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गुरुवार, 28 नवंबर 2013

01दिसम्बर 2013 : शैक्षिक संगोष्ठी

क्या शिक्षक का उत्तरदायित्व अपने विद्यालय तक ही सीमित है?

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सर्वपल्ली राधाकृष्णन का कहना था कि शिक्षक समाज का मस्तिष्क होता
है.यदि शिक्षक ज्ञान को अपना नजरिया बना उस आधार पर चलने लगे तो एक
क्रान्ति घटित हो जाए .शिक्षा के माध्यम से अनेक क्षेत्रोँ मेँ क्रान्ति
हुई लेकिन अफसोस अभी शिक्षा जगत मेँ क्रान्ति की जरुरत बनी हुई
है.वर्तमान शिक्षक को देख कर हमेँ अफसोस होता है ,शिक्षा कानून व शैक्षिक
प्रबंधन को लेकर.शिक्षक होने के नाते शिक्षक आम आदमी से भी ज्यादा गिरा
हो सकता है.ज्ञान के आधार पर शिक्षक से उम्मीदेँ स्वाभाविक हैँ .


( 1.50PM ,देवी प्रसाद कालेज ,शाहजहाँपुर)


एडस बचाव व स्वास्थ्य संरक्षण!
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सबसे बड़ा धन है-स्वास्थ्य.स्वास्थ्य दो प्रकार का होता है-शारीरिक व
मानसिक.'स्व' मेँ स्थित हुए बिना स्वास्थ्य नहीँ पूर्णता नहीँ.प्रकृति
मेँ मन को उलझाए रहने से सिर्फ भला नहीँ होने वाला. प्रकृति का प्रकृति
मेँ केन्द्र है-'काम'.'काम' क्योँ?सिर्फ सन्तान उत्पत्ति के
लिए.'स्व'क्या है ?'स्व' है-आत्मा या परमात्मा.हमारा शरीर है-'पर' .जो
प्रकृति अंश है.


--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

प्रचार प्रमुख ,
भारत परिषद ,रुहेलखण्ड ,उप्र.

गुरुवार, 15 अगस्त 2013

कुछ यूँ तैयार हैँ हम अपने भविष्य के लिए

हम राष्ट्र से हैँ राष्ट्र हम से है .यदि हम सब भारतबासी समृद्ध
,संस्कारित ,अनुशासित आदि होँगे तो राष्ट्र भी समृद्ध ,संस्कारित
,अनुशासित आदि होगा .
हम तैयार हैँ किस नजरिया किस ज्ञान व किस लक्ष्य के साथ ?सनातन अर्थात
शाश्वत ,सार्वभौमिक ,असीम ,अनन्त आदि गुणोँ से युक्त महान आत्मा की
कल्पना अपने अंदर सजोए बिना हम अपने को सम्पूर्ण रुप से तैयार नहीँ कर
सकते.'मैँ' शब्द मेँ अहंकार की बू है .'हम' शब्द मेँ सार्वभौमिक सत्य व
ज्ञान से जुड़ने की कल्पना व योजना छिपी है .व्यवहार मेँ भविष्य के प्रति
योजनाबद्ध होने के लिए 'स्वयं' को जानना आवश्यक है .'स्व'क्या है?
'पर'क्या है?
'स्व'है आत्मा या परमात्मा.'पर' है शरीर या प्रकृति.वर्तमान मेँ हम पचास
प्रतिशत ब्रह्मंश व पचास प्रतिशत प्रकृतिअंश हैँ .इन दोनोँ अंशोँ के
समवृद्धि व सममहत्व के साथ ही हम अपने भविष्य के प्रति तैयार हैँ . सिर्फ
भौतिक भोगवाद अर्थात सिर्फ शारीरिक ऐन्द्रिक आवश्यकताओँ की पूर्ति मेँ
अपने इस जीवन को गंवा देना सम वृद्धि नहीँ है.आधुनिक विकास का मतलब है
-'पर' का विनाश ,विकार ,दुख व रोग .

सुबह उठते हैँ हम. अखबार हाथ आता है ,देश के हालातोँ को देख
क्षत्रियत्व जाग जाता है .शरहदेँ खून उगलती हैँ .अपने ही देश की जमीँ से
अपने सैनिकोँ को पीछे हटना होता है .बांग्लादेशी घुसपैठियोँ को बेटोक आने
दिया जाता है ,गरीबोँ बेसहारोँ को न्याय नहीँ मिल पाता है.युवा शक्ति के
पास स्वपन तो हैँ लेकिन स्वपन साकार होने के लिए जमीँ नहीँ है
.भ्रष्टाचार के खिलाफ शासन प्रशासन कोई कठोर कार्यवाही नहीँ करना चाहता
है .देश की आजादी का मतलब क्या यही है ?कुछ मुट्ठी भर लोग मनमानी करेँ
,कानून की धज्जियाँ उड़ायेअँ ,सत्त व पद का दुरुपयोग करेँ .वोट बैँक की
राजनीति के लिए जातिवाद व तुष्टिकरण को बढ़ावा देँ .क्रान्तिकारियोँ व
स्वतन्त्रतासेनानियोँ के सपने क्या साकार हो गये ?


ऐसे मेँ हमसब देशबासियोँ का कर्तव्य है सम्पूर्ण आजादी के लिए एकजुट
होना और सभी समस्याओँ के लिए निदान खोजकर त्याग व बलिदान की भावना के साथ
आर पार का संघर्ष छेँड़ना . अन्यथा आजादी का पर्व मनाने का क्या औचित्य ?


वोट की राजनीति से ऊपर उठकर देशहित मेँ कठोर फैसले आवश्यक हैँ क्योँ
न इसके लिए हमेँ अपने तन को मौत के हवाले करना हो लेकिन नई पीड़ी के लिए
हम एक मिसाल कायम कर सकेंगे.


बीमारी ज्यादा बढ़ गयी है .कड़वी दवा के बिना काम नहीँ चलने वाला .जिसे
कड़वी दवा अपने ,अपने जाति व मजहब के खिलाफ लगता है उसके खिलाफ देशद्रोह
का मुकदमा चलना चाहिए .नागरिक व नागरिकता , देशद्रोह व देशभक्ति की
परिभाषा पर पुनर्विचार होना चाहिए .
--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

रविवार, 14 जुलाई 2013

प्रसिद्ध इतिहासकार विलियम डेलरिंपल की अफगानिस्तान पर नजर व दक्षेस की एक चुनौती .

दक्षेस के समक्ष अनेक समस्याएं हैँ जिनमेँ से एक प्रमुख समस्या है
-अफगानिस्तान मेँ अन्तर्विरोध .


प्रसिद्ध इतिहासकार विलियम डेलरिंपल के अनुसार परेशानी अमेरिका और
तालिबान के बीच नहीँ है ,इस क्षेत्र की बड़ी समस्या भारत व पाकिस्तान के
बीच की है.भारत व पाकिस्तान की 60वर्षोँ से चली आ रही दुश्मनी ही
अफगानिस्तान की मौजूदा लड़ाई का आधार है.ये नाटो और दूसरी तरफ अलकायदा और
तालिबान की लड़ाई नहीँ है .ये क्षेत्रीय समस्याओँ पर आधारित लड़ाई है .फॉज
जटिल तनावोँ के बीच फंसी हुई है-एक क्षत्रीय दूसरा मुल्क की आन्तरिकता .


डेलरिंपल साहब कहते है कि असली समस्या भारत पाक को लेकर सम्बंधोँ
के बीच इस जंग मेँ बहुत भीतर तक घुस चुके अमेरीका ,ब्रिटेन ,नाटो अब इसे
छोंड़कर जाने की तैयारी कर रहे हैँ .जबकि भारत पाक को यहीँ डटे रहना है
.सीधा सादा सच यह है कि तालिबान अफगानिस्तान मेँ जो कर पा रहे हैँ वह
सिर्फ इसी वजह से कि उन्हेँ पाकिस्तान का समर्थन मिल रहा है और पाकिस्तान
के फौजी अफसर उनका समर्थन सिर्फ इसलिए कर रहे हैँ ,क्योँकि उन्हेँ लगता
है कि वे भारत के खिलाफ इनका इस्तेमाल कर सकते हैँ .उनकी समस्या एक तो
दक्षिण अफगानिस्तान मेँ भारत की भारी मौजूदगी है और दूसरी ओर काबुल मेँ
भारत समर्थित सरकार है .पाकिस्तान के फौजी अफसरोँ को लगता है कि
अफगानिस्तान और कश्मीर को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा और सस्ता तरीका
जेहादियोँ का इस्तेमाल .


राष्ट्रवादी भारतीय मुसलमान गैरमुसलमानोँ के काफी नजदीक है .वह
गैरमुसलमानोँ के दर्द को जानता है .जो सच से मुकरे वह काफिर है .अपने को
मुसलमान मानने वाला भी काफिर हो सकता है .दक्षेस को विकास की धारा से
जोड़ने के लिए धर्मनिरपेक्ष नेताओँ की ही आवश्यकता है .अभी जल्द
संयुक्तराष्ट्र मेँ सम्बोधित करने वाली तालिबान के खिलाफ आवाज बुलंद
करने वाली पाकिस्तानी किशोरी मालाला युसुफजई ने अपने पहले सार्वजनिक भाषण
मेँ कहा है कि वह महात्मा गांधी के अहिँसा मार्ग से प्रेरित है . दूसरी
ओर पाक से समाचार आया है कि पाक एक ऐसी नई सुरक्षा नीति पर काम कर रहा
है जिसमेँ भारत सहित अन्य पड़ोसी देशोँ मेँ आतंकी हमलोँ मेँ शामिल
आतंकवादी संगठनोँ को प्रतिबंधित करने सहित अन्य उपाय शामिल हैँ .


दक्षेस स्तर पर क्या होना चाहिए?दक्षेस स्तर पर एक ऐसा ग्रुप तैयार
होना चाहिए जो दक्षेस के नेताओँ व दलोँ पर दक्षेस मेँ शान्ति व विकास हित
दबाव डाल सके ,दक्षेस मेँ एक कानून ,एक मुद्रा ,एक सेना,एक राष्ट्रपति
आदि की व्यवस्था के लिए प्रेरित कर सके .कट्टरवाद का खात्मा कर सके.
--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

रविवार, 30 जून 2013

तन इन्साँ आत्मा मुसलमान ?

हम भी इंसान हैँ वो भी इंसान हैँ
हिन्दू मुसलमाँ सिक्ख ईसा-
हम सब एक हैँ ये नाम यहीँ के

हमसब एक हैँ हम भी इंसान हैँ .


कुदरत ने न बनायी जातियाँ हैँ

कुदरत के न बनाये ये मजहब हैँ ,

इन्सान को कुचलने वालोँ को कुचल दो

हम सब एक हैँ हम भी इन्सान हैँ .


हमारा मन रोया दिल तड़फा है

किसलिए ?इसलिए कि जाति मजहब ने ,

जाति मजहब ने हमारा ईमान तोड़ा है .


दोष था इतना हमारा-

हमने न खुदा ढ़ूँढ़ा धर्मस्थलोँ मेँ

हर इन्सान लगा काफिर हमेँ

खुदा की ही बनायी वस्तुओँ को रौंदा है .


अपने को पहचान दो ,

अपने को क्या इन्सान पहचाना है ?

हम सब एक हैँ ,हम सब एक हैँ ,

हमसब एक है हम भी इंसान हैँ .

<ASHOK KU. VERMA 'BINDU'>
--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

मंगलवार, 25 जून 2013

आपदाओँ से कैसे निपटेंगे जब....?!

खतरनाक कौशल प्रशिक्षण से नाता छोँड़ दिया ,

दुर्गमताओँ मेँ रहने का साहस हमने छोंड़ दिया .




कौन गया दक्षिणी ध्रुव कौन गया उत्तरी ध्रुव ?

हमसे अच्छे जापानी ,सुनामी का सीना चीर दिया .

हमारा तन कुदरत ,हमने कुदरत से नाता तोड़ दिया

निर्जीवताओँ की चादर ओढ़ी ,कुदरत का संग छोँड़ दिया .

पुलिस खड़ी क्योँ बौनी बन ? सेना ने थामा दामन

आपदाओँ बीच गीदड़ोँ ने यान से सफर सुहाना बना लिया .


शेरोँ को राहत हेतु रोके ,खुद राहत का ड्रामा किया

जातिवाद मजहब के वास्ते ऐसे नेताओ को वोट दिया .

अमेरीकी फौजोँ को गीता का संदेश ,यहाँ सेक्यूलरोँ ने हिजड़ा बना दिया

पोप के लिए न गीता के श्लोक साम्प्रदायिक,यहाँ गाँधी की टोपी ने रुला दिया .
लादेन को मारा जिस टीम ने,उस टीम सा है प्रशिक्षण कहाँ ?
हनुमान जैसा भक्त कहाँ ?हनुमान जैसा होना छोँड़ दिया .
दुर्गमताओँ मेँ रहने का साहस हमने छोँड़ दिया
खतरनाक कौशल प्रशिक्षण........

रविवार, 16 जून 2013

विद्यालय प्रशासन समितियोँ मेँ कैसे लोग चुने जाएँ ?

इन दस वर्षोँ से शिक्षा जगत के साथ सबसे बड़ी बिडम्बना ये है कि 20प्रतिशत
से ऊपर के विद्यार्थी जिज्ञासा ,स्वभाव ,नजरिया आदि से विद्यार्थी नहीँ
हैँ और दो प्रतिशत से अधिक शिक्षक शिक्षक नहीँ .हम तो यही कहेँगे कि
नियति ,हेतु व नजरिया की दृष्टि विद्यार्थी व शिक्षक के व्यवहारिक जीवन
से ज्ञान कोसोँ दूर है.शास्त्रोँ,महापुरुषोँ व ज्ञान के विपरीत आज आज का
शिक्षक व विद्यार्थी ही खड़ा है .विद्यालय प्रबंधन भी आज जिनके हाथोँ मेँ
है वे शिक्षा की एबीसीडी तक नहीँ जानते है .अस्सी प्रतिशत से अधिक
विद्यालयोँ के संचालन की नियति अर्थ व प्रदर्शन है सिर्फ .
विद्यालय प्रशासन की दृष्टि से विद्यालयोँ के तीन स्तर हैँ
-सरकारी,अर्द्ध सरकारी व स्ववित्तपोषित विद्यालय.सरकारी व अर्द्धसरकारी
विद्यालयोँ मेँ शिक्षा बजट का 80प्रतिशत लगभग खर्च होता है,लेकिन परिणाम
बीस प्रतिशत से भी कम है.यहाँ विद्यार्थियोँ का प्रतिशत भी कम है .इन
विद्यालयोँ के अध्यापक व कर्मचारी हैँ ,उनके बच्चे तक इन विद्यालयोँ मेँ
नहीँ हैँ .जरुर दाल मेँ कुछ काला है .इन विद्यालयोँ का प्रशासन वास्तव
मेँ क्या चाहता है ?क्या सिर्फ कागजी पुलावोँ को पकाता रहना चाहता है .?

सरकारी व अर्द्धसरकारी विद्यालयोँ के अतिरिक्त अन्य विद्यालय अर्थत
स्वपोषित विद्याल तीन स्तर के हैँ-(1)राष्ट्रीय,प्रादेशिक या क्षेत्रीय
समितियोँ के अन्तर्गत(2)स्थानीय जागरुक हीन समितियोँ के
अन्तर्गत(3)व्यक्तिविशेष या परिवार विशेष के अन्तर्गत
.इन तीन स्तरोँ मेँ से पहले स्तर के विद्यालयोँ की दिशा दशा ठीक है
.दूसरे व तीसरे स्तर के स्वपोषित विद्यालयोँ मेँ अध्यापक ,प्रधानाचार्य
,विद्यालय प्रशासन समिति सदस्य या व्यक्ति परिवार विशेष की मनमानी होती
है ,दबंगता होती है .यहाँ तक कि इन विद्यालय प्रशासन की समितियोँ मेँ एक
दो सदस्योँ के अतिरिक्त न्यायवादी ईमानदार बौद्धिक चिन्तन का अभाव होता
है ,जो विश्व मानक शैक्षिक मानदण्डोँ के अनुकूल हो .किन्हीँ किन्हीँ
विद्यालय प्रशासन समितियोँ को देखकर हमेँ आश्चर्य व अफसोस होता है कि सभी
के सभी सदस्य अपने धन्धे व्यवसाय या अपने लाभ की धुन के सामने समितियोँ
की बैटकेँ तक सुचारु रुप से नहीँ चलवा पाते व विभिन्न समस्याओँ पर तर्क
वितर्क की क्षमता तक नहीँ रखते .सिर्फ व्यक्तिगत सोँच हाबी रहती है .


हमारी नजर मेँ एक विद्यालय है .जहाँ कोई प्रबंधक शायद इसलिए
दायित्व निभाता है कि विद्यालय की आय का कुछ हिस्सा स्वयं हजम करना
है .विद्यालय की आय को हजम पर लड़ाई होती है,ऊपर समाज मेँ दिखावा कुछ और
होता है .समिति व विद्यालय के ईमानदार आदर्शवादी एक दो सदस्य तो सिर्फ
अपनी भड़ास निकालने के लिए होते हैँ ,भड़ास निकालने दो सुन लो .करो अपने मन
की .कुछ विद्यालयोँ मेँ जो अध्यापक प्रतिदिन विद्यालय के सर्वेसर्वा के
सामने जाकर नमन करते रहते हैँ व इधर की उधर करते रहते हैँ .चिकनी चुपड़ी
लगाते रहते हैँ ,वे अच्छे होते है .यहाँ तक कि कुछ को उनकी हाँहजूरी मेँ
ही मजा आता है .


विद्यालय प्रशासन व समितियोँ मेँ सेवानिवृत्त अध्यापक ,शिक्षा
विभाग से सेवानिवृत्त कर्मचारी ,दार्शनिक ,तटस्थ विचारक ,मानवतावादी आदि
सदस्य होना चाहिए .शिक्षा व विद्यालय समितियोँ मेँ पद व सम्मान का निर्णय
किसी धर्म ,जाति ,बाहुबल ,धनबल आदि के आधार पर न होकर विचारोँ व समय
समर्पण के आधार पर होना चाहिए .जिनको विद्यालय के कर्मचारियोँ अध्यापकोँ
को समझने ,जानने ,दुख दर्द परेशानियोँ को समझने का वक्त नहीँ होता क्या
उन्हेँ पद संभालना चाहिए .?

--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

शनिवार, 15 जून 2013

हम भी मुसलमान नहीँ क्या?

हमारा नाम अब्दुल,फहीम,शहबाज आदि नहीँ है.अशोक,सुरेश आदि है.हम मस्जिद
आदि धर्मस्थलोँ पर नहीँ जाते.मुस्लिम रीति रिवाज,वेषभूषा आदि इस्तेमाल
नहीँ करता.तो भी क्या हम मुसलमान नहीँ हो सकते?
हर आत्मा मुसलमान ही है.परमात्मा एक है व उसकी फिलासपी भी एक है.सत्य के
व्यक्त की भाषा चाहेँ कोई भी हो,उस पर खड़े मजहब चाहें कितने भी हो लेकिन
निर्गुण आधार एक ही है.जो मुस्लिम है.मुस्लिम होने से पूर्व सनातन है.एक
प्रश्न है वर्तमान हिन्दू क्या सनातन आधार पर है?क्या उसका नजरिया
भाव,विचार आदि निर्गुण धारामय है?किसी ने कहा है कि यदि मुसलमान शाकाहारी
हो जाए तो हिन्दू से पहले मुसलमान सनातन हैँ .हमारी इस विचार धारा से
<www.vedquran.blogspot.com>के मुस्लिम संस्थापक
हमारे इन विचारोँ से संतुष्ट है .हम कहते रहे हैँ शब्दोँ व वाक्योँ की
भाषा या उसे कहने वाले व्यक्ति पर मत जाओ,शब्द व वाक्य मेँ छिपी फिलासपी
पर जाओ.हमसे कोई पूछे 'हिन्दू' व 'मुसलमान' शब्द मेँ से कौन सा शब्द
स्वीकार्य है?हमारा उत्तर है -'मुसलमान'.हिन्दू शब्द का क्या मतलब
है?मुसलमान शब्द क्या मतलब है?हिन्दू शब्द क्षेत्रीयता का प्रतीक है
लेकिन मुसलमान शब्द एक आध्यात्मिक व आर्य गुण है-सत पर अडिग रहना.हम क्या
सत पर अडिग नहीँ हो सकते ?वेशभूषा,रीतिरिवाज,जाति,मजहब,धर्मस्थल आदि तो
मानव निर्मित हैँ.इनका क्या?महत्वपूर्ण तो व्यक्ति का नजरिया,भाव,विचार
आदि है.

हम कौन हैँ?
.
.
अपने को पहचाने बिना ज्ञान अधूरा है.हम कौन हैँ?जाति मजहब से निकलकर
सार्वभौमिक ज्ञान के आधार पर हमेँ अपना परिचय प्राप्त करना ही चाहिए.हम
सिर्फ हड्डी मांस का बना शरीर नहीँ हैँ .हम व जगत निरन्तर प्रकृति के भोग
मेँ है.प्रकृति के साथ हम व जगत दो समभाग (श्री
अर्द्धनारीश्वर)हैँ-प्रकृतिअंश व ब्रह्मांश.परमात्मांश अर्थात आत्मा से
पहले हम अर्थात आत्मा प्रकृति के साथ चार स्तर पर हैँ-स्थूल,भाव,सूक्ष्म
व मनस जगत.कुदरत व ईश्वर की नजर मेँ हमारी कोई जाति या मजहब या कोई भाषा
नहीँ.


संसारिक माया मोह से निकल:स्वलोक बनाम अन्तर्लोक
.
.
निरा भौतिकवाद या सांसारिक माया मोह या निर्जीव वस्तुओँ से लगाव सिर्फ
मानव जीवन को खूबसूरत नहीँ बना सकता.ईश्वर का द्वार है आत्मा .आत्मा पर
पकड़ बनाये बिना हम ईश्वर तक नहीँ पहुँच सकते.मोहम्मद साहब रमजान के महीने
मेँ हिरा की पहाड़ी पर जाकर सपरिवार रहते थे और खुदा के शरण मेँ रहते थे
संसार को भुलाकर.संसार को भुलाकर अर्थात बाह्य जगत से निकलकर अन्तरजगत या
आत्म जगत मेँ पहुँचना अति आवश्यक है.


'स्व'क्या है?स्व है आत्मा या परमात्मा.हम जीवन भर व्यस्त रहते हैँ
लेकिन सांसारिक वस्तुओँ के लिए ,जिनका सम्बंध स्व से नहीँ है
.रोटी,कपड़ा,मकान आदि का सम्बंध स्थूल शरीर से है अन्तर्शरीर से
नहीँ.अखिलेश आर्येन्दी का कहना है कि प्रभु से प्राप्त ऊर्जा 'स्वलोक'की
ऊर्जा कही जाती है .प्रमाण,विकल्प,विपर्यय,निद्रा व स्मृति के लिये जो
ऊर्जा मिलती है वह सीधे परमपिता परमेश्वर से प्राप्त होती है.स्व क्या
है?स्व है आत्मा या परमात्मा.स्व के करीब हम कैसे पहुँच सकते
हैँ?सांसारिक वस्तुओँ या निर्जीव
वस्तुओँ,शरीर,इन्द्रिय,जाति,मजहब,धर्मस्थल आदि से चिपक कर क्या हम स्व तक
पहुँच सकते हैँ.स्व के लिए कौन जीता है?जिन्दगी निर्जीव वस्तुओँ के लिए
गँवा देते हैँ,पचास साल से ऊपर की उम्र मेँ आते हैँ तो टाँय टाँय
फिस्स.तब महसूस होता है न ही राम का आनन्द लिया न ही माया का .प्रकृति व
ब्रह्म दोनोँ मेँ समभोग आवश्यक है .सिर्फ प्रकृति या ब्रह्म मेँ जीने से
जीवन की सम्पूर्णता को नहीँ जिया जा सकता.हिन्दू पौराणिक दर्शन मेँ श्री
अर्द्धनारिश्वर स्वरुप के पीछे निर्गुण यही है कि प्रकृति व ब्रह्म दोनोँ
के सम अस्तित्व का समसम्मान.

कोई पंथ जब खड़ा होता है?
.
.
.
जगत का आधार एक ही है .परमसत्ता एक ही है.बस,उसको व्यक्त करने का तरीका
अलग अलग है.सनातन से निकल कर जगत मेँ कुछ भी नहीँ.बस,मानव निर्मित
बस्तुओँ को छोँड़कर.शाश्वत व अनन्त शक्तियां,सार्वभौमिक सत्य,पंच तत्व व
नौ ग्रह आदि से निकल कर कुछ भी नहीँ.


हमारे संज्ञान के आधार पर इस्लाम बड़ी विषंगतियोँ,समस्याओँ व
कामुक समाज आदि के बीच से निकलकर सनातन आधार पर ही हुआ.प्रारम्भिक अवस्था
मेँ वास्तविक इस्लाम मक्का व मदीना मेँ ही था.शेष दुनिया मेँ इस्लाम के
नाम पर भ्रम फैलाया गया.अन्य क्षेत्रोँ मेँ इस्लाम को लेकर जो आगे बढ़े वे
कौन थे व कैसे थे?हमारी नजर मेँ वे काफिर थे? खलीफाओँ के शासन तक सब ठीक
था .आगे लुटेरे शासक होने लगे और लोभवश इस्लाम का झण्डा ले शेष दुनिया
मेँ बढ़ गये.हमारे संज्ञान के आधार पर आज एशिया मेँ इस्लाम का जो स्वरुप
हमारे सामने है वास्तव मेँ यदि खदीजा बेगम जीवित होतीँ तो इस्लाम सच्चे
अर्थोँ मेँ वैदिक धर्म का अंग होता.कुरआन मेँ ओ3म है.


अलिफ=अ=परमात्मा या अल्लाह

लाम=उ=प्रकाश करने वाला या जीवात्मा

मीम=म=कल्याणकारक या प्रकृति


कुरआन के अलिफ लाम मीम का वास्तविक अर्थ यही होना चाहिए था.



श्रीमद्भागवद्गीता ,अध्याय 17 के अनुसार वैदिक सिद्धान्तोँ को मानने
वाले पुरुषोँ की शास्त्रविधि से नियत यज्ञ (अभियान),दान और तप रुप
क्रियाएं सदा "ओ3म" इस परमात्मा के नाम का उच्चारण करके आरम्भ होती
है,"तत"नाम से कहे जाने वाले परमात्मा के लिये ही सब कुछ है,ऐसा मानकर
मुक्ति चाहने वाले मनुष्योँ द्वारा फल की इच्छा से रहित होकर अनेक प्रकार
की यज्ञ (अभियान)और तपरुप क्रियाएं तथा दानरुप क्रियाएं की जाती हैँ
."सत" -ऐसा यह परमात्मा का नाम सत्तामात्र मेँ और श्रेष्ठ भाव मेँ प्रयोग
किया जाता है तथा प्रशंसनीय कर्म के साथ सत शब्द जोड़ा जाता है .हमारी नजर
मेँ अलिफ लाम मीम का अर्थ भी ओ3म तत सत ही सम्भवत: होना चाहिए .उसी त्री
गुणी या तीन प्रकार के निर्देशित किए जाने वाले परमात्मा को ही पूजो.


"ला ताबूदून इल्लाल्लाह!"
(बकर 83)अर्थात अल्लाह के सिवाय किसी को न पूजो.

--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

रविवार, 9 जून 2013

अंतिम इच्छा

कुछ लोगो के कहने के बाबजूद हम अपने परिजनोँ व कुछ अन्य सहयोगियोँ के
साथ उस मकान मेँ रहने लगा था.अनेक व्यक्तियोँ ने कहा था कि इस मकान मेँ
मत रहना ,अशुभ व प्रेत बाधा युक्त है .हम मुस्कुरा कर बोले कि मन मेँ
भगवान तन मेँ निदान .सब प्रभु माया नगेटिव हो या पाजटिव.भय
क्योँ?सुप्रबंधन,अध्यात्म ,भगवत्ता,मानवता आदि के लिए तथा अभय भी इसीलिए
न मोह ,लोभ के लिए न ही सिर्फ ऐन्द्रिक लाभ के लिए भय अभय.

तीन दिन बाद प्रतिकार की उम्मीद जताई जा रही थी .एक बोला ये मकान
किसी को नसीब नहीँ हुआ.जो भी आया मौत के भवर मेँ समा गया .हम बोले क्या
है जगत क्या है ब्रह्म और जीवन ?जब ये जान जाओगे तो सारे भ्रम ,भेद व भय
दूर हो जाएंगे .मौत तो एक बार आनी ही है .डर क्या हम कदम पीछे हटा लेँ
?क्षत्रिय होकर भी कायरता भी बातेँ ?हम ब्रह्म को स्मरण मेँ रख मकान मेँ
घुस गया लोग हमेँ डराते तो रहे लेकिन मेरे करीब न आये.एक व्यक्ति ने सलाह
दी कि इस मकान मेँ रहने के लिए आफिस से लिखित अनुमति ले लो .हमने एक
आफिसर मेँ जाकर सौ वर्ष के लिए स्वयं ,अपने परिवार ,उत्तराधिकारियोँ व
अपनी कमेटी के अधिकारियोँ को रहने के लिए लिखित अनुमति प्राप्त कर ली
.अधिकारी बोला कि इस मकान मेँ जो भी आया टिक न सका या फिर...हम बोले कि
सब प्रभु या मेरे कर्म की मर्जी ?

तीन दिन बाद यानि कि सोमवार ,10जून2013ई की रात.....


एक विशालकाय अजगर कमरे के सामने आ पहुँचा और -आ बाहर निकल .अपनी
अंतिम इच्छा बता .



हम शान्त पद्मासन मेँ बैठे थे कि

'कल ?'

रविवार,ज्येष्ठ शुक्ल .1,09/06/2013ई0 !11.00PM !



अधिकारी के यहाँ से आवास के लिए अधिकार पत्र लाने से पहले
हम कमरे के अंदर मेडिटेशन मेँ था .कमरे के बाहर सफेद कपड़ोँ मेँ मेरे
सहयोगी जन उपस्थित थे.इधर गोवा मेँ भाजपा कार्यकारिणी की मीटिंग का आज
आखिरी दिन था.जहाँ मोदी को अधिकार पत्र ?सन2014 लोकसभाचुनाव प्रचार समिति
का नरेन्द्र मोदी को प्रमुख बना दिया .जिसका देशभक्त जनता काफी दिनोँ से
इन्तजार कर रही थी.तमाम नगरोँ मेँ खुशियोँ की लहर छा गयी .यहाँ भी ढ़ोल
ढमाके बजने लगे व आतिशबाजी होने लगी.


हम मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर निकले .
एक किशोर लड़की बोली ,सर !मोदी चुन लिए गये .बरामडे मेँ रखी टीवी मेँ
नरेन्द्र मोदी को दिखाया जा रहा था .
हमने एक सेकण्ड भर के लिए अपनी दोनोँ आंखेँ बंद कीँ और आगे बढ़
गया. कुछ लोग मेरे पीछे पीछे चल दिए .
लगभग चार पाँच मिनट बाद ही हम अधिकारी के आफिस पहुँच गये थे .जहाँ
अधिकारी से आवास पत्र पाकर लोग फूले नहीँ समा रहे थे .
दृष्टा बन या कर्ता बन रहिए ,ये एक छोटा सा लक्ष्यपग है ,लक्ष्य काफी दूर
है .ऐसा हम बोले .


एक विशालकाय अजगर कमरे के सामने आ पहुँचा और -आ बाहर निकल .अपनी
अंतिम इच्छा बता .

हम आंख बंद कर कमरे मेँ बैटा था .


मन ,मस्तिष्क व कमरे मेँ आवाज गूँज रही थी -"परमात्मा हर वक्त
हमारे साथ है .हमारी कोई समस्या नहीँ है .जो भी समस्याएं हैँ वे सब मन
,शरीर व जगत की हैँ .हमारी नहीँ .हम तो परमात्मांश हैँ ."


हम जब उठ कर कमरे से निकलने को हुए तो स्वेत वस्त्रधारी अनेक जन आ
पहुँचे .एक जन बोले,सर!बाहर खतरा है .


"खतरा ,कैसा खतरा ?आत्मा या परमात्मांश को भी खतरा .?"


हम कमरे से बाहर ज्योँ ही निकला तो विशालकाय अजगर ने फुस्कार लगायी.

" ठहरो ,हमेँ खुशी है कि आप हमारे पास आये .हम धन्य हुए .हमारा ये
शरीर व इस शरीर को मौत भी आपके काम आयेगी ,हमेँ खुशी होगी ."


" तू तो डरता ही नहीँ.मैने तो सुना था तू तो बड़ा बुजदिल व कायर है ."


"अपने मिशन मेँ कैसी कायरता व बुजदली ?ब्रह्म के साथ या सत संग के
साथ कैसी कायरता व बुजदली ?जो दबंगता व साहस को लिए घूमते हैँ अपने
स्वार्थोँ या उन्माद मेँ लिए घूमते हैँ ."


अजगर बोला ,अच्छा अपनी अंतिम इच्छा बता .

"अन्तिम इच्छा?मेरी अन्तिम इच्छा पूरी करने की क्षमता रखते हैँ आप ?"

अजगर तेजी से फुस्कारा ,मेरा क्रोध क्योँ बढ़ाता है तू ?


" हम क्रोध बढ़ाते हैँ ?अपनी गुस्सा पूरी उतार लेँ आप ."


"तू कैसा इन्सान है?मरने से नहीँ डरता,अच्छा अपनी अन्तिम इच्छा बता ."


"पहली बार मिले हो बातचीत कर लो .अपना मन्सूबा पूरा कर लेना .मेरे
शरीर को मारना चाहता है ,मार देना."

"शरीर को ?"

कुछ देर तक खामोशी छायी रही .

"अच्छा मरने को तैयार हो जा ."

"हम शरीर नहीँ हैँ.आप मेरे शरीर को ही मार सकते हो हमेँ नहीँ ."

"तुम कौन हो ?"

"आप हमसे पूछते हो ?आप पिछले जन्म मेँ एक महान संत थे .आप....."


फिर खामोशी छा गयी .


कुछ देर बाद एक सर्प ने आकर एक मणि उगल दी .


अजगर बोला ,लो ये मणि लो .


"हमारी आवश्यकताएं पूरी होती रहेँ ,बस.ये मणि हमेँ नहीँ चाहिए ."

"अपने सिर पर धारण करो इसे ."


हम मुस्कुराये "अपने सिर पर धारण करेँ इसे ?नहीँ ."

"अब ये तुम्हारे लिए ही है ."


वह मणि फिर हमारे माथे पर समा गयी .

--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

रविवार, 2 जून 2013

नक्सलियोँ गांधी की लाठी पकड़ो और अन्ना को नेता चुनो,

सन1967ई0 मेँ पश्चिमी बंगाल के नक्सलबारी से वामपंथी उग्रवाद विचारधारा
नक्सलवाद पैदा हुई.जब ये नक्सलवाद पैदा हुआ था तो बुद्धिजीवियोँ व
समाजसेवकोँ की प्रशंसा का विषय था क्योकि तब ये खेतिहर मजदूरोँ ,भूमिहीन
मजदूरोँ ,गरीब किसानोँ आदि का पक्षधर होते हुए अहिंसक था .धीरे धीरे कर
यह आन्दोलन हिँसक हो गया .

नक्सलवाद का हिंसक रुप व राष्ट्रविरोधी तत्वोँ से गठजोड़ मानवता के लिए
घातक है ."क्रान्ति बंदूक की गोली से निकलती है"-यह शाश्वत सत्य नहीँ है
.वर्तमान मेँ हिंसक नक्सलवाद से आंध्रप्रदेश ,मध्यप्रदेश ,महाराष्ट्र
,ओडिशा ,उत्तर प्रदेश ,पश्चिमी बंगाल आदि राज्य प्रभावित हैँ.पूरे देश भर
मेँ जिसके 22हजार से ज्यादा सशस्त्र कैडर काम कर रहे हैँ .हिंसक नक्सलवाद
से अत्यधिक प्रभावित राज्य झारखण्ड ,छत्तीसगढ़ आदि हैँ.उत्तरप्रदेश तक भी
हिंसक आन्दोलन की नींव रखी जा चुकी है .आनन्द राय ,लखनऊ दैनिक जागरण की
माने तो अब पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलोँ समेत शाहजहाँपुर ,बहराइच
,बरेली ,लखीमपुर खीरी जैसे जिलोँ मेँ भी ये लोग निरन्तर अपना संगठन मजबूत
कर रहे हैँ.वहीँ दूसरी ओर अहिंसक नक्सली आन्दोलन की महक ब्लागर पर अशोक
कुमार वर्मा 'बिन्दु' की "तन्हाई के कदम"आदि कहानियोँ से महसूस की जा
सकती है.वास्तव मेँ नक्सलवाद का हिंसक स्वरुप खत्म ही हो जाना चाहिए .
हर हालत मेँ खत्म हो जाना चाहिए .


आखिर क्योँ हिंसक नक्सलवाद ?जयपुर की एक कोर्ट तक को कहना पड़ा है कि
पुलिस जांच मेँ नेता ,मंत्री आदि हस्तक्षेप कर माफियाओँ व अपराधियोँ को
आश्रय देँगे तो नक्सलवाद पनपेगा ही . हालांकि शोषण ,अन्याय ,मनमानी
,पक्षपात आदि के खिलाफ व विभिन्न नियुक्तियोँ एवं प्रत्याशी चयन मेँ
नारको परीक्षण ब्रेनमेपिंग आदि अनिवार्य करने के लिए अहिंसक नक्सलवाद तेज
ही चाहिए लेकिन हिंसक नक्सलवाद पर तेजी से लगाम लगना चाहिए .
लेकिन अफसोस इस बात का भी है कि जो हिंसक नक्सलवाद के खिलाफ खड़ा है वह भी
कहता फिरता है कि टेंढ़ी अंगुली से ही घी निकलता है .भगत सिंह राजगुरु आदि
की प्रशंसा करता है व हिंसा से भरे अपने ग्रंथोँ का समर्थन करता है
.हिंसा की जड़ व्यक्ति व समाज मेँ बड़ी गहरी है .खुले आम अनेक श्वेतबसन
अपराधी सड़कोँ पर घूमते हैँ व घरोँ ,दफ्तरोँ ,संस्थाओँ आदि मेँ मनमानी
करते हैँ .जिससे किसी न किसी रुप मेँ व्यक्ति शोषित हो रहा है . नेताओँ
,सिपाईयोँ के साथ कौन नजर आता है ? क्या कोई शरीफ , दबंगहीन
,जातिवादविहीन या साम्प्रदायिकताविहीन भी ? अन्याय ,भ्रष्टाचार ,लूट
,मनमानी ,अज्ञानता ,जातिवाद ,साम्प्रदायिकता आदि को खत्म किए बिना समाज
मेँ हिंसाहीन व्यवहार की कल्पना नहीँ की जा सकती .इस मनोविज्ञान को समझना
अतिआवश्यक है कि आखिर व्यक्ति क्योँ हिंसक होता है ? आखिर नक्सलवाद क्योँ
?फिर एक प्रश्न उठता है कि आखिर कब आदिकाल से ये दुनिया हिंसा ,आतंकवाद
आदि से मुक्त हुई है ?


बुद्ध आये ,जैन आये ,ईसा आये ,गांधी आये-न जाने कितने कितने आये
?सत्य व अहिंसा के पाठ को जीवन मेँ कितने व्यक्ति उतारे हुए हैँ ?कानून
के रक्षक ही 25 प्रतिशत तक अपने जीवन मेँ पालन नहीँ करते .विभिन्न संतोँ
व विद्वानोँ के अनुसार सन2011से2020ई0 तक का समय विशेष परिवर्तन का समय
है .गायत्री तीर्थ ,शान्ति कुञ्ज ,हरिद्वार के संस्थापक पं श्रीराम शर्मा
आचार्य के अनुसार -" यह समय युग परिवर्तन जैसे महत्वपूर्ण कार्य का है
.इसे आदर्शवादी सैनिकोँ के लिए परीक्षा की घड़ी कहा जाए ,तो उसमेँ कुछ भी
अत्युक्ति नहीँ समझनी चाहिए.पुराना कचरा हटता है और उसके स्थान पर नवीनता
के उत्साह भरे साधन जुटते हैँ .यह महान परिवर्तन की महाक्रान्ति की वेला
है .प्रबुद्धोँ को अनुभव करना चाहिए कि यह समय विशेष है ,हजारोँ लाखोँ
वर्षोँ बाद कभी कभार आता है .गांधी के सत्याग्रह और बुद्ध के परिव्राजक
बनने का श्रेय समय निकल जाने पर कोई भी नहीँ पा सकता .समय की प्रतीक्षा
तो की जा सकती है ,पर समय किसी की प्रतीक्षा नहीँ करता . "अनेक छोटे छोट
अहिंसक अभियान तेज हो चुके हैं ,नक्सलवाद अहिंसक हो उन्हेँ एक मंच पर ला
सकता है .


सबसे बड़ी विडम्बना है कि राजनैतिक दलोँ द्वारा वोट स्वार्थ की
रोटियां सेंका जाना .इसी का परिणाम है पंजाब मेँ कट्टरपंथ का उकसन ,उप्र
मेँ मुस्लिम कट्टरवाद ,हिन्दूकट्टरता का उदय आदि .जाति ,मजहब ,क्षेत्र
,वोटस्वार्थ आदि से ऊपर उठ कर नेताओँ व सरकारोँ को मानवता व नैतिकता के
आधार पर संवैधानिक वातावरण बनाना होगा .विधि साक्षरता को गाँव गाँव व नगर
नगर बढ़ावा देना होगा .हमेँ गांधी को स्वीकार करना ही होगा ,बुद्ध जैन ईसा
नानक को स्वीकार करना ही होगा .नक्सलियोँ हिंसा छोँड़ो और गांधी की लाठी
पकड़ो .

--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

नो वोटिंग का भी हो अधिकार.

पाक चुनाव आयोग ने पाक मेँ सभी प्रत्याशियोँ को न चुनने का भी अधिकार दे
दिया है .जो कि पाक चुनाव आयोग का एक सराहनीय कार्य है.भारत चुनाव आयोग
को भी भारत मेँ भी इस पर विचार कर अन्ना हजारे आदि समाजसेवियोँ की पुरानी
माँग पर विचार करना चाहिए .

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संस्थापक <
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शुक्रवार, 22 मार्च 2013

होली पर विशेष:व्रत व दिवसोँ का महत्व

जो हमसे दूर है या दूर जा रहा है उसका स्मरण कराते हैँ पर्व/दिवस .व्रत
का मतलब है -संकल्प या प्रतिज्ञा.संकल्प या प्रतिज्ञा कैसी व क्या?हम
पूरी जिन्दगी भूख , प्यास ,सेक्स आदि की पूर्ति व निर्जीव संसाधनोँ को
जुटाने मेँ लगे रहते हैँ.जिसके लिए हम प्रकृति का अति विदोहन तक के लिए
तैयार रहते हैँ.अपना व दूसरोँ का शरीर तक विकारयुक्त कर बैठते हैँ.तो ऐसे
मेँ संकल्प व प्रतिज्ञा क्या?


व्रत /दिवस व पर्व हमेँ व समाज को सुधारने के लिए होते हैँ व अपने
पूर्वजोँ के मूल्योँ को स्मरण के लिए लेकिन हम व समाज कितना सुधर रहे
हैँ?होली पर्व को ही लो,हम होली पर्व से अपने जीवन को क्या साधते
हैँ?क्या संकल्प व प्रतिज्ञा लेते हैँ?पर्व के नाम पर भी प्रकृति से
खिलवाड़.इससे तो अच्छे है संयुक्त राष्ट्र के पर्व जो प्रकृति के खिलाफ
कार्य नहीँ करवाते , प्रकृति विदेहन नहीँ करते.

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संस्थापक <
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गुरुवार, 7 मार्च 2013

SAMAJIKATA KE DANSH !: 08मार्च2013 : क्या है औरत?

SAMAJIKATA KE DANSH !: 08मार्च2013 : क्या है औरत?

08मार्च2013 : क्या है औरत?

औरत के इतिहास की शुरुआत कहाँ से होती है ?हिन्दू मत के अनुसार औरत के
इतिहास की शुरुआत श्री अर्द्धनारीश्वर स्वरुप के प्रकटीकरण से होती है
,गैरहिन्दू मत के अनुसार हजरत आदम के बायीं पसली से उत्पन्न हजरत हब्बा
से होती है ?वाम गुण धारी ही औरत है .
औ+रत;औ अर्थात and या also और या अन्य ,रत अर्थात लीन ,इस प्रकार -'अन्य
मेँ रत'. स्व अर्थात परमात्मा या आत्मा के अतिरिक्त अन्य मेँ लीन,पर मेँ
लीन ,प्रकृति मेँ लीन.औरत है तो आदम या शिव का ही अंश लेकिन आदम या शिव
तो स्व या परमात्मा या आत्मा मेँ लीन लेकिन औरत प्रकृति मेँ लीन अर्थात
प्रकृति भी .अन्य भी अर्थात सत के सिवा अन्य भी अर्थात अनन्त के सिवा
अन्य भी . स्त्री ;स त्र ई -त्र गुण सहित अर्थात तीनोँ गुण सहित या जो
प्रकृति तीनोँ गुणधारी . जो शिव या आदम के साथ दृश्य मेँ अस्तित्ववान है
,सम-सम्मान है,सम अस्तित्व मेँ है ,सम भोग मेँ है ,शिव या आदम का पार्वती
या हब्बा का सम अस्तित्व या संतुलन या सम्बंध (समबंध)ही सृष्टि है.
स्त्री के तीन रुप हैँ,प्रकृति,स्त्री स्थूल शरीर व सूक्ष्म स्त्री
शरीर.विभिन्न शरीर स्तरोँ -स्थूल ,भाव ,सूक्ष्म ,मनस ,आत्म ,ब्रह्म
,निर्वाण मेँ से प्रथम चार स्तर -स्थूल ,भाव ,सूक्ष्म व मनस ही स्त्री या
पुरुष है .स्त्री का स्थूल व सूक्ष्म शरीर पुरुष होता है .पुरुष का स्थूल
व सूक्ष्म शरीर पुरुष होता है .स्त्री का भाव व मनस शरीर पुरुष होता है
तथा पुरुष का भाव व मनस शरीर स्त्री होता है .महामिलन कब होता है ?सम भोग
कब होता है ? सम अस्तित्व कब होता है ?सम सम्मान कब होता है ?जब पुरुष को
अपने भाव व मनस शरीर की स्त्री समाज मेँ मिल जाती है व जब स्त्री को अपने
भाव व मनस शरीर का पुरूष समाज मेँ मिल जाता है .आज दाम्पत्य जीवन टुटने
या कलह का कारण इसका न होना ही है .स्त्री के गुण या स्त्रैणता है दया
,करुणा ,सेवा ,मानवता ,ममता,स्नेह आदि है .




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संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

रविवार, 3 मार्च 2013

होनहार गरीब,ग्रामीण युवा व भूमिहीन परिवार ....कबतक रखेँ सरकार पर आस?

एक ओर कुछ जातियां व मजहब सरकारीआरक्षण की उम्मीदोँ पर टिक अपनी अन्दरुनी
प्रतिभा जागरण हीनता,जातिहीनता
,सम्प्रदायकिताहीन,कूपमण्डूकता,मनमानी,स्वाबलम्वन हीनता,
आत्मनिर्भरताहीन,आत्मविश्वासहीन आदि मेँ ही बने रहना चाह भ्रष्टतंत्र का
हिस्सा बनना चाहते हैँ या बने हुए हैँ . वहीँ दुसरी ओर प्रतिभावान
,ईमानदार,कर्त्तव्यशील,ज्ञानवान ,सत्यान्वेषणी,जातिविरोधी
,पंथविरोधी,कानून व्यवस्था प्रेमी आदि को सरकारेँ अनुकूल वातावरण नहीँ दे
पा रही हैँ.साक्षर व शिक्षित भी अज्ञानी व लापरवाह बने हुए
हैँ.जातितंत्र,मजहबतंत्र,मनमानी,भ्रष्टाचार,कुप्रबंधन आदि हाबी है .गरीबी
बढ़ती जा रही है .बेरोजगारी बढ़ रही है .खाद्यमिलावट व नकलीदवाईयोँ का जोर
है . स्वास्थ्य व शिक्षा का स्तर सुधरने का नाम नहीँ ले रहा है .पर्यावरण
बिगाड़ने का कार्य तेजी से चल रहा है.सरकारेँ भूमिहीन मजदूरोँ ,गरीब
होनहारोँ ,ग्रामीण युवाओँ ,जातिवाद व सम्प्रदाय विरोधी युवकयुवतियोँ ,देश

पर्यावरण शुभचिंतकोँ आदि की सुरक्षा व विकास के लिए साहस नहीँ दिखा पा रही हैँ .



मैँ देख रहा हूँ कि देश मेँ होनहारोँ की कमी नहीँ है लेकिन उन होनहारोँ
के सामने अनेक समस्याएं बनी हुई हैँ .एक ओर बिगड़े माँ बाप की बिगड़ी
औलादेँ अपना उपद्रव फैलाए हुई हैँ वहीँ दूसरी ओर होनहार अपने माँ बाप या
अपने परिवार की ओर से ही समस्याग्रस्त हैँ.उत्तरखण्ड मुक्त विश्वविद्यालय
के प्रोफेसर गोविन्द सिँह कहते हैँ कि आईआईटी और आईआईएम की हालिया फीस
बढ़ोत्तरी के साथ ये श्रेष्ठ संस्थान मध्यम वर्ग के मेधावी छात्रोँ की
पहुँच से और दूर चले गए हैँ.मैँ शिक्षा जगत से जुड़ा हूँ .देखता रहता हूँ
कि गरीब व मध्यम वर्ग के होनहार कैसे हालातोँ की मार सह अपनी प्रतिभा से
समझौता कर लेते हैँ .डाक्टर ,इंजिनियर आदि का सपना देखने वाले इण्टर
क्लास मेँ आते आते ट्यूशन पढ़ाने के कार्य से भी जुड़ जाते हैँ .ऐसा होना
चाहिए जहाँ होनहार गरीब भी आगे बढ़ सकेँ .


ग्रामीण बालको युवकोँ को ध्यान मेँ रख कर सरकार अपने फैसले ईमानदारी
से नहीँ लेती .पंकज चतुर्वेदी राष्ट्रीय सहारा मेँ लिखते हैँ कि गांवोँ
मेँ आज ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट डिग्रीधारी युवकोँ के बजाए मध्यम स्तर
तक पढ़े लिखे और कृषि तकनीक मेँ पारंगत श्रमशील युवाओँ की भारी जरुरत है
.वहां खेती पशुपालन ग्रामीण प्रबंधन के प्रायोगिक प्रशिक्षण संस्थान
खोलना उपयोगी होगा .


देश मेँ लाखोँ दलित ,गरीब आदि ऐसे हैँ जो भूमिहीन हैँ .गाँव मेँ अब भी
दबंगोँ की ही चलती है .कमजोर ,सीधे ,अकेले आदि व्यक्ति ,विधवाओँ आदि की
पोजीशन भयानक बनी हुई है.अनेक भूमियां ऐसी है जिसका लाभ उसके मालिक न उठा
कर दबंग उठा रहे हैँ.


आखिर कब तक सिर्फ कागजी आँकड़ोँ तक सरकारी तंत्र सक्रिय रहेगा?देश मेँ
लाखोँ लोग हैँ जिन्हेँ पट्टे पर भूमि कागजी आँकड़ोँ के आधार पर दे दी गयी
है लेकिन व्यवहारिक स्तर पर नहीँ .जनजातिय व वनबासियोँ की भूमियोँ पर भी
दबंग हावी हैँ .


क्या क्या बताऊँ ? देश हर ओर से बीमार चल रहा है .स्वास्थ्य विभाग ही
जब बीमार है ,शिक्षा जगत ही जब सत्यान्वेण व ईमानदार शिक्षकोँ से दूर
होता जा रहा है ,पुलिस तंत्र ही गैरकानूनी कार्य मेँ जब लिप्त है आदि आदि
.तो क्या कहूँ ?कब तक कहूँ ?

--
संस्थापक <
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गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

पीले वस्त्रोँ के पीछे छिपा दर्शन क्या है ?

पीले वस्त्रोँ पीछे छिपा दर्शन क्या है ?
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प्राचीन काल मेँ ग्रहस्थ जीवन की शुरुआत अर्थात शादी पीले वस्त्रोँ को
पहन कर क्योँ होती थी ?अब हिन्दू ग्रहस्थ पीले वस्त्रोँ को महत्व क्योँ
नहीँ देते?क्या ग्रहस्थ पीले वस्त्रोँ का प्रयोग नहीँ कर सकता ?या हिन्दू
अपने दर्शन से विचलित हो गया है ?

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संस्थापक <
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सोमवार, 11 फ़रवरी 2013

एक सत्य नेहरु खानदान मुस्लिम: गयासुद्दीन गाजी के वंशज :V.P.Singh

क्या ये सत्य है कि नेहरु के बाबा अर्थात मोती लाल नेहरु के पिता
गयासुद्दीन गाजी थे .

---------- Forwarded message ----------
From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
Date: Mon, 11 Feb 2013 21:09:46 +0800 (SGT)
Subject: V.P.Singh Meri Awaj:एक सत्य नेहरु खानदान मुस्लिम: गयासुद्दीन
गाजी के वंशज :V.P.Singh
To: akvashokbindu@gmail.com


एक सत्य नेहरु खानदान मुस्लिम: गयासुद्दीन गाजी के वंशज :V.P.Singh

ASHOK KUMAR VERMA 'BINDU' has sent you a link to a blog:

नेहरु क्या सुन्नी मुस्लिम खानदानी ?

Blog: VPSingh Meri Awaj
Post: एक सत्य नेहरु खानदान मुस्लिम: गयासुद्दीन गाजी के वंशज :VPSingh
Link: http://vpsingh65.blogspot.com/2011/12/vpsingh.html

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संस्थापक <
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शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

देश जाति विरोधी विधेयक की माँग कब करेगा ?

देश की जनता आखिर जाति विरोधी अभियान के प्रति रुचि क्योँ नहीँ रखती?क्या
वह जाति व्यवस्था को बनाये रखने मेँ ही अच्छाई समझती है?हमेँ तो यही लगता
है कि देश की 98प्रतिशत से भी ऊपर जनता जाति व्यवस्था से ही चिपके रहना
चाहती है ?यदि ऐसा है तो मैँ देश की जनता को अज्ञानी ,अधार्मिक
,अनिश्वरवादी,अध्यात्महीन,कूपमण्डूक आदि मानता हूँ .किसी को बुरा लगे तो
क्षमा करना.ईश्वर,चेतना ,प्रकृति आदि की नजर मेँ हमसब एक हैँ.प्रकृति या
फिर ब्रह्म का अंश .आत्मा व शरीर की कोई जाति नहीँ.


जो भी हो देश को जाति विरोधी विधेयक की जरुरत है .मेरे इन विचारोँ पर
प्रतिक्रिया अवश्य देँ .facebookपर जा कर jaati virodhi abhiyan से सर्च
कर हम से जुड़ेँ.

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संस्थापक <
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शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

सन 1947 मेँ देश की आजादी का भ्रम !

देश मेँ क्या लोक का तंत्र है ?देश मेँ क्या गण का तंत्र है ?
नेता व अधिकारी क्या सामंतवादी सोंच से ग्रस्त नहीँ हैँ ?जब हमारी सरकार
आयेगी तो हम देख लेंगे ,जैसी सोंच क्या देश की श्रेष्ठ दशा को दर्शाती है
?देश अब भी भुखमरी,नकली दवाईयोँ,खाद्य मिलावट ,अधिकारियोँ व नेताओँ की
मनमानी ,संस्थाएं दबंगोँ ,चापलूसोँ आदि के माध्पमोँ से चलायी जा रही हैँ
न कि संस्थाओँ के हितैषियोँ के द्वारा.


सरस्वती कुमार,काशी अपनी पुस्तक 'सलीब पर एक और ईसा' मेँ लिखते हैँ कि
देश के हालातोँ के लिए 'नेहरु बेटन पैक्ट' दोषी है .




सन 1947 ई0 मेँ भारतीय आम आदमी को आजादी मिली ,ये भ्रम है .कुछ
देशभक्त अब भी इस आजादी को बस सत्ता हस्तान्तरण मानते हैँ .


(1)लार्ड माउण्टबेटन का वशीकरण अभियान .लार्ड बावेल से प्राप्त फाइल
के कवर 'आपरेशन मैडहाउस' को चेंज कर कवर 'आपरेशन सीक्सन' किया गया.


(2)वशीकरण अभियान का लक्ष्य :
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.
राष्ट्रमण्डल का सदस्य बना रहे भारत .जिसकी सदस्यता का क्रान्तिकारी ,
सुभाष व उनके समर्थक विरोध करते आये थे .
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सुभाष व अन्य समर्थक क्रान्तिकारियोँ को युद्ध अपराधी मानने का समझौता .
.
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(3)सुभाष को दान की गयी करोड़ोँ की सम्पत्ति को जब्त करना .


(4)देश के विभाजन को स्वीकार करवाना .



(5)महात्मा गाँधी की प्रकृति ,ग्राम्य जीवन ,कुटीर व लघु
उद्योग,स्वाबलम्बन ,स्वरोजगार आदि योजनाओँ को नकारना .



(6)अंग्रेजोँ के चापलूसोँ ,हाँहजूरोँ आदि का मतलब सिद्ध करना .



(7)विभिन्न सम्पत्तियोँ पर अंग्रेजी चापलूसोँ ,हाँहजूरोँ ,काले
अंग्रेजोँ आदि का कब्जा रखना .


(8)ब्रिटेन मेँ भारत परिषद का ब्रिटेन पर करोड़ोँ रुपया


(9)अंग्रेजी भ्रष्ट अधिकारियोँ का बचाव कराना .



(10)ब्रिटेन गयी भारतीय सम्पत्ति का हिसाब किताब न होना व काला
धन को प्रोत्साहन


(11)लगभग सौ वर्ष से चले आ रहे भारत मेँ अंग्रेजी कानूनोँ मेँ
कोई फेरबदल न करना .


ऐसे मेँ नेहरु व पटेल पर चला वशीकरण अभियान.

विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ेँ लैरी कालिन्स दामिनिक लैपियर की पुस्तक
'आधी रात की आजादी' व मौ0 अबुल कलाम आजाद की पुस्तक 'इण्डिया विन्स
फ्रीडम'



आम आदमी हेतु भारत अब भी इस धरती पर उदित नहीँ हुआ है .आम आदमी की
आवाज आम आदमी के अंदर ही दबी हुई है ,जो उसे अन्दर ही अंदर खाये जा रही
है और बाहर से परिवार ,संस्था ,समाज व देश के हालात.आम आदमी के लिए अपनी
अभिव्यक्ति के खतरे कम नहीँ हैँ.वह परिवार,संस्था,समाज व देश के
ठेकेदारोँ व अधिकारियोँ से काफी दूर खड़ा है.ठेकेदार व अधिकारियोँ को तो
चापलूसोँ ,हाँहजूरोँ आदि के घेरे से निकलने की फुर्सत नहीँ होती.आम आदमी
अन्दर व बाहर दोनोँ ओर से सुलग रहा है. अरविन्द केजरीवाल ने अपनी पार्टी
का नाम आम आदमी पार्टी रख लिया तो इससे क्या? मेरे नाम की तरह ,मेरा नाम
'अशोक' जरुर है लेकिन मैँ तन व मन से हूँ 'शोक' ही . आम आदमी की आवाज अब
भी दबी हुई है.आखिर आवाज दबे क्योँ न ?व्यवस्थाओँ को न बदलने वाले
परिवार,संस्था ,समाज व देश मेँ हाबी है ,जो चापलूसोँ से घिरे हैँ.जिनके
पूर्वजोँ का इतिहास गौरबशाली भारत का इतिहास था वे जनजातियोँ ,दलितोँ
,पिछड़ोँ के बीच अपना जीवन बिता रहे हैँ .जो चापलूसी,हाँहजूरी नहीँ कर
सकते आगे भी जनजातियोँ ,पिछड़ोँ ,दलितोँ मेँ अपना जीवन बिताने को तैयार
रहे या नक्सली या आतंकी या अपराधी या आत्महत्या करने को तैयार रहेँ .आम
आदमी ऐसे मेँ किस से उम्मीदेँ रखे ? ईश्वर से ? ईश्वर का वश क्या
चापलूसोँ,ठेकेदारोँ,पूँजीपतियोँ ,सत्तावादियोँ ,दबंगोँ आदि पर नहीँ चलता
.केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से उम्मीदेँ ? क्योँ व कैसे रखेँ उम्मीदेँ
?अन्दर से खोखला होते होते ?एक कहता है फूलन देवी का आत्महत्या करने से
अच्छा था डाकू फूलन देवी बनना ?वाह भाई वाह !आज के मार्गदर्शक
व आज का समाजवाद ?
धन्य !गण का तंत्र ! लोक का तंत्र ?
--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

गुरुवार, 24 जनवरी 2013

25जनवरी मतदाता दिवस : लोकतंत्र मेँ मतदाता स्वामी .

समाज व देश के हालातोँ के लिए मतदाता ही दोषी होता है.मतदान करने काफी
मतदाता घर से बाहर निकलता नहीँ .मतदान करते वक्त अब भी नब्बे प्रतिशत से
ज्यादा व्यक्ति संकीर्ण मानसिकता से ग्रस्त है.

(1)अधिक से अधिक लोग वोट डालने निकलेँ .ऐसी सोंच ठीक नहीँ कि वोट डालने
से हमारा क्या लाभ .?
(2)अब भी सामन्तवादी सोंच व गुलामी मानसिकता से हम आप शिकार हैँ.लोकतंत्र
मेँ मतदाता मालिक होता है न कि उसके द्वारा चुना जाने वाला जनप्रतिनिधि.
(3)सूचना पाने का अधिकार समाज के हित मेँ मतदाता को अनिवार्य मानना चाहिए .
(4)मतदाता को सत,सार्वभौमिक ज्ञान तथा कानूनी लक्ष्योँ को जानना चाहिए .
(5)प्रत्येक जाति व मजहब के मतदाताओँ से परस्पर निरन्तर सम्वाद होने
चाहिए और निजस्वार्थ ,जाति ,मजहब आदि के भाव से ऊपर उठ कर क्षेत्र ,समाज
व देश हित जनप्रतिनिधियोँ के चुनने हेतु ईमानदारी से परिचर्चा होनी चाहिए
.
(6)मतदाता अपना जनप्रतिनिधि उसे चुनेँ जो अपना अधिकाँश समय जनता के बीच
बिताये और उसका ऐसा नेटवर्क हो जिससे वह परिवार के अंदर की समस्याओँ तक
को जाने .मतदाता उसके पास न जाए वरन वह मतदाता के पास जायेँ या अपने
नेटवर्क को सक्रिय करे.
(7)वार्ड व गांव स्तर पर नागरिक समितियाँ होँ जोँ संवैधानिक लक्ष्योँ
,योजनाओँ से परिचित होँ.जिनके द्वारा ही प्रत्याशी चयनित किए जाएँ .

--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

रविवार, 13 जनवरी 2013

तीर्थ अर्थात जो पाप से मुक्त करे !

तीर्थ का मतलब है जो पाप सेँ मुक्ति दिलाए .

मैँ जब कक्षा पाँच का विद्यार्थी था तभी से शान्तिकुञ्ज के आध्यात्मिक
साहित्य से जुड़ गया था . कक्षा छह मेँ कुरुशान अर्थात गीता का अध्ययन
प्रारम्भ हो गया था.कक्षा आठ तक आते आते संत कबीर ,रैदास ,जैन व बुद्ध
,सम्राट अशोक का धर्म प्रचार हमेँ प्रभावित करने लगा था. कक्षा बारह मेँ
आते आते आर्यसमाज के सत्संगोँ मेँ शामिल होने लगा था.'क्या है और क्या
होना चाहिए'पर चिन्तन प्रभावित था.

इलाहावाद कुम्भ मेला प्रारम्भ हो चुका है.करोड़ोँ की संख्या मेँ ऋद्धालू
वहाँ पहुँच रहे हैँ.ऐसे भी है जो भारतीय संस्कृति के संवाहक होने के
बाबजूद वहाँ नहीँ पहुँच पायेँगे.जो वहाँ नहीँ पहुँच पायेँगे उनके पाप
नहीँ धुल पायेंगे.हूँ!उनके पाप नहीँ धुल पायेंगे ?

तीर्थ का मतलब है,जो पाप से मुक्ति दिलाए. तीर्थ को जो जाते हैँ वो पाप
से मुक्त हो कर आते हैँ ,हमेँ आश्चर्य है.
ऐसे मेँ मुझे संत कबीर याद आते हैँ ,संत रैदास याद आते हैँ .संत नानक याद
आते हैँ,जो एक बार ही जीवन मेँ गंगा स्नान करते हैँ .


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शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

राष्ट्रीय जाग्रति वर्ष : 150वीँ विवेकानन्द जयंती वर्ष !

राष्ट्रीय जाग्रति वर्ष : 150वीँ विवेकानन्द जयंती वर्ष !


चार जुलाई सन 1902 मेँ 31 शारीरिक रोगोँ के बावजूद विश्व मेँ भारतीय
अध्यात्म की पताका को लहराने वाले स्वामी विवेकानन्द 39 वर्ष की अवस्था
मेँ इस जगत से चले गये.योगी व ईशभक्त ऐसा ही होता है ,दुनिया की नजर मेँ
वह दुखी नजर आ सकता हैँ लेकिन वह भावोँ,विचारोँ व ज्ञान के माध्यम से
परमसत्ता मेँ होता है. विवेकानन्द समाज के बीच पूर्ण उत्साह व साहस के
साथ आध्यात्मिक व समाज सेवा मेँ ओतप्रोत नजर आते रहे.


भारतीय ब्राह्मणवाद व पुरोहितवाद समाजसेवा से दूर रहा है ,जातिवाद
,छुआछूत,सम्पत्ति आदि मेँ व्यस्त रहा है.हालांकि धर्म माया ,मोह ,लोभ आदि
मेँ लिप्त होने का विरोधी रहा है लेकिन भारतीय धर्मस्थल व धर्मनेता
अपारधन सम्पदा ,माया ,मोह लोभ आदि मेँ लिप्त होते देखे गये हैँ .अपनी
तोंद पर हाथ फिराते समाज से करोड़ोँ की सम्पत्ति इकठ्ठी करने वाले इन धर्म
स्थलोँ व धर्म नेताओँ ने बेसहारोँ ,अनाथोँ ,गरीबोँ ,मुसाफिरोँ आदि के लिए
एक चम्मच पानी के अलावा कोई सुविधा नहीँ दी है .जिनसे बेहतर गुरुद्वारे
मेरे लिए सम्माननीय रहे हैँ.

आज ईसाई मत विश्व मेँ आबादी की दृष्टि से नम्बर एक पर है .इसका मुख्य
कारण क्या है?हिन्दू जो हिन्दू व हिन्दू समाज के लिए रोजमर्रे की जिन्दगी
मेँ कोई भी त्याग न करने वाले हैँ ,को ईसाई पुरोहितो ,पादरियोँ ,समाज
सेवियोँ व योजनाओँ से प्रेरणा लेनी चाहिए .जिन दुर्गम क्षेत्रोँ
,व्यक्तियोँ की ओर हम देखना तक पसंद नहीँ करते ,उनके लिए उन्होने अपनी
सम्पत्ति व जीवन दांव पर लगा दिया.


स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि मैँ मोझ नहीँ चाहता ,मैं बार बार
जन्म लेकर मानवता की सेवा करना चाहता हूँ. मैँ तो यही कहूँगा कि उनके
सेवा भाव व कर्म से यहाँ का ब्राह्मणवाद व पुरोहितवाद चिड़ता रहा.यहाँ का
ब्राह्मणवाद व पुरोहितवाद गरीबोँ ,दलितोँ ,बेसहारोँ की सेवा स्वयं कब
किया है ?पश्चिम व ईसाई मिशनरीज के ब्राहमणवाद व पुरोहितवाद के सेवाकर्म
को टक्कर यहाँ का कौन सा ब्राह्मणवाद व पुरोहितवाद टक्कर दे सकता था?
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रविवार, 6 जनवरी 2013

इण्डिया बनाम भारत !

आजकल सोशल मीडिया मेँ इण्डिया बनाम भारत की बहस छिड़ी हुई है .मैँ तो
वर्तमान को देख रहा हूँ .इण्डिया हो या भारत दोनोँ की दिशा विकार युकार
युक्त है .इस दुनियां मेँ भारत तो हर्षवर्धन के शासन तक उपस्थित था.इसके
बाद भारत समाज से विदा होने लगा.हर्षवर्धन तक जो शासन मेँ थे ,वे या
वंशज आज आज कहाँ हैँ ?वे कहीँ जंगलोँ मेँ नहीँ भटक रहे ?वे कहीँ पिछड़ी
जातियोँ मेँ तो विचरण नहीँ कर रहे .जिनका स्वाभिमान मर गया वे क्या
पंथपरिवर्तन या आगे आने वाले शासकोँ की सिर्फ चापलूसी या विदेशी संस्कृति
से तो प्रभावित नहीँ होते रहे ?गुरुगोविन्द सिँह ,महाराणा प्रताप ,बंदा
बैरागी ,वीर हकीकत ,भगत सिंह ,चंद्र शेखर आजाद आदि या फिर उनके पग
चिह्नोँ पर आज कौन चलना चाहता है ?कहाँ है क्षत्रियत्व ?कहाँ है
ब्राहमणत्व ? हमेँ तो हर जगह वैश्वत्व व शूद्रत्व दिखायी दे रहा है .एक
मैकाले आया तो इतना हो गया यदि हजार मैकाले आते तो देश का क्या हो जाता
?जो हमारे पास था वो छिन गया.आजादी आयी ,उम्मीदेँ जगीँ .सन 1947 से ही
उम्मीदेँ खाक होने लगीँ.सुभाष की मृत्यु को एक रहस्य बना दिया गया .नौ
देशोँ की संस्तुति पर दो साल पहले ही सुभाष जी ने सरकार गठित कर ली थी
,जिसे हम भूल गये .


खैर !इण्डिया हो या भारत ,दोनोँ का वर्तमान मेरी नजर मेँ ठीक नहीँ है
.भारत को जगाने वाले बढ़ते जा रहे है .सोशल मीडिया भी अपना योगदान कर रहा
है .लेकिन ?
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लेकिन अब भी देशबासी निष्पक्ष रुप से देश के हित का नहीँ सोँच पा रहे .
यदि हम देश व भारत का हित चाहते हैँ तो देश व भारत का हित चाहने वाले एक
मंच पर क्योँ नहीँ ?जरुर अभी दाल मेँ कुछ काला है .

भारत हॅ या इण्डिया दोनोँ विचलित हैँ .दो ओर से दो प्रतिशत भी 'सादा जीवन
व उच्च विचार' या 'उच्च जीवन उच्च विचार' पर अपना जीवन केन्द्रित नहीँ
कर पाये है .हिन्दुत्व की ही वकालत करने वाले नारीशक्ति को मातृशक्ति व
सेक्स को सिर्फ सन्तान उत्पत्ति के लिए स्वीकार नहीँ कर पाये हैँ .इनके
पुरोहित ,धर्मनेता ,धर्म स्थल माया मोह लोभ मेँ फंसेँ हैँ .क्योँ धर्म
माया ,मोह ,लोभ से मुक्ति की बात करता हो.जिन्हेँ हम बहिष्कृत करते गये
,अछूत मानते रहे ,भयानक रोगियोँ को दूर भगते गये ,दुर्गम क्षेत्रोँ की ओर
देखना पसंद नहीँ किया ,ऐ भारत ! उधर इण्डिया गया .तुम्हारे पुरोहित अब भी
सेवा करवाते हैँ करते नहीँ .उनके पुरोहितोँ ने सेवा मेँ अपना जीवन
कुर्वान कर दिया .विवेकानन्द सेवा भाव से उठे ,उन्हेँ तुम्हारे पुरोहितोँ
न मंदिरोँ मेँ तक नहीँ घुसने दिया .क्या उन्हेँ भगिनी निवेदिता के साथ
दलितोँ ,अछूतोँ ,कुष्ठ रोगियोँ आदि की सेवा नहीँ करना चाहिए थी ?

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गुरुवार, 3 जनवरी 2013

साहब के आगे व घोड़े के पिछाड़ी....

भारतीय समाज मेँ एक कहावत प्रचलित है कि साहब के आगे व घोड़े के
पिछाड़ी कभी नहीँ चलना चाहिए.आखिर ऐसा क्योँ ?भारत मेँ मैने साहब लोगोँ को
चापलूसोँ व हाँहजूरोँ से घिरा देखा है?किसी के साहब होने का मतलब ये नहीँ
है कि वह ईमानदार,निष्पक्ष ,न्यायप्रिय ,अन्वेषणी ,उदार आदि नियति व
नजरिया से भी होँ .सत्य की खोज मेँ लगे व्यक्ति की बातोँ को बर्दाश्त
करने की क्षमता साहब रखता हो या प्रजातांत्रिक प्रणाली को स्वीकार करता
हो.साहब यदि आम को बबूल कहते हैँ तो बबूल कहना ही पड़ेगा.जो आम को बबूल या
बबूल को आम नहीँ कह सकता उसे साहब कैसे बर्दाश्त कर सकते है
.प्रजातांत्रिक मूल्योँ के अभी भी साहब लोग सामन्तवादी व्यवस्था के
प्रतीक हैँ .वे कुछ भी करेँ या चापलूसी व हाँहजूरी मेँ लगे लोगोँ से वे
चाहेँ कुछ भी करवाये ,उससे तुम्हेँ क्या?पब्लिक भी प्रजातान्त्रिक
मूल्योँ को ताख मेँ रख सामंतवादी मानसिकता से ग्रस्त हो साहब व उनके
चापलूसोँ तथा हाँहजूरोँ के गैरसंवैधानिक व नियम विरुध आचरण के खिलाफ
बोलना पाप समझती है .ऐसे मेँ सूचना पाने का अधिकार इन सामंतवादियोँ की
नजर मेँ अनुचित है .दाऊ के संग रहना है तो दाऊ को तो सहना ही होगा.विधायक
जी ने नौ करोड़ रुपया पिछले विधानसभा सत्र मेँ कहाँ कहाँ लगाया ये पूछना
हमारे हक मेँ नहीँ .पब्लिक व अधिकारी ही सिर पर जूते मारेँगे.दाऊ को सहो
बस ,साहब को सहो बस .सहते कितने हैँ ?दाऊ व साहब अपना उल्लू सीधा करते
हैँ .लोग भी अपना उल्लू सीधा करते हैँ .हम अपना उल्लू सीधा नहीँ कर सकते
तो इसमेँ हमारा ही दोष है न.और फिर लक्ष्मी का वाहन उल्लू ही है ,भूल
जाते हम .क्योँ ठीक कहा न ?

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मंगलवार, 1 जनवरी 2013

मतभेद ,द्वेष व सोशल नेटवर्क !

समाज मेँ कार्यात्मक संरचना का टूटना समाज के लिए घातक है ही मानवता के
लिए भी घातक है .इसको हम इस तरह से समझ सकते हैँ कि जैसे समाज एक जंजीर
है और उसकी कड़ियां व्यक्ति .कड़ियां टूटने से जंजीर का अस्तित्व खत्म होता
ही है कड़ियां बिखर जाती हैँ ,तन्हा हो जाती हैँ .चार वर्ग ब्राह्मण
,क्षत्रिय ,वैश्य ,शूद्र इसलिए स्थापित किए जाते हैँ क्योँकि समाजिक
संरचना अर्थात सोशल नेटवर्क अति आवश्यक है .व्यक्ति चाहेँ विभिन्न स्तर
या व्यक्ति के ऋणात्मक क्योँ न हो लेकिन व्यक्तियोँ के बीच पारस्परिक
सम्बंध होने चाहिए .धर्म ,अध्यात्म आदि का मतलब ये नहीँ है ,अपने
कर्त्तव्य निभाने का मतलब ये नहीँ है कि किसी व्यक्ति से द्वेष या मतभेद
रख उससे दूर रहेँ .घर से निकलने के बाद हम समाज मेँ हैँ ,तब समाज के
व्यक्तियोँ को ऊंच या नीच दृष्टि से देखना अधर्म है व अमानवता .

वह प्रकाश प्रकाश नहीँ जो अंधेरोँ से दूर भागे .अंधेरोँ मेँ ही प्रकाश
का महत्व है .कबीर ,ईसा मसीह .दयानन्द ,बुद्ध आदि किसी गांव व नगर मेँ
जाते थे तो इसका मतलब यह नहीँ था कि उनका नियम था वे तामसी या दुष्ट
व्यक्ति से नहीँ मिलेंगे .ब्राह्मण ,पुरोहित ,संत ,उपदेशक ,शिक्षक
,समाजसेवी आदि गाँव व नगर के दुष्ट व तामसी व्यक्तियोँ से दूर रहने वाले
ढ़ोँगी ,पाखण्डी व अज्ञानी होते हैँ.


समाज आज प्रदूषित क्योँ हो रहा है ? इसलिए क्योँकि गैरतामसी व
गैरदुष्ट भी अपने कर्त्तव्य से विचलित हो गये हैँ व सिर्फ ढ़ोग व पाखण्ड
से जुड़े हैँ .

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नारको परीक्षण व ब्रेन मेपिंग अनिवार्य क्योँ न हो ?

बचपन से ही मैँ परिवार व स्कूल मेँ ऐसा झेलता आया हूँ ,जिससे मैँ पांच
साल पहले ही इस निष्कर्ष पर पहुँच चुका हूँ कि भारतीय समाज विशेष रुय से
परिवार व स्कूल न्याय व्यवस्था से दूर हैँ .परिवार व स्कूल क्योँ ? इस
शरीर को धारण करने के बाद परिवार व स्कूल से ही वास्ता रहा है मेरा .मैँ
देख रहा हूँ कि इन्सान इतना गिर चुका है कि जिस कारण बने हालातोँ मेँ अब
सिर्फ सबूत व गवाह ही काफी नहीँ हैँ.व्यवस्थाओँ के ठेकेदार ही
चापलूसी,हाँहजूरी व निज स्वार्थोँ मेँ व्यवस्थाएं बिगाड़ने मेँ लगे
हैँ.ऐसे मेँ नियुक्तियोँ ,प्रत्याशी चयन व न्याय प्रणाली आदि मेँ नारको
परीक्षण व ब्रेन मेपिंग आदि भी अनिवार्य होना चाहिए .

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