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शनिवार, 11 अप्रैल 2020

ज्योतिबा फुले के जन्म दिन पर उनको शत शत नमन!!.....अशोकबिन्दु भैया

सामाजिक एवं शैक्षिक क्रांति के अग्रदूत::महामानव ज्योतिबा राव फुले
"""''''''''''''''"""""""""""""""""""""सन्त कबीर, तुका राम, क्षत्रपति शिवा जी आदि से प्रभावित इस महामानव को नमन!!

आधुनिक भारत के महामानव, समाज सुधारक, समानता वादी विचारक, लेखक, समाज प्रबोधक, समाजसेवी, दार्शनिक, क्रांतिकारी,"सत्य सोधक समाज" के संस्थापक, महामना पुरुषोत्तम ज्योतिबा राव फुले जी के  जन्मदिन 11 अप्रैल 1827  पर आप सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई एवं मंगलकामनाएं।

महामना ज्योतिबा राव फूले का जन्म पुणे (महाराष्ट्र) में हुआ था | इनकी माता का नाम चिमणाबाई तथा पिता का नाम गोविंदराव था। ज्योतिबा फुले बचपन से ही बुद्धिमान थे  | उनका अध्ययन मराठी में हुआ था। 13 वर्ष की उम्र 1840 में उनका विवाह 9वर्षीय सावित्रीबाई फुले से हुआ। उस समय भारत में साम्प्रदायिक व जातीय भेदभाव जोरों पर था। जाति प्रथा, ऊंच - नीच, छुआछूत, बाल - विवाह जैसी अनेकों कुप्रथाएं भारत की 90% जनता को गुलामी की जंजीरो में जकड़ें हुई थीं । इन कुप्रथाओं से ज्योतिबा  बहुत ही *आहत* थे। उस समय की सबसे बड़ी समस्या, स्त्री शिक्षा थी। स्त्रियों को पढ़ने का अधिकार नहीं था | ऐसे में ज्योतिबा ने अपनी ही जीवनसंगिनी सावित्री बाई फुले को शिक्षित किया । ज्योतिबा विधवा विवाह के प्रबल समर्थक थे। आप विधवाओं, महिलाओं, किसानों , शोषितों ,वंचितों के लिए आजीवन संघर्षरत रहे।

फुले दम्पति ने भारत में  *प्रथम बालिका विद्यालय* की स्थापना 1848 में  करके महिला जगत में शैक्षिक क्रांति की अलख जगाई, जिसकी बदौलत आज *भारत की नारी* हर पद पर सुशोभित हो चुकी हैं तथा हर पद पर पुरुषों की बराबरी  ही नहीं बल्कि उनसे बेहतरीन प्रदर्शन कर रही हैं , एक DM से लेकर PM पद तक और सर्वोच्च नागरिक राष्ट्रपति पद तक महिलाएं पदासीन हो चुकी हैं। उन्होंने अपने जीवन में कई पुस्तकें भी लिखी जिनमें - गुलामगिरी, तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत इत्यादि हैं।

यही नहीं *भारतीय समाज में जिस वर्ग को संभ्रांत वर्ग के लोग परछाई पड़ने पर कठोर दंड दिया करते थे, उसके लिये भी विद्यालय की शुरुआत करके आधुनिक भारत की नींव रखी

भारत के लिखित इतिहास में दो महापुरुषों के त्याग को याद किया जाता है।
प्रथम सम्राट अशोक महान जिन्होंने मानवता के लिए अपने पुत्र महिन्द व पुत्री संघमित्रा को सीरिलंका भेजकर धम्म दान किया था।

दूसरा उदाहरण उन्नीसवीं शदी के महानायक महामना ज्योतिबाराव फुले व उनकी जीवनसंगिनी सावित्री बाई फुले जिन्होंने राष्ट्र के लिए आजीवन अपने बच्चे को जन्म न देने का निर्णय लिये। इसके स्थान पर फुले दम्पति ने एक अनाथ बच्चे को गोद लिया, जिसका नाम यशवंत राव फुले था। उन्हें शिक्षित करके डॉ यशवंत राव फुले बनाये।

*इतने महान क्रांतिकारी पुरोधा जिन्होंने भारत में प्रथम बालिका विद्यालय की स्थापना की।

अगर ये न होते तो भारत में लोकतान्त्रिक गणराज्य की स्थापना न होती, आजादी का विचार जन्म न लेता, महिलाओं में कल्पना चावला, इंदिरा गाँधी, ममता बनर्जी, आदि प्रतिभाएं चूल्हा चौकी तक ही सीमित रह गई होतीं।ऎसे महापुरुष के जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाना चाहिए। बजाय इसके, उनके जन्मदिन तक को भारत के नागरिक,  विशेष रुप से संवैधानिक पदों पर बैठे लोग, भूलते जा रहे हैं। इस पुरुषोत्तम व महान समाजसुधारक व्यक्तित्व के नाम से, न सरकार ने कोई सरकारी योजना चलाई है, ना ही ज्योतिबाराव फुले के नाम से कोई स्टेडियम, सड़क, अस्पताल बना है। विडम्बना देखिए, ऎसे युगपुरुष को आजतक भारत रत्न भी नहीं दिया गया। आखिर यह भेदभाव महापुरुषों के साथ कब तक जारी रहेगा ?

टीम सम्राट अशोक क्लब - भारत





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