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सोमवार, 26 नवंबर 2012

ओ माई गाड ! तू क्या सिर्फ निर्जीब वस्तुओँ के पूजने से खुश होता है ?

बीसलपुर रेलवे स्टेशन ,(पीलीभीत) ! 3. 06PM ! दिन रविवार.भीड़ से जूझने के
बाद टिकिट लेकर मैँ प्लेटफार्म पर आ गया था.मैँ आगे चलता चला जा रहा था
कि बिना किसी अन्त: या बाह्य सूचना के मैँ रुक गया.नीले वस्त्रोँ मेँ एक
खालसा पंथी की बात मेरे दिलोदिमाग मेँ कौंधी कि ईश्वर भक्त को कहीँ कष्ट
नहीँ होता .
उस खालसा पंथी के समीप मैँ रुक गया जो कुछ बच्चोँ से ईश भक्ति के फायदोँ
का बखान कर रहा था.पीलीभीत जाने वाली ट्रेन आ चुकी थी ,शाहजहाँपुर जाने
बाली ट्रेन आना बाकी थी.मुझे बिन बोले न रहा गया,मैँ बोला कि लाखोँ मेँ
एक दो भक्त होते हैँ .संत कबीर आये थे,उन्हेँ भी कहना पड़ गया कि मैँ जो
चीज देने आया हूँ वो कोई लेने ही नहीँ आता .हर कोई मेरे पास सांसारिक
सुखोँ के लिए प्रार्थना लेकर आता है.धर्म तो माया,मोह,लोभ,काम आदि से
मुक्ति व सांसारिक वस्तुओँ के साथ अभिनय करने की बात करता है लेकिन यहाँ
धर्मस्थल व धर्मस्थलोँ के ठेकेदार ही माया,मोह,लोभ आदि के जाल मेँ फंसे
हैँ .कहीँ से एक पौराणिक साधु आकर बोला कि माया मोह मेँ तो सारी दुनिया
है .कलियुग का कहना है कि जो धर्म को याद रखेगा,जो धर्म के साथ
सांसारिकता को भी याद रखेगा उसे ही मैँ सबकुछ सुख वैभव दूँगा .जो सिर्फ
धर्म व अध्यात्म को याद रखेगा ,कष्ट पायेगा.रावण के पास किस ऐशोआराम की
कमी थी.?बिन विभीषण राम भी उसे नहीँ मार पाते .मैँ खामोश हो गया ? वह
खालसा पंथी तो मूल मर्म की बात करता था लेकिन वह पौराणिक हिन्दू साधू
नहीँ . मैने देखा कि खालसा पंथी भी खामोश हो गया है तो मैँ आगे चल दिया.

केजरीवाल की 'आम आदमी पार्टी' पर जहाँ तहाँ प्रतिक्रिया सुनने को मिलने
लगी थीँ.शाहजहाँपुर जाने वाली ट्रेन जब आगयी तो मैँ ट्रेन के एक डिब्बे
मेँ सवार हो गया.सफर के दौरान facebook पर 'आम आदमी पार्टी' पेज पर के
कमेण्टस पर मेरी निगाह थीँ.वजीरपुर हल्ट पर जब ट्रेन रुकी तो मैने देखा
कि समीप की प्राईमरी स्कूल की बिल्डिंग मेँ कुछ बच्चे ताश खेल रहे थे .एक
बालक एक को रुपये दिखा रहा था.

भारत मेँ आम आदमी की स्थिति क्या है ?इस पर इन दिनों चिन्तन मेँ था.यहाँ
के आम आदमी का यथार्थ क्या है ?आम आदमी क्या निजी तौर पर ईमानदार है?समाज
व देश के विभिन्न मुद्दोँ की ही उसे जानकारी नहीँ है ,उनके प्रति
ईमानदारी से विचार करना तो अलग की बात है.वह अपने शारीरिक व ऐन्द्रिक
स्वार्थ, परिवार ,जाति ,मजहब ,क्षेत्र ,भाषा आदि के शरहदोँ से निकलकर
सार्वभौमिक सत्य व ज्ञान की ओर अग्रसर हो ही नहीँ पाता और जो मुट्ठी भर
लोग जागरुक हैँ,उनके वोट से क्या चुनाव जीता जा सकता है?एक सीट पर यदि
बीस , अठारह ,बारह ,बारह,दस,........आदि प्रतिशत के आधार पर मतदाता
विभिन्न जातियोँ बंटा है .जो जाति आधारित वोटिंग करता है व वोट करते वक्त
उसके नजरिया मेँ राष्ट्रवादी सोँच नहीँ होती.तो कैसे ये आम आदमी देश का
भला कर सकता है ?जो सरे आम जागरुक व्यक्तियोँ व कानून की खिल्ली उड़ाता
है.मैँ जब आज सुबह कालेज पहुँचता हूँ तो एक अध्यापक कहते हैँ कि केजरीवाल
की आम आदमी पार्टी केजरीवाल के अलावा एक भी सीट नहीँ जीत सकती .यहाँ का
आदमी ज्ञान व कानून के आधार पर नहीँ अपने निजी स्वार्थोँ,जातीय व मजहबी
आधारोँ पर वोट करता है.मैँ बोला कि आम आदमी स्वयं है क्या ?वह तो अपने
फैमिली मैम्बरोँ या पड़ोसियोँ के प्रति भी यदि निष्पक्ष व ईमानदार सोँच
रखता है तो ये बड़ी बात है .फेसबुक चलाने व इण्टरनेट पर विचार रखने वालोँ
के वोट मात्र से क्या काम चलने वाला है?जो पचास प्रतिशत वोट मेँ रुचि
नहीँ रखते ,उनके वोट करने से परिवर्तन दिखायी दे सकता है .नहीँ तो नेताओ
के पीछे ,मतदाताओँ की लाइन मे लगे लोगोँ का अध्ययन से यही पता चलता है कि
वे देश की समस्याओँ व मुद्दोँ को नजर मेँ रख कर वोट नहीँ करते.बाबू जी
बोले कि आज के समय मेँ यदि जो ऐसा नहीँ है ,उसका हाल बड़ा खराब है
.ईमानदारी मेँ रोटी मिलना तक मुश्किल हो जाएगी ?मैँ मन ही मन सोँचने लगा
कि तो काहे कि ईशभक्ति ?धर्म व अध्यात्म भक्ति ?


प्रार्थना के बाद बार्ड मेम्बर का पुत्र अर्पित सिँह चौहान जो कि कक्षा
9अ का छात्र है,मेरे पास आकर बोला कि मंदिर के लिए जगह निश्चित हो गयी है
व अपने शर्मा जी के बड़े भाई ने 21 हजार रुपये व एक मूर्ति लगवाने का
वचन दिया है. मैँ उससे बोल दिया कि मैँ तो इन निर्जीब धर्मस्थलोँ के
खिलाफ हूँ .मेरे विचारोँ को जानना हो तो पहले O MY GOD फिल्म
देखना.तुम यदि मेरा चेला बनना चाहते हो तो कुछ समय मुझे दिया करो .तब
विभिन्न मुद्दोँ पर उन विचारोँ को रखूँ जो सार्वभौमिक व सर्वोच्च ज्ञान
पर आधारित होँ .हम सब पचास प्रतिशत ब्रह्मांश व पचास प्रतिशत प्रकृति
अंशहैँ .जिसके आधार पर ही हमेँ अपना नजरिया बनाना चाहिए.हमसब अपने को
ईशभक्त ,धार्मिक ,अध्यात्मिक आदि मानते तो हैँ लेकिन ये सब मानना ढ़ोंग के
सिवा कुछ भी नहीँ .नहीँ तो फिर जिन्दगी मेँ तूफान न आ जाये जब कोई हादसा
घट जाये ?तब हादसोँ के बीच खामोश या मुस्कुराते लोग तुम्हेँ पागल व सनकी
लगते हैँ .श्री कृष्ण जीवन भर मुस्कुराते ही रहे यहाँ तक लाशोँ के सामने
भी .वे रोये तो सुदामा के हालत पर.

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