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मंगलवार, 19 सितंबर 2017

हे अर्जुन!उठ, इन माननीयों, सम्माननियों, वरिष्ठों आदि के रहते भी समस्याएं बनी हुई है.उठ जाग. इनके रहते, इनके तंत्र को जकड़े रहते भला होने वाला नहीं....(श्री मदभागवत से शिक्षा:श्री कृष्ण की तश्वीर मूर्ति के सामने घण्टा बजाने से काम नहीं चलेगा... सन्देशों को जिगर में उतारने से काम चलेगा)
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सर्वधर्म समभाव तथा पारस्परिक सहनशीलता रखना..
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सामाजिकता, मानवता,समाज सेवा, राजनीति,संस्था संचालन आदि में हस्तक्षेप करने वाले व्यक्तियों को अपनी मनमानी, स्वधर्म, जातिभावना,मजहब भावना, राष्ट्र भावना आदि से परे हो संविधान, शांति, भाईचारा, आम आदमी का साथ, जनतांत्रिक मूल्य, न्याय, निष्पक्षता आदि को महत्व देना चाहिए. ठकरुई का जमाना गया.सामंती सोच का जमाना गया. जनतंत्र में।हर जन का महत्व है.गांव,शहर आदि में तुम अपनी चमकना किस बलबूते चाहते हो?एक परिवार, एक जाति के बल पर गांव नगर क्षेत्र में कब तक तुम हस्तक्षेप करोगे?समय करबट लेता ही है. कुछ (अदृश्य, अनन्त आदि) भी है,हमारी स्थूलता, बनावटों, संस्कारों आदि के पीछे. एक परिवार, एक जाति, एक मजहब, एक  राष्ट्र आदि को लेकर चल कर प्रकृति अभियान(यज्ञ),मानवता आदि के खिलाफ चल कर कब तक जिया जा सकता है?जरा अपने व जगत के मूल में जीना तो दूर, उसकी।कल्पना में जीना मुश्किल. जरा ब्रह्मण्ड की कल्पना तो कीजिये, हमारा अपना छोड़ों, तुम्हारी धरती तुम्हारी आकाश गंगा का क्या बजूद?एक आकाश गंगा में अरबों सूरज व उसका सौर परिवार सब के सब एक ब्लेक होल में समा जाते है!  इस लिए कहते है,तन्त्र को समझिए, विधान को समझिए,कण कण में जो व्याप्त उस के सत्ता का सम्मान तो समझो. उसके सामने तुम्हारी कृत्रिमता की क्या औकात?

Ashok kumar verma'bindu'

www.akvashokbindu.blogspot.com

शनिवार, 16 सितंबर 2017

हम वेद,गीता, कुरान आदि के खिलाफ कैसे उठ खड़े हो सकते हैं??हम ज्ञान के विरोध में कैसे उठ खड़े हो सकते हैं????हमारा ज्ञान हमारी संतयी कहती है ,सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर...... हम वर्तमान में सिर्फ प्रकृति अंश व ब्रह्म अंश.....सन्त कबीर से बड़ा भी कोई सन्त है का कोई?सन्त रैदास से बड़ा सन्त भी है का कोई?श्री रामचंद्र जी महाराज फतेह गढ़ से बड़ा भी सन्त है का कोई???? बात जब आती है सामाजिकता की तो.????सामाजिकता क्या समस्या का निदान में समर्थ????सामाजिक आंदोलन हेतु तो राजाराममोहन, दयानन्द, ज्योतिबा फूले, अम्बेडकर आदि से बढ़ प्रेरणा स्रोत कौन?????

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हिंदुत्व हिंदुत्व चीख सत्ता पाना आसान हो सकता है लेकिन मेहतर, चमार, मुस्लिम आदि को गले लगाना, उनके बीच समय बिताना, खानपान ,आचरण बढ़ाना, उन्हें भागीदारी हिस्सेदारी देना मुश्किल????जातिवाद ,छुआछूत ,अन्धविस्वसो आदि का विरोध करना हिंदुत्व में नहीँ आता?राजाराम मोहन राय, दयानन्द, ज्योतिबा फूले, अम्बेडकर आदि के विचारों की बात करने वालों का समर्थन करना हिंदुत्व में नहीं आता????? तुम्हारी बात न सुन गीता, वेद आदि की बात करना हिंदुत्व में नहीं आता????????वेद, गीता आदि में दी गयी ब्राह्मण,क्षत्रिय, वैश्य,शूद्र आदि की परिभाषा आदि के आधार पर किसी का विरोध या समर्थन करना हिंदुत्व में नही आता??????
Ashok kumarverma"bindu"

www.ashokbindu.blogspot.com

शनिवार, 9 सितंबर 2017

खाली मन शैतान का घर ! आखिर शैतान कौन?
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अनेक लोग कहते फिरते हैं," खाली मन शैतान का घर." " खाली मन शैतान का घर"--समाज में इसका मतलब क्या है?समाज में इसका मतलब है-समाज की नजर झूठा चमक दमक, कृत्रिमता, गैरप्रकृतिकता, गैरमानवता, गैरआध्यात्मिकता आदि में जीना?!इसका विलोम भी है-"खाली मन फरिश्ता का घर होता है."तो इसका मतलब होता है-सन्तों, महापुरुषों, संविधान, मानबता, अपनी व जगत की मूल अवस्था(आत्मा व परमात्मा के गुणों) में जीना, ईश्वरीय अभियान या प्रकृति अभियान के एहसास के साथ जीना.


       हमारी ऊर्जा या मन की दो ही दिशाएं हैं-मूलाधार व सहस्रार चक्र. अर्जुन श्री कृष्ण से पूछते हैं-कर्म क्या है?श्री कृष्ण कहते है-यज्ञ. यज्ञ को समझो. यज्ञ क्या है?हमारा व जगत का यज्ञ है-मूल अबस्था के अभियान में जीना. जी सब रहे हैं उसमें ही. सभी भविष्य की ओर हैं.सभी यात्रा की ओर हैं.बस,अंतर इतना है कि हम अभ्यासी उसके एहसास में जीने का प्रयत्न कर रहे हैं.इंतजार करते हैं-अपने अंतर में उसके अवतरित होने का. वहीं दूसरी ओर निन्यानवे प्रतिशत ब्यक्ति इंतजार (उम्मीद) किसकी रखते हैं?वे कहते हैं खाली दिमाग शैतान का घर. भरे दिमाग क्या शैतान का घर नहीं?जो हमारा मूल है,जो हमारी व जगत की मूल अवस्था है,उस अबस्था के एहसास में कितने मन जीते हैं?या कितने व्यक्ति प्रयत्न करते हैं? और बुद्ध जैन को तुम अनीश्वरवादी करते हो?वेद विरोधी करते हो?तुमको क्या नहीं पता वो उस अबस्था में जिए.?आप लोगों के पास मेडिटेशन को समय नहीं.



           जब हम कहते हैं-हमारे साथ आओ, आओ मेडिटेशन करें. आप कहते हैं-हमारे पास वक्त नहीं. वक्त सबके लिए 24 घण्टे ही है.आप स्वयं हैं क्या?आपकी प्राथमिकता क्या है?आप  अपने जीवन मे चाहते क्या हैं?आप ये क्यो नहीं कहते कि हमें ईश्वर की अवस्था/अभियान से प्रेम है.?हम उसमें लीन हैं.हमें फुर्सत नहीं दुनियादारी में?तो ये क्यों नहीं कहते कि हमे ईश्वर से प्रेम है.उस प्रेमावस्था से हमें फुर्सत नहीं?दरअसल हम ईश्वर को नहीं चाहते, हम अध्यात्म को नहीं चाहते. हम उस ईश्वरीय अवस्था के एहसास में जीना नहीं चाहते. तभी तो कहते है आप ,हमें फुर्सत नहीं मेडिटेशन के लिए.



           तुम्हारे समाज व सामाजिकता में शैतान क्या है?तुम्हारे समाज व सामाजिकता में कितने ईश्वर से प्रेम करते हैं?कितने मानवता से प्रेम करते है? कितने संविधान से प्रेम करते हैं?कितने ईश्वरीय अभियान(यज्ञ) से प्रेम करते हैं?कितने जीवन का सम्मान करते है? जीवन क्या है?जीवन प्राकृतिक ईश्वरीय है.शाश्वत अनन्त है.उसकी प्राकृतिकता, ईश्वरता, शाश्वतता आदि का हमें एहसास नहीं.शैतान क्या है?जो प्राकृतिकता,ईश्वरता, शाश्वतता, मानबता आदि के खिलाफ खड़ा है.तुम्हारे समाज सामाजिकता के पास किस समस्या का हल है?


     www.heartfulness.org