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बुधवार, 31 मार्च 2021

इतिहास का महत्व :: प्रस्तुति अशोकबिन्दु

 इतिहास विषय का महत्व

Itihas Vishay Ka Mahatva


इतिहास मनुष्य का एक सच्चा शिक्षक है जो समाज को भविष्य का उचित पथ बतलाता है। किसी भी जाति या राष्ट्र को सजीव, उन्नतिशील तथा गतिशील बने रहने के लिए इतिहास का अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है।


इतिहास हमें मानव प्रकृति के विभिन्न आयामों एवं पक्षों से अवगत कराता है। इसके अध्ययन से हमें सभ्यता के क्रमिक विकास का ज्ञान होता है। वर्तमान समाज को समझने के लिए आवश्यक है कि इस विकास के उन विभिन्न सोपानों को जान सकें जिनमें से गुजरकर यह समाज वर्तमान स्थिति में आया है। जिस प्रकार चलचित्र में भूतकाल की किसी घटना का सम्पूर्ण चित्र हमारी आँखों के सामने आ जाता है उसी प्रकार इतिहास किसी तत्कालीन समाज के आचार-विचार, धार्मिक जीवन, आर्थिक जीवन, सांस्कृतिक जीवन, राजनैतिक व्यवस्था, शासन पद्धति आदि सभी ज्ञातव्य बातों का एक सुन्दर चित्र हमारी अंतदृष्टि के सामने स्पष्ट रख देता है। इतिहास के अध्ययन द्वारा ही किसी राष्ट्र के उत्थान के साथ-साथ उसके पतन की परिस्थितियों का ज्ञान प्राप्त होता है।


एडमंड बर्क का कथन है कि इतिहास उदाहरणों के साथ-साथ तत्व ज्ञान का शिक्षण है। उन्नति अनुभव पर निर्भर करती है तथा उन्नति के लिए हमें उसके तत्वों का ज्ञान आवश्यक है। उन तत्वों का ज्ञान उनके पूर्व परिणामों पर निर्भर करता है और उनके जानने का एक मात्र साधन इतिहास ही है।


वर्तमान युग की परिस्थितियों को समझने तथा सुधारने के लिए यह आवश्यक है कि हम उस देश या जाति के प्राचीन इतिहास से परिचित हों तथा उसके उत्थान एवं पतन के कारणों तथा परिस्थितियों से अवगत हों।


इतिहास विभिन्न परिस्थितियों में मानव के कार्यों की झांकी है। इस झांकी द्वारा हमें विभिन्न चरित्रों से परिचय का अवसर मिलता है। उनके अभिप्रेरकों के विश्लेषण के लिए पर्याप्त सामग्री मिलती है तथा चरित्र में संयम की भावना का विकास होता है ताकि हम इतिहास के सुंदर चरित्रों की सराहना कर सकें उनसे शिक्षा ले सकें तथा बुरे चरित्रों से दूरी स्थापित कर सकें। जीवन के सही सम्पादन के लिए दोनों प्रकार के चरित्र का ज्ञान आवश्यक है।


इतिहास के अध्ययन को मानव सभ्यता के पार्दुभाव का क्षेत्र माना जाता है। राजस्थान के विभिन्न स्थलों के उत्खननों से प्राप्त हुए अवशेषों ने इस धारणा को और अधिक पुष्ट किया है। मध्यकालीन राजस्थान का भी भारतीय इतिहास में सर्वोपरि स्थान है क्योंकि इस काल में राजस्थान ने इतिहास निर्माण के साथ-साथ भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को सुरक्षित रखने में बड़ा बलिदान किया।


राजस्थान के तत्कालीन गौरवशाली घटनाओं ने यहाँ के कवियों, लेखकों को अपनी लेखनी उठाने के लिए प्रेरित किया। इसी से अनेक ऐतिहासिक कृतियों का निर्माण इस काल में हुआ। इस काल में रचे गए ग्रन्थों से प्रेरणा पाकर राजस्थान के इतिहास लेखन की सुदृ़ढ़ परम्परा ने जन्म लिया जो आज भी राजस्थान देश-विदेश में शोधार्थियों का मुख्य केन्द्र बना हुआ है और राजस्थान इतिहास के विभिन्न पक्षों का गहन अध्ययन हो रहा है किन्तु यहाँ समय-समय पर लिपिबद्ध की गई कृतियों के बारे में उचित ज्ञान का अभाव रहा है। हस्तलिखित ग्रन्थों की लिपि व भाषा सम्बंधी कठिनाईयों से शोधार्थी अपने विषय के सन्दर्भ को खोज निकालने में पूर्ण सफल नहीं हो रहे हैं। निजी संग्रहालयों में बहुमूल्य सामग्री भरी पड़ी है परन्तु सभी संशोधकों के लिए वे सहज उपलब्ध नहीं है। शिलालेख, ताम्रपत्र, ख्यातें, वातें, पट्टे, परवाने, काव्य ग्रन्थों आदि की विपुल उपलब्धता के बावजूद इन सबका सम्पादन व प्रकाशन सहज संभव नहीं है। इन सभी कारणों से राजस्थान के इतिहास को सम्पन्न करने तथा सुरक्षित रखने की बहुत बड़ी जिम्मेवारी हम सभी पर है, परन्तु इस समय राजस्थान के इतिहास लेखन सामग्री को सुरक्षित रखने की चेष्टा का अभाव दिखाई देता है।


तकनीकी और संचार क्रान्ति के युग के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना तथा राजस्थान इतिहास से संबंधित हस्तलिखित ग्रन्थों, शिलालेख, ताम्रपत्र, ख्यातें, वातें, पट्टे, परवाने, काव्य ग्रन्थों, विद्धानों, शोधार्थियों के शोध आलेखों को डिजिटलाइज्ड करना तथा वेबसाइट के माध्यम से सभी के लिए सहज और सुलभ बनाना निश्चय ही आज के समय की आवश्यकता है। इससे इतिहास के शोधार्थियों को राजस्थान के समृद्ध इतिहास, विद्धतापूर्ण शोध आलेख और राजस्थान में हो रहे नवीन शोध का ज्ञान प्राप्त होगा जो सभी के लिए बहुत उपयोगी होगा।

लेखक::अज्ञात


https://m.facebook.com/groups/490598071542918/permalink/839022680033787/?sfnsn=wiwspwa


मंगलवार, 30 मार्च 2021

साहब नौकरी किस लिए कर रहे हो:अशोकबिन्दु

 एक दिन हम एक पत्रकार के साथ डीएम के आवास पर थे।बात10 साल से पहले की है।

"नाराज न होना, सा'ब नौकरी किस लिए कर रहे हो?"

हम जो लिख रहे हैं उससे तुम नाराज क्यों हो? हम तो अपनी अभिव्यक्ति कर रहे हैं।


हमारे लिखने का उद्देश्य तुम्हारी आलोचना या बुराई नहीं नही है। अपने विचारों को व्यक्त करना है।अपनी अंतर्दशा को व्यक्त करना है।



01 अप्रैल 2020ई0 से 31 मार्च 2021 ई0!! शैक्षिक सत्र 2020 - 21 ई0 विश्व कोरोना संक्रमण के बीच। मध्यम वर्ग व प्राइवेट कर्मचारियों के लिए?#अशोकबिन्दु


 अनन्त यात्रा में, प्रकृति अभियान में प्रति पल सृजन व विध्वंस है।प्रतिपल संक्रमण व साहचर्य है,क्षय है। प्रकृति में परिवर्तन है, विकार है।अपरिवर्तन भी है अविकार भी है। वर्तमान जीवन सन्तुलन है। वर्तमान जीवन में परिवर्तन असन्तुलन है।

ऋषि मुनियों का दर्शन ही सनातन  के लिए प्रेरणा है।90प्रतिशत सृष्टि  महर्षि कश्यप से है।


सत्र 2020-21 ई0 ने मानव की जीवन शैली को प्रभावित किया है। जिसका कारण कोरोना संक्रमण रहा। ये अभी पांच साल हमें और प्रभावित करने वाला है।


उखड़े हुए पौधे की तरह जीवन किसका हुआ है?

बुधवार, 24 मार्च 2021

22-25 मार्च2020ई0 से 22-25 मार्च 2021ई0::कोरोना संक्रमण के दौरान प्राइवेट संस्थाएं व निजीकरण::अशोकबिन्दु


कोरोना संक्रमण के दौरान प्राइवेट कर्मचारियों, संस्थाओं, शिक्षकों आदि की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गयी है।आत्महत्या करने की दर में 11प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

कोरोना के दौरान हमारी पुरानी सोंच, नजरिया, आदतों, ध्यान पध्दतियों, आयुर्वेद रुझान आदि ने हमें जीवन जीवन जीने का सम्भल दिया है। हमने भौतिकता से दूरी रख ,फिजिकल डिस्टनसिंग से मजबूती पाई है।मानव समाज व उसके प्रबन्धन ने हमें रुलाया ही है।

निजीकरण ,पूंजीवाद, जातिवाद, सामन्तवाद, सत्तावाद ने आम आदमी के आंसू पोछने में सफलता नहीं पाई है।

कोरोना संक्रमण के दौरान घर के अंदर ध्यान, साधना का स्तर सघनता पाया है।भगवा की चमक भी बड़ी है।

लेकिन आत्महत्या करने की दर में 11 प्रतिशत की वृद्धि क्या दर्शाती है? मानव प्रबन्धन, मानव समाज, विभिन्न सस्थाओं का हैतु परोपकार नहीं रह गया है।जनतंत्र का हेतु जनता की सेवा व आम आदमी को बचाना नहीं है।

22-25 मार्च 2020ई0-22 -25 मार्च 2021 ई0::कोरोना संक्रमण के दौरान मानवीय प्रबन्धन::अशोकबिन्दु


 


जगत में जी भी दिख रहा है, वह प्रकृति अंश है व ब्रह्म अंश।इन दोनों के बीच एक सन्तुलन की लकीर है। भारतीय संस्कृति सन्तुलन की बात करती है।श्री अर्द्धनारीश्वर स्वरूप भी प्रकृति अंश व ब्रह्मअंश में सम भोग अर्थात सन्तुलन की बात करता है। 



इस दोनों से हट कर बनाबटें, कृत्रिमताएँ भी मानव जीवन व समाज में कार्य करती हैं।जिसके लिए या जिसके सहारे मानव प्रकृति अंशों व ब्रह्म अंशों के अभियान से गिरने से नहीं चूकता। जगत में कहीं भी समस्या नहीं है।समस्या स्वयं मानव समाज व मानव प्रबन्धन में है।


कोरोना काल में मानव समाज व मानव प्रबन्धन की परीक्षा हुए है, समाजिकता की परीक्षा हुई है। विभन्न मानवीय संस्थाओं की परीक्षा हुई है।उसके नजरिया की परीक्षा हुई है। कोरोना काल में सामन्तवाद, पूंजीवाद, सत्तावाद,पुरोहितवाद  का दर्शन कमजोर नहीं पड़ा है।

लोग कमेंट कर रहे हैं कि जहां चुनाव है वहां को कोरोना संक्रमित क्षेत्र के लोगों को जाना चाहिए।मास्क न लगने पर जुर्माना भी नहीं होगा और रैली में शामिल होने पर रुपया भोजन भी मिलेगा, कोरोना भी नहीं सताएगा।

मंगलवार, 23 मार्च 2021

22 - 25 मार्च 2020 से 22-25 मार्च 2021 के बीच प्रकृति ओर मानव ::अशोकबिन्दु

हम सब का अस्तित्व एक प्राकृतिक घटना है।

जगत व ब्रह्मांड में जो भी दिख रहा है,सब प्रकृति है।


कोरोना संक्रमण ने अनेक व्यक्तियों को सीख दी है।

अनेक को सिर्फ आलोचना करने का अवसर।

सबसे बड़ा परीक्षक व गुरु प्रकृति ही है। सीख लेना आता है तो प्राकृतिक घटनाओं,अनुभवों से भी सीख ली जा सकती है। अन्यथा लोगों पर दोष मढ़ते रहो।

कोरोना संक्रमण प्राकृतिक था या अप्राकृतिक यह एक सवाल है।

हमारा धरती पर होना भी एक प्राकृतिक घटना है।हमारा होना हमारे कारण नहीं है। ऐसे में हमारी इच्छाओं की अपेक्षा प्रबन्धन महत्वपूर्ण है। प्रबन्धन दो तरह का हैं-एक प्राकृतिक दूसरा अप्राकृतिक। मानव व मानव समाज को छोड़ कर सब कुछ प्राकृतिक प्रबन्धन में बंधा है। 

हमारी व जगत की प्रकृति में स्वतः व निरन्तर, जैविक घड़ी उपस्थित है।जिसके अहसास में कौन जी रहा है?

कोरोना संक्रमण से बचाव की प्रतिक्रिया में लॉक डाउन ने हमें प्राकृतिक सहजता  व  शांति में लाकर ला कर खड़ा कर दिया था। जो भी समस्याएं थीं, वे मानवीय समस्याएं थी।


हमने महसूस किया कि हमारे अंदर कुछ है जो अपने को सहज, शांत महसूस कर रहा है।जिसका असर प्रकृति पर भी है।अंदर ब बाहर एक सा दिख रहा है।लॉकडाउन ने हमें ये अहसास कराया।समस्या तो मानव समाज, शासन व्यवस्था के कारण थी।

मानव स्तर पर समस्याएं!

मानव व्यक्तिगत स्तर पर  अपने परिवार व समाज प्रबन्धन के कारण भ्रम व सन्देह में था।

मानव समाज के स्तर पर समस्याएं!

शासन स्तर पर समस्याएं!



समस्याएं तो सिर्फ मानव के लिए समाज व शासन स्तर पर रही हैं,संस्थाओं के स्तर पर रही हैं। प्रकृति तो सबको समान अवसर देने को तैयार है स्तर के आधार पर।


प्राइवेट कर्मचारी,शिक्षक आदि को जीवन शैली व जीविका पर सवाल!

लॉक डाउन के दौरान मानव की सहकारिता, सामुहिकता, संस्थागत व्यवस्था,परस्पर सहयोग आदि की भी परीक्षा हुई है।विभिन्न संस्थाओं, तन्त्र, शासन,धर्म, समाज आदि के ठेकेदारों पर सवाल उठे हैं।उनके परोपकार की भावना, जनतंत्र प्रणाली पर सवाल उठे हैं।यह सिद्ध हुआ है कि सामन्तवाद, सत्तावाद आदि हावी है न कि जनतंत्र या जनता की सेवा।

शनिवार, 20 मार्च 2021

अशोकबिन्दु :: दैट इज ...?! पार्ट 19

 


#अभिव्यक्ति क्या है?

#संविधान सभा ने आखिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुछेद19) का प्रावधान क्यों किया?

#हमारी अभिव्यक्ति का का उद्देश्य क्या है?

#कुछ महापुरुष अपनी डायरी लिखने को क्यों कहते हैं?

#अन्य


हम किशोरावस्था से ही लिख रहे हैं।

यह लिखना क्यों शुरू किया?

हमने क्या सिर्फ लिखा ही है?किया क्या?


किसी ने कहा है जो अपने व जगत के अंतर व्याप्त में जीना शुरू करता है वह स्वयं रहस्य होता चला जाता है।


हम सोंचते हैं- ग्रंथों का भी उद्देश्य क्या रहा?सिर्फ प्रबन्धन।आत्म प्रबन्धन व समाज प्रबन्धन। हम महसूस करते हैं कि कुछ ग्रंथ ईश्वर के सन्देश माने जाते हैं लेकिन तो फिर उसमें समरूपता क्यों नहीं?!क्या जगत व ब्रह्मण्ड का ईश्वर एक नहीं? यदि एक है तो फिर उन ग्रंथों में भिन्नता क्यों?


वर्तमान में 'विश्व ग्रंथ'-की आवश्यकता है। 'विश्व सरकार ग्रंथ साहिब'- की आवश्यकता है।

अब सहज ज्ञान को स्वीकार करने की जरूरत है।ये अंत समय में क्रांतिकारी भगतसिंह भी महसूस कर रहे थे।सहज ज्ञान पर पुस्तके पढ़ कर उनका यथार्थवाद और मजबूत हो गया था।


सत्य, अहिँसा, अस्तेय,अपरिग्रह व ब्रह्मचर्य ये यम हैं।योग का पहला अंग।सुबह शाम कुछ लोगों को इकट्ठा कर हाथ पैर चला लेना, स्वासें ऊपर नीचे कर लेने को ही हम योग नहीं मानते। सत्य व अहिंसा को हम योगी के दो चरण मानते हैं। इसलिए किसी ने कहा है कि आचार्य होना, योगी होना ,यम में होना है मृत्यु को स्वीकारना।लेकिन किसी मृत्यु?! लेकिन यहां हमारा विषय अभिव्यक्ति है।हम अभिव्यक्ति पर बोलना चाहेंगे।कोशिश करेंगे। अभिव्यक्ति है अंतर दशा को व्यक्त करना।


हम खमोश क्यों है-समाज में?क्योंकि कोई श्रोता नहीं है ठीक से।सब के सब अभिव्यक्ति के दुश्मन हैं। हमारी अभिव्यक्ति हमारी अंतर्दशा को व्यक्त करना है न किसी के विरोध में कुछ कहना । लेकिन लोग यही समझते हैं कि हम समाने वाले के विरोध में बोल रहे रहे है। हमने ऑनलाइन ऑफलाइन काफी कुछ लिख रहा है। जो इतना है कि कम से कम 50 किताबें तैयार  की ही जा सकती हैं। हमने क्या झेला है, क्या झेलते हैं-उसका परिणाम है हमारे लेखन की शुरुआत। माय डायरी, अनेक ब्लॉग ऐसे हैं मेरे जिसमें हमने वह लिख रखा है, जो हमें सत्य लगा है।जो अभी समाज की नजर में अंजान है।बस,एक क्लिक पर ही वह समाज में उजागर हो जाएगा।



महात्मा गांधी ने कहा था -वातावरण ऐसा होना चाहिए जिसमें एक गुंडा भी मन मानी न कर सके। हमें अफसोस है कि आजादी के 70-75 साल बाद भी देश ऐसी व्यवस्था नहीं कर पाया है कि जो कानून, संविधान, इंसानियत, ईमानदारी ,अपने कर्तव्य के आधार पर जीवन जीना चाहता है उसको संरक्षण व सुरक्षा प्राप्त हो।आरक्षण प्राप्त हो। गाँव, वार्ड का गुंडा, माफिया, जातिवादी, मजहब वादी आदि किसी न किसी नेता या दल में खास होता है।हम किशोरावस्था से ही महसूस कर रहें हैं कि संस्थाओं में क्या चल रहा है?हम तो बचपन से ही स्कूल,कालेज आदि से ही सम्बद्ध रहे हैं।पहले विद्यार्थी के रूप में अब  शिक्षक के रूप में।देश के अंदर आंकड़े चौकाने वाले हैं।शिक्षा, शिक्षण, शिक्षित होने के नाते क्या हो रहा है क्या होना चाहिए।हम भली भांति जानते है लेकिन हम किसी के खास नहीं हो सकते, किसी पक्ष के साथ नहीं हो सकते।हम तो देखते रहते हैं कि सामने वाले कि हद कहाँ तक है?सामने वाले कि समझ व नजरिया का स्तर क्या है और हमारा क्या स्तर है?