़े साफ करने को पड़े हैँ.. न जाने क्या क्या...? भ ईया और दीदी भी अपना हुकुम चलाते रहते हैँ .मैँ परेशान सी हो जाती हूँ ,खिन्न सी हो जाती हूँ .पापा हैँ ,हर वक्त गुस्सा उनके नाक पर रखी रहती है .पापा की स्थिति से आप परिचित ही हैँ .दारु जुआँ की लत मेँ .."

"रीति!यह सब जो है ,उससे अपने मन को मत जोड़ो.सोँचो,हमेँ क्या करना है ?हमेँ क्या बनना है ?हमेँ क्या फर्ज निभाने हैँ?जिसकी जैसी बुद्धि उसे वैसा करने दो.हमेँ जैसा करना है ,हमेँ जैसा बनना है उसके लिए प्रयत्न करते रहे ,बस .प्रतिकूलताएं भी हमारी परीक्षाएं बनकर आती हैँ,ऐसा समझो.ध्रुव की कथा पता है,पिता की गोद मेँ न खेल पाने की खिन्नता ने उन्हेँ महान बना दिया.अपनी खिन्नता हतासा निराशा
आदि को महान दिशा दे दो."

"कैसे तैयार करुँ खुद को इसके लिए ? "

"मुझसे मुलाकातेँ व सम्वाद ! ...और मेडिटेशन एवं महान नारियोँ की जीवनगाथा पढ़कर ! "

"मन तो ,मन....."

"बोलो,क्या बोलना चाहती हो ?"

"सर!"फिर वह खामोश हो गयी.

"मन को लयता दो,मन को संगीत दो .मस्ती दो .मन मेँ धैर्य व शान्ति लाओ.सिर्फ वर्तमान मेँ जियो .सोँचो मत ,जो कर्म कर रही हो,उसमेँ ही लीन हो जाओ.वर्तमान मेँ लीन रहो.शिवनेत्र पर ध्यान दो,श्वास प्रक्रिया पर ध्यान दो .पुस्तकेँ पढ़ो,हमवर्क क्लासवर्क पूरा करो .तुम कहती हो दिनभर बिजी रहती हूँ .एक पल को भी चैन नहीँ .अच्छा है यह अच्छा है,व्यस्त रहना अच्छा है .थकान आये तो विश्राम भी जरुरी है
.थकान से बचने के लिए शवासन भी कर सकती हो और फिर सोँचो मैँ नहीँ थकी हूँ .मैँ तो आत्मा हूँ .मैँ नहीँ थक सकती ."


"निराशा के दौरे से पड़ जाते हैँ .मरने तक की सोंचने लगती हूँ ."

"क्योँ क्योँ ?सोँचो ,जिन कारणोँ से ऐसा होता है उनको मन मेँ मत लाओ .अपनी सोँच को बदलो.जिस देवी देवता या महापुरुष महानारी को मानती हो उसे सोँचो या फिर मेडिटेशन या अध्ययन . व्यस्त रहने वाले को तो रोने की भी फुर्सत नहीँ होना चाहिए.अपने को पहचानो ,तुम सिर्फ शरीर नहीँ हो .तुम देवी हो ,माँ स्वरुप हो .तुममेँ पुरुष से भी ज्यादा शक्तियाँ हैँ .तुम आत्महत्या नहीँ कर सकती.हाँ,तुम उनके
मन्सूबोँ की हत्या कर सकती हो इस समाज को गंदा कर रहे हैँ,परिवार व समाज की व्यवस्थाओँ को गंदा कर रहे हैँ .स्त्री तो शक्ति का भी प्रतीक है .अपने को पहचानो."


मैने उसकी दोनोँ आंखोँ के बीच माथे पर अपनी एक अंगलु रख दी .

"रीति!अपनी आंखेँ बंद करो.बंद आंखोँ से देखने की कोशिश करो इस स्थान को .तुम सिर्फ शरीर नहीँ हो,शरीर तो मर ही जायेगा आज नहीँ तो कल.तुम आत्मा हो ,अलिँगी हो ,चेतना हो.... अपने को पहचानो.दुनिया की नजर मेँ सफल नहीँ हो पाओ तो कोई बात नहीँ .अपनी नजर मेँ सफल बनो.जातिभेदी,लिगभेदी,कूपमण्डूक,अहंकारी आदि की नजर मेँ क्या सफल होना चाहती हो ?"


समय गुजरा...

रविवार, 23 सितंबर 2012

...तो क्या समाज झूठ के रास्ते पर चलता है ?

विभिन्न परिस्थितियोँ मेँ मैँ यही विचार देता रहता हूँ कि समाज के आधार पर चलना अलग बात है व अपने ग्रंथोँ और महापुरुषोँ के दर्शन के मूलतत्वोँ के आधार पर चलना अलग बात है.जो समाज के आधार पर चलने के साथ साथ धर्म,धर्मग्रंथोँ व अपने महापुरुषोँ के सम्मान की बात करता है वह मेरी नजर मेँ ढोँगी व पाखण्डी है.विशेष रुप से शिक्षा के जगत से बच्चोँ व परिवारोँ को ये प्रेरणा मिलनी चाहिए कि अध्यात्म व नैतिक शिक्षा का प्रयोग जीवन मेँ कितना महत्वपूर्ण है?इसके बिना व्यक्ति,परिवार,समाज व विश्व को क्या क्षति पहुंच रही है?संस्कारोँ का मानव जीवन मेँ क्या महत्व है?लेकिन ...?लेकिन इन प्रश्नोँ का उत्तर जानने व समझने से पहले हमेँ विभिन्न शब्दोँ की परिभाषा को जानने की जरुरत है.धर्म ,संस्कार,इबादत ,पूजा आदि शब्दोँ की परिभाषा ही हम भूल चुके है.अफसोस की बात ये है कि समाज का मस्तिष्क कहा जाने वाला शिक्षक व कानून के रखवाले ही ज्ञान व कानून से अलग अपना नजरिया व आचरण बनाए बैठे हैँ. समाज के हिसाब से चलो ,ये अब शिक्षक ही उनसे तक कहते है जो सार्वभौमिक ज्ञान की खोज मेँ लगे व ग्रंथोँ व महापुरुषोँ से प्रेरणा लेना चाहते है

----------
Sent from my Nokia Phone

शनिवार, 22 सितंबर 2012

दधीचि जयन्ती : सत्ता दंश

किसी ने कहा है कि जगत को विकारयुक्त करने के लिए पूँजीवाद और सत्तावाद दोषी है . सत्ता रुपी इन्द्र वैसे तो सुरा अप्सरा मेँ व्यस्त रहता है लेकिन जब उसका सिंहासन हिलता है तो दधीचि की अस्थियां तक लेने को दौड़े चले आते हैँ .

आचार्य चतुरसेन अपने रचित वयं रक्षाम : पुस्तक मेँ 19 इन्द्र पर लिखते हैँ कि इन्द्र ने नारद और दूसरे मित्रोँ की सहायता ले देवभूमि मेँ एक नई वैदिक संस्कृति की नीव डाली . यद्यपि इन्द्र का यह प्राधान्य आदित्योँ को पसन्द न था . परन्तु इन्द्र एक खटपटी और धूर्त व्यक्ति था . उसने मान पुरस्कार देकर आदित्योँ को अपने अनुकूल बना रखा था . इन्द्र का राज्य दैत्योँ और दानवोँ की राज्य सीमाओँ से लगा हुआ था , जो काश्यप सागर तट पर दूर तक फैले हुए थे .बेबीलोनिया जाति के जत्थेदारोँ से इन्द्र की मित्रता थी .ईरान व पाक ही कभी देवलोक रहा होगा .
दैत्य दानव देव आदि सब कश्यप की ही सन्ताने थे .सत्तावाद ने इन सबके बीच खाईंयां पैदा कीं .और कुल व जन विभिन्न जातियोँ मेँ बदल गये .

----------
Sent from my Nokia Phone

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

लहसुन प्याज बनाम सत्विकता !

स्वस्थ्य शिक्षा के बिना हमारी शिक्षा अधूरी है .हमारे ऋषियोँ मुनियोँ ने आयुर्वेद के अन्तर्गत हमेँ बताया कि हमेँ अपने शरीर व मन के लक्षणोँ व दशा को जान उसके उपचारात्मक खानपान व आचरण करना चाहिए .अपने शरीर के प्रबंधन के साथ साथ मन का प्रबंधन भी आवश्यक है . मन को सात्विक दिशा व दशा दिए बिना हम स्वस्थ जीवन की कल्पना नहीँ कर सकते.सात्विकता सिर्फ सात्विक भोजन से ही नहीँ आती .हमारा नजरिया ,कर्म व लक्ष्य भी सात्विक होना चाहिए.कुछ व्यक्ति लहसुन प्याज का इस्तेमाल नहीँ करते लेकिन अपने कर्म व विचारोँ से सात्विक नहीँ होते .आयुर्वेद मेँ लहसुस व प्याज का महत्व कम नहीँ .
हमेँ सात्विक भोजन के साथ साथ अपना नजरिया भी सात्विक रखना चाहिए .सात्विक नजरिया के बिना सात्विक भोजन का महत्व कितना ?आठ योगांगोँ मेँ से यम ,नियम ,प्राणायाम ,ध्यान को अपने दैनिक आचरण मेँ उतारना अति आवश्यक है .

----------
Sent from my Nokia Phone

लहसुन प्याज बनाम सात्विकता ?

जो लहसुन प्याज का इस्ते

----------
Sent from my Nokia Phone

बुधवार, 19 सितंबर 2012

अनुयायी अर्थात स्वयं को न जगाने वाला ?

मैँ अपने शिष्योँ से कहता हूँ कि समाज व परिवारोँ की नजर मेँ अपना चरित्र बेहतर न जी सको तो कोई बात नहीँ ,महापुरुषोँ की नजर मेँ बेहतर बनो .ये नानक के भक्तोँ अपने पुत्रोँ को क्या नानक जैसा होना पसंद करोगे या नानक जैसै का तुम अपने जीवन मेँ सम्मान करोगे ? जो नानक अपना खेत रखाते वक्त चिड़ियोँ से कहता है कि चिड़ियों सब चुँग जा खेत सब प्रभु का . ऐ मोहम्मद साहब के अनुयायियोँ !तुम्हेँ भी याद होगा वह प्रसंग कि उनके ऊपर कूड़ा डालने वाली औरत का भी वे हालचाल पूछने जाते हैँ .

मेरा अनुभव कहता है कि अनुयायी झूठे व निरेभौतिकवादी होते हैँ कुछ अपवादोँ को छोँड़कर .मैँ किसी का अनुयायी नहीँ हूँ और न ही मुझे किसी का अनुयायी होने की जरुरत है ,मैँ सार्वभौमिक ज्ञान व सत्य का खोजी हूँ .महापुरुषोँ से प्रेरणा लेने की कोशिस करता रहता हूँ .





मे



----------
Sent from my Nokia Phone