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शनिवार, 31 अगस्त 2019

शिक्षक का सम्मान तब ही जब उसके व महापुरुषों के सन्देशों व वाणी को आत्मसात करना हो!!

शिक्षक दिवस पर विशेष ::::

 सावित्री फुले के जन्मदिन को राष्ट्रीय शिक्षिका दिवस घोषित किया जाना चाहिए
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शिक्षक दिवस की तारीख में परिवर्तन की आवश्यकता है। शिक्षक दिवस की शुरुआत ज्योतिबा फुले के जन्मदिन से बनाई जानी चाहिए। सावित्री फुले के जन्मदिन को शिक्षिका दिवस घोषित किया जाना चाहिए।




शिक्षक समाज का मस्तिष्क होता है:: सर्वपल्ली राधाकृष्णन!
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  हर युग में शिक्षक समाज का महत्वपूर्ण स्थान रहा है लेकिन दक्षिण एशिया में स्थिति अत्यंत सोचनीय है ।शिक्षक अब नौकर बन गया है , शिक्षक अब चाटुकार चापलूस आदि बन गया है।
 आज जब शिक्षक ही ज्ञान के आधार पर आचरण नहीं करेगा तब कौन करेगा ?
शिक्षक मूल्यवान ,आदर्शवाद होना चाहिए ।सरपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था कि समाज में शिक्षक मस्तिष्क है।
 शिक्षक का स्तर चाहे कोई भी हो लेकिन वह सम्मान के योग्य है। यदि उससे आपकी नहीं निभाती है तो आप जाने ।
शिक्षक अपने स्तर पर शिक्षा दे रहा है ।विद्यार्थी जिस स्तर पर है उस स्तर के आधार पर शिक्षा दे रहा है तो आप उसके शिक्षण कार्य में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। विद्यालय से बाहर यदि वह कुछ विद्यार्थियों का या अन्य लोगों का मार्गदर्शन करता है तो उससे मार्गदर्शन प्राप्त करने के लिए आप उसको अपनी शर्तों के आधार पर जबरदस्ती नहीं कर सकते ।यह तो उसकी परिस्थितियां हैं ।
जो उसका मार्गदर्शन चाहता है, उसकी सबसे बड़ी पात्रता है शिक्षक के प्रति पूर्ण श्रद्धा, समर्पण ,शरणागति आदि। हमारे आपके अनुकूल यदि कोई शिक्षक नहीं है तो उस पर कोई जबरस्ती नहीं कर सकते। वह हमारा तुम्हारा नौकर नहीं है ।शिक्षक एक महान पद है ।
वह किसी का नौकर नहीं है ।जिस समाज में शिक्षक को नौकर माना जाता है उस समाज का पतन निश्चित है ।स्कूल से बाहर किसी के मार्गदर्शन के लिए हम आप उसको मजबूर नहीं कर सकते ।वह तो एक समझौता है, वह चाहे ₹400 मांगे चाहे ₹500 मांगे ।हम तुम उसको जबरदस्ती नहीं कर सकते ।शिक्षक स्वतंत्र है उसे अपने अनुकूल लगता है वह शिक्षा देगा ।एक मानसिक प्रक्रिया है यह कोई बिजनेस नहीं है। बिजनेस होकर भी बिजनेस नहीं है। समाज को ,समाज के ठेकेदारों को यह समझना चाहिए एक मर्यादा के अंतर्गत  शैक्षिक मूल्यों के अंतर्गत कानूनी व्यवस्था के अंतर्गत विद्यालय मे सिर्फ प्रधानाचार्य निश्चित कर सकता है कि अध्यापक के माध्यम से शिक्षण प्रक्रिया सुचारू रूप से चल रही है कि नहीं ?इसके लिए विद्यालय का मैनेजर भी हस्तक्षेप नहीं कर सकता ।एक अध्यापक अपने बच्चों को एक पाठ्यक्रम के आधार पर कैसे ज्ञान देगा कैसे सिख लाएगा ? यह विषय स्वयं अध्यापक का ही है अन्य किसी का नहीं। बालक जिस स्तर का है अध्यापक उस स्तर के आधार पर ही उसे शिक्षित करने का सिर्फ प्रयत्न कर सकता है। अनेक विद्वानों ने कहा है यदि कोई बच्चा शिक्षा में रुचि ही नहीं रखता उसे अध्यापक सिर्फ प्रेरित कर सकता है ।यदि बच्चे को पहला  पाठ ही किसी भी हालत में कंठस्थ नहीं है तो वह दूसरे पाठ, तीसरे पाठ आदि का हकदार कैसे? कक्षा 6 में आते आते बच्चे को शिक्षा में रुचि हो ही जानी चाहिए। यदि ऐसा नहीं है तो ये अभिभावक की ओर से चिंतनीय है। देश में सबसे बड़ा भ्रष्टाचार यही है कि लगभग 80% बच्चे सही रूप में विद्यार्थी ही नहीं हो पाए ,80% शिक्षक ही ज्ञान के आधार पर अपना आचरण नहीं बना पाए ।




शिक्षक/प्रशिक्षक/उस्ताद आदि के प्रति श्रद्धा बिन सब निरर्थक!! शिक्षक सम्मान का मतलब!!!
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कालेजों/स्कूलों में देखने को मिल रहा है- शिक्षकों आदि का सम्मान सिर्फ दिखावा रह गया है। आज मानव समाज में अनेक विकृतियां देखने को मिल रही हैं इसका कारण है मानव या मानव पुत्र आज शरणागति ,समर्पण, श्रद्धा से अछूते हैं ।नई पीढ़ी को वही प्राप्त होगा जैसा उसका नजरिया उसकी समझ होगी ।यह नजरिया ये समझ तभी विकासशील बनती है जब महानता की ओर शरणागति ,समर्पण ,श्रद्धा आदि होता है ।मानव जीवन में माता पिता ,अध्यापक ,गुरु आदि का महत्व सदा से रहा है। जिन्होंने माता-पिता ,अध्यापक, गुरु आदि के संदेशों ,आदेश , उपदेशों आदि को आत्मसात किया है वही विकासशील होकर भविष्य यात्रा पर उतरे हैं। अन्यथा मानव सभ्यता अतीत या भूत प्रभावों से पीड़ित होकर अपनी चेतना को संकुचित की है या फिर ठहराव को प्राप्त हुई है। वह परिवर्तनशील होकर विकासशील तभी बनी है जब उसने महान संदेशों को आत्मसात किया है। आत्मा के गुणों को अनुभूत किया है ।हम इन स्कूलों- कालेजों में पढ़ने वाले बच्चों की अपेक्षा उन दुकानों -होटलों आदि मे रहकर सीखने वाले बच्चों को बेहतर मानते हैं जो अपने मालिक की हर आदत को स्वीकार करते हैं और धैर्य रखते हुए सीखने की कोशिश करते हैं ।
पूर्व न्यायाधीश काटजू ने ठीक ही कहा है सिर्फ 10% ही वास्तव में विद्यार्थी हैं ।
कुल मिलाकर हम कहना चाहेंगे यदि शिक्षक का सम्मान बढ़ाना है तो हमें शिक्षक के संदेशों पर ध्यान देना होगा। शिक्षा की शुरुआत उपनयन संस्कार से होती है ।गुरु के पास जाने ,बैठने का मतलब यह नहीं होता कि कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना। अनेक बच्चे शिक्षकों के पैर छूते मिलते हैं लेकिन इसका महत्व तब पाखण्ड हो जाता है जब भी बच्चे शिक्षकों के संदेशों को आत्मसात कर आगे नहीं बढ़ते।


#अशोक कुमार वर्मा बिंदु