Powered By Blogger

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

हिंदुत्व कब जातिवाद के खिलाफ ??

जो आरक्षण के विरोधी वे जातिवाद के विरोधी क्यों नहीं ?
.
.
.
आरक्षण कुव्यवस्था व जातिव्यवस्था का परिणाम है. आरक्षण खत्म होना चाहिए.लेकिन ये कुव्यबस्था व जातिव्यबस्था के खत्म होने वाला नहीं.कुप्रबन्धन व जाति व्यवस्था के रहते आरक्षण का विरोध समाज में एकता को ओर कमजोर ही करेगा .5000 वर्षों से यहां जो यहां के मूलनिवासियों (दलितों/पिछड़ों/जनजाति) के साथ  होता आया है उसका परिणाम है  अखण्ड भारत का खण्ड खण्ड होना.कोई
क्या बताएगा कि दलित/पिछड़े/जनजाति/आदि क्या शुद्र थे?इनका इतिहास तो कुछ ओर कहता है. आज जब जातिवाद के विरोध में आवाज उठती है तो सबसे बिरोधी इस आवाज का कौन होता है?

  हम जातिव्यबस्था के विरोध में हैं क्यों न उसकी आंच हिन्दुत्व पर क्यों न हो?उसके परम्पराओं पर क्यों न हो?हम सिर्फ सनातन को मानते हैं.आप से एक सबाल है-- जो धर्मस्थलों/यज्ञ/आपके रीति रिवाजों/आदि को नहीं मानता वह क्या सनातनी नहीं?

जातिव्यबस्था (वर्ण व्यबस्था) पर कुरुशान(गीता)::
.
(अध्याय 18/42--43--44)
शम:(मन का निग्रह),दम(इंद्रियों को वश में करना),तपः(धर्म पालन के लिये कष्ट सहना),शौचं(शुद्धि),क्षान्ति:(दूसरों के अपराधों को क्षमा करना),आर्जवम(शरीर,मन आदि में सरलता रखना),ज्ञानम्(ज्ञानी होना),विज्ञानम(यज्ञ विधि को अनुभव में लाना और आस्तिक्यम्(परमात्मा,वेद आदि में आस्तिक भावना रखना) ; ये  सब के सब ही ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म है..शौर्य (शूरवीरता),तेज(प्रभाब),धृति(धैर्य),दाक्ष्यं(प्रजा के सञ्चलनन की चतुरता) और युद्ध में कभी पीठ न दिखाना,दान करना और ईश्वरभाव क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म हैं..खेती करना ,गायों की रक्षा करना,ब्यापार करना बैश्य के स्वाभाविक कर्म है.


इस से हट कर शुद्र.....? शूद्र का स्वाभाविक कर्म है--ऊपर के तीनों वर्णों की सेबा करना.ये शूद्र कौन थे?किसी को इतिहास खंगालने की जरूरत नहीं है लेकिन हमें तो है.

.
अशोक कुमार वर्मा "बिंदु"
.
www.ashokbindu.blogspot.com

कोई टिप्पणी नहीं: