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शनिवार, 27 अगस्त 2011

अन्ना आन्दोलन की लहर मेँ!

अन्ना हजारे यदुवंशी होने के नाते यदुवंशी श्रीकृष्ण के कुरुशान अर्थात
गीता संदेश के महत्व को जन जन तक पहुंचायें.

---------- Forwarded message ----------
From: "akvashokbindu@gmail.com" <akvashokbindu@gmail.com>
Date: Fri, 26 Aug 2011 17:18:07 +0000
Subject: अन्ना आन्दोलन की लहर मेँ!
To: hindi@oneindia.co.in, shekhartimes@gmail.com,
teamannahazare@gmail.com, dsvvconf2010@gmail.com, pehel@jagran.com,
freelance@oneindia.co.in, editor.bhadohinews@gmail.com,
divyayoga@rediffmail.com

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मेरें Nokia फ़ोन से भेजा गया

------Original message------
From: ashok kumar verma <akvashokbindu@gmail.com>
To: "ईपत्रिका हमारीवाणी"
<news@hamarivani.com>,<rachanakar@gmail.com>,<gsbhaskar@rediffmail.com>,"admin"
<admin@khabarindia.com>
Date: शुक्रवार, 26 अगस्त, 2011 9:02:54 पूर्वाह्न GMT-0700
Subject: अन्ना आन्दोलन की लहर मेँ!

सन 2011ई0 का जन्माष्टमी पर्व! 22अगस्त, दिन सोमवार!मीरानपुर कटरा से
कुछ किलोमीटर दूरी पर सिउरा गांव मेँ बड़े धूमधाम से जन्माष्टमी पर्व
मनाया जा रहा था.मैं वहां पहुंच ही पाया था कि मन अन्तर्द्वन्द मेँ फंस
गया और वहां से वापस मीरानपुर कटरा आ गया.

"महापुरुषोँ पर सिर्फ कुछ समय के लिए कुछ स्थूल क्रियाओं से कब मानव व
समाज का उद्धार हुआ है?मानव किसी एक महापुरुष को ही अपने जीवन मेँ उतार
ले तो मानव के जीवन मेँ क्रान्तिकारी परिवर्तन हो जाए .वर्तमान मेँ अन्ना
आन्दोलन ने सभी को प्रभावित कर रखा है.प्रभावित नहीँ किया है तो निरे
भौतिक भोगवादी व्यक्तियों को.विद्यार्थी व बुद्धिजीवी व्यक्तियोँ की
संख्या ज्यादा है अन्ना आन्दोलन से जुड़ने वालों मेँ.इस आन्दोलन के लिए भी
कुरुशान (गीता) से सीख ली जा सकती है.लेकिन कमबख्त कृष्णभक्त व कृष्णवंशी
ही सीख नहीं लेना चाहते.साले,ये विदेशी आक्रमणकारियों से लड़ने वालों को
तो देशभक्त मान कर पूजते हैं लेकिन देशी दुश्मन इन्हेँ अपनी बिरादरी या
अपने दिखते हैँ.तब भूल जाते हैं श्रीकृष्ण संदेश को."


श्रीकृष्ण जीवन भर मुस्कुराते रहे यहां तक कि लाशों पर रोने वालों पर
भी लेकिन रोये तो सुदामा की दीन दशा पर.

अपने कमरे पर आ कर मैं मेडिटेशन पर बैठ गया.


"मैं रहूँ या न रहूँ लेकिन क्रान्ति की ये मशाल जलती रहनी
चाहिए."अन्ना का भाषण सुन मेरी आंखों मेँ आंसू आ गये. लेकिन मेरा मानना
है कि पूर्णतया कभी भी यह धरती भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं हो सकती.जब तक
माया मोह लोभ रहेगा भ्रष्टाचार रहेगा.बिन अध्यात्म ये कैसे सम्भव?लेकिन
हम आप को अन्ना समर्थन करना ही चाहिए.नक्सलियों से भी मेरी विनती है कि
वे अन्ना के समर्थन मेँ संघर्ष विराम करेँ.
दैनिक समाचारपत्र खुसरो मेल के सम्वाददाता के सामने मैने कहा कि
सुप्रबन्धन के लिए कठोर नियम बनने ही पाहिए लेकिन जब तक माया मोह रहेगा
तब तक भ्रष्टाचार रहेगा.यहां तो भ्रष्टाचार तो देश के आजादी की नींव मेँ
ही है.सरस्वती कुमार दादूपुर वाराणसी के अनुसार वर्तमान सभी विडम्बनाओं
के लिए जिम्मेदार है-'बेटन नेहरु पैक्ट यानी वशीकरण अभियान'.मौ अबुल कलाम
आजाद अपनी पुस्तक इंडिया विन्स फ्रीडम मे लिखा है कि मुझे जब यह आभास हुआ
कि लार्ड माउण्टबेयन ने जवाहर लाल तथा पटेल को अपने विचारों से प्रभावित
कर लिया है और वह भारतवर्ष के बँटबारे के विचार मेँ है तो मुझे महान कष्ट
हुआ.31मार्च1947को दिल्ली मेँ गांधी से जब मैं मिलने पहुंचा तो वे तुरन्त
बोले कि भारत विभाजन एक धमकी बन चुका है.ऐसा लगता है कि बल्लभ भाई तथा
जबाहर लाल ने हथियार डाल दिये हैं.सुना जाता है कि लार्ड माउन्टबेटन के
विभाजन योजना के दस्तावेज पर पं जवाहर लाल नेहरु सरदार पटेल आचार्य
कृपलानी मु अली जिन्ना लियाकत अली रबनिस्तर तथा बलदेव सिँह का हस्ताक्षर
लेकर बेटन प्रधानमंत्री एटली चर्चित और महामना षष्टम एडवर्ड का अनुमोदन
मिलने के बाद तीन जून को रेडियो पर प्रसारण सुन कर गांधी जी धैर्य का
बांध टूट गया.उन्होने कांग्रेस को समाप्त करने व बेटन की विभाजन योजना को
ध्वस्त करने के लिए सार्वजनिक घोषणा करने का संकल्प ले लिया और चार जून
की प्रार्थना सभा मेँ बोलने वाले थे.महात्मा गांधी विभाजन के विरोध में
ही खड़े रहे लेकिन पटेल व नेहरु के द्वारा गांधी को मनाने के लिए भेजे गये
माउण्टबेटन के पैने तर्कों ने उन्हें अन्दर ही अन्दर हचमचा कर रख दिया.वह
78वर्ष के हो चुके थे.तीस वर्षों मेँ आज पहली बार उन्हें अपने आप पर
अविश्वास जगा था.वे नितान्त अकेले पड़ चुके थे.विभाजन की शर्त पर
सत्तावादियों की आजादी प्रति स्वीकृति ने गांधी की हत्या करवा दी.न जाने
क्यों अन्ना के इस आन्दोलन के दौरान सन 1947-48ई0में गांधी का अकेलापन
मुझे स्मरण हो आता है?इन कांग्रेसियों के चरित्र की उल्टी गिनती तो सन
1947ई0से ही प्रारम्भ हो चुकी थी.जिस तरह आज अधिकतर नेताओं के पास साहस
नहीं है देश हित मेँ कठोर निर्णय लेने का .वर्तमान मेँ पब्लिक देख ही
रही है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नेता कैसा व्यवहार कर रहे हैं कुछ
नेताओं को तो ये तक पता नहीं है कि अन्ना अभी तक जो कर रहे हैं वह
लोकतान्त्रिक है कि अलोकतान्त्रिक ?वे शायद संवैधानिक लोकतान्त्रिक
मूल्यों व लोक अधिकारों से भी अन्जान है.इस समय कांग्रेस नेता स्वयं
तर्कहीन बातें कह अपनी किरकिरी करा रहे हैँ.लोकतन्त्र है भाई,राजतन्त्र
नहीँ!राजतन्त्र होता तो ये नेता क्या करते?सांसद विधायक जनता के
प्रतिनिधि होते हैं न कि जनता के मालिक?नेताओंकेअसंवैधानिक व
अलोकतान्त्रिक व्यवहारों के खिलाफ लोकतंत्र मेँ शान्तिपूर्ण ढंग से
अभिव्यक्ति व आन्दोलन करने का लोक को अधिकार है.नेताओं को ये समझ मेँ
क्यों नहीं आता? अन्ना का आन्दोलन इन नेताओं के लिए अलोकतान्त्रिक है तो
अभी कुछ दिनों पहले जाटों का आन्दोलन था वह क्या था ?किस पार्टी के किस
नेता पर विश्वास करें कुछ चन्द नेताओं के अलावा?जो अन्ना के समर्थन मेँ
खड़े हैँ वे क्या अपने मन में खोंट नहीं रखते ?मैं रुहेलखण्ड क्षेत्र
अर्थात बरेली मण्डल के जनपदों व नगरों मेँ अन्ना आन्दोलन को विस्तार
देने वालों को देख रहा हूँ .वे कितने शुभचिन्तक हैं सुप्रबंधन के लिए
?वे दल ,जाति, मजहब,आदि से ऊपर उठकर व्यवहार नहीँ करते.अनेक दुकानदार
नकली सामान बेँचते है,अपने मेडिकल स्टोर पर अस्सी प्रतिशत दवाईयां नकली
रखते हैं,वकील सांप को रस्सी व रस्सी बनाने से नहीँ चुकते,अध्यापक स्कूल
नहीं जाने के बाबजूद अगले दिन पिछली अनुपस्थिति को उपस्थिति मेँ बदल देते
हैं,आदि;ऐसे भी अन्ना आन्दोलन को हवा देने मेँ लगे हैँ.एक नेता कहते है
कि अन्ना टीम सांसद बन कर दिखाये?मेरे सीट पर कोई जीत कर दिखाये.मैं
मुस्लिम व अपनी बिरादरी के वोट से जीतता आया हूँ.इसके अलावा शेष वोटरों
से कौन जीतने वाला? यादव यादव जी को, जाटव व अन्य हरिजन अपनी बहिन जी से
बाहर जाने वाले नहीं और ये कुर्मी कुर्मी प्रत्याशी से बाहर जाने वाले
नहीं.मन से अभी 98 प्रतिशत गुलाम हैं व भेंड़ की चाल चलें.

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