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बुधवार, 9 जून 2021

हम अपनी पूर्णता की नजर से काफी दूर होते हैं::अशोकबिन्दु

 हमें अपने व जगत को पूर्णता की नजर से देखने की आदत डालनी चाहिए। स्थूल! सूक्ष्म!! कारण!!! स्थूल!हम स्थूल को ही स्थूल के यथार्थ, सत्य के आधार पर नहीं देख पाते।उसे हम अपनी व समाज की बनाबटी, कृत्रिम नजर से देखते हैं।भेद, विभिन्नता, द्वेष, पसन्द-नापसन्द, अनुकूल-प्रतिकूल, सुख-दुख, जाति-मजहब... आदि की नजर से देखते हैं। और ऐसे में हम कुदरत व खुदा की नजर से असल, यथार्थ सत्य को नहीं देख पाते।इसे में हमारी चेतना व समझ संकुचित होकर नर्क योनि, भूत योनि आदि की संभावनाओं में पहुंच जाती है।ऐसे में हम अपने, अपने समाज, संस्थाओं,जाति, मजहब आदि की नजर में में कितने भी बेहतर हो जाएं लेकिन कुदरत व खुदा की नजर से बेहतर नहीं हो सकते।हम परम् आत्मा, अनन्त यात्रा का साक्षी/अनुभवी/ज्ञानी आदि होना तो दूर अपने सूक्ष्म व कारण अस्तित्व, आत्मा,आत्माओं आदि के जगत व उनके पूर्व निर्धारित अभियान को नहीं जी पाते, साक्षी/अनुभवी, ज्ञानी आदि नही हो पाते।अन्तरदीप को प्रकाशित नहीं कर पाते।ऐसे में हम ज्ञान में अपूर्ण रह जाते हैं।हमारे विद्यार्थी जीवन ब्रह्मचर्य आश्रम होने से खण्डित हो जाता है।विद्यार्थी जीवन ब्रह्मचर्य आश्रम इस हेतु ही था ताकि हम अंतर्निहित शक्तियों, अंतर्ज्ञान को प्रकाशित कर सकें। #ब्राइटमाइंड के नाम से हम बच्चों को शिक्षित करते हैं, जिसमें बच्चे आंख बंद किए हुए भी सामने के हालात, वस्तुओं की जानकारी दे देते हैं। सूक्ष्म!अब हम सूक्ष्म जगत पर आते है।हम यहां पर भी असल, यथार्थ, सत्य में न होकर भ्रम, अज्ञानता, सामाजिक धारणाओं आदि में होते हैं। अमेरिका में सहज मार्ग राजयोग के एक सन्त हैं, उनका कहना है कि हमारी साधना, आराधना, उपासना(उप आसन)आदि अपूर्ण है जब हम अपने शरीर, परिवार व घर, आस पड़ोस आदि में चेतना, चेतनाओं, आत्मा, आत्माओं आदि का अहसास न कर सके।ऐसे में आप परम् आत्मा से क्या खाक जुड़ेंगे?!चेतना, चेतनाएं, आत्मा, आत्माएं आदि द्वार हैं शाश्वत, अनन्त, निरन्तर की ओर ले जाने का।हम अपने को #आस्तिक समझते हैं,#भक्त समझते हैं तो इससे क्या?वेद,कुर आन आदि रट लिए हो तो इससे क्या?आपके अहसास क्या हैं?आभास क्या हैं?अनुभव क्या हैं?आप महसूस क्या करते हैं?....यह महत्वपूर्ण है।इसलिए किसी ने कहा है धर्म तो व्यक्ति का होता है, जो व्यक्ति में अंदर होता है, अन्तस्थ होता है।भीड़ का तो सम्प्रदाय होता है, कर्मकांड, रीतिरिवाज आदि होता है।भीड़ का धर्म नहीं होता, परिवारों, संस्थाओं, समाज आदि का धर्म नहीं होता है। यहां पर हम बहुत कमजोर होते हैं।हम कहते तो हैं कि कण कण।में भगवान है, सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर आदि आदि लेकिन हम अपने जिंदगी में इसको स्वीकार नहीं किए होते हैं।हम जिस मूर्ति की रोज उपासना करते हैं, यदि वह बोलने लगे या उसके अंदर या उसका सूक्ष्म रूप हमें दिखने लगे तो अधिकतर लोग घबरा जाएंगे।हम आपके घर आये तो आप हमारा आदर करेंगे, बैठालेंगे, नाश्ता पानी कराएंगे आदि आदि यदि हम अपना हाड़ मास शरीर अपने घर पर ही छोड़ कर अपने सूक्ष्म शरीर से आपके घर आये तो क्या होगा?आप घबरा जाएंगे।कुछ घटनाएं जगत में देखी गयी है कि कोई का देहांत होगया ।उसकी लाश के समीप लोग इकट्ठे होने लगे, अचानक लाश में हरकत हुई, लाश उठ बैठी या कहें कि वह व्यक्ति जिंदा हो गया तो अनेक लोगों को घबराकर दूर हटते देखा गया है।या फिर किसी परिवार में कोई परिजन का देहांत हो गया, उसका अंतिम संस्कार भी हो गया।जब उसका सूक्ष्म रूप घर में आया तो सब परिजन घबरा गए।ये क्या है?जब हम अभी चेतनाओं, आत्माओं का एक अहसास नहीं कर पाते या जब अहसास होता है तो घबरा जाते हैं तो इसका मतलब क्या है?हम सब जो नौ बजे रात्रि में सार्वभौमिक प्रार्थना करते है, उससे हममे जो इससे स्थिति बनती है, उसमे हम में ये घबराहट समाप्त होती है।ये हमारा अनुभव है, निजी अनुभव है।शिव जी का स्थान कैलाश या श्मशान माना जाता है।आदमी में असलियत व फिलासफी जाग्रत श्मशान/कब्रस्तान में ही होती है। एक साधक थे,'अल्लाह हू.. अल्लाह हू..' का जाप आँख बंद किया करते थे।उन्हें अपने समीप जब प्रकाश आकृतियां दिखनी शुरू हुईं तो वे घबरा गए।उनके प्रशिक्षक/गुरु ने बताया कि तुम जो कर रहे हो करते रहे।मन को एकाग्र रखो।जगत को देखने का नजरिया बदलो।सार्वभौमिक प्रार्थना पर हर वक्त ध्यान रखो।जगत को,जगत के यथार्थ को देखने का भाव में में रखो।जो है सो है।कर्तव्य में रहो, बस। कारण!अभी हम कारण जगत से काफी दूर है।हम सब जीवन भर उलझे तो समाज, अपने हाड़ मास शरीर, अन्य हाड़ मास शरीर में ही उलझे रहते हैं। हम परम् आत्मा से जुड़े ही नहीं होते हैं, आत्माओं से जुड़े ही नहीं होते है।अपने करीब, अपनी निजता, अपनी आत्मीयता से ही नही जुड़े होते हैं। #अशोकबिन्दु


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