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मंगलवार, 27 दिसंबर 2016

मोदी जी जरा हमारी भी सुनो

प्रतिष्ठा में,

मोदी जी !

देश में व्यवस्था परिवर्तन के लिए आप जज्बा रखते हैं, इसके लिए आपको धन्यवाद!
हम अनेक वर्षों से आपको देश हित में अपने विचारों से अवगत कराते रहे हैं. उसी श्रंखला आपको ये अगला पत्र है.

देश हित में निम्न फैसले भी आवश्यक हैं...
@ देश की नौकरशाही में भारी बदलाव की आवश्यकता है,नौकर शाही देश व समाज की सेवा के लिए होनी चाहिए.
@ किसी देश की महानता का आधार होता है, उसका ज्ञान आधारित आचरण,शिक्षक व विद्यार्थी. शिक्षक व विद्यार्थी का आचरण/स्वभाव/कर्म ज्ञान व संविधान के आधार पर होना ही चाहिए.
@  देश के सामने सबसे बड़ा कलंक है--जो भूखा नहीं है, उसे रोटी खिलाना. जो पढ़ना नहीं चाहता है, उसे पढ़ाना.
@शिक्षा जगत में भारी क्रांति की आवश्यकता है. सरकारी अधयापको/आदिं के बच्चे सरकारी स्कूल में ही पढ़ना चाहिए.
@शराब की दुकानें बंद होनी चाहिए
@ एकहरी शिक्षा प्रणाली लागू हो
@एकहरी स्वास्थय सेवाएं लागू हो.
@महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण दिया जाय
@ घर से बाहर जातिवादी/मजहबी प्रदर्शनों /संस्थाओं पर रोक लगनी चाहिए.
@ किसान आय आयोग गठित होना चाहिए
@आवेदनों में जाति/मजहब का कालम खत्म होना चाहिए
@धर्म स्थल धन रखरखाव कानून आना चाहिए. धर्म स्थलों को धन संचय की आवश्यकता क्या?
@अन्य


अशोक कुमार वर्मा'बिंदु'

शुक्रवार, 23 सितंबर 2016


24 सितम्बर 1873: सत्य शोधक समाज की स्थापना
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4 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा के कोटगन गांव में जन्मे महात्मा ज्योतिबा फुले ने 24 सितम्बर 1873 ई को सत्य शोधक समाज की स्थापना की.गुलामगिरी व सर्वजनिक सत्य धर्म इनकी पुस्तकों के संग्रह हैं.इनका उद्देश्य दलितों ,महिलाओं व वंचितों को न्याय दिलाना था.



प्रथम आधुनिक शिक्षिका सावित्री फुले  उनकी पत्नी थीं.किसी जाति विशेष के पुरोहितों के बिना विवाह संस्कारों को उन्होंने बढ़ावा दिया व मुम्बई उच्च न्यायालय में उन्हें मान्यता दिलाई .


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सार्वजनिक सत्य धर्म !
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क्या है सार्वजनिक धर्म ? वह धर्म धर्म नहीं जो मानव जाति को एक न मान सके,ईश्वर को एक न मान सके.ईश्वर की बनाई चीजों का सम्मान न कर सके .
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सत्य शोधक समाज !
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सत्संगी कौन है? मुसलमान कौन है?हमारी नजर में वह जो सत में लीन है लेकिन संसार की चीजों में लीन नहीं है.अप्राकृतिक वस्तुओं में लीन नहीं है.समाज में कोई व्यक्ति हमें धार्मिक,आध्यात्मिक,ईश व्यक्ति नहीं  दीखता.सिर्फ शरीर व इन्द्रियोँ में जीने वाला कैसे धार्मिक,आध्यात्मिक,ईश भक्त ?

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गुलामगिरी!
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सभी गुलाम हैं -अप्राकृतिक  
के ,जातियो-मजहबी धारणाओं के .कोई ईश्वरीय विधान - प्रकृति विधान को न मान कृत्रिमता में जीता है.
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पुरोहितवाद बनाम जातिबाद!
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जातिबाद यदि गलत है तो एक विशेष जाति का प्रभाव क्यों?योग्यता को महत्व होना चाहिए.
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ashok kumar verma "bindu'"
.www.ashokbindu.blogspot.com

सोमवार, 1 फ़रवरी 2016

बालिकाएं महानता को समझें!!

जो बालिकाएं आगे चल कर महान बनी उनके जीवन से प्रेरणा लेना हर बालिका का ध्येय होना चाहिए.
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कल्पना चावला की पुण्य तिथि पर हम बालिकाओं से कहना चाहेंगे कि वे कुल,समाज,जाति आदि की मर्यादाओं से निकल महान नारियों
,सम्विधान मर्यादाओं,शैक्षिक मूल्यों,सन्त बाणियों आदि से प्रेरणा ले आगे बढ़ें.
अपनी प्रतिभा से किसी प्रकार का समझौता न करें.
हम बालिकाओं से कहना चाहेंगे कि आधुनिकता/पश्चमीकरण से हटकर विवेकीकरण को स्वीकार करें.....महान बनी बालिकाओं के जीवन व विचारों को स्वीकार करें...विद्यार्थी जीवन का मतलब समझें..हमें अफ़सोस है कि 90'/, से ज्यादा विद्यार्थी विद्यार्थी जीवन का मतलब तक नहीं समझते .हमारे आर्ष विद्वानों व् आधुनिक शिक्षाविद्दों ने आबासीय शिक्षा व्यवस्था को महत्व दिया था.इसके पीछे कारण थे कि नई पीढ़ी सामाजिकता भी आबासीय स्कूल में सीखती थे.समाज का असर उन पर न पड़ता था..
ashok kumar verma "bindu"

शनिवार, 2 जनवरी 2016

वित्त विहीन मान्यता प्राप्त विद्यालयों के अद्ध्यपक हालातों के मारे ??

वित्तविहीन मान्यता प्राप्त विद्यालयों के अध्यापक हालात के मारे:सरकार से कोई उम्मीद नहीँ!!
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लखनऊ;उप्र!16-17 के बजट में वित्तविहीन विद्यालयों के अध्यापकों को राहत हो ? इसकी कोई अभी उम्मीद नहीं दिख रही.बिचारे प्राइवेट अध्यापकों के हाल काफी खराब है.वे स्थानीय कमेटियों व चापलूस प्रधानाचार्य/वरिष्ठ अध्यापकों के बीच कठपुतली बन कर रह जाते है.कुछ देश होंगे ,जहां अध्यापक v i p होता होगा लेकिन यहां तो इनसे अच्छी नगर/गाँव के अमीरों /माफियाओ के नौकर हैं.शिक्षा की लोग a b c नहीं जानते,शिक्षा कमेटियों के मेम्बर बने बैठे है.किसी देश के लिए अब अध्यापक पद सर्वोच्च होगा लेकिन यहां तो वह बनियों की दुकानों पर नौकर से भी बुरी हालत में है.कोई अध्यापक कितना भी महान विचारक / समाज के बुध्दिजीवियों में प्रतिष्ठित हो वह इन प्राइवेट स्कूलोँ में किसी औकात का नहीं.और वह कमेटी के किसी सदस्य या चापलूस प्रधानाचार्य /अध्यापक से ऊपर न हो जाएं ; यहां ये भी एक खेल है.बुद्धिजीवीता/ज्ञान की बातों का अब इन विद्यालयों में ही महत्व नहीं.बस बनियागिरी,लक्ष्मी पूजा/सरस्वती की जरूरत नही.इतना जरूरी है धंधा चलता रहे,बच्चों की भीड़ बनी रहे.एक जो स्तर होना चाहिए ,उसकी जरूरत नहीं.देश के सामने सबसे बड़ा कलंक यही है-शिक्षक अब वैश्य हो गया है,जिसको पढ़ाया जा रहा है वह अब विद्यार्थी है ही नहीं,विद्यार्थी जीवन(ब्रह्म चर्य जीवन) में है ही नहीं.

एक अध्यापक का मानना है कि इन अध्यापकों के लिए बने सङ्गठन में भी कोई ईमानदारी से इनकी आबाज उठाने वाला नहीं  है.उनमें प्रधानाचार्य/आदि ही हैं.कोई शिक्षकनहीं.


ऐसे में अध्यापक सरकार से आस लगाए बैठे हैं.लेकिन वहां तक उनकी आबाज पहुँचाने वाला नहीं है.सपा/भाजपा ने अपने चुनाबी घोषणा पत्र में इन अध्यपकों को मानदेय देने की बात की थी लेकिन सरकार से न्याय मिलेगा इसकी उम्मीद नहीं.यदि न्याय मिला भी तो किन्हें ?नकल माफियो/चापलूसों को / या सबको?