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बुधवार, 15 दिसंबर 2010

किसान दिवस :किसान दुर��दशा

23दिसम्बर को किसान दिवस!


कार्ल मार्क्स ने कहा था कि दुनिया को बर्बाद करने वाली दो ही शक्तियाँ हैँ-पूँजीवादी व सत्तावादी.ऐसे मेँ श्रम के आधार पर संसाधनोँ का वितरण कैसे हो ? श्रमिक व किसान वर्गोँ को लेकर राजनीति तो खूब होती रही है,सड़केँ जाम होती रही हैँ लेकिन मौके पर सब अंगूठा दिखाते रहे हैँ.बरेली मण्डल मेँ किसान नेता वी एम सिँह की प्रशन्सा करने वालोँ की कमी नहीँ है लेकिन इलेक्शन मेँ सभी जाति बिरादरी ,मजहब,आदि मेँ जनता बंट जाती है. वास्तव मेँ जनता अपने निजी स्वार्थ मेँ सब कुछ भूल जाती है.



किसानोँ के हित मेँ आखिर सम्पूर्ण क्रान्ति कैसे सम्भव हो ?किसानोँ के हित मेँ अभी काफी कुछ होना बाकी है.जिसके लिए कुछ कर गुजरने वालोँ की कमी नहीँ है लेकिन उनके साथ जनता खड़ी नहीँ दिखती है.जनता तो बस सत्ता के पक्ष मेँ या विपक्ष मेँ खड़ी होती है.पक्ष व विपक्ष मेँ कोई फर्क नहीँ दिखता.विपक्ष जिस बात को लेकर बवाल मचाता है ,वह सत्ता मेँ आने पर उसी को खुद बढ़ावा देता है.पक्ष विपक्ष की राजनीति से हट कर जो नेता किसानोँ आदि की समस्याओँ पर खड़े होना चाहते हैँ उनके साथ जनता त्याग व साहस के साथ खड़ी नहीँ होती. किसान जनता गाँव मेँ निवास करती है,जहाँ का राजनैतिक वातावरण अब भी काफी गन्दा है.जहाँ ईमानदारी से एक जुट हो जनता अपने गाँव के हित मेँ तक सामञ्जस्य नहीँ बैठा पाती.

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