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गुरुवार, 21 अक्तूबर 2010

02 अक्टूबर:मेरा जन्म दिन भी.

मैँ ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'.... इत्तफाक से मेरा
जन्मदिन भी है-02अक्टूबर.मेरे लिए यह सदयता दिवस है.


मन प्रबन्धन के अन्तर्गत मैँ मन ही मन अपने अन्दर करुणा व संयम
को हर वक्त स्वागत के लिए हालात बनाता रहा हूँ ,जिसके लिए कल्पनाओँ
,विचारोँ,स्वाध्याय ,इण्डोर अभिनय व अन्य उपाय करता रहा हूँ.वास्तव मेँ
अहिँसा के पथ पर चलने के लिए करुणा व संयम के लिए हर वक्त मन के द्वार
खोले रखना आवश्यक है.इस अवसर पर मैँ 'प्रेम 'पर भी कुछ कहना चाहुँगा.वे
सभी जरा ध्यान से सुनेँ जो किसी से प्रेम मेँ दिवाने हैँ.प्रेम पर न जाने
कितनी फिल्मेँ बन चुकी हैँ,किताबेँ लिख चुकी है.कहाँ प्रेम है ?प्रेम
जिसमेँ जागता है,उसकी दिशा दशा ही बदल जाती है.प्रेम जिसमे जाग जाता
है,उसके मन से हिँसा गायब हो जाती है,स्वेच्छा की भावना समाप्त हो जाती
है. 'मैँ' समाप्त हो जाता है.


"दिल ही टूट गया तो जी कर क्या करेँ?"


यह सब भ्रम है.


प्रेम मेँ दिल नहीँ टूटता. हाँ,काम मेँ दिल टूट सकता है.कहीँ न कहीँ
प्रेम दिवानोँ या प्रेम दिवानीयोँ से सामना हो जाता है,सब के सब भ्रम मेँ
होते हैँ. प्रेम मेँ तो अपनी इच्छाएं खत्म हो जाती हैँ.जिससे प्रेम होता
है,उसकी इच्छाएं ही अपनी इच्छाएं हो जाती हैँ.
जो अपनी प्रेमिका या प्रेमी की ओर से उदास हो जाते हैँ, वे प्रेमवान नहीँ
हो सकते.अखबारोँ मेँ निकलने वाली आज कल की प्रेम कहानियां हवस की
कहानियां है.जो चार पांच साल बाद टाँय टाँय फिस्स..........प्रेम तो अन्त
है शाश्वत है जो जाग गया तो फिर सोता नहीँ, व्यक्ति निराश नहीँ होता.
करुणा व संयम के बिना प्रेम कहाँ ?प्रेम तो सज्जनता की निशानी हैँ.जो
जीवन को मधुर बनाती है.


खैर....

आज गांधी जी का जन्मदिन है.जो कि बीसवीँ सदी के सर्वश्रेष्ठ
जेहादी हैँ.जिनका हर देश मेँ सम्मान बढ़ता जा रहा है.

गांधी वास्तव मेँ सभ्यता की पहचान हैँ.जो कहते हैँ मजबूरी का
नाम -गांधी,वे भ्रम मेँ हैँ.