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शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021

देशभक्ति .....?!#अशोकबिन्दु

 देश भक्ति !!



हमें नहीं लगता कि वर्तमान नेता, दल ,संस्थाएं, समाज व देश के ठेकेदार समाज व देश का भला कर सकते हैं।



देश की जनता, वनस्पति, जीवन जंतुओं के लिए जो आचरण, व्यापार, विनिमय आदि भविष्य के खतरनाक है वह के खिलाफ नेता, दल ,समाज व संस्थाओं के ठेकेदार क्यों नहीं बोलते?संसद ,विधानसभाओं  आदि में उस पर आवाज क्यों नहीं उठाते?


जो व्यवस्थाएं देश की जनता के लिए  घातक हैं उसको खत्म करने का जिम्मा क्यों नहीं लेते।



नशा व्यापार, खाद्य मिलावट, जातिवाद, जातिगत व मजहब के आधार पर कानून आदि देश के हित में नहीं है तो उन्हें खत्म क्यों नहीं किया जाता?



देश का सम्विधान यदि महत्वपूर्ण है तो उसके आधार पर चलने वालों के लिए ही सिर्फ नौकरियों को क्यों नहीं सृजनित किया जाता। देश के अंदर यदि सेक्युलर राज्य है तो फिर सरकारें, सरकारी कर्मचारी एक जाति मजहब में सार्वजनिक क्षेत्र में क्यों आचरण करते हैं?  जाति मजहब के आधार पर स्थापित संस्थाओं को सरकारी मान्यता क्यों दी जाती है?


मानवता से बढ़ कर नहीं है सामजिकता ::अशोकबिन्दु

 समाज व सामजिकता तो कायर होती है क्योंकि वह अन्धविश्वसों, कुरीतियों के खिलाफ जंग नहीं लड़ती।

वह सम्प्रदायों, जातिवाद में जीती है। उसका धर्म नहीं होता।


धर्म तो व्यक्ति का होता है।व्यक्तित्व तो व्यक्ति का होता है। मानवता तो मानव का होती है।


सत्यार्थी::दुर्योधन संस्कृति !?भाग 02 #कृष्णकांत शर्मा


                             श्रीअर्द्धनारीश्वर अवधारणा व अन्य आध्यात्मिक चिंतन से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि चेतना हर बिंदु पर दो सम्भावनाएं रखती है। प्रकृति व उसकी विविधता में ऐसा है ही।


ये जगत पक्ष - विपक्ष का सम्मिलन है। अकेला पक्ष या विपक्ष अराजकता को जन्म देता है इस भौतिक जीवन में।