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रविवार, 13 जून 2021

समर्पण व शरणागति ही प्रेम में::अशोकबिन्दु

समर्पण!

 ------------#अशोकबिन्दु





 एक दिन एक अध्यापक हमारी कुछ स्वरचित पंक्तियों पर कह रहे थे, हर कवि लेखक की एक शैली होती है, प्रकृति होती है। वे उसी पर लिखते हैं आपकी कोई सहेली भी है कोई प्रकृति भी है लेकिन हम क्या कहते कहते हैं हम जो सोचते हैं चिंतन करते हैं जो स्वप्न देखते हैं उसको लिखते हैं अगस्त क्या है जो मन में आया वह लिख दिया जो महसूस किया वह लिख दिया समझौता किया जो लिख दिया वह लिख दिया किसी के कहने पर बदलाव क्यों जो लिखा वही हमारी सहेली हो जाएगी विधवा हो जाएगी हमें साहित्य की मांगों को नहीं लिखना कोई कहानी या उपन्यास लिख रहे हैं तो कहानी या उपन्यास के मानक पर कॉल कर नहीं लिख रहे हैं बस अभिव्यक्ति कोशिशें रहती है जो मन में आया वह लिख जाए यहां पर समर्पण शीर्षक क्यों यहां सब अर्पण जैसा क्या मन चिंतन मनन ध्यान मौन अंत दशा अनुभव महसूस आज से ही हम आत्मा की ओर शायद चलते हैं। "हम अपनी इच्छाओं के गुलाम हैं जो हमारी उन्नति में बाधक है। " हमें अपने को महसूस करना है बस हमें अपने को महसूस करते हुए कर्म करते रहना है अपने वर्तमान स्तरों, अपने चेतना के वर्तमान बिंदु से ऊपर उठते रहना है ।इच्छाओं ने दुख दिया है, उम्मीदों ने दुःख दिया है। इच्छाएं पूरी भी हुई हैं तो उसकी खुशी में हम लोग लालच मोह में फंसे हैं इच्छाओं ने हमें गुलाम बनाया है किसी ने कहा है कि आत्मा ही स्वतंत्रता है हमारा तंत्र ही हमारी आजादी है गीता का शो धर्म है हमारा धर्म स्वामी विवेकानंद ने भी कहा है शिक्षा एक वह यात्रा है जो निरंतर है वह अंतर्निहित दिव्य शक्तियों का विकास है हम यदि अपने लिए जीना चाहते हैं तो अपने को महसूस करते हुए आगे बढ़ो सागर में कुंभ कुंभ में सागर की स्थिति पैदा कर आत्माओं के उत्थान और सेवा में उतरी है हमारी हमारी पहचान हमारा स्व है।

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