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शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

सन 1947 मेँ देश की आजादी का भ्रम !

देश मेँ क्या लोक का तंत्र है ?देश मेँ क्या गण का तंत्र है ?
नेता व अधिकारी क्या सामंतवादी सोंच से ग्रस्त नहीँ हैँ ?जब हमारी सरकार
आयेगी तो हम देख लेंगे ,जैसी सोंच क्या देश की श्रेष्ठ दशा को दर्शाती है
?देश अब भी भुखमरी,नकली दवाईयोँ,खाद्य मिलावट ,अधिकारियोँ व नेताओँ की
मनमानी ,संस्थाएं दबंगोँ ,चापलूसोँ आदि के माध्पमोँ से चलायी जा रही हैँ
न कि संस्थाओँ के हितैषियोँ के द्वारा.


सरस्वती कुमार,काशी अपनी पुस्तक 'सलीब पर एक और ईसा' मेँ लिखते हैँ कि
देश के हालातोँ के लिए 'नेहरु बेटन पैक्ट' दोषी है .




सन 1947 ई0 मेँ भारतीय आम आदमी को आजादी मिली ,ये भ्रम है .कुछ
देशभक्त अब भी इस आजादी को बस सत्ता हस्तान्तरण मानते हैँ .


(1)लार्ड माउण्टबेटन का वशीकरण अभियान .लार्ड बावेल से प्राप्त फाइल
के कवर 'आपरेशन मैडहाउस' को चेंज कर कवर 'आपरेशन सीक्सन' किया गया.


(2)वशीकरण अभियान का लक्ष्य :
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राष्ट्रमण्डल का सदस्य बना रहे भारत .जिसकी सदस्यता का क्रान्तिकारी ,
सुभाष व उनके समर्थक विरोध करते आये थे .
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सुभाष व अन्य समर्थक क्रान्तिकारियोँ को युद्ध अपराधी मानने का समझौता .
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(3)सुभाष को दान की गयी करोड़ोँ की सम्पत्ति को जब्त करना .


(4)देश के विभाजन को स्वीकार करवाना .



(5)महात्मा गाँधी की प्रकृति ,ग्राम्य जीवन ,कुटीर व लघु
उद्योग,स्वाबलम्बन ,स्वरोजगार आदि योजनाओँ को नकारना .



(6)अंग्रेजोँ के चापलूसोँ ,हाँहजूरोँ आदि का मतलब सिद्ध करना .



(7)विभिन्न सम्पत्तियोँ पर अंग्रेजी चापलूसोँ ,हाँहजूरोँ ,काले
अंग्रेजोँ आदि का कब्जा रखना .


(8)ब्रिटेन मेँ भारत परिषद का ब्रिटेन पर करोड़ोँ रुपया


(9)अंग्रेजी भ्रष्ट अधिकारियोँ का बचाव कराना .



(10)ब्रिटेन गयी भारतीय सम्पत्ति का हिसाब किताब न होना व काला
धन को प्रोत्साहन


(11)लगभग सौ वर्ष से चले आ रहे भारत मेँ अंग्रेजी कानूनोँ मेँ
कोई फेरबदल न करना .


ऐसे मेँ नेहरु व पटेल पर चला वशीकरण अभियान.

विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ेँ लैरी कालिन्स दामिनिक लैपियर की पुस्तक
'आधी रात की आजादी' व मौ0 अबुल कलाम आजाद की पुस्तक 'इण्डिया विन्स
फ्रीडम'



आम आदमी हेतु भारत अब भी इस धरती पर उदित नहीँ हुआ है .आम आदमी की
आवाज आम आदमी के अंदर ही दबी हुई है ,जो उसे अन्दर ही अंदर खाये जा रही
है और बाहर से परिवार ,संस्था ,समाज व देश के हालात.आम आदमी के लिए अपनी
अभिव्यक्ति के खतरे कम नहीँ हैँ.वह परिवार,संस्था,समाज व देश के
ठेकेदारोँ व अधिकारियोँ से काफी दूर खड़ा है.ठेकेदार व अधिकारियोँ को तो
चापलूसोँ ,हाँहजूरोँ आदि के घेरे से निकलने की फुर्सत नहीँ होती.आम आदमी
अन्दर व बाहर दोनोँ ओर से सुलग रहा है. अरविन्द केजरीवाल ने अपनी पार्टी
का नाम आम आदमी पार्टी रख लिया तो इससे क्या? मेरे नाम की तरह ,मेरा नाम
'अशोक' जरुर है लेकिन मैँ तन व मन से हूँ 'शोक' ही . आम आदमी की आवाज अब
भी दबी हुई है.आखिर आवाज दबे क्योँ न ?व्यवस्थाओँ को न बदलने वाले
परिवार,संस्था ,समाज व देश मेँ हाबी है ,जो चापलूसोँ से घिरे हैँ.जिनके
पूर्वजोँ का इतिहास गौरबशाली भारत का इतिहास था वे जनजातियोँ ,दलितोँ
,पिछड़ोँ के बीच अपना जीवन बिता रहे हैँ .जो चापलूसी,हाँहजूरी नहीँ कर
सकते आगे भी जनजातियोँ ,पिछड़ोँ ,दलितोँ मेँ अपना जीवन बिताने को तैयार
रहे या नक्सली या आतंकी या अपराधी या आत्महत्या करने को तैयार रहेँ .आम
आदमी ऐसे मेँ किस से उम्मीदेँ रखे ? ईश्वर से ? ईश्वर का वश क्या
चापलूसोँ,ठेकेदारोँ,पूँजीपतियोँ ,सत्तावादियोँ ,दबंगोँ आदि पर नहीँ चलता
.केजरीवाल की आम आदमी पार्टी से उम्मीदेँ ? क्योँ व कैसे रखेँ उम्मीदेँ
?अन्दर से खोखला होते होते ?एक कहता है फूलन देवी का आत्महत्या करने से
अच्छा था डाकू फूलन देवी बनना ?वाह भाई वाह !आज के मार्गदर्शक
व आज का समाजवाद ?
धन्य !गण का तंत्र ! लोक का तंत्र ?
--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

गुरुवार, 24 जनवरी 2013

25जनवरी मतदाता दिवस : लोकतंत्र मेँ मतदाता स्वामी .

समाज व देश के हालातोँ के लिए मतदाता ही दोषी होता है.मतदान करने काफी
मतदाता घर से बाहर निकलता नहीँ .मतदान करते वक्त अब भी नब्बे प्रतिशत से
ज्यादा व्यक्ति संकीर्ण मानसिकता से ग्रस्त है.

(1)अधिक से अधिक लोग वोट डालने निकलेँ .ऐसी सोंच ठीक नहीँ कि वोट डालने
से हमारा क्या लाभ .?
(2)अब भी सामन्तवादी सोंच व गुलामी मानसिकता से हम आप शिकार हैँ.लोकतंत्र
मेँ मतदाता मालिक होता है न कि उसके द्वारा चुना जाने वाला जनप्रतिनिधि.
(3)सूचना पाने का अधिकार समाज के हित मेँ मतदाता को अनिवार्य मानना चाहिए .
(4)मतदाता को सत,सार्वभौमिक ज्ञान तथा कानूनी लक्ष्योँ को जानना चाहिए .
(5)प्रत्येक जाति व मजहब के मतदाताओँ से परस्पर निरन्तर सम्वाद होने
चाहिए और निजस्वार्थ ,जाति ,मजहब आदि के भाव से ऊपर उठ कर क्षेत्र ,समाज
व देश हित जनप्रतिनिधियोँ के चुनने हेतु ईमानदारी से परिचर्चा होनी चाहिए
.
(6)मतदाता अपना जनप्रतिनिधि उसे चुनेँ जो अपना अधिकाँश समय जनता के बीच
बिताये और उसका ऐसा नेटवर्क हो जिससे वह परिवार के अंदर की समस्याओँ तक
को जाने .मतदाता उसके पास न जाए वरन वह मतदाता के पास जायेँ या अपने
नेटवर्क को सक्रिय करे.
(7)वार्ड व गांव स्तर पर नागरिक समितियाँ होँ जोँ संवैधानिक लक्ष्योँ
,योजनाओँ से परिचित होँ.जिनके द्वारा ही प्रत्याशी चयनित किए जाएँ .

--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

रविवार, 13 जनवरी 2013

तीर्थ अर्थात जो पाप से मुक्त करे !

तीर्थ का मतलब है जो पाप सेँ मुक्ति दिलाए .

मैँ जब कक्षा पाँच का विद्यार्थी था तभी से शान्तिकुञ्ज के आध्यात्मिक
साहित्य से जुड़ गया था . कक्षा छह मेँ कुरुशान अर्थात गीता का अध्ययन
प्रारम्भ हो गया था.कक्षा आठ तक आते आते संत कबीर ,रैदास ,जैन व बुद्ध
,सम्राट अशोक का धर्म प्रचार हमेँ प्रभावित करने लगा था. कक्षा बारह मेँ
आते आते आर्यसमाज के सत्संगोँ मेँ शामिल होने लगा था.'क्या है और क्या
होना चाहिए'पर चिन्तन प्रभावित था.

इलाहावाद कुम्भ मेला प्रारम्भ हो चुका है.करोड़ोँ की संख्या मेँ ऋद्धालू
वहाँ पहुँच रहे हैँ.ऐसे भी है जो भारतीय संस्कृति के संवाहक होने के
बाबजूद वहाँ नहीँ पहुँच पायेँगे.जो वहाँ नहीँ पहुँच पायेँगे उनके पाप
नहीँ धुल पायेंगे.हूँ!उनके पाप नहीँ धुल पायेंगे ?

तीर्थ का मतलब है,जो पाप से मुक्ति दिलाए. तीर्थ को जो जाते हैँ वो पाप
से मुक्त हो कर आते हैँ ,हमेँ आश्चर्य है.
ऐसे मेँ मुझे संत कबीर याद आते हैँ ,संत रैदास याद आते हैँ .संत नानक याद
आते हैँ,जो एक बार ही जीवन मेँ गंगा स्नान करते हैँ .


--
संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

राष्ट्रीय जाग्रति वर्ष : 150वीँ विवेकानन्द जयंती वर्ष !

राष्ट्रीय जाग्रति वर्ष : 150वीँ विवेकानन्द जयंती वर्ष !


चार जुलाई सन 1902 मेँ 31 शारीरिक रोगोँ के बावजूद विश्व मेँ भारतीय
अध्यात्म की पताका को लहराने वाले स्वामी विवेकानन्द 39 वर्ष की अवस्था
मेँ इस जगत से चले गये.योगी व ईशभक्त ऐसा ही होता है ,दुनिया की नजर मेँ
वह दुखी नजर आ सकता हैँ लेकिन वह भावोँ,विचारोँ व ज्ञान के माध्यम से
परमसत्ता मेँ होता है. विवेकानन्द समाज के बीच पूर्ण उत्साह व साहस के
साथ आध्यात्मिक व समाज सेवा मेँ ओतप्रोत नजर आते रहे.


भारतीय ब्राह्मणवाद व पुरोहितवाद समाजसेवा से दूर रहा है ,जातिवाद
,छुआछूत,सम्पत्ति आदि मेँ व्यस्त रहा है.हालांकि धर्म माया ,मोह ,लोभ आदि
मेँ लिप्त होने का विरोधी रहा है लेकिन भारतीय धर्मस्थल व धर्मनेता
अपारधन सम्पदा ,माया ,मोह लोभ आदि मेँ लिप्त होते देखे गये हैँ .अपनी
तोंद पर हाथ फिराते समाज से करोड़ोँ की सम्पत्ति इकठ्ठी करने वाले इन धर्म
स्थलोँ व धर्म नेताओँ ने बेसहारोँ ,अनाथोँ ,गरीबोँ ,मुसाफिरोँ आदि के लिए
एक चम्मच पानी के अलावा कोई सुविधा नहीँ दी है .जिनसे बेहतर गुरुद्वारे
मेरे लिए सम्माननीय रहे हैँ.

आज ईसाई मत विश्व मेँ आबादी की दृष्टि से नम्बर एक पर है .इसका मुख्य
कारण क्या है?हिन्दू जो हिन्दू व हिन्दू समाज के लिए रोजमर्रे की जिन्दगी
मेँ कोई भी त्याग न करने वाले हैँ ,को ईसाई पुरोहितो ,पादरियोँ ,समाज
सेवियोँ व योजनाओँ से प्रेरणा लेनी चाहिए .जिन दुर्गम क्षेत्रोँ
,व्यक्तियोँ की ओर हम देखना तक पसंद नहीँ करते ,उनके लिए उन्होने अपनी
सम्पत्ति व जीवन दांव पर लगा दिया.


स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि मैँ मोझ नहीँ चाहता ,मैं बार बार
जन्म लेकर मानवता की सेवा करना चाहता हूँ. मैँ तो यही कहूँगा कि उनके
सेवा भाव व कर्म से यहाँ का ब्राह्मणवाद व पुरोहितवाद चिड़ता रहा.यहाँ का
ब्राह्मणवाद व पुरोहितवाद गरीबोँ ,दलितोँ ,बेसहारोँ की सेवा स्वयं कब
किया है ?पश्चिम व ईसाई मिशनरीज के ब्राहमणवाद व पुरोहितवाद के सेवाकर्म
को टक्कर यहाँ का कौन सा ब्राह्मणवाद व पुरोहितवाद टक्कर दे सकता था?
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संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

रविवार, 6 जनवरी 2013

इण्डिया बनाम भारत !

आजकल सोशल मीडिया मेँ इण्डिया बनाम भारत की बहस छिड़ी हुई है .मैँ तो
वर्तमान को देख रहा हूँ .इण्डिया हो या भारत दोनोँ की दिशा विकार युकार
युक्त है .इस दुनियां मेँ भारत तो हर्षवर्धन के शासन तक उपस्थित था.इसके
बाद भारत समाज से विदा होने लगा.हर्षवर्धन तक जो शासन मेँ थे ,वे या
वंशज आज आज कहाँ हैँ ?वे कहीँ जंगलोँ मेँ नहीँ भटक रहे ?वे कहीँ पिछड़ी
जातियोँ मेँ तो विचरण नहीँ कर रहे .जिनका स्वाभिमान मर गया वे क्या
पंथपरिवर्तन या आगे आने वाले शासकोँ की सिर्फ चापलूसी या विदेशी संस्कृति
से तो प्रभावित नहीँ होते रहे ?गुरुगोविन्द सिँह ,महाराणा प्रताप ,बंदा
बैरागी ,वीर हकीकत ,भगत सिंह ,चंद्र शेखर आजाद आदि या फिर उनके पग
चिह्नोँ पर आज कौन चलना चाहता है ?कहाँ है क्षत्रियत्व ?कहाँ है
ब्राहमणत्व ? हमेँ तो हर जगह वैश्वत्व व शूद्रत्व दिखायी दे रहा है .एक
मैकाले आया तो इतना हो गया यदि हजार मैकाले आते तो देश का क्या हो जाता
?जो हमारे पास था वो छिन गया.आजादी आयी ,उम्मीदेँ जगीँ .सन 1947 से ही
उम्मीदेँ खाक होने लगीँ.सुभाष की मृत्यु को एक रहस्य बना दिया गया .नौ
देशोँ की संस्तुति पर दो साल पहले ही सुभाष जी ने सरकार गठित कर ली थी
,जिसे हम भूल गये .


खैर !इण्डिया हो या भारत ,दोनोँ का वर्तमान मेरी नजर मेँ ठीक नहीँ है
.भारत को जगाने वाले बढ़ते जा रहे है .सोशल मीडिया भी अपना योगदान कर रहा
है .लेकिन ?
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लेकिन अब भी देशबासी निष्पक्ष रुप से देश के हित का नहीँ सोँच पा रहे .
यदि हम देश व भारत का हित चाहते हैँ तो देश व भारत का हित चाहने वाले एक
मंच पर क्योँ नहीँ ?जरुर अभी दाल मेँ कुछ काला है .

भारत हॅ या इण्डिया दोनोँ विचलित हैँ .दो ओर से दो प्रतिशत भी 'सादा जीवन
व उच्च विचार' या 'उच्च जीवन उच्च विचार' पर अपना जीवन केन्द्रित नहीँ
कर पाये है .हिन्दुत्व की ही वकालत करने वाले नारीशक्ति को मातृशक्ति व
सेक्स को सिर्फ सन्तान उत्पत्ति के लिए स्वीकार नहीँ कर पाये हैँ .इनके
पुरोहित ,धर्मनेता ,धर्म स्थल माया मोह लोभ मेँ फंसेँ हैँ .क्योँ धर्म
माया ,मोह ,लोभ से मुक्ति की बात करता हो.जिन्हेँ हम बहिष्कृत करते गये
,अछूत मानते रहे ,भयानक रोगियोँ को दूर भगते गये ,दुर्गम क्षेत्रोँ की ओर
देखना पसंद नहीँ किया ,ऐ भारत ! उधर इण्डिया गया .तुम्हारे पुरोहित अब भी
सेवा करवाते हैँ करते नहीँ .उनके पुरोहितोँ ने सेवा मेँ अपना जीवन
कुर्वान कर दिया .विवेकानन्द सेवा भाव से उठे ,उन्हेँ तुम्हारे पुरोहितोँ
न मंदिरोँ मेँ तक नहीँ घुसने दिया .क्या उन्हेँ भगिनी निवेदिता के साथ
दलितोँ ,अछूतोँ ,कुष्ठ रोगियोँ आदि की सेवा नहीँ करना चाहिए थी ?

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संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

गुरुवार, 3 जनवरी 2013

साहब के आगे व घोड़े के पिछाड़ी....

भारतीय समाज मेँ एक कहावत प्रचलित है कि साहब के आगे व घोड़े के
पिछाड़ी कभी नहीँ चलना चाहिए.आखिर ऐसा क्योँ ?भारत मेँ मैने साहब लोगोँ को
चापलूसोँ व हाँहजूरोँ से घिरा देखा है?किसी के साहब होने का मतलब ये नहीँ
है कि वह ईमानदार,निष्पक्ष ,न्यायप्रिय ,अन्वेषणी ,उदार आदि नियति व
नजरिया से भी होँ .सत्य की खोज मेँ लगे व्यक्ति की बातोँ को बर्दाश्त
करने की क्षमता साहब रखता हो या प्रजातांत्रिक प्रणाली को स्वीकार करता
हो.साहब यदि आम को बबूल कहते हैँ तो बबूल कहना ही पड़ेगा.जो आम को बबूल या
बबूल को आम नहीँ कह सकता उसे साहब कैसे बर्दाश्त कर सकते है
.प्रजातांत्रिक मूल्योँ के अभी भी साहब लोग सामन्तवादी व्यवस्था के
प्रतीक हैँ .वे कुछ भी करेँ या चापलूसी व हाँहजूरी मेँ लगे लोगोँ से वे
चाहेँ कुछ भी करवाये ,उससे तुम्हेँ क्या?पब्लिक भी प्रजातान्त्रिक
मूल्योँ को ताख मेँ रख सामंतवादी मानसिकता से ग्रस्त हो साहब व उनके
चापलूसोँ तथा हाँहजूरोँ के गैरसंवैधानिक व नियम विरुध आचरण के खिलाफ
बोलना पाप समझती है .ऐसे मेँ सूचना पाने का अधिकार इन सामंतवादियोँ की
नजर मेँ अनुचित है .दाऊ के संग रहना है तो दाऊ को तो सहना ही होगा.विधायक
जी ने नौ करोड़ रुपया पिछले विधानसभा सत्र मेँ कहाँ कहाँ लगाया ये पूछना
हमारे हक मेँ नहीँ .पब्लिक व अधिकारी ही सिर पर जूते मारेँगे.दाऊ को सहो
बस ,साहब को सहो बस .सहते कितने हैँ ?दाऊ व साहब अपना उल्लू सीधा करते
हैँ .लोग भी अपना उल्लू सीधा करते हैँ .हम अपना उल्लू सीधा नहीँ कर सकते
तो इसमेँ हमारा ही दोष है न.और फिर लक्ष्मी का वाहन उल्लू ही है ,भूल
जाते हम .क्योँ ठीक कहा न ?

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संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

मंगलवार, 1 जनवरी 2013

मतभेद ,द्वेष व सोशल नेटवर्क !

समाज मेँ कार्यात्मक संरचना का टूटना समाज के लिए घातक है ही मानवता के
लिए भी घातक है .इसको हम इस तरह से समझ सकते हैँ कि जैसे समाज एक जंजीर
है और उसकी कड़ियां व्यक्ति .कड़ियां टूटने से जंजीर का अस्तित्व खत्म होता
ही है कड़ियां बिखर जाती हैँ ,तन्हा हो जाती हैँ .चार वर्ग ब्राह्मण
,क्षत्रिय ,वैश्य ,शूद्र इसलिए स्थापित किए जाते हैँ क्योँकि समाजिक
संरचना अर्थात सोशल नेटवर्क अति आवश्यक है .व्यक्ति चाहेँ विभिन्न स्तर
या व्यक्ति के ऋणात्मक क्योँ न हो लेकिन व्यक्तियोँ के बीच पारस्परिक
सम्बंध होने चाहिए .धर्म ,अध्यात्म आदि का मतलब ये नहीँ है ,अपने
कर्त्तव्य निभाने का मतलब ये नहीँ है कि किसी व्यक्ति से द्वेष या मतभेद
रख उससे दूर रहेँ .घर से निकलने के बाद हम समाज मेँ हैँ ,तब समाज के
व्यक्तियोँ को ऊंच या नीच दृष्टि से देखना अधर्म है व अमानवता .

वह प्रकाश प्रकाश नहीँ जो अंधेरोँ से दूर भागे .अंधेरोँ मेँ ही प्रकाश
का महत्व है .कबीर ,ईसा मसीह .दयानन्द ,बुद्ध आदि किसी गांव व नगर मेँ
जाते थे तो इसका मतलब यह नहीँ था कि उनका नियम था वे तामसी या दुष्ट
व्यक्ति से नहीँ मिलेंगे .ब्राह्मण ,पुरोहित ,संत ,उपदेशक ,शिक्षक
,समाजसेवी आदि गाँव व नगर के दुष्ट व तामसी व्यक्तियोँ से दूर रहने वाले
ढ़ोँगी ,पाखण्डी व अज्ञानी होते हैँ.


समाज आज प्रदूषित क्योँ हो रहा है ? इसलिए क्योँकि गैरतामसी व
गैरदुष्ट भी अपने कर्त्तव्य से विचलित हो गये हैँ व सिर्फ ढ़ोग व पाखण्ड
से जुड़े हैँ .

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संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

नारको परीक्षण व ब्रेन मेपिंग अनिवार्य क्योँ न हो ?

बचपन से ही मैँ परिवार व स्कूल मेँ ऐसा झेलता आया हूँ ,जिससे मैँ पांच
साल पहले ही इस निष्कर्ष पर पहुँच चुका हूँ कि भारतीय समाज विशेष रुय से
परिवार व स्कूल न्याय व्यवस्था से दूर हैँ .परिवार व स्कूल क्योँ ? इस
शरीर को धारण करने के बाद परिवार व स्कूल से ही वास्ता रहा है मेरा .मैँ
देख रहा हूँ कि इन्सान इतना गिर चुका है कि जिस कारण बने हालातोँ मेँ अब
सिर्फ सबूत व गवाह ही काफी नहीँ हैँ.व्यवस्थाओँ के ठेकेदार ही
चापलूसी,हाँहजूरी व निज स्वार्थोँ मेँ व्यवस्थाएं बिगाड़ने मेँ लगे
हैँ.ऐसे मेँ नियुक्तियोँ ,प्रत्याशी चयन व न्याय प्रणाली आदि मेँ नारको
परीक्षण व ब्रेन मेपिंग आदि भी अनिवार्य होना चाहिए .

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संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>