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बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

सारी .ओ माई गाड !

एक फिल्म आयी है-O MY GOD .
जिसे देखने के बाद मैँ चिन्तन करता रहा रात भर.

क्या?


धर्म माया,मोह,लोभ,काम व क्रोध से मुक्त होने की बात करता है लेकिन
धर्मस्थलोँ के ठेकेदार क्या इसमेँ लिप्त नहीँ हैँ ?क्या अदालत मेँ इस बात
को लेकर केस नहीँ होना चाहिए?करोड़ोँ की सम्पत्ति की धर्मस्थलोँ व उनके
ठेकेदारोँ को क्या जरुरत?यदि जरुरत है तो इसका मतलब क्या यह नहीँ कि वे
धार्मिक नहीँ,वे अध्यात्मिक नहीँ?अब इस विषय पर भी क्या अदालत मेँ केस
नहीँ होना चाहिए ?क्या इनसे मनोवैज्ञानिक प्रश्नावलियां भरवा कर अदालत
मेँ जमा नहीँ करवायी जानी चाहिए ?प्रत्याशी चयन ,विभिन्न नियुक्तियोँ आदि
के अलाव इनका भी नारको परीक्षण व ब्रेन मेपिंग आदि नहीँ होना चाहिए ?

हम महापुरुषोँ व धर्मग्रंथोँ की माने या इन धर्मस्थलोँ व
धर्मस्थलोँ के ठेकेदारों की बातोँ को ?

अभी तक के स्वाध्याय,अध्ययन,सत्संग,चिन्तन,स्वपन,मेडिटेशन आदि से
मैँ यही जाना हूँ कि धर्मस्थलोँ व धर्म के ठेकेदारोँ को दान करना आवश्यक
नहीँ है ?दान हाथोँ से नहीँ ह्रदय से होता है ?ईश्वर व धर्म के नाम पर हम
किसे दान करेँ?जिसको दान करने से जिसे संतुष्टि होती हो ?जिसके कष्ट दूर
होते होँ ?ईश्वर,धर्म,अध्यात्म आदि के नाम पर जो भी ग्रंथोँ व महापुरुषोँ
के आधार पर हम कर रहे हैँ ,उसमेँ धर्मस्थलोँ व धर्मस्थलोँ के ठेकेदारोँ
आदि का क्योँ हस्तक्षेप ?ऐसे मेँ क्या हम अदालत की शरण नहीँ ले सकते क्या
?


युरोप क्रान्ति मेँ धार्मिक कारणोँ का महत्व ?


अनेक भाषा मेँ अनुवादित बाइबिल जब आम आदमी के हाथ पहुँची तो आम आदमी ने
जाना कि अरे,लिखा तो ऐसा है और चर्च व पुरोहित पादरी कर ऐसा रहे हैँ
?यहां भी अब ऐसा होने लगा है .शिक्षा का स्तर बढ़ा है ,लोग स्वयं ग्रंथोँ
व महापुरुषोँ की वाणियां पढ़ने लगे हैं .सच्चाई सामने आने लगी है .ग्रंथों
व महापुरुषोँ को पढ़कर लगने लगा है कि ब्राह्मण जाति ,क्षत्रिय जाति व
वैश्य जाति मेँ सभी के आचरण व जीवन लक्ष्य शास्त्रानुकूल नहीँ हैँ?अब
गिने चुने ही सवर्ण देखने को मिलते हैँ .धर्मस्थलोँ व इनके ठेकेदारोँ का
आचरण जरुरी नहीँ ग्रंथोँ के अनुरुप हो ?जरुरी नहीँ इनको सार्वभौमिक ज्ञान
हो ?


ईश्वर का स्मरण क्योँ ?


किसी ने कहा है कि ईश्वर सिर्फ सत्य को पाने का बहाना है.फिर भी,हम पचास
प्रतिशत ब्रह्मांश व पचास प्रतिशत प्रकृतिअंश हैँ.हमारे जीवन का हेतु
पूर्ण तभी है जब हम दोनोँ अंशोँ मेँ समअस्तित्व,समसम्मान व समभोग रखते
हुए दोनोँ की आवश्यकताओँ को समझना चाहिए.अपना सारा जीवन अपने शरीर,अन्य
शरीर,सांसारिक वस्तुओँ आदि मेँ गँवा कर सुख की कामना करना या फिर इसके
साथ साथ ईश्वर,धर्म व अध्यात्म के नाम पर सिर्फ कुछ शारीरिक क्रियाएं
करना मूर्खता है.
मानसिक क्रियाएं व मन प्रबंधन बिना सब निरर्थक है .ईश्वर व अध्यात्म के
लिए अहंकारशून्यता चाहिए.माया मोह लोभ से मुक्ति चाहिए.
स्व का अर्थ है आत्मा या परमात्मा ,जिसका सम्बंध विचार ,ज्ञान ,संकल्प
,स्वपन ,कल्पना आदि के सार्वभौमिक स्तर से है न कि आपके जातीय व मजहबी
शारीरिक आचरणोँ से ?वास्तव मेँ हम ईश्वरभक्त हैँ ही नहीँ.ईश्वरभक्त की
कोई सांसारिक इच्छा नहीँ होती ?हां,वह सुप्रबंधन के लिए परिवार समाज व
विश्व मेँ अपनी शारीरिक हलचल कर सकता है .ईश्वरभक्त होने के लिए
धर्मस्थलोँ,धर्मठेकेदारोँ,जातीय व मजहबी रीतिरिवाजोँ की आवश्यकता जरुरी
नहीँ है .
कस्तूरी मृग की तरह भटकने की जरुरत नहीँ है .


जैन ,बुद्ध , हजरत,कबीर,रहीम,नानक आदि की वाणियां ?

ईश्वरता,धार्मिकता व अध्यात्मिकता समझने के लिए
जैन,बुद्ध,हजरत,कबीर,रहीम,नानक आदि की वाणियां समझना अति आवश्यक है
.हमारा नजरिया इन सबसे हटकर ही है तो कैसी आपकी ईश्वरता,धार्मिकता व
आध्यात्मिकता ?आपतो इनके विपरीत खड़े हो .नानक अपना खेत रखाने जाता है तो
वह अपने खेतोँ मेँ से दाना चुंगती चिड़ियोँ को भगाता नहीँ.हजरत के ऊपर एक
औरत कूड़ा डालती है लेकिन वे उस औरत से नाराज नहीँ होते .उदारता व
अहंकारशून्यता बिना आप हम कैसे ईश्वरता,धार्मिकता व आध्पयात्मिकता
स्वीकारे माने जा सकते हैँ.हमारा हेतु मोझ न रह कर काम है .

ईश्वर ज्ञान से जुड़ेँ ?


हम बच्चे ही होते हैँ ,सांसारिक लालसाओँ मेँ ढकेले जाने लगते हैँ.ईश्वरीय
ज्ञान ,विचार ,भाव आदि से हमेँ दूर ही रखा जाता है .वह कुछ शारीरिक
क्रियाओँ के अतिरिक्त . मानसिक क्रियाएं हमारी शारीरिक ऐन्द्रिक लालसाओँ
मेँ ही लगी होती हैँ .ईश्वरीय ज्ञान हमारे सिर के ऊपर से निकल जाता है
.हम जीवन भर इसी सोँच मेँ रहते हैँ कि हमारे यहां ये होता है ,हमारे यहां
ये नहीँ होता है .क्या हम जानते हैँ कि ईश्वर हमसे क्या चाहता है ?मनुष्य
के बनाये नियमोँ से क्या उसे मतलब है ?कि उसे प्रकृति व मन की स्थिति से
मतलब है?

धर्मस्थलोँ मेँ करोड़ोँ की सम्पत्ति का क्या हो?


ब्राह्मण,धर्मस्थल व धर्मठेकेदारोँ का उद्देश्य धन व सम्पत्तिलोलुपता
नहीँ होता,मैने तो यही सीखा है.क्षत्रीय का उद्देश्य समाज व धर्म की
रक्षा करना होता है.धर्म स्थलोँ मेँ करोड़ोँ की सम्पत्ति व धन है,जिससे
गरीबी मिटायी जा सकती है.इस सम्पत्ति व धन पर किसका अधिकार है?क्या ये
फिर मोहम्मद गजनबियोँ की तलाश मेँ है?या ऐसे शासकोँ की तलाश मेँ जो इस
सम्पत्ति को अपने कब्जे मेँ कर गरीबोँ व विकलांगों को बाँट दे? इस
सम्पत्ति व धन की ईश भक्तोँ ,धार्मिकोँ व आध्यात्मिकोँ क्या जरुरत ?जिसे
इसकी जरुरत है उसे ये बांट नहीँ देनी चाहिए क्या?

महापुरुषोँ की वाणियोँ व ग्रंथोँ के आधार पर क्या इन सवालोँ के जबाब
चाहने के लिए हमेँ अदलात का दरबाजा नहीँ खटखटाना चाहिए?


जैन के त्रिरत्न व पंचमहाव्रतोँ को कैसे भुलाया जा सकता है?बुद्ध के चार
आर्य सत्य,अष्टांगिक मार्ग,दस शील व आचरण को कैसे भुलाया जा सकता है?अब
जो मतभेदोँ मेँ जीते हैँ वे हमेँ जैन या बुद्ध से जोड़कर देख सकते
हैँ.लेकिन सत्य सत्य है चाहे वो आपको किसी भी के पक्ष मेँ जाता दिखाई
दे.
सारी !

रविवार, 28 अक्तूबर 2012

वाल्मीकि जयंती पर एक विचार गोष्ठी !

मीरानपुर कटरा,शाहजहांपुर! मानवता हिताय सेवा समिति के द्वारा आदर्श बाल विद्यालय इण्टर कालेज मेँ एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया.जिसका विषय था-'जातिवाद का प्रजातंत्र मेँ फैला जहर'.
इस अवसर पर समिति हेतु सदस्यता अभियान चलाने पर भी विचार किया गया.समिति के संस्थापक अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'
ने कहा कि समिति का मुख्य उद्देश्य है सर्वोच्च ज्ञान के आधार पर सभी प्राणियोँ मेँ एकत्व का भाव लेकर चलना तथा जातिवाद से प्रभावित मानवीय आचरणोँ पर चोट करना.इसके लिए आनलाइन इण्टरनेट से भी जागरुकता अभियान चलाया जा रहा है.सर्वोच्च ज्ञान के आधार पर हम सब सजीव पचास प्रतिशत ब्रह्मांश अर्थात आत्मा व पचास प्रतिशत प्रकृतिअंश है.जिसकी कोई जाति नहीँ जिसका कोई मजहब नहीँ.सार्वभौमिक ज्ञान को प्राप्त हुए बिना हम अपूर्ण हैँ तथा जातिवाद की भावना मेँ जीना एक विकार है.जो प्रजातंत्र के लिए एक जहर है.कोषाध्यक्ष सुजाता देवी शास्त्री ने कहा जातिवाद कलंक है.

विचारगोष्ठी का संचालन खुशीराम वर्मा व अध्यक्षता अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु' ने की.इसमेँ रुकुम सिंह.मनोज.राजकुमार,शेरसिह,विशाल मिश्रा.वैभव सक्सेना आदि उपस्थित थे .

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शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

May you have success with in this election !

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------Original message------
From: akvashokbindu@gmail.com <akvashokbindu@gmail.com>
To: "president@messages.whitehouse.gov" <president@messages.whitehouse.gov>
Date: Saturday, October 27, 2012 10:17:34 AM GMT+0000
Subject: May you have success with in this election !

The Hon. Barak Obama !


May you have success with in this election!Hoping so,I am writing a letter to you.

I want to remind you that the world is fully divided on the basis oe castism,commumalism and conservation. The system of justice should run on the well managed democratic road,For this we will have to speed up our proceedings.

I am the inhabitant of the state U.P. in India.I am usually bound to face the narrowmindedness,ignorance and differences of the people In my country,the votess decide the success of the comdidetes on the grounds of their caste,religion and selfishness.

At lower levels, the people are trying for awakening.But they are unable to impress the public.

"What kind of should the world be?"...It is evident because of Osho's world journey.there is no one friend or enemy in the view of law and order..


In the awaiting of your Letter...

ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'


The Hon. Mr. Barak Obama
White house
Washington
The United State of America

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सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

प्रकृति सम्मान का ही धार्मिक स्वरुप नवरात्र!

आवेश दो प्रकार का होता है-ऋणावेश व धनावेश.सारी सृष्टि इन्हीँ दो आवेशोँ के परस्पर संबंधोँ पर टिकी है.फिजिक्स ,कैमेस्ट्री,भूगोल,खगोल,मनोविज्ञान आदि विषय के मूल मेँ भी यही है.जगत की सारी भौतिक व अभौतिक अप्रत्यक्ष प्रत्यक्ष क्रियाएं इसी पर टिकी हैँ.हिन्दूपौराणिक व अन्य दर्शन मेँ सृष्टि उत्पत्ति का आधार यहीँ से शुरु होता है.मानव उत्पत्ति का श्रीगणेश भी यहीँ से है.आदमहब्बा या शंकरपार्वती उपस्थिति के साथ मानवसत्ता का उदय होता है.सभी प्राणियोँ के शरीर,सूक्ष्मशरीर प्रकृतिअंश ही है.आत्मा व परमात्मा (ब्रह्म) अनन्त भगवान (शून्य के बाद ब्लेक होल व व्हाईट होल के पार) के अंश हैं.प्रकृति मेँ इन दोनोँ के समअस्तित्व को हिन्दूपौराणिक श्री अर्द्धनारीश्वर का स्वरुप मेँ प्रस्तुत किया गया है.हमसब के शरीर व सजीवोँ का अस्तित्व इन्हीँ दोनोँ के समअस्तित्व का परिणाम है .हम पचास प्रतिशत ब्रह्मंश व पचास प्रतिशत प्रकृतिअंश. हमसब अपने लिए काफी कुछ करना तो चाहते हैं लेकिन स्थिति अंधेरे की है.हम न अपने प्रकृतिअंश न ही अपने ब्रह्मांश के लिए ईमानदारी व ज्ञान बोध के साथ नहीँ जीते. किसी का नर या मादा होना प्राकृतिक है.

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नेहरु,पटेल व जिन्ना की थकावट का परिणाम देश का विभाजन:जसवंत सिँह ,पुस्तक 'जिन्ना भारत विभाजन के आईने मेँ'

नेहरु और पटेल शुरु मेँ न चाहते हुए भी अंतत:बंटवारे के लिए अपनी सहमति दे गए .('आधी रात की आजादी' लैरी कालिन्स दामिनिक लैपियर की इस पुस्तक मेँ पटेल व नेहरु दोनोँ को लार्ड माउंटबेटन के झांसे मेँ आने के कारण दोनोँ को दोषी माना गया . )जब कई सालोँ बाद लियोनार्ड मोजले ने नेहरु से पूछा कि आपने इस बात को क्योँ मान लिया ? तो उन्होने स्पष्टवादिता से ,लेकिन दुख के साथ जवाब दिया ,'तब तक हम बहुत थके हुए लोग थे और काफी समय तक जेल मेँ रह चुके थे....'

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मेरी प्रतिक्रिया:


ये भी सत्य है कि ये नेता थक चुके थे .अम्बेडकर के अनुसार कांग्रेस सत्तावादियोँ के हाथ मेँ आ चुकी थी.जो पश्चिम से प्रभावित थे .लोहिया के अनुसार,इन सत्तावादियोँ के बीच गांधी अकेले पड़ चुके थे.सत्ता के नशे ने देश का विभाजन करवाया और साम्प्रदायिक दंगे करवाये.यहां तक कि कुछ दिनोँ बाद नेहरु व उनकी टीम को लगा कि देश को संभालना बड़ा मुश्किल है तो फिर वापस माउण्टबेटन को सत्ता गोपनीय तौर पर सौप दी.
नेहरु व बेटन पैक्ट को सुभाषवादी अब भी संदिग्ध समझते हैँ.सुभाष व शास्त्री की मृत्यु पर कांग्रेस को संदिग्ध रुप से देखते हैँ.

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वह धार्मिक व आध्यात्मिक नहीँ ? अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'

इस जगत मेँ जो अपने को कहता फिरता है कि मैँ हिन्दू हूँ ,मैँ मुसलमान हूँ ,मैँ कुणवी हूँ,मैँ ठाकुर हूँ ,मैँ बिहारी हूँ ,मैँ मराठी हूँ ,मैँ जापानी हूँ ,मैँ हिन्दुस्तानी हूँ आदि.ये हमारा वास्तविक परिचय नहीँ है .ये हमारी धार्मिकता व धार्मिकता नहीँ.


"सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तय: सम्भवन्ति या : ।
तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रद पिता ।।"

श्रीमद्भगवद्गीता (14.4) के अनुसार सभी योनियोँ के जीवोँ का जन्म इस भौतिक प्रकृति से होता है और बीज परमसत्ता चेतनास्वरुप से प्राप्त होता है .मैँ तो यह कहता हूँ कि हमसब पचास प्रतिशत ब्रह्मंश व पचास प्रतिशत प्रकृतिअंश हैँ.इसके अलावा हमारा अन्य परिचय ड्रामा ,अभिनय ,पाखण्ड आदि है.ऐसे मेँ मैँ यदि समाज के अन्य व्यक्तियोँ की भांति धार्मिकता व आध्यात्मिकता मेँ सरीक नहीँ होता ,विरोध करता हूँ तो लोग मुझे बागी या असामाजिक मानते हैँ और न जाने क्या क्या कमेंटस करते हैँ .जिससे प्रेरणा पाकर मैने इस ब्लाग को नाम दिया-<सामाजिकता के दंश> .क्योँकि सामाजिकता को स्वीकार करने का मतलब है,कूपमण्डूकता ,जातिवाद,मजहबवाद ,चापलूसी,हाँहजूरी ,अज्ञानता,गैरकानूनी तथ्य आदि को स्वीकारना.

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रविवार, 14 अक्तूबर 2012

जो सत्य से मुकरे वही दुख पाये ....?

सुप्रबंधन के लिए प्रतिपल आन्दोलनरत रहने की आवश्यकता होती है अर्थात प्रतिपल जेहाद की आवश्यकता होती है .देश के हालातोँ के लिए हम सब दोषी हैँ.हमसब क्या अपने ईमान की हिफाजत कर रहे हैँ ?

मर्यादाओँ के लिए हम अपनी भौतिक लालसाओँ का त्याग करने को तैयार नहीँ .हम होते तो क्या करते?क्या जंगल जंगल भटकना पसंद करते ?रामचंद्र शुक्ल का कहना है-"महाराणा प्रताप जंगल जंगल मारे मारे फिरते थे ,अपनी स्त्री और बच्चोँ को भूख से तड़पते देखते थे ,परन्तु उन्होने उन लोगोँ की बात न मानी जिन्होँने उन्हेँ आधीनतापूर्वक जीते रहने की सम्मति दी,क्योँकि वे जानते थे कि अपनी मर्यादा की चिन्ता जितनी अपने को हो सकती है ,उतनी दूसरे को नहीँ. "

लेकिन हम ?!

हम चंद रुपयोँ की खातिर क्या नहीँ कर सकते ?सिर्फ हर हालत मेँ मर्यादाओँ को स्वीकार नहीँ कर सकते .

हम महापुरुषोँ के संदेशोँ को जीवन मेँ उतारना नहीँ चाहते.वर्तमान हालातोँ के लिए हम नेताओँ को दोषी मानते हैँ लेकिन प्रजातंत्र मेँ हम ही दोषी हैँ ,हम सत्य से मुकरे हुए हैँ अर्थात हम काफिर हैँ.हम जाति जाति मेँ बंट अखण्ड भारत को खण्ड खण्ड करते रहे है .


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शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

21 अक्टूबर 1943 : सिंगापुर मेँ भारत की अस्थायी सरकार

मीरानपुर कटरा (शाहजहांपुर) ,नेता जी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु सन
1945ई0मेँ वायुयान दुर्घटना मेँ नहीँ हुई थी ,ऐसा मुखर्जी आयोग की
रिपोर्ट मेँ भी कहा जा चुका है .सन 1945 के नेता जी के जीवन पर पर्दा
डालने वाली कांग्रेस खामोश क्योँ है ?

उपर्युक्त विचार यहाँ सम्पन्न हुई एक विचारगोष्ठी मेँ रखते हुए
मानवता हिताय सेवा समिति के संस्थापक अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु' ने कहा
कि कभी न कभी कांग्रेस को जनता के सवालोँ का जवाब देना ही पड़ेगा ?क्या
भारत अब भी ब्रिटेन के औपनिवेशिक देशोँ के संगठन मेँ शामिल नहीँ है ?यदि
शामिल है तो फिर वह इस संगठन मेँ अभी तक देश को क्योँ शामिल किए बैठे
हैँ?नेहरु व बेटन समझौता को कांग्रेस उजागर क्योँ नहीँ करना चाहती है
?सुभाष व शास्त्री की मृत्यु सम्बंधी दस्तावेज सार्वजनिक क्योँ नहीँ किए
जा रहे हैँ ?अमेरीका द्वारा ओशो को थेलियम दिए जाने के वक्त क्या
कांग्रेस अमेरीका के दबाव मेँ न थी?


आजाद हिन्द सरकार के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य मेँ सम्पन्न इस विचार
गोष्ठी मेँ उन्होने बताया कि आम जनता व प्रजातंत्र के हित मेँ देश की
आजादी काफी दूर है .आजादी के पैँसठ साल होने के बाबजूद भी अभी कुछ मुट ठी
भर लोगोँ के हाथ मेँ देश की सत्ता व शक्तियां मौजूद हैँ .लैरी कालिन्स
दामिनिक लैपियर ,अबुल कलाम आजाद ,सरस्वती कुमार ,जयगुरुदेव ,भारतीय सुभाष
सेना आदि की माने तो देश को आजादी भ्रष्टाचार व सत्तालोलुपता की नीँव पर
मिली मात्र सत्ता हस्तान्तरण थी .लैरी कालिन्स दामिनिक लैपियर की पुस्तक
'आधी रात को आजादी' , अबुल कलाम आजाद की पुस्तक'इण्डिया विन्स फ्रीडम' और
काशी के सरस्वती कुमार की पुस्तक'सलीब पर एक और ईशा' आदि पुस्तकोँ मेँ
देश की आजादी व विभाजन को एक काला अध्याय ही माना गया है . असली सरकार तो
21 अक्टूबर 1943 को नेता जी सुभाष चंद्र बोस के द्वारा सिँगापुर मेँ
स्थापित की गयी थी ,हालांकि जो अस्थाई थी लेकिन आम जनता का हित उसी मेँ
निहीत था .


सिंगापुर मेँ भारत की अस्थायी सरकार गठित करने के बाद नेताजी सुभाष
चंद्र बोस ने 'दिल्ली चलो'का नारा दिया था.उन्होने सिंगापुर तथा रंगून
मेँ सेना के दो मुख्यालय स्थापित किए थे.महात्मा गांधी को 'राष्ट्रपिता'
नाम सुभाष जी ने इसी वक्त गांधी से आशीर्वाद मांगते हुए 'जय हिन्द' का
नारा देने के साथ दिया था.उनके व उनकी सेना की राष्ट्रीयता तथा वीरता को
कलंकित करके नहीँ देखा जा सकता.वहीँ दूसरी ओर देश के कुछ नेता अंग्रेजोँ
की चापलूसी मेँ लगे थे .?देश की आजादी के वक्त सत्तालोभी नेता जहाँ
दिल्ली मेँ अंग्रेजोँ के साथ जाम से जाम लड़ा रहे थे सम्भवता ? वहीँ दूसरी
ओर महात्मा गांधी दिल्ली से बाहर आम गरीब जनता के बीच थे,जो साम्प्रदायिक
आग मेँ उलझी थी .सरस्वती कुमार के अनुसार गांधी की हत्या के पीछे ये
सत्तालोभी लोग भी थे,जिन्होने गांधी को अकेला छोड़ दिया था .लोहिया ने भी
लिखा है कि आजादी के वक्त गांधी अकेले पड़ चुके थे .


सरस्वती कुमार लिखते हैँ -"मुझे पूर्ण विश्वास है जब तक भारत राष्ट्र
इस परिवार के चंगुल से अपने को अलग नहीँ कर लेता तब तक राष्ट्र को सही
दिशा नहीँ मिल सकती.इस परिवार के लोगोँ को अपने नाम के आगे गांधी शब्द
लिखना सबसे बड़ा धोखा है जबकि इन्हेँ गांधी शब्द का उच्चारण भी नहीँ करना
चाहिए . "

इस अवसर पर खुशीराम वर्मा ने कहा कि 'आम जनता की आजादी' अभी काफी
दूर है .हालांकि इसको पाने के लिए पहला कदम रखा जा चुका है .नेहरु व नकली
गांधी परिवार की असलियत अब इण्टरनेट सोशल मीडिया मेँ उजागर होने ही लगी
है .बस,अब उसको जमीन पर उतरना है .सच्चे देशभक्तोँ को आगे बढ़ाना है जो आम
आदमी के हित मेँ जाकर देश मेँ सुप्रबंधन ला सके व न्याय की व्यवस्था
,सेवाभाव ,श्रम आदि को महत्व दे सके .


विचारगोष्ठी का संचालन सत्यम विद्यार्थी व अध्यक्षता अशोक कुमार वर्मा
'बिन्दु' ने की .

श्राद्व पक्ष : क्या सनातन धर्म के पक्ष मेँ आज की सोंच !

पुरखोँ व बड़ोँ का सम्मान कैसे ?


वर्तमान मेँ श्राद्ध पक्ष चल रहा है.हिन्दुओँ मेँ कुछ हट कर इस समय चल रहा है.
पुरखोँ का सम्मान हम कैसे कर सकते हैँ ? बड़ा कौन है ?श्राद्ध करने का क्या सर्वोच्च ज्ञान समर्थन करता है? तरक्की का मतलब क्या ये है कि हम समाज का अंधानुकरण करेँ व महापुरुषोँ के संदेशोँ को नजरअंदाज कर देँ ?संश्लेषण व विश्लेषण मेँ जाने के बाद पाता हूँ कि उपर्युक्त सवालोँ के जबाब के अनुरुप श्राद्ध मनाने वालोँ का आचरण , हेतु ,नजरिया व ज्ञान नहीँ होता .श्राद्ध करने से पितरोँ का उद्धार होता है ,ऐसा कहने वाले गीताज्ञान के क्या विरोधी नहीँ हैँ? श्री अर्द्धनारीश्वर शक्तिपीठ ,बरेली,उप्र के संस्थापक भैया जी का भी कुछ ऐसा ही मानना है कि श्राद्ध करने या न करने से पितरोँ के उद्धार का कोई मतलब नहीँ है.यदि मतलब है तो गीता के ज्ञान का विरोध है .पितरोँ का उद्धार कैसे ?काम,क्रोध,लोभ,माया ,मोह आदि पर नियंत्रण कर महापुरुषोँ के संदेशों पर चल कर ही हम भूत व पितर योनि की सम्भावनाओँ से निकल कर पितरोँ का उद्धार कर सकते हैँ.जो जैसा कर्म करता है,वह वैसी योनि पाता है .पितरोँ को उनकी योनि से कैसे उद्धार ... ?

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मंगलवार, 9 अक्तूबर 2012

केजरीवाल की नयी डगर:डा.आनन्द अखिला , पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक ,लखनऊ

दो अक्टूबर को अरविन्द केजरीवाल ने अपनी पार्टी का घोषणापत्र जारी
किया.अभी तो पार्टी का नाम भी रखा जाना बाकी है .भ्रष्टाचार के विरुद्ध
लड़ रहे अरविन्द के घोषणा पत्र से ऐसा लगता है कि वह खुद इधर उधर के
चाटुकार राजनीतिज्ञोँ से घिरे हुए हैँ और अन्य राजनैतिक दलोँ की भांति
जनता को लुभाने वाले मसले डीजल पेट्रोल गैस के दामों की घोषणा कर रहे हैँ
,वह भी डेढ़ साल बाद की .इस तरह की बातें तो सभी राजनैतिक दल करते हैँ
.उनसे अपेक्षा है कि वह स्पष्ट बताएं और मापदण्ड निर्धारित करेँ कि किस
प्रकार के लोगोँ को वह अपनी पार्टी की सदस्यता देंगे ?उनमेँ क्या क्या
खूबियां होनी चाहिए ?सिर्फ लोकपाल बिल एजेण्डा न होकर रोजमर्रा के जीवन
मेँ भ्रष्टाचार से कैसे लड़ा जाएगा,इस पर भी बात होनी चाहिए .कैसे और कहां
लोग अपनी समस्या बताएं ? सभी जानते हैँ कि चुनावोँ मेँ 80से90प्रतिशत
काले धन का इस्तेमाल होता है .जो लोग ये पैसा देते हैँ वह अपने प्रत्याशी
खड़े करना चाहते हैँ .प्रत्याशियोँ की परख कैसे होगी ?देश के हालात देखकर
ऐसा लगता है कि आने वाले चुनावोँ मेँ जनता कांग्रेस से दूर भागेगी परन्तु
किसके पास ?अरविन्द के पास अच्छे विकल्प होने चाहिए न कि वही घिसे पिटे
पुराने मुद्दे .दूसरे दलोँ से निकाले गये या लिफ्ट न मिलने पर रिजेक्ट
लोगोँ से कैसे परहेज करेंगे ?अभी तो जनता को यही पता नहीँ है कि अरविन्द
केजरीवाल से कैसे मिला जाए ?


- डा.आनन्द अखिला

MERI NAJAR मेरी नजर :

(1) वार्ड व गांव स्तर पर बौद्विक कमेटियां गठित की जायेँ ,जिनमेँ
प्रत्येक जाति के लेखक ,वकील ,शिक्षक आदि शामिल किए जायें .
(2)प्रत्याशियोँ के चयन के लिए नारको परीक्षण अनिवार्य किया जाना चाहिए .
(3)प्रत्याशी आय व्यय का बजट जनता के सामने रखेँगे
(4)नामांकन के वक्त एक शपथ पत्र लगाना अनिवार्य हो जिसमेँ घोषणा की गयी
हो कि वादोँ को न निभाने पर इस्तीफा दे दूंगा .
(5)चुनाव क्षेत्र मेँ अधिक जनसंख्या वाली जाति के व्यक्ति को तभी
प्रत्याशी चुना जाएगा जब वह जाटव , वाल्मीकि जाति के लोगोँ के घर जा कर
भोजन ग्रहणकरता हो व क्षेत्र मेँ गैरजाति मेँ विवाह करने वाले युवक
युवतियोँ की मदद करता हो .
(6)अन्य

रविवार, 7 अक्तूबर 2012

17 अक्टूबर 1940 : सविनय अवज्ञा आन्दोलन के समय ?

सितम्बर1939ई0को द्वितीय विश्वयुद्ध दैत्य रुप मेँ आया.कांग्रेस ने
जुलाई 1940मेँ ब्रिटिश सरकार के समक्ष यह माँग रखी कि अगर सरकार केन्द्र
मेँ भारतीयोँ को लेकर एक ऐसी सरकार बना दे,जो विधानसभा के प्रति
उत्तरदायी हो और सरकार युद्ध के पश्चात भारत को स्वाधीनता प्रदान करे तो
कांग्रेस युद्ध मेँ सरकार को सरकार को सहयोग दे सकती है लेकिन ब्रिटिश
सरकार ने इसका समर्थन नहीँ किया. भारतियोँ को संतुष्ट करने के लिए
वायसराय लिनलिथियो ने आठ अगस्त 1940 को अपना 'अगस्त प्रस्ताव' प्रस्तुत
किया. कांग्रेस ने यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया क्योंकि वह देश की
स्वतंत्रता व अपनी सरकार की मांग कर रही थी और फिर अगस्त प्रस्ताव मेँ
अल्पसंख्यको को जरुरत से ज्यादा महत्व प्रदान किया गया था.सन1939 से 1945
तक चलने वाले द्वितीय विश्व युद्ध मेँ जो परिस्थितियां बनी उसी के
फलस्वरुप इंग्लैण्ड मेँ सत्ता परिवर्तन हुआ.इधर मुस्लिम लीग और कांग्रेस
के बीच कड़ुवाहट अपनी उच्चता पर थी.देश के अनेक हिस्सोँ मेँ साम्प्रदायिक
दंगे हो रहे थे.देश का वायसराय था लार्ड बावेल.उसका कहना था कि आजादी
देने के पहले साम्प्रदायिक गुत्थी को सुलझा लेने दिया जाय.अगर इस समय
सत्ता का हस्तान्तरण हुआ तो साम्प्रदायिक आग मेँ भारत को झोँकने का कलंक
ब्रिटिशसरकार पर लगेगा.ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली से मतभेद के मद्देनजर
बावले ने त्यागपत्र दे दिया .24मार्च को लार्ड माउण्टबेटन भारत आया जिसे
आदेश मिला था कि 30जून 1948 तक भारत मेँ सत्ता का हस्तान्तरण हो जाय.लंदन
के लिए उड़ान भरने से पूर्व जो फाइल लार्ड बावेल ने लार्ड माउण्टबेटन को
चार्ज मेँ दी थी उस फाइल के मुखपृष्ठ पर लिखा था-'आपरेशन मैडहाउस'यानी
पागलखाने का अभियान.लार्ड माउण्टबेटन ने फाइल के कवर को बदल दिया और उस
पर लिख दिया-'वशीकरण अभियान'अर्थात आपरेशन सीडक्सन.(पृष्ठ 05,सलीव पर एक
और ईशा)
वशीकरण किस पर? पहले नेहरु पर फिर पटेल पर ?'सलीव पर एक और ईशा' पुस्तक
लिखने वाले सरस्वती कुमार का कहना है -देश मेँ वर्तमान समस्याओँ की जड़
'नेहरु माउण्टबेटन पैक्ट' है.

खैर!17 जनवरी 1941 को सुभाष चुपचाप जर्मनी रवाना हो चुके थे .जहाँ बर्लिन
मेँ एक भारतीय सैन्य दल का गठन किया था . 08आगस्त 1940 को प्रस्तुत आगस्त
प्रस्ताव को कांग्रेस अस्वीकार कर चुकी थी .इस समय की कांग्रेस व सन 1947
के बाद की कांग्रेस मेँ अन्तर है. क्या वास्तव मेँ अंतर है ?नरम दल वाले
क्या सभी जनहित के न होकर सत्ता के हित मेँ नहीँ थे ?1938-1939 मेँ
कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चंद्र बने थे परन्तु इन नरम दलियोँ या कहेँ की
सत्ता के चापलूसोँ के वशीभूत लोगोँ से घिरे गांधी जी के विरोध करने पर
सुभाष को अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देना पड़ा,फारवर्ड ब्लाक की स्थापना
करनी पड़ी .ये नरम दली तो द्वितीय विश्वयुद्ध मेँ ब्रिटेन सरकार की ही
मदद करना चाहते थे. जनता मेँ प्रिय बने रहने की नीति के कारण ये लोग जन
लुहावने कार्य करते रहे लेकिन सन 1885 मेँ कांग्रेस की स्थापना का
उद्देश्य क्या था? एक पुस्तक लिखती है कि यह आन्दोलन केवल थोड़े से
शिक्षित मध्यवर्गीय बुद्धिजीवी वर्ग तक ही सीमित था,जो पाश्चात्य
उदारवादी और अतिवादी विचारधारा से प्रेरणा लेता था.मेरा अपना निजी विचार
यही है कि ये राष्ट्रवादी व आन्दोलनकारी सिर्फ जनता की नजर मेँ भला दिखने
के लिए थे.जिनमेँ अंग्रेजीयत की बू थी.कांग्रेस मेँ नरमदलीय नीतियोँ के
खिलाफ 1895से ही असंतोष व्यक्त किया जाने लगा था.बनारस कांग्रेस मेँ
प्रिंस आफ वेल्स (जार्ज पंचम) के स्वागत पर कांग्रेस दो फाड़ हो गयी थी
.तिलक ने कांग्रेस को 'चापलूसोँ का सम्मेलन' कहा था.सन1928मेँ कांग्रेस
के द्वारा पेश संविधान प्रारुप 'नेहरु रिपोर्ट' पर विचार विमर्श के लिए
लखनऊ व दिल्ली मेँ सर्वदलीय सम्मेलनोँ मेँ कांग्रेस का वामपंथी युवा वर्ग
जिसका नेतृत्व नेहरु व सुभाष कर रहे थे और जो औपनिवेशिक स्वतंत्रता से
संतुष्ट नहीँ थे,ने पूर्ण स्वतंत्रता की मांग को कांग्रेस का उद्देश्य
बनाना चाहा था.लेकिन सन 1947-48 औपनिवेशिक स्वतंत्रता को न चाहने वाला
नेहरु क्या बदल गया?15अगस्त1947को सत्ता हस्तान्तरण के बाद भी क्या
ब्रिटेन का औपनिवेशिक राज्य नहीँ है?आखिर देश की आजादी व नेहरु माउण्टन
पैक्ट,सुभाष सम्बंधी दस्तावेज आदि सार्वजनिक क्योँ नहीँ किये जा रहे
?वर्तमान मेँ सुभाष सेना के लोग अब भी देश ब्रिटेन का औपनिवेश मान रहे
हैँ व देश की आजादी को मात्र सत्तापरिवर्तन दिवस मानते हैँ .डा.भीमराव
अम्बेडकर लिखते हैँ-" भारत मेँ आजादी का जो कोलाहल मचा है,उसमेँ यदि कोई
हेतु है तो वह है अछुतोँ का हेतु.हिन्दुओँ और मुसलमानोँ की लालसा
स्वाधीनता की आकांक्षा नहीँ है .यह तो सत्ता संघर्ष है,जिसे स्वतंत्रता
बताया जा रहा है .....कांग्रेस मध्यमवर्गीय हिन्दुओँ की संस्था है,जिसको
हिंदू पूंजीपतियोँ का समर्थन प्राप्त है,जिसका लक्ष्य भारतीयोँ की
स्वतंत्रता नहीँ,बल्कि ब्रिटेन के नियंत्रण से मुक्त होना और वह सत्ता
प्राप्त कर लेना है,जो इस समय अंग्रेजोँ की मुटठी मेँ है.(अध्याय दो,बाबा
साहेब डा.अम्बेडकर सम्पूर्ण वांग्यमय ,खण्ड 17)". द्वितीय विश्व युद्ध
मेँ कांग्रेस ब्रिटिश सरकार का सहयोग करना चाहती थी लेकिन नेता जी सुभाष
चंद्र बोस का विचार इसके विपरीत था.सुभाष का मानना था कि ब्रिटेन की
समस्या से फायदा उठाया जाये .स्वयं बुलाये गये समझॉता विरोधी सम्मेलन मेँ
उन्होँने कांग्रेस के ब्रिटिश सहयोग की आलोचना की.जनता के बीच कांग्रेस
की साख गिरने लगी.जिससे बचने के लिए कांग्रेस को सविनय अवज्ञा आन्दोलन
शुरु करना पड़ा.प्रथम सत्याग्रही विनोवा भावे हुए.जिसमेँ नेहरु भी शामिल
हुए.केवल उत्तर प्रदेश मेँ ही 20000व्यक्ति गिरफ्तार किए गे परन्तु गांधी
उस समय तक जेल से बाहर ही थे.इधर मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग
प्रस्तुत की.1909मेँ पृथक प्रतिनिधित्व प्राप्त करके,कांग्रेस की नम्रता
और अंग्रेजोँ को प्रोत्साहन प्राप्त कर मुस्लिम साम्प्रदायिकता तीव्रतर
होती जा रही थी .

बुधवार, 3 अक्तूबर 2012

सर्वशिक्षा अभियान का मतलब ये तो नहीँ ...........

सर्वशिक्षा अभियान का मतलब तब तक अधूरा है जब तक बालकोँ मेँ शिक्षा के प्रति रुचि पैदा नहीँ हो जाती व वे ज्ञान के प्यासे नहीँ हो जाते .

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From: akvashokbindu@gmail.com <akvashokbindu@gmail.com>
To: "go@blogger.blogspot.com" <go@blogger.blogspot.com>
Date: Wednesday, October 3, 2012 2:56:22 PM GMT+0000
Subject: सर्वशिक्षा अभियान का मतलब ये तो नहीँ ...........

सर्वशिक्षा अभियान के नाम से सरकारेँ करोड़ोँ रुपया खर्च कर रही है लेकिन इससे विद्यार्थियोँ मेँ गुणवत्ता कहां तक है.?कक्षा आठ तक प्रत्येक कक्षा मेँ विद्यार्थी उत्तीर्ण/प्रोत्तीर्ण होकर आगामी कक्षा मेँ आजाते हैँ,इसका एक मात्र कारण कक्षा आठ तक किसी भी छात्र को अनुत्तीर्ण न करना.इससे शिक्षा का स्तर गिर रहा है.मैँ लगभग सोलह साल से शिक्षा जगत से साक्षात्कार कर रहा हूँ .स्पष्टता यही है कि ईमानदारी से परीक्षा व कापी जांच प्रणाली मेँ बीस प्रतिशत से ज्यादा छात्र उत्तीर्ण होने की स्थिति मेँ नहीँ होते.प्राईमरी एजुकेशन का प्रमुख लक्ष्य है बालक मेँ ज्ञान के प्रति जिज्ञासु बनाना लेकिन बालक प्राईमरी से निकल जूनियर मेँ आ जाते हैँ लेकिन वे जिज्ञासु नहीँ हो पाते. शिक्षा जगत के सामने मेरी नजर मेँ सबसे बड़ी समस्या यही है कि जो प्यासा नहीँ है उसकी प्यास बुझाने का प्रयत्न किया जा रहा है व जो ज्ञान के लिए नहीँ धन दौलत के लिए जीना चाहते हैँ वे शिक्षक बन बैठे हैँ.सर्बशिक्षा अभियान का मतलब वैदिकता का विरोध है?सब को शिक्षा कैसे?सबका स्तर अलग अलग ऐसे मेँ एक स्तर व एक ढंग से सबको शिक्षित कैसे किया जा सकता है ?

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