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गुरुवार, 15 अगस्त 2013

कुछ यूँ तैयार हैँ हम अपने भविष्य के लिए

हम राष्ट्र से हैँ राष्ट्र हम से है .यदि हम सब भारतबासी समृद्ध
,संस्कारित ,अनुशासित आदि होँगे तो राष्ट्र भी समृद्ध ,संस्कारित
,अनुशासित आदि होगा .
हम तैयार हैँ किस नजरिया किस ज्ञान व किस लक्ष्य के साथ ?सनातन अर्थात
शाश्वत ,सार्वभौमिक ,असीम ,अनन्त आदि गुणोँ से युक्त महान आत्मा की
कल्पना अपने अंदर सजोए बिना हम अपने को सम्पूर्ण रुप से तैयार नहीँ कर
सकते.'मैँ' शब्द मेँ अहंकार की बू है .'हम' शब्द मेँ सार्वभौमिक सत्य व
ज्ञान से जुड़ने की कल्पना व योजना छिपी है .व्यवहार मेँ भविष्य के प्रति
योजनाबद्ध होने के लिए 'स्वयं' को जानना आवश्यक है .'स्व'क्या है?
'पर'क्या है?
'स्व'है आत्मा या परमात्मा.'पर' है शरीर या प्रकृति.वर्तमान मेँ हम पचास
प्रतिशत ब्रह्मंश व पचास प्रतिशत प्रकृतिअंश हैँ .इन दोनोँ अंशोँ के
समवृद्धि व सममहत्व के साथ ही हम अपने भविष्य के प्रति तैयार हैँ . सिर्फ
भौतिक भोगवाद अर्थात सिर्फ शारीरिक ऐन्द्रिक आवश्यकताओँ की पूर्ति मेँ
अपने इस जीवन को गंवा देना सम वृद्धि नहीँ है.आधुनिक विकास का मतलब है
-'पर' का विनाश ,विकार ,दुख व रोग .

सुबह उठते हैँ हम. अखबार हाथ आता है ,देश के हालातोँ को देख
क्षत्रियत्व जाग जाता है .शरहदेँ खून उगलती हैँ .अपने ही देश की जमीँ से
अपने सैनिकोँ को पीछे हटना होता है .बांग्लादेशी घुसपैठियोँ को बेटोक आने
दिया जाता है ,गरीबोँ बेसहारोँ को न्याय नहीँ मिल पाता है.युवा शक्ति के
पास स्वपन तो हैँ लेकिन स्वपन साकार होने के लिए जमीँ नहीँ है
.भ्रष्टाचार के खिलाफ शासन प्रशासन कोई कठोर कार्यवाही नहीँ करना चाहता
है .देश की आजादी का मतलब क्या यही है ?कुछ मुट्ठी भर लोग मनमानी करेँ
,कानून की धज्जियाँ उड़ायेअँ ,सत्त व पद का दुरुपयोग करेँ .वोट बैँक की
राजनीति के लिए जातिवाद व तुष्टिकरण को बढ़ावा देँ .क्रान्तिकारियोँ व
स्वतन्त्रतासेनानियोँ के सपने क्या साकार हो गये ?


ऐसे मेँ हमसब देशबासियोँ का कर्तव्य है सम्पूर्ण आजादी के लिए एकजुट
होना और सभी समस्याओँ के लिए निदान खोजकर त्याग व बलिदान की भावना के साथ
आर पार का संघर्ष छेँड़ना . अन्यथा आजादी का पर्व मनाने का क्या औचित्य ?


वोट की राजनीति से ऊपर उठकर देशहित मेँ कठोर फैसले आवश्यक हैँ क्योँ
न इसके लिए हमेँ अपने तन को मौत के हवाले करना हो लेकिन नई पीड़ी के लिए
हम एक मिसाल कायम कर सकेंगे.


बीमारी ज्यादा बढ़ गयी है .कड़वी दवा के बिना काम नहीँ चलने वाला .जिसे
कड़वी दवा अपने ,अपने जाति व मजहब के खिलाफ लगता है उसके खिलाफ देशद्रोह
का मुकदमा चलना चाहिए .नागरिक व नागरिकता , देशद्रोह व देशभक्ति की
परिभाषा पर पुनर्विचार होना चाहिए .
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संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>