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मंगलवार, 29 सितंबर 2015

मोदी विश्व यात्राएं वनाम भावी तृतीय विश्व युद्ध????????????????????????????????????????!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

---------- Forwarded message ----------
From: akvashokbindu@gmail.com
Date: Sep 29, 2015 11:43 PM
Subject: मोदी विश्व यात्राएं वनाम भावी तृतीय विश्व युद्ध????????????????????????????????????????!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
To: <go@blooger.com>
Cc:

[9/29, 11:38 PM] ashok kumar verma: मोदी विश्व यात्रा बनाम तृतीय विश्व युद्ध ??
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इस बार के महाविश्व / महाभारत का क्षेत्र एशिया होगा ? हालाँकि इस युद्ध को तृतीय विश्व युद्ध कहा जायेगा . क्या ये वास्तव में  होगा ? इस युद्ध के कारण मैजूद हैं . भारत चाहे तो ये युद्ध आज हो जाये ?  लेकिन भारत आज  दिव्य है?वह आज वही भारत है;भा+रत अर्थात प्रकाश में रत .दुनिया एक बार फिर भारत की ओर देखने जा रही है.भारत मेंअब भी ज्ञान-- कमलों की कमी नहीं है.दुनिया के गैर भारतीयों में ऐसा कौन सा नेता है जो सारी दुनिया के लिए जाति/मजहब/देश की शरहदों से परे हो सारी मनुष्यता व प्रकृति के लिए दर्द रखता है? भारत में इस नेता होने जा रहा है?मोदी की विश्व यात्राओं को यों ही हल्के में मत लीजिए.मोदी विश्व स्तर पर उन परिस्थितियों के लिए वातावरण बना रहे हैं .मोदी जाते जाते वो कर जायेंगे जिसे उनके  दुश्मन भी याद करेंगे?

इससे पहले काफी कुछ होना है----
@संयुक्त राष्ट्र सङ्घ में भारत को स्थाई  सदस्यता

@संयुक्त राष्ट्र सङ्घ में हिन्दी भाषा को मान्यता

@भारत को जगत गुरु का दर्जा

@सन् 2022 का इंतजार व अनेक फाइलों का सार्वजनिक होना.अनेक कानूनों का संशोधन.

@विभिन्न क्षेत्रों में सक्षम होना.

@विश्व मन्च पर अपना पक्ष मजबूती से रखना व उसके लिए विश्व मत तैयार करना.

@आतंकवाद पर स्पष्ट विश्व मत तैयार करना.

@गरीब देशों व गरीबों के हित कल्याणकारी नीतियों का समर्थन.

@पर्यावरण के लिए स्पष्ट नीति का समर्थन जो गरीब देशों के अहित में न हो.

@आदि

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पारदर्शिता की क्रांति जरूरी~?

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विश्व सम्विधान विश्व सरकार, सच्ची आवाज़ और 47 अन्य लोग के साथ
रिकार्ड व पारदर्शिता @
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देश में काफी कुछ ऐसा हो रहा है जिसका कोई रिकार्ड नहीं . जिसका कारण नजरिया व नियति स्पष्ट,पारदर्शी ,स्वच्छ,श्रेष्ठ ,सम्वैधानिक आदि न होना है.ओशो ने जो बोला ,उसके रिकार्डिंग की व्यवस्था की.आर एस एस/सङ्घ व उसके घटकों के बारे में चाहें कोई कुछ भी कहे.हम नगेटिब में भी पाजटिव खोजते रहे हैं. उनकी कुछ मीटिंग्स में हमे जाना हुआ.हमने देखा है ,कोई भी जो कोई बात बोलता है,उसे एक व्यक्ति लिखता जाता था.जिसे फिर नोटिस बोर्ड पर चिपका दिया जाता है.विभिन्न संस्थाओं में ऐसा होना चाहिए.उनके विद्यालयों में किसी अध्यापक से यदि कोई स्पष्टीकरण मांगना होता तो इस बात की सूचना वहां उस अध्यापक को लिखित रूप में दी जाती.आदि आदि.
हम जो भी लिख रहे हैं ,वह एक रिकार्ड है.हमारे बोलने से वो अच्छा है.हम भी बोलेगे, लेकिन रिकार्डिंग की व्यवस्था के साथ.
जिन्हें हमारे लेख पसन्द नहीं वेलिखित रूप में कमेंट्स में अपना तर्क रख सकते हैं.यों खाली बिन रिकार्ड का विरोध करना कायरता व अधर्म ही है.यदि बात करना है तो उसके रिकार्ड की भी व्यवस्था करें.यों खाली विरोध का वातावरण बनाना गैरकानूनी है. अभिब्यक्ति का अधिकार जनतन्त्र की एक विशेषता है.देश व समाज की सम्वैधानिक दिशा के लिए भाईचारा रखते हुए रिकार्ड व पारदर्शिता भी आवश्यक है.
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8 मिनट ·
गोपनीयता: जनसाधारण ——by @UC Browser

सोमवार, 28 सितंबर 2015

पारदर्शिता की क्रांति जरूरी~?

टिप्पणियाँ - संपादित करें · हटाएँ
विश्व सम्विधान विश्व सरकार, सच्ची आवाज़ और 47 अन्य लोग के साथ
रिकार्ड व पारदर्शिता @
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देश में काफी कुछ ऐसा हो रहा है जिसका कोई रिकार्ड नहीं . जिसका कारण नजरिया व नियति स्पष्ट,पारदर्शी ,स्वच्छ,श्रेष्ठ ,सम्वैधानिक आदि न होना है.ओशो ने जो बोला ,उसके रिकार्डिंग की व्यवस्था की.आर एस एस/सङ्घ व उसके घटकों के बारे में चाहें कोई कुछ भी कहे.हम नगेटिब में भी पाजटिव खोजते रहे हैं. उनकी कुछ मीटिंग्स में हमे जाना हुआ.हमने देखा है ,कोई भी जो कोई बात बोलता है,उसे एक व्यक्ति लिखता जाता था.जिसे फिर नोटिस बोर्ड पर चिपका दिया जाता है.विभिन्न संस्थाओं में ऐसा होना चाहिए.उनके विद्यालयों में किसी अध्यापक से यदि कोई स्पष्टीकरण मांगना होता तो इस बात की सूचना वहां उस अध्यापक को लिखित रूप में दी जाती.आदि आदि.
हम जो भी लिख रहे हैं ,वह एक रिकार्ड है.हमारे बोलने से वो अच्छा है.हम भी बोलेगे, लेकिन रिकार्डिंग की व्यवस्था के साथ.
जिन्हें हमारे लेख पसन्द नहीं वेलिखित रूप में कमेंट्स में अपना तर्क रख सकते हैं.यों खाली बिन रिकार्ड का विरोध करना कायरता व अधर्म ही है.यदि बात करना है तो उसके रिकार्ड की भी व्यवस्था करें.यों खाली विरोध का वातावरण बनाना गैरकानूनी है. अभिब्यक्ति का अधिकार जनतन्त्र की एक विशेषता है.देश व समाज की सम्वैधानिक दिशा के लिए भाईचारा रखते हुए रिकार्ड व पारदर्शिता भी आवश्यक है.
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शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

जातिब्यबस्था के खिलाफ आगाज़???

ये अच्छी बात है कि अब आरक्षण के खिलाफ वातावरण बनने लगा है.हम भी आरक्षण के खिलाफ हैं,लेकिन आरक्षण की समाप्ति से पहले हम जातिव्यवस्था के खिलाफ कानून चाहते है.

संयुक्त राष्ट्र सङ्घ  व विश्व बैंक केंद्र सरकार से दो बार जातिव्यवस्था के खिलाफ कुछ करने के कह चुका है लेकिन इस सम्बन्ध में देश के अंदर कोई भी सरकार व संस्था जातिवाद के खिलाफ आंदोलनात्मक कार्यवाही नहीं चाहता.ये देश के सामने विडम्बना है कि लोग जातिगत आरक्षण के खिलाफ तो हो रहे हैं लेकिन अन्य जातिगत व्यवहारों  का विरोध नहीं क्र पाते,गैरजातियों में शादी का समर्थन नहीं कर पाते.

राष्ट्रिय एकता के लिए जातीबाद खत्म होना चाहिए ऐसा विधिज्ञ भी  मानते हैं..
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अंग्रेजी सरकार होती तो हम भी राजा राममोहन राय के पथ पर चल कर जातिप्रथा के खिलाफ कानून  बनबाने का प्रयत्न करते.अब हमें समझ आने लगा है कि समाजसुधारक क्यों नहीं चाहते थे कि अंग्रेज भारत छोड़ कर जाएँ? अम्बेडकर ने भी ठीक ही कहा था कि अधिकतर लोगों की आजादी का मतलब सत्ता परिबर्तन से है न कि आम आदमी की आजादी व सम्वैधानिक समान व्यबस्था?हमे तो आजादी भी संदिग्ध लगती है.इसका गवाह 200 वे फाइलें हैं जो अभी सार्बजनिक होनी बाकी हैं.

रविवार, 20 सितंबर 2015

जाति तोड़ो समाज जोड़ो!

आरक्षण विरोधी अभियान बनाम आरक्षण (वरीयता) और जातिवाद
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  (1)मन्दिरों में एक जाति विशेष के व्यक्तियों की नियुक्तियां रद्द की जॉय और प्रतियोगिता के द्वारा जातिवाद हीनता के आधार पर नियुक्तियां की जाएँ.
(2)श्राद पक्ष , घरेलु कर्मकांड आदि में जाति विशेष के व्यक्तियों के महत्व को रद्द किया जाये.

(3)गुजरात की तरह सब जगह सरकारी।पण्डितों की नियुक्ति की जाए,जो किसीएक जातिविशेष से  न हों
(4)गैर जातियों में।शादियों का विरोध करने के खिलाफ कानून बने

(5)जातिविरोधी कानून बने.
(6)अन्य

नोट:हम तो इतना ही ज्ञान रखते हैं कि हम व् जगत प्रकृतिअंश व ब्रह्मअंश हैं.जो किसी जाति मजहब धर्मस्थल किसी बिशेष रीति रिबाज आदि का मोहताज नहीं है.सभी को सम्मान की जरूरत है.

सत्य शोधक समाज की स्थापना

24 सितम्बर 1873: सत्य शोधक समाज की स्थापना
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4 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा के कोटगन गांव में जन्मे महात्मा ज्योतिबा फुले ने 24 सितम्बर 1873 ई को सत्य शोधक समाज की स्थापना की.गुलामगिरी व सर्वजनिक सत्य धर्म इनकी पुस्तकों के संग्रह हैं.इनका उद्देश्य दलितों ,महिलाओं व वंचितों को न्याय दिलाना था.

प्रथम आधुनिक शिक्षिका सावित्री फुले  उनकी पत्नी थीं.किसी जाति विशेष के पुरोहितों के बिना विवाह संस्कारों को उन्होंने बढ़ावा दिया व मुम्बई उच्च न्यायालय में उन्हें मान्यता दिलाई .

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सार्वजनिक सत्य धर्म !
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क्या है सार्वजनिक धर्म ? वह धर्म धर्म नहीं जो मानव जाति को एक न मान सके,ईश्वर को एक न मान सके.ईश्वर की बनाई चीजों का सम्मान न कर सके .
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सत्य शोधक समाज !
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सत्संगी कौन है? मुसलमान कौन है?हमारी नजर में वह जो सत में लीन है लेकिन संसार की चीजों में लीन नहीं है.अप्राकृतिक वस्तुओं में लीन नहीं है.समाज में कोई व्यक्ति हमें धार्मिक,आध्यात्मिक,ईश व्यक्ति नहीं  दीखता.सिर्फ शरीर व इन्द्रियोँ में जीने वाला कैसे धार्मिक,आध्यात्मिक,ईश भक्त ?

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गुलामगिरी!
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सभी गुलाम हैं -अप्राकृतिक  
के ,जातियो-मजहबी धारणाओं के .कोई ईश्वरीय विधान - प्रकृति विधान को न मान कृत्रिमता में जीता है.
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पुरोहितवाद बनाम जातिबाद!
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जातिबाद यदि गलत है तो एक विशेष जाति का प्रभाव क्यों?योग्यता को महत्व होना चाहिए.
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ashok kumar verma "bindu'"
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www.ashokbindu.blogspot.com

सत्य शोधक समाज की स्थापना

24 सितम्बर 1873: सत्य शोधक समाज की स्थापना
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4 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा के कोटगन गांव में जन्मे महात्मा ज्योतिबा फुले ने 24 सितम्बर 1873 ई को सत्य शोधक समाज की स्थापना की.गुलामगिरी व सर्वजनिक सत्य धर्म इनकी पुस्तकों के संग्रह हैं.इनका उद्देश्य दलितों ,महिलाओं व वंचितों को न्याय दिलाना था.

प्रथम आधुनिक शिक्षिका सावित्री फुले  उनकी पत्नी थीं.किसी जाति विशेष के पुरोहितों के बिना विवाह संस्कारों को उन्होंने बढ़ावा दिया व मुम्बई उच्च न्यायालय में उन्हें मान्यता दिलाई .

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सार्वजनिक सत्य धर्म !
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क्या है सार्वजनिक धर्म ? वह धर्म धर्म नहीं जो मानव जाति को एक न मान सके,ईश्वर को एक न मान सके.ईश्वर की बनाई चीजों का सम्मान न कर सके .
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सत्य शोधक समाज !
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सत्संगी कौन है? मुसलमान कौन है?हमारी नजर में वह जो सत में लीन है लेकिन संसार की चीजों में लीन नहीं है.अप्राकृतिक वस्तुओं में लीन नहीं है.समाज में कोई व्यक्ति हमें धार्मिक,आध्यात्मिक,ईश व्यक्ति नहीं  दीखता.सिर्फ शरीर व इन्द्रियोँ में जीने वाला कैसे धार्मिक,आध्यात्मिक,ईश भक्त ?

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गुलामगिरी!
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सभी गुलाम हैं -अप्राकृतिक  
के ,जातियो-मजहबी धारणाओं के .कोई ईश्वरीय विधान - प्रकृति विधान को न मान कृत्रिमता में जीता है.
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पुरोहितवाद बनाम जातिबाद!
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जातिबाद यदि गलत है तो एक विशेष जाति का प्रभाव क्यों?योग्यता को महत्व होना चाहिए.
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ashok kumar verma "bindu'"
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गुरुवार, 17 सितंबर 2015

जाति तोड़ो समाज जोड़ो!

आरक्षण विरोधी अभियान बनाम आरक्षण (वरीयता) और जातिवाद
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  (1)मन्दिरों में एक जाति विशेष के व्यक्तियों की नियुक्तियां रद्द की जॉय और प्रतियोगिता के द्वारा जातिवाद हीनता के आधार पर नियुक्तियां की जाएँ.
(2)श्राद पक्ष , घरेलु कर्मकांड आदि में जाति विशेष के व्यक्तियों के महत्व को रद्द किया जाये.

(3)गुजरात की तरह सब जगह सरकारी।पण्डितों की नियुक्ति की जाए,जो किसीएक जातिविशेष से  न हों
(4)गैर जातियों में।शादियों का विरोध करने के खिलाफ कानून बने

(5)जातिविरोधी कानून बने.
(6)अन्य

नोट:हम तो इतना ही ज्ञान रखते हैं कि हम व् जगत प्रकृतिअंश व ब्रह्मअंश हैं.जो किसी जाति मजहब धर्मस्थल किसी बिशेष रीति रिबाज आदि का मोहताज नहीं है.सभी को सम्मान की जरूरत है.