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शनिवार, 24 जुलाई 2021

असन्तुष्टि का इतिहास में महत्व रहा है::अशोकबिन्दु

 

कौटिल्य शिष्य चन्द्र गुप्त ने पंजाब व अन्य क्षेत्र के असंतुष्टों को एकजुट कर सेना बनाई थी। बाबर ने भी ऐसा ही किया। अन्य भी इस तरह के उदाहरण है। भविष्य नए दलों का होगा।वर्तमान दल समाज व देश की दिशा व काया नहीं बदल सकते।




कुछ बीमारी ही हद पर यहां तक पहुंच जाते हैं कि दुनिया के डॉक्टर अपने हाथ खड़े कर लेते हैं। दुनिया व देश,सरकारों, नेताशाही, नौकरशाही का सिस्टम/तन्त्र उतना ही बीमार है कि वह बीमारी से मुक्त नहीं हो सकता। उसके मरने का इंतजार करना होगा। कुदरत की मार को झेलना ही होगा। 2011 से2025 तक का समय काफी महत्वपूर्ण है। भविष्य में जो होना है,उसका रास्ता बन रहा है। कुदरत की ओर से भी कुछ शक्तियां कार्य कर रही हैं। समय पर हिसाब किताव बराबर हो जाएगा लेकिन धृतराष्ट्र व गांधारी के हाथ कुछ भी न लगेगा। हमें अफसोस है कि हमने 2014 में कुछ ज्यादा ही उम्मीदें कर लीं जिस तरह केजरीवाल आदि के षड्यंत्र में फंसे अन्ना आंदोलन से कर बैठे। स्तर दर स्तर अभी काफी कुछ होना बाकी है।अफसोस कि मोदी पूंजीवाद, सत्तावाद,माफिया तन्त्र में ही फंसे हुए हैं। जयगुरुदेव ने कहा था, देश के हालात ऐसे हो जाएंगे जैसे कुत्ते के गले में फंसी हड्डी! इतिहास गबाह है क्रांति कौन करता है?#असन्तुष्ट मगध के राज्य के खिलाफ क्रांति का स्वर भरने वाला चाहें चाणक्य को मानो या चन्द्र गुप्त को लेकिन यह सत्य है कि उनके साथ खड़ा था-#असन्तुष्ट ! फ्रांस की क्रांति हो या रूस की क्रांति?या इंग्लैंड की क्रांति? किसने शुरू की थी? #असन्तुष्ट ने। ये उठा कर देख लो- नौकरशाही, सत्तावाद,पूंजीवाद, पुरोहितवाद,माफियावाद नें क्रांति में अपनी आहुतियां नहीं दी है । आदि काल से वन्य समाज,किसान, पशु पालक, परिवर्तनों के कारण बेरोजगार, मजदूर आदि को ठगा जाता रहा है। समाज,देश व विश्व में क्या होना चाहिए?इससे बुद्धिजीवी निष्पक्षता उपेक्षित रही है। वर्तमान दल, नेताओं, सरकारों के पास वह हिम्मत व जज्बा नहीं है जो जड़ से जुड़ी समस्याओं का हल कर सकें। सरदार पटेल,अम्बेडकर, दीनदयाल, अटल, लोहिया आदि को लेकर तो राजनीति चल रही है लेकिन उनके विचारों को आत्मसात करते हुए नहीं। एक वक्त आएगा जब वर्तमान नेताओं, दलों को हालातों को संभालना मुश्किल होगा। पूंजीवाद, सत्तावाद, पुरोहित वाद, जातिवाद,माफिया वाद आदि में लिप्त व्यवस्था समाज व देश का भला नहीं कर सकती। #अशोकबिन्दु

शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

गुरु-शिष्य परम्परा से वर्तमान शिक्षक व विद्यार्थी परम्परा::अशोकबिन्दु

 वास्तव में किसी का गुरु जाना दिल की अवस्था है, व्यक्ति के रुझान, रुचि ,आत्मीय अवस्था है।समर्पण, शरणागति की दशा है।दीवानगी की दशा है।जो वह होने, उसमें जीने के लिए संसार का सब कुछ त्यागने की अनजानी दशा रखता है।जैसे कि किसी की किसी में आदत पड़ जाती है तो हर हालत में उस आदत में जीता है। शिष्य गुरु से कुछ निचले स्तर पर होता है।जैसे कि चिकित्सा विद्यालय में चिकित्सा की ट्रेनिग करता  व्यक्ति जो समाज में चिकित्सक के छोटे छोटे कार्य देखने लगता है।इससे हट कर उसके सामने एक चिकित्सक होता है।एक चिकित्सक व चिकित्सा विद्यार्थी में जो फर्क होता है, वहीं शिष्य व गुरु में होता है।



आज कल के विद्यार्थीव शिक्षक की दशा हट कर है।

 वर्तमान में  शिक्षक और शिष्य के बीच मर्यादा ए बदल चुकी हैं शिक्षक और विद्यार्थी के आचरण भावनाएं नजरिया बदल चुकी है।



गुरुपूर्णिमा पर विशेष!!#अशोकबिन्दु 


वास्तव में यदि शिक्षा ज्ञान आधारित आचरण में उतरने लगे तो शायद नब्बे प्रतिशत अभिवावक अपने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दें। तब मानवता हीन समाज का अस्तित्व ही हिल जाएगा।एक व्यक्ति के वैज्ञानिक होने की स्थितियां जो है, ज्ञान के आधार पर आचरण की जो स्थितियां है.... आदिआदि उसे परम्परागत समाज, परम्परागत अभिवावक ही नहीं चाहेगा। देखा जाए तो अब दो ही वर्ण रह गए हैं-वैश्य व शुद्र।व्यापार व नौकरी।।कल्पना चावला, किरण बेदी,ए पी जे अब्दुल कलाम आदि जैसे बनने के लिए उनके जैसा नजरिया, भाव कहाँ से आएगा? #शिक्षाक्रांति हममें शिष्यत्व चाहिए, तब हम पेड़ पौधों, जीव जंतु से तक यहां तक कि हर नगेटिव घटना से तक शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं।यदि शिष्यत्व नहीं तो आप कॉम्ब्रिज चले जाएं, निरर्थक!! हर व्यक्ति अपने स्तर पर अपने अंदर गुरुत्व को छिपाए है।प्रश्न ये है कि हम किसके भाव से सामने के व्यक्ति के सामने किस स्तर पर समर्पित हैं, शरणागति है। किसी का शिष्य होना या किसी का गुरु होना एक योगिक दशा है।दिल से हमारा शिष्यत्व किस स्तर पर है?दिल से हमरा गुरुत्व किस स्तर पर है?#हार्टफुलनेसस्टूडेंट्स #हार्टफुलनेसटीचर एक तो दिल से इतना हो जाता है कि उसकी हालत अतिसम्वेदनाशील हो जाती,जिसे अट्ठानवे प्रतिशत स्वीकार ही नहीं सकते। वे इतने अंदर पहुंच जाते हैं कि उनके लिए उसका उभरना उसी स्तर का सघन मनोवैज्ञानिक वातावरण मांगता है। उसके लिए मन की सघन गहरी शांति हेतु वातवरण चाहिए। ऊपर ऊपर जुबान, तर्क, बुद्धि, इंद्रियों ,लोभ लालच आदि से/के सहयोग से कोई भी सक्रिय हो सकता है। जो ज्ञान अंतर्मुखी होता है,वही वास्तविक होताहै लेकिन वह यों ही उजागर नहीं होता। गुरु तत्व है, दशा है। शिष्य एक तत्व है, दशा है। लोभ लालच, जीविका आदि के लिए कोई भी कुछ समय के लिए शिष्य या गुरु की भूमिका में आ सकता है जो सिर्फ कर्मचारी होता है।जो दिल से है, उसके हालात अलग हैं। शिक्षा में शैक्षिक मनोविज्ञान का बड़ा महत्व है। शिक्षा एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। क्यो ,कैसे, कब, किसे, कहाँ ,कौन शिक्षा दे यही शिक्षा में मनोविज्ञान का ध्येय है।आज की तारीख।में।अट्ठानबे प्रतिशत शिक्षा लेने व देने वाले दोनों का मनोवैज्ञानिक रुझान शिक्षा में है ही नहीं।उन्हें वास्तव में शिक्षा से मतलब ही नहीं।वे सिर्फ शिक्षा को अन्य रुझान के लिए माध्यम बनाये हैं। समाज व जगत के के प्रति वे भी वही नजरिया, विचार, भाव रखते हैं जो एक अशिक्षित,अज्ञानी, जातिवादी, मजहबी, मानवता हीन सामजिकता, अंधविश्वास युक्त सामजिकता आदि रखती है,चरित्र रखती है।

मंगलवार, 20 जुलाई 2021

प्रिय की कुर्बानी बनाम प्रिय की कुर वाणी ::अशोकबिन्दु

   कुरआन की शुरुआती सात आयतें हमें काफी प्रभावित करती रही है।


उसके हिसाब से हमने जो चिंतन मनन करते हैं,उसको लिखने की कोशिश कर रहे हैं।


आखिर प्रिय क्या है?

हमारे जीवन में 'प्रिय' के  भी अनेक स्तर हैं।उस स्तर के आधार पर ही हमारी बरक्कत होती है।


'सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर'- की स्थिति से पूर्व अनेक दशाएं हैं।उत्तरार्ध भी अनेक दशाएं हैं।चेतना के वर्तमान स्तर से नीचे व ऊपर अनन्त स्तर हैं।


संसार,प्रकृति में हमें जो प्रिय है, पसन्द है।उसमें हमरा ठहराव हमारी रुकावट, हमारी गुलामी है।हम कहते रहे हैं, आगे अनन्त स्तर हैं। प्रिय, आत्मियता, आत्मा आकर्षण, गुण आदि अनन्त से आते धारा का परिणाम है।लेकिन हम जिस स्तर/बिंदु पर होते है।उससे आगे नहीं जाना चाहते। स्थूल, सूक्ष्म व कारण..... हम स्थूल स्तर पर ही निम्न/पशुवत स्तर पर होते हैं।तो हम अनन्त से आती ऊर्जा, आकर्षण, प्रेम ,पसन्द को  उसी स्तर पर अपने लोभलालच, मोह, काम, अपराध ,हिंसा, जबरदस्ती, मनमानी, चापलूसी आदि पर टिका देते हैं। ऐसे में हम आगे के स्तरों की अनन्त यात्रा के गबाह नहीं हो पाते। 


जगत में प्रिय की कुर्बानी का मतलब है, जगत की कोई चीज हमारे लिए पसन्द न पसन्द से परे हो।अच्छा बुरा से परे हो।हम बस एक व्यबस्था के लिए, अपने कर्तव्यों के लिए जीते रहे जो हमारी चेतना, समझ के स्तर को आगे अनन्त स्तर/बिंदुओं की ओर ले जाए।इसके लिए निरन्तर अभ्यास, नियमित दिनचर्या, सतत स्मरण, नियमित साधन आवश्यक है।



महाभारत युद्ध के बाद आ अनेक कबीले/कुटुम्ब शांति से अपना जीवन गुजर बसर करने के लिए स्थान परिवर्तन किए।जंगलो, पहाड़ों, गुप्त स्थानों का सहारा लिया ही अपनी पहचान को छिपा कर जीवन यापन अपने जीवन की आवश्यकताओं में लग गए। जीवन प्रबन्धन है, यज्ञ है.. आवश्यकताओं के प्रबन्धन के लिए जीते रहना।
ये  प्रबन्धन हमारी पूर्णता/सम्पूर्णता/योग/all/अल/इला/आदि के लिए होना चाहिए।हद तो तब होती है जब हम आत्माओं, परम् आत्माओं के लिए जीने से पहले हाड़ मास शरीरों के लिए इस हद तक गिर जाते हैं कि हिंसा, अपराध,पर निंदा, पर शोषण, अन्याय आदि में ही उलझ जाते हैं।


कुर्बानी या बलिदान, सन्यास या त्याग, वैराग्य या भक्ति आदि का मतलब सांसारिक बस्तुओं के लिए जी कर जीवन उसी में न गंवा देना है।जिसके लिए प्रयोगशाला ग्रहस्थ जीवन है।जिसमें निरन्तर अभ्यास वर्तमान स्तर से उबरना है। जगत व कुटुम्ब में जीने का मतलब लोभ लालच, पसन्द नापसन्द में जीना नहीं वरन अपने सामर्थ्य, स्तर, औकात में जीते हुए अपने सामर्थ्य, स्तर, औकात को विस्तार हेतु निरन्तर अभ्यास में रहना है।इसके लिए आत्मा ही द्वारा है जो हमें अनन्त, निरन्तर, शाश्वत, स्वतः आदि से जोड़ता है।जीवन पटरी पर आ जाता है।तब ये हाड़ मास शरीर क्यों न साथ छोड़ जाए लेकिन तब भी हम अभ्यास में बने रहते हैं।आदी हो जाते हैं।तब...
#भगत के बस में हैं भगवान #आदत संवर गयी हो गया भजन....!?
#उसके सारथी होने का मतलब समझ में आने लगेगा।


प्रिय की कुर्बानी को हम दो रूप में लेते है-(१) संसार के बीच पसन्द नापसन्द से परे होकर जीना।प्रिय अप्रिय के भाव से मुक्त हो जीना  सिर्फ सुप्रबन्धन व  कर्तव्य के लिए(२) प्रिय की वाणी को पकड़ना, उस पर चलना।आकाश तत्व से हमें अपने अपने अन्तर में अनेक मैसेज मिलते रहते हैं।उनको पकड़ कर उस आधार पर चलना।
(क्रमशः)

देश को अब ऐसे लोगों की जरूरत है जो देश के लिए हर हद से गुजरने के लिए तैयार हों:::अशोकबिन्दु


 देश को शायद उग्र राष्ट्रवाद की अब जरूरत है?! देश को अब ऐसे लोगों की जरूरत है जो देश के लिए मरने तक को तैयार हो जाएं लेकिन देश सर्वोपरि रहे। . जो सम्भवतः मानवता, आध्यत्म व संविधान व्यवस्था से ही सम्भव है। देश के लिए उस #गुरुग्रन्थसाहिब की जरूरत है जिसमें सभी मजहब के सन्तों व वाणियों को सम्मान है।इसी तरह विश्व स्तर पर #विश्वसरकारग्रन्थसाहिब ,संयुक्त राष्ट्रसंघ को एक #विश्वसरकार, एक #विश्वसेना की आवश्यकता है। #अशोकबिन्दु जो न जाति देखे न मजहब। जो देश की समस्याओं के समाधान के लिए हर हद से गुजरने को तैयार हो!? जाति मजहब पर गर्व करने वाले, माफियाओं, पूंजीपतियों के तलवे चाटने वाले देश का भला नहीं कर सकते। #जयगुरुदेव ठीक कहते थे- वर्तमान सिस्टम के रहते देश का भला सम्भव नहीं।जो निष्पक्ष देशभक्त हैं, जाति मजहब की भावना, पिछड़ा अगड़ा की भावना, पूँजीपति-श्रम पति की भावना से मुक्त हो जो देश का हित सोंचते हैं, सिस्टम उनके खिलाफ ही है।सिस्टम।में जकड़े लोग तो कहते मिल जाते हैं कि अरे ऐसा नहीं हो सकता, अरे वो नहीं हो सकता।ऐसे लोग स्वयं सिस्टम के साथ हैं।बदलाव नहीं चाहते हैं। अब देश के लिए उग्र राष्ट्रवाद की जरूरत है।ऐसे लोगों की जरूरत है जो कि देश के हित में मरने मिटने के लिए भी तैयार हो। ऐसे लोगों की संख्या अवश्य कम क्यों न हो लेकिन वे सिस्टम बदलने के लिए काफी होंगे। एक गांव/शहर के लिए ऐसे पांच ही पांच पांडव ही काफी है जो मरने मिटने के लिए भी तैय्यार होंगे। देश को फिर से #गुरुगोविंदसिंह जैसों,#आचार्यसायण जैसे लोगों की जरूरत है जो एक हाथ में कलम दूसरे हाथ में तलवार लेकर चलें। तलवार से यहाँ मतलब हिंसा से नहीं वरन देश की समस्याओं से निपटने के लिए साहस व हर हद से गुजरने से है। सरकारें तो कहती ही रहती हैं उनके समर्थक दल व व्यक्ति तो कहते ही रहेंगे कि हम ये किया है वो किया है लेकिन एक आम आदमी की नजर में क्या हुआ है?यह महत्वपूर्ण है?स्वस्थ जीवन तो विभिन्न तथ्यों के बीच संतुलन है।

सोमवार, 19 जुलाई 2021

त्रिहरीयान से तेहरान...?!#अशोकबिन्दु

 त्रिहरियान से तेहरान!!हरियान/हरियाण.... #बसुधैबकुटुम्बकम #विश्वबन्धुत्व हरियाण एक महान व्यक्तित्व था।जिसका पुत्र रोम साम्राज्य में उपसम्राट था। जिसकी पैतृक जड़ें पश्चमी भारत से थीं।जिनके नाम से आज हरियाणा प्रान्त है।सूरसेन व्यापारियों,अयोध्य,अग्रवाल क्षत्रियों का प्रभाव गुप्त काल तक रोम तक रहा। भारत में अनेक #कटरा स्थान इनसे प्रभावित थे।उस वक्त आज कल की तरह जाति की जटिलता नहीं थी। #सिकन्दर/#अलक्षेन्द्र के आक्रमणों ने इस स्थिति को कमजोर किया। प्राचीन काल में यह बड़े साम्राज्यों की भूमि रह चुका है। ईरान को 1979 में इस्लामिक गणराज्य घोषित किया गया था। यहाँ के प्रमुख शहर तेहरान, इस्फ़हान, तबरेज़, मशहद इत्यादि हैं। राजधानी तेहरान में देश की 15 प्रतिशत जनता वास करती है। ईरान की अर्थव्यवस्था मुख्यतः तेल और प्राकृतिक गैस निर्यात पर निर्भर है। फ़ारसी यहाँ की मुख्य भाषा है। ईरान में फ़ारसी, अजरबैजान, कुर्द (क़ुर्दिस्तान) और लूर सबसे महत्वपूर्ण जातीय समूह । माना जाता है कि ईरान में पहले पुरापाषाणयुग कालीन लोग रहते थे। यहाँ पर मानव निवास एक लाख साल पुराना हो सकता है। लगभग 5000 ईसापूर्व से खेती आरंभ हो गई थी। मेसोपोटामिया की सभ्यता के स्थल के पूर्व में मानव बस्तियों के होने के प्रमाण मिले हैं। ईरानी लोग (#आर्य) लगभग 2000 ईसापूर्व के आसपास उत्तर तथा पूरब की दिशा से आए। इन्होंने यहाँ के लोगों के साथ एक मिश्रित संस्कृति की आधारशिला रखी जिससे ईरान को उसकी पहचान मिली। आधिनुक ईरान इसी संस्कृति पर विकसित हुआ। ये यायावर लोग ईरानी भाषा बोलते थे और धीरे धीरे इन्होंने कृषि करना आरंभ किया। #आर्यों का कई शाखाए ईरान (तथा अन्य देशों तथा क्षेत्रों) में आई। इनमें से कुछ मिदि, कुछ पार्थियन, कुछ फारसी, कुछ सोगदी तो कुछ अन्य नामों से जाने गए। मीदी तथा फारसियों का ज़िक्र असीरियाई स्रोतों में 836 ईसापूर्व के आसपास मिलता है। लगभग यही समय #ज़रथुश्त्र (ज़रदोश्त या ज़ोरोएस्टर के नाम से भी प्रसिद्ध) का काल माना जाता है। हालाँकि कई लोगों तथा ईरानी लोककथाओं के अनुसार ज़रदोश्त बस एक मिथक था कोई वास्तविक आदमी नहीं। पर चाहे जो हो उसी समय के आसपास उसके धर्म का प्रचार उस पूरे प्रदेश में हुआ। असीरिया के शाह ने लगभग 720 ईसापूर्व के आसपास इज़रायल पर अधिपत्य जमा लिया। इसी समय कई यहूदियों को वहाँ से हटा कर मीदि प्रदेशों में लाकर बसाया गया। 530 ईसापूर्व के आसपास बेबीलोन फ़ारसी नियंत्रण में आ गया। उसी समय कई यहूदी वापस इसरायल लौट गए। इस दोरान जो यहूदी मीदी में रहे उनपर जरदोश्त के धर्म का बहुत असर पड़ा और इसके बाद यहूदी धर्म में काफ़ी परिवर्तन आया। दशरथ पुत्र राम से पूर्व #राम एक आध्यात्मिक दशा का प्रतीक था।जो रमने से संबन्धित था, सर्व्यापकता से था।सागर में कुम्भ ,कुम्भ में सागर की दशा, सतत स्मरण ,मोक्ष की दशा, भगवत्ता, पुनर्जन्म मुक्ति दशा आदि का प्रतीक था। #इहराम #यहराम #अहराम आदि शब्द इसी के दशा के अर्थात #रूहानीदशा ,#आध्यत्मिक दशा को दर्शाता है। पश्चिम में #रोम #रामाल्लाह #पवित्ररोमन आदि भी इसी की ओर आदि संकेत करते थे। #काबा #मक्का #गिरजाघर #गिरी आदि प्राचीन #शैवमत की ओर संकेत करते थे। हम कहते रहे हैं कि दुनिया के तमाम देशों की पुरातत्विक रिपोर्ट्स #आर्यकुटुम्बों के इतिहास की ओर संकेत करती है। । त्रिहरी स्थान कुर्मांचल/उत्तराखंड में भी था।जोकि अब टेहरी नाम से टेहरी बांध में समा चुका है।पांडव अर्जुन के वंशज तोमर/तुंग हैं।जिनके वंशज दक्षिण भारत, चीन आदि में भी मिलते हैं। प्रियवृत शाखा के कुटुम्ब रोम व तेहरान क्षेत्र में भी बसे। भारोपीय भाषा में इसलिए कुमायूं/कुर्मांचल व रोम की भाषा में अनेक शब्द कामन मिलते हैं। हम कहते रहे हैं कि हम विश्व की सभी सभ्यताएं वैश्विक रूप से एक ही जड़ से देखते हैं।


शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

हम एक दिन गुजर जाएंगे, अपने स्तर के निशां छोड़ जाएंगे::अशोकबिन्दु


















 आज हम सुबह उठ कर अपने कागजों को लौट पोट करने लगे थे।कागजों को छटने लगे थे ।तो उसमें से कुछ हमारे जीवन के यह हादसे नजर आए।हां, हम उसे हादसे से कहेगे।आज की तारीख में परम्परा गत समाज की नजर में हम क्या है?हमारा जीवन क्या है?

बस, लिखते रहे?क्या कर लिया?!लेकिन हमारी लकीर पर कोई तो चलेगा।


गुरुवार, 15 जुलाई 2021

जनतंत्र ,देश भक्ति व सरकार हित::अशोकबिन्दु


 मुंशी प्रेम चन्द्र ने सरकार को अवैध बताया है।

हम सब प्रकृति की धरोहर हैं।

हमारा कर्तव्य बनता है कि हम प्रकृति के खिलाफ न जाएं।

ऐसे में देशभक्ति क्या है?देशभक्ति प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपनी धरती के लिए एक वह भावना है जो कि धरती के प्रति उसे श्रद्धा से भरती है।उसे भोगवाद से बचाती है।मातृभूमि की भावना जो उसे धरती को,प्रकृति को मां मानने के लिए प्रेरित करती है, उसे भोगवाद से बचाने का चरमोत्कर्ष है।


इस धरती पर मातृदेवी की उपासना के अवशेष पहले मिलते हैं, अन्य के बाद में।

देशभक्ति किसी भूभाग के रहने वाले हर व्यक्ति का कर्तव्य व अधिकार है।उस भूभाग पर शासन करने का औचित्य सिर्फ उस भूभाग के प्रबंधन के लिए, सेवा भाव के लिए है न कि अपना अधिकार व प्रभुत्व जमाने के लिए जो कि उस भूभाग की प्रकृति, जीव जंतु, मनुष्यों के नैसर्गिक आवश्यकताओं, जिजीविषा, सम्मान, कर्तव्यों, सर्व हित, बसुधैव कुटुम्बकम भावना आदि में अवरोध हो।


सरकार, सत्ता, शासन का मतलब भूभाग पर अपना या कुछ समुदायों के लिए नियोजन, प्रबन्धन न होकर सारी प्रकृति का सम्मान है।जिसमें जाति, मजहब, धर्म स्थल, मूर्तियों आदि कृत्रिमताओं का कोई स्थान नहीं है। 

शासन प्रणालियों में जनतंत्र प्रणाली का मतलब यही है, सबको जीने दो।सबका साथ सबका विकास और सबकी भागीदारी।

जनतंत्र में बहुमत को स्वीकार करने का मतलब ये नहीं भीड़ में खड़ा अकेला व्यक्ति को उपेक्षित कर देना।उसके अंदर भी वह है जो शाश्वत, निरन्तर, स्वतः है।बहुमत को स्वीकार करने का मतलब ये नहीं है कि जो अल्पमत है वह व्यक्ति, प्रकृति, जगत, ब्रह्मांड में सर्वव्याप्त, स्वतः निरन्तर, शाश्वत आदि को नजर अंदाज कर देना।जगत में जो भी है ,उसकी नैसर्गिकता की उपेक्षा प्रकृति व ब्रह्मांड का विरोध है।

वास्तव में प्रकृति,जगत, ब्रह्मांड की सत्ता में जो है, साक्षी है वही राजन्य व राज्य का हकदार है।क्यों न वह अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक।

सर्वव्याप्त, स्वतः, निरन्तर, शाश्वत व हम सब व जगत के नैसर्गिक सत्ता में यह महत्वपूर्ण नहीं हैं कि कौन अल्पसंख्यक है ,कौन बहुसंख्यक है? राजा तो वास्तव में वही है जो बसुधैव कुटुम्बकम, विश्व बंधुत्व, सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर आदि की भावना में जीते हुए मानव व मानव समाज, प्रकृति को परिवार के मुखिया की तरह सभी के हित में द्वेष, मतभेद से मुक्त हो देखता है।वह भूभाग पर एक पिता के समान होता है।

जन तन्त्र का मतलब वह तंत्र खड़ा करना नहीं है जिसमें सिर्फ पूंजीपति,माफिया, नेता, जातिवादी, मजहब वादी, भीड़ हिंसा, अन्याय, शोषण, एकल व्यक्ति की उपेक्षा, अल्पसंख्यक व्यक्ति की उपेक्षा, आराध्यों के वाणियों की उपेक्षा ,जन सामान्य के विकास को अवसरों की उपेक्षा आदि हो।देश भक्ति का मतलब सरकार के पक्ष या विरोध में जीना नहीं है।


ऐसे में आजादी का मतलब क्या है?एक मजदूर, किसान, बेरोजगार, भूखा, गरीब मरीज, गरीब शोषित, जन्मजात निम्न जातिवाद आदि के लिए आजादी का मतलब क्या है?आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने जा रहे हैं?हूँ..?!एक अल्पसंख्यक के लिए आजादी का मतलब क्या है?भीड़ में अकेला खड़ा व्यक्ति के लिए आजादी का मतलब क्या है?



सोमवार, 5 जुलाई 2021

आप झूठे सामाजिक है। वह सामजिकता किस काम की जो आपके समाज के व्यक्तियों की समस्याएं कम न कर सके::अशोकबिन्दु

 एक समस्या है दहेज व शादी में लाखों का खर्च!!

हम तो कहेंगे कि इस पर टैक्स लगना चाहिए।




दहेज!! 


"किसी विद्वान ने कहा है आज कल 80 प्रतिशत शादियां अवैध हैं।क्योकिं शादी तय करते वक्त कुछ और देखा जाता है और शादी के बाद कुछ और?!"#अशोकबिन्दु 


 विवाह एक संस्कार है जो पांच हजार में भी हो जाता है।समस्या क्या है?समस्या भौतिक आयामों पर है।मानवता, पवित्रता, अपने अनुकूल सम्बन्ध स्थापना आदि की नजर में कोई समस्या नहीं है। किसी परिवार में कोई कन्या है।उसके विवाह संस्कार में कोई समस्या नहीं होती।समस्या है तो किस हमारे नजरिया या रिश्तों के बीच महत्वता को नजरअंदाज करने से है। हम रिश्तों को तय करते वक्त भौतिक मूल्य देखते हैं,मानवीय मूल्य नहीं। यही होता है,शादी हो जाने के बाद वे शर्तें खत्म नहीं हो जाती जो शादी तय करते वक्त, शादी होते वक्त तय की गई थी लेकिन तब भी रिश्तों में खटास है।इसका मतलब है, वह शादी ही अवैध है। #सामजिकताकेदंश!! www.ashokbindu.blogspot.com

06 जुलाई 1935ई0::दलाई लामा जन्म दिन:::अशोकबिन्दु

 06जुलाई 1935ई0!! दलाई लामा जन्म दिन..... "सभी समस्याओं का हल विश्व सरकार है। जब 'बसुधैब कुटुम्बकम'-तो कैसा भेद? कैसा द्वेष ?क्या देश द्रोह क्या विदेश सहयोग व वैश्विक आचरण?" गीता के 13 अध्याय में क्षेत्र(देश) किसे कहा गया है?क्षेत्रज्ञ(देश को जानने वाला) किसे कहा गया है? ऐसे में स्व देश क्या है? स्व धर्म क्या है?स्व तन्त्र क्या है? स्व अभिमान क्या है?आत्म निर्भरता क्या है?आत्म प्रतिष्ठा क्या है?आत्म सम्मान क्या है?प्राण प्रतिष्ठा क्या है? सनातन क्या है? इन सवालों का एक ही उत्तर-आत्मा व अपना शरीर। ऐसे में योग है, जोड़!!अपने स्थूल+सूक्ष्म+कारण की आवश्यकताओं के प्रबन्धन का संतुलन। सागर में कुंभ कुम्भ में सागर! उत्तरकांड, रामचरितमानस में भी कहा गया है-रोगों व दुखों का कारण है अज्ञानता में जीना।यदि हम रोगों व दुखों से घिरे हैं तो इसका मतलब है हम अज्ञानता में जीते रहे हैं?यही न?!



"सभी समस्याओं का हल विश्व सरकार है तो इसका मतलब क्या है?'

वर्तमान व्यवस्था, वर्तमान नेताओं, दलों, सरकारों, तन्त्र के रहते यदि समाज, देश व विश्व में मानवता, शांतिसुकूँ,मानव कल्याण, जनतंत्र, सर्व हित,सभी की दिव्यताओं को अवसर आदि नहीं मिल पा रहा है टी इसका मतलब क्या है?

खुली मुसलमानी व सनातन धर्म::अशोकबिन्दु

 खुली मुसलमानी व सनातन धर्म?!

एक कहता है कि हम सनातन धर्म को मानते हैं ,और वह जितना मुसलमानों,ईसाइयों आदि के आचरणों का विरोध करता है उतना ही वह हिंदुओं के आचरण का भी विरोध करता है तो आप इसे क्या कहोगे?

कहता है कोई कि हमें तो ऋषियों के श्लोकों ,सन्तों की वाणियों से मतलब है व अपने शरीर ,आत्मा, दिल, दिमाग आदि की आवश्यकताओं से मतलब है।भाड़ में जाये तुम्हारा धर्म, मजहब, जातियां, धर्मस्थल आदि। तो आप उसे क्या समझोगे?


जब कोई आपसे कहे कि आप तो असुर ही हैं, वह भी मनुष्यो  से भी नीच, आपमें तो अभी मनुष्यता ही नहीं है।मनुष्य से ऊपर व देवताओं से ऊपर असुर होना तो दूर की बात?सुर होना तो दूर की बात?!तो आप क्या कहोगे?

रावण(र-अवन) शिव की उपासना करता था लेकिन स्वयं शिव की ही देवताओं व सन्तों से मिल कर चुनी गई योजनाओं के खिलाफ आचरण करता था।आप भी धर्म व ईश्वर के नाम पर सभी कर्म कांड, हवन यज्ञ आदि करते हैं तो क्या आप आचरण से असुर नहीं हो सकते वह भी मनुष्यों से भी नीचे? 


महत्वपूर्ण ये नहीं है कि आप आस्तिक हैं या नास्तिक ? फरिश्ता को खुश कर रहे हैं कि शैतान को?महत्वपूर्ण है/आपकी प्राथमिकता क्या है?आपका नजरिया, आभास, अहसास, अनुभव, आचरण क्या है?क्या हम आप उस पंक्ति में नहीं खड़े हैं जिसमें पौराणिक कथाओं के वे पात्र भी शामिल हैं जो हवन, यज्ञ, त्रिदेवों को खुश करने के लिए तपस्या आदि भी करते थे लेकिन फिर भी।मनुष्यों, देवों आदि की नजर में असुर / पापी ही गिने जाते थे?


खुली मुसलमानी से मतलब क्या है?हिन्दू समाज में भी कोई हिन्दू   हिन्दू से कह देता है कि तुम तो खुली मुसलमानी कर रहे हो?ये खुली मुसलमा नी क्या है?


कल सोशल।मीडिया में एक चर्चा हुई कि जो देश से मुसलमानों को भागना चाहता है वह हिन्दू है ही नहीं।इस पर कट्टर हिन्दू कहे जाने वाले बौखलाए हुए हैं?! 


हम कहना चाहेंगे कि जब बसुधैव कुटुम्बकम, जब विश्व बन्धुत्व, जब सागर में कुम्भ कुंभ में सागर..... जय घोष कि -जगत का कल्याण हो तो फिर जाति, मजहब, कर्मकांड आदि के आधार पर भेद भाव क्यों?आखिर वह दशा क्या है?जब बसुधैव कुटुम्बकम, विश्व बंधुत्व, सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर.... आदि आदि।


और खुली मुसलमानी क्या है? हमारे एक आर्य समाजी कहते थे कि यदि मुसलमान अपना तामस खो दे तो वह हिंदुओं से बेहतर है?


और आपसे एक सबाल, आप जिसे पूजते हो वह यदि धरती पर आ जाए तो क्या वह आपके आचरणों से खुश होगा? उसकी वाणिया क्या हैं?उसकी आस्था क्या है?



गुरुवार, 1 जुलाई 2021

हिमालय वैश्विक चेतनात्मक आभा का केंद्र::अशोकबिन्दु

 हिमालय!! हिमालय सिर्फ पत्थर, शैलों, मिट्टी, वनस्पतियों आदि मात्रा से भरी भौतिक रचना नहीं है।वह चेतना का कुम्भ, प्राणाहुति शरीर है।जहां अनेक आत्माएं साधना लीन हैं।उसका अहसास स्थूलता में जीने वाले नहीं कर सकते।वे सिर्फ मान सकते हैं कि हिमालय महान है।इस सृष्टि के लिए हिमालय अति।महत्वपूर्ण है।यह वर्तमान।में सबसे महान पर्वत है। हम तो यह कहेंगे कि उसे संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा अंतरराष्ट्रीय धरोहर घोषित किया जाए।और आधुनिक भौतिक भोगवादी हस्तक्षेप खत्म हो। उसकी नैसर्गिकता, सहजता बनी रहनी चाहिए। पश्चिम के पौराणिक कथाओं में भी स्वर्ग वहीं सांकेतिक किया गया है। मानव सभ्यता की शुरुआत इसी पर्वत से शुरू हुए।कश्मीर हो या नेपाल, हिंदुकुश की पहाड़ियां हो या अरुणाचल की,कैलाश पर्वत हो या शिवालिक ....पूरा का पूरा हिमालय क्षेत्र हम एक सूक्ष्म आभा से भरा महसूस देखते है। अभी अनेक रहस्य हैं जो उजागर होने बाकी हैं, जो मानव की समझ से परे हैं। कुमायूं या कूर्माचल के अतीत की ओर जाते हैं तो उसके सूक्ष्म आभा की चमक हमें पवित्र रोम राज्य तक नजर आती है। और जब हम शिवालिक पहाङियों के अतीत की ओर झांकते हैं तो उसके सूक्ष्म आभा की चमक #रामपिथेक्स की आड़ में अफ्रीका तक नजर आती है।कब #मानसरोवर के माध्यम से #काकभुशुण्डि #क्रोप्रजाति के माध्यम से अतीत में जाते हैं तो सूक्ष्म आभा की चमक मिस्र, श्रीलंका, कोरिया तक महसूस होती है। मानव सभ्यता अब भी स्थूल दृष्टि वह भी भौतिक भोगवादी,संकीर्ण से परे नहीं कहीं पर जा पा रही है।हम महसूस करते हैं कि अभी हम मानव सभ्यता का इतिहास मात्र 3 प्रतिशत ही जान पाए हैं।और हमारी संकीर्ण दृष्टि अभी प्रागैतिहासिकता, प्रागैतिहासिक व एतिहासिक के बीच की संरचनाओं को समझना तो दूर अभी हम ऐतिहासिक तथ्यों को भी ठीक से समझ नहीं पा रहे हैं। कुल मिला कर हम कहना चाहेंगे कि हम व जगत के तीन रूप हैं-स्थूल, सूक्ष्म व कारण।अभी हम स्थूल तक ही उसका सत्य ही उसके ही हिसाब से नहीं समझ पाए हैं। #काकेशस #तुर आदि मध्य एशिया के महान पहाड़ियां भी हम हिमालय की दिव्या का सूक्ष्म प्रभाव मानते है। केंद्र का प्रभाव आस पास क्षेत्र तक जाता है। साइबेरिया के जंगल ,दक्षिण का पठार अपने में अनेक एलियन्स सम्बन्धों का सूक्ष्म आभास भी छिपाए हुए है। #नाग #नागा #बलियर आदि के माध्यम से हम मानव व अन्य शक्ति का आभास पाते हैं। #मत्स्यमानव #मछुआरों #कशयप आदि के माध्यम से हम भूमध्य सागरीय क्षेत्र, मिस्र आदि में मानव व किसी दिव्य शक्ति के बीच सम्बन्ध को #एलियन्स #परग्रही #आकाशीयशक्ति #आकाशतत्व ,मेसोपोटामिया, सीरिया में हम #वरुण को एक काल में।मनु के रूप।में देखते हैं।जहां #पुल #रस #रूस #सारसेन आदि के माध्यम से #जल तत्व पर नियंत्रक योगियों के माध्यम से हिमालय से सूक्ष्म आभा का अहसास पाते हैं। #अशोकबिन्दु