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सोमवार, 14 सितंबर 2020

प्राइवेट अध्यापकों/कर्मचरियों की कोरोना संक्रमण में स्थिति::मुसीबत में जो काम आए वही अपना :: अशोकबिन्दु

 पुरानी कहावत है कि मुसीबत में जो अपने काम आए वहीं अपना है।


मार्च2020 से देश में कोरोना संक्रमण के कारण विभिन्न समीकरण गड़बड़ाए हैं।

प्राइवेट सेक्टर के कर्मचारियों व अध्यापकों  की स्थिति  अत्यंत चिंतनीय है। आत्महत्या करने के प्रतिशत में 11प्रतिशत वृद्धि हुई है। इसके लिए हम कोई समस्या नहीं मानते हैं।समस्या सिर्फ नजरिया,मानवीय स्तर की है, समझ की है।


विपत्ति में जो लात मार के बाहर कर दे, इससे ये सिद्ध होता है कि मानव समाज व व्यवस्था में अनेक दोष हैं।ऐसे में वर्तमान मानव समाज व व्यवस्था ढह ही जानी चाहिए जो मुसीबत में फंसे मानवों  के दुख पर मरहम न लगा नमक छिड़कने का कार्य करे।


जब हम खुले मन से दुनिया पर नजर डालते हैं तो हमे सबसे ज्यादा मानव व उसका समाज, तन्त्र ऐसा लगता है कि इसे कुचल दिया जाना चाहिए।जो मानवता का भला न कर सके।


महाव्रत::हमारे पंच यमदूत!

हमारे पांच यम दूत हैं- सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य।


जगत व अपने जीवन की घटनाओं को पूर्ण/योग/all/अल/सम्पूर्णता आदि की नजर से देखना जरूरी है।

हम ऐतिहासिक संगठनात्मक प्रथम पन्थ जैन पन्थ को मानते हैं।हालांकि प्रथम ब्राह्मण आदि ब्राह्मण हम शैव /जोशी/नाथ आदि को मानते हैं।   यहां बात जैन पन्थ की करनी है, जिसके प्रथम महापुरुष हैं- ऋषभ देव। जिन्हें आर्य जातियां भी मानती थी। 



जैन शब्द की उत्तपत्ति जिन शब्द से हुई है जिसका अर्थ है-विजेता। जैन पन्थ व योगियों के लिए अब भी महाव्रत हैं-योग के प्रथम अंग -'यम' के पांच स्तम्भ। यम का अर्थ है संयम जो पांच प्रकार का माना जाता है : (क) अहिंसा, (ख) सत्य, (ग) अस्तेय (चोरी न करना अर्थात्‌ दूसरे के द्रव्य के लिए स्पृहा न रखना) (घ) अपरिग्रह (च) ब्रह्मचर्य ।  इसी भांति नियम के भी पांच प्रकार होते हैं : शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय (मोक्षशास्त्र का अनुशलीन या प्रणव का जप) तथा ईश्वर प्रणिधान (ईश्वर में भक्तिपूर्वक सब कर्मों का समर्पण करना)।




वर्तमान कोरोना संक्रमण का समय किसी ने समुद्र मंथन की भांति माना है, जिसमें जहर ही जहर निकल रहा है। हम कोरोना संक्रमण की शुरुआत से पहले ही -शंकर, महाशंकर का जिक्र कर चुके हैं।इस पर यूट्यूब पर एक वीडियो भी डाला था।

सन2011से2025-30 का समय क्रांतिकारी समय है।


हमारे जीवन,जगत व ब्रह्मांड में स्थूल, सूक्ष्म व कारण तीनों स्तरों पर घटनाएं सक्रिय हैं। हम अभी स्थूल स्तर पर ही सहज नहीं हैं।


विपत्ति में हमारे साथ कौन खड़ा है? जो खड़ा है विपत्ति में हमारे साथ , वही मानवीय है हमारे लिए।उसी प्रकार जो विपत्ति में खड़ा है,हम उसके मददगार हैं तो हम उसके लिए मानवीय हैं। 


घर पर जब विपत्ति आती है तो घर के सभी सदस्यों को धैर्य, सहनशीलता,यथार्थ स्वीकार्य आदि की आवश्यकता होती है। 

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