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रविवार, 27 जून 2021

 रुहेलखंड राज्य के ऐतिहासिक पृष्ठों में से एक पृष्ठ!! #अशोकबिन्दु

 रुहेलखंड राज्य के ऐतिहासिक पृष्ठों में से एक पृष्ठ!! 




 रुहेलखंड राज्य के अंतर्गत क्षेत्र जो आबादी आज कल जिन उपाधियों को अपने नाम के साथ प्रयोग कर रही है।पुराने सरकारी गजेटियर जो अंग्रेज समय या इससे पूर्व के हैं वे चौकाने वाले हैं। रोहिल्ला [1] उपाधि - शूरवीर, अदम्य - साहसी विशेष युद्ध कला में प्रवीण, उच्च कुलीन सेनानायको, और सामन्तों को उनके गुणों के अनुरूप क्षत्रिय वीरों को तदर्थ उपाधि से विभूषित किया जाता था - जैसे - रावत - महारावत, राणा, रूहॆला, ठाकुर, नेगी, रावल, रहकवाल, रोहिल्ला, समरलछन्द, लखमीर,(एक लाख का नायक) आदि। इसी आधार पर उनके वंशज भी आज तक (क्षत्रियों) के सभी गोत्रों में पाए जाते हैं। रोहिलखण्ड से विस्थापित इन रोहिला परिवारों में क्षत्रिय परम्परा के कुछ प्रमुख गोत्र हैं :- [2] रोहिला, रूहेला, ठैँगर,ठहित, रोहिल, रावल, द्रोहिया, रल्हन, रूहिलान, रौतेला , रावत,लोहारिया वो क्षत्रिय वंश जिन को रोहिल्ला उपाधि से नवाजा गया यौधेय, योतिक, जोहिया, झोझे, पेशावरी पुण्डीर, पांडला, पंढेर, पुन्ड़ेहार, पुंढीर, पुंडाया चौहान, जैवर, जौडा, चाहल, चावड़ा, खींची, गोगद, गदाइया, सनावर, क्लानियां, चिंगारा, चाहड बालसमंद, बहरासर, बराबर, चोहेल, चेहलान, बालदा, बछ्स (वत्स), बछेर, चयद, झझोड, चौपट, खुम्ब, जांघरा, जंगारा, झांझड,शाण निकुम्भ, कठेहरिया, कठौरा, कठैत, कलुठान, कठपाल, कठेडिया, कठड, काठी, कठ, पालवार राठौर, महेचा, महेचराना, रतनौता, बंसूठ जोली, जोलिए, बांकटे, बाटूदा, थाथी, कपोलिया, खोखर, अखनौरिया ,लोहमढ़े, मसानिया बुन्देला, उमट, ऊमटवाल भारतवंशी, भारती, गनान नागवंशी,बटेरिया, बटवाल, बरमटिया परमार, जावडा, लखमरा, मूसला, मौसिल, भौंसले, बसूक, जंदडा, पछाड़, पंवारखा, मौन तोमर, तंवर, मुदगल, देहलीवाल, किशनलाल, सानयाल, सैन, सनाढय,बंदरीया गहलौत, कूपट, पछाड़, थापा, ग्रेवाल, कंकोटक, गोद्देय, पापडा, नथैड़ा, नैपाली, लाठिवाल, पानिशप, पिसोण्ड, चिरडवाल, नवल, चरखवाल, साम्भा, पातलेय, पातलीय, छन्द (चंड), क्षुद्रक,(छिन्ड, इन्छड़, नौछड़क), रज्जडवाल, बोहरा, जसावत, गौर, मलक, मलिक, कोकचे, काक कछवाहा, कुशवाहा, कोकच्छ, ततवाल, बलद, मछेर सिसौदिया, ऊँटवाड़ या ऊँटवाल, भरोलिया, बरनवाल, बरनपाल, बहारा खुमाहड, अवन्ट, ऊँट, ऊँटवाल सिकरवार, रहकवाल, रायकवार, ममड, गोदे सोलंकी, गिलानिया, भुन, बुन, बघेला, ऊन, (उनयारिया) बडगूजर, सिकरवार, ममड़ा, पुडिया कश्यप, काशब, रावल, रहकवाल यदु, मेव, छिकारा, तैतवाल, भैनिवाल, उन्हड़, भाटटी बनाफरे, जादो, बागड़ी, सिन्धु, कालड़ा, सारन, छुरियापेड, लखमेरिया, चराड, जाखड़, सेरावत, देसवाल। रोहि्ला क्षत्रियों में ऊंटवाल गोत्र चंद्रवंशी एवं सूर्यवंशी दोनों में पाए जाते हैं सूर्यवंशी ऊंटवाल गोत्र मेवाड़ के गहलोत सिसोदिया घराने से हैं और चंद्रवंशी ऊंटवाल जैसलमेर के भाटी घराने से है। इस पर हमें पूर्ण विश्वास है जो ऊपर लिखा गया है। वर्तमान में अर्थात 1947 के आजादी से पहले रुहेलखंड क्षेत्र अर्थात बरेली, रामपुर, पीलीभीत, शाहजहांपुर आदि में जो आबादी बास करती थी, और जिसका सरकारी आंकड़ों में रिकार्ड मिलता है ,उसके आधार पर अध्ययन करने की जरूरत है। मुस्लिम आबादी तो बाहरी थी या फिर धर्मांतरण कर हुए थी। वर्तमान अनेक क्षेत्र हैं जो कुनबियों/कुर्मियों/कन्नौजिया/गंगवारों/बदायूं में राठौर कुर्मियों,यादवों, किसान /लोधों आदि के पूरे के पूरे गांव के गांव आअनेक मिलते हैं।जिनकी इतिहास /राजनीति में कोई न कोई भूमिका तो रही होगी। ईसा पूर्व छठी सदी में यहां देवहूति नदी, गोमती नदी के किनारे अनेक योगियों,सन्यासियों के ठिकाने बन गए थे। जनपद शाहजहांपुर के पुवायां तहसील में बंडा थाना के अंतर्गत सुनासीरनाथ कोई पदेन इन्द्र की तपस्या स्थली रही थी। जिससे तीन किलोमीटर दूरी पर दद उड़ी अर्थात ददियूरी दुर्गा भक्त व इन्द्र वंशज कुर्मियों/कुटम्बियों का बास था। जो पूरे पुवायां राज्य में प्रभाव शाली था। कहमारा (पुबायाँ) में भी जिनके वंशज थे। जब कुनबा बड़ा और उनके वंश के अन्य व्यक्तियों ने अन्य गांव बसाए। जिनमे से एक है-मुड़िया कुर्मायत।जहां इन कूर्मयों ने मंदिर का भी निर्माण करवाया था। नबी राम /नाभि राम इन वंशजों में कोई शक्तिशाली व्यक्ति था। बिलसंडा के पास जिनके नाम से अब भी एक गांव मिलता है-खजुरिया नबीराम। चौदहवीं सदी में दक्षिण भारत में एक प्रतापी राज्य था-विजयनगर। जिसमें अमात्य व प्रथम वेद भाष्यकार #सायण थे -उन्होंने कहीं पर लिखा है कि कुटम्बी/कूर्मि का मतलब है सर्वशक्तिमान। यह भी सुनने को मिलता है कि मौर्य काल में किसी राजा ने अयोध्या पर आक्रमण किया था। जिससे कुछ क्षत्रिय यहां व कोलार, कर्नाटक के जंगलों में आकर रहने लगे थे। अनेक बिहार ,बंगाल, असम में चले गाए थे। जो आगे चल कूर्मि कहलाए। यादव, कूर्मि, कुशवाह, किसान लोधे आदि सब चन्द्रवँशी व सूर्य वंशी क्षत्रिय ही थे।जो विभिन्न परिस्थितियों को देखते अलग अलग कालांतर में अनेक जातियों में बंट गाए। मानव शास्त्री व समाज सेवी तो कहते हैं कि कूर्मि अनेक जातियों का पुंज है। देश भर में इसकी 500 से ज्यादा जातियां उपजातियां पाई जाती है। पिछड़ा वर्ग की आबादी रुहेलखंड में लगभग 85 प्रतिशत वर्तमान में है। जिनके सम्बंध में सरकारी गजटों का अध्ययन बड़ा जरूरी है। कहते है कि यूरोप के लिए इतिहास में जो महत्व यूनान का हैं वह महत्व भारत के इतिहास में इन पिछड़ी जातियों का है।जो कभी क्षत्रिय ही थीं। शाहजहांपुर का जलालाबाद से लेकर कन्नौज तक कभी परसुराम का प्रभाव था। जिस क्षेत्र का सम्बंध दक्षिण के ब्राह्मणों से भी था। यादव #कश्यपगोत्रीय/कुर्मियों आदि (पहले सब पिछड़ा वर्ग एक ही,जातिवाद नहीं था) का प्रतापी राजा #सहस्रअर्जुन का भी प्रभाव यहाँ था। यह भी सुनने को मिलता है कि राजा परीक्षित के महा यज्ञ कार्यक्रम का यहां व उत्तर प्रदेश के ब्राह्मणों ने विरोध किया था तो दक्षिण से ब्राह्मणों को बुलाया गया था। सम्भवतः जो अब मिश्रा उपाधि लगते हैं। सिकन्दर के आक्रमण के समय में पश्चिमोत्तर में एक राज्य था-कठ राज्य। जिन्होंने यहां के आकर आश्रय लिया था। और आगे चल कर यहां शासन स्थापित किया था। एक क्षत्रिय कुल के ही लोग आगे चल अपने कार्य पेशा के आधार पर अनेक जातियों में विभक्त हो गए।जैसे कि कहीं देवल ठाकुर, तो कहीं श्रंगार आदि के व्यापारी, कहीं पण्डित कहलाते हैं।इसी तरह कहीं कहीं राठौड़ तेली, कहीं #कूर्मि/किसान, कहीं ठाकुर आदि कहलाते हैं। हजरत हुसैन की मदद को जो यहाँ से काफिला गया गया था वो तो देवल ब्राह्मण कहा जाता है। सुना जाता है कि पांचाल राज्य में शाहजहांपुर का नाम #अंगदीय था जो गोमती नदी के किनारे बसा था। शाहजहांपुर में ब्लाक कटरा खुदागंज क्षेत्र में #खुदागंज नगर सन्तों, योगियों का केंद्र था जो साधारण आवास न था।आश्रम, गुरुकुलों की यहाँ बहुतायत थी। यहां से कटरा होते हुए कन्नौज राज्य के लिए आवागमन था।कटरा के पड़ोस कसरक आदि क्षेत्र गंगवार कुनबियों का गढ़ था। कटरा राजा अग्रसेन वंशज क्षत्रियों का आबास, जो कभी हरियाणा आगरा क्षेत्र से से आये थे। सूरसेन क्षत्रिय व वैश्य भी इनसे सम्बंधित रहे थे।जिनके एक पूर्वज #उदयनाथ ने रोम में अपना प्रभाव इतना स्थापित कर लिया था कि वह रोम का उप सम्राट घोषित किया गया था। जिसकी मृत्यु के बाद उसकी पत्नी जनुवा ने स्वतंत्र राज्य स्थापित किया था । जिसके अवशेष अब भी पामीरा/ताड़मरु में मिलते हैं। लेखक :अशोकबिन्दु

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