Powered By Blogger

रविवार, 2 जनवरी 2011

अर्द्धनारीश्वर शक्त�� : दक्षिणी व बाम पन्थी ���क्ति का समरुप

श्री अर्द्धनारीश्वर धाम नाथ नगरी सेवा समिति बरेली,संस्थापक राजेन्द्र प्रताप सिँह



***** @@@ *****


सोमवार, 20 दिसम्बर 2010ई0 !

सायंकाल 6.06PM पर मेरे सामने थे -राजेन्द्र प्रताप सिंह. उन्हेँ लोग भईया जी कहते हैँ. जो बरेली स्थित सैनिक कालोनी के गली न.04 मेँ रहते है.

कल्पना पाल के साथ में यहां पांच बजे उपस्थित हुआ था.जहाँ मैँ अब मानसिक शान्ति मेँ था.लगभग 6. 03 PM पर मेरा भईया जी से सामना हुआ.उनका एक प्रश्न था किआप के लिखने का उद्देश्य क्या है?"मेरे लिखने..........मेरे लिखने का उद्देश्य है -अभिव्यक्ति."


फिर उन्होँने कुछ प्रिन्ट कागज हमेँ पढ़ने को दिए . पढ़ने के बाद मैँ बोला कि ठीक लिखा है.



लगभग 11.00 PM तक अर्द्धनारीश्वर,हिन्दू अन्धविश्वास, गुरु महत्व, पुरोहितवाद , ,श्राद्ध , मोक्ष, अन्तरंग आध्यात्मिक अहसास,आदि पर चर्चा होती रही.



"आप हमारी आवाज को लेखनी देँ. हो सके तो यहीँ आ जाएं ,व्यवस्था कर दी जाएगी." -भैया जी के यह कथन मेरे दिलोदिमाग मेँ कौँधने लगे थे.



अब इतनी रात वापस कटरा कैसे पहुँचेँ ?मैँ कल्पना पाल केमहानगर स्थित आवास पर ही रुक गया . विस्तर पर पहुँचते ही,



मैँ मेडिटेशन मेँ आ गया .जब मैँ एकाग्र हुआ तो मैँ प्रार्थनामय हो गया -मुझे वे समस्त शक्तियां प्रदान होँ जो विश्व शान्ति व मानव कल्याण के लिए होँ ;गरीबोँ, अनाथोँ ,आदि के हित मेँ हो.इसके लिए मैँ साहस से भर जाऊँ.




जब मैँ अर्द्धनिद्रा मेँ आया तो बंजर दरार युक्त जमीन व अग्नि की लपटेँ दिखायी देना प्रारम्भ हुईँ.



गहरी नीँद मेँ जाने के एक दो घण्टे बाद जब मेरी आँखे खुलीँ तो ,मुझे अर्द्धनारीश्वर के चरण दिखायी दिये.



यह सब क्या है?


अर्द्धनारीश्वर के निर्गुण विचारधारा प्रति मेँ लगभग दस साल से सहमत रहा हूँ.



क्या है अर्द्धनारीश्वर स्वरुप के पीछे विचारधारा ?



दक्षिण पन्थ व वामपन्थ शक्ति का समभोग है-अर्द्धनारीश्वर शक्ति.ओशो ने भी कहा है कि हमारे अन्दर भी समभोग है.इस समभोग का ही एक पौराणिक उदाहरण है -समुद्र मन्थन. आर्योँ के ज्ञान व अनार्योँ के कर्म का सम्मिलन्न -जीवन मेँ समृद्धि.चौदह रत्नोँ की प्राप्ति.



मेरी जन्मभूमि-ददिउरी सुनासिर,वह भूमि जो कभी वन अच्छादित थी.अहिल्या के अभिशाप के शिकार आर्यो के पदेन राजा(इन्द्र) ने शिवलिँग स्थापित करके शिवाराधना व तपस्या की. बाबर के द्वारा पराजित इब्राहिम लोदी से पूर्व ही यहाँ की राजनीति पराजित होकर अपने घुटने टेक चुकी थीँ.जिन शक्तियोँ को अफसोस था उनमेँ से एक शक्ति ने यहाँ के जंगल मेँ अपना स्थान बनाया. इससे पूर्व सिकन्दर के आक्रमण से प्रभावित होकर कठराज्य के नागरिकोँ ने यहाँ से लगभग चालीस किलोमीटर दूरी पर बीसलपुर पूर्वोत्तर जंगल मेँ शरण ली थी जहाँ कभी राजा मोरध्वज का क्षेत्र था और कृष्ण व अर्जुन ने शिव लिंग की स्थापना की थी.इधर बरेली क्षेत्र , महाभारत का मुख्य चरित्र श्री कृष्ण की समीपवर्ती द्रोपदी के पिता का शासन क्षेत्र. शेष 'पिछड़ोँ (यादवोँ,कुरमियोँ,आदि) का पूर्वगौरव'मेँ स्पष्ट करुंगा.हाँ,मैँ कह रहा था मेरी जन्मभूमि ददिउरी सुनासिर,सुनासिर से कुछ दूरी पर ददिउरी गाँव को हमारे पूर्वजोँ ने बसाया था.अब भी बण्डा क्षेत्र मेँ जो 80साल से ऊपर का कोई बुजुर्ग हो उससे आप पूछ सकते हैँ हमारे पूर्वजोँ के बारे मेँ.अब 40 वर्षोँ से तामसी प्रवृत्तियोँ ने क्या डेरा डाला कि खानदान ने अपनी सामाजिक रौनक खोई है.हालांकि इस बीच कुछ ऐसी घटनाएं घटती रही हैँ जिससे सीख ली जा सकती थी. अन्दर की शक्ति जागृत तो रही है लेकिन तामसी प्रवृत्तियोँ की अधीनता से निकलने की दृढ़इच्छा व साहस शक्ति के अभाव मेँ अपने वास्तविक चरित्र को स्थान न मिल पाया.
गाँव की स्थापना के समय से ही ग्राम पूजा की जिम्मेदारी हमारे खानदान से ही रही है.एक पीड़ी पूर्व तक खानदान से कोई न कोई माँ जगदम्बा का महाभक्त होता आया था.



हम बचपन से कुछ धार्मिक अहसास अभी दो वर्ष पूर्व तक होते रहे हैँ लेकिन उन्हे पकड़ न पाया.हाँ, कुछ अन्तरिक क्रियाएं अब भी जारी हैँ.प्रथम मुलाकात के दौरान भैया जी ने मुझे बताया कि आप के अन्दर शक्ति जाग्रत है.तब मैने अपने अन्दर छांका,हाँ!ऐसा दो वर्ष तक महसूस होता आया है.यहा कटरा मेरे एक मुस्लिम शुभचिन्तक है,उनका भी माना है कि अपने को पहचान अपने को समाज मेँ पेश करो.मेरे मकान पर आया करो,आपसे फिर अपने अनुभव बांटूँ.बस,साहस बटोर लो शेष सब ठीक है. समाज का क्या,समाज मेँ नगेटिव थिँकिँग ज्यादा है,भ्रम शंका आदि ज्यादा है.शक्ति तो शक्ति है वह साम्प्रदायिक नहीँ होती.साम्प्रदायिक तो भीड़ चाल की गति है.मेरा अप्रकाशित 'जय शिवानी' उपन्यास अर्द्धनारीश्वर शक्ति की एक झलक है.

कोई टिप्पणी नहीं: