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गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

क्या सच है कुर्मी जाति का ?

कुर्मी जाति पुंज और गूजर ::
डा.सुशील भाटी
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मूल विषय पर आने से पहले भारतीय जाति व्यवस्था के अंग- जनजाति, कबीलाई जाति, जाति, जाति पुंज आदि पर चर्चा आवश्यक हैं|

जनजाति (Tribe) अथवा कबीले का अर्थ हैं एक ही कुल 'वंश' के विस्तार से निर्मित अंतर्विवाही जन समूह| जनजाति अथवा कबीला एक ही पूर्वज की संतान माना जाता हैं, जोकि वास्तविक अथवा काल्पनिक हो सकता हैं| रक्त संबंधो पर आधारित सामाजिक समानता और भाईचारा जनजातियो की खास विशेषता होती हैं| भील, मुंडा, संथाल, गोंड आदि जनजातियों के उदहारण हैं|

कबीलाई जाति (Tribal caste) वो जातिया हैं, जो मूल रूप से कबीले हैं, किन्तु भारतीय समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था के प्रभाव में एक जाति बन गए, जैसे- जाट, गूजर, अहीर, मेव आदि| इन जातियों को हरबर्ट रिजले ने 1901 की भारतीय जनगणना में कबीलाई जाति (Tribal caste) कहा हैं|

जाति (Caste) एक अंतर्विवाही समूह के साथ-साथ एक प्रस्थिति (Status group) और एक व्यवसायी समूह भी हैं| किसी भी अंतर्विवाही समूह का एक पैत्रक व्यवसाय होना, जाति की खास विशेषता हैं| जैसे ब्राह्मण, बनिया, लोहार, कुम्हार, धुना, जुलाहा, तेली आदि जातियों का अपना एक पैत्रक व्यवसाय हैं|

एक ही भाषा क्षेत्र में ऐसी कई जातिया पाई जाती हैं जिनका एक ही व्यवसाय होता हैं| ऐसी जातियों के समूह को जाति पुंज (Caste cluster) कहते हैं| सामान्यतः एक सी प्रस्थिति और एक ही व्यवसाय में लगी जातियों के समूह को अक्सर एक ही नाम दे दिया जाता हैं जो अक्सर उनके व्यवसाय का नाम होता हैं| जैसे- उत्तर भारत में खाती, धीमान और जांगिड सभी बढ़ईगिरि का व्यवसाय करते हैं और सभी बढ़ई कहलाते हैं| जबकि वास्तविकता में वे अभी अलग- अलग अंतर्विवाही जातिया हैं| इसी प्रकार उत्तराखंड में सैनी नामक जाति पुंज में गोला और भगीरथी दो जातिया हैं| उत्तर प्रदेश में बनिया जाति पुंज में अग्रवाल, रस्तोगी और गिन्दोडिया आदि जातिया हैं| एक व्यवसाय से जुडी भिन्न जातियों का एक साँझा नाम उनके एक से व्यवसाय और क्षेत्रीय जाति सोपान क्रम में उनके एक से स्थान (Status) का धोतक हैं| एक जाति पुंज के अंतर्गत आनेवाली इन जातियों की भिन्न-भिन्न उत्पत्ति हैं तथा इनमे अधिकांश के किसी क्षेत्र में आबाद होने के काल भी भिन्न-भिन्न हैं|

कन्बी शब्द की उत्पत्ति कुटुम्बिन शब्द से हुई हैं| कुटुम्बिन शब्द का प्रयोग पूर्व मध्यकालीन गुजरात में भूमि दान सम्बन्धी ताम्पत्रो एवं लेखो-जोखो में किसान के लिए किया गया हैं| कुटुम्बिन/कुटुम्बी का अर्थ हैं किसान परिवार का मुखिया| पूर्व मध्यकालीन भूमि दान सम्बन्धी ताम्पत्रो एवं लेखो-जोखो में किसानो/कुटुम्बिनो की संख्या उनके नाम तथा उनके द्वारा जोती जानेवाली भूमि की माप अंकित की जाती थी|

कन्बी, कुनबी अथवा कुर्मी भी एक जाति नहीं एक बल्कि जाति पुंज हैं| कन्बी, कुनबी और कुर्मी,  किसान जाति पुंज के क्षेत्रीय नाम हैं, जिसको हिन्दी में कुरमी, गुजराती में कन्बी तथा मराठी में कुनबी कहा जाता हैं| प्रोफेसर जे.एफ.हेविट- कुरमी (Kurmis) कुरमबस (Kurambas), कुदमबस(Kudambas), कुदम्बीस(Kudambis) भारत की सिंचित कृषि करने वाली महान जातियां थी|

वस्तुतः गुजराती भाषा क्षेत्र (गुजरात) में खेतीहर जातियों के वर्ग समूह को कन्बी कहते हैं| वस्तुतः इसमें लेवा, कड़वा, अन्जने, मतिया आदि पृथक जातिया हैं| कन्बी जाति पुंज के अंतर्गत आनेवाली इन जातियों की भिन्न-भिन्न उत्पत्ति हैं तथा इनमे अधिकांश के गुजरात में आबाद होने के काल भी भिन्न-भिन्न हैं|  जिनमे लेवा और कड़वा गूजर जनजाति का हिस्सा हैं| हालाकि सामान्य रूप से इन्हें वहाँ गूजर नहीं कहा जाता| किन्तु इनके बुजुर्गो और भाटो का मानना हैं कि ये पंजाब से आये हुए गूजर हैं| जबकि अन्जने,  मतिया आदि कन्बी जातियो की भिन्न उत्पत्ति हैं|

मराठी भाषा क्षेत्र (महाराष्ट्र) में  खेतीहर जातियों के वर्ग को कुनबी कहते हैं| यहाँ के कुनबी नामक जाति पुंज में तिरोले, माना, गूजर आदि जातिया हैं| मराठी समाज में इन्हें तिरोले कुनबी, माना कुनबी, गूजर कुनबी कहा जाता हैं| मराठी में समाज लेवा और कड़वा दोनों जातियों को गूजर कहा जाता हैं| इनके गुजराती लेवा और कड़वाओ से परंपरागत रूप से विवाह भी होते हैं| अतः गुजराती भाषा क्षेत्र (गुजरात) के लेवा, कड़वा और मराठी भाषा क्षेत्र (महाराष्ट्र) के लेवा, कड़वा गूजर एक ही हैं| जबकि मराठी भाषा क्षेत्र (महाराष्ट्र) तिरोले और माना कुनबी भिन्न उत्पत्ति की पृथक जाति हैं| दक्षिण भारत के मराठी समाज में यह आम धारणा हैं कि लेवा और कड़वा सहित सभी गूजर कुनबी उत्तर से आये हैं| जबकि तिरोले और माना स्थानीय उत्पत्ति के माने जाते हैं|

हिंदी भाषी मध्य प्रदेश के इन्दोर संभाग में भी लेवा गूजर मिलते हैं| होशंगाबाद में इन्हें मून्डले या रेवे गूज

अपने मालिक की सुनें!!!!

अपने मालिक के निर्देशन पर बस चलते रहो📢📢
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लोग आपके बारे में क्या कहते हैं ?इस बारे में ध्यान मत दीजिए.जरूरी नहीं आपका जो नजरिया है बह
उनका भी हो? यदि आपका नजरिया दर्शन व महापुरुषों के सन्देशों से मिलता है तो आपको चिंता करने की जरूरत नही है.क्यों न लोग आपको पागल सनकी ही क्यों न समझें? आपने स्तर के लोगों को अपने से जोड़ते रहें.आपका जो आदर करते हैं उनका आदर करते रहें. व अन्य पर दया.
...........ये समाज?समाजिकता?सामाजिकता के दंश????
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हिंदुत्व कब जातिवाद के खिलाफ ??

जो आरक्षण के विरोधी वे जातिवाद के विरोधी क्यों नहीं ?
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आरक्षण कुव्यवस्था व जातिव्यवस्था का परिणाम है. आरक्षण खत्म होना चाहिए.लेकिन ये कुव्यबस्था व जातिव्यबस्था के खत्म होने वाला नहीं.कुप्रबन्धन व जाति व्यवस्था के रहते आरक्षण का विरोध समाज में एकता को ओर कमजोर ही करेगा .5000 वर्षों से यहां जो यहां के मूलनिवासियों (दलितों/पिछड़ों/जनजाति) के साथ  होता आया है उसका परिणाम है  अखण्ड भारत का खण्ड खण्ड होना.कोई
क्या बताएगा कि दलित/पिछड़े/जनजाति/आदि क्या शुद्र थे?इनका इतिहास तो कुछ ओर कहता है. आज जब जातिवाद के विरोध में आवाज उठती है तो सबसे बिरोधी इस आवाज का कौन होता है?

  हम जातिव्यबस्था के विरोध में हैं क्यों न उसकी आंच हिन्दुत्व पर क्यों न हो?उसके परम्पराओं पर क्यों न हो?हम सिर्फ सनातन को मानते हैं.आप से एक सबाल है-- जो धर्मस्थलों/यज्ञ/आपके रीति रिवाजों/आदि को नहीं मानता वह क्या सनातनी नहीं?

जातिव्यबस्था (वर्ण व्यबस्था) पर कुरुशान(गीता)::
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(अध्याय 18/42--43--44)
शम:(मन का निग्रह),दम(इंद्रियों को वश में करना),तपः(धर्म पालन के लिये कष्ट सहना),शौचं(शुद्धि),क्षान्ति:(दूसरों के अपराधों को क्षमा करना),आर्जवम(शरीर,मन आदि में सरलता रखना),ज्ञानम्(ज्ञानी होना),विज्ञानम(यज्ञ विधि को अनुभव में लाना और आस्तिक्यम्(परमात्मा,वेद आदि में आस्तिक भावना रखना) ; ये  सब के सब ही ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म है..शौर्य (शूरवीरता),तेज(प्रभाब),धृति(धैर्य),दाक्ष्यं(प्रजा के सञ्चलनन की चतुरता) और युद्ध में कभी पीठ न दिखाना,दान करना और ईश्वरभाव क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म हैं..खेती करना ,गायों की रक्षा करना,ब्यापार करना बैश्य के स्वाभाविक कर्म है.


इस से हट कर शुद्र.....? शूद्र का स्वाभाविक कर्म है--ऊपर के तीनों वर्णों की सेबा करना.ये शूद्र कौन थे?किसी को इतिहास खंगालने की जरूरत नहीं है लेकिन हमें तो है.

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अशोक कुमार वर्मा "बिंदु"
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मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015

आजाद हिन्द सरकार दिवस

21 अक्टूबर 1943::आजाद हिन्द सरकार की स्थापना!
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             द्वितीय विश्व युद्ध पर  चर्चा हमारे लिए नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के बिना अपूर्ण है. नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के स्मरण मात्र से मन रोमांचित हो उठता है.21 अक्टूबर 1943 को उनके द्वारा स्थापित अस्थायी आजाद हिन्द सरकार के स्थापना दिवस पर हम कुछ कहना चाहेंगे.



      यह सिद्ध हो चुका हैं कि त्तथाथित विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु नहीं हुई थी.वह वायुयान दुर्घटना ही फर्जी थी. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 
आजाद हिन्द फ़ौज की सर्वोच्च कमान संभालने के लिए सुभाष बाबू को  सिंगापुर लाया गया.उन्हें जहाँ नेता जी नाम से सम्बोधित किया गया.उनकी उपस्थिति में 21 अक्टूबर 1943 को स्वतन्त्र भारत के लिए स्थायी सरकार का गठन किया गया.जिसे कम से कम o7 देशों ने मान्यता दी.



       जापान सरकार की सेना व आजाद हिन्द सरकार की सेना ने अंडमान निकोबार द्वीप पर विजय प्राप्त की.रंगून को राजधानी व फ़ौज का कमांड बनाया गया.वर्मा में भी उनकी जीत हुई और भारत में प्रवेश किया. कांग्रेस,अमेरिका,ब्रिटेन आदि बेचैन हो उठे.जापान में अमेरिकी परमाणु बम बर्षा ने उन्हें प्रभावित किया लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी . जब वे बापस जाने लगे तो उनका मजाक उड़ाया गया. उन्होंने कहा -- 04 फरबरी का इंतजार कीजिए.फरबरी 1946 से नौ सेना बिद्रोह प्रारम्भ हुआ.ब्रिटिश सरकार के भारतीय स्तम्भ बिरोध में खड़े हो गए.ब्रिटिश सरकार ने आजाद हिन्द सरकार व फ़ौज को अपराधी घोषित किया. पूरा देश उठ खड़ा हुआ.गांधी का भारत छोड़ो आंदोलन पहले ही सुभाष मय हो  चुका था.सुभाष जी के प्रयत्नों के कटु आलोचक कांग्रेसी आजाद हिन्द सरकार व फ़ौज के समर्थन में आ गए.कांग्रेस ने भूला भाई देसाई ,श्री तेज बहादुर सप्रू,आसफ अली सरीखे प्रसिद्ध वकीलों को लेकर आजाद हिन्द फ़ौज बचाव समिति का गठन किया. नेहरू व जिन्ना ने भी वकील का चोंगा धारण किया.



        वर्तमान में अनेक संघठन के अनुसार सुभाष जी को भी राष्ट्र सङ्घ ने अंतर्राष्ट्रीय अपराधी घोषित किया .सुभाष जी ने अपनी एक पुस्तक --"द इंडियन स्ट्रगल " . जिसमें उन्होंने अपने जीवन के कुछ अनुभवों का वर्णन किया है.


        भारत सरकार ने सन् 1992 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया था लेकिन उनके परिजनों ने " मरणोपरांत" शब्द  पर आपत्ति की और विरोध किया तब अदालत ने 04अगस्त 1997 को इस पुरुस्कार को रद्द कर दिया.
ममता बनर्जी सरकार ने कुछ सम्बंधित फाइल्स उजागर की है. लेकिन अंदरुनी एक खबर ये भी है कि आजाद हिन्द सरकार व फ़ौज के कुछ  सिपाही इस पर नाराज है. वे सन् 2022 तक नेता जी सम्बन्धी फाइल्स उजागर होना नहीं  चाहते.हालांकि  केंद्र सरकार ने 23 जनबरी 2016 से फाइल्स उजागर करनें की घोषणा की है. जो भी हो लोग उनको लेकर अब भी उत्साहित हैं और आजाद हिन्द फ़ौज का पुनर्गठन चाहते है,यदि  आवश्यकता पड़ी तो.....जय हिंद !!!!
ashok  kumar  verma "bindu"

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बुधवार, 14 अक्तूबर 2015

जातिवाद ?हाय !जातिवाद!

सब कुछ होगा?जातिवाद के खिलाफ कुछ न होगा? जातिवादी समाज के कथन??
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इलेक्शन भी झाड़ है-- चमार,तेली,ठाकुर सभी के हाथ जोड़ने पड़ते है.
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हमारे गांव से एक ठाकुर,एक धीमर,एक चमार खड़ा है.
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अरे साला तेली सुबह सुबह वोट मांगने घर में आ घुसा.गनीमत थी कि अभी नहाया धोया नहीं था.
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वो साला चमार ,हमारे सामने खड़ा होगा?ठाकुर की मुछ नीचे नहीं होने दूंगा.साम,दाम,दण्ड से उसे बैठा ही देंगे.
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मेहतर के घर जा उसकी खटिया पर बैठना पड़ गया.नहाये लेता हूं.उसके दरबज्जे पे कभी न जाता,उसके अंडर में 50 वोट है,ये इलेक्शन जो करवाए ठीक ही है.
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इस चुनावी दौर में मेहनत कर लो,एक बार जीत जाएँ फिर इन चमट्टा,कुरमेटन के घर छोडो उनकी ओर देखना तक पसन्द नहीं करेगे.
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आदि
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मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

हमारा चित्त बनाम मोक्ष

पितर लोक :: समीप की श्रेष्ठ शक्ति@
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पितर रजो गुण प्रधान होते हैं.इस लोक को हम "ट्रांजिट कैप" कह सकते हैं.पुनर्जन्म के बीच मध्यावधि का समय आत्माएं यहीं पर बिताती हैं.इन्हें "एनविजिकवल हेल्पर्स" कहा जा सकता है.
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हमारा चिंतन बनाम भूत पितर#
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हम अदृश्य शक्तिओं के बीचही रह रहे होते हैं.यदि हम निरन्तर द्वेष भावना में जीते हैं तो हमरा जो चित्त बनेगा ,उसके अनुसार हम अगले जन्म सर्प बनेंगे.
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मोक्ष बनाम हमारा चित्त@
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शरीर,इंद्रियों,सांसारिक वस्तुओं आदि से प्रभावित हुए बिना अभिनय मात्र अपने कर्तव्यों को निभाना व मरने सेपूर्व इच्छाओ का मर जाना मोक्ष है.जिसके लिए भूत,पितर,देव आदि में अपने चित्त को रखने से नहीं बरन ईश्वर के निर्गुण स्वरूप को चित्त में रखने से मोक्ष मिलता है.

गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

मनुष्यता की चिंता करें????


हमारा हाल कौन पूछे ?हम खतरे में हैं.मनुष्यता खतरे में है.
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हिंदू कहता है - हिंदुत्व खतरे में है.मुसलमान कहता है इस्लाम खतरे में है.हम मजहबीकरण के खिलाफ हैं.जातिवाद के खिलाफ हैं.हम तो नैतिक शिक्षा की वो किताब हैं जिसमें राम हैं तो मोहम्मद साहब भी हैं. बुद्ध हैं तो ईसा भी हैं .जिसमें मानवता को प्रेरणा देंने वाली आयतें हैं तो वेदों के श्लोक भी . जहां सत हैं , प्रेम हैं.हम ऐसी किताब का सम्मान चाहते हैं. हम स्वयं "मुसलमान (यहां हम किसी मजहब की बात नहीं कर रहे हैं वरन् सत पर टिकने की बात कर रहे हैं)होना चाहते हैं. हमारे लिए हिन्दू शब्द विदेशी शब्द है,जो गुलामी का प्रतीक है.आर्य होना कोई मजहबीकरण नहीं है? कुछ लोग सनातन का बखान खूब करते हैं.लेकिन हम पूछना चाहते हैं कि आपके धर्मस्थलों,मूर्तियों,हवन,गर्न्थो आदि की अपेक्षा प्रकृतिअंशों व ब्रह्म अंशों को मानना क्या सनातन विरोध है?दुनियां का पहला पन्थ जैन (विजेता) मानते हैं .लेकिन ये पन्थ नहीं आर्य पथ पहला पड़ाव है.जितेन्द्रिय होना.इसी तरह बुद्ध का मतलब ,जिसकी ऊर्जा माथे(तीसरा नेत्र) को पार कर ऊपर बढ़ चुकी हो.हमारी नजर में ईसाई का मतलब ईस के गुण गान में जीना है.सिख का मतलब शिष्य होता है.....आदि आदि..बस ! दर्शन को समझने की जरूरत है.मजहबी करण/जातिकरण/समूहीकरण/आदि से निकल कर जरा सोचो.अपने को व् जगत को पहचानो. कुरुशान(गीता) में श्री कृष्ण के बिराट रूप में छिपी फिलासफी को पहचानों.हमारे ज्ञान का आधार है--"हम व् जगत की वर्तमान पहचान है-प्रकृतिअंश व ब्रह्मअंश.
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सोमवार, 5 अक्तूबर 2015

अपने मालिक के निर्देशन पर चलते रहो!!!

अपने मालिक के निर्देशन पर बस चलते रहो📢📢
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लोग आपके बारे में क्या कहते हैं ?इस बारे में ध्यान मत दीजिए.जरूरी नहीं आपका जो नजरिया है बह
उनका भी हो? यदि आपका नजरिया दर्शन व महापुरुषों के सन्देशों से मिलता है तो आपको चिंता करने की जरूरत नही है.क्यों न लोग आपको पागल सनकी ही क्यों न समझें? आपने स्तर के लोगों को अपने से जोड़ते रहें.आपका जो आदर करते हैं उनका आदर करते रहें. व अन्य पर दया.
...........ये समाज?समाजिकता?सामाजिकता के दंश

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महारानी दुर्गावती जयंती ::05अक्टूबर

5 अक्टूबर : महारानी दुर्गावती जयंती
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. आज महान वीरांगना महारानी दुर्गावती का जन्म दिवस है ।ये कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं।महोबा के राठ गांव में 5 अक्टूबर 1524 ई0 को दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी।
दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति भिन्न थी लेकिन फिर भी दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर राजा संग्राम शाह ने अपने पुत्र दलपत शाह से विवाह करके, उसे अपनी पुत्रवधू बनाया था।
दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती की गोद में तीन वर्षीय
नारायण ही था। अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं. वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया। रानी दुर्गावती का यह सुखी और सम्पन्न राज्य पर मालवा के
मुसलमान शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया, पर हर बार वह पराजित हुआ। तथाकथित महान मुगल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा. रानी ने यह मांग ठुकरा दी. इस पर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ खां के नेतृत्व में गोंडवाना पर हमला कर दिया. एक बार तो आसफ खां पराजित हुआ, पर अगली बार उसने दुगनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला। दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे। उन्होंने जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया। इस युद्ध में 3,000 मुगल सैनिक मारे गये लेकिन रानी की भी अपार
क्षति हुई थी। अगले दिन 24 जून 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोला. आज रानी का पक्ष दुर्बल था, अतः रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया. तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका. दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी। तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया। रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अतः रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं. महारानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर अपनी जान गंवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था। जबलपुर के पास जहां यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ था, उस स्थान का नाम बरेला है, जो मंडला रोड पर स्थित है, वही रानी की समाधि बनी है, जहां देशप्रेमी जाकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। जबलपुर मे स्थित रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी भी इन्ही रानी के नाम पर बनी हुई है।.कोटि कोटि नमन इस वीरांगना को

रविवार, 4 अक्तूबर 2015

विद्यार्थी व शिक्षक ?????5अक्टूबर

5अक्टूबर::विश्व शिक्षक दिबस???

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अब अभिवावकों में संस्कार खत्म हो रहे हैं.शिक्षक को सिर्फ किताबी कोर्स पूरा करने से फुर्सत नहीं है.शिक्षा जगत का महत्व पूर्ण कार्य है.लेकिन सर्वांगीण शिक्षा का आभाव है.

शिक्षक अब वे होने लगे है  जो वर्ण से वैश्य व शुद्र हैं.विद्यार्थी भी वो हो रहे हैं जिन्हें ज्ञान के प्रति जिज्ञासा नहीं है.आज का विद्यार्थी जीवन ब्रह्मचर्य जीवन नहीं रह गया हैं

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सहज ;स+हजअर्थात यात्रा:अन्तस्थ यात्रा

४ अक्टूवर २०१५ रविवार :: स्वामी श्रद्धानन्द जी सरस्वती का जन्म दिवस @
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मेडिटेशन की प्रतिक्रिया क्या हमारी प्रकृति(शरीर) पर पड़ती है?अंतर्मुखी स्थिति पर अनुभव/महत्व मिलता ही है.जैसा हमें तब ही मिलने लगा था जब हम स्नातक का छात्र था.लेकिन नियमितता नहीं थी.जगत/प्रकृति में नियमितता चाहिए.नहीं तो ये मन व इंद्रियाँ ....?हमारी इंद्रियों व मन से परे है अनन्त -शाश्वत.पिछले चार रविवार से असर महसूस हो रहा है --सुमरिन का/मेडिटेशन का.

मूलाधार बनाम सहस्राधार@
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ऊर्जा की गति के दो सिरे हैं- मूलाधार व सहस्राधार.
कुछ लोग जगत में ऐसे भी होते हैं जिनकी ऊर्जा या तो सहस्राधार पर होती है या मूलाधार पर.जिनमे से ही शायद हम हैं?आँख बन्द पर ऊपर व आँख खुले पर नीचे?ऐसे में कुर शान(गीता) की तटस्थता , बुद्ध की सम्यकता पर भी दृष्टि जाती है.लेकिन हम आँख खुले जीवन में मालिक के एहसास में निचले स्तरों से ऊपर उठ जाते हैं.

हज है यात्रा : अन्तस्थ यात्रा@
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आत्मा/चेतना ही स्वतन्त्रता है.जो सहजता में है.सहज अर्थात स+हज;हज सहित.हज है-यात्रा,कैसी यात्रा ?तीर्थयात्रा.तीर्थ क्या है-- जो हमें पाप से मुक्त करे  वह है-तीर्थ.

अन्तस्थ यात्रा :: धर्म
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धर्म है -- अन्तस्थ यात्रा .हमारा नजरिया/हमारा आंतरिक स्तर. जो निर्धारित करता है कि प्रकृति/प्रकृति अवयवों से हमारे सम्बन्ध हेतु हमारा नजरिया/आंतरिक स्तर.

अज्ञानी,ज्ञानी व अभ्यासी@
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अर्जुन श्री कृष्ण से पूछते हैं-- आपकी बातें सिर ऊपर से उड़ जाती हैं,हम ग्रहण कर ही नहीं पाते.श्रीकृष्ण कहते हैं--"अभ्यास में रहो,अभ्यास में.श्रेष्ठ अभ्यासी बनो.ज्ञानी होने से क्या?ज्ञान पर प्रयोग करो,अभ्यास करो.

ashok kumar verma "bindu"

A00226525

श्री रामचंद्र मिशन

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2015

सन्त से बड़ा जगत में कौन??

सन्त परम्परा बनाम देव लोक@
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हमारी शिक्षा की शुरुआत सन्तों के बीच से ही शुरू हुई.किताब पढ़ना ठीक ढंग से शुरू नहीं कर पाया कि कुरुशान(गीता) हाथ आई.
हमें ननिहाल पक्ष की ओर से भी सन्त मिले.सन्तों के बीच हमें प्रेम का अहसास हुआ.

            आगे चलकर पौराणिक कथाएँ पढ़ी . पढ़कर अटपटा सा लगा.हमें सन्तों के लोक से बडा नहीं दिखा देव लोक.बदले की भावना,भेद आदि.... से मुक्त हैं क्या देव लोक?

    बचपन से ही आर्य समाज,शांति कुञ्ज,गीता प्रेस आदि के साहित्य से का सानिध्य मिला.लेकिन....??

      हजरत किब्ला मौलवी फ़ज़्ल  अहमद खान साहब  रायपुरी के शिष्य श्री रामचन्द्र जी फतेहगढ़ वाले 
की स्मृति में शाहजहाँपुर के श्री रामचन्द्र जी (बाबूजी) ने श्री रामचन्द्र मिशन की स्थापना की.जिसका बोध हमें 1998 में पुबायाँ (शाहजहाँपुर) के श्री राजेन्द्र मिश्र के माध्यम से हुआ.इसी समय जयगुरुदेव का सानिध्य मिला.निरंकारी समाज की समीपता में आया.बचपन से ही हम सनत् कबीर राजा जनक व बुद्ध से भी प्रभावित रहा.

देव परम्परा से बेहतर मानते हैं हम सन्त परम्परा. आखिर ऐसा क्यों?ऐसा इसलिए क्योंकि सन्त परम्परा में द्वेष,भेद आदि को कोई स्थान नहीं है.
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