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मंगलवार, 1 जून 2021

मूर्ति, मूर्तियां:मैं और प्रकृति अभियान::अशोकबिन्दु

 कभी कभी दरबाजे पर कोई सन्त आता है तो पूछता है घर में आप सब कितनी मूर्ति हो?

इसको समझने की कोशिश हम सब ने नहीं की है।

हम सब खुद की बनाई मूर्तियों को लेकर बैठ गए। जो ईश्वरीय/प्रकृति निर्मित व प्राण प्रतिष्ठित मूर्तियां हैं हम उनको स्थूलता के आधार पर ही नहीं समझ सकते।सूक्ष्म व कारण के आधार पर समझना हम सब को बढ़ा मुश्किल।

हम व जगत के तीन स्तर हैं -स्थूल, सूक्ष्म व कारण। सहज व नौसर्गिक रूप से हम उसकी छबि अपने अंदर नहीं रखते।

लोग अभी हम अभी आत्म सम्मान को ठीक से समझ ही नहीं पा रहे हैं। आत्म प्रतिष्ठा, प्राण प्रतिष्ठा, स्व अभिमान, स्व तन्त्र,आत्म निर्भरता आदि को समझ ही नहीं पा रहे हैं। स्वार्थ को समझ ही नहीं पा रहे हैं।स्व अर्थ को समझ ही नहीं पा रहे है।ऊपर से कृत्रिमताओं में उलझे हैं।


शिक्षा अब भ्रष्टाचार बन कर रह गयी है। 



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