Powered By Blogger

गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

कहाँ है स्वदेशी अंदोलन???यहां कौन कोई आम आदमी के किसी प्रतिभा को अबसर दे?? अशोकबिन्दु भैया

स्वदेशी!!
"""""""""""""""
स्व देशी का मतलब देशी पूंजीवाद, देशी सत्तावाद से भी नहीं है। वरन आत्म निर्भर होना है।
देश मे कौन सा दल कौन सा राजनैतिक नेता नागरिकों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयत्नशील है??
घर घर, रसोई रसोई तक आयुर्वेद, घरेलू व्यवसाय, हर घर को डारेक्ट केंद्रीय योजनों से जोड़ना।
अनपढ़ को भी उसकी रुचि व योग्यता के आधार पर अबसर देना।कागजी योग्यता को शोध, खोज आदि में निरस्त करना।हमें सुना है कहीं विश्व विद्यालय में 11साल का बालक क्लास लेता है, ऐसा होना चाहिए भारत में भी।
किसी में कोई प्रतिभा है, वह के लिए सरकारी  अवसर होने चाहिए।

हम देखते हैं-ओलम्पिक,एशियाई,कॉमन वेल्थ आदि गेम में क्या हालत रहती है?ऐसा नहीं कि देश में प्रतिभाओं की कमी है।मानक बदलने चाहिए।जन जातियों, आदिबसियों आदि में हम कभी कभार किसी किसी मे अचरज भरी प्रतिभा देखते हैं।कहीं कहीं झोपड़ पट्टियों में भी हमें प्रतिभाओं की संभावनाएं दिखती हैं।

दरअसल देश अब भी मुठ्ठी भर लोगों की बफौती बना हुआ है।

जब हम कहते हैं, देश मे सामन्त वाद है अब भी तो इसे लोग अस्वीकार करते हैं।हमें तो खुले आम सामन्तवाद ही नहीं, सत्तावाद, पूंजीवाद, जातिवाद आदि नजर आता है।

वार्ड/गांव में एक दो व्यक्ति, जाति आदि की चलती है या उनके नजदीकियों की।चाणक्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में सामन्त का अर्थ पड़ोसी, समीपवर्ती बताया है।अर्थात राजा, अधिकारी, सेनापति का नजदीकी। आज कल स्थानीय स्तर पर राजनीति भी क्या है?स्थानीय कुछ परिवारों, जातियों के नेताओं की मनमानी ।हम ने तो यहां तक भी देखा  कि ये कुछ परिवार के लोग दूसरी बड़ी पार्टियों  के प्रत्याशी चयन प्रक्रिया में तक भी गुप्त रूप से हस्तक्षेप करते हैं।किसी की हार जीत का फैसला जातीय समीकरण के आधार पर गुप्त रूप से टेबिल पर करते हैं।
क्षेत्र के माफिया, दबंग, जातिबल आदि को ये आश्रय देते है।

लोकतंत्र से किसी को मतलब नहीं होता।बस, जाति बल, धन बल, माफिया गिरी के सिवा।आम आदमी की कोई औकात नहीं। आम आदमी के स्वाभिमान के लिए कुछ भी नहीं।

जैसा सातवीं आठवीं सदी में वैसा ही अब भी।पहले राजबाड़े थे अब जात बाड़े,माफिया बाड़े, ठेकेबाड़े.....खाद्यमिलावट, नशाबन्दी,बेरोजगारी, चिकित्सा आदि के क्षेत्र में कुछ भी नहीं।क्षेत्र की प्रतिभाओं के उत्थान के लिए कुछ भी नहीं।आम आदमी के न्याय के लिए कुछ भी नहीं।कम आवादी के व्यक्तियों को सुकून की जिंदगी लिए कुछ भी नहीं।क्षेत्र के जातिबल, माफिया बल, दबंग आदि की करतूतों के खिलाफ कोई आगे भी बड़े तो धमकियां, समझौता बगैरा बगैरा...... तब कोई माई के लाल में इतनी भी दम नहीं कि ईमानदार पत्रकार, इंजीनियर ,व्यक्ति आदि की हत्या की कोई फाइल भी खुलवा सके?कोई ईमानदार अधिकारी आ जाए तो उसके ट्रांसफर के लिए एंडी से चोटी तक कि पूरी कोशिश करें।पूरे हिन्द महाद्वीप में कहीं  भी स्थानीय स्तर पर राजनीति गन्दी हो चुकी है।और जनता भी जो स्वयं मालिक होती है जनतन्त्र में वह भी ???उसे यही अहसास नहीं कि जनतंत्र में तो हम ही राजा है।हम ही जनप्रतिनिधियों को चुनते हैं।हम क्यों।किसी से दबें? जनता को वास्तव में कोई इसलिए स्वबलम्बी ,स्व अभिमानी नहीं बनाना चाहता। यही कारण है कोई वास्तव में स्वदेशी अंदोलन नही चाहता।यदि जो चाहता भी है तो उसमें भी पूंजीवाद ,सत्तावाद झलकता है।कोई भी हर व्यक्ति के अंतर दीप को जलाने की प्रेरणा नहीं देना चाहता।

कोई टिप्पणी नहीं: