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सोमवार, 29 अगस्त 2011

सामाजिकता के दंश : सनातन धर्मयात्रा के समक्ष परम्परागत सामाजिकता के कलंक !

सन 2007ई0 के जुलाई मास की बात है,कालेज मेँ एडमीशन प्रक्रिया जारी
थी.मैं कक्षा 6ए और अरविन्द मिश्रा कक्षा 6ब के लिए एडमीशन कर रहे थे.दो
प्रवेशार्थी दो बार प्रवेशपरीक्षा मेँ बैठने के बाबजूद प्रवेशपरीक्षा मेँ
पास नहीं हो पाये थे. एक ही सत्र मेँ एक ही क्लास के लिए दो बार परीक्षा
.....?दोनों के दोनों प्रवेशपरीक्षा मेँ कुल टोटल ही शून्य था.ऐसे मेँ
मैँ उन दोनों का एडमीशन कैसे ले सकता था?


विद्यालय मेँ दो अध्यापक ऐसे हैं जो कि सामाजिकता के ठेकेदार
बनते हैँ.सामाजिकता के बहाने वे पीछे के रास्ते से भ्रष्टाचार,
मनमानी,आदि करने से नहीं चूकते.एक कहते हैं कि हमें तो समाज मेँ अपनी बना
के चलना है.बड़ेगुरुजी(प्रधानाचार्य) ईमानदारी पर चलेँ,वे वस्ती जिले से
हैं रिटायर हो कर वस्ती मेँ चले जाएंगे.हमेँ तो यहीं रहना है.हम
सामाजिकता को नहीं नकार सकते.तो क्या सामाजिकता का मतलब ये है कि नियमों
को ताख मेँ रख दिया जाए?मैं ने सोँचा.मुझसे इस अध्यापक ने कहा कि आपको इन
दो बच्चों के एडमीशन करने हैं.मैं बोला कि मैं कैसे कर सकता हूं इनका
एडमीशन?ये तो शून्य अंक रखते हैँ.तब वे बोले कि यहां रहना है तो ये
एडमीशन करना ही होगा.मैं बोला कैसे करना ?मैं नहीं कर सकता क्यों न कालेज
छोंड़ना पड़ जाए?वे बोले कि देखो समाज को लेकर चलना पड़ता है. मैं बोल दिया
कि मैं समाज को लेकर नहीं चलना चाहता.मैं सामाजिकता मेँ नहीँ.मैं
महापुरुषों से सीख लेना चाहता हूँ.आप जैसे सामाजिकता की वकालत करने वालों
से नहीँ.


मैं बचपन से ही सामाजिकता के नाम पर झूठ ,फरेब ,अन्धविश्वास
,कूपमंडूकता ,आदि को ही वर्दाश्त करता आया था.मैँ महसूस कर रहा था कि
धर्म, अध्याम,सत,आदि परम्परागत समाज के अपोजिट है.

सनातन धर्म की यात्रा पथ के पथिक कितने हैं?जो हैं परम्परागत भीड़ से
अलग थलग हैं.रामकृष्ण परमहंस जैसे अपने जिन्दा रहते परम्परागत भीड़ मेँ
उपेक्षित होते हैँ. मैं भी परम्परागत भीड़ मेँ उपेक्षित क्यों हूँ?मैं
उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता.आखिर मैं किनकी उम्मीदों पर खरा
उतरुँ?महापुरुषों व ग्रन्थों के सार के आधार पर या फिर इन निरे भौतिक
भोगवादी व संकीर्ण लोगों की नजर मेँ?


सनातनधर्म यात्रा के समक्ष सामाजिकता के DANSH बन कर आते हैँ भीड़ मेँ
बेहतर बनने के तरीके.सनातन यात्रा का संवाहक कौन है?सनातन यात्रा के पथ
पर जैन, बुद्ध, यहूदी, पारसी ,ईसाई, मुस्लिम, सिक्ख हो चलना तो समझ मेँ
आता है लेकिन हिन्दू होना नहीं.वह भी निरा सगुण हिन्दू की उम्मीदों के
आधार पर?सगुण निर्गुण के सम अस्तित्व(ब्रह्म व प्रकृति का समअस्तित्व)के
आधार पर ही मानव अपने सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास सम्भव है.मेरे लिए
निर्गुण साधना का मतलब है अपने भाव,विचार,स्वपन, कल्पना,चिन्तन जगत में
मोह,लोभ,काम,आदि व ऋणात्मक सोंच के खिलाफ पल प्रति पल विद्रोह का प्रयत्न
करते रहना.ऋषियों ,मुनियों ,नबियों, आदि सनातन धर्म का तानाबाना बुनने
वालोँ के यात्रा को आगे बढ़ाने वाले प्रथम पथिक जिन अर्थात जैन नजर आते
हैँ.जिन का अर्थ है-'स्व को पाने वाले जो इन्द्रियों के विजेता'.फिर
बुद्ध.....प्रज्ञा को प्राप्त हुए.आगे मुस्लिम..अर्थात ईमान पर पक्के
....सिक्ख यानि कि शिष्य.....इन सब गुणों अर्थात जैन ,बुद्ध
,मुस्लिम,सिक्ख,आदि को समाहित कर ही आर्य हो सकते हैं.अब बात आती है
हिन्दू की ,आज के वैश्वीकरण में मुझे हिन्दू होने पर गर्व नहीं है
.भारतीय होने पर गर्व है.मेरी भारतीयता ही मेरा हिन्दुत्व है.डा ए पी जे
अब्दुल कलाम मेरी दृष्टि मेँ हिन्दुत्व मेँ है.

बुद्ध दर्शन मेरे लिए प्रयोगात्मक धर्म है.जो कि सनातन यात्रा पर आज भी
मुझे आकर्षित करता है.संत रैदास कहते हैं कि मन चंगा तो कठौती मेँ
गंगा.आज मन चंगा किसका है?मैँ ऊपर लिख चुका हूँ कि निर्गुण साधना का मतलब
है कि अपने भाव, विचार, चिन्तन, स्वपन, आदि जगत मेँ माया मोह लोभ के
खिलाफ विद्रोह मेँ पल प्रति पल रहना.मैं यहां पर एक वाक्य का और प्रयोग
करता हूँ कि मन का राजा बनना.हमारे विचार भाव स्वपन समृद्ध ही होना
चाहिए.माया लोभ काम क्रोध मेँ ही मन का बह जाना हमारी समृद्धता नहीं है.

कबीर अपने शिष्य धर्मदास से कहते हैं कि जगत मेँ मैं जो देने आया हूँ वह
हमसे कोई लेने ही नहीं आता. कबीर के इस कथन के जिक्र के बाद मैँ अब कहता
हूँ कि ऐसे जगत मेँ जगत की उम्मीदों पे खरा न उतरना पाप नहीं है.पाप है
सत्य को सत्य से मुकुरना.सत्य से मुकुरने वाला काफिर है.चाहेँ वह अपने
को मुसलमान ही क्यों न समझता हो.


सन 2011ई0 की पांच अगस्त!

दूसरे एक अध्यापक बड़े सामाजिक है.वे पाँच मिनट में ही पांच हजार व्यक्ति
इकठ्ठे कर सकते हैं लेकिन......?भीड़ किसके साथ होती है?भीड़ का कोई क्या
धर्म होता है?वह तो उन्माद व सम्प्रदायों मेँ होती है.धर्म के पथ पर
व्यक्ति अकेला होता है.अब कहोगे कि अन्ना के साथ क्या भीड़ नहीं थी?अन्ना
जिसको लेकर चल रहे वह क्या धर्म नहीँ?

शनिवार, 27 अगस्त 2011

अन्ना आन्दोलन की लहर मेँ!

अन्ना हजारे यदुवंशी होने के नाते यदुवंशी श्रीकृष्ण के कुरुशान अर्थात
गीता संदेश के महत्व को जन जन तक पहुंचायें.

---------- Forwarded message ----------
From: "akvashokbindu@gmail.com" <akvashokbindu@gmail.com>
Date: Fri, 26 Aug 2011 17:18:07 +0000
Subject: अन्ना आन्दोलन की लहर मेँ!
To: hindi@oneindia.co.in, shekhartimes@gmail.com,
teamannahazare@gmail.com, dsvvconf2010@gmail.com, pehel@jagran.com,
freelance@oneindia.co.in, editor.bhadohinews@gmail.com,
divyayoga@rediffmail.com

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मेरें Nokia फ़ोन से भेजा गया

------Original message------
From: ashok kumar verma <akvashokbindu@gmail.com>
To: "ईपत्रिका हमारीवाणी"
<news@hamarivani.com>,<rachanakar@gmail.com>,<gsbhaskar@rediffmail.com>,"admin"
<admin@khabarindia.com>
Date: शुक्रवार, 26 अगस्त, 2011 9:02:54 पूर्वाह्न GMT-0700
Subject: अन्ना आन्दोलन की लहर मेँ!

सन 2011ई0 का जन्माष्टमी पर्व! 22अगस्त, दिन सोमवार!मीरानपुर कटरा से
कुछ किलोमीटर दूरी पर सिउरा गांव मेँ बड़े धूमधाम से जन्माष्टमी पर्व
मनाया जा रहा था.मैं वहां पहुंच ही पाया था कि मन अन्तर्द्वन्द मेँ फंस
गया और वहां से वापस मीरानपुर कटरा आ गया.

"महापुरुषोँ पर सिर्फ कुछ समय के लिए कुछ स्थूल क्रियाओं से कब मानव व
समाज का उद्धार हुआ है?मानव किसी एक महापुरुष को ही अपने जीवन मेँ उतार
ले तो मानव के जीवन मेँ क्रान्तिकारी परिवर्तन हो जाए .वर्तमान मेँ अन्ना
आन्दोलन ने सभी को प्रभावित कर रखा है.प्रभावित नहीँ किया है तो निरे
भौतिक भोगवादी व्यक्तियों को.विद्यार्थी व बुद्धिजीवी व्यक्तियोँ की
संख्या ज्यादा है अन्ना आन्दोलन से जुड़ने वालों मेँ.इस आन्दोलन के लिए भी
कुरुशान (गीता) से सीख ली जा सकती है.लेकिन कमबख्त कृष्णभक्त व कृष्णवंशी
ही सीख नहीं लेना चाहते.साले,ये विदेशी आक्रमणकारियों से लड़ने वालों को
तो देशभक्त मान कर पूजते हैं लेकिन देशी दुश्मन इन्हेँ अपनी बिरादरी या
अपने दिखते हैँ.तब भूल जाते हैं श्रीकृष्ण संदेश को."


श्रीकृष्ण जीवन भर मुस्कुराते रहे यहां तक कि लाशों पर रोने वालों पर
भी लेकिन रोये तो सुदामा की दीन दशा पर.

अपने कमरे पर आ कर मैं मेडिटेशन पर बैठ गया.


"मैं रहूँ या न रहूँ लेकिन क्रान्ति की ये मशाल जलती रहनी
चाहिए."अन्ना का भाषण सुन मेरी आंखों मेँ आंसू आ गये. लेकिन मेरा मानना
है कि पूर्णतया कभी भी यह धरती भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं हो सकती.जब तक
माया मोह लोभ रहेगा भ्रष्टाचार रहेगा.बिन अध्यात्म ये कैसे सम्भव?लेकिन
हम आप को अन्ना समर्थन करना ही चाहिए.नक्सलियों से भी मेरी विनती है कि
वे अन्ना के समर्थन मेँ संघर्ष विराम करेँ.
दैनिक समाचारपत्र खुसरो मेल के सम्वाददाता के सामने मैने कहा कि
सुप्रबन्धन के लिए कठोर नियम बनने ही पाहिए लेकिन जब तक माया मोह रहेगा
तब तक भ्रष्टाचार रहेगा.यहां तो भ्रष्टाचार तो देश के आजादी की नींव मेँ
ही है.सरस्वती कुमार दादूपुर वाराणसी के अनुसार वर्तमान सभी विडम्बनाओं
के लिए जिम्मेदार है-'बेटन नेहरु पैक्ट यानी वशीकरण अभियान'.मौ अबुल कलाम
आजाद अपनी पुस्तक इंडिया विन्स फ्रीडम मे लिखा है कि मुझे जब यह आभास हुआ
कि लार्ड माउण्टबेयन ने जवाहर लाल तथा पटेल को अपने विचारों से प्रभावित
कर लिया है और वह भारतवर्ष के बँटबारे के विचार मेँ है तो मुझे महान कष्ट
हुआ.31मार्च1947को दिल्ली मेँ गांधी से जब मैं मिलने पहुंचा तो वे तुरन्त
बोले कि भारत विभाजन एक धमकी बन चुका है.ऐसा लगता है कि बल्लभ भाई तथा
जबाहर लाल ने हथियार डाल दिये हैं.सुना जाता है कि लार्ड माउन्टबेटन के
विभाजन योजना के दस्तावेज पर पं जवाहर लाल नेहरु सरदार पटेल आचार्य
कृपलानी मु अली जिन्ना लियाकत अली रबनिस्तर तथा बलदेव सिँह का हस्ताक्षर
लेकर बेटन प्रधानमंत्री एटली चर्चित और महामना षष्टम एडवर्ड का अनुमोदन
मिलने के बाद तीन जून को रेडियो पर प्रसारण सुन कर गांधी जी धैर्य का
बांध टूट गया.उन्होने कांग्रेस को समाप्त करने व बेटन की विभाजन योजना को
ध्वस्त करने के लिए सार्वजनिक घोषणा करने का संकल्प ले लिया और चार जून
की प्रार्थना सभा मेँ बोलने वाले थे.महात्मा गांधी विभाजन के विरोध में
ही खड़े रहे लेकिन पटेल व नेहरु के द्वारा गांधी को मनाने के लिए भेजे गये
माउण्टबेटन के पैने तर्कों ने उन्हें अन्दर ही अन्दर हचमचा कर रख दिया.वह
78वर्ष के हो चुके थे.तीस वर्षों मेँ आज पहली बार उन्हें अपने आप पर
अविश्वास जगा था.वे नितान्त अकेले पड़ चुके थे.विभाजन की शर्त पर
सत्तावादियों की आजादी प्रति स्वीकृति ने गांधी की हत्या करवा दी.न जाने
क्यों अन्ना के इस आन्दोलन के दौरान सन 1947-48ई0में गांधी का अकेलापन
मुझे स्मरण हो आता है?इन कांग्रेसियों के चरित्र की उल्टी गिनती तो सन
1947ई0से ही प्रारम्भ हो चुकी थी.जिस तरह आज अधिकतर नेताओं के पास साहस
नहीं है देश हित मेँ कठोर निर्णय लेने का .वर्तमान मेँ पब्लिक देख ही
रही है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नेता कैसा व्यवहार कर रहे हैं कुछ
नेताओं को तो ये तक पता नहीं है कि अन्ना अभी तक जो कर रहे हैं वह
लोकतान्त्रिक है कि अलोकतान्त्रिक ?वे शायद संवैधानिक लोकतान्त्रिक
मूल्यों व लोक अधिकारों से भी अन्जान है.इस समय कांग्रेस नेता स्वयं
तर्कहीन बातें कह अपनी किरकिरी करा रहे हैँ.लोकतन्त्र है भाई,राजतन्त्र
नहीँ!राजतन्त्र होता तो ये नेता क्या करते?सांसद विधायक जनता के
प्रतिनिधि होते हैं न कि जनता के मालिक?नेताओंकेअसंवैधानिक व
अलोकतान्त्रिक व्यवहारों के खिलाफ लोकतंत्र मेँ शान्तिपूर्ण ढंग से
अभिव्यक्ति व आन्दोलन करने का लोक को अधिकार है.नेताओं को ये समझ मेँ
क्यों नहीं आता? अन्ना का आन्दोलन इन नेताओं के लिए अलोकतान्त्रिक है तो
अभी कुछ दिनों पहले जाटों का आन्दोलन था वह क्या था ?किस पार्टी के किस
नेता पर विश्वास करें कुछ चन्द नेताओं के अलावा?जो अन्ना के समर्थन मेँ
खड़े हैँ वे क्या अपने मन में खोंट नहीं रखते ?मैं रुहेलखण्ड क्षेत्र
अर्थात बरेली मण्डल के जनपदों व नगरों मेँ अन्ना आन्दोलन को विस्तार
देने वालों को देख रहा हूँ .वे कितने शुभचिन्तक हैं सुप्रबंधन के लिए
?वे दल ,जाति, मजहब,आदि से ऊपर उठकर व्यवहार नहीँ करते.अनेक दुकानदार
नकली सामान बेँचते है,अपने मेडिकल स्टोर पर अस्सी प्रतिशत दवाईयां नकली
रखते हैं,वकील सांप को रस्सी व रस्सी बनाने से नहीँ चुकते,अध्यापक स्कूल
नहीं जाने के बाबजूद अगले दिन पिछली अनुपस्थिति को उपस्थिति मेँ बदल देते
हैं,आदि;ऐसे भी अन्ना आन्दोलन को हवा देने मेँ लगे हैँ.एक नेता कहते है
कि अन्ना टीम सांसद बन कर दिखाये?मेरे सीट पर कोई जीत कर दिखाये.मैं
मुस्लिम व अपनी बिरादरी के वोट से जीतता आया हूँ.इसके अलावा शेष वोटरों
से कौन जीतने वाला? यादव यादव जी को, जाटव व अन्य हरिजन अपनी बहिन जी से
बाहर जाने वाले नहीं और ये कुर्मी कुर्मी प्रत्याशी से बाहर जाने वाले
नहीं.मन से अभी 98 प्रतिशत गुलाम हैं व भेंड़ की चाल चलें.

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

मिशन पार्लियामेंट : स्वस्थ संसदीय कार्यवाही क्यों नहीँ?

एक वे आतंकवादी थे जो कि संसद को बमों से उड़ा देना चाहते थे.दूसरी ओर देश के अन्दर कुछ गद्दार हैं जो संसद को चलने नहीं देना चाहते हैँ.अब अन्ना को मिशन पार्लियामेंट चलाना चाहिए.सांसदों के लिए पाठशाला की व्यवस्था की जाए.ये सांसद आखिर चाहते क्या हैँ?जनता के द्वारा चुने गये प्रतिनिधि संसद मेँ जनता की आवाज पर स्वस्थ सम्वाद नहीं कर सकते?जनता की आवाज इन्हेँ सुनाई नहीँ देती.चीन पाक सीमा पर इन दो दिनों से जो हरकतेँ चल रही हैँ वे दिखाई नहीं दे रही हैँ.ये सांसद क्या अपनी या अपने चमचों की सुनना चाहते हैँ सिर्फ?कहाँ खो गया देश का क्षत्रियत्व?देश की जनता को क्या अर्जुन बन गाण्डीव उठाना होगा?आदि काल से ही भारत की शरहदे छोटी होती आयीं क्या आगे भी छोटी होती रहेँगी.मराठे जाग चुके हैं ये मुसलमानोँ तुम भी यदि जाग जाओ तो फिर पाक,कश्मीर, भारत व बांग्लादेश मिल कर भारतसंघ बन सकता है.
अन्ना के इस आन्दोलन से दूसरी आजादी की जंग छेंड़ी जा सकती है लेकिन पहले अन्ना आन्दोलन को आगे बढ़ाना होगा.भ्रष्टाचारमुक्त तंत्र बनाना होगा.इसके बाद गांव सुधार को जंग छेंड़ना होगा.संसदों विधायकों को जन प्रतिनिधि का मतलब समझाना होगा....

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रामदेव जी का आंदोलन समाप्त नहीं हुआ है !

बाबा रामदेव जिन मुद्दों ले चल रहे है वे देश के हित मेँ ही हैँ.

---------- Forwarded message ----------
From: vikas saini <shrivikassaini@gmail.com>
Date: Wed, 24 Aug 2011 12:53:02 +0530
Subject: विप्लव विकल्प विकास रामदेव जी का आंदोलन समाप्त नहीं हुआ है !
To:

--- *मंगल, 23/8/11 को, SAMVAD_MP : संवाद प्रभारी म.प्र.(पश्चिम)-डा. कृष्णा
राव <mp.w.samvadprabhari@gmail.com>* ने लिखा:


द्वारा: SAMVAD_MP : संवाद प्रभारी म.प्र.(पश्चिम)-डा. कृष्णा राव <
mp.w.samvadprabhari@gmail.com>
विषय: हरिद्वार की हलचल
दिनांक: मंगलवार, 23 अगस्त, 2011, 10:33 PM
*रामदेव जी का आंदोलन समाप्त नहीं हुआ है ,बल्कि भविष्य के लिए नयी ताकत एकत्र
की जा रही है .अन्ना के आंदोलन में तों अधिकाँश भीड़ तमाशबीनो की है ,जबकि
रामदेव जी देशभर के योग्य तरुणों को पूरी साधना करा के संघर्ष के लिए
संकल्पबद्ध करा रहे हैं !** बधाई हो ! बधाई हो !*

*
*

*हरिद्वार मे 15 अगस्त से 21 अगस्त तक युवा भारत शिविर योगपीठ फेस-2 हरिद्वार
उत्तराखंड मे और संपूर्ण आज़ादी और संपूर्ण क्रांति और राष्ट्र निर्माण संकल्प
यात्रा जो की हर की पोढ़ी पर एक महान संकल्प के रूप मे समाप्त हुई
| देश भर के ६५० जिलो से आये १५००० युवाओं ने योग ऋषि स्वामी स्वामी रामदेव जी
महाराज एवं स्वामी गनेशानंद जी महाराज के परम सानिध्य मे योग साधना सीखी | योग
ऋषि स्वामी स्वामी रामदेव जी महाराज ने सभी से आव्हान किया की अब ...आप सभी
अपने हाथ मे इस पवित्र गंगा जल को ले कर संकल्प ले की हम सब मिल कर विदेशों मे
जमा काला धन वापस लाएँगें और *
*गाँव गाँव तक योग की अलख जगाएगें सभी को काले धन का सच बताएँगे और भारत को
भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र बनाएँगे ! *
*गाँव गाँव जाएँगे सभी को योग सिखाएगें ! काला धन भी लाएँगे देश को बचाएँगें !
*
*साधु संतों का अपमान नही सहेगा हिन्दुस्तान ! *
*१ २ ३ ४ बंद करो ये भ्रष्टाचार ! *
*शहीदों हम शर्मिंदा हैं भ्रष्टाचारी जिंदा हैं !*
* *

-- डा. के कृष्णा राव प्रांतीय संवाद प्रभारी पतंजलि योग समिति एवं भारत
स्वाभिमान म.प्र. (पश्चिम) 09425451262

--
# ग्रुप सदस्य संख्या 2000
# इस ग्रुप में ईमेल करने के लिए hindusthankiaawaz@googlegroups.com पर चटका
लगायें
# आपके द्वारा भेजे गए ईमेल को हम http://sachchadil.blogspot.com
हिंदुस्तान की आवाज़ ब्लॉग पर प्रकाशित करेंगे.
# यदि आप भविष्य में ऐसी ईमेल प्राप्त न करना चाहें तो बे-हिचक
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सूची से हटा दिया जाएगा!


--
Vikas Saini

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बुधवार, 24 अगस्त 2011

अन्ना आन्दोलन की कुछ तश्वीरेँ

अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'
;जो कि मानवता हिताय सेवा समिति उप्र के संस्थापक.


#9044669901

ग्राम ददिउरी थाना बण्डा

जिला शाहजहाँपुर,उ.प्र.


जो कि अन्ना आन्दोलन का समर्थन करते हैं लेकिन मानना है कि पूर्णतया कभी भी यह धरती भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं हो सकती.जब तक माया मोह लोभ रहेगा भ्रष्टाचार रहेगा.बिन अध्यात्म ये कैसे सम्भव?लेकिन हम आप को अन्ना समर्थन करना ही चाहिए.नक्सलियों से भी मेरी विनती है कि वे अन्ना के समर्थन मेँ संघर्ष विराम करेँ.

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अन्ना के सैलाब की कुछ तश्बीरों संग !

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------Original message------
From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: <akvashokbindu@gmail.com>
Date: मंगलवार, 23 अगस्त, 2011 12:35:13 अपराह्न GMT+0000
Subject: अन्ना के सैलाब की कुछ तश्बीरों संग !

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------Original message------
From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: "go@blogger.com" <go@blogger.com>,"ajay.mv@oneindia.co.in" <ajay.mv@oneindia.co.in>
Date: सोमवार, 22 अगस्त, 2011 8:27:22 पूर्वाह्न GMT+0000
Subject: अन्ना के सैलाब की कुछ तश्बीरेँ!

वे थे आंसू प्रधानमंत्री की मौत उनके ही रक्षकों द्वारा ही देख


वे आंसू कह रहे थे
कौन है सुरक्षित इस देश मेँ?


आज फिर आंसू अन्ना का सैलाब देख कर


बचपन से सहते खामोशी चुपचाप
आज निकले आंसू बन कर..

सज रहे हैं प्रजातन्त्र के मेले,
जहां अरमान रावण को नहीं रावणत्व को मारने के.

सत्ता परिवर्तन के नहीं, व्यवस्था परिवर्तन के मेले


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मंगलवार, 23 अगस्त 2011

भौतिक संलिप्तता का दंश : भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार एक पाप है लेकिन आदिकाल से कब यह धरती भ्रष्टाचार से मुक्त हुई है.माया,मोह,लोभ,द्वेष,आदि जब तक है तब तक भ्रष्टाचार रहेगा.भौतिक लालसाएं भ्रष्टचार की जननी हैँ.अपने से अधिक संसाधन रखने वालों से तुलना हम जब करते हैँ लेकिन संसाधन इकट्ठे करने के साधन हमारे पास नहीं होते,तब हम गैरकानून काम अपना कर संसाधन जुटाते हैँ,ऐसे में भ्रष्टाचार स्वाभाविक है.
एक कहावत है कि पैर उतने ही फैलाने चाहिए जितनी बड़ी चादर है लेकिन आज भौतिक युग मेँ भौतिकसंसाधनों की चकाचौंध मेँ आदमी खो गया है.जब व्यक्ति की क्षमताएं उन्हेँ प्राप्त करने मेँ अक्षम हो जाती है तो लालसाएं भ्रष्टाचार को जन्म देती हैं.लोग जैसे तैसे संसाधन पा लेना चाहते हैं.जीवन रुपी गाड़ी जब अध्यात्म व भौतिक रुपी दोनों पहियों पर बराबर बोझ लेकर चलेगी तभी भ्रष्टाचार मुक्त समाज की कल्पना की जा सकती है.नहीं तो कोरे निरे भौतिक भोगवाद मेँ भ्रष्टाचार फलता फूलता रहेगा.जब तक सांसारिक जगत व वस्तुओं से लगाव रहेगा,भ्रष्टाचार किसी न किसी रुप मेँ रहेगा.लोग अपने को धार्मिक व ईश भक्त मानते हैँ लेकिन धार्मिक व ईशभक्त हैँ नहीँ.अध्यात्मिकता तो दूर की बात.

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