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रविवार, 27 जून 2021

अशोकबिन्दु ::दैट इज...?!पार्ट 23...शिक्षण कार्य का 26 वां साल शुरू होने के साथ?!


 01 जुलाई 2021 से हमारे शिक्षण को 26 वां वर्ष शुरू हो जाएगा।

हम इस बात को अपने अंदर काफी गहराई से  सोंचते हैं कि ये दुनिया, कुटुम्ब, संस्थाएं, कुतुब/नेता/मुखिया/परम्परागत समाज के ध्रुव/ठेकेदार आदि का धर्म, सेवा, आचरण आदि से हमें उम्मीदें नहीं रखना चाहिए।


   ये खिन्नता.... बौखलाहट..... भ्रम..... शंकाएं......हमारा भविष्य इंगित करती हैं।


लेकिन तब भी मालिक कृपा कि हम महापुरुषों की वाणियों पर चिंतन मनन करते,मेडिटेशन करते कुछ आगे की उम्मीदों के सहारे जीते आये हैं।

 जो भीड़ की उम्मीदों से हट कर रही हैं।


धर्म, कर्तव्य, दान, दक्षिणा आदि का सिद्धांत पात्रता पर ध्यान देने से पुण्य को साकार करता है।धर्म, कर्तव्य, दान दक्षिणा में भी व्यक्ति भीड़ में अपने अनुकूल व्यक्ति देखता है, पात्र को नहीं।क्यों न फिर वह तमसी प्रवृत्ति, सोच का हो,या आचरण का हो।



हम कहते रहे हैं-सबसे बड़ा भृष्टाचार है हमारी नजर में-शिक्षा।इसलिए हम शिक्षितों के आचरण देख कर कहते है। सबसे बड़ी समस्या हमारे लिए है-"वह प्राणी जो इंसान माना जाता है लेकिन वह इंसानियत नहीं रखता।"


इस सबके लिए दोषी कौन है?वे जो समाज, संस्थाओं, सिस्टम ओ जकड़े बैठे हैं।


चरित्र पर हम कहना चाहेंगे कि चरित्र नहीं है-समाज,अन्य व्यक्तियों, आकाओं आदि की नजर में जीना।


आस्तिकता व धार्मिकता पर सवाल ?!
दुनिया में सबसे बड़े षड्यंत्र कारी यही हैं। लोभ लालच, माया मोह, काम बासना ,जातिवाद, मजहब वाद आदि के लिए जिए जा रहे हैं।आत्माओं का ही अहसास, आभास आदि है नहीं।परम् आत्माओं का  आभास, अहसास आदि क्या?!चेतना व समझ का स्तर कहा पर टिका-सिर्फ बनाबटी चीजों पर।स्थूल के ही सच्चाई पर नहीं, सूक्ष्म व कारण स्तर की बात ही छोंड़ दो।

और अब हम.....
हाड़मास शरीर की क्षमताएं होती है।35-40 के बाद उसकी उल्टी गिनती शुरू हो जाती है।
और....

हमारे लिए यह महत्वपूर्ण नहीं है कि लोग व सिस्टम हमें क्या समझता है?हमारे लिए महत्वपूर्ण यह है कि हम अपना कर्तव्य ठीक ढंग से निभा पा रहे हैं कि नहीं? 

बाबुजी महाराज कहते हैं कि शिक्षित का मतलब है कि अब उसके पास कर्तव्य ही कर्तव्य बचे हैं।अधिकार खत्म हो गए हैं।


सबका कार्य करने, आचरण करने, बोलने न बोलने आदि पर अपना अपना स्तर होता है।हर स्तर की व्यवस्था में जीने का मतलब है कि किसी की प्रतिष्ठा बनाये रखते हुए उसके हिसाब से कैसे काम लिया जाए?कैसे उसे इस्तेमाल किया जाए?

भक्त हनुमान को जब श्री लंका में भेजा जाता है।तो उनसे यह नहीं कहा जाता है कि तुम्हें क्या करना है?कैसे जाना है?कैसी परिस्थितियों में कैसा कैसा करना है... आदि आदि। बस, तुम्हें जाना है और सीता का पता लगाना है। अब उसके लिए कितनी भी कीमत चुकानी पड़े?कितना भी समय गवाना पड़े?कुछ भी झेलना पड़े ?आदि से कोई मतलब नहीं।

आज की तारीख में सबसे बड़ा भृष्टाचार है-शिक्षा। शिक्षालयों, शिक्षितों, शिक्षकों, अभिवावकों आदि का शिक्षा के प्रति तरीका क्या हो गया है?नजरिया क्या हो गया है? 
यह भी सत्य है कि किसी की आत्म प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाए ईमानदारी से शिक्षा को सुचारू रूप से चालू नहीं रखा जा सकता लेकिन शिक्षा का सम्बंध स्वतन्त्रता से है ,सहजता से है, शांति से है।
इसमें वैश्य धर्म ,गृहस्थ आश्रम धर्म, राज्य सेवा धर्म आदि का हस्तक्षेप भृष्टाचार है। शिक्षा दो के बीच का विनिमय है।जिसकी के व्यबस्था,समाधान आदि का दायित्व राज्य व समाज का है।लेकिन राज्य व समाज शिक्षा में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।जब भारत जगद्गुरु था तो शिक्षा आचार्यों व ऋषियों के हाथ में थी ।उसमें अन्य किसी का हस्तक्षेप नाजायज था। आचार्य व ऋषि समाज, राज्य के नौकर, कर्मचारी नहीं होते थे। आचार्य, ऋषियों के सुरक्षा, व्यवस्था आदि के लिए समाज, राज्य उत्साहित रहता था। आज भी जहां खुशहाली है वहाँ शिक्षा, शिक्षित सिस्टम का केंद्र है।


सिक्ख/शिष्य/अभ्यासी!! गुरु शिष्य एक मानसिक सम्बन्ध है। जो धरती पर महानता को बुनता है।ऐसे में सिक्ख होना एक महान घटना है।जिसमें गुरु की झलक होती है।अतः वही शिष्य है जो अपने गुरु की चमक अपने आचरण, विचार व भाव में रखता है। हमारा सिक्ख कौन है? कहने के लिए हमारे शिष्यों की भीड़ की भीड़ है।लेकिन हम उन्हें शिष्य नहीं मानते। हम चाहे किसी भी स्तर के गुरु हों लेकिन जो हमारा शिष्य है तो उसका हमारा शिष्य होने का मतलब है-जो मानसिक, विचार, भाव, नजरिया से हमारे सामने शरणागति कर चुका है, समर्पित हो चुका है। आज कल की विद्यालय शिक्षा को हम 'गुरु-शिष्य' परम्परा की नहीं मानते।वहां शरणागति, समर्पण का भाव ही नहीं है। वहां अब सिर्फ ऊपरी स्तर की शिक्षा है।उससे से तो बेहतर शिक्षा या प्रशिक्षण की गहराई अन्यत्र होती है। हम जहां जिससे किए चीज प्राप्त करना चाहते है तो हम उसके सामने, उसके वातावरण में नम्र, शालीन, अनुशासित होते है।हमारा ग्रहण करने का स्तर व समझ, नजरिया क्या है?यह अलग बात। गुरु शिष्य के बीच का सम्बंध!! यह सम्बंध वैश्य का, वैश्यत्व का नहीं है।। मानसिक, रुझान, रुचि का है।ज्ञान के प्रति लालायित होने का है। #हार्टफुलनेसएजुकेशन का मतलब क्या है? निःशुल्क अर्थात वैश्य, वैश्यपन के धर्म से मुक्त। इसलिए हम दुनिया में सबसे बड़ा भृष्टाचार मानते हैं-वर्तमान शिक्षा। गुरु व शिष्य के बीच वैश्य धर्म नहीं होना चाहिए। इसलिए वैदिक परंपरा में निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था मिलती है।जिसमें शुरू में बच्चे का स्तर, रुचि, स्वभाव,रुझान आदि को परखा जाता था और उसके आधार पर निशुल्क शिक्षा दी जाती थी,वह भी सेवा, शरणागति, समर्पण, अनुशासन आदि के भाव में।गुरु स्वयं तय करता था कि कब किसे क्या कहाँ किन परिस्थितियों में सिखाया जाए।जिसमें तीसरे का हस्तक्षेप नहीं होता था।हम अनेक बार कह चुके हैं कि शिक्षा दो के बीच का सम्बंध है।तीसरे का सम्बंध सिर्फ शिक्षा हेतु वातावरण, संसाधन आदि जुटाने का होता है। गुरुकुल, शिष्य कुल का महत्व!! कोरोना संक्रमण में स्कूलों को बंद कर देना हम नई पीढ़ी के साथ खिलवाड़ मानते है। मानव जीवन में सबसे महान घटना हम गुरुत्व व शिष्यत्व की परंपरा में रहना ही है।वही जीवन, समाज, देश व विश्व को बेहतर मुकाम देती है। हमे अफसोस है कि भौतिक भोगवाद, पूंजीवाद, सत्तावाद में उसे नगण्य कर दिया गया है। समाज, समाज के ठेकेदारों, सरकारों की प्राथमिकता में भी यह महत्वपूर्ण नहीं है। फिजिक्ल डिस्टेंसिग की कहीं भी परवाह नहीं है। फिजिकल चाहतों, लोभ लालच के लिए अब कुछ जायज है।उस देश में जिसे दुनिया अब भी आध्यात्मिक/आत्मा अध्ययन/आत्मा गुणों, मानवता,धर्म मूल्यों में मार्गदर्शक है लेकिन यहां हालात उल्टी है। जो शक्तियां फिजिकल से काफी ऊपर हैं।जो जगत व ब्रह्मांड को भी नियंत्रित करती हैं।जिसमें कोरोना आदि की भी कोई औकात नहीं है।जिसमें सब समाया हुआ है।उसके लिए हम अवसर नहीं देना चाहते।हम गीता के विराट रूप को आचरण में उतारने का मानव समाज को अवसर नहीं देना चाहते।सागर में कुम्भ कुंभ में सागर.... की दशा को अबसर नहीं देना चाहते।हम अनन्त प्रवृतियो को अबसर न दे क्षणिक अवसरों में खोने का अबसर दिए है,सत्तावाद, पूंजीवाद, लोभ लालच आदि के कारण। हम नहीं जानते कि हमारी वर्तमान समझ, बुद्धि, नजरिया आदि की क्षमता से भी बेहतर अन्य दशाएं भी है जो हमे अनन्त क्षमता से जोड़ती हैं। हम औऱ ट्यूशन कल्चर!! पार्थ सारथी राजगोपालाचारी जी कहते हैं आत्म प्रतिष्ठा को दांव पर लगा कर शिक्षा असम्भव है। आज कल ट्यूशन भी विद्यार्थी जीवन का आवश्यक अंग बन गया है।गुरुकुल परम्परा व आवासीय विद्यालयों में भी इसका रूप मिलता है।कक्षाकरण,विद्यालयकरण की भांति ट्यूशन भी एक मनोवैज्ञानिक स्थिति है।उसकी अपनी एक सहजता है।इसमें जबरदस्ती कब तक चलेगी? निशुल्क शिक्षण परम्परा का मतलब है ज्ञान के प्रति रुझान न कि जीविका के लिए सिर्फ ज्ञान का इस्तेमाल करना। किसी से जबरदस्ती शिक्षा प्राप्त करना या जबरदस्ती शिक्षा देना कब तक कामयाब रहेगा? गुरु -शिष्य, शिक्षक की व्यक्तिगत भौतिक व्यबस्था की जिम्मेदारी?! प्लेटो ने कहा है कि शिक्षक का तन मन सब कुछ समाज, नई पीढ़ी के उत्थान, शोध, ज्ञान में ही लगना चाहिए।एक विद्यार्थी या शिष्य होने का मतलब है कि वह सिर्फ गुरु व शिक्षक को ही समर्पित हो।उनके निर्देशों को समर्पित हो।विद्यार्थी जीवन व शिक्षक जीवन को कभी ब्रह्यचर्य जीवन/ब्रह्मचर्य आश्रम कहा जाता था तो इसका मतलब था -अंतर्ज्ञान, अन्तरदीप के प्रज्जवलन के लिए लालायित रहना। गुरु/शिक्षक किसी के नौकर नहीं, वरन लोग व शासक उनके नौकर बने। प्लेटो ने कहा है कि समाज, सरकार का फर्ज है कि गुरु/शिक्षक अपने व्यक्तिगत समस्याओं व परिवार की समस्याओं में न उलझे।वह समाज, नई पीढ़ी के स्तर को सुधारने के लिए ही हर वक्त तन मन से लगें।चिंतन मनन करे।ऐसा तभी सम्भव है जब गुरु व शिक्षक अपनी व अपने परिवार की समस्याओं व उनके समाधानों के प्रति निश्चित रहे।



#अशोकबिन्दु

 रुहेलखंड राज्य के ऐतिहासिक पृष्ठों में से एक पृष्ठ!! #अशोकबिन्दु

 रुहेलखंड राज्य के ऐतिहासिक पृष्ठों में से एक पृष्ठ!! 




 रुहेलखंड राज्य के अंतर्गत क्षेत्र जो आबादी आज कल जिन उपाधियों को अपने नाम के साथ प्रयोग कर रही है।पुराने सरकारी गजेटियर जो अंग्रेज समय या इससे पूर्व के हैं वे चौकाने वाले हैं। रोहिल्ला [1] उपाधि - शूरवीर, अदम्य - साहसी विशेष युद्ध कला में प्रवीण, उच्च कुलीन सेनानायको, और सामन्तों को उनके गुणों के अनुरूप क्षत्रिय वीरों को तदर्थ उपाधि से विभूषित किया जाता था - जैसे - रावत - महारावत, राणा, रूहॆला, ठाकुर, नेगी, रावल, रहकवाल, रोहिल्ला, समरलछन्द, लखमीर,(एक लाख का नायक) आदि। इसी आधार पर उनके वंशज भी आज तक (क्षत्रियों) के सभी गोत्रों में पाए जाते हैं। रोहिलखण्ड से विस्थापित इन रोहिला परिवारों में क्षत्रिय परम्परा के कुछ प्रमुख गोत्र हैं :- [2] रोहिला, रूहेला, ठैँगर,ठहित, रोहिल, रावल, द्रोहिया, रल्हन, रूहिलान, रौतेला , रावत,लोहारिया वो क्षत्रिय वंश जिन को रोहिल्ला उपाधि से नवाजा गया यौधेय, योतिक, जोहिया, झोझे, पेशावरी पुण्डीर, पांडला, पंढेर, पुन्ड़ेहार, पुंढीर, पुंडाया चौहान, जैवर, जौडा, चाहल, चावड़ा, खींची, गोगद, गदाइया, सनावर, क्लानियां, चिंगारा, चाहड बालसमंद, बहरासर, बराबर, चोहेल, चेहलान, बालदा, बछ्स (वत्स), बछेर, चयद, झझोड, चौपट, खुम्ब, जांघरा, जंगारा, झांझड,शाण निकुम्भ, कठेहरिया, कठौरा, कठैत, कलुठान, कठपाल, कठेडिया, कठड, काठी, कठ, पालवार राठौर, महेचा, महेचराना, रतनौता, बंसूठ जोली, जोलिए, बांकटे, बाटूदा, थाथी, कपोलिया, खोखर, अखनौरिया ,लोहमढ़े, मसानिया बुन्देला, उमट, ऊमटवाल भारतवंशी, भारती, गनान नागवंशी,बटेरिया, बटवाल, बरमटिया परमार, जावडा, लखमरा, मूसला, मौसिल, भौंसले, बसूक, जंदडा, पछाड़, पंवारखा, मौन तोमर, तंवर, मुदगल, देहलीवाल, किशनलाल, सानयाल, सैन, सनाढय,बंदरीया गहलौत, कूपट, पछाड़, थापा, ग्रेवाल, कंकोटक, गोद्देय, पापडा, नथैड़ा, नैपाली, लाठिवाल, पानिशप, पिसोण्ड, चिरडवाल, नवल, चरखवाल, साम्भा, पातलेय, पातलीय, छन्द (चंड), क्षुद्रक,(छिन्ड, इन्छड़, नौछड़क), रज्जडवाल, बोहरा, जसावत, गौर, मलक, मलिक, कोकचे, काक कछवाहा, कुशवाहा, कोकच्छ, ततवाल, बलद, मछेर सिसौदिया, ऊँटवाड़ या ऊँटवाल, भरोलिया, बरनवाल, बरनपाल, बहारा खुमाहड, अवन्ट, ऊँट, ऊँटवाल सिकरवार, रहकवाल, रायकवार, ममड, गोदे सोलंकी, गिलानिया, भुन, बुन, बघेला, ऊन, (उनयारिया) बडगूजर, सिकरवार, ममड़ा, पुडिया कश्यप, काशब, रावल, रहकवाल यदु, मेव, छिकारा, तैतवाल, भैनिवाल, उन्हड़, भाटटी बनाफरे, जादो, बागड़ी, सिन्धु, कालड़ा, सारन, छुरियापेड, लखमेरिया, चराड, जाखड़, सेरावत, देसवाल। रोहि्ला क्षत्रियों में ऊंटवाल गोत्र चंद्रवंशी एवं सूर्यवंशी दोनों में पाए जाते हैं सूर्यवंशी ऊंटवाल गोत्र मेवाड़ के गहलोत सिसोदिया घराने से हैं और चंद्रवंशी ऊंटवाल जैसलमेर के भाटी घराने से है। इस पर हमें पूर्ण विश्वास है जो ऊपर लिखा गया है। वर्तमान में अर्थात 1947 के आजादी से पहले रुहेलखंड क्षेत्र अर्थात बरेली, रामपुर, पीलीभीत, शाहजहांपुर आदि में जो आबादी बास करती थी, और जिसका सरकारी आंकड़ों में रिकार्ड मिलता है ,उसके आधार पर अध्ययन करने की जरूरत है। मुस्लिम आबादी तो बाहरी थी या फिर धर्मांतरण कर हुए थी। वर्तमान अनेक क्षेत्र हैं जो कुनबियों/कुर्मियों/कन्नौजिया/गंगवारों/बदायूं में राठौर कुर्मियों,यादवों, किसान /लोधों आदि के पूरे के पूरे गांव के गांव आअनेक मिलते हैं।जिनकी इतिहास /राजनीति में कोई न कोई भूमिका तो रही होगी। ईसा पूर्व छठी सदी में यहां देवहूति नदी, गोमती नदी के किनारे अनेक योगियों,सन्यासियों के ठिकाने बन गए थे। जनपद शाहजहांपुर के पुवायां तहसील में बंडा थाना के अंतर्गत सुनासीरनाथ कोई पदेन इन्द्र की तपस्या स्थली रही थी। जिससे तीन किलोमीटर दूरी पर दद उड़ी अर्थात ददियूरी दुर्गा भक्त व इन्द्र वंशज कुर्मियों/कुटम्बियों का बास था। जो पूरे पुवायां राज्य में प्रभाव शाली था। कहमारा (पुबायाँ) में भी जिनके वंशज थे। जब कुनबा बड़ा और उनके वंश के अन्य व्यक्तियों ने अन्य गांव बसाए। जिनमे से एक है-मुड़िया कुर्मायत।जहां इन कूर्मयों ने मंदिर का भी निर्माण करवाया था। नबी राम /नाभि राम इन वंशजों में कोई शक्तिशाली व्यक्ति था। बिलसंडा के पास जिनके नाम से अब भी एक गांव मिलता है-खजुरिया नबीराम। चौदहवीं सदी में दक्षिण भारत में एक प्रतापी राज्य था-विजयनगर। जिसमें अमात्य व प्रथम वेद भाष्यकार #सायण थे -उन्होंने कहीं पर लिखा है कि कुटम्बी/कूर्मि का मतलब है सर्वशक्तिमान। यह भी सुनने को मिलता है कि मौर्य काल में किसी राजा ने अयोध्या पर आक्रमण किया था। जिससे कुछ क्षत्रिय यहां व कोलार, कर्नाटक के जंगलों में आकर रहने लगे थे। अनेक बिहार ,बंगाल, असम में चले गाए थे। जो आगे चल कूर्मि कहलाए। यादव, कूर्मि, कुशवाह, किसान लोधे आदि सब चन्द्रवँशी व सूर्य वंशी क्षत्रिय ही थे।जो विभिन्न परिस्थितियों को देखते अलग अलग कालांतर में अनेक जातियों में बंट गाए। मानव शास्त्री व समाज सेवी तो कहते हैं कि कूर्मि अनेक जातियों का पुंज है। देश भर में इसकी 500 से ज्यादा जातियां उपजातियां पाई जाती है। पिछड़ा वर्ग की आबादी रुहेलखंड में लगभग 85 प्रतिशत वर्तमान में है। जिनके सम्बंध में सरकारी गजटों का अध्ययन बड़ा जरूरी है। कहते है कि यूरोप के लिए इतिहास में जो महत्व यूनान का हैं वह महत्व भारत के इतिहास में इन पिछड़ी जातियों का है।जो कभी क्षत्रिय ही थीं। शाहजहांपुर का जलालाबाद से लेकर कन्नौज तक कभी परसुराम का प्रभाव था। जिस क्षेत्र का सम्बंध दक्षिण के ब्राह्मणों से भी था। यादव #कश्यपगोत्रीय/कुर्मियों आदि (पहले सब पिछड़ा वर्ग एक ही,जातिवाद नहीं था) का प्रतापी राजा #सहस्रअर्जुन का भी प्रभाव यहाँ था। यह भी सुनने को मिलता है कि राजा परीक्षित के महा यज्ञ कार्यक्रम का यहां व उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों ने विरोध किया था तो दक्षिण से ब्राह्मणों को बुलाया गया था। सम्भवतः जो अब मिश्रा उपाधि लगते हैं। सिकन्दर के आक्रमण के समय में पश्चिमोत्तर में एक राज्य था-कठ राज्य। जिन्होंने यहां के आकर आश्रय लिया था। और आगे चल कर यहां शासन स्थापित किया था। एक क्षत्रिय कुल के ही लोग आगे चल अपने कार्य पेशा के आधार पर अनेक जातियों में विभक्त हो गए।जैसे कि कहीं देवल ठाकुर, तो कहीं श्रंगार आदि के व्यापारी, कहीं पण्डित कहलाते हैं।इसी तरह कहीं कहीं राठौड़ तेली, कहीं #कूर्मि/किसान, कहीं ठाकुर आदि कहलाते हैं। हजरत हुसैन की मदद को जो यहाँ से काफिला गया गया था वो तो देवल ब्राह्मण कहा जाता है। सुना जाता है कि पांचाल राज्य में शाहजहांपुर का नाम #अंगदीय था जो गोमती नदी के किनारे बसा था। शाहजहांपुर में ब्लाक कटरा खुदागंज क्षेत्र में #खुदागंज नगर सन्तों, योगियों का केंद्र था जो साधारण आवास न था।आश्रम, गुरुकुलों की यहाँ बहुतायत थी। यहां से कटरा होते हुए कन्नौज राज्य के लिए आवागमन था।कटरा के पड़ोस कसरक आदि क्षेत्र गंगवार कुनबियों का गढ़ था। कटरा राजा अग्रसेन वंशज क्षत्रियों का आबास, जो कभी हरियाणा आगरा क्षेत्र से से आये थे। सूरसेन क्षत्रिय व वैश्य भी इनसे सम्बंधित रहे थे।जिनके एक पूर्वज #उदयनाथ ने रोम में अपना प्रभाव इतना स्थापित कर लिया था कि वह रोम का उप सम्राट घोषित किया गया था। जिसकी मृत्यु के बाद उसकी पत्नी जनुवा ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किया था । जिसके अवशेष अब भी पामीरा/ताड़मरु में मिलते हैं। लेखक :अशोकबिन्दु

बुधवार, 23 जून 2021

धर्मांतरण(मतांतरण) पर एक झलक::अशोकबिन्दु

 हमारी नजर में किसी का धर्म अंतरण हो ही नहीं सकता। मानव की पहचान मानवता है।मानवता ही उसका धर्म है।यह तो मानव का भ्रम है कि मानवता के अलावा अन्य कोई उसका धर्म है।हमारी नजर में मानव का धर्म मानवता ही है। 


धर्मांतरण के लिए होने वाले मिशन को ध्वस्त होना जरूरी है।ये भारत की कमजोरी है कि भारतीय समाज अंदर ही अंदर पन्द्रहवीं सदी से इसको सह रहा है।पूंजीपति, माफिया, लोभी सत्ता भोगी आदि इसको नजर अंदाज करते रहे। हिन्दू समाज में भी एक तबका कभी सभ्य होने के नाते, कभी स्मार्ट होने के नाते ,कभी जीवन के लिए संसाधन जुटाने के लिए अपनी संस्कृति व भारतीयता में जहर घोलने वाले मीठे स्वाद को चखते रहे हैं।देश के अंदर हजारों मिशनरीज काम कर रही हैं। जो देश 500-600 वर्षों से धर्मांतरण के हजारों अभियान झेल रहा है।उन अभियानों के जनक देश एक उस #ओशो को नहीं झेल पाए जो सिर्फ अकेले सिर्फ अकेले उन देशों में जनता को उद्वेलित कर बैठा।वहां के अनेक नागरिकों का नामकरण संस्कार ही संस्कृत निष्ठ होने पर पादरी आदि ओशो पर बौखला पड़े। भविष्य में ओशो की विश्व यात्रा विश्व की आधुनिक धर्म इतिहास की महान घटना होगी। अमेरिका में ओशो को जेल के सलाखों के पीछे होना पड़ा।उन्हें थैलियम की बूंदे पिलाई गयी। किसी ने कहा है कि जो भारत सैकड़ो सालों से हजारों धर्मांतरण की मिशनरियों को झेल रहा है ,वे देश भारत के एक उस व्यक्ति को झेल नहीं पाया जिसके पीछे पीछे पूरी की पूरी जनता आ खड़ी होती थी। विश्व विशेष कर पश्चिम ने भी कम नहीं झेला है जबर्दस्ती धर्मांतरण व धर्म युद्ध को। यहूदी, पारसी आदि इसका प्रमाण है।


ये अफसोस कि बात है कि धर्म व मजहब के नाम पर अपना खेमा ,समूह,समाज बढ़ाने के लिए हिंसा, जबरदस्ती, प्रलोभन, षड्यंत्र आदि किये जाते है। आचार्य चतुर सेन का तो कहना है कि दुनिया में सबसे अधिक पाप तो धर्म व ईश्वर के नाम पर हुए हैं। जिसमें अपराध, माफिया, लोभ-लालच, सत्तावाद, पुरोहितवाद, जन्मजात उच्चवाद, जन्मजात निम्नवाद  आदि का बड़े सुंदर ढंग से धार्मिककरण,मजहबीकरण हुआ है।सन्तों व साधुओ, महापुरुषों ,अवतारों, पैगम्बरों आदि का भी मजहबीकरण,जातीयकरण हुआ है।ऐसे में विलखती ,चीत्कार करती मानवता पर किसी को दया नहीं आयी है। अफ़सोस है हमें कि इंसान को इंसान मानने की ही परम्परा खत्म हो गयी। जन्मजात निम्न व उच्च मानने की परंपरा शुरू हुई।अनेक की तो स्थिति न ही सम्मान जनक मरने की स्थिति न ही सम्मानजनक जीने की स्थिति न ही पन्थ परिवर्तन की स्थिति। यह भी सत्य है कि अनेक लोगों को पन्थ परिवर्तन से रोजगार, स्वास्थ्य, जीवन साथी मिला है।


पन्द्रहवीं सदी से यूरोप के लिए भारत की खोज काफी महत्वपूर्ण थी। उस समय पॉप का आदेश था -पुर्तगाल अन्य भूमि खोजने व उस भूमि से व्यापार व राज्य करने को स्वतंत्र है इस शर्त सहित कि उस भूमि पर ईसाइयत का प्रचार होगा। योरोप के सभी देशों के शिक्षा का उद्देश्य था-दुनिया के दुर्गम से दुर्गम क्षेत्रों में जाकर युवक युवतियों को  बसना और अस्पताल व स्कूल के माध्यम से मतांतरण में लगना। भारत का जन मानस जिसे नीच ,अछूत मान कर देखना तक नहीं चाहता था। उन्हें उन युवक युवतियों ने स्वीकारा।मेलों कुचेलों को स्वयं ही नह वाना, कपड़े पहनना, इलाज करवाना, शिक्षा देना आदि स्वीकारा। शिक्षा प्राप्त करने के बाद अनेक युवक युवतियों ने अपनी जवानी अपने धर्म(पन्थ) के प्रचार प्रसार में लगा दी।वहीं इस्लाम ने तलवार व जबरदस्ती का सहारा लिया। 


दुनिया भर में पुरातत्व क्या कहता है?दुनिया के तमाम देशों में खण्डहरों के इतिहास क्या संकेत करते हैं? भारत में नौ महीना नालंदा विश्व विद्यालय का पुस्तकालय जलता रहा। महाभारत के युद्ध के बाद बचा खुचा ज्ञान खो दिया। इसके बाद अब फिर ज्ञान व व्यवस्था का ऑनलाइन में बदलाव हो रहा है ,एक दिन सब कुछ ध्वस्त कर देगा। पूर्व प्रधान मंत्री चंद्रशेखर आजाद ने कहा था-हर मनुष्य में अनेक सम्भावनाएं है।उनको अवसर क्यों नहीं दिया जा रहा है?भारत के ही हर नागरिक को परमाणु बम की तरह क्यों नहीं बना देते। एक राष्ट्र को तय करना ही चाहिए कि हमें कैसे नगरिक चाहिए? उसके लिए कठोर फैसले लेने होने।बजट को उल्टा करना होगा।शिक्षा को व्यवहारिक, व्यवसायिक, आचरणात्मक बनाना होगा।अंक तालिका व्यवस्था को समाप्त करना होगा। विद्यालयों को बहुउद्देश्यीय व  रोजगार परख के साथ साथ सभी विभागों से संबद्ध करना होगा।


हम तो उस सन्त परम्परा को स्वीकार करते हैं जो मानव व मानव समाज  को  जाति - मजहब से परे हो अनुशासन, मानवता, सेवा,उदारता, शोषणबिरोधी, अन्याय विरोधी ,आध्यत्म, शिल्प कलाओं ,लघु उद्योगों, हर घर  को एक उद्योग व योग केंद्र  आदि से स्थापित करे।


24जून 2021::


सन्त कबीर दास जयंती!! सभी विद्यार्थियों को सूचित किया जाता है कि- 

"सन्त कबीर की आज के समय में प्रासंगिकता"- विषय पर निबंध लिख कर व्हाट्सएप नम्बर पर लिख कर भेजने। या भाषण देते 09मिनट का अपना वीडियों या पोस्टर बना कर उसका फोटो खींच कर भेजे। 


 आधार::


इस धरती पर कोई समस्या नहीं है।समस्या मानव व समाज में है। हमारे समाज के ठेकेदार, पण्डित मौलबी,नेता आदि सारे मानव समाज को मानवता की प्रेरणा देने में असमर्थ हैं। वे इंसान को इंसान मानने की परम्परा को आगे न बड़ा ,जीवन की असलियत को आगे न रख कर मानव समाज को जाति-मजहब आदि में ही बांट कर रखना चाहते हैं।हमारा दिल दिमाग, हाड़मांस शरीर व उसकी आवश्यकताएं व उसके लिए प्रबन्धन के लिए जातिवाद, मजहब वाद ,धर्म स्थलवाद आदि की आवश्यकता नहीं है ।ऐसे में अब भी सन्त कबीर के ज्ञान की आवश्यकता है।



 #अशोक कुमार वर्मा बिन्दु   





शुक्रवार, 18 जून 2021

18-21 जून विश्व योगा दिवस स्मृति कार्यक्रम पर्व::अशोकबिन्दु

 हमारे लिए 18-21 जून काफी वर्ष पहले से ही अति महत्वपूर्ण रहा है।


रानी लक्ष्मी बाई पुण्य तिथि पर्व!!

श्रुति कीर्ति जन्म दिन !!

अन्य पर्व!!!


19जून को......

संघर्ष के दौरान यौन हिंसा के उन्मूलन हेतु अंतरराष्ट्रीय दिवस!

विश्व सिकल सेल दिवस!

राष्ट्रीय भाषा हिंदी के उन्नयन, प्रखर, चिंतक, स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी माधव राव सप्रे का जन्म 19 जून 1871 को!

अन्य पर्व!!



20 जून........


विश्व शरणार्थी दिवस!

विश्व सर्फिंग दिवस!

20 जून 356 ई0 पूर्व सिकन्दर(अलक्षेन्द्र)का जन्म!

20 जून 1929ई0 बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम को इम्पीरियल लेजिसलिटिव काउंसिल ऑफ इंडिया में पेश व 28 सितम्बर 1929 को पारित।

अन्य पर्व!!



21 जून......


अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस!

विश्व मानवतावादी दिवस!!

विश्व संगीत दिवस!!

विश्व सेल्फी दिवस!

विश्व हैड्रोग्राफी दिवस!!

21 जून 1912 को विष्णु प्रभाकर का जन्म!!

21जून 1932 को जगन्नाथ रत्नाकर का देहांत!!

अन्य पर्व!!



18-21 जून 2021ई0!!

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18 जून 2021:: श्री दुर्गा अष्टमी व्रत!मां धूमावती जयंती!!कन्या पूजन व भोज कार्यक्रम।श्रुति कीर्ति जन्म दिन।।

रानी लक्ष्मीबाई पुण्य तिथि स्मरण पर्व।

19जून2021::


संघर्ष के दौरान यौन हिंसा के उन्मूलन हेतु अंतरराष्ट्रीय दिवस!

विश्व सिकल सेल दिवस!

राष्ट्रीय भाषा हिंदी के उन्नयन, प्रखर, चिंतक, स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी माधव राव सप्रे का जन्म 19 जून 1871 को!

अन्य पर्व!!महेश नवमी।


20 जून 2021::



विश्व शरणार्थी दिवस!

विश्व सर्फिंग दिवस!

20 जून 356 ई0 पूर्व सिकन्दर(अलक्षेन्द्र)का जन्म!

20 जून 1929ई0 बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम को इम्पीरियल लेजिसलिटिव काउंसिल ऑफ इंडिया में पेश व 28 सितम्बर 1929 को पारित।

अन्य पर्व!! गंगा दशहरा।रामेश्वरम प्राणप्रतिष्ठा। भैरव जयंती।


21जून2021:::





अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस!

विश्व मानवतावादी दिवस!!

विश्व संगीत दिवस!!

विश्व सेल्फी दिवस!

विश्व हैड्रोग्राफी दिवस!!

21 जून 1912 को विष्णु प्रभाकर का जन्म!!

21जून 1932 को जगन्नाथ रत्नाकर का देहांत!!

अन्य पर्व!! निर्जला/भीमसेन एकादशी व्रत।



हालांकि सन्त परम्परा में आचार्य/आचरण महत्वपूर्ण होता है।चिंतन मनन, नजरिया, आस्था/भाव महत्वपूर्ण होता है। प्रतिपल, प्रति श्वास मालिक, सार्वभौमिक ज्ञान, सार्वभौमिक प्रार्थना  के आंतरिक मनन में रहना आवश्यक होता है। तब जीवन में इन पर्वों के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। किसी ने कहा है कि हमें कम से कम सांसारिक वस्तुओं के भोग में रहना चाहिए। जो कि महाव्रत के बिना, यम के बिना निरर्थक है।

#अशोकबिन्दु




रविवार, 13 जून 2021

समर्पण व शरणागति ही प्रेम में::अशोकबिन्दु

समर्पण!

 ------------#अशोकबिन्दु





 एक दिन एक अध्यापक हमारी कुछ स्वरचित पंक्तियों पर कह रहे थे, हर कवि लेखक की एक शैली होती है, प्रकृति होती है। वे उसी पर लिखते हैं आपकी कोई सहेली भी है कोई प्रकृति भी है लेकिन हम क्या कहते कहते हैं हम जो सोचते हैं चिंतन करते हैं जो स्वप्न देखते हैं उसको लिखते हैं अगस्त क्या है जो मन में आया वह लिख दिया जो महसूस किया वह लिख दिया समझौता किया जो लिख दिया वह लिख दिया किसी के कहने पर बदलाव क्यों जो लिखा वही हमारी सहेली हो जाएगी विधवा हो जाएगी हमें साहित्य की मांगों को नहीं लिखना कोई कहानी या उपन्यास लिख रहे हैं तो कहानी या उपन्यास के मानक पर कॉल कर नहीं लिख रहे हैं बस अभिव्यक्ति कोशिशें रहती है जो मन में आया वह लिख जाए यहां पर समर्पण शीर्षक क्यों यहां सब अर्पण जैसा क्या मन चिंतन मनन ध्यान मौन अंत दशा अनुभव महसूस आज से ही हम आत्मा की ओर शायद चलते हैं। "हम अपनी इच्छाओं के गुलाम हैं जो हमारी उन्नति में बाधक है। " हमें अपने को महसूस करना है बस हमें अपने को महसूस करते हुए कर्म करते रहना है अपने वर्तमान स्तरों, अपने चेतना के वर्तमान बिंदु से ऊपर उठते रहना है ।इच्छाओं ने दुख दिया है, उम्मीदों ने दुःख दिया है। इच्छाएं पूरी भी हुई हैं तो उसकी खुशी में हम लोग लालच मोह में फंसे हैं इच्छाओं ने हमें गुलाम बनाया है किसी ने कहा है कि आत्मा ही स्वतंत्रता है हमारा तंत्र ही हमारी आजादी है गीता का शो धर्म है हमारा धर्म स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है शिक्षा एक वह यात्रा है जो निरंतर है वह अंतर्निहित दिव्य शक्तियों का विकास है हम यदि अपने लिए जीना चाहते हैं तो अपने को महसूस करते हुए आगे बढ़ो सागर में कुंभ कुंभ में सागर की स्थिति पैदा कर आत्माओं के उत्थान और सेवा में उतरी है हमारी हमारी पहचान हमारा स्व है।

कान्हां शांति वनम के साथ साथ हम ::अशोकबिन्दु

 14जून2021ई0! श्रुति पंचमी!! गुरु अर्जुन देव पुण्यतिथि!!! ज्येष्ठ शुक्ल 04, सोमवार,06.30am! सत सत नमन!! चिंतन मनन, नजरिया हमारी असलियत व चरित्र है। विश्व का सबसे बड़ा मेडिटेशन हाल का निर्माण लालाजी महाराज #श्रीरामचंद्रफतेहगढ़ के नाम से #कान्हा शान्ति वनम, हैदराबाद में बनबाया गया। जिसका उद्घाटन पिछले वर्ष इन्हीं दिन वर्तमान राष्ट्रपति जी के द्वारा हुआ। #हार्टफुलनेस #ब्राइटमाइंड आदि के माध्यम से हम लगभग 200 देशों तक पहुँच चुके हैं। www.heartfulness.org/education लगभग 7 राज्य हमारे कार्यक्रमों को आत्मसात कर रहे हैं। दक्षिण के पठार क्षेत्रों में हम उपरोक्त संस्थाओं के माध्यम से हरियाली व #वैटलैंड के लिए कार्य कर रहे हैं। 10 साल पहले वहां क्या था और अब क्या है?वहां के निवासी अनुभव कर रहे हैं। यात्रा अतीत से जारी है। भविष्य में भी जारी रहेगी। सब अनन्त यात्रा की जिम्मेदारी है ।हम सब तो माध्यम हैं। #विजयनगरराज्य के सेनापति व वेद भाष्यकार #सायण गंग वंश संस्थापक #दिदिग को भी हम भूल नहीं सकते। हमारे पूर्वजों के अवशेष #कुर्मांचल #साइबेरिया #रोम #युरोशलम आदि में अब भी सूक्ष्म जगत गबाह है। #कुरमा #कुरबा आदि ,#भूमध्यसागरीय जंगलो के कबीलों में , #रामपीथैक्स #अशहरुलहराम #रामाल्लाह आदि में सूक्ष्म जगत गबाह है। दुनिया की पुरातत्व रिपोर्ट्स हमारे गौरब को गा रही हैं। हमारा वर्तमान हमारी बसुधैव कुटुम्बकम, विश्व बंधुत्व की भावना है। हम स्वीकार करते हैं सिर्फ मानवता, अध्यात्म ही सभी समस्याओं का हल है। अशोक कुमार वर्मा "बिंदु"/अशोक बिन्दु भैया


शनिवार, 12 जून 2021

विश्व के सभी कुटम्बियों के पूर्वजों के अतीत का संज्ञान, विश्व बंधुत्व,बसुधैव कुटुम्बकम -भाव आदि में देश द्रोह, राज्य द्रोह, देश भक्ति, राज भक्ति के मायने क्या::अशोकबिन्दु

 हम इतिहास के विद्यार्थी रहे हैं।अब भी इतिहास का अध्ययन करते रहे हैं। हर युग में सत्ता पक्ष ने इतिहास के साथ ज़्यादती की है। इतिहास को युद्धों, युद्धों में हार जीत का दस्तावेज सिर्फ बना दिया गया है। देश के आजादी के बाद तो इतिहास के साथ बहुत ही बड़ा कुचक्र रचा गया।सत्यों को छिपा दिया गया। इतिहास के अनेक पृष्ठों को पढ़ कर हम खिन्नता,बौखलाहट का शिकार हो जाते हैं। जो इतिहास, गौरबशाली अतीत, आपसी संघर्ष, विदेशी शासकों के सामने भी लोभ के लिए आपसी मतभेद आदि की गंदी राजनीति, सत्तावाद, सामन्तवाद आदि को ही स्पष्ट करता है। राज्य विरोध, भक्ति आदि को हम सिर्फ राजनीति, सत्तावाद, सामन्तवाद आदि की नजर से देखते है।उसे मजहब की नजर से देखने की कोशिश नहीं करते। जो राजा मुगल, अंग्रेजो आदि के खिलाफ संघर्ष करते रहे, जिनके हम गुणगान करते नहीं थकते और मुगलों, अंग्रेजों का विरोध करते हैं।ऐसे में हम कहना चाहेंगे कि उन राजाओं के दरबार या सेना में क्या मुगल, अंग्रेज आदि नगरिक कार्यरत नहीं थे?उनकी लड़ाइयां सिर्फ क्या धर्म के लिए थीं?मन्दिरों आदि के लिए लड़ाइयों को छोड़ कर। औऱ फिर देश के अंदर जब विदेशी राजनैतिक ,सत्ता हस्तक्षेप न था तो किनसे लड़ाइयां होती थीं?उन लड़ाइयों को हम ज्यादा फोकस करना चाहते हैं। जब देश के अंदर विदेश्यों का सत्ता में हस्तक्षेप न था तब किससे लड़ाइयां?ये लड़ाइयां हमें काफी चुभती हैं, उन लड़ाइयों से जो विदेशी शासकों के साथ लड़ी गयीं। वर्तमान में जो त्रिवर्ण है, सामने है-ब्राह्मण, क्षत्रिय व वैश्य।जिसकी संख्या लगभग 15-20 प्रतिशत है। शेष 85-80 प्रतिशत क्या शुद्र थे?उनका राजनीति, सत्ता, सामंत में कोई प्रभाव न था?इन 85-80 प्रतिशत के पूर्वजों का इतिहास क्या है?इसको विद्यार्थियों के करीब आने जरूरी है। हम तो कहेंगे कि इतिहास को आज के परिपेक्ष्य में ,आज के परिपेक्ष्य में महत्व के साथ परोसा जाना चाहिए।भारत के अंदर विदेशीयों के प्रभाव ,युद्ध, षड्यंत्र आदि के अलावा पहले के इतिहास को भी स्पष्ट रूप से विद्यार्थियों को परोसना जरूरी है। और फिर इतिहास को राजनीतिक युद्धों के इतिहास, राज्य भूमि के लिए संघर्ष के इतिहास के रूप में सिर्फ दिखाने के अलावा अन्य घटक जो शांति, मानवता, बसुधैव कुटुम्बकम, विश्वन्धुत्व, विश्व व्यापार, संस्कृति विनिमय,विदेशी भूमि पर भारतीयों की दस्तक आदि की ओर संकेत करते हैं, उन्हें विद्यार्थियों को परोसा जाना चाहिए। जैसे कि ईसा पूर्व चन्द्रगुप्त मौर्य की विश्व स्तरीय शादी, उनका ईरान इराक यूनान तक प्रभाव आदि, सिंधु से लेकर भूमध्य सागर तक कु रूस,कम्बोज आदि का शासन, पामीरा(ताड़ मरु) में भारतीयों का शासन,प्रियव्रत के द्वारा रोम की स्थापना, रोम सम्राज्य में प्रतापी उप सम्राट उदयनाथ, मेसोपोटामिया सभ्यता,भू मध्य सागरीय दलदली क्षेत्रों में वरुण (मनु) के रूप में आवास योग्य भूमि निर्माण,कुरूस(साइरस),उसके पुत्र कम्बुज(कमिबसेस)आदि साम्राज्य,सार सेन यूरोप व मंगोलिया में,कुलोत्तुंग प्रथम(1070-1120) आदि व जावा सुमात्रा चीन आदि से सबन्ध,पुरानी सेन, रस(रूस), पुल(पिलर, पिलेसर,कादेशअर्थात पामीरा, अल अप्प ओ नगर, हेल इयो पोल इस(सूर्यपुरी)आदि के संदर्भ में), तुंग,वर्मन, वर्मा आदि उपाधियों के पीछे का इतिहास आदि को हम बसुधैव कुटुम्बकम, विश्वन्धुत्व के वैश्विक भारतीय राजनीति व प्रभाव के रूप में देखते हैं। सिंधु के उस पार #यहराम , #एरम #यलह #अल/एला/इला #रामल्लाह आदि में हम भारतीय दर्शन को देखते हैं।रोम, अमेरिका, अफ्रीका मे में मिले सूर्य मन्दिरों के खण्डहरों, विश्व की विभिन्न सभ्यता ओं को हम एक वैश्विक नजर में देखते है यदि भाषा, रीति रिवाजों,भेष भूषा को अलग थलग कर दिया जाए।देवता वही है, आदि दर्शन वही है।दक्षिण भारत से भी कहीं ज्यादा शिव मंदिर, शिव लिंग सिंधु के उस पार भूमध्य सागर, कृष्ण सागर, कश्यप सागर के तटीय क्षेत्रों में मौजूद थे। अपने पूर्वजों को याद रखने की कट्टरता तो इन 700 वर्षों में आयी है, धर्म का।मजहबी करण इन 700 वर्षों में आया है।जातीय व मजहबी जटिलता इन700 वर्षों में आयी है। यवन, अवन कौन थे?तुर्वसु के पुत्र भोज यवन के वंशज?जो मनु वंशी राजाओं के दरबार में।में भी स्थान पाते रहे।झूसी/इलावती/इलाहाबाद की स्थापना इला(इक्ष्वाकु बहिन) ने अपने पति बुध के साथ की थी। जो सनातनी भेद, कट्टर ता आदि के दायरे में रहकर विश्व, समाज आदि को देखते हैं, वे गलत है। एक समय वह था जब विश्व के सभी कुलों/कुटुम्बों को अपना अतीत पता था ।इसलिए वे किसी से परहेज नहीं करते थे।संघर्ष व युद्ध सिर्फ सत्ता, राजनीति, भौतिक लाभ आदि के लिए होते थे। हम बसुधैव कुटुम्बकम, विश्व बंधुत्व की भावना को सिर्फ अध्यात्म,मानवता, प्रकृति अभियान(यज्ञ) आदि में जा कर नहीं देखना चाहिए उसे अपने राजनैतिक व पूर्वजों के अतीत की नजर में देखना चाहिए।हम यदि अपने पूर्वजों के अतीत को जान जाएं तो भी हम वैश्वीकरण, विश्व बंधुत्व,बसुधैव कुटुम्बकम आदि के भाव मे देख सकते हैं।और विश्व शांति, मानव कल्याण, विश्व सरकार की ओर हम बढ़ सकते हैं।ऐसे में देश द्रोह, राज्य द्रोह, देश भक्ति के मायने भी बदल जाएंगे।हम सब विश्व स्तर मानवीय सम्बन्धों, वैश्विक सहयोग के माध्यम विश्व शांति, मानवता विकास को अंजाम देंगे। #अशोकबिन्दु


गुरुवार, 10 जून 2021

विश्व सरकार?!विश्व बंधुत्व, बसुधैव कुटुम्बकम के चलते देशद्रोह व देश भक्ति क्या है::अशोकबिन्दु

 



अनेक महापुरुषों ने विश्व सरकार की वकालत की है ।ऐसे में विश्व बंधुत्व वसुधैव कुटुंबकम की भावना के सामने देशद्रोह क्या है देशभक्ति क्या है ?

विदेश से सम्पर्क व व्यवहार की नियति महत्वपूर्ण है। लेकिन विदेश सम्पर्क व व्यवहार मानवता, आध्यत्म, देश की समस्याओं  के समाधान के लिए देशद्रोह नहीं है।क्यों न सरकारें उन व्यवहारों के खिलाफ हो?सरकार भक्त होना अलग बात है और देश भक्त होना अलग बात है।

सरकार क्या है?नेता, माफिया, पूंजीपति, ठेकेदार,जाति बल, मजहब बल, नशा व्यापार पर टिकी होती है।जो विधायक,सांसद होते हैं वे जातिबल, मजहब बल, पूँजीबाद, माफियाओं, ठेकेदारों आदि के तन्त्र में ही उलझे होते है। गांव, वार्ड के गुंडे, जाति बल, माफिया आदि हम किसी न किसी नेता या दल की छत्रछाया में देखते हैं। हम तो यह भी कहेंगे कि #अल्पसंख्यक #आतंकवाद की परिभाषा पर पुनर्विचार होना चाहिए।

#आजादी पर चर्चा होनी चाहिए। 

कटरा, हम व श्रीरामचन्द्र मिशन! ::अशोकबिन्दु


 कटरा, हम व श्रीरामचन्द्र मिशन! ------------------------------------------ आत्म प्रेमियों! आजाद हिंद फौज और सरकार श्री रामचंद्र मिशन संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के 75 वर्ष पूर्ण हो चुकी हैं हमारे शिक्षण कार्य को 25 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं।अश्विन, शुक्ल द्वितीया,02अक्टूबर को हम यह आत्मा शरीर धारण कर पृथु महि पर आये।होश सँभालते ही हम ध्यान(मेडिटेशन) से जुड़ गए।योग का सातवां अंग है-ध्यान। योग के कुल08 अंग हैं-यम,नियम,आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान समाधि। हमारा सौभाग्य है कि हमारा कार्य क्षेत्र कटरा विधानसभा क्षेत्र बना हमने जाना है।हमने जाना है-कटरा नाम के मोहल्ला, कस्बा, शहर देश में अन्यत्र भी हैं।सम्भवतः इन कटरा नाम की स्थापना का श्रेय अग्रवाल क्षत्रियों को जाता है। हमारा सन1996-97 ई0 में नया चरण शुरू हुआ। कबीरदान, गढ़ी, पुवायां(शाहजहांपुर)उप्र से श्री राजेन्द्र प्रसाद मिश्रा से से संपर्क के बाद हम श्री रामचंद्र मिशन के साहित्य से परिचित होना शुरू हुए इससे पूर्व पिता श्री प्रेम राज वर्मा गांव श्यामा चरण वर्मा फूफा जी मथुरा प्रसाद वर्मा आज से शाहजहांपुर के बाबूजी महाराज के बारे में मामूली चर्चा शुद्ध चुका था जिन्होंने सन् 1945 में हजरत के बुला मौलवी फजल अहमद कहां साहब रायपुर के शिष्य श्री रामचंद्र जी महाराज फतेहगढ़ के नाम से श्री रामचंद्र मिशन की स्थापना की सन 1945 में ही संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई भविष्य में धर्म नए रूप में पश्चिम से अवतरित होगा इसका श्रेय विदेश में बसे भारतवंशियों को होगा। 25 दिसंबर 2014 को श्री ब्रह्मधार मिश्रा, रामनगर कालोनी, कटरा(शाहजहांपुर),उप्र में श्री रविन्द्र सिन्हा के द्वारा हमने प्रथम सिटिंग(प्राणाहुति)प्राप्त की।हालांकि हमने यदा कदा किशोरावस्था से ही प्राण शक्ति, सूक्ष्म शक्ति को प्राप्त किया है।हमारे व जगत के तीन स्तर/रूप हैं-स्थूल,सूक्ष्म व कारण।जिससे मिलकर ही सम्पूर्णता(all, अल)बनती है।जिसका अहसास हमें कभी कभार होता रहा है।25 दिसम्बर 2014 ई0 से इस मामले में नया मोड़ आया। सन 2004-05 ई0 से ही हम सहज मार्ग राजयोग में संवाद होने को तीब्र लालयित हो गए थे। इस दौरान हमारा अनेक आज अध्यात्म शक्तियों से संपर्क भी हुआ । सन 2013 और 2014 में ब्रह्मकुमारी संस्था से कुछ ब्रह्मचरिणीयों का अनुभव अपने करीब में अनुभव किया। रेहान बेग के साथ इस बीच ग्राम इन्दर पुर कविंद्र यादव के पास भी पहुंचा।वहां अनुकूल वातावरण देखा।लेकिन उस वक्त कविंद्र यादव इस रास्ते पर नहीं थे।हम सूक्ष्म जगत के मैसेज ठीक से पकड़ न सके, उनको ठीक से उन मैसेजेस को पकड़ा न पाया।कोशिश की।इसी दौरान लालाजी महाराज अर्थात श्रीरामचन्द्र जी महाराज फतेहगढ़ से सूक्ष्म में मुलाकात हुई। पार्थ सारथी राजगोपालाचारी 'चारी जी' के समय से ही सूक्ष्म प्रयत्न का अभ्यास होने लगा था। उनके जाने के बाद श्री कमलेश डी पटेल दाजी दिसंबर 2014 में सहज मार्ग पद्धति के आधार में गुरु और श्री रामचंद्र मिशन के अध्यक्ष बने इसके बाद हार्टफुलनेस ने हमें विकल्प दिया इसको लेकर समाज के बीच जाने का वर्तमान में हम दुनिया के 200 देशों में इस को पहुंचते हुए देख रहे हैं सन 2002 में यूनेस्को संयुक्त राष्ट्र संघ में मूल आधार शिक्षा की वकालत हुई अब अनेक देशों और राज्य के अंदर अनेक राज्यों की सरकारें इसे किसी न किसी रूप में स्वीकार कर चुकी हैं और स्वीकार कर रही हैं वर्तमान प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी भी कह चुके हैं हमें अपने को और जगत को पूर्ण रूप से देखने का प्रश्न करना चाहिए स्थूल सूक्ष्म और कारण के परस्पर संबंध पूर्णता को महसूस करने की बार-बार मात्र को सही करते हैं अपने लिए क्या कर रहे हैं अपने लिए क्या सोचते हैं हम अपनी पूर्णता को महसूस ही नहीं करते हम अपनी स्थूलता सूक्ष्मता को ही महसूस नहीं करते हम अपने लिए करेंगे क्या सोचेंगे क्या? आओ, हम सब साथ साथ चलें। कुछ समय समूह में, परिवार में शांत होकर आंख बंद कर बैठने की आदत डालें। बहुत हो गया दुनिया की चकाचौंध में खो ना आखिर मिला क्या जहां भी देखो वहां सिर्फ दिखावा है और संतुष्टि भेद मतभेद खिन्नता तनाव अहंकार आज सेवा क्या मिला हमें हम अपनी स्वतंत्रता को महसूस करें परिवर्तन व परिवर्तन को स्वीकार करना,शाश्वतता, निरन्तरता है।हमारे अंदर कुछ है,जगत में कुछ है जो स्वतः व निरन्तर है। मीरानपुर कटरा, शाहजहांपुर में स्थित श्री हरि शंकर सिंह, प्रबन्धक श्री बलवन्तसिंह इंटर कालेज का नाम हमने कटरा में आने से पहले ही अपने पिताजी के मुख से सुन रखा था।24नवम्बर2019 को श्री कैलाश चन्द्र अग्रवाल के माध्यम से उन्होंने प्रथम प्राणाहुति प्राप्त की।01दिसम्बर 2019 ई0,रविवार को वह प्रातःकाल ध्यान सत्र में शामिल हुए। हम सब श्री बलवन्तसिंह इंटर कालेज,कटरा में रविवार को प्रातः ध्यान हेतु बैठते रहे हैं। पिताजी श्री प्रेम राज वर्मा के द्वारा हम पहले से ही मंत्री सतपाल यादव और हर शंकर सिंह के बारे में सुनते आए थे उनके कहने के बाद भी हमने इन से मुलाकात नहीं की थी पहली बार हमारी मुलाकात इनसे अजय गंगवार आशु पूर्व प्रधानाचार्य ने कराई थी समय 1 जुलाई 2004 था। व्यक्ति का विद्यार्थीकरण व समूह का कक्षाकरण?! विद्यार्थी मन की बहती है जिसमें व्यक्ति जिज्ञासा सीखने की ललक रखता है वह अंतर्मुखी होता है यदि व्यक्ति विद्यार्थी नहीं तो उसे चाहे कितने भी उच्च विद्यालय या शिक्षक के पास भेज दो शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकता यदि व्यक्ति विद्यार्थी है तो जगत के हर व्यक्ति हर घटना से सीख ले सकता है हम कक्षा या क्लास को भी है एक मनोवैज्ञानिक बतावा और स्थिति मांगते हैं किसी ने कहा है गुरु और शिष्य दो शरीर एक मन होता है एक आत्मा होता है। हम कहते रहे हैं सबसे बड़ा भ्रष्टाचार है शिक्षा।

30जून 2021 को 25 वर्ष शिक्षण कार्य के पूर्ण::अशोकबिन्दु

 हमारे शिक्षण के25 वर्ष! ...............................



 हमारी संस्कृति और सभ्यता में उदारता ,विश्व बंधुत्व, सागर में कुंभ कुंभ में सागर आदि की प्रेरणा मिलती है । विश्वास नहीं करता है- कैसे अनेकता में एकता, विभिन्नता में एकता महसूस की जा सकती है? अनेक भाषाओं ,जातियों ,पंथवाला यह देश कैसे अस्तित्व में है ?विश्व भारत से उम्मीदें कर रहा है लेकिन किस भारत से? हमें अपनी शिक्षा प्रणाली, शिक्षक, विद्यार्थी, विद्यालय समितियों आदि के लिए मूल्य आधारित शिक्षा हेतु कार्य संस्कृति ,संरक्षण, साहस ,मनोविज्ञान ,रुचि, आचरण ,व्यवसाय आदि पर पुनर्विचार की आवश्यकता है ।01 जुलाई 2021 को हमारे शिक्षण कार्य को 25 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं हम ऐसे एसएस कॉलेज शाहजहांपुर में B.Ed क्लासेस 1993 1994 के दौरान ही शिक्षण कार्य की पद्धतियों से जुड़े जब 5 अक्टूबर 1994 को हम ने प्रथम बार विश्व शिक्षक दिवस मनाया। कुल, संस्था ,पास पड़ोस, समाज में कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें सिर्फ नुक्ताचीनी, दूसरों में दोष खोजने की प्रवृत्ति लेकिन उन्हें दूसरों में गुण या अच्छाइयां नहीं दिखाई देते ।




एक व्यक्ति हमसे दो बार कह चुके हैं- आपका इन 25 वर्षों में क्या योगदान रहा? हमारा जवाब था कि हम नहीं जानते ।जिसने योगदान महसूस किया वही जानता होगा । ईसा,सुकरात जब थे धरती पर तब उनको कितने लोगों ने सराहा? शिक्षा दो लोगों के बीच की मानसिक क्रिया है। एक शिक्षक एक साथ चाहे कितनों को भी शिक्षा दे रहा हो लेकिन एक शिक्षक और विद्यार्थी दो के बीच की ही प्रक्रिया है ।इसमें तीसरे का हस्तक्षेप नाजायज है। शिक्षक इस स्तर से शिक्षा दे रहा है विद्यार्थी किस स्तर से उसे ग्रहण कर रहा है यह व्यक्तिगत मानसिक समझ स्तर पर , नजरिया आदि पर निर्भर है। हम किसके लिए प्रेरणा स्रोत हैं ?यह वही जानता होगा जिसके लिए हम प्रेरणा हैं। हम धरती पर अकेले होकर भी अकेले नहीं हैं। हम एक तंत्र का हिस्सा हैं। जातियों, संप्रदायों, संस्थाओं, समाज के बीच हो सकता है कि हम आप को अकेले दिखते हो लेकिन कायनात के सूक्ष्म से सूक्ष्म तंत्र ,सूक्ष्मतर से सूक्ष्मतर तन्त्र में हम किसी स्तर या बिंदु पर एक व्यवस्था की कड़ी हैं। मानव समाज में 98% व्यक्ति स्थूल , बनावटी, पूर्वाग्रहों छाप आदि से प्रभावित और निर्मित तंत्र और भ्रम के कारण निर्मित व्यवस्था का हिस्सा है। इसलिए देखा जाता है- पास पड़ोस, समाज, देश आदि में एक दो लोग ऐसे होते हैं जिनकी बात उम्दा होती है। आचरण किसी को कष्ट देने वाला नहीं होता है ।संवैधानिक वातावरण ,मानवता को महत्व देने वाले होते हैं आदि-आदि। लेकिन समाज, समाज के ठेकेदार ,समाज की संस्थाएं ,उनके साथ नहीं खड़ी होती। यह समाज और समाज के ठेकेदारों का भ्रम होता है। वे उनके साथ क्यों न खड़े हो लेकिन इसका मतलब यह नहीं है 2% व्यक्ति गलत रास्ते पर हो? भविष्य के लिए वही होते हैं। 98% वर्तमान व्यवस्था के रहते भविष्य में अशांति और असंतुष्ट में रहने वाले हैं या फिर उन 2% व्यक्तियों के रास्ते को ही पकड़ने वाले हैं ।सुधार, शिक्षा क्या है? परिवर्तन को स्वीकार करना ।हर पल परिवर्तन की संभावनाएं चेतना के अग्रिम बिंदुओं की ओर जाने की तड़प और जिज्ञासा, निरंतरता, विकासशीलता। वर्तमान शिक्षा सिर्फ बच्चों को घेरना, परीक्षा कार्यक्रम, अपना काम निकालने ,ड्यूटी अर्थात अपनी नौकरी बचाने आदि तक सीमित रह गई है। केवल 2% बच्चे ही विद्यार्थी हैं ।केवल 2% व्यक्ति ही अध्यापक हैं। केवल 2% ही अभिभावक हैं। क्लास भी क्लास नहीं अर्थात क्लास का जो पाठ्यक्रम है उसके आधार पर क्लास का स्तर नहीं। नई पीढ़ी के स्तर को खुश करने के लिए कौन सजग है ?यदि सजग भी है तो किस स्तर पर? विज्ञान की डिग्रियां ले घूम हैं लेकिन नजरिया, आस्था वैज्ञानिक नहीं। फिजिक्स से एमएससी कर क्यों न नौकरी कर ₹80000 कमा रहे हो लेकिन फिजिक्स में क्या योगदान ?  केमिस्ट्री में एम एस सी का केमिस्ट्री में क्या योगदान... आदि आदि। आज जो शिक्षित या बुद्धिजीवी माने जा रहे हैं वे वास्तव में ज्ञान के जगत में क्या योगदान रखते हैं? सन 1994 में एसएस कॉलेज शाहजहांपुर B.Ed क्लासेस के दौरान हमने शिक्षा संबंधी एक पुस्तक में पढ़ा था शिक्षा जगत में मुख्य समस्या है- विद्यार्थी विद्यार्थी नहीं है, शिक्षक अब शिक्षक नहीं है। विद्यार्थी सामान्य बालक बालिका से ऊपर या नीचे हो सकता है। वह सामान्य हो सकता है ।शिक्षक भी ऐसा ही है । उस दौरान हमने बहादुरगंज कटिया टोला के रोटी गोदाम स्कूल में कक्षा 7 में गणित और कक्षा 6 में इतिहास पढ़ाना शुरू किया था। हमने यह विद्यार्थी जीवन में ही महसूस करना शुरू कर दिया था। विद्यार्थी विद्यार्थी है ही नहीं। स्कूल में आना स्कूल में रहना क्लास में जाना क्लास में बैठना आदि सब 90% के लिए सिर्फ मजबूरी हो सकता है, मजबूरी होता है। 8% सिर्फ शिक्षा, शिक्षण शिक्षा और शिक्षण के पाठ्यक्रम प्रति कोशिश करने वाले एवं 2% ही लगभग पाठ्यक्रम में अब और पाठ्यक्रम के विषयों में रूचि रखने वाले होते हैं। 90% सिर्फ सांसारिक ता को जीने वाले  मन और मन को सराय रखने वाले होते हैं अर्थात ब्रह्मचर्य अर्थात अंतर प्रकाश अर्थात चिंतन मनन, ज्ञानता आदी रहना नहीं। इन 90% में 2% तो ऐसे होते हैं जो विद्यालय और क्लास की मर्यादा में भी नहीं होते ।साल भर में तीन चार बार विद्यालय से बाहर किया जाता है। माफीनामा होता है लेकिन परिणाम टाय टाय फिश ....यही प्रतिशत शिक्षक समाज में भी दिखता है। वास्तव में 2% ही बेहतर हैं- समाज और संस्थाओं में सामाजिकता, मनोविज्ञान आदि में ही है न की प्रेरणादायक। समाज, संस्थाओं में जिन का दबदबा है उनके जब काफी नजदीक होते हैं तब भी हमें प्रेरणादायक नहीं होते। किसी ने कहा है दुनिया जिसके हाथ में होना चाहिए उनके हाथ में नहीं है। लेकिन इसका कारण है 90% लोग और इन 90% में से भी 2% लोग। ऐसे में हम समाज संस्था और विश्व में अकेले हैं तो क्या एक-एक कर अन्य से संपर्क करने की कोशिश करते रहो बस । वैसे भी शिक्षा मानसिक प्रक्रिया है शिक्षण दो दिलों, दो मन ,दो दिमाग, दो रुझानों के बीच की प्रक्रिया है ।विद्यालय और क्लास में यदि कोई विद्यार्थी तथा कब तक विद्यार्थी यदि अध्यापक की बातों में रुचि नहीं रख रहा है, उसके निर्देशानुसार में क्लास या स्कूल में मर्यादा बनाकर नहीं रहता है या फिर 90% में से 2% अध्यापकों की सेवा में लीन होकर अपना उल्लू सीधा कर रहा है। वह कुल 100 में से 2% की बातों, मानसिकता, शिक्षण प्रक्रिया में भागीदार कैसे हो? कुुुछ का साहस अंतर्मुखी होता है वरन 90% में से 2% का साहस बहिर्मुखी ।इसलिए समाज, संस्थाओं और विश्व में यही ज्यादा प्रभावित करते हैं ,कुछ अपवादों को छोंड़ कर। हमारा कार्य, समाज, संस्था, कुल आदि में अपने को प्रमाणित करना नहीं है ।चरित्र को जीना नहीं है, हमें महापुरुषों के जीवन में, आत्मा में, परमात्मा में, छात्राओं के अग्रिम बिंदुओं में अपने को प्रमाणित करना है । अपना चरित्र जीना है। हमें भूतगामी नहीं, भविष्य गामी बनना है।जिसका आधार वर्तमान है। दुनिया में सबसे बेहतर कार्य है निरंतर अभ्यास और जागरण में रहना ।जीवन पथ पर विकास नहीं है ,पूर्णता नहीं है वरन विकासशीलता है ।हमारी चतुराई इसी में है कि इस शरीर को त्याग ते वक्त हम सब दुनियादारी छोड़कर विकासशील सा को छोड़कर पूर्ण हो जाएं, विकसित हो जाएं। सागर हो जाएं। परम प्लस आत्मा बराबर परमात्मा हो जाएं। वर्तमान शिक्षा, शिक्षण, तंत्र व्यवस्था में रहते हम सुधार की ओर अर्थात भविष्य की ओर नहीं बढ़ सकते। हमारी बुद्धिमत्ता तभी है जब वह परिवर्तन को स्वीकार की है। हम जिस स्तर पर या जिस स्तर तक परिवर्तन को स्वीकारते हैं वहीं इस तरह हमारी बुद्धिमत्ता की माप है।


हमारे शिक्षण को 30 जून 2021 को 25 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर::अशोक

 कुछ यह भी::25 से 75 तक! ---------------------------------------


 हमारे शिक्षण कार्य से जुड़े 25 वर्ष हो रहे हैं ।1 जुलाई 2021 ईस्वी को 25 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं ।यह 25 वर्ष और इससे पूर्व का जीवन भी शिक्षा जगत में ही बीता। इत्तेफाक है जिस वक्त हम शिक्षा कार्य से जुड़े, उस वर्ष से हम 5 अक्टूबर को विश्व शिक्षक दिवस मना रहे हैं। 5 अक्टूबर 1966 में यूनेस्को और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की हुई ।उस संयुक्त बैठक को याद करने के लिए मनाया जाता है।जिसमें अध्यापकों की स्थिति पर चर्चा हुई थी और इसके लिए सुझाव प्रस्तुत किए गए थे । सन 2019 में 25 वां विश्व शिक्षक दिवस मनाया गया। 5 अक्टूबर 1994 ईस्वी को पहला विश्व शिक्षक दिवस मनाया गया उस भक्त एसएस कॉलेज शाहजहांपुर में साहित्यकार और b.ed विभागाध्यक्ष अतुल जी के मार्गदर्शन में उनके मकान पर थे पिता जी प्रेम राज वर्मा की प्रेरणा भूमि एसएस कॉलेज शाहजहांपुर की फील्ड थी । यह सत्य है शिक्षा एक क्रांति है शिक्षित होना एक क्रांति है विद्यार्थी होना एक क्रांति है लेकिन यदि ऐसा संभव है तो इसका मतलब है शिक्षा व्यवस्था में कोई कमी है । यूनेस्को संयुक्त राष्ट्र संघ सन 2002 में ही मूल्य आधारित शिक्षा की वकालत कर चुका है इस आधार पर अनेक देश चल चुके हैं लेकिन अभी भारत देश नहीं हां कुछ राज्यों में इस ओर ध्यान दिया जा रहा है। यदि उपदेश आदेश और कर्म महत्वपूर्ण है तो क्या पिछली सरकार और राज्य के ठेकेदारों की नियत में खोट था वर्तमान समाज में अब भी हिंसा अराजकता देश जातिवाद अंधविश्वास आदि देखने को मिलता है नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी को भी निरंतर अभ्यास प्रशिक्षण जागरूकता प्राण आहुति आदि की आवश्यकता होती है अन्यथा फिर तंत्र को जकड़े बैठे लोगों पुलिस जनप्रतिनिधि आदि के चारों ओर दबंग माफिया जाति बल पूंजीवादी ही लाभ में नजर आते रहेंगे । अंगुली मान और अंगुली मान की गलियों में सिर्फ बुध और बुध अस्त ही मुस्कुराता नजर आएगा आपका तंत्र और आपके सम्मानीय वरिष्ठ नहीं। चिंतन मनन कल्पना स्वप्न हमारे जीवन से काफी घुलमिल गए हैं किशोरावस्था एक तूफानी अवस्था होती है जब हमने किशोरावस्था में प्रवेश किया लिखने में लग गया जब हम हरित क्रांति विद्या मंदिर में कक्षा 8 के विद्यार्थी थे हमारे लिखने का उद्देश्य सिर्फ लिखना था अभिव्यक्ति था इसमें कोई समझौता नहीं वर्तमान में लगभग 50 पुस्तकें तैयार हैं जो प्रकाशन के इंतजार में हैं बचपन से ही आर्थिक समस्या सामाजिक कुरीतियों आज को झेला है ऐसा इसलिए और हुआ क्योंकि हमारा संवेदनशील होना लेखन के क्षेत्र में हमारी समस्या रही कैसे हम छपे हां एक बार और एक बात और हम लिखते तो रहे हैं लेकिन लेखन सामग्री को एक शीर्षक देने उसे एक विधा देने में दुविधा रही है लेखन संवाद घटनाएं हमारी रचनाओं में रही हैं लेकिन उस रचना को किस विधा में माना जाए यह दुविधा रही है हमारा उद्देश्य सिर्फ अभिव्यक्ति रहा है । 25 से 75 तक? ए क्या है इस पर हम बहस नहीं कर सकते जिस प्रकार हम अपने रचनाओं के शीर्षक और विधा पर बहस नहीं कर सकते जो लिख गया जो लिख दिया वह लिख दिया। 25 वर्ष शिक्षण कार्य के! 75 वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ के! 75वर्ष श्री रामचन्द्र मिशन के! शांति सुकून की तलाश में हम कहाँ पर आ गये?जातिवाद, मजहबवाद,धर्मस्थलवाद, देशवाद, भीड़ तन्त्र, पूंजीवाद, सत्तावाद आदि हमें चिढ़ाने लगा। ध्यान(मेडिटेशन),मानवता, विश्वबन्धुत्व, बसुधैव कुटुम्बकम, विश्व सरकार हमारे सूक्ष्म जगत अर्थात अन्तर्दशा के हालात हो गये। ऐ इंसान तू कितना भी कर ले सितम तरक्की के नाम पे, कुदरत जब करेगीं सन्तुलन,तो तू न होगा इस महि पे । तेरे लिए हवा-पानी-सब्जी-अनाज इक दिन मुश्किल में ऐ इंसान तो तू तरसेगा आबो दाना के लिए इस जहां में; अपनी तरक्की के नाम पे है तू इंसान इस जहां भ्रम में ।। ऐ इंसान.. #अशोकबिन्दु



बुधवार, 9 जून 2021

हम अपनी पूर्णता की नजर से काफी दूर होते हैं::अशोकबिन्दु

 हमें अपने व जगत को पूर्णता की नजर से देखने की आदत डालनी चाहिए। स्थूल! सूक्ष्म!! कारण!!! स्थूल!हम स्थूल को ही स्थूल के यथार्थ, सत्य के आधार पर नहीं देख पाते।उसे हम अपनी व समाज की बनाबटी, कृत्रिम नजर से देखते हैं।भेद, विभिन्नता, द्वेष, पसन्द-नापसन्द, अनुकूल-प्रतिकूल, सुख-दुख, जाति-मजहब... आदि की नजर से देखते हैं। और ऐसे में हम कुदरत व खुदा की नजर से असल, यथार्थ सत्य को नहीं देख पाते।इसे में हमारी चेतना व समझ संकुचित होकर नर्क योनि, भूत योनि आदि की संभावनाओं में पहुंच जाती है।ऐसे में हम अपने, अपने समाज, संस्थाओं,जाति, मजहब आदि की नजर में में कितने भी बेहतर हो जाएं लेकिन कुदरत व खुदा की नजर से बेहतर नहीं हो सकते।हम परम् आत्मा, अनन्त यात्रा का साक्षी/अनुभवी/ज्ञानी आदि होना तो दूर अपने सूक्ष्म व कारण अस्तित्व, आत्मा,आत्माओं आदि के जगत व उनके पूर्व निर्धारित अभियान को नहीं जी पाते, साक्षी/अनुभवी, ज्ञानी आदि नही हो पाते।अन्तरदीप को प्रकाशित नहीं कर पाते।ऐसे में हम ज्ञान में अपूर्ण रह जाते हैं।हमारे विद्यार्थी जीवन ब्रह्मचर्य आश्रम होने से खण्डित हो जाता है।विद्यार्थी जीवन ब्रह्मचर्य आश्रम इस हेतु ही था ताकि हम अंतर्निहित शक्तियों, अंतर्ज्ञान को प्रकाशित कर सकें। #ब्राइटमाइंड के नाम से हम बच्चों को शिक्षित करते हैं, जिसमें बच्चे आंख बंद किए हुए भी सामने के हालात, वस्तुओं की जानकारी दे देते हैं। सूक्ष्म!अब हम सूक्ष्म जगत पर आते है।हम यहां पर भी असल, यथार्थ, सत्य में न होकर भ्रम, अज्ञानता, सामाजिक धारणाओं आदि में होते हैं। अमेरिका में सहज मार्ग राजयोग के एक सन्त हैं, उनका कहना है कि हमारी साधना, आराधना, उपासना(उप आसन)आदि अपूर्ण है जब हम अपने शरीर, परिवार व घर, आस पड़ोस आदि में चेतना, चेतनाओं, आत्मा, आत्माओं आदि का अहसास न कर सके।ऐसे में आप परम् आत्मा से क्या खाक जुड़ेंगे?!चेतना, चेतनाएं, आत्मा, आत्माएं आदि द्वार हैं शाश्वत, अनन्त, निरन्तर की ओर ले जाने का।हम अपने को #आस्तिक समझते हैं,#भक्त समझते हैं तो इससे क्या?वेद,कुर आन आदि रट लिए हो तो इससे क्या?आपके अहसास क्या हैं?आभास क्या हैं?अनुभव क्या हैं?आप महसूस क्या करते हैं?....यह महत्वपूर्ण है।इसलिए किसी ने कहा है धर्म तो व्यक्ति का होता है, जो व्यक्ति में अंदर होता है, अन्तस्थ होता है।भीड़ का तो सम्प्रदाय होता है, कर्मकांड, रीतिरिवाज आदि होता है।भीड़ का धर्म नहीं होता, परिवारों, संस्थाओं, समाज आदि का धर्म नहीं होता है। यहां पर हम बहुत कमजोर होते हैं।हम कहते तो हैं कि कण कण।में भगवान है, सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर आदि आदि लेकिन हम अपने जिंदगी में इसको स्वीकार नहीं किए होते हैं।हम जिस मूर्ति की रोज उपासना करते हैं, यदि वह बोलने लगे या उसके अंदर या उसका सूक्ष्म रूप हमें दिखने लगे तो अधिकतर लोग घबरा जाएंगे।हम आपके घर आये तो आप हमारा आदर करेंगे, बैठालेंगे, नाश्ता पानी कराएंगे आदि आदि यदि हम अपना हाड़ मास शरीर अपने घर पर ही छोड़ कर अपने सूक्ष्म शरीर से आपके घर आये तो क्या होगा?आप घबरा जाएंगे।कुछ घटनाएं जगत में देखी गयी है कि कोई का देहांत होगया ।उसकी लाश के समीप लोग इकट्ठे होने लगे, अचानक लाश में हरकत हुई, लाश उठ बैठी या कहें कि वह व्यक्ति जिंदा हो गया तो अनेक लोगों को घबराकर दूर हटते देखा गया है।या फिर किसी परिवार में कोई परिजन का देहांत हो गया, उसका अंतिम संस्कार भी हो गया।जब उसका सूक्ष्म रूप घर में आया तो सब परिजन घबरा गए।ये क्या है?जब हम अभी चेतनाओं, आत्माओं का एक अहसास नहीं कर पाते या जब अहसास होता है तो घबरा जाते हैं तो इसका मतलब क्या है?हम सब जो नौ बजे रात्रि में सार्वभौमिक प्रार्थना करते है, उससे हममे जो इससे स्थिति बनती है, उसमे हम में ये घबराहट समाप्त होती है।ये हमारा अनुभव है, निजी अनुभव है।शिव जी का स्थान कैलाश या श्मशान माना जाता है।आदमी में असलियत व फिलासफी जाग्रत श्मशान/कब्रस्तान में ही होती है। एक साधक थे,'अल्लाह हू.. अल्लाह हू..' का जाप आँख बंद किया करते थे।उन्हें अपने समीप जब प्रकाश आकृतियां दिखनी शुरू हुईं तो वे घबरा गए।उनके प्रशिक्षक/गुरु ने बताया कि तुम जो कर रहे हो करते रहे।मन को एकाग्र रखो।जगत को देखने का नजरिया बदलो।सार्वभौमिक प्रार्थना पर हर वक्त ध्यान रखो।जगत को,जगत के यथार्थ को देखने का भाव में में रखो।जो है सो है।कर्तव्य में रहो, बस। कारण!अभी हम कारण जगत से काफी दूर है।हम सब जीवन भर उलझे तो समाज, अपने हाड़ मास शरीर, अन्य हाड़ मास शरीर में ही उलझे रहते हैं। हम परम् आत्मा से जुड़े ही नहीं होते हैं, आत्माओं से जुड़े ही नहीं होते है।अपने करीब, अपनी निजता, अपनी आत्मीयता से ही नही जुड़े होते हैं। #अशोकबिन्दु


शुक्रवार, 4 जून 2021

महत्वपूर्ण है हमारा नजरिया, समझ, बदलाव की क्षमता की माप.. अशोकबिन्दु

 सहज मार्ग में व्यवहारिक रूप से व्यक्ति के अंदर की दशा को महत्व दिया गया।पुस्तकें सिर्फ विचार जगत को बदलाव लाने के लिए हैं।हम आस्तिक हों या नास्तिक, ब्राह्मण हों या शूद्र, हिंदुस्तानी हों या इंग्लिस्तानी, गरीब हों या गरीब, हिन्दू हों या मुसलमान.... आदि आदि,यह महत्वपूर्ण नहीं है।यह भी महत्वपूर्ण नहीं है कि हमारे ग्रन्थ क्या कहते हैं?महत्वपूर्ण ये भी नहीं हैं कि हमारे पूर्वज क्या थे?महत्वपूर्ण यह है कि हमारे अनुभव, अहसास, महसूसीकरण शक्ति, आभास करने की शक्ति, चेतना व समझ का स्तर, बुद्धिमत्ता(बदलाव को स्वीकार करने की क्षमता बुद्धिमत्ता की माप है:आइंस्टीन)....आदि आदि।सहज मार्ग में जो भी साहित्य है, वह आत्मा के अध्ययन का परिणाम है, अनुभव है न कि पुस्तकों के अध्ययन का परिणाम। हम आप को अपनी जाति, अपने मजहब, अपने ग्रन्थों, अपने महापुरुषों, अपने धर्मस्थलों आदि पर कितना भी नाज हो,यह शाश्वत जीवन, कुदरत, हमारे अंदर व प्रकृति के अंदर के स्वतः, निरन्तर, जैविक घड़ी आदि की नजर में वह महत्वपूर्ण नही है।वह हम आपकी उच्चता को प्रदर्शित नहीं करता न ही निम्नता को। #अशोकबिन्दु #सहजमार्ग


बुधवार, 2 जून 2021

अशोकबिन्दु::दैट इज....?!पार्ट 22

 पिता जी #प्रेमराज अपने अंतिम समय में कहने लगे थे- हम अब तो ब्रह्मांड में विचरण करते रहते हैं।सायण के मंत्र मेरे दिमाग में गूंजते रहते हैं। लगता है #हनुमान भी पीछे छूट गए है। वे खड़ी बोली व संस्कृत के वाक्य इस्तेमाल करने लगे थे।तब हम पहली बार सायण का नाम जाने थे।हालांकि हमारा सूक्ष्म शरीर अनेक बार विजयनगर राज्य क्षेत्र,कोलार, मनपक्कम आदि की यात्रा पर जाता रहा है।


खैर....


मालिक को धन्यवाद.... इस आभास के लिए!

#अशोकबिन्दु


03मई2021ई0,

करपस क्रिस्ट्री पवित्र गुरुवार!!

गुरुवार,06.30am!!


" असन्तुष्ट का पैदा होना खतरनाक है और असन्तुष्ट को दबा देना या खत्म कर देना और भी ज्यादा खतरनाक है।शिक्षा किसी को खत्म करना नहीं है वरन रूपांतरण है।"


  #महाकाल का विराट रूप/विश्व रूप!!


पक्ष -विपक्ष से ऊपर उभरो, पसन्द-नापसन्द से ऊपर उभरो, अच्छा बुरा से ऊपर उभरो! सिर्फ कर्तव्य ही कर्तव्य की स्थिति-निष्काम की स्थिति है।


विजयनगर राज्य के महामात्य, सेनापति व प्रथम वेदभाष्यकार-#सायण ने जब कहा था कि एक #कुनबी #कुटम्बी सर्वशक्तिमान होता है।सायण किस स्थिति की ओर संकेत कर रहे थे?

#बसुधैवकुटुम्बकम #विश्वबंधुत्व


#करपसक्रिस्ट्रीपवित्रगुरुवार


सेवा कार्य पर निबंध की भूमिका::अशोकबिन्दु


 सेवा कार्य पर निबन्ध की भूमिका.....#अशोकबिन्दु


जगत में जिधर भी निगाह जाती है उधर गतिशीलता नजर आती है जो पेड़ पौधे हैं वह भी परिवर्तनशील है उनमें स्थितियां परिवर्तित होती हैं हम मानव जाति से आते हैं मानव जाति के भी कर्म हैं कर्तव्य हैं जिनका जीवन में काफी महत्व है बिना कर्म किए व्यक्ति एक लाश के समान है कर्म जीवन का आधार है गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं हे अर्जुन संसार की वस्तुओं को पाने के लिए तुझे कर्म करने ही होंगे हाथ पर हाथ धरे बैठे रहने से कुछ भी हाथ नहीं लगने वाला हमे कोशिश  करते ही रहना चाहिए।


 हमारी वर्तमान स्थिति पिछले कर्मों का परिणाम है अब हम वर्तमान में बेहतर कर्म करके अपना भविष्य सुधार सकते हैं बड़े भाग्य मानुष तन पावा..... कर्म आखिर कर्म है क्या हमें इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है।


कर्म तो जगत में हर प्राणी कर रहे हैं।लेकिन उन कर्मों का स्तर क्या है?यह महत्वपूर्ण है।आज भी लोग कहते मिल जाते है-अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता। गीता में अर्जुन श्री कृष्ण से पूछते हैं-कर्म क्या है?श्रीकृष्ण कहते हैं-यज्ञ।अर्थात यज्ञ ही कर्म है।यज्ञ ?क्या अग्नि कुंड में मन्त्र उच्चारण के साथ आहुतियां डालना?नहीं, यज्ञ है-अभियान, प्रकृति अभियान। जहां कर्म है कर्तव्य, सिर्फ कर्तव्य।कोई अधिकार नहीं।प्रकृति अभियान रूपी अग्नि कुंड में अपने को आहुत कर देना। 


सेवा कार्य ही सच्चा कर्म है, जो कर्तव्य है।जो निष्काम है।परिवार भावना में एक परिवार के अंदर परस्पर सदस्य कैसे आचरण में बंधे होने चाहिए?धार्मिक अनुष्ठानों में सिर्फ चीखने से काम नहीं चलता कि -"जगत का कल्याण हो-जगत का कल्याण हो,अधर्म का नाश हो,सर्वेभवन्तु सुखिनः.... बसुधैव कुटुम्बकम..... आदि आदि"। नफरत, हिंसा तब विदा हो जानी चाहिए।सेवा,मानवता तब महत्वपूर्ण हो जाना चाहिए।

#अशोकबिन्दु

मंगलवार, 1 जून 2021

मूर्ति, मूर्तियां:मैं और प्रकृति अभियान::अशोकबिन्दु

 कभी कभी दरबाजे पर कोई सन्त आता है तो पूछता है घर में आप सब कितनी मूर्ति हो?

इसको समझने की कोशिश हम सब ने नहीं की है।

हम सब खुद की बनाई मूर्तियों को लेकर बैठ गए। जो ईश्वरीय/प्रकृति निर्मित व प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियां हैं हम उनको स्थूलता के आधार पर ही नहीं समझ सकते।सूक्ष्म व कारण के आधार पर समझना हम सब को बढ़ा मुश्किल।

हम व जगत के तीन स्तर हैं -स्थूल, सूक्ष्म व कारण। सहज व नौसर्गिक रूप से हम उसकी छबि अपने अंदर नहीं रखते।

लोग अभी हम अभी आत्म सम्मान को ठीक से समझ ही नहीं पा रहे हैं। आत्म प्रतिष्ठा, प्राण प्रतिष्ठा, स्व अभिमान, स्व तन्त्र,आत्म निर्भरता आदि को समझ ही नहीं पा रहे हैं। स्वार्थ को समझ ही नहीं पा रहे हैं।स्व अर्थ को समझ ही नहीं पा रहे है।ऊपर से कृत्रिमताओं में उलझे हैं।


शिक्षा अब भ्रष्टाचार बन कर रह गयी है। 



अभिव्यक्ति, तर्क और मैं::अशोकबिन्दु

 हमारे अंदर जो है,हमने वह लिख दिया, यही हमारे लिए अभिव्यक्ति है।

हम वर्तमान में जिस स्तर पर है आज उस पर रह अभिव्यक्ति की है वह वर्तमान की है।कल हम अन्य किसी स्तर पर हो सकते हैं, तब अभिव्यक्ति उस स्तर पर हो होगी।

इसमें तर्क की, चर्चा की कोई गुंजाइश नहीं। अभिव्यक्ति अभिव्यक्ति है।बस, वह मर्यादा में होनी चाहिए।

 जब हम  कक्षा 8 के विद्यार्थी थे  तभी से  लेखन  चिंतन मनन  मेंेडड टेशन  आद में लगे हुए हैं । हमने महसूस किया  मानव और मानव समाज में  जो भी हो रहा है  वह  75% से अधिक  असल के  सम्मान से दूर है  प्रकृति  अभियान के  सम्मान से दूर है।  हम अपने अंदर ही अंदर  काफी कुछ  महसूस करते रहे हैं  कि  क्या होना चाहिए  क्या नहीं होना चाहिए ?हमारे अंदर  वह है  जो स्वत:, निरंतर है  लेकिन हम उसके संदेशों को  नजरअंदाज कर देते हैं । पांच तत्वों से हमारा शरीर बना है ।पांच तत्वों की मर्यादाए हैं । आत्मा की मर्यादाएं हैं । जिनकी ओर से  हम समझ ही नहीं रखते  ।हमारे अंदर ...... हम अंतर्मुखी होकर भी  जगत की चकाचौंध से  प्रभावित रहते हैं  । ऐसे में  हम  अपने  अंदर की  अभिव्यक्ति को  लेखन के माध्यम से  व्यक्त करते रहे हैं । हमें इस से मतलब नहीं है  कि  सामने वाला  उसके  विरोध में है या समर्थन में  ,अभिव्यक्ति अभिव्यक्ति है । उसे तर्क नहीं चाहिए ।