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सोमवार, 31 जनवरी 2011

करमापा पर दृष्टि से प��ले...?

मुलाकात, सम्वाद, सहयोग ,सेवा, आदि मानवता के लिए अति आवश्यक है.मानवता से बढ़कर और क्या ? और फिर अपने मिशन को आगे बढ़ाने के लिए सहयोग की आवश्यकता पड़ती ही है.दान व चन्दा का आदिकाल से महत्व रहा है.हाँ,यदि दान व चन्दा का हेतु मानवता के हित मेँ न हो कर किसी देश जाति ,पन्थ, विशेष आदि के व्यक्तियोँ के विरोध मेँ हो तो चिन्तनीय है.


पुलिस सूत्रोँ के मुताबिक धर्मशाला से 10किलोमीटर दूर सिद्धबाड़ी मेँ तिब्बती धर्मगुरु करमापा उग्येन त्रिनले दोरजी के मठ मेँ शुक्रवार रात को उनसे पूछताछ शुरु की गई . तिब्बती बौद्ध अनुयायी करमापा को करमा काग्यू का 17 वां अवतार मानते हैँ.वह दलाई लामा व पांचेन लामा के बाद के तीसरे सर्वोच्च संत माने जाते हैँ.करमापा के अस्थायी निवास से मिली सात करोड़ रुपए मूल्य की विदेशी और भारतीय मुद्रा व ऊना पुलिस द्वारा मैहतपुर मेँ गाड़ी से बरामद एक करोड़ रुपए के सिलसिले मेँ करमापा पुलिस ने पचास प्रश्न पूछे.करमापा ने पुलिस को बताया कि उन्हेँ यह रकम दान मेँ मिली है.मठ के प्रतिनिधि करमा तोपेन ने भी कहा कि करमापा का चीन से कोई संबंध नहीं है.देहरादून से शनिवार सुबह धर्मशाला पहुंचे गोंपो छेरिंग और उनकी छोडन ने अपने पहुंचने की सूचना पुलिस को दी तो पुलिस ने तुरंत गोंपो छेरिंग को हिरासत मेँ ले लिया.छेरिंग ने बताया कि कमरे मेँ रखी रकम करमापा के हाल ही के भारत भ्रमण के दौरान एकत्रित चढावा है.इसकी गिनती की जानी थी.



महत्वपूर्ण यह नहीँ कि करमापा के पास से पायी गयी मुद्रा की राशि क्या है?महत्वपूर्ण यह है कि इस मुद्रा का इस्तेमाल कैसे और कहाँ पर होना था.यदि प्रश्न यह है कि यह मुद्रा जिनसे प्राप्त हुई है वे कैसे लोग हैँ?तो फिर.........!?तो फिर देश के अन्दर मौजूद मिलावटखोरोँ, नकली औषधि विक्रेताओँ ,आदि के खिलाफ कार्यवाही कर उनसे चन्दा व दान लेने वालोँ पर कार्यवाही क्योँ नहीँ? देश भी स्वयं मेँ क्या हैँ?जनसंख्या से विहीन देश की भी क्या कल्पना की जा सकती है?जो देश की जनता के स्वास्थ्य व भविष्य के साथ खिलवाड़ करने मेँ लगे हैँ वे देशद्रोही क्योँ नहीँ?यदि नहीँ,तो 'देशद्रोही 'की परिभाषा पर पुनर्विचार की आवश्यकता है.

शनिवार, 29 जनवरी 2011

क्या स्वदेश क्या विदेश : बसुधैव कुटम्बकम्

अयं निज : परोवेति गणनालघुचेतसाम.

उदार चरितानांतु बसुधैवकुटुम्बकम्..




शरहदोँ मेँ जीते हो क्योँ?

तोड़ दो शरहदेँ सारी,

बाहर की कमजोरियोँ को


क्योँ उछालते हो?


अन्दर की कमजोरियोँ पर


क्योँ न नजर डालते हो?


भूल चुके हो अपना पथ


अपने अतीत पर जरा नजर तो डालो.


दोष देते रहोगे कब तक


विदेशियोँ को?


जयचन्द्रोँ पर अँगुली


उठाने से पहले ,



पृथ्वीराजोँ के घरोँ


की दरारोँ से अन्दर तो झाँको.


आओ मिटा दे शरहदेँ सारी,



दिलोँ से मिटा दे नफरतोँ के बीज



समझ लो चाहेँ अल्हा हो या ईश्वर


है सब एक शक्ति,
बोलो -'जय हो ओम आमीन'



हिन्दुओँ को अपने अन्दर झाँकना चाहिए , कमी कहाँ पर है?गैरहिन्दू गर दोषी है तो हम क्योँ नहीँ.यदि दुनिया से गैरहिन्दुओँ को विदा कर दिया जाए तो भी क्या तुम चैन से रहोगे?चाहे हिन्दू होँ या गैरहिन्दू सभी के सब मानसिक रुप से गुलाम हैँ.जाति मजहब देश आदि के बहाने द्वेषमालाओँ मेँ मनुष्यता को पिरो दिया गया.गैरहिन्दू तब भी ठीक है,हिन्दू तो काफी विचलित है.बरेली मेँ श्री अर्द्धनारीश्वर शक्तिपीठ के संस्थापक श्री राजेन्द्र प्रताप सिँह'भैया जी' का कहना है


"जब हर आत्मा परमात्मा के बास होने की बात कही जाती है तो परमात्मा अलग कहाँ से आयेगा? पर समाज जब अपनी जिम्मेदारी से मुँह फेर लेता है तब वह किसी कार्य विशेष को स्वयं न करके किसी दूसरे के द्वारा करने की उम्मीद रखता है......आज के महापुरुषोँ द्वारा जो धर्म संदेश अपने प्रवचनोँ मेँ दिया जाता है उसमेँ व्यक्तियोँ को पौराणिक कहानियोँ एवं राम कृष्ण जैसे अवतारोँ के भावुक एवं रोचक प्रसंगोँ को सुनाकर या तो नचाया जाता है या फिर रुलाया जाता अर्थात उनके हृदय मेँ कायरता की वह छाप छोड़ दी जाती है जिसमेँ भाव विह्ल हो वह अपनी आन्तरिक शक्ति को खो बैठता है,और उसी परमात्मा को खोजने पर लग जाता है जो उसके हृदय मेँ विराजमान रहता है."


धर्म ईश्वर व देवी देवताओँ के नाम पर व्यक्तियोँ को जितना ठगा गया उतना अन्य से नहीँ.वेद कुछ और ही कह रहे हैँ ,उपनिषद कुछ और ही कह रहे हैँ.सारी शक्तियाँ अपने अन्दर छिपी हैँ,सारे तीर्थ अपने अन्दर छिपे हैँ.बस,अपने को पहचानने की देरी है.जिसके लिए कुछ करना नहीँ,बैठना है.उपनिषद का अर्थ क्या है?उपासना का अर्थ क्या है? सिर्फ बैठना.बैठ कर स्वाध्याय करना, चिन्तन करना, सत्संग करना ,अपने अन्दर झांकना,आदि.जब मैँ कहता हूँ कि दुनिया का पहला निर्गुण उपासक मुसलमान ही रहा होगा तो आप मेरी बात को समझते क्योँ नहीँ?मैँ कितनी बार कह चुका हूँ कि भाषा पर मत जाओ शब्दोँ पर मत जाओ ,शब्दोँ की परिभाषा पर जाओ.


हिन्दू शब्द स्वयं मेँ क्षेत्रविशेष की पहचान छिपाए है.क्या क्षेत्र विशेष मेँ बंध कर हम रह जाएं?मुसलमान शब्द क्योँ न अरब से आया हो लेकिन जाति पन्थ देश से ऊपर उठ कर विचारोँ के दर्शन को जानिए.मूर्तियाँ ,धर्म स्थल ,आदि किस स्तर के लोगोँ की आवश्यकता है?सत से बढ़कर क्या?क्या स्वदेश क्या विदेश?इन्सानियत की सुरक्षा हर हालत मेँ होना चाहिए.अन्तर्राष्ट्रीय शरहदेँ आम आदमी के लिए खोल देनी चाहिए.शरहदेँ सिर्फ शासकीय प्रशासकीय होनी चाहिए जैसे कि देश के अन्दर ग्राम पंचायत ,तहसील, जिला ,प्रदेश, आदि की शरहदेँ. विभिन्न देशोँ की वर्तमान राष्ट्रीय शासन प्रणाली का वैश्वीकरण व विश्व सरकार का होना आवश्यक है.अपने पक्ष के व्यक्तियोँ चाहेँ वे किसी भी देश व जाति से होँ से सम्बन्ध स्थापित करना कोई अमानवता की पहचान है?यदि हम किसी का मानवीय अहित नहीँ चाहते.

रविवार, 23 जनवरी 2011

ओ3म -आमीन!! ओम तत सत! ओ3म -��मीन!!

जब मैँ कहता हूँ कि मैँ वैचारिक स्तर पर मुसलमान भी हूँ तो लोग भड़क जाते हैँ.



शायद हजरत आदम के रुह की ऊर्जा का केन्द्र दोनोँ आँखोँ के बीच आज्ञा चक्र पर रहा होगा.जो शिव का भी स्थान माना जाता है.यहाँ सत का, बीइंग का बोध होता है.चित्त ,कांशसनेस का बोध होता है.जहाँ चित्त से हम मुक्त हो जाते हैँ.सत शेष रह जाता है.इस लिए तो मुसलमान वह है जो अपने ईमान पर मजबूत है.यहाँ पर आ कर मूर्तियोँ की पूजा पीछे छूट जाती है.डाक्टर कुंवर आनन्द सुमन की इस बात " सोलह साल की अवस्था तक मोहम्मद साहब महादेव की मूर्तियां बेँचते रहे व शिवलिंग की उपासना करते रहे ." -को यदि सत्य माना जाए तो यह कहना ठीक रहेगा कि मोहम्मद साहब सोलह साल के बाद इस स्थिति पर पहुँच गये होँगे कि उन्हेँ सगुण उपासना की आवश्यकता नहीँ रही होगी.काबा स्थान भी कभी शिव का स्थान रहा होगा.



मैँ आपको बता दूँ कि दुनिया का पहला निर्गुण उपासक मुसलमान ही रहा होगा.अरे गैर मुसलमानोँ मेरी इस बात पर बौखला क्योँ गये?वहाँ भी शिव है यहाँ भी शिव है.शब्दोँ व भाषा पर मत जाईए शब्दोँ की परिभाषा पर जाईए. कागजी हिसाब किताब व नाम ,भाषा, अपने पैत्रक समाज, आदि के आधार पर स्वयं को हिन्दू मानना हालातोँ की एक स्थूल आवश्यकता है लेकिन हमसे पूछा जाए कि 'हिन्दू' शब्द और 'मुसलमान' शब्द मेँ से आप किसे आत्मसात करना चाहेंगे ?तो मेरा उत्तर होगा 'मुसलमान'.मैने चन्द् सेकेण्ड पहले कहा था कि शब्दोँ व भाषा पर मत न जाइए.



मोहम्डन शब्द की परिभाषा क्या है?जिसका ईमान मजबूत हो.
यहाँ भी 'सत' है , बस शब्दोँ का फेर है.जो सत को स्वीकार नहीँ करे वही काफिर है.जो ईमान को स्वीकार न करे वही काफिर है.काफिर वह है जो सत से मुकरे.सत कहाँ पर है ,बीइंग कहाँ पर है? आज्ञा चक्र पर, दोनोँ आँखोँ के बीच. इस्लाम के पांच सिद्धान्त है -(1) तौहीद यानि कि एकेश्वरवाद (2) नमाज यानि कि सूर्य नमस्कार विधि(3) जकात यानि कि दान(4)रोजा यानि कि उपवास (5) हज यानि कि तीर्थ यात्रा . क्या यह सिद्धान्त हर निर्गुण उपासक को आवश्यक नहीँ हैँ?

गुरुवार, 20 जनवरी 2011

सत्तावादी दंश : काला ध���

दुनिया को बिगाड़ने वाले सत्तावादी होते हैँ.सत्ता रुपी इन्द्र अपने सिंहासन पर बैठे बैठे सुरा अप्सरा मेँ मस्त रहते हैँ लेकिन जब सिंहासन हिलने लगता है तो दधीचि की हड्डियाँ तक माँगने चले आते हैँ. ओशो ने ठीक ही कहा है कि सत्ता कभी नहीँ चाहती कि जनता जागरुक हो.योगगुरु स्वामी रामदेव नगर नगर प्रचार कर भ्रष्टाचार व विदेश मेँ भारतीय काले धन के सम्बन्ध मेँ बोल रहे हैँ.मीडिया भी खूब बोल रहा है लेकिन सत्तावादी.....? आजादी के वक्त से ही कांग्रेस का चरित्र मुझे सन्दिग्ध दिखाई देता है.हालांकि पांच साल पहले तक हमारा खानदान कांग्रेसी ही था लेकिन अब नहीँ.कभी कभी तो कांग्रेस का किरदार हमेँ देशद्रोही का नजर आने लगता है.विदेशोँ मेँ जमा काले धन को वापस लाने मेँ हीला हवाली कर रही केन्द्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने आड़े हाथो लेते हुए कहा कि देश का पैसा विदेशी बैँकोँ मेँ रखना देश को लूटने के समान है.स्पष्ट रूप से यह चोरी है. देश भक्त जनता को इस पर जन आन्दोलन छेँड़ना चाहिए.

रविवार, 16 जनवरी 2011

16 जनवरी :धार्मिक स्वतंत्रता दिवस

धार्मिक स्वतंत्रता निगरानी समिति ने हाल ही में भारत मेँ भी धार्मिक स्वतंत्रता का अध्ययन किया और कहा कि इस मामले मेँ कुल मिला कर भारत की स्थिति अच्छी है.समिति ने कहा कि भारत के लोग उदार हैँ और अल्पसंख्यक निर्भीक हो कर अपने धर्म का पालन करते हैँ. उनकी धार्मिकता स्वतंत्रता पर किसी तरह की कोई पाबंदी नहीँ है.निगरानी समिति ने हालांकि यह भी कहा कि कुछ राज्य सरकारेँ धर्म परिवर्तन विरोधी कानून बनाकर धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित करने की कोशिश करती है.


अमेरिका जैसा देश भी भारत की दाद देता है.हाल ही मेँ विकीलीक्स द्वारा सार्वजनिक किए गये एक गोपनीय अमेरिकी राजनयिक संदेश से भी विदेशोँ मेँ भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि स्पष्ट हो जाती है.नई दिल्ली स्थित अमेरीकी दूतावास से 2006 ई0 मेँ भेजे गए इस राजनयिक संदेश मेँ कहा गया था कि अमेरिका भारत की धर्मनिरपेक्षता से सीख ले सकता है जहाँ बहुधर्मीय, बहुसंस्कृति और बहुजातीय समाज है और अपने धार्मिक क्रियाकलापोँ को स्वतंत्र हो कर सम्पन्न करते हैँ.



बस,कुछ मुट्ठी भर लोग धर्म के नाम पे सड़क पर उन्माद फैलाने की कोशिस करते रहे हैँ लेकिन अब पब्लिक जागरुक हो रही है.वह अब एक दूसरे के रीति रिवाजोँ का सम्मान करना महसूस कर रही है व अपनी ऊर्जा को सृजनकार्य मेँ लगाने को व्याकुल है.



लेकिन...




लेकिन ऐसा क्योँ है,कब तक है ? मध्यकालीन आचरण रखने वालोँ कमी नहीँ है अब भी,जब तक हिन्दू बहुसंख्यक है तब तक ही ऐसा नहीँ क्या ? उदार कौन है? सहनशील कौन है?
यदि कहीँ पर उदारता व सहनशीलता भंग हुई है तो क्योँ?

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

श्री अर्द्धनारीश्वर ���क्ति पीठ,ब्रह्मवाक्�� स्मारिका 20 10का विमोचन व मकर सक्रान्ति कार्���क्रम!

श्री राजेन्द्र प्रताप सिँह भैया जी संस्थापक श्री अर्द्धनारीश्वर शक्ति पीठ नाथ नगरी बरेली के आशीर्वाद से.......




ओ3म आमीन! ! ओम तत सत! ओ3म आमीन!!
12.45PM से हवन व भजन कीर्तन प्रारम्भ हो चुका था.इंवर्टिस विश्वविद्यालय कुलाधिपति श्री उमेश गौतम के आगमन के दो मिनट बाद 3.40PMपर पाण्डाल मेँ राजेन्द्र प्रताप सिँह भैया जी ने प्रवेश किया.कुछ औपचारिकताओँ के बाद श्री उमेश गौतम जी के द्वारा स्मारिका का विमोचन हो गया.मैँ भी कुछ बोलूँ ,इस सोँच पर मैँ मन से असन्तुलित हो गया .ऐसे सगुण स्थूल स्तर के धार्मिक कार्यक्रमोँ मेँ स्वयं को विवादित होने से डरता रहा हूँ.मैँ कबीर,वैदिक दर्शन,बुद्ध जैन दर्शन,सभी पन्थोँ के समान तत्वोँ,आदि से प्रभावित रहा हूँ.हाँ,श्री अर्द्धनारीश्वर शक्ति अवधारणा के पीछे के निर्गुण विचारधारा से प्रभावित रहा हूँ.
दक्षिण वाम शक्ति का साम्य है श्री अर्द्धनारीश्वर शक्ति ! यही से अद्वेत की यात्रा प्रारम्भ होती है.दक्षिण और उत्तर ध्रुव का मिलन.....ज्ञान व कर्म का मिलन.....धन व ऋण का मिलन .......दुख सुख का मिलन.........राग विराग का मिलन........कायरता व साहस का मिलन ..........यह सब मिलन यानि कि दोनोँ और से प्रभावहीन,तटस्थ. कमेस्ट्री हो या फिजिक्स या फिलासफी ,सबका मूल दो तत्वोँ के बीच की ऊर्जा के वखान के बिना अपूर्ण है.वन अपान जीरो इज क्वल्टू अनन्त..........




बुद्धवार,19 जनवरी 2 011ई0 ओशो पुण्य तिथि!
पौष मास का आज अन्त! कल से माघ माह का प्रारम्भ ,आज का दिन अन्य दिनोँ की अपेक्षा कहीं ज्यादा ही मैँ प्रफुल्लित था.लगभग 4.15PM पर मैँ विद्यालय कमेटी के वरिष्ठ सदस्योँ मेँ से एक श्री संजीब अग्रवाल की दुकान पर स्मारिका के साथ पहुँचा.



"सर जी नमस्ते,आपके लिए यह पत्रिका लाया हूँ."


उन्हेँ पत्रिका देने के साथ मैँ "अच्छा मैँ चलता हूँ"कहते हुए तेजी के साथ दुकान से नीचे आ कर आगे बढ़ गया.


मीरानपुर कटरा मेँ मैँ उन्हेँ व उनके परिवार को एक आध्यात्मिक शक्ति मानता रहा हूँ.उनको लेकर मैने कुछ आध्यात्मिक एहसास भी किए हैँ.



आगे कुछ दूरी पर ही मुझे अध्यापक मनोज गंगवार मिल गये.

रविवार, 2 जनवरी 2011

अर्द्धनारीश्वर शक्त�� : दक्षिणी व बाम पन्थी ���क्ति का समरुप

श्री अर्द्धनारीश्वर धाम नाथ नगरी सेवा समिति बरेली,संस्थापक राजेन्द्र प्रताप सिँह



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सोमवार, 20 दिसम्बर 2010ई0 !

सायंकाल 6.06PM पर मेरे सामने थे -राजेन्द्र प्रताप सिंह. उन्हेँ लोग भईया जी कहते हैँ. जो बरेली स्थित सैनिक कालोनी के गली न.04 मेँ रहते है.

कल्पना पाल के साथ में यहां पांच बजे उपस्थित हुआ था.जहाँ मैँ अब मानसिक शान्ति मेँ था.लगभग 6. 03 PM पर मेरा भईया जी से सामना हुआ.उनका एक प्रश्न था किआप के लिखने का उद्देश्य क्या है?"मेरे लिखने..........मेरे लिखने का उद्देश्य है -अभिव्यक्ति."


फिर उन्होँने कुछ प्रिन्ट कागज हमेँ पढ़ने को दिए . पढ़ने के बाद मैँ बोला कि ठीक लिखा है.



लगभग 11.00 PM तक अर्द्धनारीश्वर,हिन्दू अन्धविश्वास, गुरु महत्व, पुरोहितवाद , ,श्राद्ध , मोक्ष, अन्तरंग आध्यात्मिक अहसास,आदि पर चर्चा होती रही.



"आप हमारी आवाज को लेखनी देँ. हो सके तो यहीँ आ जाएं ,व्यवस्था कर दी जाएगी." -भैया जी के यह कथन मेरे दिलोदिमाग मेँ कौँधने लगे थे.



अब इतनी रात वापस कटरा कैसे पहुँचेँ ?मैँ कल्पना पाल केमहानगर स्थित आवास पर ही रुक गया . विस्तर पर पहुँचते ही,



मैँ मेडिटेशन मेँ आ गया .जब मैँ एकाग्र हुआ तो मैँ प्रार्थनामय हो गया -मुझे वे समस्त शक्तियां प्रदान होँ जो विश्व शान्ति व मानव कल्याण के लिए होँ ;गरीबोँ, अनाथोँ ,आदि के हित मेँ हो.इसके लिए मैँ साहस से भर जाऊँ.




जब मैँ अर्द्धनिद्रा मेँ आया तो बंजर दरार युक्त जमीन व अग्नि की लपटेँ दिखायी देना प्रारम्भ हुईँ.



गहरी नीँद मेँ जाने के एक दो घण्टे बाद जब मेरी आँखे खुलीँ तो ,मुझे अर्द्धनारीश्वर के चरण दिखायी दिये.



यह सब क्या है?


अर्द्धनारीश्वर के निर्गुण विचारधारा प्रति मेँ लगभग दस साल से सहमत रहा हूँ.



क्या है अर्द्धनारीश्वर स्वरुप के पीछे विचारधारा ?



दक्षिण पन्थ व वामपन्थ शक्ति का समभोग है-अर्द्धनारीश्वर शक्ति.ओशो ने भी कहा है कि हमारे अन्दर भी समभोग है.इस समभोग का ही एक पौराणिक उदाहरण है -समुद्र मन्थन. आर्योँ के ज्ञान व अनार्योँ के कर्म का सम्मिलन्न -जीवन मेँ समृद्धि.चौदह रत्नोँ की प्राप्ति.



मेरी जन्मभूमि-ददिउरी सुनासिर,वह भूमि जो कभी वन अच्छादित थी.अहिल्या के अभिशाप के शिकार आर्यो के पदेन राजा(इन्द्र) ने शिवलिँग स्थापित करके शिवाराधना व तपस्या की. बाबर के द्वारा पराजित इब्राहिम लोदी से पूर्व ही यहाँ की राजनीति पराजित होकर अपने घुटने टेक चुकी थीँ.जिन शक्तियोँ को अफसोस था उनमेँ से एक शक्ति ने यहाँ के जंगल मेँ अपना स्थान बनाया. इससे पूर्व सिकन्दर के आक्रमण से प्रभावित होकर कठराज्य के नागरिकोँ ने यहाँ से लगभग चालीस किलोमीटर दूरी पर बीसलपुर पूर्वोत्तर जंगल मेँ शरण ली थी जहाँ कभी राजा मोरध्वज का क्षेत्र था और कृष्ण व अर्जुन ने शिव लिंग की स्थापना की थी.इधर बरेली क्षेत्र , महाभारत का मुख्य चरित्र श्री कृष्ण की समीपवर्ती द्रोपदी के पिता का शासन क्षेत्र. शेष 'पिछड़ोँ (यादवोँ,कुरमियोँ,आदि) का पूर्वगौरव'मेँ स्पष्ट करुंगा.हाँ,मैँ कह रहा था मेरी जन्मभूमि ददिउरी सुनासिर,सुनासिर से कुछ दूरी पर ददिउरी गाँव को हमारे पूर्वजोँ ने बसाया था.अब भी बण्डा क्षेत्र मेँ जो 80साल से ऊपर का कोई बुजुर्ग हो उससे आप पूछ सकते हैँ हमारे पूर्वजोँ के बारे मेँ.अब 40 वर्षोँ से तामसी प्रवृत्तियोँ ने क्या डेरा डाला कि खानदान ने अपनी सामाजिक रौनक खोई है.हालांकि इस बीच कुछ ऐसी घटनाएं घटती रही हैँ जिससे सीख ली जा सकती थी. अन्दर की शक्ति जागृत तो रही है लेकिन तामसी प्रवृत्तियोँ की अधीनता से निकलने की दृढ़इच्छा व साहस शक्ति के अभाव मेँ अपने वास्तविक चरित्र को स्थान न मिल पाया.
गाँव की स्थापना के समय से ही ग्राम पूजा की जिम्मेदारी हमारे खानदान से ही रही है.एक पीड़ी पूर्व तक खानदान से कोई न कोई माँ जगदम्बा का महाभक्त होता आया था.



हम बचपन से कुछ धार्मिक अहसास अभी दो वर्ष पूर्व तक होते रहे हैँ लेकिन उन्हे पकड़ न पाया.हाँ, कुछ अन्तरिक क्रियाएं अब भी जारी हैँ.प्रथम मुलाकात के दौरान भैया जी ने मुझे बताया कि आप के अन्दर शक्ति जाग्रत है.तब मैने अपने अन्दर छांका,हाँ!ऐसा दो वर्ष तक महसूस होता आया है.यहा कटरा मेरे एक मुस्लिम शुभचिन्तक है,उनका भी माना है कि अपने को पहचान अपने को समाज मेँ पेश करो.मेरे मकान पर आया करो,आपसे फिर अपने अनुभव बांटूँ.बस,साहस बटोर लो शेष सब ठीक है. समाज का क्या,समाज मेँ नगेटिव थिँकिँग ज्यादा है,भ्रम शंका आदि ज्यादा है.शक्ति तो शक्ति है वह साम्प्रदायिक नहीँ होती.साम्प्रदायिक तो भीड़ चाल की गति है.मेरा अप्रकाशित 'जय शिवानी' उपन्यास अर्द्धनारीश्वर शक्ति की एक झलक है.