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रविवार, 15 नवंबर 2020

परमात्मा की सर्व व्यापकता को कौन समझे:अशोकबिन्दु


 परम् आत्मा के लिए नजरिया व श्रद्धा सिर्फ चाहिए।

अभी हम आत्मा को स्वीकार नहीं कर पाए है।

अपने व सबके अंदर दिव्यता की संभावना नही देख पाए हैं। हमने द्वेष, लोभ, लालच, काम,क्रोध में अपने को अंधा कर रखा हैं।सामने वाले के यथार्थ, सत्य के स्तर को न जान उसे अपने समझ से देखने की कोशिश करते हैं। n c/k g/प्रथम क्लास के बच्चे को पांच, आठ क्लास आदि वाला नुक्ताचीनी करता फिरता है, या nc/kg/प्रथम क्लास वाला पांच/आठ क्लास आदि वाले  नुक्ताचीनी करता रहता है।कुल, पास पड़ोस, संस्थाओं में कुछ लोग देखे जाते है जिनका काम दूसरे की बुराई करना धर्म है।उन्हें अच्छाई नहीं दिखती।जिसे सिर्फ आधा गिलास खाली दिखाई देता है । गुड़ का अध्ययन गुड़ समझ कर करना ही यथार्थ/सत्य है। खट्टा, नमकीन आदि समझ कर नही। हम देखते हैं अध्यापक/शिक्षित ही ऐसा नहीं कर पाते। दिव्यताओं की व्यापकता/सर्वत्रता को ब्राह्मण, पुरोहित, कथावाचक की अपने जीवन में स्वीकार नहीं कर पाता है।हम तुम अपने को हिन्दू समझो या गैर हिन्दू, नास्तिक समझो या आस्तिक ये  कुदरत के सामने नगण्य है। सतत स्मरण आवश्यक है। हमने परम् आत्मा को समझ क्या रखा है? कुदरत को समझ क्या रखा है?कुछ मिनट, की वह हमारी प्रार्थना, पूजा, नमाज आदि की देखता है?और 24 घण्टे हम जो करते हैं,वह नहीं देखता?ताज्जुब है।


#अशोकबिन्दु

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