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मंगलवार, 23 मार्च 2021

22 - 25 मार्च 2020 से 22-25 मार्च 2021 के बीच प्रकृति ओर मानव ::अशोकबिन्दु

हम सब का अस्तित्व एक प्राकृतिक घटना है।

जगत व ब्रह्मांड में जो भी दिख रहा है,सब प्रकृति है।


कोरोना संक्रमण ने अनेक व्यक्तियों को सीख दी है।

अनेक को सिर्फ आलोचना करने का अवसर।

सबसे बड़ा परीक्षक व गुरु प्रकृति ही है। सीख लेना आता है तो प्राकृतिक घटनाओं,अनुभवों से भी सीख ली जा सकती है। अन्यथा लोगों पर दोष मढ़ते रहो।

कोरोना संक्रमण प्राकृतिक था या अप्राकृतिक यह एक सवाल है।

हमारा धरती पर होना भी एक प्राकृतिक घटना है।हमारा होना हमारे कारण नहीं है। ऐसे में हमारी इच्छाओं की अपेक्षा प्रबन्धन महत्वपूर्ण है। प्रबन्धन दो तरह का हैं-एक प्राकृतिक दूसरा अप्राकृतिक। मानव व मानव समाज को छोड़ कर सब कुछ प्राकृतिक प्रबन्धन में बंधा है। 

हमारी व जगत की प्रकृति में स्वतः व निरन्तर, जैविक घड़ी उपस्थित है।जिसके अहसास में कौन जी रहा है?

कोरोना संक्रमण से बचाव की प्रतिक्रिया में लॉक डाउन ने हमें प्राकृतिक सहजता  व  शांति में लाकर ला कर खड़ा कर दिया था। जो भी समस्याएं थीं, वे मानवीय समस्याएं थी।


हमने महसूस किया कि हमारे अंदर कुछ है जो अपने को सहज, शांत महसूस कर रहा है।जिसका असर प्रकृति पर भी है।अंदर ब बाहर एक सा दिख रहा है।लॉकडाउन ने हमें ये अहसास कराया।समस्या तो मानव समाज, शासन व्यवस्था के कारण थी।

मानव स्तर पर समस्याएं!

मानव व्यक्तिगत स्तर पर  अपने परिवार व समाज प्रबन्धन के कारण भ्रम व सन्देह में था।

मानव समाज के स्तर पर समस्याएं!

शासन स्तर पर समस्याएं!



समस्याएं तो सिर्फ मानव के लिए समाज व शासन स्तर पर रही हैं,संस्थाओं के स्तर पर रही हैं। प्रकृति तो सबको समान अवसर देने को तैयार है स्तर के आधार पर।


प्राइवेट कर्मचारी,शिक्षक आदि को जीवन शैली व जीविका पर सवाल!

लॉक डाउन के दौरान मानव की सहकारिता, सामुहिकता, संस्थागत व्यवस्था,परस्पर सहयोग आदि की भी परीक्षा हुई है।विभिन्न संस्थाओं, तन्त्र, शासन,धर्म, समाज आदि के ठेकेदारों पर सवाल उठे हैं।उनके परोपकार की भावना, जनतंत्र प्रणाली पर सवाल उठे हैं।यह सिद्ध हुआ है कि सामन्तवाद, सत्तावाद आदि हावी है न कि जनतंत्र या जनता की सेवा।

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