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रविवार, 16 फ़रवरी 2020

भारतीय हिन्दू समाज ,शादी व्यवस्था व दहेज!!

समाज शास्त्र की प्रयोगशाला है-समाज।
भारतीय समाज में दहेज को समस्या मान कर भी सांकेतिक किया जाता है। ऐसा व्यवहारिक जीवन में देखा नहीं जाता। दहेज के नाम पर दहेज एक्ट सिर्फ हथियार है। पति पत्नी के मनमुटाव या दोनों पक्ष के मतभेद दहेज एक्ट पर आकर टिक जाता है।ये लड़की पक्ष का हम अपराध ही मानते हैं। जब दोनों पक्ष में नहीं पटती तो फिर दहेज एक्ट दिखाई देता है।इससे पहले क्यों नहीं?इसका मतलब लड़की पक्ष का नजरिया खतरनाक व गैरकानूनी है। लड़की पक्ष का नजरिया व शादी तय करते वक्त का नजरिया खतरनाक है।कोई तो कहता है आज कल शादी करना ही अवैध है। शादी आवश्यकता तो है लेकिन शादी करना आजकल अवैध है।
शादी करना अवैध क्यों है?
शादी तय करते वक्त लड़की वालों की सोच व मापदण्ड क्या होता है?उस मापदण्ड व सोंच के आधार पर क्या बाद में दाम्पत्य एवं ग्रहस्थ जीवन जिया जाता है?

लड़के पक्ष की भी देखो, हमारे नजर में कुछ लड़कियां आती हैं।जो अन्य लड़कियों से काफी आगे। उनमे आत्मनिर्भरता भी, सभी योग्यताएं भी , परिवार को लेकर चलने की भावना भी, गोबर-कंडा, भैस, खेत खलिहान तक का करने वाली आदि आदि.... सर्वगुण सम्पन्न लेकिन लड़के पक्ष को ऐसी लड़की नहीं चाहिए क्योंकि वह की पारिवारिक स्थिति दहेज मुंह मांगा नहीं। लेकिन हम इसे समस्या नहीं मानते। समस्या इस लिए है क्योंकि वह अपने को एक बिरादरी का समझते हैं व उस बिरादरी में रिश्ता देख रहे हैं। दहेज को हम समस्या नहीं मानते।


हम कहते रहे हैं-सभी समस्याओं का हल है,मानवता व अध्यात्म।
जातीय व्यवस्था प्राकृतिक ,नैसर्गिक, ईश्वरीय आदि नहीं।जीवन प्राकृतिक, नैसर्गिक, ईश्वरीय आदि है।समस्या पूर्वाग्रहों, बनाबटों,कृत्रिमताओ आदि में है।शादी परम्परा को स्वीकार करने का मतलब"मैं"नहीं हम सब है।"मैं"  "तू" नहीं... हम सब है।