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शनिवार, 9 जुलाई 2022

समाज व उसकी सामजिकता तो कायर व पाखंड?!#अशोकबिन्दु

हम कहते रहे हैं अब मानवता व प्रकृति अभियान को वर्तमान समाज व उसकी सामजिकता नहीं चाहिए। पांच हजार वर्ष पहले ही श्रीकृष्ण कह गए कि " दुनिया के धर्मों को त्याग मेरी शरण में आ।" यदि वर्तमान में जिंदा महापुरुषों को सम्मान नहीं, उन्हें कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं तो समझो कि समाज व उसकी सामजिकता में धर्म व ईश्वर की बात बेईमानी है।::#अशोकबिन्दु समाज व उनकी सामजिकता कायर व पाखंड!! #अशोकबिन्दु . . एक इंसान की समाज व सामजिकता से नहीं इंसान से आवश्यकताएं पूरी होती हैं। समाज व सामजिकता एक इंसान की समस्याओं का समाधान करने में असमर्थ ही होता है। समाज में एक समस्या है - दहेज। कन्या पक्ष को इस कारण कर्ज में डूब जाना पड़ जाता है। रिश्ता निभाने ,चलाने के बीच आर्थिक पहलू भी होते है लेकिन रिश्ता में महत्वपूर्ण रिश्ता निभाना है परस्पर सहयोग के माध्यम । रिश्ता जोड़ने का मतलब किसी का कर्ज में डूबना नहीं होना चाहिए। रिश्तों को निभाने में हमने देखा है कि अनेक चीजें निरर्थक होती हैं जो कि वास्तव में एक इंसान के जीवन में सहायक नहीं होतीं। एक इंसान को अकेले ही अपनी समस्याओं से जूझना पड़ता है।उसके जीवन में अनेक समस्याएं इस समाज व सामजिकता के कारण ही होती हैं। समाज व सामजिकता वास्तव में ज्ञान, प्रेम, इंसानियत, कानूनी व्यवस्था, दया-करुणा आदि को महत्व नहीं रखता।वह इस बात से ही इंसानियत, इन्सान की समस्याओं को नजरअंदाज कर देता है कि हमारे यहां यह होता है, हमारे यहां यह नहीं हो सकता। समाज व सामजिकता बदलती तो है समय समय पर लेकिन कुछ चीजें बदलती भी नहीं हैं। सन्त कबीर, रैदास, गुरु नानक, राजा राम मोहन राय, ज्योतिबा फुले आदि के सिद्धांतों की बात करने वाला आज भी समाज व सामजिकता के बीच अलग थलग है। कूड़ा फेंकने वाली स्त्री पर भी दया भाव रखने वाले नबी के इस आचरण को स्वीकार करने वाला आज भी समाज व सामजिकता में अलग थलग है। समाज व सामजिकता के ढर्रे की वकालत करने वाला विचलित होता है ।उससे कहो कि हमारे पूर्वज तो हमारे ग्रन्थ तो ऐसा ऐसा कहते हैं और हो ऐसा ऐसा रहा है तो कहते हैं कि अरे, आज कल की बात करो।जब उनसे आज कल व भविष्य की संभावनाओं की बात करो तो कहते हैं कि ऐसे कैसे?हमारे यहां तो यह होता आया है, यह हो रहा है। हम देख रहे हैं कि विश्व के जिन समाजों में ईश्वर व आधुनिक धर्म की बात नहीं है वहां अन्य की अपेक्षा अपराध कम हैं, कानूनी व्यवस्था ज्यादा है। धर्म व ईश्वर पर भी समाज व सामजिकता की वह धारणा नहीं होती जो उनके ग्रन्थों व महापुरुषों के सन्देशों में होती है।