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सोमवार, 27 अप्रैल 2020

रोज मर्र में 'राम राम सत्य '-कहना क्यों नहीं:::अशोकबिन्दु भईया

इसके पीछे भी सुप्रीम साइंस है।
कि लाश को लेजाते वक्त 'राम राम सत्य है' कहा जाता है लेकिन उपासना के वक्त नहीं।
हम तो कहेंगे कि उनकी उपासना झूठ है पाखण्ड है। वे उप आसन में नहीं है । आसन में है। सिर्फ हाड़ मास शरीर की लालसाओं ,आवश्यकताओं,ऐंद्रिक आवश्यकताओं आदि के साथ खड़े है।कोई उप आसन प्रेमी नहीं है आसन प्रेमी है।हाड़ मास शरीर की स्थिति को  समाज की नजर में बेहतर रखना चाहते हैं।अपने नजर में भी नहीं।आराम नहीं।मिल रहा है जो कर रहे है लेकिन करना है क्योंकि समाज की नजर में बेहतर करना है।अपनी निजता को नहीं जीता।अपनी आत्मियता को नहीं जीता।
मन्दिर में जाता है तो किस लिए जाता है?क्या परम् आत्मा से प्रेम है?आत्मा से ही प्रेम नहीं है।आत्मा के लिए कुछ करना नहीं चाहता।आत्मा की ही आवश्यकताएं नहीं जानता।परम् आत्मा की आवश्यकताएं क्या जाने गा? यदि मन्दिर की मूर्ति बोलने लगे तो वहाँ भी जाना छोड़ दे।मूर्ति बोलने लगे और कहने लगे तो खतरनाक स्थिति पैदा हो जाएगी उसके लिए।उसकी भक्ति विदा हो जाएंगी।वह फिर जो चाहेगी वह भक्त पूर्ण नहीं कर पायेगा।वैसे भी वह उसकी ख्वाईश के लिए नहीं संसार में अपनी ख्वाइशें चमकना चाहता है।वह मूर्ति तो चाहता है जिसके सामने उपासना कर सके।अब वह लाश भी मूर्ति ही है, उसके सामने कह रहा है-राम राम सत्य है। बस फर्क इतना है कि इसके अतिरिक्त अन्यत्र उपासना में ये कहने को तैयार नहीं।ऐसा इसलिए क्योकि  वह तैयार नहीं है जीवन में ,आचरण में ,व्यवहार में सत्य को स्वीकार करने के लिए।वह वास्तव में उपासना चाहता ही नहीं, वह वास्तव में आत्मा, परम् आत्मा चाहता ही नहीं।वह सिर्फ परम्परा को ढोह रहा है।वह अपने को, जीवन को, अपने अस्तित्व को,आत्मा को,परम् आत्मा को या अपनी चेतना को महसूस ही नहीं करना चाहता। जीवन।में यदि उसने स्वीकार कर लिया-'राम राम सत्य है' तो गड़बड़ हो जाएगा। पुरोहितवाद ढह जाएगा।धर्म स्थल वाद ढह जाएगा। इस भक्त का जीवन भी गड़बड़ा जाएगा।क्योकि सारी धारणाएं ढह जाएगी।

एक कहता है-आचार्य है-मृत्यु। योग का पहला अंग है-मृत्यु।।मुख्य बात है कि इस जिंदा शरीर को लाश मान कर या इस शरीर को ही मंदिर मान कर इसे सम्मान देना,पूजा देना गड़बड़ हो जाएगा।इसे राम को समर्पित कर देना मुश्किल हो जाएगा।शरणागति बड़ी मुश्किल है।समर्पण बड़ा मुश्किल है।कुर्बानी बड़ी मुश्किल है।जिओ रोटी कपड़ा, मकान के लिए ही सिर्फ, हाड़ मास शरीर के लिए लिए ही सिर्फ।आत्मा की आवश्यकताओं में जीने पर खतरा है।अनेक सन्तों का शरीर ये जिया है सिर्फ लाश बन महानताओं के लिए, मानवता के लिए, आत्मा के लिए। राम क्या है?दशरथ पुत्र राम नहीं वरन जो सभी में भी रमा है।उसमें रमने से वर्तमान धारणाएं विखर जाएगी।पुरोहितवाद,धर्म स्थल वाद विदा हो जाएगा।हृदय ही मन्दिर बन जायेगा।ये शरीर ही मन्दिर बन जायेगा। तब काम भी विदा होने लगेगा।सारे धर्म भय व प्रलोभन पर टिके हैं।जब रोज मर्रे की जिंदगी में 'राम सत्य'-हो जाएगा तो फिर धंधेबाजों का क्या होगा?





मंगलवार, 14 अप्रैल 2020

जनतंत्र में जनता दोषी या इसकी जिम्मेदारी:::अशोकबिन्दु भईया

जनतंत्र में जनता ही दोषी???अशोकबिन्दु भइया का आगाज!!

https://www.facebook.com/groups/1667794450149675/permalink/2477220545873724/



हम सोचते हैं कि देश में यदि मुसलमान न होते तो क्या आज आर एस एस व उसके संगठन होते?हम पांच साल आर एस एस से सम्बद्ध रहे।हमने वहां हिंदुओं की समस्याओं से निपटने के बारे में जज्बा सिर्फ मुसलमान के बदले में देखा।उन्हें हमने जाति व्यवस्था के खिलाफ़, नशाबन्दी आंदोलन, खाद्यमिलावट की खिलाफत आंदोलन, जनता की वर्तमान समस्याओं जैसे सड़क व्यवस्था, महंगी शिक्षा, महंगा इलाज, फर्जी दहेज प्रकरण, वी आई पी कल्चर, अन्याय व्यवस्था, नेताओं की थाना राजनीति आदि का विरोध करते नहीं देखा।
वर्तमान में देश को क्या चाहिए?
@महंगी शिक्षा का विरोध
@मंहगे इलाज का विरोध
@खाद्यमिलावट का विरोध
@नशा बन्दी
@सामन्त वाद का विरोध अर्थात हर क्षेत्र में एक दो जाति, नेताओं के समीपवर्तीयों की मनमानी, गाँव/वार्ड  के दबंग, जातिबल,माफिया आदि को किसी न किसी नेता का आश्रय का विरोध
@मुसलमानों/सवर्णों /अन्य बहुसंख्यकों के बीच कम आबादी वालों के सम्मान/स्वभिमान आदि के लिए कानून का निर्माण हेतु समर्थन/भीड़ हिंसा का विरोध
 @ किसी के अन्याय, शोषण आदि की सूचना पर किसी नेता, जातिबल आदि के दबाव, समझौता आदि का बिरोध व दोनों पक्षो व दोनों पक्षों का नार्को परीक्षण, ब्रेन मेपिंग आदि करवाना व न्यायव्यवस्था को पारदर्शी व स्वस्थ बनाना।
@कानूनी हिसाब से चलने वालों का संरक्षण।उनका विरोध करने वालों/हिंसा मनमानी करने वालों पर कार्यवाही
@ईमानदार कर्मचारियों/अधिकारियो आदि की कार्यशैली/नेताओं के हस्तक्षेप को स्वीकार करना आदि का विरोध करने वाले नेताओं, ट्रांसफर चाहने वाले नेताओं आदि पर कार्यवाही का कानून समर्थन।जैसे कि जनता विजय किरण को तो चाहती थी लेकिन नेता नहीं।ऐसे में उनका ट्रांसफर लोकतंत्र पर एक कलंक! @मतदाता जगरण अभियान के साथ साथ प्रत्याशी जागरण अभियान भी का समर्थन
@क्षेत्र की विविध प्रतिभाओं के उत्थान के कार्यक्रम व सहयोग
@गांव/नगर में निःशुल्क कोचिंग व पुस्तकालय व्यवस्था
@नगर व गांव में तीन दिवसीय वर्ष में एक बार नगर/गांव महोत्सव का अयोजन
@प्रत्येक मकान को विभिन्न सरकारी योजनाओं से डायरेक्ट जोड़ना।
@प्रत्येक वार्ड/गांव में ऑक्सीजन बार/हेल्थ क्लब /अस्पताल खुलना व सभी विभागों का एक एक प्रतिनिधि होना या बहुद्देशीय कर्मी की नियुक्ति
@गांव व शहर में वार्ड सेवक की नियुक्ति ताकि व डोर टू डोर सेवाओं में सहयोग कर सके।
@वार्ड व गांव स्तर पर गुप्त रूप से विभिन्न चुनावों हेतु प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया जिनमे से ही फिर चुने व्यक्ति को विभिन्न दलों का प्रत्याशी बनाया जाना।
@अन्य
लेकिन जनता भी भ्रष्ट रास्ते पर ।जन तन्त्र में जनता ही मालिक होती है लेकिन मूर्ख जनता को कौन बताए?जनता यदि ये चाहे तो अपना देश महान हो जाए।जाति तोड़ो समाज जोड़ो!!!बसुधैव कुटुम्बकम!!जय सम्विधान!!!


अशोक कुमार वर्मा 'बिंदु'

www.ashokbindu.blogspot.com

रविवार, 12 अप्रैल 2020

महत्वपूर्ण ये नहीं कि कोई आस्तिक है या नास्तिक, महत्वपूर्ण है-हम महसूस क्या करते है? अशोकबिन्दु भइया

महत्वपूर्ण ये नहीं कि कौन।नास्तिक है आस्तिक।महत्वपूर्ण है-व्यक्ति का अनुभव।अनुभव से असल की ओर बढ़ना।क्रांतिकारी भगत सिंह ने आस्तिक नास्तिक से परे हो यथार्थवाद को माना ,सहज मार्ग को माना।जो है सो है।लेकिन वह महसूस होना चाहिए, दिल से होना चाहिए।
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उनका नजरिया किताबों के पाठ्यक्रमों में नहीं रमता।विद्यार्थी सिर्फ वही है जो किताबों के पाठ्यक्रम में अपना नजरिया, चिंतन, मनन करता है ।समाज नहीं प्रकृति, सामजिकता नहीं मानवता, इच्छाओ में नहीं आवश्यकता ,भेद नहीं अभेद, जाति नहीं अपने माफिक व्यक्ति ,नेता नहीं सेवक, राजनीति नहीं सेवा,नशा नहीं वरन अपने लक्ष्य की दीवानगी आदि की ओर अग्रसर  हो वही युवा है।युवा सिर्फ चेतना है।युवा सिर्फ आत्मा है।व्यक्ति की विद्या वही है जो व्यक्ति को विनय शील बनाए और मन की गतिशीलता को आत्मा के गुणों से जोड़े।न कि सिर्फ हाड़मांस शरीर व इंद्रियों की आवश्यकताओं में जीवन गंवा दे,दुनिया की नजर में  बेहतर दिखने की कोशिश करता रहे।चरित्र है।महापुरुष की नजर में जीना न कि सत्तावाद, जातिवाद, पूंजीवाद, पुरोहितबाद, सामन्तवाद आदि का शिकार हो जाना।किसी ने कहा है व्यक्ति के प्रथम मित्र है प्रकृति, पुस्तकें, बच्चे, उत्साहपूर्ण मन, साहसी आत्मा, मानवता,अनुशासन, राज्य सुप्रबन्धन।

धर्म स्थल किसे कहते है?
वह धर्म स्थल नहीं जो संचय करे।

 लेकिन धर्म अपरिग्रह की बात करता है।

हम आज के 99प्रतिशत को शिक्षित नहीं मानते!


भक्ति के दो ही मार्ग हैं-ज्ञान व प्रेम!!ज्ञान ये नहीं कहता हम हिन्दू है या मुसलमान या  हिंदुस्तानी या पाकिस्तानी !प्रेम तो ज्ञान से भी ऊपर है...सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर!!! भक्ति में तो लोक मर्यादा व कुल मर्यादा भी नही ....भक्त मीरा से तो यही संदेश मिलता है!!!


पं. हरिप्रसाद उपाध्याय खतिवडा

धृति,क्षमा,दमाे स्तेयम्,साैचम्, इन्द्रियनिग्रह,
धी, विद्या, सत्यम, अक्राेध दशकम् धर्मलक्षणम् ।

मनुस्मृतिः
————
धृति क्षमा दमोस्तेयं, शौचं इन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो, दसकं धर्म लक्षणम्॥

धर्म का दश लक्षण छन् - धैर्य, क्षमा, संयम, चोरी न गर्नु, स्वच्छता, इन्द्रियहरू वश गर्नु, बुद्धि, विद्या, सत्य र क्रोध न गर्नु ( अक्रोध ) ।


हमें तो सामने वाले के उन पुस्तकों।महापुरूषो के सन्देशों से मतलब है जिन्हें वह पूजता है।वह भी सिर्फ उसके लिए ही।हमारे लिए नहीं।उसे उन सन्देशों पर चलना चाहिए।

शिक्षित होना तो स्वयं में परंपरागत समाज के लिए खतरनाक व क्रांति पूर्ण है।यदि वह वास्तव में शिक्षित है।हम राजा राममोहन राय, ज्योतिबा फुले, कबीर,एपी जे अब्दुल कलाम आदि को ही मानते हैं

व्यक्ति के शिक्षित होने का सम्बन्ध व्यक्ति के नजरिया, विचार, भाव, आचरण के स्तर से है।

जिस पन्थ का धर्म स्थल है, उस पन्थ के ग्रंथों को हम नजरअंदाज नहीं कर सकते।अब बात आती है मंदिरों की,मंदिरों को स्वीकर
 करने वालों के ग्रन्थ क्या कहते है?हम इसको नहीं भुला सकते!



योरोप का धार्मिक सुधार आंदोलन में मार्टिन क्या कहते हैं?हमें परमात्मा व ग्रंथो से मतलब है पुरोहित क्या कहते है इससे नहीं!


अभी तक हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे है, भीड़ का धर्म होता ही नहीं।भीड़ का सम्प्रदाय होता है।धर्म ही सिर्फ व्यक्ति का होता है।वह भी व्यक्तिगत, निजी।आत्मा के गुण, नजरिया।।चेतना का स्तर को आगे बिंदुओं पर लें जाना.....


@अशोक कुमार वर्मा बिन्दु



शनिवार, 11 अप्रैल 2020

ज्योतिबा फुले के जन्म दिन पर उनको शत शत नमन!!.....अशोकबिन्दु भैया

सामाजिक एवं शैक्षिक क्रांति के अग्रदूत::महामानव ज्योतिबा राव फुले
"""''''''''''''''"""""""""""""""""""""सन्त कबीर, तुका राम, क्षत्रपति शिवा जी आदि से प्रभावित इस महामानव को नमन!!

आधुनिक भारत के महामानव, समाज सुधारक, समानता वादी विचारक, लेखक, समाज प्रबोधक, समाजसेवी, दार्शनिक, क्रांतिकारी,"सत्य सोधक समाज" के संस्थापक, महामना पुरुषोत्तम ज्योतिबा राव फुले जी के  जन्मदिन 11 अप्रैल 1827  पर आप सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई एवं मंगलकामनाएं।

महामना ज्योतिबा राव फूले का जन्म पुणे (महाराष्ट्र) में हुआ था | इनकी माता का नाम चिमणाबाई तथा पिता का नाम गोविंदराव था। ज्योतिबा फुले बचपन से ही बुद्धिमान थे  | उनका अध्ययन मराठी में हुआ था। 13 वर्ष की उम्र 1840 में उनका विवाह 9वर्षीय सावित्रीबाई फुले से हुआ। उस समय भारत में साम्प्रदायिक व जातीय भेदभाव जोरों पर था। जाति प्रथा, ऊंच - नीच, छुआछूत, बाल - विवाह जैसी अनेकों कुप्रथाएं भारत की 90% जनता को गुलामी की जंजीरो में जकड़ें हुई थीं । इन कुप्रथाओं से ज्योतिबा  बहुत ही *आहत* थे। उस समय की सबसे बड़ी समस्या, स्त्री शिक्षा थी। स्त्रियों को पढ़ने का अधिकार नहीं था | ऐसे में ज्योतिबा ने अपनी ही जीवनसंगिनी सावित्री बाई फुले को शिक्षित किया । ज्योतिबा विधवा विवाह के प्रबल समर्थक थे। आप विधवाओं, महिलाओं, किसानों , शोषितों ,वंचितों के लिए आजीवन संघर्षरत रहे।

फुले दम्पति ने भारत में  *प्रथम बालिका विद्यालय* की स्थापना 1848 में  करके महिला जगत में शैक्षिक क्रांति की अलख जगाई, जिसकी बदौलत आज *भारत की नारी* हर पद पर सुशोभित हो चुकी हैं तथा हर पद पर पुरुषों की बराबरी  ही नहीं बल्कि उनसे बेहतरीन प्रदर्शन कर रही हैं , एक DM से लेकर PM पद तक और सर्वोच्च नागरिक राष्ट्रपति पद तक महिलाएं पदासीन हो चुकी हैं। उन्होंने अपने जीवन में कई पुस्तकें भी लिखी जिनमें - गुलामगिरी, तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत इत्यादि हैं।

यही नहीं *भारतीय समाज में जिस वर्ग को संभ्रांत वर्ग के लोग परछाई पड़ने पर कठोर दंड दिया करते थे, उसके लिये भी विद्यालय की शुरुआत करके आधुनिक भारत की नींव रखी

भारत के लिखित इतिहास में दो महापुरुषों के त्याग को याद किया जाता है।
प्रथम सम्राट अशोक महान जिन्होंने मानवता के लिए अपने पुत्र महिन्द व पुत्री संघमित्रा को सीरिलंका भेजकर धम्म दान किया था।

दूसरा उदाहरण उन्नीसवीं शदी के महानायक महामना ज्योतिबाराव फुले व उनकी जीवनसंगिनी सावित्री बाई फुले जिन्होंने राष्ट्र के लिए आजीवन अपने बच्चे को जन्म न देने का निर्णय लिये। इसके स्थान पर फुले दम्पति ने एक अनाथ बच्चे को गोद लिया, जिसका नाम यशवंत राव फुले था। उन्हें शिक्षित करके डॉ यशवंत राव फुले बनाये।

*इतने महान क्रांतिकारी पुरोधा जिन्होंने भारत में प्रथम बालिका विद्यालय की स्थापना की।

अगर ये न होते तो भारत में लोकतान्त्रिक गणराज्य की स्थापना न होती, आजादी का विचार जन्म न लेता, महिलाओं में कल्पना चावला, इंदिरा गाँधी, ममता बनर्जी, आदि प्रतिभाएं चूल्हा चौकी तक ही सीमित रह गई होतीं।ऎसे महापुरुष के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए। बजाय इसके, उनके जन्मदिन तक को भारत के नागरिक,  विशेष रुप से संवैधानिक पदों पर बैठे लोग, भूलते जा रहे हैं। इस पुरुषोत्तम व महान समाजसुधारक व्यक्तित्व के नाम से, न सरकार ने कोई सरकारी योजना चलाई है, ना ही ज्योतिबाराव फुले के नाम से कोई स्टेडियम, सड़क, अस्पताल बना है। विडम्बना देखिए, ऎसे युगपुरुष को आजतक भारत रत्न भी नहीं दिया गया। आखिर यह भेदभाव महापुरुषों के साथ कब तक जारी रहेगा ?

टीम सम्राट अशोक क्लब - भारत





शुक्रवार, 10 अप्रैल 2020

वर्तमान समय में धर्म स्थलों का क्या औचित्य:::प्रस्तुति अशोकबिन्दु भैया

मानवता, आध्यत्म के उत्थान में धर्मस्थलों का अब क्या महत्व!!
"""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""प्रस्तुति अशोकबिन्दु भैया


मानव नहीं होगा तो धर्म स्थलों का क्या औचित्य?समय समय की अलग अलग मांग होती है।हम तो अपने जीवन में धर्म स्थलों को कोई महत्व नहीं देते। वर्तमान में विश्व स्तर पर कोरो-ना संक्रमण ने धर्मस्थलों का क्या महत्व है?जता दिया है।


धर्म स्थलों से ज्यादा धर्म को ,साधु को,सन्त को ,,ब्राह्मण को,धार्मिकता को,आध्यत्म को,मानवता को समझने की जरूरत है। धन संग्रह का धर्म स्थलों, साधु,सन्त, ब्राह्मण को क्या जरूरत? धर्म का एक लक्षण -अपरिग्रह का मतलब क्या है?




'अपरिग्रह' से सुहाना बनता संसार


अनिरुद्ध जोशी 'शतायु' के अनुसार-
योग के प्रथम अंग ‍यम के पांचवे उपांग अपरिग्रह का जीवन में अत्यधिक महत्व है। जैन धर्म में इसे बहुत महत्व दिया गया है। संसार को सहजता और प्रसन्नता से भोगने के लिए अपरिग्रह की भावना होना जरूरी है। इसे सामान्य भाषा में लोग त्याग की भावना समझते हैं, लेकिन यह त्याग से अलग है।

अपरिग्रह को साधने से व्यक्ति के व्यक्तित्व में निखार आ जाता है साथ ही वह शारीरिक और मानसिक रोग से स्वत: ही छूट जाता है। अपरिग्रह की भावना रखने वालों को किसी भी प्रकार का संताप नहीं सताता और उसे संसार एक सफर की तरह सुहाना लगता है। सफर में बहुत से खयाल, फूल-कांटे और दृश्य आते-जाते रहते हैं, लेकिन उनके प्रति आसक्ति रखने वाले दुखी हो जाते हैं और यह दुख आगे के सफर के सुहाने नजारों को नजरअंदाज करता जाता है।

अपरिग्रह का अर्थ है किसी भी विचार, व्यक्ति या वस्तु के प्रति आसक्ति नहीं रखना या मोह नहीं रखना ही अपरिग्रह है। जो व्यक्ति निरपेक्ष भाव से जीता है वह शरीर, मन और मस्तिष्क के आधे से ज्यादा संकट को दूर भगा देता है। जब व्यक्ति किसी से मोह रखता है तो मोह रखने की आदत के चलते यह मोह चिंता में बदल जाता है और चिंता से सभी तरह की समस्याओं का जन्म होने लगता है।

वैज्ञानिक कहते हैं कि 70 प्रतिशत से अधिक रोग व्यक्ति की खराब मानसिकता के कारण होते हैं। योग मानता है कि रोगों की उत्पत्ति की शुरुआत मन और मस्तिष्क में ही होती है। यही जानकर योग सर्वप्रथम यम और नियम द्वारा व्यक्ति के मन और मस्तिष्क को ही ठीक करने की सलाह देता है।

योग और आयुर्वेद में भाव और भावना का बहुत महत्व है। यदि अच्छे भाव दशा से जहर भी पीया तो अमृत बन जाएगा।

अपरिग्रह : इसे अनासक्ति भी कहते हैं अर्थात किसी भी विचार, वस्तु और व्यक्ति के प्रति मोह न रखना ही अपरिग्रह है। कुछ लोगों में संग्रह करने की प्रवृत्ति होती है, जिससे मन में भी व्यर्थ की बातें या चीजें संग्रहित होने लगती हैं। इससे मन में संकुचन पैदा होता है। इससे कृपणता या कंजूसी का जन्म होता है। आसक्ति से ही आदतों का जन्म भी होता है। मन, वचन और कर्म से इस प्रवृत्ति को त्यागना ही अपरिग्रही होना है।

इसका लाभ : यदि आपमें अपरिग्रह का भाव है तो यह मृत्युकाल में शरीर के कष्टों से बचा लेता है। किसी भी विचार और वस्तु का संग्रह करने की प्रवृत्ति छोड़ने से व्यक्ति के शरीर से संकुचन हट जाता है जिसके कारण शरीर शांति को महसूस करता है। इससे मन खुला और शांत बनता है। छोड़ने और त्यागने की प्रवृत्ति के चलते मृत्युकाल में शरीर के किसी भी प्रकार के कष्ट नहीं होते। कितनी ही महान वस्तु हो या कितना ही महान विचार हो, लेकिन आपकी आत्मा से महान कुछ भी नहीं।

धर्म किसे कहते हैं?


धर्म शब्द संस्कृत की ‘धृ’ धातु से बना है जिसका अर्थ होता है धारण करना । परमात्मा की सृष्टि को धारण करने या बनाये रखने के लिए जो कर्म और कर्तव्य आवश्यक हैं वही मूलत: धर्म के अंग या लक्षण हैं । उदाहरण के लिए निम्न श्लोक में धर्म के दस लक्षण बताये गये हैं :-

धृति: क्षमा दमो स्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रह: ।




धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम् ।

विपत्ति में धीरज रखना, अपराधी को क्षमा करना, भीतरी और बाहरी सफाई, बुद्धि को उत्तम विचारों में लगाना, सम्यक ज्ञान का अर्जन, सत्य का पालन ये छ: उत्तम कर्म हैं और मन को बुरे कामों में प्रवृत्त न करना, चोरी न करना, इन्द्रिय लोलुपता से बचना, क्रोध न करना ये चार उत्तम अकर्म हैं ।

अहिंसा परमो धर्म: सर्वप्राणभृतां वर ।
तस्मात् प्राणभृत: सर्वान् न हिंस्यान्मानुष: क्वचित् ।

अहिंसा सबसे उत्तम धर्म है, इसलिए मनुष्य को कभी भी, कहीं भी,किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिए ।

न हि प्राणात् प्रियतरं लोके किंचन विद्यते ।
तस्माद् दयां नर: कुर्यात् यथात्मनि तथा परे ।

जगत् में अपने प्राण से प्यारी दूसरी कोई वस्तु नहीं है । इसीलिए मनुष्य जैसे अपने ऊपर दया चाहता है, उसी तरह दूसरों पर भी दया करे ।

जिस समाज में एकता है, सुमति है, वहाँ शान्ति है, समृद्धि है, सुख है, और जहाँ स्वार्थ की प्रधानता है वहाँ कलह है, संघर्ष है, बिखराव है, दु:ख है, तृष्णा है ।

धर्म उचित और अनुचित का भेद बताता है । उचित क्या है और अनुचित क्या है यह देश, काल और परिस्थिति पर निर्भर करता है । हमें जीवनऱ्यापन के लिए आर्थिक क्रिया करना है या कामना की पूर्ति करना है तो इसके लिए धर्मसम्मत मार्ग या उचित तरीका ही अपनाया जाना चाहिए । हिन्दुत्व कहता है -

अनित्यानि शरीराणि विभवो नैव शाश्वत: ।
नित्यं सन्निहितो मृत्यु: कर्र्तव्यो धर्मसंग्रह: ।

यह शरीर नश्वर है, वैभव अथवा धन भी टिकने वाला नहीं है, एक दिन मृत्यु का होना ही निश्चित है, इसलिए धर्मसंग्रह ही परम कर्त्तव्य है ।

साधु कौन है?सन्त कौन है?ब्राह्मण कौन है?धार्मिकता क्या है₹आध्यत्मिकता क्या है?इनका धन संग्रह करने से कितना सम्वन्ध है?क्या धर्म स्थलों के बिना काम नहीं चल सकता ?इसका उत्तर अब ग्रंथो में खोजने की जरूरत है। हमें खुशी है कि इन दिनों पुरोहितबाद में संलिप्त व्यक्तियों के अलावा शेष सब अब धर्म स्थलों के औचित्य पर सवाल करने लगे हैं।

हम सोच रहे हैं कि योग के आठ अंगों में से पहला अंग-यम को किसी ने आखिर मृत्यु कहा तो क्यों कहा?आचार्य को किसी ने मृत्यु कहा तो क्यों कहा??

लेखक::अज्ञात




गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

कहाँ है स्वदेशी अंदोलन???यहां कौन कोई आम आदमी के किसी प्रतिभा को अबसर दे?? अशोकबिन्दु भैया

स्वदेशी!!
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स्व देशी का मतलब देशी पूंजीवाद, देशी सत्तावाद से भी नहीं है। वरन आत्म निर्भर होना है।
देश मे कौन सा दल कौन सा राजनैतिक नेता नागरिकों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयत्नशील है??
घर घर, रसोई रसोई तक आयुर्वेद, घरेलू व्यवसाय, हर घर को डारेक्ट केंद्रीय योजनों से जोड़ना।
अनपढ़ को भी उसकी रुचि व योग्यता के आधार पर अबसर देना।कागजी योग्यता को शोध, खोज आदि में निरस्त करना।हमें सुना है कहीं विश्व विद्यालय में 11साल का बालक क्लास लेता है, ऐसा होना चाहिए भारत में भी।
किसी में कोई प्रतिभा है, वह के लिए सरकारी  अवसर होने चाहिए।

हम देखते हैं-ओलम्पिक,एशियाई,कॉमन वेल्थ आदि गेम में क्या हालत रहती है?ऐसा नहीं कि देश में प्रतिभाओं की कमी है।मानक बदलने चाहिए।जन जातियों, आदिबसियों आदि में हम कभी कभार किसी किसी मे अचरज भरी प्रतिभा देखते हैं।कहीं कहीं झोपड़ पट्टियों में भी हमें प्रतिभाओं की संभावनाएं दिखती हैं।

दरअसल देश अब भी मुठ्ठी भर लोगों की बफौती बना हुआ है।

जब हम कहते हैं, देश मे सामन्त वाद है अब भी तो इसे लोग अस्वीकार करते हैं।हमें तो खुले आम सामन्तवाद ही नहीं, सत्तावाद, पूंजीवाद, जातिवाद आदि नजर आता है।

वार्ड/गांव में एक दो व्यक्ति, जाति आदि की चलती है या उनके नजदीकियों की।चाणक्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में सामन्त का अर्थ पड़ोसी, समीपवर्ती बताया है।अर्थात राजा, अधिकारी, सेनापति का नजदीकी। आज कल स्थानीय स्तर पर राजनीति भी क्या है?स्थानीय कुछ परिवारों, जातियों के नेताओं की मनमानी ।हम ने तो यहां तक भी देखा  कि ये कुछ परिवार के लोग दूसरी बड़ी पार्टियों  के प्रत्याशी चयन प्रक्रिया में तक भी गुप्त रूप से हस्तक्षेप करते हैं।किसी की हार जीत का फैसला जातीय समीकरण के आधार पर गुप्त रूप से टेबिल पर करते हैं।
क्षेत्र के माफिया, दबंग, जातिबल आदि को ये आश्रय देते है।

लोकतंत्र से किसी को मतलब नहीं होता।बस, जाति बल, धन बल, माफिया गिरी के सिवा।आम आदमी की कोई औकात नहीं। आम आदमी के स्वाभिमान के लिए कुछ भी नहीं।

जैसा सातवीं आठवीं सदी में वैसा ही अब भी।पहले राजबाड़े थे अब जात बाड़े,माफिया बाड़े, ठेकेबाड़े.....खाद्यमिलावट, नशाबन्दी,बेरोजगारी, चिकित्सा आदि के क्षेत्र में कुछ भी नहीं।क्षेत्र की प्रतिभाओं के उत्थान के लिए कुछ भी नहीं।आम आदमी के न्याय के लिए कुछ भी नहीं।कम आवादी के व्यक्तियों को सुकून की जिंदगी लिए कुछ भी नहीं।क्षेत्र के जातिबल, माफिया बल, दबंग आदि की करतूतों के खिलाफ कोई आगे भी बड़े तो धमकियां, समझौता बगैरा बगैरा...... तब कोई माई के लाल में इतनी भी दम नहीं कि ईमानदार पत्रकार, इंजीनियर ,व्यक्ति आदि की हत्या की कोई फाइल भी खुलवा सके?कोई ईमानदार अधिकारी आ जाए तो उसके ट्रांसफर के लिए एंडी से चोटी तक कि पूरी कोशिश करें।पूरे हिन्द महाद्वीप में कहीं  भी स्थानीय स्तर पर राजनीति गन्दी हो चुकी है।और जनता भी जो स्वयं मालिक होती है जनतन्त्र में वह भी ???उसे यही अहसास नहीं कि जनतंत्र में तो हम ही राजा है।हम ही जनप्रतिनिधियों को चुनते हैं।हम क्यों।किसी से दबें? जनता को वास्तव में कोई इसलिए स्वबलम्बी ,स्व अभिमानी नहीं बनाना चाहता। यही कारण है कोई वास्तव में स्वदेशी अंदोलन नही चाहता।यदि जो चाहता भी है तो उसमें भी पूंजीवाद ,सत्तावाद झलकता है।कोई भी हर व्यक्ति के अंतर दीप को जलाने की प्रेरणा नहीं देना चाहता।

मंगलवार, 7 अप्रैल 2020

तथाकथित हिन्दू समाज में वर्तमान वर्ग::जाति व्यवस्था/वर्ग व्यवस्था को न चाहने वालों की कोई औकात नहीं!!

तथाकथित हिन्दू समाज में वर्तमान वर्ग!
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हिन्दू समाज में कुछ लोग ऐसे खड़े हो रहे हैं जो हिंदुत्व हिंदुत्व चीखते नजर आते हैं।लेकिन वोट पाने व दान चन्दा इकट्ठा करने के अलावा उन्हें उनसे मतलब नहीं है जिनसे वे हिंदुत्व की वकालत करते नजर आते हैं या हिंदुत्व के ठेकेदार बनते हैं। तथाकथित हिन्दू समाज की समस्याओं के निदान से मतलब नहीं होता,जाति व्यवस्था को समाप्त करने की मुहिम से इन्हें मतलब नहीं होता। विभिन्न चुनाव में नजर आने वाले प्रत्यशियों को भी समाज सेवा व हिन्दू समाज की समस्याओं से मतलब नहीं होता।


वर्तमान इन तथाकथित हिन्दू समाज में अनेक वर्ग देखने को मिलते है। जैसे-
@शहर के अमीर व गरीब व्यक्ति
@गांव के अमीर व गरीब व्यक्ति
@ब्राह्मण वर्ग
@ब्राह्मण केंद्रित सवर्ण वर्ग
@आर्य समाज, आर एस एस आदि संस्थाओं से प्रभावित वर्ग
@संविधान स्वीकृत पिछड़ा वर्ग
@संविधान स्वीकृत छूत एस सी वर्ग
@संविधान स्वीकृत अछूत एस सी वर्ग
@जन जातीय,कबीला वर्ग
@आदिवासी, वनवासी वर्ग
@ग्रामीण सहज व ग्रामीण शहर प्रभावित वर्ग
@ग्रामीण  राजनीतिक वर्ग
@शहरी राजनीतिक वर्ग
@ग्रामीण राजनीतिक वर्ग समीपवर्ती वर्ग
@शहरी राजनीतिक वर्ग समीपवर्ती वर्ग
@राजनीतिक वर्ग समीपवर्ती दारूबाज,मांसाहारी वर्ग,अपराधी वर्ग
@मुसलमानों के कुकृत्यों लाभ उठाने वाले व्यक्ति
@वार्ड/गांव में कम आवादी वाले व्यक्ति व परिवार
@राजनीतिक वर्ग समीपवर्ती माफिया वर्ग
@तटस्थ कैरियरवादी वर्ग
@सरकारी कर्मचारी वर्ग
@प्राइवेट कर्मचारी वर्ग
@पूंजीवादी वर्ग
@पुरोहित वर्ग
@अन्य
इस सब के बीच 00.50 प्रतिशत व्यक्ति जो कि किसी जाति, मजहब, नेता, दल आदि से अपने को संबद्ध न कर इंसानियत, आध्यत्म, आवश्यकता,संविधान आदि को महत्व दे भीड़ तन्त्र व वर्ग तन्त्र से परे हो इस सब के बीच रह कर भी जैसे तैसे जीवन जीने वाले को उपेक्षित हो जीना पड़ता है। या इनको सम्मान देने के बाबजूद लोग इन्हें अपने जीवन मे शामिल नहीं करते।क्योकि इनसे वर्ग भेद आदि में बंटे लोगों को अपने हिसाब से उम्मीदे नहीं होती।ऐसे लोगों को समाज में तो अलग थलग देखा ही गया है परिवार में भी अलग थलग देखा गया है।




गुरुवार, 2 अप्रैल 2020

दिमाग में मनुवादी व्यवस्था वाला "Social distance" को निकालकर "Physical Distance' को फिट करे.::विलियम थॉमस:

"#Social_Distance" शब्द बार बार चुभ रहा है, करोना वायरस Covid 19 से बचने के लिए इस शब्द का यूज सरकारी तौर से लेकर चारो तरफ हो रहा है, जबकि यह कहा जाना चाहिए की;
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"#Physical_Distance बनाकर रखे"
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वैसे भारत में;
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"Social Distance" हजारो सालो से चला आ रहा है, यह कोई नया नही है, दुनिया की सबसे घटिया स्तर की मनुवादी व्यवस्था ने इसे इस कद्र तक अपनाया की;
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1.शुद्र (वर्तमान के ओबीसी) गाँव में रह सकते थे, लेकिन उन्हें अपने से दूर रखा जाता था, सेवक मानकर उनसे काम तो करवाया जाता रहा है लेकिन "Social Distance" बकायदा सैकड़ो सालो तक बनाकर रखा गया.
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2.अछूत (वर्तमान के एससी) से "Social distance' इस कद्र तक बनाकर रखा की उनके घर ही गाँव से बाहर दक्षिण दिशा की तरफ बना दिए गये, उनकी पहचान के लिए गले में हंडी व पीछे पुन्छ्द बाँध दी गयी. जिससे जिस रास्ते पर चलेगा, उस रास्ते को उसकी पूंछड साफ़ करती जाएगी.
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3.आदिवासियो से तो "Social Distance" इतनी गहराई से अपनाया गया की उन्हें शहरो से घने जंगलो में भगा दिया गया. समाज के साथ उनका कनेक्शन ही खत्म कर दिया गया. एक एरिया तक उन्हें सिमित कर दिया गया.
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इसलिए;
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"दिमाग में मनुवादी व्यवस्था वाला "Social distance" को निकालकर "Physical Distance' को फिट करे. क्योकि फिजिकल तौर पर एक दुसरे को टच करके ही इस वायरस का हस्तांतरण हो रहा है, एक चैन बन रही है"