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बुधवार, 23 सितंबर 2020

भविष्य का किसने नहीं देखा, आत्मा को पकड़ो आत्मा सब जानती है::अशोकबिन्दु

 एक दिन ऐसा आएगा कि कुदरत सब हिसाब किताब बराबर कर देगी। कबीरा खड़ा खड़ा मुस्कुराएगा।

वर्तमान तुम्हारे आका तब खलनायक होंगे। आप के नजर में जिनकी कोई औकात नहीं है, वे भविष्य के हीरो हो सकते हैं। भविष्य का हीरो अपनी जाति, मजहब, शारीरिक सुंदरता, मजबूती, धन शक्ति आदि के कारण नहीं होता है।सुकरात की क्या औकात थी?ईसा की क्या औकात थी?आदि आदि।तुम अपने को नहीं पहचानते, दूसरे को क्या पहचानोगे?औकात व्यक्ति की सिर्फ शरीर, धन, जाति, मजहब आदि से ही नहीं होती।व्यक्ति कोई सिर्फ हाड़ मास शरीर नहीं होता।

तुम जिस पर आज फूलते हो उसकी कुदरत की नजर में कोई औकात नहीं।

भविष्य का क्या देखा?तुम व तुम्हारे आका कहते फिरते है।इससे पता है कि तुम्हारी व तुम्हारे आकाओं की औकात कहा तक है?इस शरीर, इन्द्रियों, दिमाग, मन की औकात कब तक?

ये जो तुम्हारे आका, तन्त्र को जकड़े बैठे व्यक्ति.... शायद अब भी कोरोना संक्रमण से सीख नहीं पाए हैं।सांमत वाद, पूंजीवाद,, सत्तावाद, पुरोहितवाद आदि की बू अब भी आ रही है।


कब तक तुम्हारी चित पट्ट?! तुम व तुम्हारे आकाओं, तुम्हारे सिस्टम से ऊपर भी कोई सिस्टम है।इस भ्रम में न रहो कि हम भक्त है, आस्तिक हैं, जन्मजात उच्च है, खुदा के बन्दे है। हम तो मीरा व तुममे से एक को ही भक्त मान सकते हैं।कबीर व तुम में से एक को ही भक्त मान सकते हैं। कबीर, मीरा की भक्ति में परिवार मर्यादा,जगत मर्यादा की कोई औकात न थी।

हमें तुम्हारी भक्ति, आस्तिकता, धर्म स्थलों आदि से कोई मतलब नहीं।हमें तो अपने व अन्य हाड़ मास शरीरों, अपनी आत्मा व अन्य आत्माओं व उसकी आवश्यक ताओं से मतलब है।


हमारा चरित्र तुम्हारी नजर में बेहतर बनना नहीं है।


वो कायरता न थी!

सन्त कहता है कि तुम धोखा न दो।तुम धोखा को बर्दाश्त कर । गुरुनानक यों ही नहीं आ गए, एक योजना थे कुदरत की।जिसने अपनी धाक काबा तक पहुंचाई। सदियों से पंजाब ने जो झेला वह का परिणाम है-गुरुनानक।वही भविष्य है।"सब चुंग जा सब राम का?"-हम क्या समझें?

हम अभी काफी दूर हैं भक्ति से।heartfuness से।अपनी रुचि, रुझान से। सच्चा सौदा से।

एक कायरता ऐसे भी है, जिसे तुम कायरता कह सकते हो परन्तु हम नहीं।एक अपराध को तुम अपराध कह सकते हो परन्तु हम नहीं।


गुरुनानक उस अतीत का परिणाम हैं जो कभी वर्तमान था।जिसमें पंजाब व अफगान ने झेला था, काफी झेला था।जो भविष्य बन गया।अब भी भविष्य है।यात्रा जारी है।


आत्मा, आत्माएं सब जानती हैं।वे भी एक सिस्टम से जुड़ाव हैं। हम तब ही महसूस कर सकते हैं भविष्य जब हम अपने अंतर प्रकाश अंतर ज्योति को पकड़ें।समझो-ज्योतिष=ज्योति+ईष अर्थ ज्योति संकेत।

#अशोकबिन्दु


कबीरा पुण्य सदन


कबीरा पुण्य सदन kabira puny sadan



#अशोकबिन्दु


मन चंगा तो  कठौती में गंगा ☺




नकल से कब तक काम चलेगा अशोक बिन्दु

 संसार में जो भी है वह निरर्थक नहीं है ।

किसी न किसी स्तर पर उसकी आवश्यकता है।

 यहां पर हम नकल करने की प्रवृत्ति पर जिक्र कर रहे हैं।

 नकल करने ,कल्पना करने ,चिंतन, मनन ,स्वप्न आदि का भी जीवन में कब बड़ा महत्व है ।जब हम जो बनना चाहते हैं उसके लिए मन से भी चिंतन मनन कल्पना सपना विचार भावना आदि मन में कर लेते हैं और उस आधार पर मेहनत मरते हैं, नियमितता  जीवन में लाते हैं तभी कल्याण होता है

सनातनी होने का भ्रम :: अशोकबिन्दु

  हमें अनेक लोग मिल जाते हैं जो अपने को सनातनी कहते हैं। लेकिन उनका कोई भी आचरण , कोई भी विचार , कोई भी भाव हमें सनातनी नहीं दिखता। हम तो यही कहेंगे कि अभी हम सोच ,भावना ,विचार ,नजरिया, समझ आदि से बिल्कुल सनातनी नहीं है । अपने को जो हिंदू कहता है, मुसलमान कहता है या अपने को जो जाति मजहब से जोड़ता है उसे हम सनातनी नहीं कह सकते। गीता में.... चलो गीता को छोड़ो, वेद में सनातनी किसे कहा गया है ?सनातन किसे कहा गया है?

काहे को शिक्षित? काहे को शिक्षक?काहे को प्रेरणादायक?काहे को ज्ञानी?काहे को प्रेमी? जो अपने को नहीं जानता वह अपने  हित करेगा भी क्या? फिर काहे का शिक्षित?शिक्षक?प्रेरणादायक?


किसी सीरियल में देखा है, आश्रम में गुरुकुल में कुछ बच्चे पढ़ने जाते हैं तो उन्हें पहले शुरुआत में ही बताया जाता है तुम कौन हो



शुक्रवार, 18 सितंबर 2020

अशोकबिन्दु :: दैट इज...?! पार्ट 15

 आर्य समाज और हम::अशोकबिन्दु




आधुनिक भारत के इतिहास में आर्य समाज का बड़ा महत्व है ही हमारे जीवन में भी आर्य समाज का बड़ा महत्व है।


10 अप्रैल 1875,गिरगांव, मुम्बई!आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने मथुरा के स्वामी विरजानन्द की प्रेरणा से की।आर्य समाज का आदर्श वाक्य है-कृवन्तो विश्वमार्यम।मूल ग्रन्थ है-सत्यार्थ प्रकाश। हिंदी को राष्ट्र भाषा के रूप में सर्वप्रथम स्वामी दयानंद सरस्वती ने ही देखा व उसका प्रचार किया। 


सन 1875 से पूर्व और बाद कि स्थिति का अध्ययन करें तो,पता चलता है कि देश के अंदर राष्ट्रीय आंदोलन का माहौल बनाने व भारतीयों को महापुरुष बनने की प्रेरणा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आर्य समाज से ही मिली।

30 अक्टूबर 1883 को अजमेर में स्वामी दयानंद सरस्वती की हत्या के बाद भी आर्य समाज उन युवकों को प्रभावित करता रहा था जो देश में विभिन्न स्तर पर परिवर्तन चाहते थे। हालांकि इससे पूर्व बंगाल में 1828 में द्वारकानाथ टैगोर व राजा राम मोहन राय समाज सुधार व ब्रह्म समाज की स्थापना कर चुके थे। जिनकी मृत्यु 27 सितम्बर 1833 में हो चुकी थी। हम तो यही कहेंगे कि 1916 महात्मा गांधी की सक्रियता से पूर्व आर्य समाज किसी न किसी रूप से प्रत्येक आंदोलन ,महापुरुष, क्रांतिकारी, व्यक्तियों को प्रभावित करता ही रहा था।आगे भी अनेक को प्रभावित करता रहा, विशेष रूप से उनको जो समाज में परिवर्तन चाहते थे।

वैचारिक स्तर,समझ आदि को अन्य स्तरों पर बढ़ाने में बचपन व किशोरावस्था में आर्यसमाज,शांति कुंज व सम्वन्धित व्यक्तियों की समीपता का बड़ा महत्व रहा। हवन आदि कर्मकांडों पर तो हमने ध्यान न दिया लेकिन अनेक कुरीतियों आदि प्रति अपने विचार बनाने का अवसर मिला। हालांकि इसमें कबीर के दोहे, बुद्ध के जीवन की घटनाएं भी सहायक रही। खानदान में हमसे पूर्व पिता जी की किशोरावस्था में भी आर्यसमाज  से समीपता का असर रहा। पिता जी के पिता जी अर्थात हमारे बाबा तभी दुनिया से गुजर गए थे जब जब पिता जी पांच वर्ष के थे।पिता जी को अपने पिता जी का होश(जानकारी या याददाश्त) नहीं रही थी। उनका बचपन, किशोरावस्था व जवानी बड़े संघर्ष में बीती। हालातों, अग्रिम स्तरों पर पहुंचने के लिए गांव का उन्होंने त्याग कर दिया। गांव के त्याग किए बिना उनका काम भी नहीं चल रहा था।और फिर गांव  में खानदान की तामसी प्रवृत्ति , तामसी भोजन, हवन में बलि आदि की परंपरा पिता जी को अखरती रहती थी।ऐसे में गांव त्याग व आर्यसमाज,शान्तिकुंज से समीपता ने अनेक सुधार किए।खानदानी परम्पराओं से दूरी बड़ी।


कालेज जीवन तक हम आर्यसमाज में आना जाना रखते रहे। अन्य संस्थाओं आर एस एस,विद्या भारती,जयगुरुदेव, निरंकारी समाज आदि से सम्बद्ध व्यक्तियों से भी सम्पर्क में हम रहे हैं। ईश्वर एक है,उसका दर्शन एक है,उसकी सत्ता एक है,मानवता एक है,विश्व बंधुत्व एक है....आदि आदि ऐसे में हम अपने 11-12 क्लासेज के दौरान ही एक वैश्विक  आध्यात्मिक साझा मंच की कल्पना करने लगे थे। 'विश्व को आर्य बनाने '- का मतलब हमारे लिए ये था कि मानव समाज को आध्यत्म व मानवता से जोड़ना। विश्व व प्रकृति में कोई समस्या नहीं है,समस्या तो मानव समाज में है। जातिवादी पुरोहित व्यवस्था  से दूर रहने के लिए हमारे लिए आर्य समाज  काफी सहयोगी रहा है।

#अशोकबिन्दु
@विश्व हिंदी आध्यत्म साझा प्रचारक

सोमवार, 14 सितंबर 2020

प्राइवेट अध्यापकों/कर्मचरियों की कोरोना संक्रमण में स्थिति::मुसीबत में जो काम आए वही अपना :: अशोकबिन्दु

 पुरानी कहावत है कि मुसीबत में जो अपने काम आए वहीं अपना है।


मार्च2020 से देश में कोरोना संक्रमण के कारण विभिन्न समीकरण गड़बड़ाए हैं।

प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों व अध्यापकों  की स्थिति  अत्यंत चिंतनीय है। आत्महत्या करने के प्रतिशत में 11प्रतिशत वृद्धि हुई है। इसके लिए हम कोई समस्या नहीं मानते हैं।समस्या सिर्फ नजरिया,मानवीय स्तर की है, समझ की है।


विपत्ति में जो लात मार के बाहर कर दे, इससे ये सिद्ध होता है कि मानव समाज व व्यवस्था में अनेक दोष हैं।ऐसे में वर्तमान मानव समाज व व्यवस्था ढह ही जानी चाहिए जो मुसीबत में फंसे मानवों  के दुख पर मरहम न लगा नमक छिड़कने का कार्य करे।


जब हम खुले मन से दुनिया पर नजर डालते हैं तो हमे सबसे ज्यादा मानव व उसका समाज, तन्त्र ऐसा लगता है कि इसे कुचल दिया जाना चाहिए।जो मानवता का भला न कर सके।


महाव्रत::हमारे पंच यमदूत!

हमारे पांच यम दूत हैं- सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य।


जगत व अपने जीवन की घटनाओं को पूर्ण/योग/all/अल/सम्पूर्णता आदि की नजर से देखना जरूरी है।

हम ऐतिहासिक संगठनात्मक प्रथम पन्थ जैन पन्थ को मानते हैं।हालांकि प्रथम ब्राह्मण आदि ब्राह्मण हम शैव /जोशी/नाथ आदि को मानते हैं।   यहां बात जैन पन्थ की करनी है, जिसके प्रथम महापुरुष हैं- ऋषभ देव। जिन्हें आर्य जातियां भी मानती थी। 



जैन शब्द की उत्तपत्ति जिन शब्द से हुई है जिसका अर्थ है-विजेता। जैन पन्थ व योगियों के लिए अब भी महाव्रत हैं-योग के प्रथम अंग -'यम' के पांच स्तम्भ। यम का अर्थ है संयम जो पांच प्रकार का माना जाता है : (क) अहिंसा, (ख) सत्य, (ग) अस्तेय (चोरी न करना अर्थात्‌ दूसरे के द्रव्य के लिए स्पृहा न रखना) (घ) अपरिग्रह (च) ब्रह्मचर्य ।  इसी भांति नियम के भी पांच प्रकार होते हैं : शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय (मोक्षशास्त्र का अनुशलीन या प्रणव का जप) तथा ईश्वर प्रणिधान (ईश्वर में भक्तिपूर्वक सब कर्मों का समर्पण करना)।




वर्तमान कोरोना संक्रमण का समय किसी ने समुद्र मंथन की भांति माना है, जिसमें जहर ही जहर निकल रहा है। हम कोरोना संक्रमण की शुरुआत से पहले ही -शंकर, महाशंकर का जिक्र कर चुके हैं।इस पर यूट्यूब पर एक वीडियो भी डाला था।

सन2011से2025-30 का समय क्रांतिकारी समय है।


हमारे जीवन,जगत व ब्रह्मांड में स्थूल, सूक्ष्म व कारण तीनों स्तरों पर घटनाएं सक्रिय हैं। हम अभी स्थूल स्तर पर ही सहज नहीं हैं।


विपत्ति में हमारे साथ कौन खड़ा है? जो खड़ा है विपत्ति में हमारे साथ , वही मानवीय है हमारे लिए।उसी प्रकार जो विपत्ति में खड़ा है,हम उसके मददगार हैं तो हम उसके लिए मानवीय हैं। 


घर पर जब विपत्ति आती है तो घर के सभी सदस्यों को धैर्य, सहनशीलता,यथार्थ स्वीकार्य आदि की आवश्यकता होती है। 

14 सितम्बर :: विश्व में हिंदी की स्थिति व भाषा के रूप में भारत के अंदर स्थिति ::अशोकबिन्दु

 दुनिया में जो भी विकसित देश हैं, वहां राजकीय कार्य एक ही भाषा में होते हैं। अतिरिक्त भाषाएं ज्ञान हेतु अध्ययन कराई जाती हैं। विश्व मे हिंदी का प्रचार तेजी से बड़ा है लेकिन भारत के अंदर एक मातृ भाषा के रूप में हिंदी की क्या दशा है?

हम हिंदी अंकों का प्रयोग गाङियों के नम्बर प्लेट में नहीं कर सकते। अन्यत्र भी हिंदी अभी भी दो नम्बर तक सीमित है।