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शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

ऊपर ईश्रू नीचे मिश्रू !

इस जगत मेँ श्रेष्ठ प्राणी है-मानव, मानव मेँ भी ब्राह्मण लेकिन भोगवाद,निजी स्वार्थ,धर्मान्धता,आदि ने मानव को मानव की नजर मेँ ही ब्राह्मण को ब्राह्मण की नजर मेँ ही नीचा बना दिया.समाजशास्त्रियोँ की प्रयोगशाला होता है-समाज.समाज मेँ मेरे अनेक प्रयोग व अन्वेषण चलते रहते हैँ.मेरा एक विषय है-'हिन्दू समाज की एकता मेँ तथाकथित ब्राह्मण जाति की भूमिका.'अभी कुछ वर्ष पहले पुरुषरामपुरी जलालावाद (शाहजहाँपुर)मेँ पुरुषराम की प्रतिमा के स्थापना पर्व पर आये शंकराचार्य ने कहा कि यदि 20 प्रतिशत ब्राह्मण ही जाग जाएं तो देश का ही नहीँ दुनिया का उद्धार हो जाए.




मैँ किसी भी परिवार,जाति,सम्प्रदाय,देश,आदि के खिलाफ नहीँ हूँ.यहाँ भ्रम,शंका,अफवाह आदि मेँ लोगोँ का चरित्र ही बदल डाला जाता है.एक ब्राह्मण जाति का व्यक्ति मुझसे कहता है कि आप तो ब्राह्मणोँ के विरोधी हैँ?उसकी कुछ ब्राह्मण सुन उसका ही पक्ष लेते हैँ.मेरे मन मेँ क्या है?वे क्या जाने?हम बचपन से ही झूठ बर्दाश्त करते आये हैँ.हर व्यक्ति भ्रम ,शंका मेँ जीता है.



व्यक्ति व देश के पतन के लिए कौन से कारण उत्तरदायी होते हैँ?इस पर ईमानदारी से चिन्तन आवश्यक है.घर या देश के विखराव के लिए वास्तव मेँ नेतृत्व ही दोषी रहा है.व्यक्तिगत नजरिये से जब परिवार देश व समाज के हित का प्रदर्शन होगा तो क्या होगा?दिखावी झूठी शान के लिए तो सब कुछ करने लिए तैयार रहे है लेकिन व्यक्ति के दर्द पर मरहम के नाम पर दर्द ही दिया गया.



रोज मर्रे की जिन्दगी मेँ हिन्दू हिन्दू के नाम हिन्दू के साथ क्या करता है ? 13 सौ वर्ष पहले देश पर कौन सी जातियां थीँ?इन 13 सौ वर्षोँ मेँ देश व हिन्दू समाज के बीच जो समीकरण बने ,इसके लिए कौन दोषी है?मैँ हिन्दू सवर्णोँ को दोषी मानता हूँ.अपने घर या जाति या सम्प्रदाय या देश से ऊब कर या परेशान होकर दूर चला गया तो क्या यह नेतृत्व की कमी नहीँ ? नेतृत्व एक सभी को एक सूत्र मेँ पिरोने मेँ असफल क्योँ रहा? वह तो देश के आजादी के वक्त सरदार पटेल की प्रशासनिक क्षमता ने देश को वर्तमान स्वरूप दे दिलवा दिया नहीँ तो यह देश अनेक देशोँ मेँ विभक्त होता.हिन्दू का मन अनेक द्वेषभावनाओँ व मतभेदो से घिरा है ,वास्तव मेँ उसमेँ समाज को एकसूत्र मेँ पिरोने की क्षमता से दूर होता जा रहा है.कुछ विशेषज्ञ कह ही रहे हैँ कि देश के हालात न सुधरे तो देश मेँ कुछ भी हो सकता है.असन्तुष्टि व द्वेषभावना का परिणाम क्या हो सकता है?विहिप,आर एस एस,हिन्दू महासभा,आदि ठीक ही कहते हैँ कि हिन्दू जगा तो देश जगा लेकिन कैसे?इसमेँ सवर्णोँ की क्या भूमिका विशेष कर ब्राह्मणोँ की?उन्हेँ अपने आचरणोँ दलितोँ पिछड़ोँ का दिल जीतना ही चाहिए? सामाजिक एकता के लिए उन्हेँ पहल करना ही चाहिए.यह अच्छा है कि भावी कल्कि अवतार ब्राहमण पुत्री से होगा लेकिन इससे पूर्व भी समाज के उद्धार के लिए प्रयत्न होने चाहिए.



यह अच्छा है -"ऊपर ईश्रू नीचे मिश्रू"
जैसा की मै कुछ ब्राह्मणोँ के मुख सुनता आया हूँ.




अब से पूर्व का इतिहास खून से सना है.जिन(इन्द्रियोँ को जीतने वाले)अर्थात जैनी , बौद्धोँ,मसीहोँ,आदि का धर्म ही वास्तव मेँ धर्म है.कम से कम प्रदर्शन मेँ तो है ही.भड़कने व भड़काने वालोँ से
दुनिया को अल्हा(यल्ह) बचाए.


किसी ने कहा है कि पश्चिम की नस्लेँ भारतीय नस्लोँ से बेहतर होती हैँ.पश्चिम के पुरोहितोँ(पादरियोँ )ने सेवा की हमारे पुरोहितोँ ने सेवा करवायी,उन्होँने दुर्गम क्षेत्रोँ मेँ जा कर भूखोँ नंगोँ को गले लगाया,जिन असाध्य रोगियोँ को हम अपने गांव व घर से बाहर निकालते गये वे उन्हेँ गले लगाते गये,आदि आदि.हमारे एक मिलने वाले कहते हैँ कि हमारे अवतारोँ पुरखोँ ने खून की कोई कीमत नहीँ समझी ,हाँ गंगा के जल को जरुर महत्व दे दिया लेकिन उसको भी स्वच्छ नहीँ रख सके.मैँ भारत मेँ आक्रमणोँ का इतिहास हिन्दुओँ के कमजोरियोँ का इतिहास मानता हूँ.आतंकवादियोँ,नक्सलियोँ,आदि अलगाववादियोँ का इतिहास हिन्दू कमजरियोँ का इतिहास मानता हूँ .मैँ आक्रमणकारियोँ आतंकवादियोँ नक्सलियोँ आदि को दोषी नहीँ मानता,उनका जो लक्ष्य है वे उसके हिसाब से चल रहे है लेकिन हम सब का क्या लक्ष्य है?लोगोँ को अपने जोड़ना कि अपने से तोड़ना ? देश को अपने इतिहास पर पुनर्विचार कर कमजोरियोँ को जान उनकोँ दूर करने की आवश्यकता है.

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