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शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

काँग्रेस के 125 वर्ष:आज��दी के बाद चरित्र

सन 1885 ई0 काँग्रेस की स्थापना किस उद्देश्य से की गयी थी?स्थापना का उद्देश्य क्या दर्शन व क्या नियति रखता था ?क्या इसके कारण मेँ सन 1857 ई0 की क्रान्ति जैसी भावी क्रान्ति को पैदा करना न था.



देश के आजादी के बाद गांधी जी कांग्रेस को भंग कर देना चाहते थे लेकिन कांग्रेस के प्राण तो कहीँ ओर जगह टिके थे.किसी ने क्या यह ठीक नहीँ कहा कि सौ साल बाद लोग कांग्रेस को गाली देँगे.

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

ऊपर ईश्रू नीचे मिश्रू !

इस जगत मेँ श्रेष्ठ प्राणी है-मानव, मानव मेँ भी ब्राह्मण लेकिन भोगवाद,निजी स्वार्थ,धर्मान्धता,आदि ने मानव को मानव की नजर मेँ ही ब्राह्मण को ब्राह्मण की नजर मेँ ही नीचा बना दिया.समाजशास्त्रियोँ की प्रयोगशाला होता है-समाज.समाज मेँ मेरे अनेक प्रयोग व अन्वेषण चलते रहते हैँ.मेरा एक विषय है-'हिन्दू समाज की एकता मेँ तथाकथित ब्राह्मण जाति की भूमिका.'अभी कुछ वर्ष पहले पुरुषरामपुरी जलालावाद (शाहजहाँपुर)मेँ पुरुषराम की प्रतिमा के स्थापना पर्व पर आये शंकराचार्य ने कहा कि यदि 20 प्रतिशत ब्राह्मण ही जाग जाएं तो देश का ही नहीँ दुनिया का उद्धार हो जाए.




मैँ किसी भी परिवार,जाति,सम्प्रदाय,देश,आदि के खिलाफ नहीँ हूँ.यहाँ भ्रम,शंका,अफवाह आदि मेँ लोगोँ का चरित्र ही बदल डाला जाता है.एक ब्राह्मण जाति का व्यक्ति मुझसे कहता है कि आप तो ब्राह्मणोँ के विरोधी हैँ?उसकी कुछ ब्राह्मण सुन उसका ही पक्ष लेते हैँ.मेरे मन मेँ क्या है?वे क्या जाने?हम बचपन से ही झूठ बर्दाश्त करते आये हैँ.हर व्यक्ति भ्रम ,शंका मेँ जीता है.



व्यक्ति व देश के पतन के लिए कौन से कारण उत्तरदायी होते हैँ?इस पर ईमानदारी से चिन्तन आवश्यक है.घर या देश के विखराव के लिए वास्तव मेँ नेतृत्व ही दोषी रहा है.व्यक्तिगत नजरिये से जब परिवार देश व समाज के हित का प्रदर्शन होगा तो क्या होगा?दिखावी झूठी शान के लिए तो सब कुछ करने लिए तैयार रहे है लेकिन व्यक्ति के दर्द पर मरहम के नाम पर दर्द ही दिया गया.



रोज मर्रे की जिन्दगी मेँ हिन्दू हिन्दू के नाम हिन्दू के साथ क्या करता है ? 13 सौ वर्ष पहले देश पर कौन सी जातियां थीँ?इन 13 सौ वर्षोँ मेँ देश व हिन्दू समाज के बीच जो समीकरण बने ,इसके लिए कौन दोषी है?मैँ हिन्दू सवर्णोँ को दोषी मानता हूँ.अपने घर या जाति या सम्प्रदाय या देश से ऊब कर या परेशान होकर दूर चला गया तो क्या यह नेतृत्व की कमी नहीँ ? नेतृत्व एक सभी को एक सूत्र मेँ पिरोने मेँ असफल क्योँ रहा? वह तो देश के आजादी के वक्त सरदार पटेल की प्रशासनिक क्षमता ने देश को वर्तमान स्वरूप दे दिलवा दिया नहीँ तो यह देश अनेक देशोँ मेँ विभक्त होता.हिन्दू का मन अनेक द्वेषभावनाओँ व मतभेदो से घिरा है ,वास्तव मेँ उसमेँ समाज को एकसूत्र मेँ पिरोने की क्षमता से दूर होता जा रहा है.कुछ विशेषज्ञ कह ही रहे हैँ कि देश के हालात न सुधरे तो देश मेँ कुछ भी हो सकता है.असन्तुष्टि व द्वेषभावना का परिणाम क्या हो सकता है?विहिप,आर एस एस,हिन्दू महासभा,आदि ठीक ही कहते हैँ कि हिन्दू जगा तो देश जगा लेकिन कैसे?इसमेँ सवर्णोँ की क्या भूमिका विशेष कर ब्राह्मणोँ की?उन्हेँ अपने आचरणोँ दलितोँ पिछड़ोँ का दिल जीतना ही चाहिए? सामाजिक एकता के लिए उन्हेँ पहल करना ही चाहिए.यह अच्छा है कि भावी कल्कि अवतार ब्राहमण पुत्री से होगा लेकिन इससे पूर्व भी समाज के उद्धार के लिए प्रयत्न होने चाहिए.



यह अच्छा है -"ऊपर ईश्रू नीचे मिश्रू"
जैसा की मै कुछ ब्राह्मणोँ के मुख सुनता आया हूँ.




अब से पूर्व का इतिहास खून से सना है.जिन(इन्द्रियोँ को जीतने वाले)अर्थात जैनी , बौद्धोँ,मसीहोँ,आदि का धर्म ही वास्तव मेँ धर्म है.कम से कम प्रदर्शन मेँ तो है ही.भड़कने व भड़काने वालोँ से
दुनिया को अल्हा(यल्ह) बचाए.


किसी ने कहा है कि पश्चिम की नस्लेँ भारतीय नस्लोँ से बेहतर होती हैँ.पश्चिम के पुरोहितोँ(पादरियोँ )ने सेवा की हमारे पुरोहितोँ ने सेवा करवायी,उन्होँने दुर्गम क्षेत्रोँ मेँ जा कर भूखोँ नंगोँ को गले लगाया,जिन असाध्य रोगियोँ को हम अपने गांव व घर से बाहर निकालते गये वे उन्हेँ गले लगाते गये,आदि आदि.हमारे एक मिलने वाले कहते हैँ कि हमारे अवतारोँ पुरखोँ ने खून की कोई कीमत नहीँ समझी ,हाँ गंगा के जल को जरुर महत्व दे दिया लेकिन उसको भी स्वच्छ नहीँ रख सके.मैँ भारत मेँ आक्रमणोँ का इतिहास हिन्दुओँ के कमजोरियोँ का इतिहास मानता हूँ.आतंकवादियोँ,नक्सलियोँ,आदि अलगाववादियोँ का इतिहास हिन्दू कमजरियोँ का इतिहास मानता हूँ .मैँ आक्रमणकारियोँ आतंकवादियोँ नक्सलियोँ आदि को दोषी नहीँ मानता,उनका जो लक्ष्य है वे उसके हिसाब से चल रहे है लेकिन हम सब का क्या लक्ष्य है?लोगोँ को अपने जोड़ना कि अपने से तोड़ना ? देश को अपने इतिहास पर पुनर्विचार कर कमजोरियोँ को जान उनकोँ दूर करने की आवश्यकता है.

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

किसान दिवस :किसान दुर��दशा

23दिसम्बर को किसान दिवस!


कार्ल मार्क्स ने कहा था कि दुनिया को बर्बाद करने वाली दो ही शक्तियाँ हैँ-पूँजीवादी व सत्तावादी.ऐसे मेँ श्रम के आधार पर संसाधनोँ का वितरण कैसे हो ? श्रमिक व किसान वर्गोँ को लेकर राजनीति तो खूब होती रही है,सड़केँ जाम होती रही हैँ लेकिन मौके पर सब अंगूठा दिखाते रहे हैँ.बरेली मण्डल मेँ किसान नेता वी एम सिँह की प्रशन्सा करने वालोँ की कमी नहीँ है लेकिन इलेक्शन मेँ सभी जाति बिरादरी ,मजहब,आदि मेँ जनता बंट जाती है. वास्तव मेँ जनता अपने निजी स्वार्थ मेँ सब कुछ भूल जाती है.



किसानोँ के हित मेँ आखिर सम्पूर्ण क्रान्ति कैसे सम्भव हो ?किसानोँ के हित मेँ अभी काफी कुछ होना बाकी है.जिसके लिए कुछ कर गुजरने वालोँ की कमी नहीँ है लेकिन उनके साथ जनता खड़ी नहीँ दिखती है.जनता तो बस सत्ता के पक्ष मेँ या विपक्ष मेँ खड़ी होती है.पक्ष व विपक्ष मेँ कोई फर्क नहीँ दिखता.विपक्ष जिस बात को लेकर बवाल मचाता है ,वह सत्ता मेँ आने पर उसी को खुद बढ़ावा देता है.पक्ष विपक्ष की राजनीति से हट कर जो नेता किसानोँ आदि की समस्याओँ पर खड़े होना चाहते हैँ उनके साथ जनता त्याग व साहस के साथ खड़ी नहीँ होती. किसान जनता गाँव मेँ निवास करती है,जहाँ का राजनैतिक वातावरण अब भी काफी गन्दा है.जहाँ ईमानदारी से एक जुट हो जनता अपने गाँव के हित मेँ तक सामञ्जस्य नहीँ बैठा पाती.

बुधवार, 8 दिसंबर 2010

कथा:परिदंश

सरिता एक तलाकशुदा युवती थी.जो कि बेसिक स्कूल मेँ अध्यापिका थी.वह स्वयं जिला मुख्यालय बरेली मेँ रहती थी और अपने चार वर्षीय पुत्र को नबाबगंज मेँ अपने माता पिता के पास छोँड़ रखा था.




नबाबगंज स्थित मकान मेँ प्रवेश करते हुए वह बोली-"अब तो रुपया ही काम आता है.मैँ तो रिश्तेदारोँ से कोई मतलब नहीँ रखूँगी.वे अपोजिट लोगोँ के ज्यादा काम आते हैँ."


अम्बेडकर पुण्य तिथि के कारण अवकाश होने के कारण मैँ भी आया हुआ था.सरिता मेरे पिता जी की सबसे छोटी सन्तान व मेरी बहिन थी.कुछ देर बाद मेरा छोटा भाई अवनीश भी मोटरसाईकिल से आ पहुँचा था.


सरिता बोली कि मैँ तो अब एस सी कास्ट मेँ शादी करूगी,फिर मैँ उन पर दहेज एक्ट लगवाऊँगी.


अवनीश बोला कि लड़का है, लड़के की परवरिश करो और.....



"अरे ,इसका क्या भरोसा.मुझे अपना जीवन बर्बाद थोड़ी ही करना."


मैँ बोल दिया "भविष्य के प्रति शंकाएँ वर्तमान मेँ भी शान्ति से जिया नहीँ जाता.ईश्वर प्रति विश्वास नहीँ.बस,शंकाएँ भ्रम अविश्वास निष्ठुरता निज स्वार्थ कटु वचन मतभेद और....."



" ईश्वर ने क्या किया देखा नहीँ पिछले दिनोँ ....."



" ईश्वर भी क्या करे ?ईश्वर ने दिमाग दिया दिल दिया उसका जब उपयोग नहीँ करोगे तो क्या होगा?जिन घटनाओँ के कारण उपस्थित होँगे वही घटनाएँ घटेँगी.अविश्वास कटुवचन भ्रम शंका आदि के परिणाम क्या सब अच्छे ही घटेँगे?"



जहाँ व्यक्ति की कोई अहमियत नहीँ ,मन अशान्त व निष्ठुर है,व्यक्ति की आय कपड़े भोजन के स्तर की ही सिर्फ व्यलू है तो क्या होगा.


जब परिवार का मुखिया ही ऐसी परिस्थितियाँ बनाए हो तो .....?!मुखिया होने के दायित्व न निभा कर द्वेषभावना मनमानी कायरता अपनी धुन मेँ जीने का परिणाम क्या होगा?ऐसे मेँ यदि बाहरी व्यक्ति फायदा उठाए या परिवार को बिखेरने का काम करे तो इस पहले परिवार का ही दोष है.परिवार के सदस्य यदि मिलजुल कर प्रेम से रहेँ तो किसी की क्या मजाल परिवार पर दृष्टिपात करने की.



11दिसम्बर,ओशो जन्म दिवस. मै अब बिलसण्डा मेँ अपने कमरे पर था.रात्रि के दो बज रहे थे.कम्पटीशन की तैयारी क्या?अशान्त मन क्या प्रेरणा दे सकता है?मैने नेट हिन्दी की किताब एक तरफ रख दी और गीता पुस्तक उठा ली.



परिवार के अन्दर माता पिता जब अशान्ति मनमानी द्वेष भावना आदि परोसेँ तो क्या हो?रोटी कपड़ा मकान के सिवा भी और कुछ चाहिए.



*** ***




अब परिवार के अन्दर विवाह करके लायी गयीँ बहुएं भी पारिवारिक अशान्ति का कारण बनी हुई हैँ.हमेँ देखने को मिलता है कि बहुओँ मेँ यह भावना खत्म होती जा रही है कि मैँ जिस परिवार मेँ व्याह कर आयी हूँ,अब मेरा परिवार है.यदि कुछ बुरा भी लगता है तो उसे मैँ प्रेम से धीरे धीरे बदलूँगी यदि बदल भी न पायी तब भी कोई बात नहीँ.मैँ तो अब आयी हूँ इस परिवार मेँ.एक दम सब कुछ बदलने को रहा और फिर मैँ स्त्री नहीँ जो परिवार को अपने हिसाब से अपने व्यवहारोँ के माध्यम से बाँध न सकूँ.दहेज वहेज एक्ट को अपना हथियार बनाना हमारी कमजोरी को दर्शाता है.






परिवार के सदस्योँ मेँ भी सामञ्जस्य न बैठा पाने की कमी हो सकती है.परिवार का मतलब भी क्या होता है?सामञ्जस्य के बिना परिवार क्या परिवार?लेकिन जब माता पिता ही किसी के साथ न्याय न कर पाएं और मनमानी से ग्रस्त होँ तो कोई परिजन किसी बाहरी का समर्थन ले तो इसमेँ क्या दोष?यदि दोष है तो पहले परिवार के मुखिया का.



सोँचते सोँचते सुबह के चार बज गये.मकान के बाहर कुछ लोगोँ ने मुझे आवाज दी.मैँ उनके साथ इण्टर कालेज मेँ जा पहुँचा जहाँ आर एस एस के स्वयंसेवकोँ का कार्यशाला शिविर आर एस एस के सौ वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य मेँ लगा था.

मंगलवार, 7 दिसंबर 2010

11दिसम्बर1931:ओशो जन्म

"अन्यांश पटेल तुम कांग्रेसी हो गये.इससे तुम्हारा कितना उद्धार होगा?"



" अन्या ! तुम भी,अभी तक मैने तुम जैसी जवान लड़की नहीँ देखी.अभी से आत्मसाक्षात्कार के चक्कर मेँ पढ़ गयीँ. यह तुम्हारा दोष नहीँ,स्वामी सागर मग्न से तुम्हारे मोह का परिणाम है.सारी दुनिया उसे पागल मानती है,तू जैसे कुछ लोग ही उसके चक्कर मेँ पड़े हैँ."




"तुम्हारे कांग्रेसी ब्राह्मण यदि जातिपाति - छुआ छूत आदि का विरोध करेँ तो मैँ भी कांग्रेसी हो जाऊँ."



"कांग्रेसी ब्राह्मण कोई लिए थोड़े ही है?"



"तो ऐसे कांग्रेसियोँ से कोई मतलब नहीँ."





" गोखले के'भारत सेवक समाज ' से तुम जुड़ी हो ,यह इतिहास मेँ गुम हो जाएगा."




"जाओ तुम गांधी के सविनय अवज्ञा आन्दोलन मेँ अहुतियाँ लगाओ जाकर.(फिर मुस्कुराना)"



12नवम्बर 1930 को प्रथम गोलमेज सम्मेलन प्रारम्भ हुआ.दूसरी ओर कुचबाड़ा गाँव के समीप जंगल मेँ स्थित एक मठ मेँ स्वामी सागर मग्न अन्या भारती को बता रहे थे कि वह अब इस दुनिया मेँ आने वाला है. 10या11दिसम्बर तक वह आ जाएगा.



अन्या भारती जब चली गयी तो एक अधेड़ साधु बोला -


"आप इन शूद्र जाति के लोगोँ को मुँह क्योँ लगाते हो ? "



"आप शूद्र हो कि अन्या ?आप जन्म जात ब्राह्मण हो कर भी शूद्रता का प्रदर्शन करते हो, आप ईमानदारी से अन्वेषण करो कि अन्या क्या शूद्रता का कभी प्रदर्शन किया है?और अपने मन मेँ जरा झांको कितनी शूद्रता भरे पड़े हो?वह अभी तक हर स्तर पर खरी उतरी है."



11दिसम्बर 1931को मध्य प्रदेश के एक गाँव मेँ एक बालक का जन्म हुआ.एक पागल बाबा उसके मोहल्ले मेँ तथा स्वामी सागर मग्न के पास आने जाने लगा .



पहला गोलमेज सम्मेलन 19 जनवरी को समाप्त हो चुका था.जिसकी असफलता का श्रेय हिन्दू महासभा व सिक्ख प्रतिनिधियोँ दिया जा रहा था.



सम्मेलन की समाप्ति पर प्रधानमन्त्री द्वारा घोषणा मेँ कहा गया कि भारत मेँ अखिल भारतीय संघ को स्थापित किया जाए.भारतीय शासन का उत्तरदायित्व विधान सभाओँ को दिया जाएगा,साथ ही अल्पसंख्यकोँ के हितोँ की सुरक्षा हेतु उचित व्यवस्था की जाएगी.प्रतिरक्षा,विदेश विभाग तथा संकटकालीन अधिकारोँ को छोड़ कर अन्य सभी मामलोँ मेँ केन्द्र की कार्यकारिणी को व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी बनाया जाएगा.प्रान्तो मेँ पूर्ण उत्तरदायी शासन की स्थापना की जाएगी.साम्प्रदायिक समस्या के सम्बन्ध मेँ आशा व्यक्त की गई कि विभिन्न सम्प्रदाय इसका निवारण स्वयं कर लेँगे .



"हूँ,सम्प्रदाय स्वयं निवारण कर लेँगे?"


एक अन्य युवती अन्या भारती से बोली-" अन्या! दुनिया को एक ऐसे ग्रन्थ की आवश्यकता है जिसमेँ विश्व के सभी सम्प्रदायोँ के समान तत्व व महापुरुष शामिल होँ ."





"स्वामी जी कहते हैँ कि कुचबाड़ा मेँ जो नवजात शिशु है न,उसके प्रवचनोँ का संकलन कुछ ऐसा ही होगा"



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शनिवार, 4 दिसंबर 2010

भीम राव अम्बेडकर पुण��य तिथि

ब्राह्मण मत के ग्रन्थोँ मेँ ही कहीँ लिखा गया है कि जन्म से सभी शूद्र होते हैँ.संस्कार ही उन्हेँ आगे बढ़ाते हैँ.भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन व संवैधानिक विकास मेँ भीमराव अम्बेडकर की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी.अपने जीवन के अन्तिम समय मेँ बौद्ध मत स्वीकार करते हुए उन्होने कहा था कि मैँ सनातन संस्कृति का नुकसान नहीँ करना चाहता.वे भारतीय जाति प्रथा,छुआ छूत,आदि अन्धविश्वासोँ के खिलाफ जीवनपर्यन्त संघर्ष करते रहे थे.आजादी के बाद भी देश के विकास मेँ उनकी अग्रणी भूमिका थी लेकिन भारतीय समाजिकता का दंश कहेँ या अन्य पूरे मानवीय समाज के लिए श्रेष्ठ चिन्तन व व्यवहार रखने वाले वे समाज की कुछ जातियोँ मेँ सिमट कर रह गये और वह भी कुछ लोगोँ के बीच.कौन महापुरुषोँ के रास्ते पर चलना चाहता हैं,सिर्फ वाद चलाने के सिवा.

गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

03दिसम्बर1889ई0:खुदी राम ��ोस जन्म दिवस /भावी क��रान्ति की सम्भावनाएं

अहिँसा को लेकर कब तक चला जा सकता है?यह ठीक है कि अहिँसा ही धर्म है व हिँसक प्रवृतियाँ प्राणियोँ की अपूर्णता को दर्शाती हैँ.यदि सामने वाला हमारी अहिँसक प्रवृत्तियोँ से युक्त व्यवहारोँ से अपने मनमानी पूर्ण व्यवहार मेँ चेँजिँग नहीँ लाता तो......?यह हमारी अपूर्णता ही है.



आज का दिन खुदीराम बोस के चिन्तन मेँ !



03दिसम्बर 1889 ई0 को उनका जन्म मेदिनीपुर जिले के बहुबेनी ग्राम मेँ हुआ था. उनके पिता का नाम त्र्यैलोक्यनाथ बसु था माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था. पिता जी तहसीलदार थे.छह वर्ष की अवस्था मेँ ही अपने माता पिता का विछोह सहना पड़ा. देशभक्ति का भाव बाल्यावस्था से ही जागृत हो गया था.आनन्दमठ उपन्यास के रचयिता बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय मेदिनीपुर मेँ ही शासकीय सेवा मेँ थे.इस उपन्यास का गीत वन्देमातरम बड़ा लोकप्रिय हुआ था.जिससे उन्हेँ प्रेरणा मिली.देशभक्त विपिन चन्द्र पाल ने वन्देमातरम पत्रिका का प्रकाशन किया व अरविन्द घोष इसके
संपादक नियुक्त हुए.1907मेँ अंग्रेज सरकार ने वन्देमातरम पत्रिका पर राजद्रोह का अभियोग लगाया.
ऐसे मेँ खुदीराम बोस सामने आये.
क्रान्तिकारी सुशील कुमार सेन पकड़े गए और उन्हेँ न्यायाधीश किँग्जफोर्ड ने 15 कोड़े मारने की सजा दी.क्रान्तिकारी दल ने किँग्जफोर्ड से बदला लेने का निश्चय किया आखिर क्योँ....?इसलिए क्योँकि अंग्रेज विदेशी थे या दूसरी जाति के थे?क्या इसी कारण.....?यदि नहीँ तो ......?अब क्या सब कुछ ठीक है?यदि नहीँ तो ....?उनके खिलाफ हिँसक कार्यवाही क्योँ नहीँ?क्या कहा,कानून अपने हाथ मेँ क्योँ लेँ ?तब तो यह पक्षपात हुआ?भूल गये गीता को अपने धर्म या जेहाद के पथ पर अपना कोई नहीँ होता.यदि देश से कुप्रबन्धन को मिटाने के लिए हिँसक कार्यवाहियोँ को आप कानून विरोधी मानते हैँ तो .....?क्रान्तिकारियोँ का समर्थन क्योँ?हूँ!मुगल तो विदेशी थे अंग्रेज तो विदेशी थे?तो कहाँ चली गयी वसुधैव कुटुम्कम की भावना?स्वदेशी विदेशी की भावना क्या ठीक है?इसलिए मैने अपने अप्रकाशित उपन्यासोँ मेँ मजबूरन आतंकवादियोँ व नक्सलियोँ से कहलवाया है कि तुम लोगोँ से अच्छे तो हम गीता(कुरूशान) के प्रशन्सक हैँ और.....?




इसलिए मेँ कहता हूँ गांधीगिरी को स्वीकारो या फिर......मैँ तो गांधीगिरी का समर्थन करता हूँ.तुम छोँड़ो जबरदस्ती व हिँसा या फिर यहाँ भी पक्षपात न करो,चाहे कोई विदेशी या दूसरी जाति का हो या न
कुप्रबन्धन व भ्रष्टाचार के खिलाफ हथियार उठा लो.नहीँ....तो गांधी को स्वीकार कर लो और कहना छोँड़ दो कि मजबूरी नाम गांधी.छोँड़ोँ उन महापुरुषोँ को जिनके हाथ खून से सने हैँ.आ जाओ मेरे साथ....जैन, बुद्ध सुकरात, ईसा ,गांधी ,ओशो, आदि के पथ पर.



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