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शनिवार, 10 दिसंबर 2011

11दिसम्बर ओशो जन्म दिवस:अभेद मेँ छलांग

किसी ने कहा है कि दुनिया मेँ लगभग दो प्रतिशत ही व्यक्ति देवतुल्य होते हैँ .जो विभिन्न सांसारिक भेदोँ से मुक्त रहते हुए देवत्व मेँ रहते है . शेष व्यक्ति लिंग ,जाति ,मजहब , क्षेत्र ,देश ,आदि की भावना मेँ बंध कर सत का रंग रुप परिवर्तित कर अपने अपने घर की खिड़कियों से ईश्वरीय दर्शन कर ईश्वरीय व सत की सहजता खो देते हैँ.जब देव तुल्य मानव इस धरती पर होते हैँ तो कुछ चंद व्यक्तियों के अलावा कोई उनके साथ नहीँ होता.मनुष्य ताख मेँ रख कर जिनकी तश्वीरोँ को पूजता है .उनके दर्शन से अलग होता है लोगोँ का नजरिया .यही जब अपने आराध्य के अनुसार चलने वालों को देखता है तो उनके विरोध मेँ खड़ा होता है अर्थात ये महापुरुषों के झूठे अनुयायी होते है.ओशो सभी भेदों से मुक्त हो सारी मानवता व सारी चेतना के हो चुके थे. तो ऐसे मेँ भेदोँ व प्रकृति व चेतना को बांट कर देखने वाला कैसे ओशो को स्वीकार कर सकता है.मैं ओशो से इण्टर क्लास के दौरान परिचित हो चुका था और स्नातक मेँ आते आते उनके साहित्य का सघन रुप से अध्ययन करने लगा था.मैँ जो महसूस करता आया था,उसकी व्याख्या मुझे उनके साहित्य मेँ मिली.वे एक श्रेष्ठ व्याख्याकार थे.

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