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गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

मनमोहन सिंह अप ने को ����� ायें जनप् रिय! पर टिप्पणी.

अनुनाद सिंह ने पोस्ट " मनमोहन सिंह अपने को ब��ायें जनप्रिय! " पर एक टिप्पणी
छोड़ी है:

अबतक की म म सिंह की रिपोर्ट कार्ड-

१) वे इमाननादर हैं या नहीं, कहना मुश्किल है। किन्तु वे बेइमान और भ्रष्ट नेताओं से घिरे
हुए हैं और उनके संरक्षक हैं।

२) वे अर्थशास्त्र की बड़ी-बड़ी डिग्रियाँ लिये हुए हैं किन्तु वे अर्थशास्त्री नही हैं। भारत
की अर्थव्यवस्था की न उनको कोई समझ है न उस पर उनका कोई नियंत्रण।

३) वे न कभी लोकप्रिय थे न होंगे। उन्होने साबित किया है कि वे 'मनमोहन सिंह' नहीं
बल्कि 'म्याऊँ-म्याऊं सिंह' हैं

अनुनाद सिंह द्वारा दी गयी यह रिपोर्ट मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने के बाद की रिपोर्ट है.हाँ यह सत्य है कि वे कभी जनप्रिय नहीं रहे हैं.यदि वे कठोर निर्णय ले कर काला धन विदेश से मंगवाने के कमर कस लें तो कुछ बात बन सकती है.

बुधवार, 20 अप्रैल 2011

मनमोहन सिंह अपने को ब��ायें जनप्रिय!

कहते हैं कि भविष्य में 'म' अक्षर के नाम से कोई व्यक्ति देश के अन्दर व बाहर काफी महत्वपूर्ण होगा. प्रधानमंत्री बनने से पूर्व मनमोहन सिह का चरित्र ईमानदार व विवेकवान था ,जो कि उनके परिचितों के लिए एक आदर्श था.अब जनता से आवाज आती है कि वे तो कठपुतली बन चुके हैं.मेरा मानना है कि आज अवसर है कि वे अपनी ईमानदारी व विवेक को जनता के सामने सत्ता मोह त्याग कर दिखा दे.उनके लिए ही क्या देश के हर देशभक्त नागरिक के लिए देश हित कुछ करगुजरने का मौका है.आजादी की लड़ाई के दौरान तो हम मौजूद नहीं थे कि अपनी प्रचण्ड देशभक्ति का प्रदर्शन करते.देश मेँ बदलाव की उम्मीद रखने वाले हर व्यक्ति को अब हर वक्त काले धन को भारत मे मगाने व भ्रष्टाचार के विरोध मे वातावरण बनाने मे सहयोग करना चाहिए.मनमोहन सिंह यदि अपना स्वर्णिम इतिहास चाहते है तो उन्हे भी सहयोग करना चाहिए.तुम्हारी ऐसी देशभक्ति को मै दुत्कारता हूँ जो सिर्फ मुगलों ,अंग्रेजो,विदेशियों व दूसरी जाति के खिलाफ लड़ने वाले व्यक्तियों के पक्ष में जागती है लेकिन अपने माँ बाप की उम्र के स्वजन ही जब देश को कुप्रबन्धन व भ्रष्टाचार के दलदल मे फंसाते जा रहे हैं तो तुम्हारी देशभक्ति खामोश हो जाती है.तब फिर कृष्ण भक्त व कृष्णवंशी खुद को मानने वाले ही श्रीकृष्ण के कुरुक्षेत्र मे दिये गये अर्जुन को संदेश(कुरुशान) भूल जाते हो.हां अमेरीका जैसा देश जरूर अफगानिस्तान मे तालिबान से लड़ रहे अपने सैनिकों को गीता संदेश(कुरुशान) रुपी अस्त्र पकड़ा सकता है.देशभक्तों को देश मे कालेधन के वापस आने के समर्थन मे आन्दोलन मे हरहालत मे कूदना चाहिए .नहीं तो भविष्य हमे माफ नहीं करेगा.बाबा रामदेव का कहना है कि 400लाख करोड़ रुपया काले धन के रुप में विदेशी बैँको मेँ जमा है.स्विस बैंक के आधिकारिक सूत्रो का कहना है कि भारतीयों का 280लाख करोड़ रुपया केवल उनके बैको मे जमा है.इस धन से देश में 30वर्षों तक पूर्णत: करमुक्त अर्थव्यवस्था चलाउ जा सकती है.यह धन यदि भारत वापस आ जाए तो 60करोड़ नई नौकरियों को सृजनित किया जा सकता है.देश के सभी गांवो को दिल्ली से फोर लेन सड़कों से जोड़ा जा सकता है.यह धन 5 00 सामाजिक परिजनाओं को दीर्घ काल तक मुफ्त बिजली देने मे सक्षम होगा तथा प्रत्येक देशबासी को को 2000रुपया 60 वर्षों तक वितरित किए जा सकेंगे.फिर अन्ना कहां गलत हैं जो भ्रष्ट राजनेताओं और अफसरशाहों की दुरभि संधि को बेनकाब करने का बीड़ा उठाए हैं.देश के 58 करोड़ नागरिको की विपन्नता राजनेताओ और नॉकरशाहोँ के कारण है.


मै फिर कह रहा हूँ कि देशभक्तो चचा भतीजावाद जाति वाद से ऊपर उठ कर अन्ना व रामदेव बाबा के समर्थन में कूद पड़ें.यह लड़ाई लम्बी है,भ्रष्ट नेता अनेक बहाने इस मुहिम में अवरोध लगाने लगे हैँ.



मनमोहन सिह अपनी आंखे खोलो.आपको राजनैतिक सेनापति बनते देर नहीं लगेगी.भविष्य आपके साथ है.



अंधेरे में रखी माचिस! हमारे अन्दर भी नारी ह��....

हमारे अन्दर भी नारी है.जिसका हमें ज्ञान नहीं है,जिस तरह कि अन्धेरे कमरे में रखी माचिस.जिस माचिस के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं हो.एक और उदाहरण है कस्तुरी मृग का ,वह न जाने कहां कहां भटकता है?जो उसके ही पास है,अज्ञानता मे उसके लिए ही भटकता है.



जो ब्राह्माण्ड मे तत्व हैं ,वही तत्व हमारे शरीर में भी उपस्थित हैं.हमारे शरीर के अन्दर भी एक प्रकाश है,जो कि हमारे मन व हमारे नजरिये के कारण हमारे एहसास से दूर है. ओशो ने यहां तक कहा है कि हमारे अन्दर भी सम्भोग होता है.संसार मे जब आपको अचानक किसी को देखकर प्रेम हो जाता है,तो उसका कुल मतलब इतना होता है कि आपके भीतर जो प्रतिछवि है, उसकी छाया किसी मे दिखाई पड़ गई,बस. इसलिए पहली नजर में भी प्रेम हो सकता है,अगर किसी में आपको वह बात दिखाई पड़ गई,जो आपकी चाह है.चाह का मतलब ,जो आपके भीतर छिपी स्त्री या पुरुष है किसी मे वह रुप दिखाई पड़ गया ,जो आप भीतर लिए घूम रहे हैं,जिसकी तलाश है.



प्रेम अपने उस जुड़वा हिस्से की तलाश है,जो खो गया है;जब मिल जाएगा,तो तृप्ति होगी. यही शिव का अर्द्धनारीश्वर रुप है.बायोलाजिस्ट भी आज इसस बात को स्वीकार करते हैं.
सखि सम्प्रदाय मेँ भी कुछ ऐसा ही है.नारी या पुरुष की आधी निर्गुण शक्ति उसके अन्दर अन्धेरे कमरे मे रखे माचिस की तरह होती है जिससे वह अन्जान है.प्रकृति(माँ)का एक हिस्सा होता है हमारा शरीर . जो कि स्त्री या पुरुष होता है व हमारा सूक्ष्म शरीर स्त्री या पुरुष होता है.भाव व मनस शरीर स्त्री मे पुरुष का व पुरुष मे स्त्री का होता है.इन चार शरीरों से ऊपर पांचवा शरीर आत्मा होता है,जो कि अलिंगी होता है न कि स्त्री या पुरुष.

सोमवार, 18 अप्रैल 2011

नकल बन्द नहीं हुई है ��ाहब !

शाहजहांपुर.एक समाचार पत्र लिखता है "नकल माफियाओं के नकेल डाल दी डीएम रिणवा ने ".नकल के लिए कुख्यात कटरी क्षेत्र में नकल माफियाओं के नकेल जरुर पड़ी है लेकिन नकल पर नहीं.जितने पैमाने पर नकल हेतु बेखौफ नकल माफिया जितना सक्रिय दिखते थे,उतना सक्रिय जरुर नहीं रहे नकल माफिया लेकिन विद्यालयों के अन्दर बड़ी सफाई व चतुराई से यह अपना काम निकाल ले गये. इन नकलमाफियाओं का इस पर जोर रहा कि किसी परीक्षार्थी पर नकलसामग्री न पायी जाए.मौखिक रुप से बता बत कर परीक्षार्थियों की मदद की जाए.बाहरी तत्वों को तो नकलविहीन माहौल लगता रहा लेकिन अन्दर ही अन्दर नकल होती रही.प्रशासन के द्वारा नियुक्त प्रतिनिधि आ आ के जाते रहे ,उन्हें सब ओके ही दिखा .पिछले वर्षों की अपेक्षा सब ठीक दिखा लेकिन पीछे की असलियत तो कक्षनिरीक्षकों के पास होती है.अभी कक्षनिरीक्षक व अन्दरुनी सचल दल ईमानदार नहीं हुआ है.नकल सामग्री क्यों न परीक्षार्थियों के पास पायी जाए,इसका मतलब यह नहीं कि नकलविहीन परीक्षा सम्पन्न होने लगी है?
अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'

शनिवार, 16 अप्रैल 2011

दूर तक जाएगी यह बात:मृ���ाल पाण्डे

अन्ना हजारे के अनशन की पटकथा को गांधी के नवजागरण अथवा उपहास का नाटकीय प्रतीक मान कर या लोकतंत्र की जय अथवा पराजय का संदेश दे रही हितोपदेशी कथा के रुप में कई तरह से लिखा जा सकता है लेकिन एक बात अभी भी साफ नहीं है विधेयक का प्रारूप बनाने वाली शिष्ट समाज के प्रतिनिधियों(तो क्या शेष समाज अशिष्ट है?)और सांसदों(क्या वे शिष्ट समाज के भी प्रतिनिधि नहीँ?)की मिलीजुली समिति मे बात अब किधर को मुड़ेगी और फल कैसा होगा?......2011मे जो लोग मंत्रिमंडल के सदस्यों के साथ बैठ कर इस विधेयक के प्रावधानो को संशोधित कर 15अगस्त तक संसद द्वारा पारित करवाने की बात कह रहे है,उनसे पूछना जायज है कि कानून बनाना तो संसद का ही एकाधिकार है.स्वयं संसद के किसी राजनीतिक दल या संसद के किसी राजनीतिक दल या संसद के सदस्य हुए बिना वे इसको बदलवा भी लें तो जस का तस पारित कैसे करवा पाएंगे?.......और यहां विनम्र अन्ना बहुत साफ नहीं कर पा रहे हैं कि लोकपाल बिल को संसद तक भेज कर वे और उनके सिपहसालार कौन से ने औजार किसी शमीवृक्ष के खोखल से निकाल लाएंगे,जो कायापलट कर देंगे?.....टीवी पर अन्ना ने भी कहा कि वे प्रधानमंत्री बन गये तो इतना भी नहीं कर पाएंगे,क्योंकि ज7अ अभी जागरुक नहीं है. तो यह काम कौ7 करेगा?



पर जो बात लोकपाल विधेयक के संदर्भ में निकली है,दूर तलक जाएगी.अन्ना का नेता विरोधी आन्दोलन जिस हद तक भ्रष्टाचार मिटाने की मांग करता है,उस हद तक वह चुनाव तंत्र मे भी शुद्धि की मांग करता है,जहां टीवी बंट रहे है.सांप्रदायिक मुद्दे उछाले जा रहे हैं.हर निर्वाचित सरकार पर पत्थर फेंक रही जनता के विश्वास अविश्वास मे झूलते मन का यह द्वेत अद्वेतवादी हिन्दुस्तानी राजनीति को लोकपाल के बावजूद पटरी से उतारकर कभी किसी सैनिक तानाशाह को नहीं न्यौत बैठे,इसकी गारंटी कौन लेगा? तहरीर चौक मे तो मिस्र की फौज गोलियां चलाने लगी है.

'राष्ट्रद्रोह' की परि���ाषा अवश्य परिभाषित ह���!

सिर्फ जन लोकपाल विधेयक ही नहीं ,सुप्रबन्धन के लिए अनेक कठोर विधेयक चाहिए.'राष्ट्रद्रोह' की परिभाषा पर विधेयक लाना भी आवश्यक है,जिससे राष्ट्रद्रोह का व्यापक स्वरूप सामने आ सके.


क्या आतंकवादी ,नक्सली,आदि ही सिर्फ राष्ट्रद्रोह में शामिल किए जाने चाहिए?राष्ट्रीय संविधान,सम्पत्ति,प्रतिभा ,आदि द्रोहियों को राष्ट्रद्रोह में शामिल किया जाना चाहिए और कानून के रक्षक , जज व वकील यदि संविधान विरोधी कार्य करते हैं,तो उन पर राष्ट्र द्रोह का ही मुकदमा चलना चाहिए.खद्यमिलावट व नकली दवाईयों के कार्य में लगे व्यक्तियों पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलना चाहिए.फूलन देवी जब हथियार उठा ले तो उसे अपराधी घोषित कर दिया जाए लेकिन....?
जिन कारणों से फूलन देवी बने ऐसे कारणों को देशद्रोही घोषित किया जाए.
राजनेताओं को कानून विरोधी साबित होने पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया जाए.कुल मिला कर राष्ट्रिय संविधान के विपरीत कार्य में लगे व्यक्तियों को राष्ट्रद्रोह मे शामिल किया जाए.



कल उच्चतम न्यायालय ने मानवाधिकार कार्यकर्ता विनायक सेन को जमानत दे दी.उन्हें छत्तीसगढ़ की एक अदालत ने राष्ट्रद्रोह और नक्सलियों को राज्य के विरुद्ध लड़ाई के लिए नेटवर्क स्थापना में मदद करने के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.






नक्सली अपने हिंसक रुप व विदेशियों की बुरी नियति से काम करने के कारण आलोचना के शिकार अवश्य हैं लेकिन यदि वे आम आदमी के हित में लड़ाई लड़ रहे हैं,तो क्या गलत है?जब कानून के रक्षक अपने जीवन में पच्चीस प्रतिशत तक कानून लागू न कर सबके लिए राजाबेटा बने रह सकते है तो आम आदमी की लड़ाई लड़ने वाले दोषी क्यों ?नक्सली निर्दोष हत्याओं के लिए दोषी अवश्य हैं लेकिन शेष मामले में वे दोषी क्यों?यदि वे दोषी है तो फिर गुरू गोविन्द सिंह ,शिवा जी ,भगत सिंह,चन्द्र शेखर आजाद ,आदि के चरित्र पर भी पुनर्विचार करने की आवश्यकता नहीं है क्या ? यदि दूसरे देश व दूसरी जाति से लड़ने वाले ही सम्माननीय हैं,तो हमें क्या गीता (कुरुशान)के श्रीकृष्ण सन्देशों के सम्मान पर क्या पुनर्विचार नहीं करना चाहिए ?हमने तो गीता (कुरुशान)से यही सीख ली है कि धर्म के रास्ते पर न कोई अपना या पराया नहीं होता.(गूगल में जा नक्सली कहानी या तन्हाई के कदम टाइप कर सर्च करें)
यदि नक्सली अहिंसक हो जाएं तो मैँ अपना जीवन नक्सलियों को समर्पित कर सकता हूँ.अभी नक्सलियों से मेरा यही कहना है कि अन्नाहजारे व बाबा रामदेव के समर्थन में एक दो वर्ष के लिए युद्ध विराम कर दें.







शुक्रवार, 15 अप्रैल 2011

आज की धार्मिकता व आध्��ात्मिकता के दंश!

एक मंत्री जी पर अनेक आपराधिक आरोप हैं,और अनेक बार जेल भी जा चुके है.एक पार्टी उनका समर्थन व एक पार्टी उनका पक्ष लेती है.ऐसे ही अन्य और भी हैं जिन पर लोक आयुक्त ने भी आरोप तय किए हैँ.इन विधायकों ,मंत्रियों ,आदि के सम्बन्ध राजनैतिक पार्टियों व अपराधियों से रहते हैं.जब से लोकपाल विधेयक पर चर्चा चली है,मैं इनकी जाति व समर्थकों से पूछता हूँ कि आपके नेता जी पर तो अनेक आरोप बनते है.अभी तक तो आप नेता जी के समर्थन में भीड़ इकट्ठी करते नजर आ रहे हैँ,अब लोकपाल विधेयक लागू होने पर आपके नेता जी तो फंसे फंसाये हैं.तब भी क्या आप थाने कचहरी के बाहर अपने नेता जी के समर्थन में नारेबाजी व तोड़ फोड़ करते नजर आयेंगे?

अभी तक हाँ हजूरी, चापलूसी ,आदि कर अपने स्वार्थ की रोटियां सेंकते आये हो?आपने व आपके नेता जी ने अन्ना जी के समर्थन या विरोध में कोई आचरण क्यों न किया?आप तो भाई बड़े हितैषी हैं ,न जाने क्या क्या लिखवाते हो बैनरों व पम्पलेटों मेँ?



अपने को कृष्ण भक्त या कृष्ण वंशी मानने वाले तक अपने स्वार्थ के लिए तो अपने क्षत्रियत्व का प्रदर्शन करते नजर आते हैं लेकिन समाज व देश के हित में भींगी बिल्ली बन जाते हैं.अफसोस ऐसे लोगों में वे लोग भी शामिल हैं जो अपने को ठाकुर या क्षत्रिय जाति का मानते हैं.यहां तक यह क्षत्रिय होने बावजूद अपराधियों को आश्रय देते हैँ.इन दिनों अन्ना हजारे के आन्दोलन के दौरान मैने महसूस किया जो समाज मे सीधेसाधे ,शान्त व कायर टाइप के व्यक्ति माने जाते हैं ;वे तक अन्ना हजारे के समर्थन में कुछ करगुजरने की तमन्ना रखते पाये गये और रोज मर्रे की जिन्दगी मेँ दबंगयी दिखाने वाले व सीना तान कर चलने वाले अन्ना के आन्दोलन में कहीं कहीं चर्चा करते तक नजर न आये.ऐसे में हमे कुछ पौराणिक वृतान्त भी सच होते नजर आये कि जो सन्त स्वभाव के लोग दुनिया में तटस्थ हो जिन्दगी जी रहे थे किसी देवी या देवता या अवतार के आने पर सक्रिय होगये. लेकिन धर्म व अध्यात्म के नाम पर ढोंग व मनमानी करने वाले तब भी सत्यान्दोलन के विरोधी थे अब भी विरोधी हैं.निज स्वार्थ में पूंजीवाद व सत्तावाद के कठपुतली हैं.अधर्म का नाश हो,धर्म की विजय हो का जयघोष लगाने वाले आम जिन्दगी में विभिन्न बहाने बना अधर्म को ही पोषित करते हैं.बड़ी ऊंची ऊंची हाँकने वाले तथा ज्ञान को सिर्फ अपने भौतिक स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करने वाले ज्ञान को आचरण मे उतारने वाले युधिष्ठिरों की खिल्ली उड़ाते हैं.

बुधवार, 13 अप्रैल 2011

साम्प् रदायिक द ंश के बीच!

आशुतोष ने पोस्ट " साम्प्रदायिक उन्म��द के दंश बीच सौहार्द! " पर एक टिप्पणी
छोड़ी :

"हम लोग रोज मर्रे की जिन्दगी मेँ कुछ मुस्लिमों के साथ भी सहज जिन्दगी जीते है,इतना
हिन्दुओं के साथ नहीँ."

1 आप ने कहा---- कुछ मुस्लिमों के साथ... नहीं श्रीमान मैं एक कदम आगे आप के समर्थन में
बोलता हूँ ..
हम ९८% मुस्लिमों के साथ सहज ही रहते हैं..वो भी हमारी तरह भारतीय हैं हमारे पूर्वज एक
हैं..और हमे आपत्ति नहीं उनसे..
कुछ १-२% हैं जो नाम बदनाम कर रहें है मुस्लिमों का उनको तो भागना होगा इस देश से वो
सबसे जायदा नुकसान हमारे मुस्लिम भाइयों का ही कर रहें है..

2

ये अतिम शब्द समझ में नहीं आये :"इतना हिन्दुओं के साथ नहीं" : हिन्दुओं के साथ आप ज्यादा
आसानी से रह सकते है श्रीमान..
एक उदाहरण देता हूँ आप को ::आप हिन्दू है और आप के सामने एक मकबरा पड़ता है तो आप
क्या करते है??? सर झुकाते हैं श्रद्धा से..ये स्वाभाविक हिन्दू गुण है.
लेकिन क्या सभी मुश्लिम बंधु सर झुका सकते है मंदिर के सामने ....नहीं क्यो कि उनका धर्म
इजाजत नहीं देता..
आप की अंतिम हिन्दुओं वाली पंक्तियों से असहमत हूँ.



आशुतोष जी, मोहम्मद साहब ने जिस दर्शन पर इस्लाम पन्थ की नींव डाली थी वह सनातन आर्य धर्म का गुण है न कि पौराणिक व सगुण उपासक हिन्दुओं के मन्दिर उपासना पर ?उपासना दर्शन मूर्तिपूजक हिन्दुओं के दर्शन से एक क्लास आगे है .पन्थ(धर्म नहीं)स्थलों व मूर्तियों के आगे में भी सिर नहीं झुकाता.हमें नहीं लगता कि कंकड़ पत्थर की बनी मूर्तियों मंदिरों के सामन सिर झुकाना ऋग्वैदिक दर्शन की देन है?हाँ,इन मूर्तियों मंदिरों का अपमान करना भी ठीक नहीं.


क्या कहा कि आप हिन्दुओं के साथ ज्यादा आसानी से रह सकते हैं?जिसे जिसे पता चलता है कि मैँ जातिपात छुआ छूत नहीं मानता वह हिन्दू हमसे दूरी बनाता चलता है.कुछ परिवारों में तो मुझे उन बर्तनों में नाश्ता या भोजन परोसा जाता है,जिन बर्तनों को कुछ खास अछूत समझी जाने वाली जाति के व्यक्तियों के लिए रखा जाता है.लेकिन गैरहिन्दूयों में ऐसा नहीं .जब मैने किसी दूसरी जाति मेँ विवाह करने वालों को सम्मान की बात कर कानून व दर्शन रखा है,तब भी मैं अलग थलग पड़ा हूँ.कुछ आर्य समाजी मुझे अपने समाज का समझ बैठते हैं लेकिन मैं उनसे भी दो कदम आगे का साबित होता हूँ. तमाम उपासना पद्धियों को नकार कर आर्यसमाजी ढंग से सब कुछ कर वे अपने को आर्यसमाजी महसूस कर सकते हैं लेकिन मैं नहीं.मैं मूर्तिपूजकों व पौराणिकों का विरोध नहीं कर सकता.मैं स्वयं अपने कमरे में देवी देवता के चित्र मूर्तिया व ग्रन्थों रखता हूँ,यह अलग बात कि मैँ उनके सामने सिर नहीं झुकाता.यह आर्य समाजी अपनी जाति के युवक युवतियों से बाहर निकल कर अपनी बेटी बेटियों के शादी की नहीं सोंच सकते लेकिन मैं सोंच सकता हूँ.मैं जाति व्यवस्था के स्थान पर वर्णव्यवस्था या फिर गोत्र व्यवस्था का समर्थक रहा हूँ.यदि डाक्टर युवक या युवति किसी दूसरी जाति के डाक्टर युवती या युवक से शादी करता है तो क्या गलत करता है ?


शेष फिर....

गले में फंसी हड्डी !

इण्टरनेट पर खबरइण्डिया ने समाचार दिया है कि राजनैतिक दलों ने विद्यार्थियों को अपने ऐजेण्डे से बाहर कर दिया है.अभी देखो आगे क्या क्या होता है? ऐ राजनैतिक दल आगे चल कर किस स्थिति में होंगे?सब सामने आ जाएगा.जनता को अपनी निगाहें अति पैनी रखनी हैं.जन लोकपाल विधेयक पर संसद के अन्दर जो होगा ,वह सामने आयेगा ही .इससे पूर्व इसके निर्माण पर भी समिति के अन्दर अनेक व्यवधान आयेंगे. अपराध के दलदल में फंसे राजनेताओं की स्थिति कुत्ते के गले मे फँसी हड्डी की तरह हो जाएगी,न उगलते बने न निगलते.फिर ऐसे मे वे झुंझला कर कुछ भी कर सकते है जिसके लिए जनता को सतर्क रहना है.हाँ,ऐसा भी होता है फिल्मों मे एक दो चरित्र ऐसे दिखाये जाते हैं जो कि अपराध के दलदल मे फंस कर खलनायक के समर्थन मे होते है लेकिन फिर जब होश आता है काफी देर हो चुकी होती है .उसकी मौत के साथ ही उसके अपराध की लीला समाप्त होती है या फिर अपना अपराध कबूल नायक के समर्थक हो जाते हैं.




अन्ना जी ,अभी बहुत कुछ सहना पड़ेगा .जिसकी शुरुआत हो चुकी है.30जून आने व लोकपाल विधेयक लागू होने तक शीत युद्ध के साथ साथ अनेक लांच्छन व दबाव से म पड़ेंगे.

केन्द्र सरकार ने कहा है कि लोकपाल के अन्तर्गत उद्योगपति व स्वयंसेवी संस्थाएं भी शामिल होना चाहिए,इस पर मैं सहमत हूँ.प्राइवेट संस्थाओं को भी इसमें शामिल करना चाहिए.

साम्प्रदायिक उन्म��द के दंश बीच सौहार्द!

पूर्व की पोस्ट पर प्रतिक्रिया मेँ
अरविन्द जी ठीक बताया लेकिन
आशुतोष जी मेरी इस बात पर सन्तुष्ट नहीं हैं.उनका कहना भी ठीक है कि जम्मू के आगे देखो.




मैने जो लिखा है ,अपने आस पड़ोस के स्तर पर रोज मर्रे की जिन्दगी का कुछ लम्हा लिखा है.

व्यापक तौर पर नहीँ.

हम लोग रोज मर्रे की जिन्दगी मेँ कुछ मुस्लिमों के साथ भी सहज जिन्दगी जीते है,इतना हिन्दुओं के साथ नहीँ.

होली हो या ईद कुछ गैर हिन्दू व गैरमुस्लिम मिल जुल कर खुशियों का इजहार करते हैँ.





बरेली स्थित नबाबगंज नगरपालिका परिषद द्वार प्रति वर्ष होली व ईद मिलन समारोह का आयोजन होता है.



हाँ,यह सत्य है कट्टरवाद समाज मेँ विष घोलता रहा है.

मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

ये है हमारे देश का धा���्मिक चरित्र-दलित रिट���यर हुआ तो रूम को �-ोमू���्र से धोया! and more

दलित जब रिटायर हुआ तो उसके रुम को गौमूत्र से धोया गया ,यह है हमारे सनातन धर्म के संवाहक हिन्दू समाज का चरित्र. जब मैं कहता हूँ कि सनातन ऋग्वैदिक दर्शन के संवाहक मुस्लिम तो हो सकते हैं लेकिन वर्तमान सगुण व जातिवादी हिन्दू नहीं तो ये हिन्दू बौखला पड़ते हैं.जब मैं कहता हूँ कि यदि मुझसे कहा जाए कि हिन्दू व मुस्लिम शब्द में से किस शब्द को स्वीकार करना चाहेंगे तो मेरा उत्तर होगा-मुस्लिम.अनेक सबूत कह रहे है कि वर्तमान सृष्टि में आर्य ही मानव सभ्यता व संस्कृति के जनक हैं और आर्य के गुणों में मैँ हिन्दू को शामिल नहीं कर सकता.जैन,बुद्ध,ईसा,मुस्लिम,आदि को आर्य गुण माना जा सकता है.



एक समाचार और सामने आया कि मुस्लिम देश में सबसे सुरक्षित हैँ.सही समाचार है कि देश में सबसे सुरक्षित हैं मुस्लिम .मैं अपने आस पड़ोस में देखता हूँ-हिन्दू व मुस्लिम समाज(नेटवर्क) , वास्तव में मुस्लिम समाज एक नेटवर्क की विशेषताएं रखता है.एक सच्चा ,उदार ,निर्गुण(समृद्ध विचार व भावना आधारित),आदि मय हिन्दू अपने परिवार में ही अलग थलग पड़ जाता है,ऐसा हिन्दू परिवार हिन्दू समाज में.



मेरे जीवन मेँ मेरे लिए मुस्लिम ही मेरे अच्छे मित्र साबित हुए हैं.और फिर मुसलमान का अर्थ है अपने ईमान पर पक्का होना,सब नहीं तो कुछ तो है मुस्लिम समाज में जो कबीरों को आश्रय देना अब भी जानते हैं.मेरी तन्हाईयां भी मुस्लिम समाज में मिटी है. रोजमर्रे की जिन्दगी में सामूहिकता के लिए त्याग की भावना मैने मुस्लिमों में देखी है.दो साल पूर्वतक अपनी शादी तय करने की परिस्थितियों के दौरान मेरे दहेजहीनता,स्पष्टता,,ईमानदारी,लक्ष्य दर्शन की अभिव्यक्ति ,शादी बाद सामने आने वाले मतभेदों के मद्देनजर न्यूनतम साझा कार्यक्रम की अभिव्यक्ति,अपने विचारों की स्पष्टता,आदि गुणों के कारण अपने परिवार,जाति,हिन्दू समाज में अलग थलग पड़ा ही , शादी की छोंड़ो मित्रता की दृष्टि से तक कोई युवती मुझे स्वीकार करने वाली न थी,जो थीं भीं वे गैरहिन्दू.मेरे मानवीय विचारों,प्रेम की वास्तविक परिभाषा से सब असन्तुष्ट थीं.मैने गैरहिन्दू समाज में इंसान को इंसान के करीब ईमानदारी के साथ देखा है.



वास्तव में मुस्लिम सुरक्षित ज्यादा है.इसका मुख्य कारण उनकी एकता व समूह के लिए त्याग की भावना है.हिन्दू हमें हिन्दू भावना से दिखता नहीं.वह हिन्दू होने के नाते हिन्दू के साथ रोजमर्रे की जिन्दगी मेँ क्या करता है?गैरहिन्दू समाज इतना विचलित नहीं है जितना कि हिन्दू समाज.उसे अभी हजारों दयानन्द व विवेकानन्द की आवश्यकता है.वर्तमान जो संत हैं भी उनमें पुनर्जागरण के लिए ईमानदारी कहाँ?


सारी....


इस वक्त अपनी एनर्जी अन्ना हजारे के मिशन पर लगानी है.

क्या आप हैं हमारे साथ ?


रविवार, 10 अप्रैल 2011

अन्ना हजारे संग मेरी ��नोदशा !

बाबा रामदेव जी के द्वारा नगर नगर जा कर अपने योग शिविरों में कालेधन व भ्रष्टाचार पर विचारों ने देश को प्रभावित करने के साथ साथ मुझे भी प्रेरित कर रखा था.जब छब्बीस फरबरी को अन्ना हजारे ने सम्बाद दाता सम्मेलन बुला कर नागरिक समाज द्वारा तैयार किए गए जन लोकपाल विधेयक पर पांच अप्रैल तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कोई फैसला न लेने पर आमरण अनशन पर बैठने की घोषणा करने के बाद मुझमेँ भी कुछ कर गुजरने की तमन्ना जागी.सन 2000ई0के आते आते में अन्ना हजारे के दैनिक जीवन व मूल्यों से प्रभावित हो अपने लेखों व सम्वादों में उनका जिक्र करने लगा था.सन 2002ई0में स्वसम्पादित व प्रकाशित पत्रिका 'स्पर्श' में भी मैने अन्ना पर दो पेज प्रकाशित किए थे.


15जून1938ई0को महाराष्ट्र के रालेगांव सिद्धी गांव में जन्मे किशन बाबूराव हजारे आज अन्ना हजारे नाम से पूरी दुनिया मेँ चर्चित हो चुके हैं.जो कहते फिरते हैं कि देश में आदर्श व्यवस्था स्थापित नहीं की जा सकती ,अन्ना हजारे कार्यों से प्रेरणा लेनी चाहिए.यह अपने स्वार्थ में राजनीति को व्यवसाय समझने वाले राजनेताओं की अब भी चाटुकारिता नजर आते हैं.जो चोर को चोरी करना, कत्लियों को कत्ल करना ,शराबी का शराब पीना,दबंगों की दबंगयी करना,आदि नहीं रोक सकते ऐसे राजनेताओं को समर्थन करने वाले मूर्ख हैँ.अब भी ऋणात्मक सोंच रखने वाले व्यक्ति यही कहते फिरते हैं कि आम आदमी का भला होने वाला नहीं. किशोरावस्था से मैं अभी तक जो सोंचता आया था ,उसको धरती पर लाने काम अब शुरु हो चुका है.मेरा एक ख्वाब था कि तमाम बुद्धिजीवी,कलाकार,साहित्यकार,संत,आदि बदलाव के लिए एक मंच पर आयेँ,यह ख्वाब अब पूरा होता नजर आ रहा था.मैं विचार बना चुका था ,जन्तर मन्तर पर जाने का.लेकिन इससे पूर्व मैं स्थानीय स्तर पर अपने नेतृत्व में कार्यक्रम कर लेना चाहता था.आस पड़ोस में होने वाले कार्यक्रमों में शामिल हो अनुभव बटोरने लगा था.आखिर रविवार,10अप्रैल को 8.00 AM का समय हमने निश्चित कर लिया,जिसके तहत कार्यक्रम में जलूस व एक सभा तय थी.इस बीच मैने अनुभव किया कि जो बड़ी मुश्किल से वोट डालने नहीं निकलते वे इस जनान्दोलन का हिस्सा बनने के लिए व्याकुल हो चले थे.इन दिनों में दुनिया को यह मैसैज भी मिला कि लोग सिर्फ राजनैतिक पार्टियों की भीड़ का ही सिर्फ हिस्सा नहीं बन सकते.



वास्तव मे हममे यदि थोड़ा भी धर्म जिन्दा है ,तो ऐसे कार्यक्रमों के दौरान खामोश नहीं बैठ सकते. लेकिन तब भी हमे ऐसे लोग भी मिले,जो कहते कि अपने को देखो व अपनी फैमिली को देखो.मैं उनसे कहता कि शायद आप धर्म की एबीसी तक नहीं जानते,धर्म के रास्ते पर अपना कोई नहीं होता और जो अपने को सामाजिक समझ कर मेरी सामाजिकता पर अंगुली उठाते हैं,शायद प्रभु हमेँ ऐसा अवसर देगा जब मै दुनिया को सामाजिकता दिखाऊंगा.इन्सानियतहीन व मेरीगैरानुपस्थिति में भी सम्पन्न होने वाले उन सामाजिक कार्यों में जिनसे इंसानियत का उद्धार नहीं होता ,उनमें भागीदार न होने से यदि हम पर असामाजिकता का ठप्पा लगता है,तो चलॅगा लेकिन महान लोगों के पथ पर मैँ कुर्वान होना सहर्ष स्वीकार करुंगा.इन दिनो मैने महसूस किया है कि देश का बुद्धिजीवी अन्ना के साथ खड़ा था,मैं मामूली सा व्यक्ति कैसे पीछे छूट जाऊँ?

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

जन जन अन्ना की आवाज!

मीडिया के माध्यम से जन जन तक अन्ऩा की आवाज पहुंच कर जन जन के दर्दों को उकेर राजनेताओं के खिलाफ एक बुलन्द आक्रोश बनती जा रही है.जिस तरह भक्ति दक्षिण से आकर यहाँ आन्दोलित हो गयी थी,इसी तरह अब दक्षिण से अन्ना हजारे के रुप मेँ बदलाव की एक लहर दिल्ली आकर पूरे देश को आन्दोलित कर रही है.जो विकराल रुप धारण कर केन्द्र सरकार का तख्ता भी पलट सकती है.देश के अन्दर हर तहसील व जनपद स्तर पर अन्ना के समर्थन में आवाज तेज होती जा रही है लेकिन हमेँ दुख है इन समर्थकों में मुस्लिम जनता क्यों नहीं नजर आ रही है,एक दो लोगों के अलावा?मुसलमान का अर्थ होता है,अपने ईमान पर जो पक्का है.क्या उनके ईमान में भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना शामिल नहीं है?


खैर....!


कल मैं अपने पैत्रक जनपद शाहजहांपुर में अन्ना के समर्थन हो रहे कार्यक्रम में शामिल हुआ.पढ़ा लिखा युवा जो जरा सा भी देश के प्रति लगाव रखता है,उसे अन्ना हजारे प्रभावित कर रहें लेकिन अफसोस कि अब भी लोग यह नजरिया रखते हैं कि अन्ना हजारे की जीत से क्या फायदा?ऐसे लोग जब क्रिकेट मैच देखने के लिए टीबी से चिपके रहते हैं व इण्डिया की जीत पर आतिशबाजी व मिठाई बांटने का काम करते हैं तो क्या फायदा ?हमें विचार करना चाहिए अन्ना हजारे की सफलता में सारे देश की सफलता छिपी है.


देखा जाए तो अन्ना हजारे पूरे देश के आम आदमी की कुप्रबन्धन के खिलाफ भड़ास हेतु एक माध्यम बन चुके हैं.जो अन्ना हजारे का समर्थन कर अपनी भड़ास भी निकाल लेना चाहते है.भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार,शोषण पर शोषण,अन्याय पर अन्याय.....आखिर खामोशी कब तक ?




आने वाले अगले दस वर्ष दुनिया मेँ काफी परिवर्तनशील हैं.ऐसे में जो जाग गया तो ठीक,नहीं तो फिर उसका खुदा ही मालिक.


सचिन तेन्दुलकर,अमिताभ बच्चन,आदि कहाँ?बहुराष्ट्रिय कम्पनियों की बुनी चादर को ओढ़े सो गये का ?हम जैसे का पागल हैं,जब से अन्ना दिल्ली में अनशन पर हैं हम अन्ना के समर्थन में इण्टरनेट व ब्लागिंग के माध्यम से रात में भी वैचारिक क्रान्ति में लगे हैं और दिन मेँ लोगों से मिल कर अन्ना पर बात कर रहे हैं.

मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

राजनैतिक दंशोँ की उपेक्षा :अन्ना हजारे

अन्ना हजारे अपने समर्थकों के साथ नई दिल्ली स्थित जन्तर मन्तर पर अनशन करने आ पहुंचे हैं.जन लोकपाल विधेयक लागू करवाने के पक्ष में अनशन का आज पहला दिन था.अपने इस आन्दोलन में किसी राजनैतिक नेता को न बोलने देना, उनकी निष्पक्ष गैरराजनैतिक छवि को दर्शाता है.उनका यह कहना उचित ही है कि इस आन्दोलन का लाभ हम किसी राजनैतिक पार्टी को नहीं उठाने देंगे. इस जनान्दोलन के मंच पर राजनैतिक नेताओं को बोलने का मौका देना जनता की आवाज के खिलाफ है.जनता ने यह दर्शा भी दिया.यदि राजनेताओं को समर्थन ही करना है तो अपने अपने क्षेत्र में अपने समर्थकों के साथ सक्रिय होँ.जैसा कि देश के विभिन्न स्थानों से समर्थन मेँ सक्रियता के समाचार मिल रहे है.



राजनैतिक नेताओं का क्या जन्तर मन्तर पर बोलना आवश्यक ही है? मंच पर बोलने नहीं दिया जा रहा है,यह जान कर अनेक राजनेता अपनी टीम के साथ वापस लौट गये तो इसका मतलब क्या है?देश की जनता इसे खूब समझती है.यह राजनेता समर्थन में वहां रुक कर समर्थन बैठ तो सकते थे.



आखिर आदतें ऐसे कैसे जाएंगी ? और फिर देश के कुप्रबन्धन व भ्रष्टाचार में इन नेताओं का प्रत्यक्ष नहीं तो अप्रत्यक्ष योगदान है ही.सेवा भाव से अभी तक कितनों ने राजनीति की है ?



शेष फिर.....



जय कुरआन जय कुरशान !

OM...AAMEEN!

अन्ना हजारे का जन लोक���ाल विधेयक !

कहावत है कि घड़ा कभी न कभी भरता ही है.



भारत के शुभेच्छुओं क्या देश के कुप्रबन्धन व भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलन्द नहीं होना चाहिए?यह सोंच कब खत्म होगी कि भगत सिह अन्य घर मे पैदा हो लेकिन हमारे घर मे नही.भगत सिंह नहीँ तो कबीर नानक दयानन्द आदि अपने घर मे पैदा होने की आस तो रखो.क्या कहा यह भी नहीं?
छोंड़ो,अन्ना हजारे ,राम देव बाबा का संदेश
घर घर पहुंचाने का काम करो.



अन्ना हजारे जिस जन लोकपाल विधेयक को पास कराना चाहते हैं,उस माध्र्यम से ही देश की नेताशाही व नौकरशाही को ठीक किया जा सकता है. इसको ताकतवर बनाने के लिए दिल्ली के जंतर मंतर पर अन्ना हजारे के नेतृत्व में आमरण अनशन प्रारम्भ हो चुका है. भ्रष्टाचार में व्यापक भागीदारी वाले मंत्री और नौकरशाह कभी भी स्वैच्छिक रुप से किसी भी ऐसे कानून को नहीं बनाएँगे जिससे उन पर ही फंदा कस जाए.



जन लोकपाल विधेयक के प्रमुख बिन्दु हैं-भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने वाली सीवीआई के हिस्से को इस लोकपाल में शामिल कर दिया जाना चाहिए,सीवीसी और विभिन्न विभागों में कार्यरत विजिलेंस विंग्स का लोकपाल में विलय कर दिया जाना चाहिए.लोकपाल सरकार से एकदम स्वतंत्र होगा.नौकरशाह ,राजनेता और जजों पर इनका अधिकार क्षेत्र होगा.बगैर किसी एजेंसी की अनुमति के ही कोई जांच शुरु करने का इसे अधिकार होगा.विसलब्लोआर को संरक्षण प्रदान करेगा,आदि.



देश के प्रबुद्ध नागरिकों द्वारा तैयार जन लोकपाल विधेयक एक ऐसा विधेयक है जिसे कानून बना कर भ्रष्टाचार को समूल खत्म किया जा सकता है.इसकी जांच के दायरे में प्रधानमंत्री भी शामिल रहेगा.इस विधेयक में बगैर किसी की अनुमति लोकपाल द्वारा किसी भी जांच को को शुरु करने का,भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले व्हिसल ब्लोअर की सुरक्षा का भी प्रावधान है.

सोमवार, 4 अप्रैल 2011

भविष्य कथांश:कुछ भी ह�� सकता है!

अभी चन्द मिनटों पहले ( 11.36PM,04APRIL2011 )में नींद से जाग उठा,स्वप्न मेँ भूकम्प के झटके ! वातावरण में धुंध व शीतलता.मैं हिमालय की ओर भागने को होता हूँ लेकिन एक कमरे के कोने में खड़ा हो अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य आर के दूबे व अपने पिता प्रेम राज से कह रहा था "इधर कोने में आ जाओ.बाहर जहरीली हवा है और अन्दर भी भूकम्प के कारण खतरे?इधर इस कोने में आ जाओ."

फिर मैँ पद्मासन मेँ बैठते हुए "प्रकृति को हम नहीं बख्श सकते तो वह हमें क्यों बख्शे?प्रकृति हमें अब भी बख्श देना चाहती है लेकिन हमारे द्वारा तैयार किए गये भस्मासुर हमेँ नहीं बख्शेंगे."


कुछ बन्दर बरामडे में आ घुसे थे.कुछ दिनों से मैँ बन्दरों का स्वभाव अजीब सा महसूस कर रहा हूँ ,शाम को भी.

मेरी आँखे खुल चुकी थीँ.



मैं सोंचने लगा कि


आधुनिक विज्ञान व सभ्यता ने निरे प्रकृति भोगवाद की और मोड़ दिया.


17वीं18वी शताब्दी के बाद हमारी सोंच बदली कि प्रकृति जैसी है वैसी ही रहने दो .


जापान से क्या हम सीख नहीं लेना चाहेगे?



भविष्य में भारत के साथ भी क्या ऐसा ही होने जा रहा है?देखते रहें-






हाँ यह सच है कि प्रकूति परिवर्तनशील है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि मानव इसमेँ तीव्रता ला दे.



मनुष्य अब एक नई मनुष्यता में प्रवेश में करने जा रहा है या फिर सामुहिक आत्म हत्या की ओर!


सामुहिक आत्म हत्या की मेरी परिभाषा कुछ
हट कर है.


खैर...



सन 2011-12ई से एक प्रकार का संधि काल है जिसमे जिसकी आँखे खुल गयीं समझो वह तर गया.


हाँ,इस धरती पर मनुष्य ही विधाता है लेकिन प्रकृति सहचर्य,धर्म(दया व सेवा) व अध्यात्म के साथ न कि कोरे भौतिक भोगवाद के साथ.जरा आचार्य श्री राम शर्मा की यज्ञपैथी व वैज्ञानिक अध्यात्मवाद ,श्री श्रीरविशंकर की आर्ट आफ लीविंग,ओशो स्वेट मार्डन व शिव खेड़ा की व्याख्याएं,जय गुरुदेव की साधना,अन्ना हजारे व बाबा रामदेव का आह्वान,आदि...


भी देखते रहेँ.



वैचारिक क्रान्तियां कभी बेकार नहीं जातीं.


ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'


रविवार, 3 अप्रैल 2011

अन्ना हजारे : देश भक्त���ं आ जाओ एक साथ

क्रिकेट विश्व कप 2011 की जीत को सारा देश खुश है.विदेश में बसे भारतीय भी काफी खुश हैं . देश भक्ति क्या इतनी सस्ती हो गयी है या फिर क्रिकेट के माध्यम से सोयी देश भक्ति जाग रही है? हे प्रभु क्या यह देश भक्ति व खुशी दिशा पा कर अन्ना हजारे व रामदेव बाबा के अभियान की और नहीँ बढ़ सकती ? यह देश भक्ति क्या जन लोकपाल विधेयक के पक्ष में अन्ना हजारे के साथ उमड़ पड़े? या फिर मैं यह समझूं कि आज की यह देशभक्ति पराजित इण्डिया टीम की अर्थी तो निकाल सकती है ,खिलाड़ियों के घरों पर तोड़ फोड़ तो कर सकती है लेकिन देश को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक जुट करने वाले अन्ना हजारे व राम देव बाबा का समर्थन नहीं कर सकती तो ऐसी देशभक्ति पर मैं थूकता हूँ और .....तता हूँ.



भारत के इस विश्व विजय की खुशी न मनाओ ,मैं यह नहीं कहता .बस,अन्ना हजारे के आह्वान को सुनो.आज देश को अन्ना हजारे जैसा महान देश भक्त मिला है , जिसके रास्ते को हमें स्वीकार करना ही चाहिए.नहीँ तो इतिहास हमें कभी माफ नहीं करेगा.कैसे देश भक्त हो?काला धन के रुप में जमा विदेश मे धन वापस अपने देश मे क्यों न मांगाना चाहोगे?जरा गणित तो लगाओ,लगभग 300लाख करोड़ रुपये भारत आ जाए तो देश के गांव की तश्वीर क्या होगी?6लाख38हजार 365गांव चमक उठेगे.क्या तुम नहीं चाहते देश की तरक्की ?और ए अमिताभ बच्चन .....मुम्बई की सड़कों पर तिरंगा लेकर झूमते नजर आये.मैं आपका बचपन से ही फैन रहा हूँ.आपकी फिल्मों के माध्यम से बालीवुड भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलने की हिम्मत जुटायी.आप से प्रार्थना है तिरंगा लेकर अन्ना हजारे के पास भी आ जाओ .अन्य से भी मेरी यह प्रार्थना है.अन्ना हजारे कहें तो मैं अपने शरीर का भी बलिदान करने को तैयार हूँ.आजादी की लड़ाई के बाद अब वक्त आया है फिर कुर्बानी का.गांधी ने भी कहा था कि देश आजाद तो हो गया लेकिन देश को संवारने के लिए भी शक्ति ,त्याग ,संयम, साहस व नैतिकता चाहिए.सिर्फ अपने लिए जीने वालों ने ही देश के गौरवशाली अतीत को रौंदा है.हम भूल जाते हैं कि हमारे फर्ज तीन तरह के होते हैं-अपने,अपने परिवार व समाज के प्रति.

जय हिन्द!


ओ3म - आमीन ! तत सत ओ3म - आमीन!

मुसलमान भाइयों सुनो !

देश को फिर बलिदानों की आवश्यकता है.भ्रष्टाचार व कुप्रबन्धन के खिलाफ अब आवाज तेज होनी ही चाहिए.खाड़ी देशों में जिस तरह तानाशाही सरकारों के खिलाफ बगावत है,उसी तरह इस देश मेँ भी प्रजातान्त्रिक ढंग से आन्दोलन आवश्यक है.भारत के मुसलमान क्या खाड़ी के मुसलमानों से कम हैं? इस देश के लिए मुसलमानों का योगदान कम नहीं है.तुम्हारे सहयोग के बिना देश में परिवर्तन असम्भव है.



भारतीय मुसलमान दुनिया के मुसलमानों से काफी बेहतर हैं.वे गैरमुसलमानों की संवेदनाएं महसूस करते हैं.वे कबीरों को आश्रय देना जानते हैं.



भ्रष्टाचार व काले धन की लड़ाई में हम सब को मिल सभी भेद भाव भुला कर अन्ना हजारे व रामदेव बाबा का समर्थन करना चाहिए.



भारत ने विश्व कप जीता अच्छा है.हमें इस पर खुशी मनाने का हक है लेकिन......?!

लोग मोबाइल पर मैसेज भेज रहे है HAPPY INDIA. लेकिन....



बस,ऐसे ही HAPPY INDIA..?एक ओर भुखमरी ,गरीबी ,लाचारी,बेरोजगारी, अन्याय,शोषण,मनमानी,भ्रष्टाचार,हिंसा,आदि!काहे को HAPPY INDIA...?कम से कम अभी जन लोकपाल विधेयक व काला धन के मामले पर अन्ना हजारे व राम देव बाबा का अभी तो समर्थन कर सकते है?तटस्थ भाव से जरा सोंचिए कि वे जिस मिशन को लेकर चल रहे है उससे क्या हमारा या देश का भला नहीं होने वाला क्या?



अपने ईमान पर मजबूत होना नाज की बात है.मुसलमान का अर्थ है अपने ईमान पर पक्का होना.

ऐ मुसलमान भाईयों ! देश के हित अन्ना हजारे व रामदेव बाबा के साथा आओ.


अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'



महेन्द्र सिंह धोनी ���े बाद अब अन्ना हजारे!

भारत को विश्वकप दिलाने में महेन्द्र सिंह धोनी व उनकी टीम के साथ सारे देश के निवासियोँ का आशीर्वाद भी था.अब 5अप्रेल से जन्तर मन्तर में अन्ना हजारे साथ पूरा देश उमड़ पड़े.अब दूसरी आजादी की तैयारी,आओ सब इसके लिए सब कमर कस लेँ.

अन्ना हजारे को समर्थन दें!



भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए ठीक तरह से बना हुआ लोकपाल कानून लागू करना होगा.यह ऐसे ही नहीं होने वाला,शायद इसके लिए बलिदानों की आवश्यकता पड़े?आओ कमर कस लें.



अपने लिए जिए तो क्या जिए आओ देश पे हो जाएँ कुर्बान!



ASHOK KUMAR VERMA'BINDU'


शनिवार, 2 अप्रैल 2011

देखो जीत गया विश्व कप-���ारत!

रविवार,मार्च की 06 तारीख !
मैने इण्टरनेट पर लगभग 1000फ्रेण्डस को लिख भेजा था-INDIA WILL WIN WORL-CUP.


दो दिन से मैं संसार मेँ न था.मानसिक व ऐन्द्रिक शून्यता में जी अपनी निजता (आत्मा ) में था सम्भवत: . महामृत्युञ्जय मन्त्र जाप का समय मैने बड़ा दिया था.एहसास था अन्त समय का.



शरीर सिर्फ हड्डी मास का नहीं बना होता है.मनुष्य के शरीर के सात स्तर हैं- स्थूल,भाव,एस्ट्रल,मेण्टल,स्पिरिचुअल,काजमिक और निर्वाण शरीर .प्रथम चार तक हम प्रकृति के साथ द्वेत में जीते है.यहां तक प्रत्येक स्तर पर प्राकृतिक सम्भावनाएं होती हैं.स्थूल स्तर पर काम,भाव स्तर पर भय घृणा क्रोध हिंसा आदि,एस्ट्रल स्तर पर सन्देह व विचार ,मेण्टल स्तर पर कल्पना व स्वपन.जोकि साधना रत होने पर क्रमश:स्थूल स्तर पर ब्रहमचर्य,भाव स्तर पर अभय प्रेम करूणा मैत्री आदि, एस्ट्रल स्तर पर ऋद्धा व विवेक, मेण्टल स्तर पर संकल्प व अतीन्द्रिय दर्शन की ओर ऊर्जा गतिशील हो जाती है.
यही गतिशीलता ही चेतना की यात्रा है,अन्तस्थ यात्रा है.
मैं इस अन्तस्थ यात्रा के लिए प्रयत्न करता रहा हूँ.इस यात्रा से बढ़ कोई यात्रा नहीं,हज नहीं.चेतना के अन्तस्थ तीर्थ हैं यह सात स्तर या चक्र या लतीफ या system . system यानि कि reproductory,excretory,digestive,skeletal,circulatory,respiratory,nervous and endocrinal system . श्रीअर्द्धनारीश्वर शक्तिपीठ ,नाथ नगरी,बरेली(उप्र)के संस्थापक श्री राजेन्द्र प्रताप सिंह'भैया जी' का कहना है कि साधना के पथ न चलने वाला या इस पर न चलने तक की लालसा न रखने वाला प्रकृतिक संभावनाओं में जीते हुए मरने के बाद भी मुक्ति नहीं पाते.इस अन्तस्थ यात्रा से बढ़ कर हमारी चेतना का कोई धर्म नहीं.




"मै एक दिन दुनिया से गुजर जाऊंगा.लेकिन मेरे शब्द वातावरण में गूँजते रहेगे.कोई आयेगा,उन शब्दों को फिय कहेगा. यह सनातन यात्रा जारी रहेगी.इस धरती पर नहीं तो अन्य कहीं...... !?"



अब 07 मार्च .....हालांकि आज मै उत्साहित व ऊर्जावान था लेकिन कुछ नया अहसास था सांसारिक बन्धनों से ऊपर उठ कर.



न जाने मन में क्या आया ,स्कूल मे मैं दूसरे पीरियड में 8cक्लास मैँ था.मेरी लेखनी-


"मैं एक दिन दुनिया से गुजर जाऊंगा लेकिन मेरे शब्द...... . "


एक विद्यार्थी निशान्त ,कसरक निवासी क्रिकेट विश्व कप2011 के बारे में मुझसे पूछा.


"इण्डिया को इस बार विश्वकप मिलना चाहिए."


मौन अपनी निजता से जोड़ता है लेकिन...अन्तर मौन की टूटन,भीड़ व स्थूल और स्थूल प्रभाव में अन्तर्मौन को टूटन से बचाव के लिए काफी अन्तर्बल चाहिए. महर्षि अरविन्द घोष ने कहा है कि साधना का पथ पे कभी कभी लगता है कि अब सफलता मिलने वाली है लेकिन देखा जाता है कि अगले कदम पर अवरोध आ जाते हैं.अन्धेरे आ घेरते हैं.तटस्थता व साक्षी भाव जबाब देने लगता है.अन्तर मन की शून्यता से स्वर फूटा था कि इण्डिया विश्व कप जीतेगी लेकिन स्थूल से सहचर्य ने .....?

"इण्डिया को इस बार विश्व कप मिलना चाहिए ? "






समय गुजरा !लगभग 01.14PMपर मै विद्यालय से नगर पालिका आकर अपना कुछ जनगणना सम्बन्धी कागजों पर साईन कर चौराह पर आते ही एक्सीडेण्ट मेँ बाल बाल बचा.जिसके गवाह थे प्राईमरी सेक्शन के अध्यापक अरविन्द मिश्रा.मैं अब भी शान्त भाव था लेकिन चौराहा पार कर मैं जब मीत एजेन्सी पहुंचा तो सोँचते सोंचते जैसा मेरा अस्तित्व हिल सा गया.



मै तो बच गया था लेकिन दूर मेरा सहपाठी रह चुका एक युवक एक एक्सीडेण्ट में इस दुनिया से चल बसा था.मेरी सहपाठी रह चुकी एक युवती के के पिता की मृत्यु सम्बन्धी स्वपन सत्य हो चुका था.




इन दिनों में मैने अनुभव किया है कि व्यक्ति की अन्तर्चेतना शाश्वत शक्ति की एक कड़ी है.यदि हम अपने शारीरिक ऐन्द्रिक सांसारिक प्रभावों से परे तटस्थ हो अपने तन्त्र(स्व तन्त्र) से जुड़ जाएं तो हम एक मोबाइल की तरह अनेक मोबाईलों से सम्बन्ध स्थापित कर सकते ही हैं ,इसके आगे की यात्रा के बाद....




शेष फिर!



शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

....काहे को जाति,काहे को समाज ?

जब इंसान ही इंसान के लिए बोझ बनता जा रहा है तो फिर काहे को जाति ,काहे को समाज?पुरातन नेटवर्किंग है-,,.....?!अब वैश्वीकरण व अर्थव्यवस्थता में नई तकनीक ने समीकरण बदले हैं.ब्राह्मण जाति में अपने को मानने वाले चर्म व्यवसाय व अन्य व्यवसायों में नजर आ रहे हैं,समाज में शूद्र माने जाने वाले अब शिक्षित हो पठन पाठन मेँ भी नजर आने लगे हैं .भक्ति काल ,सामाजिक सुधारान्दोलनों के बाद अब धर्म,उपदेशकार्य व सन्तों का सम्मान तो रह गया है लेकिन ब्राह्मणों का अन्य जातियों तरह दैनिक आचरणों व व्यवसायों के कारण ब्राह्मण जाति के सभी व्यक्तियों के सम्मान में कमी आयी है.इंसान के नये वर्ग,समूह,संस्थायें बननी प्रारम्भ हो गयी हैं.पुरातन समूहों वर्गों के प्रति आकर्षण कम हुआ है,अपनी जाति के बीच ही लड़के लड़कियों मध्य आकर्षण,प्रेम व विवाह का भाव कमजोर होता जा रहा है.साम्प्रदायिकता की भावना भी कमजोर पड़ रही है.नैतिक,चरित्र,वैराग्य,ज्ञान,मोक्ष,सेवा,आदि का पक्ष न ले अपने निजस्वार्थ चेहरा देख कर आचरण बनते बिगड़ते हैं.वह कमजोर डण्ठल के पत्तों की तरह हो गया है,जब आँधी आयी तो गिर गया.अब जाति,समाज,पन्थ,आदि का इस्तेमाल भी अपने निजस्वार्थों के लिए बनता बिगड़ता है.भक्ति भी का उद्देश्य मुक्ति,वैराग्य,ज्ञान के लिए नहीं भौतिक लालसाओं के लिए होता है.रोजमर्रे की जिन्दगी में अपनी जाति मजहब के लोग ही विश्वासघात का छुरा भोंपने के लिए तैयार बैठे रहते हैं.यहां तक कि एक परिवार के अन्दर ही चार भाईयों के बीच माँ बाप की उपस्थिति मेँ ही अन्याय शोषण देखा गया देखा जा सकता है,जाति मजहब बौने साबित होते हैं.हाँ, बिखण्डन में सहयोग के लिए अनेक सामने आ जाते हैँ.यहां तक कि चन्द भौतिक लालसाओँ में छोंड़कर पति पत्नी तक एक दूसरे के विरोध में खड़े देखे गये हैं.दोष कलियुग को दिया जाता है.कहते हैं,अभी तो कलियुग घुटनो चल रहा है.