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शनिवार, 19 दिसंबर 2015

देश का भला कौन करे??

सिर्फ वेतनभोगी नौकरशाही व जातिवादी/मजहबी/स्वार्थी नेताओं से  देश का भला नहीं होगा??

😭😭😭😭😭😭😭😭

जिन शब्दों पर सिर्फ बोलने से ही बबाल हो जाये,उस पर फाइनल डिसीजन कैसे होगा?मंहगाई को ही लें? कैसे कम होगी महगाई??यदि किसानों के साथ न्याय हो जाए तो मंहगाई और बढ़नी है ?

       देश काफी बीमार हो चुका है.कड़वी दवा पीने के लिए न जनता तैयार है न ही नेता/ठेकेदार/माननीय/सम्माननीय/वरिष्ठ/आदि. जब नगर के हालात बिगड़ जाते हैं तो मिलेट्री आती है  भाई ?नेताओं/ठेकेदारों/माननीयों/सम्माननियो/वरिष्ठों/आदि में अब  दम नहीं है शायद हालात सुधारने की?

       जयगुरुदेव ने कहा था,अब दिल्ली देश के साथ न्याय नहीं कर सकती.वर्तमान व्यवस्था/तन्त्र के रहते,वर्तमान व्यवस्था/तन्त्र को जकड़े बैठे नेता/ठेकेदार/जनता/माननीय/सम्माननीय/वरिष्ठ/आदि  के रहते 'कुत्ते के गले में फंसी हड्डी" की तरह हालत हैं तो फिर वर्तमान ब्यबस्था/तन्त्र/जनता/माननीय/बेतनभोगी नौकरशाही/आदि का कचूमर निकलना क्या जरुरी है? ये कचूमर कब निकलेगा?तृतीय विश्व के दौरान क्या?और तब देश के ऐसे हालात हो जाएंगे कि देश की कुछ समय के लिए राजधानी भी बदलेगी ?तब ही कड़वी दवा मजबूरी में पिएंगे ?अभी तो अपना काम बनता, भाड़ में जाये जनता?यही तो न?नवजागरण/सामाजिक आंदोलन के पन्नों को आचरण में आज की तारीख में कौन पसन्द करता है?

ashok kumar verma " bindu"

www.akvashokbindu.blogspot.com
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गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

तुबि कुर्मी का अर्थ सर्वशक्तिमान बताने वाले आचार्य सायण?

तुंबी कुर्मी का अर्थ सर्वशक्तिमान बताने वाले-आचार्य सायण!

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       सायण या आचार्य सायण (चौदहवीं सदी, मृत्यु १३८७ इस्वी) वेदों के सर्वमान्य भाष्यकर्ता थे। सायण ने अनेक ग्रंथों का प्रणयन किया है, परंतु इनकी कीर्ति का मेरुदंड वेदभाष्य ही है। इनसे पहले किसी का लिखा, चारों वेदों का भाष्य नहीं मिलता। ये विजयनगर साम्राज्य के सेनापति एवं अमात्य २४ वर्षों तक रहे (१३६४-१३८७ इस्वी)। योरोप के प्रारंभिक वैदिक विद्वान तथा आधुनिक भारत के श्री अरोबिंदो तथा श्रीराम शर्मा आचार्य भी इनके भाष्य के प्रशंसक रहे हैं। यास्क के वैदिक शब्दों के कोष लिखने के बाद सायण की टीका ही सर्वमान्य है। 




      सायण ने अपनी रचनाओं में अपने चरित्र के विषय में आवश्यक तथ्यों का निर्देश किया है। ये दक्षिण भारत के निवासी थे। इनके पिता का नाम था मायण और माता का श्रीमती। इनका गोत्र भारद्वाज था। कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा के अनुयायी श्रोत्रिय थे। इनके अग्रज विजयनगर साम्राज्य के संस्थापक महाराज हरिहर के मुख्यमंत्री तथा आध्यात्मिक गुरु थे। उनका नाम था - माधवाचार्य जो अपने जीवन के अंतिम समय में श्रृंगेरीपीठ के विद्याचरण स्वामी के नाम से अधिपति हुए थे। सायण के अनुज का नाम था भोगनाथ जो संगमनरेश के नर्मसचिव तथा कमनीय कवि थे। सायण ने अपने अलंकार सुधानिधि नामक ग्रंथ में अपने तीन पुत्रों का नामोल्लेख किया है जिनमें कंपण संगीत शास्त्र में प्रवीण थे, मायण गद्य-पद्य रचना में विचक्षण कवि थे तथा शिंगण वेद की क्रमजटा आदि पाठों के मर्मज्ञ वैदिक थे।

                                               
वेदभाष्यों तथा इतर ग्रंथों के अनुशोलन से सायण के आश्रयदाताओं के नाम का स्पष्ट परिचय प्राप्त होता है। सायण शासन कार्य में भी दक्ष थे तथा संग्राम के मैदान में सेना नायक के कार्य में भी वे निपुण न थे। विजयनगर के इन चार राजन्यों के साथ सायण का संबंध था - कंपण, संगम (द्वितीय), बुक्क (प्रथम) तथा हरिहर (द्वितीय)। इनमें से कंपण संगम प्रथम के द्वितीय पुत्र थे। और हरिहर प्रथम के अनुज थे जिन्होंने विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की थी। कंपण विजयनगर के पूर्वी प्रदेश पर राज्य करते थे। संगम द्वितीय कंपण के आत्मज थे तथा सायण के प्रधान शिष्य थे। बाल्यकाल से ही वे सायण के शिक्षण तथा देखरेख में थे। सायण ने उनके अधीनस्थ प्रांत का बड़ी योग्यता से शासन किया। तदंतर वे महाराज बुक्कराय (1350 ई.-1379 ई.) के मंत्रिपद पर आसीन हुए और उनके पुत्र तथा उत्तराधिकारी हरिहर द्वितीय (1379 ई.-1399 ई.) के शासनकाल में भी उसी अमात्यपद पर प्रतिष्ठित रहे। सायण की मृत्यु सं. 1444 (1387 ई.) में मानी जाती है। इस प्रकार ये वे. सं. 1421-1437 (1364 ई.-1378 ई.) तक लगभग 16 वर्षों तक बुक्क महाराज के प्रधानमंत्री थे और वि. सं. 1438-1444 वि. (1379 ई.-1387 ई.) तक लगभग आठ वर्षों तक हरिहर द्वितीय के प्रधान अमात्य थे। प्रतीत होता है कि लगभग पच्चीस वर्षों में सायणाचार्य ने वेदों के भाष्य प्रणीत किए (वि. सं. 1420-वि. सं. 1444)। इस प्रकार सायण का आविर्भाव 15वीं शती विक्रमी के प्रथमार्ध में संपन्न हुआ.

      

       सायण के तीन गुरुओं का परिचय उनके ग्रंथों में मिलता है-

(1) विद्यातीर्थ रुद्रप्रश्नभाष्य के रचयिता तथा परमात्मतीर्थ के शिष्य थे जिनका निर्देश सायण के ग्रंथों में महेश्वर के अवतार रूप में किया गया है।

(2) भारती तीर्थ श्रृंगेरी पीठ के शंकराचार्य थे।

(3) श्रीकंठ जिनके गुरु होने का उल्लेख सायण ने अपने कांची के शासनपत्र में तथा भोगनाथ ने अपने महागणपतिस्तव में स्पष्ट रूप से किया है


           सायणाचार्य वेदभाष्यकार की ख्याति से मंडित हैं। परंतु वेदभाष्यों के अतिरिक्त भी उनके प्रणीत ग्रंथों की सत्ता है जिनमें अनेक अभी तक अप्रकाशित ही पड़े हुए हैं। इन ग्रंथों के नाम हैं-

(1) सुभाषित सुधानिधि - नीति वाक्यों का सरस संकलन। कंपण भूपाल केसमय की रचना होने से यह उनका आद्य ग्रंथ प्रतीत होता है।

(2) प्रायश्चित्त सुधा निधि - कर्मविपाक नाम से भी प्रख्यात यह ग्रंथ धर्म शास्त्र के प्रायश्चित विषय का विवरण प्रस्तुत करता है।

(3) अलंकार सुधा निधि - अलंकार का प्रतिपादक यह ग्रंथ दस उन्मेषों में विभक्त था। इस ग्रंथ के प्राय: समग्र उदाहरण सायण के जीवनचरित् से संबंध रखते हैं। अभी तक केवल तीन उन्मेष प्राप्त हैं।

(4) पुरुषार्थ सुधानिधि - धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष रूपी चारों पुरुषार्थों के प्रतिपादक पौराणिक श्लोकों का यह विशद संकलन बुक्क महाराज के निदेश से लिखा गया था।

(5) आयुर्वेद सुधानिधि - आयुर्वेद विषयक इस ग्रंथ का निर्देश ऊपर निर्दिष्ट सं. 3 वाले ग्रंथ में किया गया है।

(6) यज्ञ तंत्र सुधानिधि - यज्ञानुष्ठान विषय पर यह ग्रंथ हरिहर द्वितीय के शासनकाल की रचना है।

(7) धातुवृत्ति - पाणिनीय धातुओं की यह विशद तथा विस्तृत वृत्ति अपनी विद्वत्ता तथा प्रामाणिकता के कारण वैयाकरणों में विशेष रूप से प्रख्यात है। यह माधवीया धातुवृत्ति के नाम से प्रसिद्ध होने पर भी सायण की ही नि:संदिग्ध रचना है - इसका परिचय ग्रंथ के उपोद्घात से ही स्पष्टत: मिलता है।

(8) वेदभाष्य - यह एक ग्रंथ न होकर अनेक ग्रंथों का द्योतक हैं। सायण ने वेद की चारों संहिताओं, कतिपय ब्राह्मणों तथा कतिपय आरण्यकों के ऊपर अपने युगांतरकारी भाष्य का प्रणयन किया। इन्होंने पाँच संहिताओं तथा 13 ब्राह्मण आरण्यकों के ऊपर अपने भाष्यों का निर्माण किया जिनके नाम इस प्रकार हैं-

(क) संहिता पंचक का भाष्य
(1) तैत..(2) ऋकृ, (3) साम, (4) कण्व (शुक्लयजुर्वेदीय) तथा (5) अथर्व - इन वैदिक संहिताओं का भाष्य सायण की महत्वपूर्ण रचना है।
(ख) ब्राह्मणों का भाष्य
(1) तैत्तिरीय ब्राह्मण तथा (2) तैत्तिरीय आरण्यक, (3) ऐतरेय ब्राह्मण तथा (4) ऐतरेय आरण्यक।
सामवेदीय आठों ब्राह्मणों का भाष्य- (5) तांड्य, (6) सामविधान, (8) आर्षेय, (9) देवताष्याय, (10) उपनिषद् ब्राह्मण, (11) संहितोपनिषद् (12) वंश ब्राह्मण, (13) शथपथ ब्राह्मण (शुक्लयजुर्वेदीय)।
सायणाचार्य स्वयं कृष्णयजुर्वेद के अंतर्गत तैत्तिरीय शाखा के अध्येता ब्राह्मण थे। फलत: प्रथमत: उन्होंने अपनी तैत्तिरीय संहिता और तत्संबद्ध ब्राह्मण आरण्यक का भाष्य लिखा, अनंतर उन्होंने ऋग्वेद का भाष्य बनाया। संहिताभाष्यों में अथर्ववेद का भाष्य अंतिम है, जिस प्रकार ब्राह्मण भाष्यों में शतपथभाष्य सबसे अंतिम है। इन दोनों भाष्यों का प्रणत प्रणयन सायण ने अपने जीवन के संध्याकाल में हरिहर द्वितीय के शासनकाल में संपन्न किया।

सायण ने अपने भाष्यों को "माधवीय वेदार्थप्रकाश" के नाम से अभिहित किया है। इन भाष्यों के नाम के साथ "माधवीय" विशेषण को देखकर अनेक आलोचक इन्हें सायण की नि:संदिग्ध रचना मानने से पराड्.मुख होते हैं, परंतु इस संदेह के लिए कोई स्थान नहीं है। सायण के अग्रज माधव विजयनगर के राजाओं के प्रेरणादायक उपदेष्टा थे। उन्हीं के उपदेश से महाराज हरिहर तथा बुक्कराय वैदिक धर्म के पुनरुद्धार के महनीय कार्य को अग्रसर करने में तत्पर हुए। इन महीपतियों ने माधव को ही वेदों के भाष्य लिखने का भार सौंपा था, परंतु शासन के विषम कार्य में संलग्न होने के कारण उन्होंने इस महनीय भार को अपने अनुज सायण के ही कंधों पर रखा। सायण ने ऋग्वेद भाष्य के उपोद्घात में इस बात का उल्लेख किया है।

           सायण ने अपने भाष्यों को "माधवीय वेदार्थप्रकाश" के नाम से अभिहित किया है। इन भाष्यों के नाम के साथ "माधवीय" विशेषण को देखकर अनेक आलोचक इन्हें सायण की नि:संदिग्ध रचना मानने से पराड्.मुख होते हैं, परंतु इस संदेह के लिए कोई स्थान नहीं है। सायण के अग्रज माधव विजयनगर के राजाओं के प्रेरणादायक उपदेष्टा थे। उन्हीं के उपदेश से महाराज हरिहर तथा बुक्कराय वैदिक धर्म के पुनरुद्धार के महनीय कार्य को अग्रसर करने में तत्पर हुए। इन महीपतियों ने माधव को ही वेदों के भाष्य लिखने का भार सौंपा था, परंतु शासन के विषम कार्य में संलग्न होने के कारण उन्होंने इस महनीय भार को अपने अनुज सायण के ही कंधों पर रखा। सायण ने ऋग्वेद भाष्य के उपोद्घात में इस बात का उल्लेख किया है। फलत: इन भाष्यों के निर्माण में माधव के ही प्रेरक तथा आदेशक होने के कारण इनका उन्हीं के नाम से संबद्ध होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। यह तो सायण की ओर से अपने अग्रज के प्रति भूयसी श्रद्धा की द्योतक घटना है। इसीलिए धातुवृत्ति, भी, "माधवीया" कहलाने पर भी, सायण की ही नि:संदिग्ध रचना है जिसका उल्लेख उन्होंने ग्रंथ के उपोद्घात में स्पष्टत: किया है-

तेन मायणपुत्रेण सायणेन मनीषिणा।
आख्यया माधवीयेयं धातुवृत्तिर्विरच्यते॥
वेदभाष्यों के एक कर्तृत्व होने में कतिपय आलोचक संदेह करते हैं। संवत् 1443 वि. (सन् 1386 ई.) के मैसूर शिलालेख से पता चलता है कि वैदिक मार्ग प्रतिष्ठापक महाराजाधिराज हरिहर ने विद्याचरण श्रीपाद स्वामी के समक्ष चतुर्वेद-भाष्य-प्रवर्तक नारायण वायपेययाजी, नरहरि सोमयाजी तथा पंढरि दीक्षित नामक तीन ब्राह्मणों को अग्रहार देकर सम्मानित किया। इस शिलालेख का समय तथा विषय दोनों महत्वपूर्ण हैं।

    वैदिक मार्ग प्रतिष्ठापक महाराजाधिराज हरिहर ने विद्याचरण श्रीपाद स्वामी के समक्ष चतुर्वेद-भाष्य-प्रवर्तक नारायण वायपेययाजी, नरहरि सोमयाजी तथा पंढरि दीक्षित नामक तीन ब्राह्मणों को अग्रहार देकर सम्मानित किया। इस शिलालेख का समय तथा विषय दोनों महत्वपूर्ण हैं। इसमें उपलब्ध "चतुर्वेद-भाष्य-प्रवर्तक" शब्द इस तथ्य का द्योतक है कि इन तीन ब्राह्मणों ने वेदभाष्यों के निर्माण में विशेष कार्य किया था। प्रतीत होता है, इन पंडितों ने सायण को वेदभाष्यों के प्रणयन में साहाय्य दिया था और इसीलिए विद्याचरण स्वामी (अर्थात् सायण के अग्रज माधवाचार्य) के समक्ष उनका सत्कार करना उक्त अनुमान की पुष्टि करता है। इतने विपुलकाय भाष्यों का प्रणयन एक व्यक्ति के द्वारा संभव नहीं है। फलत: सायण इस विद्वमंडली के नेता के रूप में प्रतिष्ठित थे और उस काल के महनीय विद्वानों के सहयोग से ही यह कार्य संपन्न हुआ था।

ashok  kumar verma "bindu|

बुधवार, 9 दिसंबर 2015

अभिवावक बनाम विद्यार्थी जीवन

अभिवावक  बनाम विद्यार्थी जीवन(ब्रह्मचार्य जीवन)

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एक बालक था , सदा अपनी क्लास में प्रथम  आता था.लेकिन शैतानी में किसी से कम नहीं.बोलने का सलीका भी नहीं.उनके अभिवाबक इसी बात से प्रसन्न थे कि मेरा बालक पढ़ने में होशियार है.उसकी शैतानियों व दुष्टता को नजरअंदाज करते जा रहे थे.एक दो बार हमने उनके अभिबावक को समझाया लेकिन उलटे वे नाराज हो जाते.हम कहते संस्कार भी महत्वपूर्ण हैं. लेकिन वे हमारी बात को नजरअंदाज कर देते. किशोराबस्था एक नाजुक  अबस्था है.किशोरावस्था में आते ही वह और उपद्रवी हो गया .उसके अभिवावक इसी से प्रसन्न कि हमारा बच्चा क्लास में प्रथम आता है.लेकिन कक्षा09 में आते आते उस बालक की संगत बुरे लड़के लड़कियों से हो गयी.सिर्फ अंकतालिकाएं व् कोरी योग्यता ही काफी नहीं होती.कुछ बर्षो बाद वह डिग्री कालेज में पहुँच गया.लेकिन उसका नजरिया व सोसायटी....?हम बस इतना कहना चाहेंगे कि वह आज जेल में है.क्यों कैसे?ये तो इस लेख में बताने की फुर्सत नहीं.होशियार को संकेत ही काफी है.हमें टीचिंग करते 18 साल ही गए है.यहाँ हमें कबीर की याद आ गयी.कबीर ने एक दिन धरमदास से कहा था कि हम जो देने आये हैं वह हमसे कोई लेने ही नहीं आता.हम मुठ्ठी भर लोगों में हैं.भीड़ में होते भी भीड़ से अलग हैं.

हम समय समय पर कहते रहे हैं कि बिद्यार्थी जीवन अब ब्रह्मचर्य जीवन नहीं रह गया है.आखिर ऐसा क्यों?इस के बारे में कौन सोचना चाहता है?

ashok kumar verma "bindu'

रविवार, 22 नवंबर 2015

एक मनुष्यता के लिए मनुष्य नहीं जियेगा तो और कौन जियेगा?

विश्व सम्विधान विश्व सरकार > ‎जातिवाद विरोधी कानून निर्माण आंदोलन
आप जातिगत आरक्षण के विरोध में खड़े हैं.हम भी जातिगत आरक्षण के विरोध में खड़े हैं.लेकिन जातिगत आरक्षण के विरोध से पहले हम जातिगत हर व्यवहार के विरोध में खडे हैं.यहां तक कि अपनी बेटियों आदि की
शादी में भी जातिवाद नहीं.वरन् वर्ण व्यवस्था...यानि कि बेटियां यदि टीचर हो गयी तो टीचर से शादी,डॉक्टर हो गयीं तो डाक्टर से शादी.जातिगत आरक्षण का विरोध करने बाले यदि जातिगत व्यवहारों के विरोध में नहीं खड़े हो सकते तो इसका मतलब वे भारतीय समाज में अब भी कलंक बने हुए है.वे मूल कारणों पर नजर नहीं रख पा रहे है.हम समान आचार संहिता के समर्थक है.भेद के विरोध में खड़े है.90 के दसक में हमारी मुलाकात रामविलास पासवान,डी आई जी महेंद्र सिंह,सोने लाल पटेल,रामपूजन पटेल,काशी राम आदि से हुई थी.हम उस वक्त भी जातिगत आरक्षण के विरोध में खड़े थे लेकिन हमें इन नेताओं के तर्क बेहतर लगे.चयन बोर्डो में क्या होता आया है?कालेजों प्रक्टिकल नम्बर देते वक्त क्या होता आया है?आय प्रमाण पत्र बनते वक्त क्या होता आया है? बी पी ल कार्ड बनते वक्त क्या होता आया है? आप इन स्थानों पर अन्याय के लिए क्या करते आये हो?वो तो सरकारी संस्थाओं में गनीमत है, आपके प्राइवेट संस्थाओं में कितने दलित,मुसलमान आदि हैं?ऐसा नहीं कि इन स्नस्थाओं में इंटरव्यू के वक्त इस वर्ग से कोई आते नहीं या आने की लालसा नहीं रखते.जातिवाद के खिलाफ मुहीम तेज करने की जरूरत है? जातिगतआरक्षण के कारणों को मिटाने की आवश्यकता है.
ये अच्छी बात है कि अब आरक्षण के खिलाफ वातावरण बनने लगा है.हम भी आरक्षण के खिलाफ हैं,लेकिन आरक्षण की समाप्ति से पहले हम जातिव्यवस्था के खिलाफ कानून चाहते है.

संयुक्त राष्ट्र सङ्घ  व विश्व बैंक केंद्र सरकार से दो बार जातिव्यवस्था के खिलाफ कुछ करने के कह चुका है लेकिन इस सम्बन्ध में देश के अंदर कोई भी सरकार व संस्था जातिवाद के खिलाफ आंदोलनात्मक कार्यवाही नहीं चाहता.ये देश के सामने विडम्बना है कि लोग जातिगत आरक्षण के खिलाफ तो हो रहे हैं लेकिन अन्य जातिगत व्यवहारों  का विरोध नहीं क्र पाते,गैरजातियों में शादी का समर्थन नहीं कर पाते.

राष्ट्रिय एकता के लिए जातीबाद खत्म होना चाहिए ऐसा विधिज्ञ भी  मानते हैं..
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अंग्रेजी सरकार होती तो हम भी राजा राममोहन राय के पथ पर चल कर जातिप्रथा के खिलाफ कानून  बनबाने का प्रयत्न करते.अब हमें समझ आने लगा है कि समाजसुधारक क्यों नहीं चाहते थे कि अंग्रेज भारत छोड़ कर जाएँ? अम्बेडकर ने भी ठीक ही कहा था कि अधिकतर लोगों की आजादी का मतलब सत्ता परिबर्तन से है न कि आम आदमी की आजादी व सम्वैधानिक समान व्यबस्था?हमे तो आजादी भी संदिग्ध लगती है.इसका गवाह 200 वे फाइलें हैं जो अभी सार्बजनिक होनी बाकी हैं.

मंगलवार, 17 नवंबर 2015

ashok kumar verma sent you an image file!

आदिकाल से अबतक कब ये धरती आतंकवाद से विहीन हुई है?

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इतिहास युद्धों/नफरतों से भरा है.युद्ध व नफरत ही यदि महत्वपूर्ण है तो न जाने कब की दुनिया में शांति स्थापित हो चुकी होती.?
बड़ी बड़ी सत्ताएं हार गयीं लेकिन अकेले एक अंगुलिमान(माणवक) को ,अकेले को नहीं हरा पायीं.अकेले को बुद्ध ने हरा दिया.अपने अकेलेपन को समझो,उसे श्रेष्ठ अकेलेपन से द्वन्द कराओ.अंगुलिमान व बुद्ध की बहस एक चिरस्मरणीय बन गयी.जाति/मजहब/देश/आदि में उलझने से कुछ नहीं मिलने वाला.सम्पूर्णता से जुड़े बिना शांति नहीं...

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सच..... समय आ गया है कि अब समस्त विश्व "एक विश्व " की अवधारणा पर विचार करे। सभी देशों को एक साथ खुद को " संयुक्त राष्ट्र संघ " को समर्पित कर देना चाहिए। सीमाएं मिट जानी चाहिए। " वसुधैव कुटुम्बकम् " की धारणा अपनानी ही होगी। आश्चर्य है कि मनुष्य ने इतने विनाशक हथियार बना लिए हैं और इतनी मात्रा में बना लिए हैं जिससे प्रत्येक व्यक्ति को 1000 बार मारा जा सकता है अर्थात 1000 पृथ्वियों को नष्ट किया जा सकता है।  प्रेमपूर्ण धरती पर घृणा क्यों????? सभी को विचार करना ही होगा।
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विश्व सम्विधान बिश्व सरकार !
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गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

क्या सच है कुर्मी जाति का ?

कुर्मी जाति पुंज और गूजर ::
डा.सुशील भाटी
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मूल विषय पर आने से पहले भारतीय जाति व्यवस्था के अंग- जनजाति, कबीलाई जाति, जाति, जाति पुंज आदि पर चर्चा आवश्यक हैं|

जनजाति (Tribe) अथवा कबीले का अर्थ हैं एक ही कुल 'वंश' के विस्तार से निर्मित अंतर्विवाही जन समूह| जनजाति अथवा कबीला एक ही पूर्वज की संतान माना जाता हैं, जोकि वास्तविक अथवा काल्पनिक हो सकता हैं| रक्त संबंधो पर आधारित सामाजिक समानता और भाईचारा जनजातियो की खास विशेषता होती हैं| भील, मुंडा, संथाल, गोंड आदि जनजातियों के उदहारण हैं|

कबीलाई जाति (Tribal caste) वो जातिया हैं, जो मूल रूप से कबीले हैं, किन्तु भारतीय समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था के प्रभाव में एक जाति बन गए, जैसे- जाट, गूजर, अहीर, मेव आदि| इन जातियों को हरबर्ट रिजले ने 1901 की भारतीय जनगणना में कबीलाई जाति (Tribal caste) कहा हैं|

जाति (Caste) एक अंतर्विवाही समूह के साथ-साथ एक प्रस्थिति (Status group) और एक व्यवसायी समूह भी हैं| किसी भी अंतर्विवाही समूह का एक पैत्रक व्यवसाय होना, जाति की खास विशेषता हैं| जैसे ब्राह्मण, बनिया, लोहार, कुम्हार, धुना, जुलाहा, तेली आदि जातियों का अपना एक पैत्रक व्यवसाय हैं|

एक ही भाषा क्षेत्र में ऐसी कई जातिया पाई जाती हैं जिनका एक ही व्यवसाय होता हैं| ऐसी जातियों के समूह को जाति पुंज (Caste cluster) कहते हैं| सामान्यतः एक सी प्रस्थिति और एक ही व्यवसाय में लगी जातियों के समूह को अक्सर एक ही नाम दे दिया जाता हैं जो अक्सर उनके व्यवसाय का नाम होता हैं| जैसे- उत्तर भारत में खाती, धीमान और जांगिड सभी बढ़ईगिरि का व्यवसाय करते हैं और सभी बढ़ई कहलाते हैं| जबकि वास्तविकता में वे अभी अलग- अलग अंतर्विवाही जातिया हैं| इसी प्रकार उत्तराखंड में सैनी नामक जाति पुंज में गोला और भगीरथी दो जातिया हैं| उत्तर प्रदेश में बनिया जाति पुंज में अग्रवाल, रस्तोगी और गिन्दोडिया आदि जातिया हैं| एक व्यवसाय से जुडी भिन्न जातियों का एक साँझा नाम उनके एक से व्यवसाय और क्षेत्रीय जाति सोपान क्रम में उनके एक से स्थान (Status) का धोतक हैं| एक जाति पुंज के अंतर्गत आनेवाली इन जातियों की भिन्न-भिन्न उत्पत्ति हैं तथा इनमे अधिकांश के किसी क्षेत्र में आबाद होने के काल भी भिन्न-भिन्न हैं|

कन्बी शब्द की उत्पत्ति कुटुम्बिन शब्द से हुई हैं| कुटुम्बिन शब्द का प्रयोग पूर्व मध्यकालीन गुजरात में भूमि दान सम्बन्धी ताम्पत्रो एवं लेखो-जोखो में किसान के लिए किया गया हैं| कुटुम्बिन/कुटुम्बी का अर्थ हैं किसान परिवार का मुखिया| पूर्व मध्यकालीन भूमि दान सम्बन्धी ताम्पत्रो एवं लेखो-जोखो में किसानो/कुटुम्बिनो की संख्या उनके नाम तथा उनके द्वारा जोती जानेवाली भूमि की माप अंकित की जाती थी|

कन्बी, कुनबी अथवा कुर्मी भी एक जाति नहीं एक बल्कि जाति पुंज हैं| कन्बी, कुनबी और कुर्मी,  किसान जाति पुंज के क्षेत्रीय नाम हैं, जिसको हिन्दी में कुरमी, गुजराती में कन्बी तथा मराठी में कुनबी कहा जाता हैं| प्रोफेसर जे.एफ.हेविट- कुरमी (Kurmis) कुरमबस (Kurambas), कुदमबस(Kudambas), कुदम्बीस(Kudambis) भारत की सिंचित कृषि करने वाली महान जातियां थी|

वस्तुतः गुजराती भाषा क्षेत्र (गुजरात) में खेतीहर जातियों के वर्ग समूह को कन्बी कहते हैं| वस्तुतः इसमें लेवा, कड़वा, अन्जने, मतिया आदि पृथक जातिया हैं| कन्बी जाति पुंज के अंतर्गत आनेवाली इन जातियों की भिन्न-भिन्न उत्पत्ति हैं तथा इनमे अधिकांश के गुजरात में आबाद होने के काल भी भिन्न-भिन्न हैं|  जिनमे लेवा और कड़वा गूजर जनजाति का हिस्सा हैं| हालाकि सामान्य रूप से इन्हें वहाँ गूजर नहीं कहा जाता| किन्तु इनके बुजुर्गो और भाटो का मानना हैं कि ये पंजाब से आये हुए गूजर हैं| जबकि अन्जने,  मतिया आदि कन्बी जातियो की भिन्न उत्पत्ति हैं|

मराठी भाषा क्षेत्र (महाराष्ट्र) में  खेतीहर जातियों के वर्ग को कुनबी कहते हैं| यहाँ के कुनबी नामक जाति पुंज में तिरोले, माना, गूजर आदि जातिया हैं| मराठी समाज में इन्हें तिरोले कुनबी, माना कुनबी, गूजर कुनबी कहा जाता हैं| मराठी में समाज लेवा और कड़वा दोनों जातियों को गूजर कहा जाता हैं| इनके गुजराती लेवा और कड़वाओ से परंपरागत रूप से विवाह भी होते हैं| अतः गुजराती भाषा क्षेत्र (गुजरात) के लेवा, कड़वा और मराठी भाषा क्षेत्र (महाराष्ट्र) के लेवा, कड़वा गूजर एक ही हैं| जबकि मराठी भाषा क्षेत्र (महाराष्ट्र) तिरोले और माना कुनबी भिन्न उत्पत्ति की पृथक जाति हैं| दक्षिण भारत के मराठी समाज में यह आम धारणा हैं कि लेवा और कड़वा सहित सभी गूजर कुनबी उत्तर से आये हैं| जबकि तिरोले और माना स्थानीय उत्पत्ति के माने जाते हैं|

हिंदी भाषी मध्य प्रदेश के इन्दोर संभाग में भी लेवा गूजर मिलते हैं| होशंगाबाद में इन्हें मून्डले या रेवे गूज

अपने मालिक की सुनें!!!!

अपने मालिक के निर्देशन पर बस चलते रहो📢📢
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लोग आपके बारे में क्या कहते हैं ?इस बारे में ध्यान मत दीजिए.जरूरी नहीं आपका जो नजरिया है बह
उनका भी हो? यदि आपका नजरिया दर्शन व महापुरुषों के सन्देशों से मिलता है तो आपको चिंता करने की जरूरत नही है.क्यों न लोग आपको पागल सनकी ही क्यों न समझें? आपने स्तर के लोगों को अपने से जोड़ते रहें.आपका जो आदर करते हैं उनका आदर करते रहें. व अन्य पर दया.
...........ये समाज?समाजिकता?सामाजिकता के दंश????
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www.sahajmarg.org

हिंदुत्व कब जातिवाद के खिलाफ ??

जो आरक्षण के विरोधी वे जातिवाद के विरोधी क्यों नहीं ?
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आरक्षण कुव्यवस्था व जातिव्यवस्था का परिणाम है. आरक्षण खत्म होना चाहिए.लेकिन ये कुव्यबस्था व जातिव्यबस्था के खत्म होने वाला नहीं.कुप्रबन्धन व जाति व्यवस्था के रहते आरक्षण का विरोध समाज में एकता को ओर कमजोर ही करेगा .5000 वर्षों से यहां जो यहां के मूलनिवासियों (दलितों/पिछड़ों/जनजाति) के साथ  होता आया है उसका परिणाम है  अखण्ड भारत का खण्ड खण्ड होना.कोई
क्या बताएगा कि दलित/पिछड़े/जनजाति/आदि क्या शुद्र थे?इनका इतिहास तो कुछ ओर कहता है. आज जब जातिवाद के विरोध में आवाज उठती है तो सबसे बिरोधी इस आवाज का कौन होता है?

  हम जातिव्यबस्था के विरोध में हैं क्यों न उसकी आंच हिन्दुत्व पर क्यों न हो?उसके परम्पराओं पर क्यों न हो?हम सिर्फ सनातन को मानते हैं.आप से एक सबाल है-- जो धर्मस्थलों/यज्ञ/आपके रीति रिवाजों/आदि को नहीं मानता वह क्या सनातनी नहीं?

जातिव्यबस्था (वर्ण व्यबस्था) पर कुरुशान(गीता)::
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(अध्याय 18/42--43--44)
शम:(मन का निग्रह),दम(इंद्रियों को वश में करना),तपः(धर्म पालन के लिये कष्ट सहना),शौचं(शुद्धि),क्षान्ति:(दूसरों के अपराधों को क्षमा करना),आर्जवम(शरीर,मन आदि में सरलता रखना),ज्ञानम्(ज्ञानी होना),विज्ञानम(यज्ञ विधि को अनुभव में लाना और आस्तिक्यम्(परमात्मा,वेद आदि में आस्तिक भावना रखना) ; ये  सब के सब ही ब्राह्मण के स्वाभाविक कर्म है..शौर्य (शूरवीरता),तेज(प्रभाब),धृति(धैर्य),दाक्ष्यं(प्रजा के सञ्चलनन की चतुरता) और युद्ध में कभी पीठ न दिखाना,दान करना और ईश्वरभाव क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म हैं..खेती करना ,गायों की रक्षा करना,ब्यापार करना बैश्य के स्वाभाविक कर्म है.


इस से हट कर शुद्र.....? शूद्र का स्वाभाविक कर्म है--ऊपर के तीनों वर्णों की सेबा करना.ये शूद्र कौन थे?किसी को इतिहास खंगालने की जरूरत नहीं है लेकिन हमें तो है.

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अशोक कुमार वर्मा "बिंदु"
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मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015

आजाद हिन्द सरकार दिवस

21 अक्टूबर 1943::आजाद हिन्द सरकार की स्थापना!
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             द्वितीय विश्व युद्ध पर  चर्चा हमारे लिए नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के बिना अपूर्ण है. नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के स्मरण मात्र से मन रोमांचित हो उठता है.21 अक्टूबर 1943 को उनके द्वारा स्थापित अस्थायी आजाद हिन्द सरकार के स्थापना दिवस पर हम कुछ कहना चाहेंगे.



      यह सिद्ध हो चुका हैं कि त्तथाथित विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु नहीं हुई थी.वह वायुयान दुर्घटना ही फर्जी थी. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 
आजाद हिन्द फ़ौज की सर्वोच्च कमान संभालने के लिए सुभाष बाबू को  सिंगापुर लाया गया.उन्हें जहाँ नेता जी नाम से सम्बोधित किया गया.उनकी उपस्थिति में 21 अक्टूबर 1943 को स्वतन्त्र भारत के लिए स्थायी सरकार का गठन किया गया.जिसे कम से कम o7 देशों ने मान्यता दी.



       जापान सरकार की सेना व आजाद हिन्द सरकार की सेना ने अंडमान निकोबार द्वीप पर विजय प्राप्त की.रंगून को राजधानी व फ़ौज का कमांड बनाया गया.वर्मा में भी उनकी जीत हुई और भारत में प्रवेश किया. कांग्रेस,अमेरिका,ब्रिटेन आदि बेचैन हो उठे.जापान में अमेरिकी परमाणु बम बर्षा ने उन्हें प्रभावित किया लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी . जब वे बापस जाने लगे तो उनका मजाक उड़ाया गया. उन्होंने कहा -- 04 फरबरी का इंतजार कीजिए.फरबरी 1946 से नौ सेना बिद्रोह प्रारम्भ हुआ.ब्रिटिश सरकार के भारतीय स्तम्भ बिरोध में खड़े हो गए.ब्रिटिश सरकार ने आजाद हिन्द सरकार व फ़ौज को अपराधी घोषित किया. पूरा देश उठ खड़ा हुआ.गांधी का भारत छोड़ो आंदोलन पहले ही सुभाष मय हो  चुका था.सुभाष जी के प्रयत्नों के कटु आलोचक कांग्रेसी आजाद हिन्द सरकार व फ़ौज के समर्थन में आ गए.कांग्रेस ने भूला भाई देसाई ,श्री तेज बहादुर सप्रू,आसफ अली सरीखे प्रसिद्ध वकीलों को लेकर आजाद हिन्द फ़ौज बचाव समिति का गठन किया. नेहरू व जिन्ना ने भी वकील का चोंगा धारण किया.



        वर्तमान में अनेक संघठन के अनुसार सुभाष जी को भी राष्ट्र सङ्घ ने अंतर्राष्ट्रीय अपराधी घोषित किया .सुभाष जी ने अपनी एक पुस्तक --"द इंडियन स्ट्रगल " . जिसमें उन्होंने अपने जीवन के कुछ अनुभवों का वर्णन किया है.


        भारत सरकार ने सन् 1992 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया था लेकिन उनके परिजनों ने " मरणोपरांत" शब्द  पर आपत्ति की और विरोध किया तब अदालत ने 04अगस्त 1997 को इस पुरुस्कार को रद्द कर दिया.
ममता बनर्जी सरकार ने कुछ सम्बंधित फाइल्स उजागर की है. लेकिन अंदरुनी एक खबर ये भी है कि आजाद हिन्द सरकार व फ़ौज के कुछ  सिपाही इस पर नाराज है. वे सन् 2022 तक नेता जी सम्बन्धी फाइल्स उजागर होना नहीं  चाहते.हालांकि  केंद्र सरकार ने 23 जनबरी 2016 से फाइल्स उजागर करनें की घोषणा की है. जो भी हो लोग उनको लेकर अब भी उत्साहित हैं और आजाद हिन्द फ़ौज का पुनर्गठन चाहते है,यदि  आवश्यकता पड़ी तो.....जय हिंद !!!!
ashok  kumar  verma "bindu"

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बुधवार, 14 अक्तूबर 2015

जातिवाद ?हाय !जातिवाद!

सब कुछ होगा?जातिवाद के खिलाफ कुछ न होगा? जातिवादी समाज के कथन??
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इलेक्शन भी झाड़ है-- चमार,तेली,ठाकुर सभी के हाथ जोड़ने पड़ते है.
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हमारे गांव से एक ठाकुर,एक धीमर,एक चमार खड़ा है.
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अरे साला तेली सुबह सुबह वोट मांगने घर में आ घुसा.गनीमत थी कि अभी नहाया धोया नहीं था.
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वो साला चमार ,हमारे सामने खड़ा होगा?ठाकुर की मुछ नीचे नहीं होने दूंगा.साम,दाम,दण्ड से उसे बैठा ही देंगे.
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मेहतर के घर जा उसकी खटिया पर बैठना पड़ गया.नहाये लेता हूं.उसके दरबज्जे पे कभी न जाता,उसके अंडर में 50 वोट है,ये इलेक्शन जो करवाए ठीक ही है.
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इस चुनावी दौर में मेहनत कर लो,एक बार जीत जाएँ फिर इन चमट्टा,कुरमेटन के घर छोडो उनकी ओर देखना तक पसन्द नहीं करेगे.
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आदि
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मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

हमारा चित्त बनाम मोक्ष

पितर लोक :: समीप की श्रेष्ठ शक्ति@
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पितर रजो गुण प्रधान होते हैं.इस लोक को हम "ट्रांजिट कैप" कह सकते हैं.पुनर्जन्म के बीच मध्यावधि का समय आत्माएं यहीं पर बिताती हैं.इन्हें "एनविजिकवल हेल्पर्स" कहा जा सकता है.
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हमारा चिंतन बनाम भूत पितर#
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हम अदृश्य शक्तिओं के बीचही रह रहे होते हैं.यदि हम निरन्तर द्वेष भावना में जीते हैं तो हमरा जो चित्त बनेगा ,उसके अनुसार हम अगले जन्म सर्प बनेंगे.
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मोक्ष बनाम हमारा चित्त@
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शरीर,इंद्रियों,सांसारिक वस्तुओं आदि से प्रभावित हुए बिना अभिनय मात्र अपने कर्तव्यों को निभाना व मरने सेपूर्व इच्छाओ का मर जाना मोक्ष है.जिसके लिए भूत,पितर,देव आदि में अपने चित्त को रखने से नहीं बरन ईश्वर के निर्गुण स्वरूप को चित्त में रखने से मोक्ष मिलता है.

गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

मनुष्यता की चिंता करें????


हमारा हाल कौन पूछे ?हम खतरे में हैं.मनुष्यता खतरे में है.
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हिंदू कहता है - हिंदुत्व खतरे में है.मुसलमान कहता है इस्लाम खतरे में है.हम मजहबीकरण के खिलाफ हैं.जातिवाद के खिलाफ हैं.हम तो नैतिक शिक्षा की वो किताब हैं जिसमें राम हैं तो मोहम्मद साहब भी हैं. बुद्ध हैं तो ईसा भी हैं .जिसमें मानवता को प्रेरणा देंने वाली आयतें हैं तो वेदों के श्लोक भी . जहां सत हैं , प्रेम हैं.हम ऐसी किताब का सम्मान चाहते हैं. हम स्वयं "मुसलमान (यहां हम किसी मजहब की बात नहीं कर रहे हैं वरन् सत पर टिकने की बात कर रहे हैं)होना चाहते हैं. हमारे लिए हिन्दू शब्द विदेशी शब्द है,जो गुलामी का प्रतीक है.आर्य होना कोई मजहबीकरण नहीं है? कुछ लोग सनातन का बखान खूब करते हैं.लेकिन हम पूछना चाहते हैं कि आपके धर्मस्थलों,मूर्तियों,हवन,गर्न्थो आदि की अपेक्षा प्रकृतिअंशों व ब्रह्म अंशों को मानना क्या सनातन विरोध है?दुनियां का पहला पन्थ जैन (विजेता) मानते हैं .लेकिन ये पन्थ नहीं आर्य पथ पहला पड़ाव है.जितेन्द्रिय होना.इसी तरह बुद्ध का मतलब ,जिसकी ऊर्जा माथे(तीसरा नेत्र) को पार कर ऊपर बढ़ चुकी हो.हमारी नजर में ईसाई का मतलब ईस के गुण गान में जीना है.सिख का मतलब शिष्य होता है.....आदि आदि..बस ! दर्शन को समझने की जरूरत है.मजहबी करण/जातिकरण/समूहीकरण/आदि से निकल कर जरा सोचो.अपने को व् जगत को पहचानो. कुरुशान(गीता) में श्री कृष्ण के बिराट रूप में छिपी फिलासफी को पहचानों.हमारे ज्ञान का आधार है--"हम व् जगत की वर्तमान पहचान है-प्रकृतिअंश व ब्रह्मअंश.
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सोमवार, 5 अक्तूबर 2015

अपने मालिक के निर्देशन पर चलते रहो!!!

अपने मालिक के निर्देशन पर बस चलते रहो📢📢
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लोग आपके बारे में क्या कहते हैं ?इस बारे में ध्यान मत दीजिए.जरूरी नहीं आपका जो नजरिया है बह
उनका भी हो? यदि आपका नजरिया दर्शन व महापुरुषों के सन्देशों से मिलता है तो आपको चिंता करने की जरूरत नही है.क्यों न लोग आपको पागल सनकी ही क्यों न समझें? आपने स्तर के लोगों को अपने से जोड़ते रहें.आपका जो आदर करते हैं उनका आदर करते रहें. व अन्य पर दया.
...........ये समाज?समाजिकता?सामाजिकता के दंश

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महारानी दुर्गावती जयंती ::05अक्टूबर

5 अक्टूबर : महारानी दुर्गावती जयंती
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. आज महान वीरांगना महारानी दुर्गावती का जन्म दिवस है ।ये कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल की एकमात्र संतान थीं।महोबा के राठ गांव में 5 अक्टूबर 1524 ई0 को दुर्गाष्टमी पर जन्म के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गया। नाम के अनुरूप ही तेज, साहस, शौर्य और सुन्दरता के कारण इनकी प्रसिद्धि सब ओर फैल गयी।
दुर्गावती के मायके और ससुराल पक्ष की जाति भिन्न थी लेकिन फिर भी दुर्गावती की प्रसिद्धि से प्रभावित होकर राजा संग्राम शाह ने अपने पुत्र दलपत शाह से विवाह करके, उसे अपनी पुत्रवधू बनाया था।
दुर्भाग्यवश विवाह के चार वर्ष बाद ही राजा दलपतशाह का निधन हो गया। उस समय दुर्गावती की गोद में तीन वर्षीय
नारायण ही था। अतः रानी ने स्वयं ही गढ़मंडला का शासन संभाल लिया। उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं. वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केन्द्र था। उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल, अपने नाम पर रानीताल तथा अपने विश्वस्त दीवान आधारसिंह के नाम पर आधारताल बनवाया। रानी दुर्गावती का यह सुखी और सम्पन्न राज्य पर मालवा के
मुसलमान शासक बाजबहादुर ने कई बार हमला किया, पर हर बार वह पराजित हुआ। तथाकथित महान मुगल शासक अकबर भी राज्य को जीतकर रानी को अपने हरम में डालना चाहता था। उसने विवाद प्रारम्भ करने हेतु रानी के प्रिय सफेद हाथी (सरमन) और उनके विश्वस्त वजीर आधारसिंह को भेंट के रूप में अपने पास भेजने को कहा. रानी ने यह मांग ठुकरा दी. इस पर अकबर ने अपने एक रिश्तेदार आसफ खां के नेतृत्व में गोंडवाना पर हमला कर दिया. एक बार तो आसफ खां पराजित हुआ, पर अगली बार उसने दुगनी सेना और तैयारी के साथ हमला बोला। दुर्गावती के पास उस समय बहुत कम सैनिक थे। उन्होंने जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे मोर्चा लगाया तथा स्वयं पुरुष वेश में युद्ध का नेतृत्व किया। इस युद्ध में 3,000 मुगल सैनिक मारे गये लेकिन रानी की भी अपार
क्षति हुई थी। अगले दिन 24 जून 1564 को मुगल सेना ने फिर हमला बोला. आज रानी का पक्ष दुर्बल था, अतः रानी ने अपने पुत्र नारायण को सुरक्षित स्थान पर भेज दिया. तभी एक तीर उनकी भुजा में लगा, रानी ने उसे निकाल फेंका. दूसरे तीर ने उनकी आंख को बेध दिया, रानी ने इसे भी निकाला पर उसकी नोक आंख में ही रह गयी। तभी तीसरा तीर उनकी गर्दन में आकर धंस गया। रानी ने अंत समय निकट जानकर वजीर आधारसिंह से आग्रह किया कि वह अपनी तलवार से उनकी गर्दन काट दे, पर वह इसके लिए तैयार नहीं हुआ। अतः रानी अपनी कटार स्वयं ही अपने सीने में भोंककर आत्म बलिदान के पथ पर बढ़ गयीं. महारानी दुर्गावती ने अकबर के सेनापति आसफ़ खान से लड़कर अपनी जान गंवाने से पहले पंद्रह वर्षों तक शासन किया था। जबलपुर के पास जहां यह ऐतिहासिक युद्ध हुआ था, उस स्थान का नाम बरेला है, जो मंडला रोड पर स्थित है, वही रानी की समाधि बनी है, जहां देशप्रेमी जाकर अपने श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। जबलपुर मे स्थित रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी भी इन्ही रानी के नाम पर बनी हुई है।.कोटि कोटि नमन इस वीरांगना को

रविवार, 4 अक्तूबर 2015

विद्यार्थी व शिक्षक ?????5अक्टूबर

5अक्टूबर::विश्व शिक्षक दिबस???

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अब अभिवावकों में संस्कार खत्म हो रहे हैं.शिक्षक को सिर्फ किताबी कोर्स पूरा करने से फुर्सत नहीं है.शिक्षा जगत का महत्व पूर्ण कार्य है.लेकिन सर्वांगीण शिक्षा का आभाव है.

शिक्षक अब वे होने लगे है  जो वर्ण से वैश्य व शुद्र हैं.विद्यार्थी भी वो हो रहे हैं जिन्हें ज्ञान के प्रति जिज्ञासा नहीं है.आज का विद्यार्थी जीवन ब्रह्मचर्य जीवन नहीं रह गया हैं

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सहज ;स+हजअर्थात यात्रा:अन्तस्थ यात्रा

४ अक्टूवर २०१५ रविवार :: स्वामी श्रद्धानन्द जी सरस्वती का जन्म दिवस @
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मेडिटेशन की प्रतिक्रिया क्या हमारी प्रकृति(शरीर) पर पड़ती है?अंतर्मुखी स्थिति पर अनुभव/महत्व मिलता ही है.जैसा हमें तब ही मिलने लगा था जब हम स्नातक का छात्र था.लेकिन नियमितता नहीं थी.जगत/प्रकृति में नियमितता चाहिए.नहीं तो ये मन व इंद्रियाँ ....?हमारी इंद्रियों व मन से परे है अनन्त -शाश्वत.पिछले चार रविवार से असर महसूस हो रहा है --सुमरिन का/मेडिटेशन का.

मूलाधार बनाम सहस्राधार@
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ऊर्जा की गति के दो सिरे हैं- मूलाधार व सहस्राधार.
कुछ लोग जगत में ऐसे भी होते हैं जिनकी ऊर्जा या तो सहस्राधार पर होती है या मूलाधार पर.जिनमे से ही शायद हम हैं?आँख बन्द पर ऊपर व आँख खुले पर नीचे?ऐसे में कुर शान(गीता) की तटस्थता , बुद्ध की सम्यकता पर भी दृष्टि जाती है.लेकिन हम आँख खुले जीवन में मालिक के एहसास में निचले स्तरों से ऊपर उठ जाते हैं.

हज है यात्रा : अन्तस्थ यात्रा@
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आत्मा/चेतना ही स्वतन्त्रता है.जो सहजता में है.सहज अर्थात स+हज;हज सहित.हज है-यात्रा,कैसी यात्रा ?तीर्थयात्रा.तीर्थ क्या है-- जो हमें पाप से मुक्त करे  वह है-तीर्थ.

अन्तस्थ यात्रा :: धर्म
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धर्म है -- अन्तस्थ यात्रा .हमारा नजरिया/हमारा आंतरिक स्तर. जो निर्धारित करता है कि प्रकृति/प्रकृति अवयवों से हमारे सम्बन्ध हेतु हमारा नजरिया/आंतरिक स्तर.

अज्ञानी,ज्ञानी व अभ्यासी@
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अर्जुन श्री कृष्ण से पूछते हैं-- आपकी बातें सिर ऊपर से उड़ जाती हैं,हम ग्रहण कर ही नहीं पाते.श्रीकृष्ण कहते हैं--"अभ्यास में रहो,अभ्यास में.श्रेष्ठ अभ्यासी बनो.ज्ञानी होने से क्या?ज्ञान पर प्रयोग करो,अभ्यास करो.

ashok kumar verma "bindu"

A00226525

श्री रामचंद्र मिशन

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2015

सन्त से बड़ा जगत में कौन??

सन्त परम्परा बनाम देव लोक@
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हमारी शिक्षा की शुरुआत सन्तों के बीच से ही शुरू हुई.किताब पढ़ना ठीक ढंग से शुरू नहीं कर पाया कि कुरुशान(गीता) हाथ आई.
हमें ननिहाल पक्ष की ओर से भी सन्त मिले.सन्तों के बीच हमें प्रेम का अहसास हुआ.

            आगे चलकर पौराणिक कथाएँ पढ़ी . पढ़कर अटपटा सा लगा.हमें सन्तों के लोक से बडा नहीं दिखा देव लोक.बदले की भावना,भेद आदि.... से मुक्त हैं क्या देव लोक?

    बचपन से ही आर्य समाज,शांति कुञ्ज,गीता प्रेस आदि के साहित्य से का सानिध्य मिला.लेकिन....??

      हजरत किब्ला मौलवी फ़ज़्ल  अहमद खान साहब  रायपुरी के शिष्य श्री रामचन्द्र जी फतेहगढ़ वाले 
की स्मृति में शाहजहाँपुर के श्री रामचन्द्र जी (बाबूजी) ने श्री रामचन्द्र मिशन की स्थापना की.जिसका बोध हमें 1998 में पुबायाँ (शाहजहाँपुर) के श्री राजेन्द्र मिश्र के माध्यम से हुआ.इसी समय जयगुरुदेव का सानिध्य मिला.निरंकारी समाज की समीपता में आया.बचपन से ही हम सनत् कबीर राजा जनक व बुद्ध से भी प्रभावित रहा.

देव परम्परा से बेहतर मानते हैं हम सन्त परम्परा. आखिर ऐसा क्यों?ऐसा इसलिए क्योंकि सन्त परम्परा में द्वेष,भेद आदि को कोई स्थान नहीं है.
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मंगलवार, 29 सितंबर 2015

मोदी विश्व यात्राएं वनाम भावी तृतीय विश्व युद्ध????????????????????????????????????????!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

---------- Forwarded message ----------
From: akvashokbindu@gmail.com
Date: Sep 29, 2015 11:43 PM
Subject: मोदी विश्व यात्राएं वनाम भावी तृतीय विश्व युद्ध????????????????????????????????????????!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
To: <go@blooger.com>
Cc:

[9/29, 11:38 PM] ashok kumar verma: मोदी विश्व यात्रा बनाम तृतीय विश्व युद्ध ??
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इस बार के महाविश्व / महाभारत का क्षेत्र एशिया होगा ? हालाँकि इस युद्ध को तृतीय विश्व युद्ध कहा जायेगा . क्या ये वास्तव में  होगा ? इस युद्ध के कारण मैजूद हैं . भारत चाहे तो ये युद्ध आज हो जाये ?  लेकिन भारत आज  दिव्य है?वह आज वही भारत है;भा+रत अर्थात प्रकाश में रत .दुनिया एक बार फिर भारत की ओर देखने जा रही है.भारत मेंअब भी ज्ञान-- कमलों की कमी नहीं है.दुनिया के गैर भारतीयों में ऐसा कौन सा नेता है जो सारी दुनिया के लिए जाति/मजहब/देश की शरहदों से परे हो सारी मनुष्यता व प्रकृति के लिए दर्द रखता है? भारत में इस नेता होने जा रहा है?मोदी की विश्व यात्राओं को यों ही हल्के में मत लीजिए.मोदी विश्व स्तर पर उन परिस्थितियों के लिए वातावरण बना रहे हैं .मोदी जाते जाते वो कर जायेंगे जिसे उनके  दुश्मन भी याद करेंगे?

इससे पहले काफी कुछ होना है----
@संयुक्त राष्ट्र सङ्घ में भारत को स्थाई  सदस्यता

@संयुक्त राष्ट्र सङ्घ में हिन्दी भाषा को मान्यता

@भारत को जगत गुरु का दर्जा

@सन् 2022 का इंतजार व अनेक फाइलों का सार्वजनिक होना.अनेक कानूनों का संशोधन.

@विभिन्न क्षेत्रों में सक्षम होना.

@विश्व मन्च पर अपना पक्ष मजबूती से रखना व उसके लिए विश्व मत तैयार करना.

@आतंकवाद पर स्पष्ट विश्व मत तैयार करना.

@गरीब देशों व गरीबों के हित कल्याणकारी नीतियों का समर्थन.

@पर्यावरण के लिए स्पष्ट नीति का समर्थन जो गरीब देशों के अहित में न हो.

@आदि

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पारदर्शिता की क्रांति जरूरी~?

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विश्व सम्विधान विश्व सरकार, सच्ची आवाज़ और 47 अन्य लोग के साथ
रिकार्ड व पारदर्शिता @
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देश में काफी कुछ ऐसा हो रहा है जिसका कोई रिकार्ड नहीं . जिसका कारण नजरिया व नियति स्पष्ट,पारदर्शी ,स्वच्छ,श्रेष्ठ ,सम्वैधानिक आदि न होना है.ओशो ने जो बोला ,उसके रिकार्डिंग की व्यवस्था की.आर एस एस/सङ्घ व उसके घटकों के बारे में चाहें कोई कुछ भी कहे.हम नगेटिब में भी पाजटिव खोजते रहे हैं. उनकी कुछ मीटिंग्स में हमे जाना हुआ.हमने देखा है ,कोई भी जो कोई बात बोलता है,उसे एक व्यक्ति लिखता जाता था.जिसे फिर नोटिस बोर्ड पर चिपका दिया जाता है.विभिन्न संस्थाओं में ऐसा होना चाहिए.उनके विद्यालयों में किसी अध्यापक से यदि कोई स्पष्टीकरण मांगना होता तो इस बात की सूचना वहां उस अध्यापक को लिखित रूप में दी जाती.आदि आदि.
हम जो भी लिख रहे हैं ,वह एक रिकार्ड है.हमारे बोलने से वो अच्छा है.हम भी बोलेगे, लेकिन रिकार्डिंग की व्यवस्था के साथ.
जिन्हें हमारे लेख पसन्द नहीं वेलिखित रूप में कमेंट्स में अपना तर्क रख सकते हैं.यों खाली बिन रिकार्ड का विरोध करना कायरता व अधर्म ही है.यदि बात करना है तो उसके रिकार्ड की भी व्यवस्था करें.यों खाली विरोध का वातावरण बनाना गैरकानूनी है. अभिब्यक्ति का अधिकार जनतन्त्र की एक विशेषता है.देश व समाज की सम्वैधानिक दिशा के लिए भाईचारा रखते हुए रिकार्ड व पारदर्शिता भी आवश्यक है.
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सोमवार, 28 सितंबर 2015

पारदर्शिता की क्रांति जरूरी~?

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विश्व सम्विधान विश्व सरकार, सच्ची आवाज़ और 47 अन्य लोग के साथ
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देश में काफी कुछ ऐसा हो रहा है जिसका कोई रिकार्ड नहीं . जिसका कारण नजरिया व नियति स्पष्ट,पारदर्शी ,स्वच्छ,श्रेष्ठ ,सम्वैधानिक आदि न होना है.ओशो ने जो बोला ,उसके रिकार्डिंग की व्यवस्था की.आर एस एस/सङ्घ व उसके घटकों के बारे में चाहें कोई कुछ भी कहे.हम नगेटिब में भी पाजटिव खोजते रहे हैं. उनकी कुछ मीटिंग्स में हमे जाना हुआ.हमने देखा है ,कोई भी जो कोई बात बोलता है,उसे एक व्यक्ति लिखता जाता था.जिसे फिर नोटिस बोर्ड पर चिपका दिया जाता है.विभिन्न संस्थाओं में ऐसा होना चाहिए.उनके विद्यालयों में किसी अध्यापक से यदि कोई स्पष्टीकरण मांगना होता तो इस बात की सूचना वहां उस अध्यापक को लिखित रूप में दी जाती.आदि आदि.
हम जो भी लिख रहे हैं ,वह एक रिकार्ड है.हमारे बोलने से वो अच्छा है.हम भी बोलेगे, लेकिन रिकार्डिंग की व्यवस्था के साथ.
जिन्हें हमारे लेख पसन्द नहीं वेलिखित रूप में कमेंट्स में अपना तर्क रख सकते हैं.यों खाली बिन रिकार्ड का विरोध करना कायरता व अधर्म ही है.यदि बात करना है तो उसके रिकार्ड की भी व्यवस्था करें.यों खाली विरोध का वातावरण बनाना गैरकानूनी है. अभिब्यक्ति का अधिकार जनतन्त्र की एक विशेषता है.देश व समाज की सम्वैधानिक दिशा के लिए भाईचारा रखते हुए रिकार्ड व पारदर्शिता भी आवश्यक है.
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शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

जातिब्यबस्था के खिलाफ आगाज़???

ये अच्छी बात है कि अब आरक्षण के खिलाफ वातावरण बनने लगा है.हम भी आरक्षण के खिलाफ हैं,लेकिन आरक्षण की समाप्ति से पहले हम जातिव्यवस्था के खिलाफ कानून चाहते है.

संयुक्त राष्ट्र सङ्घ  व विश्व बैंक केंद्र सरकार से दो बार जातिव्यवस्था के खिलाफ कुछ करने के कह चुका है लेकिन इस सम्बन्ध में देश के अंदर कोई भी सरकार व संस्था जातिवाद के खिलाफ आंदोलनात्मक कार्यवाही नहीं चाहता.ये देश के सामने विडम्बना है कि लोग जातिगत आरक्षण के खिलाफ तो हो रहे हैं लेकिन अन्य जातिगत व्यवहारों  का विरोध नहीं क्र पाते,गैरजातियों में शादी का समर्थन नहीं कर पाते.

राष्ट्रिय एकता के लिए जातीबाद खत्म होना चाहिए ऐसा विधिज्ञ भी  मानते हैं..
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अंग्रेजी सरकार होती तो हम भी राजा राममोहन राय के पथ पर चल कर जातिप्रथा के खिलाफ कानून  बनबाने का प्रयत्न करते.अब हमें समझ आने लगा है कि समाजसुधारक क्यों नहीं चाहते थे कि अंग्रेज भारत छोड़ कर जाएँ? अम्बेडकर ने भी ठीक ही कहा था कि अधिकतर लोगों की आजादी का मतलब सत्ता परिबर्तन से है न कि आम आदमी की आजादी व सम्वैधानिक समान व्यबस्था?हमे तो आजादी भी संदिग्ध लगती है.इसका गवाह 200 वे फाइलें हैं जो अभी सार्बजनिक होनी बाकी हैं.

रविवार, 20 सितंबर 2015

जाति तोड़ो समाज जोड़ो!

आरक्षण विरोधी अभियान बनाम आरक्षण (वरीयता) और जातिवाद
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  (1)मन्दिरों में एक जाति विशेष के व्यक्तियों की नियुक्तियां रद्द की जॉय और प्रतियोगिता के द्वारा जातिवाद हीनता के आधार पर नियुक्तियां की जाएँ.
(2)श्राद पक्ष , घरेलु कर्मकांड आदि में जाति विशेष के व्यक्तियों के महत्व को रद्द किया जाये.

(3)गुजरात की तरह सब जगह सरकारी।पण्डितों की नियुक्ति की जाए,जो किसीएक जातिविशेष से  न हों
(4)गैर जातियों में।शादियों का विरोध करने के खिलाफ कानून बने

(5)जातिविरोधी कानून बने.
(6)अन्य

नोट:हम तो इतना ही ज्ञान रखते हैं कि हम व् जगत प्रकृतिअंश व ब्रह्मअंश हैं.जो किसी जाति मजहब धर्मस्थल किसी बिशेष रीति रिबाज आदि का मोहताज नहीं है.सभी को सम्मान की जरूरत है.

सत्य शोधक समाज की स्थापना

24 सितम्बर 1873: सत्य शोधक समाज की स्थापना
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4 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा के कोटगन गांव में जन्मे महात्मा ज्योतिबा फुले ने 24 सितम्बर 1873 ई को सत्य शोधक समाज की स्थापना की.गुलामगिरी व सर्वजनिक सत्य धर्म इनकी पुस्तकों के संग्रह हैं.इनका उद्देश्य दलितों ,महिलाओं व वंचितों को न्याय दिलाना था.

प्रथम आधुनिक शिक्षिका सावित्री फुले  उनकी पत्नी थीं.किसी जाति विशेष के पुरोहितों के बिना विवाह संस्कारों को उन्होंने बढ़ावा दिया व मुम्बई उच्च न्यायालय में उन्हें मान्यता दिलाई .

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सार्वजनिक सत्य धर्म !
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क्या है सार्वजनिक धर्म ? वह धर्म धर्म नहीं जो मानव जाति को एक न मान सके,ईश्वर को एक न मान सके.ईश्वर की बनाई चीजों का सम्मान न कर सके .
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सत्य शोधक समाज !
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सत्संगी कौन है? मुसलमान कौन है?हमारी नजर में वह जो सत में लीन है लेकिन संसार की चीजों में लीन नहीं है.अप्राकृतिक वस्तुओं में लीन नहीं है.समाज में कोई व्यक्ति हमें धार्मिक,आध्यात्मिक,ईश व्यक्ति नहीं  दीखता.सिर्फ शरीर व इन्द्रियोँ में जीने वाला कैसे धार्मिक,आध्यात्मिक,ईश भक्त ?

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गुलामगिरी!
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सभी गुलाम हैं -अप्राकृतिक  
के ,जातियो-मजहबी धारणाओं के .कोई ईश्वरीय विधान - प्रकृति विधान को न मान कृत्रिमता में जीता है.
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पुरोहितवाद बनाम जातिबाद!
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जातिबाद यदि गलत है तो एक विशेष जाति का प्रभाव क्यों?योग्यता को महत्व होना चाहिए.
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ashok kumar verma "bindu'"
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www.ashokbindu.blogspot.com

सत्य शोधक समाज की स्थापना

24 सितम्बर 1873: सत्य शोधक समाज की स्थापना
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4 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा के कोटगन गांव में जन्मे महात्मा ज्योतिबा फुले ने 24 सितम्बर 1873 ई को सत्य शोधक समाज की स्थापना की.गुलामगिरी व सर्वजनिक सत्य धर्म इनकी पुस्तकों के संग्रह हैं.इनका उद्देश्य दलितों ,महिलाओं व वंचितों को न्याय दिलाना था.

प्रथम आधुनिक शिक्षिका सावित्री फुले  उनकी पत्नी थीं.किसी जाति विशेष के पुरोहितों के बिना विवाह संस्कारों को उन्होंने बढ़ावा दिया व मुम्बई उच्च न्यायालय में उन्हें मान्यता दिलाई .

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सार्वजनिक सत्य धर्म !
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क्या है सार्वजनिक धर्म ? वह धर्म धर्म नहीं जो मानव जाति को एक न मान सके,ईश्वर को एक न मान सके.ईश्वर की बनाई चीजों का सम्मान न कर सके .
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सत्य शोधक समाज !
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सत्संगी कौन है? मुसलमान कौन है?हमारी नजर में वह जो सत में लीन है लेकिन संसार की चीजों में लीन नहीं है.अप्राकृतिक वस्तुओं में लीन नहीं है.समाज में कोई व्यक्ति हमें धार्मिक,आध्यात्मिक,ईश व्यक्ति नहीं  दीखता.सिर्फ शरीर व इन्द्रियोँ में जीने वाला कैसे धार्मिक,आध्यात्मिक,ईश भक्त ?

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गुलामगिरी!
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सभी गुलाम हैं -अप्राकृतिक  
के ,जातियो-मजहबी धारणाओं के .कोई ईश्वरीय विधान - प्रकृति विधान को न मान कृत्रिमता में जीता है.
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पुरोहितवाद बनाम जातिबाद!
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जातिबाद यदि गलत है तो एक विशेष जाति का प्रभाव क्यों?योग्यता को महत्व होना चाहिए.
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ashok kumar verma "bindu'"
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गुरुवार, 17 सितंबर 2015

जाति तोड़ो समाज जोड़ो!

आरक्षण विरोधी अभियान बनाम आरक्षण (वरीयता) और जातिवाद
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  (1)मन्दिरों में एक जाति विशेष के व्यक्तियों की नियुक्तियां रद्द की जॉय और प्रतियोगिता के द्वारा जातिवाद हीनता के आधार पर नियुक्तियां की जाएँ.
(2)श्राद पक्ष , घरेलु कर्मकांड आदि में जाति विशेष के व्यक्तियों के महत्व को रद्द किया जाये.

(3)गुजरात की तरह सब जगह सरकारी।पण्डितों की नियुक्ति की जाए,जो किसीएक जातिविशेष से  न हों
(4)गैर जातियों में।शादियों का विरोध करने के खिलाफ कानून बने

(5)जातिविरोधी कानून बने.
(6)अन्य

नोट:हम तो इतना ही ज्ञान रखते हैं कि हम व् जगत प्रकृतिअंश व ब्रह्मअंश हैं.जो किसी जाति मजहब धर्मस्थल किसी बिशेष रीति रिबाज आदि का मोहताज नहीं है.सभी को सम्मान की जरूरत है.

रविवार, 30 अगस्त 2015

ठहराव नहीं है जीवन

@ठहराव नहीं है --जीवन@
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कोई दिल पे ठहरा है.कोई दिमाग में ठहरा है.कोई पेट पे ठहरा है.कोई इंद्रियों पे ठहरा है.

यह ठहराव जीवन नहीं,चेतना नहीं,आत्मा नहीं.तब ऐसे में कैसे परमात्मा की ओर,खुदा की ओर?ठहरे हो जाति वाद में,ठहरे हो मजहब वाद में?ठहरे हो धर्म(अधर्म)स्थलों) पे?कहते हो हमें ईश्वर पर विश्वास है,खाक है---ईश्वर पर विश्वास??


आत्मा स्वतंत्रता है,परमात्मा स्वतन्त्रता है.जीवन स्वतन्त्रता है.वह मोहताज नहीं है--तुम्हारे इन ठहरावों का.

हम व जगत प्रकृति अंशहै व ब्रह्म अंश.जो।तुम्हारे इन ठहरावों का मोहताज नहीं.

ये संस्थाएं भी?आत्मा,परमात्माआदि के विधान से छोटे हैं,सस्थाएं बंधन हैं.
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A00226525
Ashok ku.verma"bindu"
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(shri ramchndrmisson ruhelkhnd)facebook

शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

रक्षा बन्धन का औचित्य???

@रक्षा बन्धन पर्व क्या औचित्य?????
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एक तथाकथित आर्य कहते हैं--रक्षा बन्धन का क्या औचित्य?हमारी नजर में रक्षा बन्धन,करवा चौथ,भैया दूजआदि पर्व लिंग भेद का प्रतीक है.जिन परिस्थितियों में रक्षा बन्धन(पर्व नहीं) उन परिस्थितियों में 'रक्षा का सङ्कल्प' दर्शन में था.

   आज की परिस्थितियों में में जब 'लैंगिक असमानता' को गैरक़ानूनी व अमानवीय कहा जाता है तो ये अनुचित है?अब रक्षा  सङ्कल्प के हेतु बदलना चाहिए व सार्वभौमिक हो जाना चाहिए.तुम विकास के पथ पर आज प्रकृति को मार रहे हो,प्रकृति की रक्षा का सङ्कल्प लो!मानवता की रक्षा का सङ्कल्प लो!
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अशोक कुमार वर्मा "बिंदु"

हमारी इच्छाएं देश के लिए?

[8/19, 8:12 PM] ashok kumar verma: मोदी ये करें तो जाने::आम आदमी की आबाज!!
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@सरकारी स्कूल में ही पढ़ने जाएँ विधायक,संसद,मंत्री,अधिकारी आदि के बच्चे!

@ सरकारी योजनाएं पूंजीपतियो के साथ बैठकर नहीँ वरन आम संस्थाओं(नागरिक कमेटियों) के विचारों के आधार पर हो.

@किसानों को उनकी उपज की कीमत का निर्धारण करने का अधिकार किसान कमेटियों को दिया जाये

@परिवार व गांव जीवन के आधार को लेकर रोजगार व् स्वरोजगार नीतियां बनाई जाएँ.प्रत्येक परिवार व उसके सदस्यों की योग्यता व उनकीसमस्याओं केआधार पर रोजगार नीति सीधे परिवारों सेजोड़ी जाये

@इंटर पास करते करते सभी का रोजगार निश्चित किया जाये।.ऐसा नही की बीटेक करने वाला बीटीसी कर स्कूल में मास्टर बन बैठे और जो वास्तव में टीचर बनना चाहे वह इधर उधर प्राइवेट पढता फिरे
@बेरोजगारी समाप्त करने के लिए सभी की रूचि का सम्बंधित विभाग की वेबसाइड में रजिस्ट्रेशन कर सभी को 10 हजार रुपए मानदेय पर 10 साल की ट्रेनिंग पर रखा जाये.
@नौकर शाही में ऐसे लोग न रखे जॉय जो सिर्फ मानदेय या वेतन के लिए रखे जाएं ?समजसेबा व देश सेबा मकसद होना चाहिए !जो समजसेबा व् देश सेबा के लिए अपनी जान तक देने को तैयार ही और उसे सरकारी नौकरी न मिले ये देश के सामने सबसे बड़ी कमजोरी है.यही भ्र्ष्टाचार का सबसे बड़ा कारण है.
@प्राइवेट संस्थाओं /स्कूल्स में कर्मचारियों का वेतन संस्थाओं/स्कूल्स के बैंक खाता से कर्मचारियों  के खाता में भेजने का सख्त कानून आना चाहिए
@आज कल 70 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं .इसके लिए सर्वप्रथम माता पिता दोषी हैं.माता पिता बनने का अधिकार सबको न दिया जॉय.इसके लिए नया परिवार नियमन कानून बनना चाहिए.जो अपनी समस्याओं से नहीं निपट सकता वह भावी पीडी की समस्याओं से कैसे निपटे?
@शिक्षा में भरी बदलाव की आवश्यकता है.व्यवहारिक व प्रयोगात्मक शिक्षा पर बल दिया जाना चाहिए.
[8/20, 2:06 PM] ashok kumar verma: जगत का आकर्षण है --ब्रह्म.शरीर का आकर्षण है--आत्मा.लेकिन ये बात हमे समझ में नहीं आ सकती बिन अनुभव के.क्योकि हमारा (मन) का आकर्षण बना हुआ है--प्रकृति आकर्षण अर्थात जगत आकर्षण..
[8/20, 2:08 PM] ashok kumar verma: कृष से बना है --कृष्ण,कृष से   
ही क्रिश्चियन बना है.कृष का अर्थ है -आकर्षण.

बुधवार, 26 अगस्त 2015

अपना लक्ष्य तय करें

@पहले हम ये तय करें कि हमें इस जिंदगी क्या चाहिये???
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जीवन अंत नहीं है.शुरुआत नहीं है.वह निरन्तर है .शाश्वत है.जन्म व् मृत्यु उसके दो कदम है.जन्म -- मृत्यु के बीच हमें इस जिंदगी क्या चाहिये .?हमें ये पता होना चाहिये.जीवन की सबसे बड़ी बुराई है-अपनी शक्तियों का विखरना और सबसे बड़ी अच्छाई है अपनी शक्तियों का एकाग्र होना.

    हम तय करें हमें क्या होना है?हमारा लक्ष्य क्या है?जीवन का लक्ष्य है--पुरुषार्थ.पुरुषार्थ के लिए.पुरुष क्या है?पुरुष है--आत्मा.महापुरुष है..परमात्मा.पुरुषार्थ चार स्तम्भों पर टिका है--धर्म,अर्थ,काम व मोक्ष.

"जीने के हैं चार दिन,बाकी  हैं बेकार दिन"......धर्म,अर्थ,काम व मोक्ष ही जीवन का आधार है?जिसके लिए जीवन को ब्रह्मचर्य,ग्रहस्थ,वानप्रस्थ व सन्यास में विभक्त किया गया है.हम जहाँ से आये  हैं,वहीँ हमें जाना है.विश्व सरकार?विश्व सम्विधान?क्या है विश्व सम्विधान?क्या है विश्व सरकार?जो कण कण में है व्याप्त,वही है हमारी सरकार.उसका विधान ही है सम्विधान.
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अशोक कुमार वर्मा "बिंदु"
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www.akvashokbindu.blagspot.com
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सोमवार, 6 जुलाई 2015

love and sex ,,,...??

love व sex में अंतर होता है .love व्यक्ति को महान बनाता है.love में अपनी इच्छाएं खत्म  हो जाती हैं.सामने वाले की इच्छाएं महत्वपूर्ण हो जाती हैं.
love उदासियाँ नहीं लाता,महान गुणों को विकसित करता है.हो जैसा है उसे वैसा स्वीकार करना ही love है.समर्पण ही love है.love में व्यक्ति अपनी इच्छाऐ सामने वाले पर थोपता नहीं.आज कल की love कथाएँ sex कथाएँ हैं.प्रेमवान व्यक्ति उदार होने लगता है.वह बदले की भावना नही रखता..........शेष फिर......
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www.slydoe163.blogspot.com
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ashok kumar verma "bindu"

सोमवार, 4 मई 2015

दहेज़ कोई समस्या नहीँ?

         मानवता के जगत में दहेज कोई समस्या नहीं हैं वरन एक मानवीय विकार है . आज के भौतिकवादी नजरिया व जातिवाद के कारण दहेज एक विकार बना हुआ हैं . हम तो यही कहेंगे कि "शादी करना" आजकल अवैध है .आजकल रिश्ता तय होने वक्त नजरिया भौतिकवादी ही होता है न कि मानवीय ? मानवीय मूल्यों व क़ानूनी नजर में हमारे नजर में हमारे बेटी बेटियों के माफिक अनेक लड़का लड़कियां होते हैं लेकिन हम उन्हें अपने बेटी बेटियों के योग्य नहीं मानते क्योकि वे दूसरी जाति के या हमसे कम भौतिक स्तर के होते हैँ.यहाँ पर हम अमानवीय व असंवैधानिक ही होते हैं.सरकारों को इस पर ध्यान देना चाहिए.शादी में खर्च पर टेक्स व शादी वक्त एजिस्ट्रेशन और दहेज अदेय प्रमाण पत्र अनिवार्य किया जाना चाहिए .इससे दहेज़ प्रकरण की समस्याएं कम होगी .

  अशोक बिंदु

अ.ब.व.इंटर कालेज

कटरा,

शाहजाहनपुर,उप्र

Sent via Micromax

शुक्रवार, 10 अप्रैल 2015

[09/04 9:28 pm] ashok kumar verma: 🙏 सविनय निवेदित आग्रह-
      असहनीय संकट से मजबूर अन्नदाताओं व ऐसे ही तमाम  लोग निराश व विवश होकर आत्महत्त्या जैसा विचार तक मन में न लायें, क्यों कि यह न केवल कायरता है बल्कि इंसानियत  पर काला धब्बा है। यह न तो समाधान है और न ही बलिदान।
        धर्य रखें। असहनीय संकट की हर घणी में हम आपके साथ हैं। कृपया साहस व धर्य के साथ किसी भी समय फोन न. +919457281157 पर कॉल करें। साधन सम्पन्न न होते
[09/04 9:28 pm] ashok kumar verma: हुए भी हम अन्न का आखिरी दाना मिल बाँट कर खाते हुए आपके साथ संघर्ष करेंगे।