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शनिवार, 20 मार्च 2021

अशोकबिन्दु :: दैट इज ...?! पार्ट 19

 


#अभिव्यक्ति क्या है?

#संविधान सभा ने आखिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुछेद19) का प्रावधान क्यों किया?

#हमारी अभिव्यक्ति का का उद्देश्य क्या है?

#कुछ महापुरुष अपनी डायरी लिखने को क्यों कहते हैं?

#अन्य


हम किशोरावस्था से ही लिख रहे हैं।

यह लिखना क्यों शुरू किया?

हमने क्या सिर्फ लिखा ही है?किया क्या?


किसी ने कहा है जो अपने व जगत के अंतर व्याप्त में जीना शुरू करता है वह स्वयं रहस्य होता चला जाता है।


हम सोंचते हैं- ग्रंथों का भी उद्देश्य क्या रहा?सिर्फ प्रबन्धन।आत्म प्रबन्धन व समाज प्रबन्धन। हम महसूस करते हैं कि कुछ ग्रंथ ईश्वर के सन्देश माने जाते हैं लेकिन तो फिर उसमें समरूपता क्यों नहीं?!क्या जगत व ब्रह्मण्ड का ईश्वर एक नहीं? यदि एक है तो फिर उन ग्रंथों में भिन्नता क्यों?


वर्तमान में 'विश्व ग्रंथ'-की आवश्यकता है। 'विश्व सरकार ग्रंथ साहिब'- की आवश्यकता है।

अब सहज ज्ञान को स्वीकार करने की जरूरत है।ये अंत समय में क्रांतिकारी भगतसिंह भी महसूस कर रहे थे।सहज ज्ञान पर पुस्तके पढ़ कर उनका यथार्थवाद और मजबूत हो गया था।


सत्य, अहिँसा, अस्तेय,अपरिग्रह व ब्रह्मचर्य ये यम हैं।योग का पहला अंग।सुबह शाम कुछ लोगों को इकट्ठा कर हाथ पैर चला लेना, स्वासें ऊपर नीचे कर लेने को ही हम योग नहीं मानते। सत्य व अहिंसा को हम योगी के दो चरण मानते हैं। इसलिए किसी ने कहा है कि आचार्य होना, योगी होना ,यम में होना है मृत्यु को स्वीकारना।लेकिन किसी मृत्यु?! लेकिन यहां हमारा विषय अभिव्यक्ति है।हम अभिव्यक्ति पर बोलना चाहेंगे।कोशिश करेंगे। अभिव्यक्ति है अंतर दशा को व्यक्त करना।


हम खमोश क्यों है-समाज में?क्योंकि कोई श्रोता नहीं है ठीक से।सब के सब अभिव्यक्ति के दुश्मन हैं। हमारी अभिव्यक्ति हमारी अंतर्दशा को व्यक्त करना है न किसी के विरोध में कुछ कहना । लेकिन लोग यही समझते हैं कि हम समाने वाले के विरोध में बोल रहे रहे है। हमने ऑनलाइन ऑफलाइन काफी कुछ लिख रहा है। जो इतना है कि कम से कम 50 किताबें तैयार  की ही जा सकती हैं। हमने क्या झेला है, क्या झेलते हैं-उसका परिणाम है हमारे लेखन की शुरुआत। माय डायरी, अनेक ब्लॉग ऐसे हैं मेरे जिसमें हमने वह लिख रखा है, जो हमें सत्य लगा है।जो अभी समाज की नजर में अंजान है।बस,एक क्लिक पर ही वह समाज में उजागर हो जाएगा।



महात्मा गांधी ने कहा था -वातावरण ऐसा होना चाहिए जिसमें एक गुंडा भी मन मानी न कर सके। हमें अफसोस है कि आजादी के 70-75 साल बाद भी देश ऐसी व्यवस्था नहीं कर पाया है कि जो कानून, संविधान, इंसानियत, ईमानदारी ,अपने कर्तव्य के आधार पर जीवन जीना चाहता है उसको संरक्षण व सुरक्षा प्राप्त हो।आरक्षण प्राप्त हो। गाँव, वार्ड का गुंडा, माफिया, जातिवादी, मजहब वादी आदि किसी न किसी नेता या दल में खास होता है।हम किशोरावस्था से ही महसूस कर रहें हैं कि संस्थाओं में क्या चल रहा है?हम तो बचपन से ही स्कूल,कालेज आदि से ही सम्बद्ध रहे हैं।पहले विद्यार्थी के रूप में अब  शिक्षक के रूप में।देश के अंदर आंकड़े चौकाने वाले हैं।शिक्षा, शिक्षण, शिक्षित होने के नाते क्या हो रहा है क्या होना चाहिए।हम भली भांति जानते है लेकिन हम किसी के खास नहीं हो सकते, किसी पक्ष के साथ नहीं हो सकते।हम तो देखते रहते हैं कि सामने वाले कि हद कहाँ तक है?सामने वाले कि समझ व नजरिया का स्तर क्या है और हमारा क्या स्तर है?


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