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मंगलवार, 23 सितंबर 2014

संयुक्तराष्ट्र संघ को अब आक्रमक हो जाना चाहिए

अन्तराष्ट्रीय सीमा विवादों को समाप्त करने के लिए संयुक्त राष्ट्र
संघ को आक्रमक हो जाना चाहिए. किसी देश के लिए उसकी अन्तराष्ट्रीय
सीमाएं उसी तरह होना चाहिए जैसे गाँव, शहर,ब्लाक,जिला आदि.
अन्तराष्ट्रीय सीमाएं एक देश के लिए उसी तरह होना चाहिए जैसे एक तहसील या
जनपद के लिए क्रमश: तहसील या जनपद की सीमाएं . अन्तराष्ट्रीय सीमाओं से
देश की सेनाएं हटाकर संयुक्त राष्ट्र संघ की सेनाएं लगनी चाहिए .सीमाएँ
सिर्फ. प्रशासनिक कार्य. के लिए होनी चाहिए .आम आदमी के लिए सभी सीमाएं
खुली होनी चाहिए ..

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संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

सोमवार, 15 सितंबर 2014

जाति ,मजहब व धर��मस्थल से भी ऊपर है बहुत

जो इन्सान को भेद से देखता है वह ईश्वर को देखेगा ? जाति , मजहब व धर्मस्थल से भी ऊपर है बहुत कुछ . ऐसे मेँ जाति , मजहब व धर्मस्थल के लिए उसका अपमान करना ईश्वर का अपमान है . कुदरत को छति या जीव जन्तुओ के कष्ट देना कहाँ का औचित्य है ?

बुधवार, 3 सितंबर 2014

अबकी प्रलय का क���रण मानव

इस धरती पर मानव को देखकर मुझे हंसी आती है . निन्यानवे प्रतिशत मानव पशुओं से भी ज्यादा गिरे हैं . जाति . मजहब आदि की राजनीति मेँ मानवता सम्मानीय नहीं हो पा रही ?

संयुक्त राष्ट्र संघ को सख्ती की जरुरत

सभी देशों के मजहबी व जातिवादी नेताओं के खिलाफ कठोर कार्यवाही करना चाहिए .विकास वादी व मानवतावादी नेताओ व दलो को प्रोत्साहन देना चाहिए .

शनिवार, 31 मई 2014

कोई नहीँ दिखता हमेँ सनातनी?

हिन्दू हो या मुसलमान या अन्य,हर कोई का धर्म है-सनातन.इस बात को कितने
मानने वाले हैँ?हमे हर कोई रुका हुआ दिखता है.कोई भी सनातन पथ का पथिक
नहीँ दिखता है.....



सेक्स सिर्फ सन्तानोत्पत्ति के लिए है..नारी शक्ति मातृशक्ति है,यहाँ तक
की अपनी पत्नी भी माँ स्वरुपा है....


मानव का उद्देश्य है-पुरुषार्थ.पुरुषार्थ यानी कि धर्म अर्थ काम व मोक्ष
मेँ संतुलन . शादी का उद्देश्य है-धर्म.. धर्म क्या है?धर्म है-प्रकृति व
नारी का सम्मान,दया व सेवा....भोग की भावना का नियमन करना...पच्चीस साल
तक ब्रह्मचर्य जीवन जीना.आयुर्वेदिक व योग मय जीवन जीना..आज पाँच साल का
बच्चा भी ब्रह्मचर्य जीवन नहीं जी रहा है."तम्मंचे पे डिस्को,शीला की
जवानी"-मेँ व्यस्यत है...शिक्षा का प्रारम्भ अब योग व अध्यात्म से नहीं
अक्षर व अंक की रटन पद्धति से हो रहा है.शादियाँ मी अब भॉतिक चमक धमक मेँ
मूल दर्शन खो गयीं हैँ.ब्रह्मचर्य जीवन,वानप्रस्थजीवन व सन्यास जीवन
जीवन से विदा हो चुका है.. बुजुर्ग माया मोह मेँ मरते दम तक चिपके रहते
हैँ....सनातनी होने का मतलब सिर्फ हवन या मृर्ति पूजा मेँ रहना नहीँ
है...जाति या मजहब की भावना मेँ जीना नहीँ है.


हम व जगत के दो अंश हैँ-ब्रह्मांश व प्रकूतीअंश इसी संज्ञान की नींव पर
हम तो हर सोँच रखते हैँ... ,

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संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

मंगलवार, 27 मई 2014

हर वक्त ध्यान रखेँ कि हम व जगत के दो ही अंश-प्रकृति व ब्रह्म...

सन 1947व2014का कलैण्डर एक ही है.सन1947से कांग्रेस का शासन शुरु हुआ अब
सन2014 से मोदी का शासन.उस वक्त भी एक नये यूग का प्रारम्भ हूआ था अब भी
एक नये युग का प्रारम्भ हूआ है.



इस नये हालात मेँ पहला विरोध व मतभेद तमिलनाडु व दुसरा विरोध व मतभेद
कश्मीर से उभरा है..अब भी लोग जनतंत्र के खिलाफ खड़े हैँ वे बातचीत व बहस
का सिलसिला शुरु नहीँ करना चाहते .दमन व हिंसा चाहते हैँ.



बातचीत व बहस या फिर दमन व हिंसा को चाहने से पहले परम ज्ञान को अवश्य
जाने.सार्वभौमिक ज्ञान को को अबश्य जानेँ.परम सत को अवश्य समझेँ.






हर वक्त ये अवश्य ध्यान रखेँ कि हम व जगत के दो ही अंश हैँ-प्रकृति अंश व
ब्रह्म अंश.

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संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

शनिवार, 12 अप्रैल 2014

'कोई नहीँ पसंद' का बटन क्योँ न दबायें..?

अन्ना आन्दोलन की एक देन है - नोटा.'कोई पसंद नही' का बटन दबाने
से क्या फायदा ? शिक्षक तक इसका उद्देश्य नहीँ समझते?हमेँ भी कोई पसंद
नहीँ.

(1)ये नेता क्योँ सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु पर से रहस्य के पर्दे उठाने
का कार्य नहीँ करवा रहे?

(2) चुनावी घोषणापत्र स्टाम्पपत्रोँ पर होना चाहिए .

(3)भारत का नाम अंग्रेजी मेँ INDIA के स्थान पर BHARAT रखने की वकालत क्योँ नहीँ?

(4)किसानोँ को अपनी उपज की कीमत स्वयं निर्धारित करने की स्वतंत्रता क्योँ नहीँ?


(5)न्याय व्यवस्था व विभिन्ऩ चयन प्रक्रिया मेँ नारको परीक्षण अनिवार्य क्योँ नहीँ?

(6)देखने मेँ आता है 90प्रतिशत से अधिक दहेज प्रकरण झूठे होते हैँ ऐसे
मेँ प्रशासन बेबस क्योँ.?

(7)हम गरीबी रैखा मेँ नहीँ तो इससे क्या,?हम अपने व अपने परिवार को
अच्छी शिक्षा स्वास्थ्य व परिवरिश आदि मुहैया नहीँ करा सकते .ऐसे मेँ
सरकारेँ हमारे लिए क्या कर सकती हैँ?

(8)विभिन्न विभागोँ मेँ सम्बंधित प्रशिक्षित बेरोजगारोँ को मानदेय देकर
सेवा मेँ क्योँ नहीँ लिया जा सकता?


(9)जो नागरिक कानून व्यवस्था ईमानदारी व महापुरुषों की वाणियोँ आदि के
अनुरुप तर्क के आधार पर चलने को तैयार है लेकिन उनकोँ परिवार संस्था व
समाज मेँ उपेक्षा व अन्याय का शिकार होना पडता है .शासन प्रशासन उनको
संरक्षण क्योँ नहीँ दे सकता?

(10)जाति भावना विरोध संविधान विरुद्ध है क्या?यदि नहीँ तो जाति भावना
विरोधी अभियानोँ को शासन प्रशासन का सहयोग क्योँ नहीँ?

(11)संसाधन व आय वितरण श्रम आधारित होना चाहिए न कि पूँजी जाति मजहब आदि
के आधार पर?

(12)सड़क पर जाति मजहबी आचरणोँ पर रोक लगनी चाहिए ?

(13)सरकारी कर्मचारियोँ अध्यापकोँ को अपने बच्चोँ को सिर्फ सरकारी
स्कूलोँ मेँ पढ़ाने की अनुमति होना चाहिए .

(14)शरहदेँ आम आदमी के लिए खोली जानी चाहिए.

@@@@

हमारे मन की किसकी सरकार ,
कोई नेता नहीं हमार ..
चाहेँ हो कोई दल बल,
कौन चाहे हमारा संग?

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संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

जाति , मजहब व धर्मस्थलोँ को तोड़ौ ?

वर्तमान मेँ सभी समस्याओँ की जड़ है - अज्ञानता. हमने अपने ज्ञान से
अनुभव किया है कि हम व जगत के दो अंश हैँ - प्रकृतिअंश व ब्रह्मांश.
जिसकी कोई जाति , मजहब व धर्मस्थल नहीँ. यदि हमेँ अपना भला करना है तो
हमे अपने इन दोनोँ अंशोँ का सम्मान करना होगा. निर्जीव वस्तुओँ व
व्यवस्थाओँ के लिए इन दोनोँ अंशोँ का अपमान काफिरोँ का कार्य है.


उठो जागो . काफिरोँ को कुचलो .. लोभ काम धर्म के दुश्मन हैँ . हमेँ
जरुरत है ऐसे मो ..गजनबियोँ की जो तथाकथित धर्मस्थलोँ को लृट कर गरीबोँ
के लिए आर्थिक ढांचा खड़ा कर सके .
www.antaryahoo.blogspot.com

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संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

मंगलवार, 4 मार्च 2014

उठो जागो :मुटठी भर लोगोँ ने ही दुनिया बदली है.

ये मत सोँचोँ हमारे साथ कितने हैँ?हर पल ये धारणा रखो परमात्मा व सभी
शक्तियां हमारे साथ हैँ.हम अपने कर्तव्य से भटक नहीँ सकते.



मुटठी भर लोगोँ ने दुनियां को बदला है.कायरोँ की भीड़ के बीच मुटठी भर
ही काफी हैँ. हर शहर गांव हर जाति मजहब देश मेँ मुटठियां तन चुकी
है.बस,ऐसे नायकोँ की जरुरत है जो हर जाति मजहब देश के कामन मुद्दो को
लेकर आगे चल सके.

मोदी के समर्थक होँ या राहुल या ममता या केजरीवाल या मुलायम के
समर्थक,हिन्दू हो या मूस्लिम या अन्य परम ज्ञान किसी के आचारण मेँ दिखायी
नहीँ देता.


परम ज्ञान के आधार पर हमसब व जगत के दो अंश हैँ-प्रकृतिअंश व
ब्रह्मांश. जो किसी जाति मजहब व धर्मस्थल के मोहताज नहीँ.खुदा व कुदरत की
नजर से जगत को देखो..


आओ उखाड़ फेँकेँ जाति मजहब व धर्मस्थल.

OMG

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संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

शनिवार, 25 जनवरी 2014

जन जब तक अस्वस्थ जनतंत्र तब तक अस्वस्थ !

आखिर चुनाव के दौरान ध्रुवीकरण मेँ जनमत क्योँ ? ये उसकी अस्वस्थता
के कारण . जाति व मजहब के आधार पर मतदान एक रोग .

---------- Forwarded message ----------
From: manoj saxena <manojsaxena541@gmail.com>
Date: Sat, 25 Jan 2014 17:39:44 +0530
Subject: KATRA
To: akvashokbindu <akvashokbindu@gmail.com>, akvashokbindu
<akvashokbindu@yahoo.in>





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संस्थापक <
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शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

25 जनवरी , मतदाता दिवस : जन चाहे तो जनतंत्र बदल दे!

जनतंत्र यानी की 'डोर टू डोर सर्विस' . यह नहीँ कि 'जन' को
विधायक,सांसद आदि जब जरुरत है लेकिन वह ढूढता रह जाए और उसका काम न हो
पाए . जनतंत्र मेँ 'जन' मालिक है व जनप्रतिनिधि सेवक . मतदान मेँ
प्रतिशत गिरावट का कारण मतदाता की तंत्र , नेताओँ व अधिकारियोँ प्रति
असंतोष है लेकिन यही असंतोष जनतंत्र मेँ बदलाव का कारण भी हो सकता है.यदि
इस असंतोष के खिलाफ मतदाता एक जुट होकर अपने प्रत्याशी स्वयं चुयनित कर
चुनाव मेँ उतारता है ..जाति मजहब के नाम पर ध्रूवीकृत न होकर समाज व देश
के लिए वोट करे ....

www.manavatahitaysevasamiti.blogspot.com


जय मानवता !

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संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

बुधवार, 22 जनवरी 2014

23 जनवरी ::मोदी को सुभाष पर कुछ तो बोलना चाहिए .

आज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के अवसर पर हम कहना चाहेँगे कि
उनकी मृत्यु सम्बंधी कागजोँ को सार्वजनिक न करने ऐसा क्या कारण है जिससे
कोई एक देश नाराज हो जाएगा ? भाजपा की ओर से भावी प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी भी इस पर खामोश , आखिर ऐसा क्योँ ?

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संस्थापक <
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