Powered By Blogger

गुरुवार, 31 मार्च 2011

आबादी का स्तर बनाम पर��वार व उत्तराधिकार का��ून!

भारत की पन्द्रहवीं जनगणना के प्रारंभिक आंकड़ों के अनुसार भारत की आबादी एक अरब इक्कीस करोड़ है जिसमें 62करोड़ पुरुष58करोड़ महिलाएं हैं.इन ताजे आकड़ों के अनुसार देश के पैमाने पर लिंगानुपात में कुछ सुधार होने के बावजूद छह राज्यों में बाललिंगानुपात में पिछली जनगणना के मुकाबले सुधार देखा गया,जबकि केन्द्र शासित प्रदेशों सहित शेष सत्ताईस राज्यों में इसमें गिरावट दर्ज की गई है.



*बेटियों की संख्या में यह गिरावट*



उफ् !नारी शक्ति मातू शक्ति, कन्याओं का पूजन! भारतीय संस्कृति स्त्री को बराबर का दर्जा नहीं ,पुरुष से भी बड़ा दर्जा देता है.नारी को मातृ शक्ति व कन्याओं को देवि शक्ति का दर्जा दिया जाता है.यह सब शास्त्रो व प्रवचन तक ही ठीक है.



अरे,काम बने अपना भाड़ में जाए जनता!औरत जाति काहे के लिए है?घर में रह कर खामोशी से पुरुष की जूती तले रह.हमें उसके हड्डी मास के शरीर से मतलब है,उसके भाव मनस आत्म शरीर से नहीं.सन्तान के नाम पर तो लड़के ही ठीक! देख रहे हो जमाना,लार टपकाते कुत्ते की तरह सूंघता फिरता है कि कहां हैं लड़कियां ? सामंती स्टाइल ही ठीक है.लड़कियां पैदा करने से कितनी समस्यायें आ खड़ी होती हैं?रुपया हो सम्पत्ति हो,औलादों के शादी के लिए लड़कियां मिल जाएंगी ही.नीचे तबके वाले जाने?और फिर नीचे तबके वालों के लड़कों के सामने का समस्या ?महानगरीय स्टैण्डर्ड कल्चर में आत्मनिर्भर व रुपया फेँकू बापों की लड़कियां अब स्वयं लम्बे तगड़े चिकने लड़कों को रखती हैं और न जाने क्या क्या करवाती हैं ? ऊपर से अपना रुपया भी खर्च करती हैं.बात है शादी की,जाति बिरादरी राज्य देश की शरहदों की न माने तो का कमी लड़कियों की?इतनी बड़ी आबादी ,लेकिन नब्वे प्रतिशत आबादी का स्तर व नजरिया क्या है?ऊर्ध्वार्धर में नहीं क्षैतिज दिशा है,सभी के ऊर्जा की. ऊपर से अतृप्त मन ,अशान्ति ,असन्तुष्ट व अविश्वास.उसको बहला फुसला कर जाति - समाज के ठेकेदार सिर्फ अपना उल्लू सीधा किया जा सकता है लेकिन कानून ,मानवता, सुप्रबन्धन,आदि के लिए दशा दिशा नहीं दी जा सकती?आबादी का स्तर सुधारने के लिए परिवार व उत्तराधिकार कानूनों पर पुनर्विचार कर परिवर्तन आवश्यक है.उत्तराधिकार व वंशवाद के कारण लिंगानुपात प्रभावित है .परिवार बसाने की अनिवार्य सोच के कारण आबादी का स्तर उच्च नहीं हो पाता.जो अपने शरीर व स्वास्थ्य के भले की नहीं सोंच पाते व अपना स्तर नहीं सुधार पाते,वे अपने बच्चों का स्तर क्या सुदारेंगे?आज सत्तर प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं तो क्या इसके लिए माता पिता दोषी नहीं हैं?आज भी काफी तादाद में बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहें तो इसके लिए माता पिता दोषी नहीं हैं?ऐसे में क्या सभी दम्पत्तियों को सन्तान उत्पन्न करने का अधिकार मिलना चाहिए ?मेरा विचार है -नहीं.



ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'


मंगलवार, 29 मार्च 2011

आशुतोष जी कहिन है: प्रधानमंत्री जी वि श्वक��� में भारत की इज्ज त ल��टवाने की अग्रिम बध ा��याँ...

मोहाली में क्रिकेट मैच है हिन्दुस्थान और पाकिस्तान का..सुना है भारत के
प्रधानमंत्री भी आ रहें है..कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री जी ने अन्ना हजारे को
समय देने से इंकार किया था व्यस्तता का हवाला देते हुए.. हाँ भाई अन्ना हजारे
उनके मंत्रियों के लूट का हिसाब मांगने वाले थे एक हिंदुस्थानी की हैसियत से..
अब मोहाली के लिए माननीय प्रधान मत्री जी को समय मिल जाता है...अगर भारत जीते
या भारत हारे दोनों ही परिस्थितियों में न तो काला धन वापस आ सकता है,न ही
महंगाई घट सकती है, न ही ये चोर सरकार अपनी चोरी और लूट को बंद कर सकती है...एक
सामान्य नागरिक की हैसियत से मैं जो सोचता हूँ या पाता हूँ हम लोग भावना के
आवेश में बह जातें है...अभी भावना क्रिकेट की है..कल महंगाई..परसों काला धन तो
कभी भोपाल..

भोपाल से याद आया हम लोग ने कितनी चिल्ल पों मचाई थी कुछ माह पहले भोपाल गैस
कांड को ले कर...मीडिया ने भी मिले सुर मेरा तुम्हारा करते हुए बेचना शुरू कर
दिया था भोपाल त्रादसी के जख्मों को..*.

*क्या बदल गया भोपाल में तब से आज तक...कुछ नहीं...लेकिन हमने तो मोंबत्तियां
जला ली ..ब्लॉग लिख लिया और बस हो गया भोपाल कांड ख़तम....
मुद्दे को उठाने से जरुरी उसको तब तक जीवंत रखना होता है जब तक वो अपनी परिणिति
तक न पहुच पाए ...और कई लोग बोलेंगे की आज भोपाल मुद्दे का क्या ओचित्य है.. तो
मित्रों आज न तो बरसी है भोपाल कांड की,न ही किसी विकिलीक्स ने खुलासा किया
है..ये मुद्दे को जीवंत रखने का एक सामान्य आदमी का एक छोटा सा प्रयास है...

आगे देखें तो हमारे प्रधानमंत्री जी ने नापाक पाक के सभी आतंकवादियों को सरकारी
मेहमान बनने का न्योता भी भेज दिया..
अरे कसब और अफजल जैसे दामाद पा के आप का जीवन धन्य नहीं हुआ की आज ये दोगलापन
दिखा रहे हो...ये दोगला शब्द का चयन मैंने पुरे होशोहवास में किया है...क्यूकी
इस निर्णय से कहीं न कही एक आम हिन्दुस्तानी भी आहत है..मुंबई हमलों के बाद इसी
सरकार ने गले फाड़ फाड़ के कहा था की अपराधियों पर बिना किसी करवाई के कोई
वार्ता नहीं होगी...शर्म अल शेख में क्या कसब की हालचाल देने गए थे आप..और गए
भी तो बलूचिस्तान बलूचिस्तान का मन्त्र पढ़कर भारत को ही कटघरे में खड़ा कर
दिया...आप भारत के प्रतिनिधि थे या पाकिस्तान के बिचौलिए.
*.

*
ये तो फिर भी उच्च स्तर की बातें है जिसकी समझ मुझे न हों मुझे ये बताएं आज तक
पाकिस्तान ने खुल्ला घूम रहें मुल्ला और अपराधियों के आवाज के नमूने भी नहीं
दिये पकड़ना तो दूर और हम दुम हिला रहें है कायरों की तरह और मैच दिखा रहें
है..अतिथि सत्कार कर रहें है....कोई आश्चर्य नहीं होगा इस भरत मिलाप के कुछ माह
में ही भारत में बम फोड़े जाएँ या कश्मीर में कत्ले आम हो.. तो हम हर बार अपनी
ही बातों से फिर जातें है ..एक पाकिस्तानी पत्रकार को कहते सुना था मैंने की
पाकिस्तान को वार्ता के लिए झुकने की जरुरत नहीं है,भारत वाले १-२ साल बाद खुद
ही आयेंगे हमारे पास ..
.तो सोनिया के मनमोहन जी आप के आप के सरकार की,युवराज और महरानी की पाकभक्ति के
कायल पाकिस्तानी भी है..वो जानते है की आप के लिए कसब और पाकिस्तानी जल्लाद
प्यारें है तो आप मैच देखने आयेंगे ही गिलानी से चोंच लड़ायेंगे ही...हा गलती
से कश्मीरी पंडितों का हाल नहीं लेंगे क्यूकी बड़े दामाद अफजल जी नाराज हो
जाएँगे..
चलिए आप को विश्वकप में भारत की इज्जत लुटवाने की अग्रिम बधाइयाँ...
*
2011/3/30 Akvashokbindu

> भारत जीतेगा विश्वकप!
>
>
>
>


--
*धन्यवाद
**आशुतोष नाथ तिवारी. *
*+91-9718847528
**Click my blogs :
1 हिंदी कविता-कुछ अनकही कुछ विस्मृत स्मृतियाँ

2** आशुतोष की कलम से.... *
*.......................*

भ्रष्ट देशों में भारत चौथे स्थान पर !

भ्रष्ट देशों में भारत चौथे स्थान पर !


तीन से तो अच्छा है !

हांगकांग की प्रमुख सलाहकार फर्म पीईआरसी के एक सर्वेक्षण मे यह तथ्य सामने आया है कि भारत भ्रष्टाचार के मामले मे फिलीपींस और कम्बोडिया जैसे देशों कि पंक्ति मे खड़ा है.एशिया प्रशान्त क्षेत्र के 16 देशों मे भ्रष्टाचार के मामले मे भारत चौथे स्थान पर है.चलो कोई बात नहीं तीन से तो श्रेष्ठ हैं ?और फिर इन सर्वेक्षण के चक्कर मे काहे पड़ना ?अपने काम मे लगे रहो,बिन रुपयों के तो धर्म का काम भी न हो.धर्म स्थल बढ़ रहे हैं .धर्मस्थलो मे भीड़ बढ़ रही है.यह सब क्या कम है?जानते नहीं क्या यह आध्यात्मिक देश है?धार्मिक देश है?करोड़ों का दान चढ़ जाता है मंदिरों मे?ईमानदारी मे तो अपना घर ही बिक जाए,ये धर्म की बात छोड़ो.अरे,बेईमानी भी करनी पड़ती है जी.परिवार का पेट पालना है,रिश्वत देनी पड़ जाती है इधर उधर,बच्चों की फीस भरनी ही पड़ती है स्कूल मे,उनको पास कराने के लिए अलग से रुपया चाहिए,बच्चों को नौकरी दिलवाने के लिए भी तो कुछ इक्कट्ठा करना है ,कही जुगाड़ हो गया तो चार पांच लाख तो अधिकारियों के मुंह पे मारना ही है.अरे,भक्ति ईमानदारी तो मन और दिल की है.आज की भागदौड़ मे हर दिन भगवान को याद कर लें,यह क्या कम है?हर इतवार को आर्यसमाज में होने वाले हवन में भी शामिल हो लेता हूँ,जहाँ सबसे ज्यादा ऊँची आवाज मे मै ही जयघोष लगाता हूँ-धर्म की विजय हो,धर्म का नाश हो! ईश्वर की मर्जी के बिना पत्ता तक नहीं हिलता.रामदेव बाबा आ तो गये है,वे देश को भ्रष्टाचार मुक्त बनायेँगे.चार सौ लाख करोड़ रुपया जो विदेश में काला धन के रुप मे जो जमा है,वह वापस आयेगा तो कुछ हमारा भी भला होगा.जव तक चारपांच साल शरीर मे दम है,काम कर रहा हूँ.और फिर हम ठहरे कृष्णवंशी अहीर,जानते हो उन्होने अपनों के लिए चोरी तक की?अच्छा ,अब चलत हैं .बोर्ड परीक्षाएं चल रही हैँ,बच्चों को पास कराने का ठेंका ले रखा हैँ.वा तयो जा 'च......'का शासन है,मुलायम के जमाने व मंत्री जी की मौजूदगी मे स्थायी सेन्टर के दौरान तो जलवे ही जलवे थे,लाखों रुपया कमा लिया.चलो कोई बात न डेढ साल बाद फिर अपनी सरकार होगी,हम अहीर जी जान लगा देंगे मुलायम की सरकार बनाने मे ?अरे,रमुआ तू का करन आओ यहाँ?


"भैया परीक्षा देन जात है,दस हजार रुपया मगात हैं"


अच्छा आत हैं,तू भी चिन्ता मत कर, दो साल बाद अपनी अपनी सरकार होगी तो तुझे भी हाईस्कूल करवाके ही दम लेंगे.तेरे भैया का देखो बीएससी पूरा होने जा रहा है,कौन कहता रुपयों मे दम नहीं होती?और फिर तुम लोगों की शादी मे रुपया बसूल कर लेंगे.




ओह !यह नजरिया....


धन्य धार्मिक व आध्यात्मिक देश के धार्मिक व आध्यात्मिक लोग?



हम तो ठहरे अधार्मिक गैराध्यात्मिक असफल पागल सनकी.......बस,अपने ब्लाग के शीर्षक का नाम<सामाजिकता के DANSH>रख कर ऊंटपटाँग बातें लिख सकता हूँ और आज के सामाजिक व्यक्तियों की भीड़ मे मै तो ठहरा असमाजिक , बेकार व पलायनवादी व्यक्ति...



शेष फिर.....



अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'



.......तो असामाजिक ही सही !

संवेदनाएं खत्म हो रही हैं,सेवा भाव खत्म हो रहा है लेकिन तब भी लोगों के मुख से सामाजिकता की बात हो रही है.व्यक्ति व्यक्ति के बीच धन,बदले का व्यवहार,ऊंचनीच,पक्ष विपक्ष,आदि को देख कर व्यवहार कर सामाजिकता का जिक्र होता है.
दया करुणा, सहायता ,सेवा भाव
,आदि के कारण व्यक्ति से व्यवहार नहीं रखते.मै सामाजिकता के स्थान पर मानवता का प्रयोग करता आया हूँ."अरे,समाज के आधार पर चलना पड़ता है!"-यह कहने वाले लोग कायर ,अवसरवादी भेड़ चाली,आदि होते हैं.ऐसे लोगों के द्वारा मैने व्यक्तियों की वैसाखी तक तोड़ते देखा है.इनकी दृष्टि पर जिस रंग का चश्मा चढ़ा होता है,उस रंग का ही इन पर असर होता है.अन्य रंग के विरोध मे ही होते हैं यह.इस ब्लाग का शीर्षक 'सामाजिकता के दंश' मैने यों ही नहीं रख दिया था.इस शीर्षक मे मेरा दर्द छिपा हुआ है,जो कि मैँ बचपन से झेलता आया हूँ.लोग मुझे बुद्धिजीवी कह डालते हैं लेकिन मै तो अपने शरीर व मन के उपचार के लिए यह सब करता आया हूँ.रोगी भी अपना इलाज कराते कराते नुस्खों को जान जाता है.मै अपनी निशानियों के रुप में दुनिया में जो छोड़ जाऊंगा,वे वे नुस्खे हैं जिनके सहारे मै अपने को संवरता रहा हूँ.चेतना के प्रवाह ,मानवता से दूर नजर आती है सामाजिकता.आखिर ऐसा नजर क्यों न आये ?इंसान का भगवान, धर्म व प्रेम तक शरहदों में बंटा होता है.ऐसे मे सामाजिकता के नाम पर भी इंसान के व्यवहारों पर शरहदों का साया रहता है.
शाश्वत मूल्यों पर कृत्रिम शरहदों की कब तक चलेगी ?
"समाज को लेकर चलना पड़ता है''-कहने वाले क्या इंसानियत का दर्द कम करने में आगे आते हैं?द्वेष ,मतभेद,निज स्वार्थ,आदि से उबर क्या यह अपने सर्किल में आने वालों का भेदहीन होकर मदद करते हैं?हमारे एक सम्पर्क में थे,उन्होने चाहें अपनी पत्नी द्वारा नवदुर्गा व्रत में चाहें कन्यापूजन व उनको भोग मे मदद न की हो लेकिन पर गरीबों दलितों के बच्चों अपना रुपया व समय खर्च करते देखा है,उन्हें अपने जाति व अपने स्तर के लोगों के लड़के लड़कियों की शादी में मदद करते न देखा हो लेकिन गरीब अनाथ लड़के लड़कियो की शादी मे मदद करते अवश्य देखा है,ऐशो आराम व मनोरंजन की वस्तुएं अपने घर मेँ इकट्ठा करने वाले अपने रिश्तेदारों की उन्होने चाहे आर्थिक मदद न की हो लेकिन सादगी व उदारता मेँ जीवन जीने वालों की उन्होने आर्थिक मदद की है,उनका परिवार जिन्हें अपने अपोजिट मानता है आपत्तिकाल में उन्हें उनकी मदद करते देखा है,आदि लेकिन...परिवार व समाज में वे अलग थलग ही रहे.झूठी शान व दुनिया की चकाचौध में जीने वाले उन्हें पागल व सनकी समझते रहे,यहाँ तक कि उनकी पत्नी तक का नजरिया व व्यवहार उनके प्रति अच्छा न था.अपने अन्तिम समय मे उन्होने एक जो पुस्तक लिखी ,वह हिन्दी के प्रोफेसरों तक को बकवास लगी लेकिन उन शब्दों के पीछे छिपी भावनाओं को नहीं समझा गया.इंसानियत को महत्व देने वाले उनका सम्मान करते थे लेकिन....लेकिन जो यह कहते है कि समाज को लेकर चलना पड़ता है,उनके लिए वे अब भी पागल हैं क्योकि उन्होने कभी बदले की भावना से व्यवहार न किया और न ही सिर्फ अपने बराबर वालोँ में.उनमे सम्पूर्ण मानवता के प्रति समर्पण थे.वे जाति भेद,लिंग भेद ,परिचयवाद ,आदिसे मुक्त हो उदारभाव से सेवा कार्य मेँ लगे रहे.समाज व सामाजिकता की बात करने वाले सिर्फ उन पर अंगुलियाँ उठाते रहे.धन्य,आज की सामाजिकता.जब अभिभावकों को पता चलता है कि मैं बच्चों से कहता फिरता हूँ ,दो परिस्थितियां है तुम्हारे सामने एक समाज के आधार पर चलने का दूसरा महापुरुषों के आधार पर.तब अभिभावकों का चेहरा देखने वाला होता है.








सोमवार, 28 मार्च 2011

WIKILEAKS :चोट दंश पर

WIKILEAKS वर्तमान मे अन्तर्जाल वैचारिक क्रान्ति के पथ पर हम जैसे लड़खड़ाते पथिकों का उत्साह व साहस है.अपने ईमान पर पक्का होने के लिए दवाई की पुड़िया है.
दूध का दूध पानी का पानी होना ही चाहिए.



विकिलीक्स के पास क्या अमेरिका मे ओशो के साथ व्यवहार,चे ग्वेरा के साथ हुए व्यवहार,सुभाष चन्द्र बोस व लाल बहादुर शास्त्री के मृत्यु सम्बन्धी दस्तावेज , भिण्डरावाले व लिट्टे को शिखर पर पहुंचाने वाली पार्टी, बोडो आन्दोलन को आश्रय देने वाले,आदि पर भी क्या कुछ भी सामग्री उजागर करेगी?कुछ दिनों से उसकी निगाह भारत पर है,अच्छा है.नेताओं व नौकरशाहों की असलियत जनता के पास आनी ही चाहिए.



कुछ भारतीय नेताओं व पार्टियों के सम्बन्ध मे कुछ तथ्य उसने उजागर किए ही ,भारत के दलितों पर भी उसकी नजर गयी और विश्व स्तर पर सवर्ण की सोंच उजागर हुई.देखा जाये सवर्ण वर्ग सनातन धर्म के पथ पर अवरोध बना हुआ है. जाति व्यवस्था को खत्म कर वर्ण व्यवस्था (श्रम विभाजन) को वह शायद अनेक पीड़ीयोँ तक नहीं चाहेगा ?वाल्मीकियों को छोंड़ गैरसवर्ण भी जाति भावना से भरे हुए हैं. रोजमर्रे में हिन्दू हिन्दू के नाम से हिन्दू के साथ सृजनात्मक व्यवहार नहीं रखता.अपने को कट्टर हिन्दू कहलवाने वाले हिन्दू वाल्मीकियों द्वार मनायी जाने वाली वाल्मीकि जयन्ती
समारोह के आस पास तक नजर नहीं आते.



हिन्दुओं के विखराव के लिए कौन दोषी है?क्या दलित व वाल्मीकि हिन्दू नहीं?
उनसे दूरियां क्यों?तो ऐसे मेँ एक हजार वर्ष पहले क्या गलत हुआ कि समाज में उपेक्षित वहिष्कृत लोगों ने मो0गौरी व गजनवी का समर्थन किया या अब नक्सली हो रहे है या धर्म परिवर्तन कर रहे हैँ ? खैर...





WIKILEAKS को बहुत बहुत धन्यवाद !

इसे देखें -


< http:// 213.251.145.96 / >

रविवार, 27 मार्च 2011

उप्र बोर्ड परीक्षा के दंश !

पिछले वर्ष मैं इस पर काफी लिख चुका हूँ.अब फिर कुछ लिख रहा हूँ.इस मामले मे मायावती की उप्र सरकार सराहनीय है,नकलविहीन परीक्षाएं तो नहीं हो रही हैं लेकिन पिछले वर्षों की अपेक्षा कुछ सुधार है.नकल व्यवस्था के लिए अभिभावक व अध्यापक दोनों दोषी हैं.आज के भौतिक भोगवादी युग मे सभी का नजरिया अपने धर्म व आत्मा से हटा है.कैसे भी हो,इंसान हर हालत मे आज की भौतिक भोगवादी दौड़ मे अपने को शामिल कर लेना चाहता है.लेकिन वह इसके परिणाम पर नहीं जाना चाहता.



वर्तमान मे परीक्षा के माहौल मे प्रशासकीय कर्मचारी विद्यालयों मे जा जा कर दोषी व्यक्तियों को दण्डित तो कर रहे हैं लेकिन शासन व प्रशासन को इस प्रति व्यवस्था करने से कोई मतलब नहीं है कि विद्यार्थी नकल की उम्मीद ही क्यों रखें ?विद्यार्थियों व अभिवावकों मे नकल का विचार ही न आये,इसके लिए शासन प्रशासन के पास क्या कोई हल नहीं है?क्या उनके पास दण्डित करने के ही कानून है ?




मै देख रहा हूँ कि जिन विद्यालयों मे प्रशासन की नजर मे भी सब ओके है,वहाँ भी सब ओके नहीं है.
कक्षनिरीक्षकों की कक्षों मे डयूटी ,विद्यालयी सर्च टीम,आदि के स्तर पर भी मौखिक रुप से परीक्षार्थियों की नकल मे सहयोग की भावना रहती है. जो अध्यापक स्वय नकल करते परीक्षार्थियों को बुक करने की क्षमता रखते हैं ,अपने डयूटी कक्ष में नकल कराने वाले अध्यापकों कर्मचारियों का दखल बर्दाश्त नहीं करते,आदि ऐसे अध्यापकों के ही खिलाफ होते हैं-विद्यालय की व्यवस्था देखने वाले अध्यापक.कुछ विद्यालयोँ मेँ तो प्रधानाचार्य , विद्यालय समिति,आदि की चाटुकारिता में लगे अध्यापकों का नियन्त्रण और भी अन्दुरुनी खतरनाक होता है.इस ग्रुप के अध्यापक चाहे कुछ भी करें,वे स्वतन्त्र होते हैं.अध्यापक होकर भी यह पक्ष या विपक्ष देखते न कि आदर्श व मूल्य.









आरक्षण दंश : कैसे बन्द हो भस्मासुर रुपी आरक्षण ?

संस्कार नहीं, नैतिकता नहीं ,इंसानियत नहीं, उदारता नहीं ,सेवा नहीं ,कर्त्तव्य नहीं तो काहे की शिक्षा ,कैसी शिक्षा?आज के अभिभावक ही भौतिकवादी भोगवाद के पथ पर अपना अस्तित्व खड़ा करना चाहते हैं.वे अपने बच्चों को अब भी सार्वभौमिक ज्ञान,सेवा,उदारता,आदि से दूर रखना चाहते हैं.नकल,धन,आदि के बल पर डिग्रीयां व नौकरी दिलाने का ख्वाब देखते हैं,आरक्षण की बैशाखी के सहारे अपने बच्चों को आगे बढ़ाना चाहते हैं.इसी उम्मीद के साथ अन्य कुछ जातियां अब आरक्षण का ख्वाब देखने लगी हैं .


सोमवार,
28मार्च2011,
अमीर खुसरो, बरेली समाचार पत्र के पृष्ठ सात पर ब्रजेश कुमार का लिखना है कि



आज हमारे देश मे निवास करने वाले सभी धर्मों के लोगों में जाति के अनुसार हमारी सरकारों ने आरक्षण प्रदान कर उनके स्तर को सुधारने का प्रयास किया था.कार्य तो लोक लुभावना था,मगर इस आरक्षण रूपी भस्मासुर ने आज पूरे देश को हिला कर रख दिया है.



....आखिर उससे फायदा क्या होगा?कल को हाई कास्ट वाले भी अपने लिए आरक्षण की मांग करने लगेंगे,तब क्या महत्व रह जायेगा आरक्षण का?


ब्रजेश कुमार जी व अन्य सभी अपनी वैचारिक क्रान्ति मे मदद के माध्यम से योग्यता,नारको परीक्षण,ब्रेन रीडिंग,आदि की अनिवार्यता,जाति व्यवस्था की समाप्ति की वकालत करते रहेंगे.