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रविवार, 13 जनवरी 2013

तीर्थ अर्थात जो पाप से मुक्त करे !

तीर्थ का मतलब है जो पाप सेँ मुक्ति दिलाए .

मैँ जब कक्षा पाँच का विद्यार्थी था तभी से शान्तिकुञ्ज के आध्यात्मिक
साहित्य से जुड़ गया था . कक्षा छह मेँ कुरुशान अर्थात गीता का अध्ययन
प्रारम्भ हो गया था.कक्षा आठ तक आते आते संत कबीर ,रैदास ,जैन व बुद्ध
,सम्राट अशोक का धर्म प्रचार हमेँ प्रभावित करने लगा था. कक्षा बारह मेँ
आते आते आर्यसमाज के सत्संगोँ मेँ शामिल होने लगा था.'क्या है और क्या
होना चाहिए'पर चिन्तन प्रभावित था.

इलाहावाद कुम्भ मेला प्रारम्भ हो चुका है.करोड़ोँ की संख्या मेँ ऋद्धालू
वहाँ पहुँच रहे हैँ.ऐसे भी है जो भारतीय संस्कृति के संवाहक होने के
बाबजूद वहाँ नहीँ पहुँच पायेँगे.जो वहाँ नहीँ पहुँच पायेँगे उनके पाप
नहीँ धुल पायेंगे.हूँ!उनके पाप नहीँ धुल पायेंगे ?

तीर्थ का मतलब है,जो पाप से मुक्ति दिलाए. तीर्थ को जो जाते हैँ वो पाप
से मुक्त हो कर आते हैँ ,हमेँ आश्चर्य है.
ऐसे मेँ मुझे संत कबीर याद आते हैँ ,संत रैदास याद आते हैँ .संत नानक याद
आते हैँ,जो एक बार ही जीवन मेँ गंगा स्नान करते हैँ .


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संस्थापक <
manavatahitaysevasamiti,u.p.>

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