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रविवार, 30 जून 2013

तन इन्साँ आत्मा मुसलमान ?

हम भी इंसान हैँ वो भी इंसान हैँ
हिन्दू मुसलमाँ सिक्ख ईसा-
हम सब एक हैँ ये नाम यहीँ के

हमसब एक हैँ हम भी इंसान हैँ .


कुदरत ने न बनायी जातियाँ हैँ

कुदरत के न बनाये ये मजहब हैँ ,

इन्सान को कुचलने वालोँ को कुचल दो

हम सब एक हैँ हम भी इन्सान हैँ .


हमारा मन रोया दिल तड़फा है

किसलिए ?इसलिए कि जाति मजहब ने ,

जाति मजहब ने हमारा ईमान तोड़ा है .


दोष था इतना हमारा-

हमने न खुदा ढ़ूँढ़ा धर्मस्थलोँ मेँ

हर इन्सान लगा काफिर हमेँ

खुदा की ही बनायी वस्तुओँ को रौंदा है .


अपने को पहचान दो ,

अपने को क्या इन्सान पहचाना है ?

हम सब एक हैँ ,हम सब एक हैँ ,

हमसब एक है हम भी इंसान हैँ .

<ASHOK KU. VERMA 'BINDU'>
--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

मंगलवार, 25 जून 2013

आपदाओँ से कैसे निपटेंगे जब....?!

खतरनाक कौशल प्रशिक्षण से नाता छोँड़ दिया ,

दुर्गमताओँ मेँ रहने का साहस हमने छोंड़ दिया .




कौन गया दक्षिणी ध्रुव कौन गया उत्तरी ध्रुव ?

हमसे अच्छे जापानी ,सुनामी का सीना चीर दिया .

हमारा तन कुदरत ,हमने कुदरत से नाता तोड़ दिया

निर्जीवताओँ की चादर ओढ़ी ,कुदरत का संग छोँड़ दिया .

पुलिस खड़ी क्योँ बौनी बन ? सेना ने थामा दामन

आपदाओँ बीच गीदड़ोँ ने यान से सफर सुहाना बना लिया .


शेरोँ को राहत हेतु रोके ,खुद राहत का ड्रामा किया

जातिवाद मजहब के वास्ते ऐसे नेताओ को वोट दिया .

अमेरीकी फौजोँ को गीता का संदेश ,यहाँ सेक्यूलरोँ ने हिजड़ा बना दिया

पोप के लिए न गीता के श्लोक साम्प्रदायिक,यहाँ गाँधी की टोपी ने रुला दिया .
लादेन को मारा जिस टीम ने,उस टीम सा है प्रशिक्षण कहाँ ?
हनुमान जैसा भक्त कहाँ ?हनुमान जैसा होना छोँड़ दिया .
दुर्गमताओँ मेँ रहने का साहस हमने छोँड़ दिया
खतरनाक कौशल प्रशिक्षण........

रविवार, 16 जून 2013

विद्यालय प्रशासन समितियोँ मेँ कैसे लोग चुने जाएँ ?

इन दस वर्षोँ से शिक्षा जगत के साथ सबसे बड़ी बिडम्बना ये है कि 20प्रतिशत
से ऊपर के विद्यार्थी जिज्ञासा ,स्वभाव ,नजरिया आदि से विद्यार्थी नहीँ
हैँ और दो प्रतिशत से अधिक शिक्षक शिक्षक नहीँ .हम तो यही कहेँगे कि
नियति ,हेतु व नजरिया की दृष्टि विद्यार्थी व शिक्षक के व्यवहारिक जीवन
से ज्ञान कोसोँ दूर है.शास्त्रोँ,महापुरुषोँ व ज्ञान के विपरीत आज आज का
शिक्षक व विद्यार्थी ही खड़ा है .विद्यालय प्रबंधन भी आज जिनके हाथोँ मेँ
है वे शिक्षा की एबीसीडी तक नहीँ जानते है .अस्सी प्रतिशत से अधिक
विद्यालयोँ के संचालन की नियति अर्थ व प्रदर्शन है सिर्फ .
विद्यालय प्रशासन की दृष्टि से विद्यालयोँ के तीन स्तर हैँ
-सरकारी,अर्द्ध सरकारी व स्ववित्तपोषित विद्यालय.सरकारी व अर्द्धसरकारी
विद्यालयोँ मेँ शिक्षा बजट का 80प्रतिशत लगभग खर्च होता है,लेकिन परिणाम
बीस प्रतिशत से भी कम है.यहाँ विद्यार्थियोँ का प्रतिशत भी कम है .इन
विद्यालयोँ के अध्यापक व कर्मचारी हैँ ,उनके बच्चे तक इन विद्यालयोँ मेँ
नहीँ हैँ .जरुर दाल मेँ कुछ काला है .इन विद्यालयोँ का प्रशासन वास्तव
मेँ क्या चाहता है ?क्या सिर्फ कागजी पुलावोँ को पकाता रहना चाहता है .?

सरकारी व अर्द्धसरकारी विद्यालयोँ के अतिरिक्त अन्य विद्यालय अर्थत
स्वपोषित विद्याल तीन स्तर के हैँ-(1)राष्ट्रीय,प्रादेशिक या क्षेत्रीय
समितियोँ के अन्तर्गत(2)स्थानीय जागरुक हीन समितियोँ के
अन्तर्गत(3)व्यक्तिविशेष या परिवार विशेष के अन्तर्गत
.इन तीन स्तरोँ मेँ से पहले स्तर के विद्यालयोँ की दिशा दशा ठीक है
.दूसरे व तीसरे स्तर के स्वपोषित विद्यालयोँ मेँ अध्यापक ,प्रधानाचार्य
,विद्यालय प्रशासन समिति सदस्य या व्यक्ति परिवार विशेष की मनमानी होती
है ,दबंगता होती है .यहाँ तक कि इन विद्यालय प्रशासन की समितियोँ मेँ एक
दो सदस्योँ के अतिरिक्त न्यायवादी ईमानदार बौद्धिक चिन्तन का अभाव होता
है ,जो विश्व मानक शैक्षिक मानदण्डोँ के अनुकूल हो .किन्हीँ किन्हीँ
विद्यालय प्रशासन समितियोँ को देखकर हमेँ आश्चर्य व अफसोस होता है कि सभी
के सभी सदस्य अपने धन्धे व्यवसाय या अपने लाभ की धुन के सामने समितियोँ
की बैटकेँ तक सुचारु रुप से नहीँ चलवा पाते व विभिन्न समस्याओँ पर तर्क
वितर्क की क्षमता तक नहीँ रखते .सिर्फ व्यक्तिगत सोँच हाबी रहती है .


हमारी नजर मेँ एक विद्यालय है .जहाँ कोई प्रबंधक शायद इसलिए
दायित्व निभाता है कि विद्यालय की आय का कुछ हिस्सा स्वयं हजम करना
है .विद्यालय की आय को हजम पर लड़ाई होती है,ऊपर समाज मेँ दिखावा कुछ और
होता है .समिति व विद्यालय के ईमानदार आदर्शवादी एक दो सदस्य तो सिर्फ
अपनी भड़ास निकालने के लिए होते हैँ ,भड़ास निकालने दो सुन लो .करो अपने मन
की .कुछ विद्यालयोँ मेँ जो अध्यापक प्रतिदिन विद्यालय के सर्वेसर्वा के
सामने जाकर नमन करते रहते हैँ व इधर की उधर करते रहते हैँ .चिकनी चुपड़ी
लगाते रहते हैँ ,वे अच्छे होते है .यहाँ तक कि कुछ को उनकी हाँहजूरी मेँ
ही मजा आता है .


विद्यालय प्रशासन व समितियोँ मेँ सेवानिवृत्त अध्यापक ,शिक्षा
विभाग से सेवानिवृत्त कर्मचारी ,दार्शनिक ,तटस्थ विचारक ,मानवतावादी आदि
सदस्य होना चाहिए .शिक्षा व विद्यालय समितियोँ मेँ पद व सम्मान का निर्णय
किसी धर्म ,जाति ,बाहुबल ,धनबल आदि के आधार पर न होकर विचारोँ व समय
समर्पण के आधार पर होना चाहिए .जिनको विद्यालय के कर्मचारियोँ अध्यापकोँ
को समझने ,जानने ,दुख दर्द परेशानियोँ को समझने का वक्त नहीँ होता क्या
उन्हेँ पद संभालना चाहिए .?

--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

शनिवार, 15 जून 2013

हम भी मुसलमान नहीँ क्या?

हमारा नाम अब्दुल,फहीम,शहबाज आदि नहीँ है.अशोक,सुरेश आदि है.हम मस्जिद
आदि धर्मस्थलोँ पर नहीँ जाते.मुस्लिम रीति रिवाज,वेषभूषा आदि इस्तेमाल
नहीँ करता.तो भी क्या हम मुसलमान नहीँ हो सकते?
हर आत्मा मुसलमान ही है.परमात्मा एक है व उसकी फिलासपी भी एक है.सत्य के
व्यक्त की भाषा चाहेँ कोई भी हो,उस पर खड़े मजहब चाहें कितने भी हो लेकिन
निर्गुण आधार एक ही है.जो मुस्लिम है.मुस्लिम होने से पूर्व सनातन है.एक
प्रश्न है वर्तमान हिन्दू क्या सनातन आधार पर है?क्या उसका नजरिया
भाव,विचार आदि निर्गुण धारामय है?किसी ने कहा है कि यदि मुसलमान शाकाहारी
हो जाए तो हिन्दू से पहले मुसलमान सनातन हैँ .हमारी इस विचार धारा से
<www.vedquran.blogspot.com>के मुस्लिम संस्थापक
हमारे इन विचारोँ से संतुष्ट है .हम कहते रहे हैँ शब्दोँ व वाक्योँ की
भाषा या उसे कहने वाले व्यक्ति पर मत जाओ,शब्द व वाक्य मेँ छिपी फिलासपी
पर जाओ.हमसे कोई पूछे 'हिन्दू' व 'मुसलमान' शब्द मेँ से कौन सा शब्द
स्वीकार्य है?हमारा उत्तर है -'मुसलमान'.हिन्दू शब्द का क्या मतलब
है?मुसलमान शब्द क्या मतलब है?हिन्दू शब्द क्षेत्रीयता का प्रतीक है
लेकिन मुसलमान शब्द एक आध्यात्मिक व आर्य गुण है-सत पर अडिग रहना.हम क्या
सत पर अडिग नहीँ हो सकते ?वेशभूषा,रीतिरिवाज,जाति,मजहब,धर्मस्थल आदि तो
मानव निर्मित हैँ.इनका क्या?महत्वपूर्ण तो व्यक्ति का नजरिया,भाव,विचार
आदि है.

हम कौन हैँ?
.
.
अपने को पहचाने बिना ज्ञान अधूरा है.हम कौन हैँ?जाति मजहब से निकलकर
सार्वभौमिक ज्ञान के आधार पर हमेँ अपना परिचय प्राप्त करना ही चाहिए.हम
सिर्फ हड्डी मांस का बना शरीर नहीँ हैँ .हम व जगत निरन्तर प्रकृति के भोग
मेँ है.प्रकृति के साथ हम व जगत दो समभाग (श्री
अर्द्धनारीश्वर)हैँ-प्रकृतिअंश व ब्रह्मांश.परमात्मांश अर्थात आत्मा से
पहले हम अर्थात आत्मा प्रकृति के साथ चार स्तर पर हैँ-स्थूल,भाव,सूक्ष्म
व मनस जगत.कुदरत व ईश्वर की नजर मेँ हमारी कोई जाति या मजहब या कोई भाषा
नहीँ.


संसारिक माया मोह से निकल:स्वलोक बनाम अन्तर्लोक
.
.
निरा भौतिकवाद या सांसारिक माया मोह या निर्जीव वस्तुओँ से लगाव सिर्फ
मानव जीवन को खूबसूरत नहीँ बना सकता.ईश्वर का द्वार है आत्मा .आत्मा पर
पकड़ बनाये बिना हम ईश्वर तक नहीँ पहुँच सकते.मोहम्मद साहब रमजान के महीने
मेँ हिरा की पहाड़ी पर जाकर सपरिवार रहते थे और खुदा के शरण मेँ रहते थे
संसार को भुलाकर.संसार को भुलाकर अर्थात बाह्य जगत से निकलकर अन्तरजगत या
आत्म जगत मेँ पहुँचना अति आवश्यक है.


'स्व'क्या है?स्व है आत्मा या परमात्मा.हम जीवन भर व्यस्त रहते हैँ
लेकिन सांसारिक वस्तुओँ के लिए ,जिनका सम्बंध स्व से नहीँ है
.रोटी,कपड़ा,मकान आदि का सम्बंध स्थूल शरीर से है अन्तर्शरीर से
नहीँ.अखिलेश आर्येन्दी का कहना है कि प्रभु से प्राप्त ऊर्जा 'स्वलोक'की
ऊर्जा कही जाती है .प्रमाण,विकल्प,विपर्यय,निद्रा व स्मृति के लिये जो
ऊर्जा मिलती है वह सीधे परमपिता परमेश्वर से प्राप्त होती है.स्व क्या
है?स्व है आत्मा या परमात्मा.स्व के करीब हम कैसे पहुँच सकते
हैँ?सांसारिक वस्तुओँ या निर्जीव
वस्तुओँ,शरीर,इन्द्रिय,जाति,मजहब,धर्मस्थल आदि से चिपक कर क्या हम स्व तक
पहुँच सकते हैँ.स्व के लिए कौन जीता है?जिन्दगी निर्जीव वस्तुओँ के लिए
गँवा देते हैँ,पचास साल से ऊपर की उम्र मेँ आते हैँ तो टाँय टाँय
फिस्स.तब महसूस होता है न ही राम का आनन्द लिया न ही माया का .प्रकृति व
ब्रह्म दोनोँ मेँ समभोग आवश्यक है .सिर्फ प्रकृति या ब्रह्म मेँ जीने से
जीवन की सम्पूर्णता को नहीँ जिया जा सकता.हिन्दू पौराणिक दर्शन मेँ श्री
अर्द्धनारिश्वर स्वरुप के पीछे निर्गुण यही है कि प्रकृति व ब्रह्म दोनोँ
के सम अस्तित्व का समसम्मान.

कोई पंथ जब खड़ा होता है?
.
.
.
जगत का आधार एक ही है .परमसत्ता एक ही है.बस,उसको व्यक्त करने का तरीका
अलग अलग है.सनातन से निकल कर जगत मेँ कुछ भी नहीँ.बस,मानव निर्मित
बस्तुओँ को छोँड़कर.शाश्वत व अनन्त शक्तियां,सार्वभौमिक सत्य,पंच तत्व व
नौ ग्रह आदि से निकल कर कुछ भी नहीँ.


हमारे संज्ञान के आधार पर इस्लाम बड़ी विषंगतियोँ,समस्याओँ व
कामुक समाज आदि के बीच से निकलकर सनातन आधार पर ही हुआ.प्रारम्भिक अवस्था
मेँ वास्तविक इस्लाम मक्का व मदीना मेँ ही था.शेष दुनिया मेँ इस्लाम के
नाम पर भ्रम फैलाया गया.अन्य क्षेत्रोँ मेँ इस्लाम को लेकर जो आगे बढ़े वे
कौन थे व कैसे थे?हमारी नजर मेँ वे काफिर थे? खलीफाओँ के शासन तक सब ठीक
था .आगे लुटेरे शासक होने लगे और लोभवश इस्लाम का झण्डा ले शेष दुनिया
मेँ बढ़ गये.हमारे संज्ञान के आधार पर आज एशिया मेँ इस्लाम का जो स्वरुप
हमारे सामने है वास्तव मेँ यदि खदीजा बेगम जीवित होतीँ तो इस्लाम सच्चे
अर्थोँ मेँ वैदिक धर्म का अंग होता.कुरआन मेँ ओ3म है.


अलिफ=अ=परमात्मा या अल्लाह

लाम=उ=प्रकाश करने वाला या जीवात्मा

मीम=म=कल्याणकारक या प्रकृति


कुरआन के अलिफ लाम मीम का वास्तविक अर्थ यही होना चाहिए था.



श्रीमद्भागवद्गीता ,अध्याय 17 के अनुसार वैदिक सिद्धान्तोँ को मानने
वाले पुरुषोँ की शास्त्रविधि से नियत यज्ञ (अभियान),दान और तप रुप
क्रियाएं सदा "ओ3म" इस परमात्मा के नाम का उच्चारण करके आरम्भ होती
है,"तत"नाम से कहे जाने वाले परमात्मा के लिये ही सब कुछ है,ऐसा मानकर
मुक्ति चाहने वाले मनुष्योँ द्वारा फल की इच्छा से रहित होकर अनेक प्रकार
की यज्ञ (अभियान)और तपरुप क्रियाएं तथा दानरुप क्रियाएं की जाती हैँ
."सत" -ऐसा यह परमात्मा का नाम सत्तामात्र मेँ और श्रेष्ठ भाव मेँ प्रयोग
किया जाता है तथा प्रशंसनीय कर्म के साथ सत शब्द जोड़ा जाता है .हमारी नजर
मेँ अलिफ लाम मीम का अर्थ भी ओ3म तत सत ही सम्भवत: होना चाहिए .उसी त्री
गुणी या तीन प्रकार के निर्देशित किए जाने वाले परमात्मा को ही पूजो.


"ला ताबूदून इल्लाल्लाह!"
(बकर 83)अर्थात अल्लाह के सिवाय किसी को न पूजो.

--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

रविवार, 9 जून 2013

अंतिम इच्छा

कुछ लोगो के कहने के बाबजूद हम अपने परिजनोँ व कुछ अन्य सहयोगियोँ के
साथ उस मकान मेँ रहने लगा था.अनेक व्यक्तियोँ ने कहा था कि इस मकान मेँ
मत रहना ,अशुभ व प्रेत बाधा युक्त है .हम मुस्कुरा कर बोले कि मन मेँ
भगवान तन मेँ निदान .सब प्रभु माया नगेटिव हो या पाजटिव.भय
क्योँ?सुप्रबंधन,अध्यात्म ,भगवत्ता,मानवता आदि के लिए तथा अभय भी इसीलिए
न मोह ,लोभ के लिए न ही सिर्फ ऐन्द्रिक लाभ के लिए भय अभय.

तीन दिन बाद प्रतिकार की उम्मीद जताई जा रही थी .एक बोला ये मकान
किसी को नसीब नहीँ हुआ.जो भी आया मौत के भवर मेँ समा गया .हम बोले क्या
है जगत क्या है ब्रह्म और जीवन ?जब ये जान जाओगे तो सारे भ्रम ,भेद व भय
दूर हो जाएंगे .मौत तो एक बार आनी ही है .डर क्या हम कदम पीछे हटा लेँ
?क्षत्रिय होकर भी कायरता भी बातेँ ?हम ब्रह्म को स्मरण मेँ रख मकान मेँ
घुस गया लोग हमेँ डराते तो रहे लेकिन मेरे करीब न आये.एक व्यक्ति ने सलाह
दी कि इस मकान मेँ रहने के लिए आफिस से लिखित अनुमति ले लो .हमने एक
आफिसर मेँ जाकर सौ वर्ष के लिए स्वयं ,अपने परिवार ,उत्तराधिकारियोँ व
अपनी कमेटी के अधिकारियोँ को रहने के लिए लिखित अनुमति प्राप्त कर ली
.अधिकारी बोला कि इस मकान मेँ जो भी आया टिक न सका या फिर...हम बोले कि
सब प्रभु या मेरे कर्म की मर्जी ?

तीन दिन बाद यानि कि सोमवार ,10जून2013ई की रात.....


एक विशालकाय अजगर कमरे के सामने आ पहुँचा और -आ बाहर निकल .अपनी
अंतिम इच्छा बता .



हम शान्त पद्मासन मेँ बैठे थे कि

'कल ?'

रविवार,ज्येष्ठ शुक्ल .1,09/06/2013ई0 !11.00PM !



अधिकारी के यहाँ से आवास के लिए अधिकार पत्र लाने से पहले
हम कमरे के अंदर मेडिटेशन मेँ था .कमरे के बाहर सफेद कपड़ोँ मेँ मेरे
सहयोगी जन उपस्थित थे.इधर गोवा मेँ भाजपा कार्यकारिणी की मीटिंग का आज
आखिरी दिन था.जहाँ मोदी को अधिकार पत्र ?सन2014 लोकसभाचुनाव प्रचार समिति
का नरेन्द्र मोदी को प्रमुख बना दिया .जिसका देशभक्त जनता काफी दिनोँ से
इन्तजार कर रही थी.तमाम नगरोँ मेँ खुशियोँ की लहर छा गयी .यहाँ भी ढ़ोल
ढमाके बजने लगे व आतिशबाजी होने लगी.


हम मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर निकले .
एक किशोर लड़की बोली ,सर !मोदी चुन लिए गये .बरामडे मेँ रखी टीवी मेँ
नरेन्द्र मोदी को दिखाया जा रहा था .
हमने एक सेकण्ड भर के लिए अपनी दोनोँ आंखेँ बंद कीँ और आगे बढ़
गया. कुछ लोग मेरे पीछे पीछे चल दिए .
लगभग चार पाँच मिनट बाद ही हम अधिकारी के आफिस पहुँच गये थे .जहाँ
अधिकारी से आवास पत्र पाकर लोग फूले नहीँ समा रहे थे .
दृष्टा बन या कर्ता बन रहिए ,ये एक छोटा सा लक्ष्यपग है ,लक्ष्य काफी दूर
है .ऐसा हम बोले .


एक विशालकाय अजगर कमरे के सामने आ पहुँचा और -आ बाहर निकल .अपनी
अंतिम इच्छा बता .

हम आंख बंद कर कमरे मेँ बैटा था .


मन ,मस्तिष्क व कमरे मेँ आवाज गूँज रही थी -"परमात्मा हर वक्त
हमारे साथ है .हमारी कोई समस्या नहीँ है .जो भी समस्याएं हैँ वे सब मन
,शरीर व जगत की हैँ .हमारी नहीँ .हम तो परमात्मांश हैँ ."


हम जब उठ कर कमरे से निकलने को हुए तो स्वेत वस्त्रधारी अनेक जन आ
पहुँचे .एक जन बोले,सर!बाहर खतरा है .


"खतरा ,कैसा खतरा ?आत्मा या परमात्मांश को भी खतरा .?"


हम कमरे से बाहर ज्योँ ही निकला तो विशालकाय अजगर ने फुस्कार लगायी.

" ठहरो ,हमेँ खुशी है कि आप हमारे पास आये .हम धन्य हुए .हमारा ये
शरीर व इस शरीर को मौत भी आपके काम आयेगी ,हमेँ खुशी होगी ."


" तू तो डरता ही नहीँ.मैने तो सुना था तू तो बड़ा बुजदिल व कायर है ."


"अपने मिशन मेँ कैसी कायरता व बुजदली ?ब्रह्म के साथ या सत संग के
साथ कैसी कायरता व बुजदली ?जो दबंगता व साहस को लिए घूमते हैँ अपने
स्वार्थोँ या उन्माद मेँ लिए घूमते हैँ ."


अजगर बोला ,अच्छा अपनी अंतिम इच्छा बता .

"अन्तिम इच्छा?मेरी अन्तिम इच्छा पूरी करने की क्षमता रखते हैँ आप ?"

अजगर तेजी से फुस्कारा ,मेरा क्रोध क्योँ बढ़ाता है तू ?


" हम क्रोध बढ़ाते हैँ ?अपनी गुस्सा पूरी उतार लेँ आप ."


"तू कैसा इन्सान है?मरने से नहीँ डरता,अच्छा अपनी अन्तिम इच्छा बता ."


"पहली बार मिले हो बातचीत कर लो .अपना मन्सूबा पूरा कर लेना .मेरे
शरीर को मारना चाहता है ,मार देना."

"शरीर को ?"

कुछ देर तक खामोशी छायी रही .

"अच्छा मरने को तैयार हो जा ."

"हम शरीर नहीँ हैँ.आप मेरे शरीर को ही मार सकते हो हमेँ नहीँ ."

"तुम कौन हो ?"

"आप हमसे पूछते हो ?आप पिछले जन्म मेँ एक महान संत थे .आप....."


फिर खामोशी छा गयी .


कुछ देर बाद एक सर्प ने आकर एक मणि उगल दी .


अजगर बोला ,लो ये मणि लो .


"हमारी आवश्यकताएं पूरी होती रहेँ ,बस.ये मणि हमेँ नहीँ चाहिए ."

"अपने सिर पर धारण करो इसे ."


हम मुस्कुराये "अपने सिर पर धारण करेँ इसे ?नहीँ ."

"अब ये तुम्हारे लिए ही है ."


वह मणि फिर हमारे माथे पर समा गयी .

--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

रविवार, 2 जून 2013

नक्सलियोँ गांधी की लाठी पकड़ो और अन्ना को नेता चुनो,

सन1967ई0 मेँ पश्चिमी बंगाल के नक्सलबारी से वामपंथी उग्रवाद विचारधारा
नक्सलवाद पैदा हुई.जब ये नक्सलवाद पैदा हुआ था तो बुद्धिजीवियोँ व
समाजसेवकोँ की प्रशंसा का विषय था क्योकि तब ये खेतिहर मजदूरोँ ,भूमिहीन
मजदूरोँ ,गरीब किसानोँ आदि का पक्षधर होते हुए अहिंसक था .धीरे धीरे कर
यह आन्दोलन हिँसक हो गया .

नक्सलवाद का हिंसक रुप व राष्ट्रविरोधी तत्वोँ से गठजोड़ मानवता के लिए
घातक है ."क्रान्ति बंदूक की गोली से निकलती है"-यह शाश्वत सत्य नहीँ है
.वर्तमान मेँ हिंसक नक्सलवाद से आंध्रप्रदेश ,मध्यप्रदेश ,महाराष्ट्र
,ओडिशा ,उत्तर प्रदेश ,पश्चिमी बंगाल आदि राज्य प्रभावित हैँ.पूरे देश भर
मेँ जिसके 22हजार से ज्यादा सशस्त्र कैडर काम कर रहे हैँ .हिंसक नक्सलवाद
से अत्यधिक प्रभावित राज्य झारखण्ड ,छत्तीसगढ़ आदि हैँ.उत्तरप्रदेश तक भी
हिंसक आन्दोलन की नींव रखी जा चुकी है .आनन्द राय ,लखनऊ दैनिक जागरण की
माने तो अब पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलोँ समेत शाहजहाँपुर ,बहराइच
,बरेली ,लखीमपुर खीरी जैसे जिलोँ मेँ भी ये लोग निरन्तर अपना संगठन मजबूत
कर रहे हैँ.वहीँ दूसरी ओर अहिंसक नक्सली आन्दोलन की महक ब्लागर पर अशोक
कुमार वर्मा 'बिन्दु' की "तन्हाई के कदम"आदि कहानियोँ से महसूस की जा
सकती है.वास्तव मेँ नक्सलवाद का हिंसक स्वरुप खत्म ही हो जाना चाहिए .
हर हालत मेँ खत्म हो जाना चाहिए .


आखिर क्योँ हिंसक नक्सलवाद ?जयपुर की एक कोर्ट तक को कहना पड़ा है कि
पुलिस जांच मेँ नेता ,मंत्री आदि हस्तक्षेप कर माफियाओँ व अपराधियोँ को
आश्रय देँगे तो नक्सलवाद पनपेगा ही . हालांकि शोषण ,अन्याय ,मनमानी
,पक्षपात आदि के खिलाफ व विभिन्न नियुक्तियोँ एवं प्रत्याशी चयन मेँ
नारको परीक्षण ब्रेनमेपिंग आदि अनिवार्य करने के लिए अहिंसक नक्सलवाद तेज
ही चाहिए लेकिन हिंसक नक्सलवाद पर तेजी से लगाम लगना चाहिए .
लेकिन अफसोस इस बात का भी है कि जो हिंसक नक्सलवाद के खिलाफ खड़ा है वह भी
कहता फिरता है कि टेंढ़ी अंगुली से ही घी निकलता है .भगत सिंह राजगुरु आदि
की प्रशंसा करता है व हिंसा से भरे अपने ग्रंथोँ का समर्थन करता है
.हिंसा की जड़ व्यक्ति व समाज मेँ बड़ी गहरी है .खुले आम अनेक श्वेतबसन
अपराधी सड़कोँ पर घूमते हैँ व घरोँ ,दफ्तरोँ ,संस्थाओँ आदि मेँ मनमानी
करते हैँ .जिससे किसी न किसी रुप मेँ व्यक्ति शोषित हो रहा है . नेताओँ
,सिपाईयोँ के साथ कौन नजर आता है ? क्या कोई शरीफ , दबंगहीन
,जातिवादविहीन या साम्प्रदायिकताविहीन भी ? अन्याय ,भ्रष्टाचार ,लूट
,मनमानी ,अज्ञानता ,जातिवाद ,साम्प्रदायिकता आदि को खत्म किए बिना समाज
मेँ हिंसाहीन व्यवहार की कल्पना नहीँ की जा सकती .इस मनोविज्ञान को समझना
अतिआवश्यक है कि आखिर व्यक्ति क्योँ हिंसक होता है ? आखिर नक्सलवाद क्योँ
?फिर एक प्रश्न उठता है कि आखिर कब आदिकाल से ये दुनिया हिंसा ,आतंकवाद
आदि से मुक्त हुई है ?


बुद्ध आये ,जैन आये ,ईसा आये ,गांधी आये-न जाने कितने कितने आये
?सत्य व अहिंसा के पाठ को जीवन मेँ कितने व्यक्ति उतारे हुए हैँ ?कानून
के रक्षक ही 25 प्रतिशत तक अपने जीवन मेँ पालन नहीँ करते .विभिन्न संतोँ
व विद्वानोँ के अनुसार सन2011से2020ई0 तक का समय विशेष परिवर्तन का समय
है .गायत्री तीर्थ ,शान्ति कुञ्ज ,हरिद्वार के संस्थापक पं श्रीराम शर्मा
आचार्य के अनुसार -" यह समय युग परिवर्तन जैसे महत्वपूर्ण कार्य का है
.इसे आदर्शवादी सैनिकोँ के लिए परीक्षा की घड़ी कहा जाए ,तो उसमेँ कुछ भी
अत्युक्ति नहीँ समझनी चाहिए.पुराना कचरा हटता है और उसके स्थान पर नवीनता
के उत्साह भरे साधन जुटते हैँ .यह महान परिवर्तन की महाक्रान्ति की वेला
है .प्रबुद्धोँ को अनुभव करना चाहिए कि यह समय विशेष है ,हजारोँ लाखोँ
वर्षोँ बाद कभी कभार आता है .गांधी के सत्याग्रह और बुद्ध के परिव्राजक
बनने का श्रेय समय निकल जाने पर कोई भी नहीँ पा सकता .समय की प्रतीक्षा
तो की जा सकती है ,पर समय किसी की प्रतीक्षा नहीँ करता . "अनेक छोटे छोट
अहिंसक अभियान तेज हो चुके हैं ,नक्सलवाद अहिंसक हो उन्हेँ एक मंच पर ला
सकता है .


सबसे बड़ी विडम्बना है कि राजनैतिक दलोँ द्वारा वोट स्वार्थ की
रोटियां सेंका जाना .इसी का परिणाम है पंजाब मेँ कट्टरपंथ का उकसन ,उप्र
मेँ मुस्लिम कट्टरवाद ,हिन्दूकट्टरता का उदय आदि .जाति ,मजहब ,क्षेत्र
,वोटस्वार्थ आदि से ऊपर उठ कर नेताओँ व सरकारोँ को मानवता व नैतिकता के
आधार पर संवैधानिक वातावरण बनाना होगा .विधि साक्षरता को गाँव गाँव व नगर
नगर बढ़ावा देना होगा .हमेँ गांधी को स्वीकार करना ही होगा ,बुद्ध जैन ईसा
नानक को स्वीकार करना ही होगा .नक्सलियोँ हिंसा छोँड़ो और गांधी की लाठी
पकड़ो .

--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>