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शनिवार, 10 दिसंबर 2011

11दिसम्बर ओशो जन्म दिवस:अभेद मेँ छलांग

किसी ने कहा है कि दुनिया मेँ लगभग दो प्रतिशत ही व्यक्ति देवतुल्य होते हैँ .जो विभिन्न सांसारिक भेदोँ से मुक्त रहते हुए देवत्व मेँ रहते है . शेष व्यक्ति लिंग ,जाति ,मजहब , क्षेत्र ,देश ,आदि की भावना मेँ बंध कर सत का रंग रुप परिवर्तित कर अपने अपने घर की खिड़कियों से ईश्वरीय दर्शन कर ईश्वरीय व सत की सहजता खो देते हैँ.जब देव तुल्य मानव इस धरती पर होते हैँ तो कुछ चंद व्यक्तियों के अलावा कोई उनके साथ नहीँ होता.मनुष्य ताख मेँ रख कर जिनकी तश्वीरोँ को पूजता है .उनके दर्शन से अलग होता है लोगोँ का नजरिया .यही जब अपने आराध्य के अनुसार चलने वालों को देखता है तो उनके विरोध मेँ खड़ा होता है अर्थात ये महापुरुषों के झूठे अनुयायी होते है.ओशो सभी भेदों से मुक्त हो सारी मानवता व सारी चेतना के हो चुके थे. तो ऐसे मेँ भेदोँ व प्रकृति व चेतना को बांट कर देखने वाला कैसे ओशो को स्वीकार कर सकता है.मैं ओशो से इण्टर क्लास के दौरान परिचित हो चुका था और स्नातक मेँ आते आते उनके साहित्य का सघन रुप से अध्ययन करने लगा था.मैँ जो महसूस करता आया था,उसकी व्याख्या मुझे उनके साहित्य मेँ मिली.वे एक श्रेष्ठ व्याख्याकार थे.

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शुक्रवार, 11 नवंबर 2011

14 नवम्बर : बाल दिवस (द्वारा:अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु')

14 नवम्बर पर मैं बाल दिवस मनाने को तो उत्साहित रहता हूँ लेकिन नेहरु जयन्ती के रुप में नहीं .देश की वर्तमान विडम्बनाओं के लिए मैं नेहरु को ही दोषी मानता हूँ सरस्वती कुमार.दादूपुर.वाराणसी का अपनी पुस्तक सलीब पर एक और ईशा मेँ लिखना है कि विभाजन के विरोध मेँ अडिग महात्मा गांधी की हत्या हुई .वर्तमान की सारी विडम्बनाओं के लिये जिम्मेदार हैं ,बेटन नेहरु पैक्ट यानी वशीकरण अभियाध .


नेहरु का सच्चा स्वरुप


लैरी कालिन्स दामिनिक लैपियर ने अपनी पुस्तक आधी रात को आजादी में लिखा है कि कैम्ब्रिज में उनके सहपाठियों की मंडली इतनी ऊंची थी कि उनमें से आज कोई प्रधानमंत्री बना था कोई वायसराय कोई महामना सम्राट के पद तक पहुंचा था तो कोई जेल का अधिकारी .बंकिघम पैलेस के सोने की थाल मेँ भोजन कर चुके थे .जिसमें वह भोजन भी हुआ करता था जो हिन्दू मुसलमानों के लिए निषिद्ध था.सात सालों में इन्होने इंग्लैण्ड का इतना कुछ ग्रहण कर लिया था कि वह बुरी तरह अभारतीय हो चुके थे. बेटन के वशीकरण अभियान का जादू सर्वाधिक यदि किसी पर चला तो नेहरु पर.

खैर छोंड़ो,शेष फिर...

बाल दिवस के अवसर पर कहूंगा कि बालश्रम कब रुके .?

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शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2011

हृदय पुष्प: अलख

हृदय पुष्प: अलख: अलख जगाता हूँ हिंदी का सुनो सभी नर-नार। अपनी भाषा को अपनाओ करता समय पुकार। जागृति शंख बजाओ हिंद में हिंदी लाओ।। पापा-डैडी में प्यार कहा...

"धर्म और दर्शन": धर्म और अध्यात्म...............केवल राम

"धर्म और दर्शन": धर्म और अध्यात्म...............केवल राम: आज महीनों बाद  इस ब्लॉग पर कुछ लिख रहा हूँ . इस न लिखने के पीछे भी कई कारण हैं . पहला जो कारण है वह यह कि अध्यात्म जैसे विषय पर लिखने के लिए...

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2011

सेक्यूलरवाद के दंश!

नेहरु ने इस देश मेँ देश विभाजन का समर्थन व विभाजन के औचित्य का महत्व नगण्य करते हुए सेक्युलरवाद का बीज तो वो दिया लेकिन उनके समय मेँ ही सेक्युलरवाद का मतलब मुस्लिम तुष्टिकरण व हिन्दू विरोध हो गया था.मैं यह नहीं कहता कि गुजरात के मुख्यमंत्री सच मेँ सेक्यूलरवादी हैं लेकिन कौन मुस्लिम नेता सेक्युलरवादी है ?मोदी पर दोष लगाया जाता है कि सद्भावना मिशन के तहत तीन दिन के उपवास पर बैठे मोदी ने एक मुस्लिम मौलवी से टोपी पहनने से इनकार कर दिया था.अब फिर नवसारी मेँ उपवास पर बैठे मोदी ने एक मौलवी से काफा लेने से इनकार कर दिया.मुस्लिम टोपी या काफा न पहनने से मोदी दोषी नहीं हो जाते...?कितने मुस्लिम गैरमुस्लिम वस्तुओं को धारण कर सकते है.हां तब मोदी को दोषी माना जा सकता था जब कोई मुस्लिम हिन्दू प्रतीकों को धारण कर मंच पर आकर मुस्लिम टोपी या काफा मोदी को पहनाता व मोदी न पहनते.हिन्दू तो वैसे भी मुस्लिम प्रतीकों के साथ मजारों पर नजर आ जाते हैं लेकिन कितने मुस्लिम हिन्दू धर्म स्थलों पर हिन्दू प्रतीकों के साथ नजर आते हैं?मेरी इन बातों के विरोध मेँ खड़े मुस्लिम की सोँच को तब क्या कहा जाए...?
शेष फिर..

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बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

जेहाद (सुप्रबंधन) के पथ पर मुसलमान ....?!

अखण्ड भारत या फिर कहेँ कि दक्षिण एशियायी राष्ट्र संघ सरकार स्थापित करने की भावी योजना मुसलमानों के सहयोग के बिना पूर्ण नहीं हो सकती है.विशेष कर पाक व बांग्ला देश के मुसलमानों का सहयोग आवश्यक है.हिन्दू व मुसलमानों के बीच भ्रम टूटना आवश्यक है.इसके लिए <www.vedquran.blogspot.com>,पीस पार्टी,आदि जैसे सेक्यूलरवादी मुस्लिमों के दिशा निर्देशों के साथ दक्षिण एशियाई देशों मेँ कुशल नेतृत्व की आवश्यकता है.इसके लिए <www.manavatahitaysevasamiti.blogspot.com>भी देखते रहेँ. जनगणना के दौरान क्षेत्र मेँ घूमने से ज्ञात हुआ कि अभी अस्सी प्रतिशत से ज्यादा मुसलमान गरीब है जिसको साथ लेकर दलितों व पिछड़ों को एक जुट कर दक्षिण एशियाई देशों मेँ एक क्रान्ति की आवश्यकता है.कट्टरपंथियों के द्वारा क्षेत्र का भला नहीं होने वाला. सेक्यूलरवाद ही दक्षिण एशिया मेँ शान्ति स्थापित कर सकता है. लेकिन सेक्यूलरवाद का मतलब पुरातत्विक स्रोतों के सच से मुकरना नहीं है.सबको पता होना चाहिए कि सत्य से मुकरने वाला तो काफिर होता है.काफिरों से क्षेत्र का भला सम्भव नहीं है.सत को लेकर ही हम क्षेत्र व विश्व का भला कर सकते हैँ.

OM-AMIN

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From: akvashokbindu@gmail.com <akvashokbindu@gmail.com>
To: "go@blogger.com" <go@blogger.com>
Date: बुधवार, 19 अक्‍तूबर, 2011 2:46:43 पूर्वाह्न GMT+0000
Subject: जेहाद (सुप्रबंधन) के पथ पर मुसलमान ....?!<www.vedquran.blogspot.com>

दुनिया मेँ दो ही जातियां हैँ -सज्जन और दुर्जन.जो अपने (स्व)के ईमान पर पक्का है वही वास्तव मेँ सज्जन.मुसलमान का अर्थ है जो स्व के ईमान पर पक्का है.स्व का अर्थ होता है आत्मा या परमात्मा.जो सिर्फ अपनेशरीर,इन्द्रियों,परिवार,जाति,पंथ,आदि के लिए ही जीना चाहता है;वह धार्मिक व महापुरुषों का अनुयायी नहीं माना जा सकता.सन 2011ई0 से विभिन्न देशोँ मेँ स्थितियाँ परिवर्तन के लिए लालायित हैँ.दुनियां के असंतुष्ट गरीब आदि को एक जुट कर उन्हें व्यवस्था परिवर्तन के लिए प्रत्येक देश जाति पंथ आदि से महापुरुषोँ को चाहिए जो आपस मेँ एक डोर से बंधे होँ.वह डोर कौन सी हो सकती है?सड़क व विभिन्न संस्थाओं मेँ इन्सान को इन्सान की दृष्टि से देख कर इन्सानियत व पर्यावर्ण के हित मेँ कदम उठाने होंगे.इन्सान को उसके तथाकथित जाति मजहब देश आदि से जोड़ कर न देख सिर्फ इन्सान की दृष्टि से देख जातिवादी मजहबवादी देशवादी आदि के आधार पर आवश्यकताओं से निकल कर आम आदमी की आवश्यकताओं व समस्याओं को देखना पड़ेगा.इसके लिए प्रत्येक इन्सान को अपने घर से बाहर निकल कर इंसानियत की दृष्टि से अपना नजरिया बनाना पड़ेगा.गरीबी के खिलाफ एक जुट होना पड़े

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रविवार, 18 सितंबर 2011

जातीय व्यवस्था : सामाजिकता के दंश

गौरबशाली भारत की विशेषताओं मेँ एक विशेषता थी-वर्ण व्यवस्था.कुछ अपवादों को छोंड़ देँ तो पता चलता है कि उस वक्त जाति व्यवस्था नहीं थी.बस दो ही जातियां थीं जो कि दो विचारधारायें थीँ-आर्य व अनार्य.कर्म के आधार पर व्यक्ति का वर्ण बदल जाता था.कोई भी अपने वर्ण के आधार पर शादी कर सकता था.उस वक्त अपने वर्ण मेँ शादी करने का मतलब हो जाता था -अपने स्तर, स्वभाव,अपने लक्ष्य मेँ सहयोगी,अपने कार्य क्षेत्री,आदि वाले युवक या युवती से शादी करना.उस वक्त स्वयं युवक युवतियों को अपना जीवन साथी चुनने का अधिकार था.आज कल समाज में जाति व्यवस्था नस नस मेँ व्याप्त है .ये जाति व्यवस्था समाज में द्वेषभावना व मतभेद का कारण बनी हुई है.मुसलमानों व अंग्रेजों के आने के पूर्व ही अखण्डभारत खण्ड खण्ड हो चुका था.ग्रंथों के संज्ञान से स्पष्ट होता है कि कम से कम सभी पिछड़ी कही जाने वाली जातियों के पूर्वज एक ही थे व क्षत्रिय थे.
वैश्य वर्ग के पूर्वज भी क्षत्रिय ही थे.सुखसागर भागवत पुराण,आदि का अध्ययन गहनता से किया जाए तो पता चलता है कि हम सब कहीं न कहीं से एक थे और परस्पर शादियों का प्रचलन था लेकिन जातिव्यवस्था कारण हम टूटे

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शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

मैं असामाजिक ही ठीक!

किसी न किसी क्लास मेँ मेरा एक पीरियड नैतिक शिक्षा का रहता है.जिसमेँ मुझे अवसर मिलता रहता है -महापुरुषों व ग्रन्थों के आधार पर मानवीय मूल्यों को बच्चों के सामने रखने का.पांच सितम्बर को मैं सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन व अध्यापकों के महत्व पर प्रकाश डाल रहा था.क्लास मेँ चाहें किसी भी की जयन्ती पर बोलना हो,मेरा यह बोलना जरुर होता है कि बच्चों!हमारे दादा परदादा का जन्मदिन क्यों नहीं मनाया जाता?हम उनका नाम तक नहीं जानते .वहीं दूसरी ओर कुछ के दादा परदादा का जन्मदिन देश या विश्व भर मेँ मनाया जाता है.'अकेला चल रे' सिद्धान्त को स्वीकार करो.श्रीरामशर्मा ने कहा कि मानव के जीवनअकेलेपन का बड़ा महत्व रहा है.मैं बच्चों से कहता रहता हूँ कि तुम्हेँ अपने आराध्य महापुरूषों व ग्रंथों के आधार पर चलना चाहिए न कि अपने माता पिता परिवार या समाज के आधार पर...?गीता मेँ भी श्रीकृष्ण ने कहा है कि धर्म के रास्ते पर अपना कोई नहीं होता.कुछ वर्ष पहले मेरे स्टाप से एक अध्यापक ब्रह्माधार मिश्रा बोले थे -आप तो आसामाजिक हो.मैं भी अपने को आसामाजिक मानता हूँ लेकिन अन्ना आन्दोलन से मैं जितना खुश हूँ उतना ये लोग नहीँ..शेष.

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गुरुवार, 15 सितंबर 2011

बौद्धिक प्रतिभा के दंश : शारीरिक सक्रियता व सामाजिकता

ब्रिटेन से शोध मीडिया मेँ आया था कि बुद्धिजीवी कामकाजीबुद्धि कम रखते हैँ.सांसारिकजगत मेँ शारीरिक कर्म ज्यादा महत्वपूर्ण है.मनस मेँ जीने वाले सांसारिक शारीरिक एन्द्रिक आवश्यकताओं मेँ जीने वाले व्यक्तियों की अपेक्षा कम शारीरिक सक्रियता वाले होते हैँ.मनसजीवी अन्तर्मुखी व्यक्तियों से वहिर्मुखी भौतिकजीवी व्यक्तियों से तुलना कर मनसजीवी व अन्तर्मुखी व्यक्तियों कम कम आंकना परिवार व समाज की भौतिकवादी नजरिये का प्रदर्शन है न कि धार्मिक व आध्यात्मिक . ओशो ने कहा है कि धर्म व्यक्ति को भीड़ से अलग कर देता है .ओशो के इस कथन पर चिन्तन करने की आवश्यकता है .भीड़ का व्यक्ति निष्काम कर्म व परोपकार का हेतु लेकर नहीं चलता.निष्काम कर्म ही वास्तव मेँ कर्म होते हैं जो कि आत्मा या परमात्मा से संचालित होते हैं.भीड़ के कर्म नहीं चेष्टाएं,बदले का भाव,उन्माद शारीरिक व एन्द्रिक लालसाओं की प्रतिक्रिया,भेंड़चाल,आदि होते हैँ.परम्परागत पारिवारिक शारीरिक कर्मों से हट कर कमरे या अन्यत्र मानसिक कार्य करने वालों को अब भी परिवार व समाज मेँ आलसी,कामचोर,आदि के ताने मिलते हैँ.क्यों न फिर वे विदेश मेँ जा यश व सम्मान प्राप्त करे

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गुरुवार, 1 सितंबर 2011

05सितम्बर शिक्षक दिवस:अब शिक्षक ही विद्या से विनय प्राप्त नहीं कर पाता.

हालांकि विश्व शिक्षक दिवस 05 अक्टूबर का होगा.लेकिन भारत देश मेँ सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस को हम भी हम शिक्षक दिवस के रुप मेँ मनाते हैं.

डा राष्ट्रबंधु का कहना है कि राधाकृष्णन दर्शन शास्त्र के अधिकारी विद्वान थे.जब वे मैसूर से कोलकाता विश्वविद्यालय जाने लगे तो उनके शिष्य बहुत दुखी हुए.डा राधाकृष्णन से पढ़ने मेँ छात्रों को जो आनन्द मिलता था उसमेँ व्यवधान आसन्न था,बाधा आ गई थी.शिष्यों ने विदाई के लिए रथ सजाया और उसमेँ बैठने का आग्रह गुरु जी से किया.बारी बारी से शिष्य,घोड़ों के स्थान पर जुत गए.मैसूर रेलवे स्टेशन पर आकर उन्होने डा राधाकृष्णन को रेल मेँ बिठाया.जब रेल चली तो स्नेहातिरेक में वे फूट फूट कर रोने लगे.शिष्य और गुरु जी की विदाई का यह दृश्य अत्यन्त ही ह्रदयविदारक और अभूतपूर्व था.उनके अध्यापन की कीर्ती जब इंग्लैण्ड पहुँची तो तो आक्सफोर्ड वि वि से भी उनको पढ़ाने का निमंत्रण आया.वे विदेशों मेँ भी भारत की पोशाक पहनने मेँ गर्व महसूस करते थे.आदर्श अध्यापक के सभी गुण उनमेँ उपस्थित थे.युवकों!आज के आदर्श अध्यापक हैँ डा ए पी जे अब्दुल कलाम व.....अन्ना.....अन्ना हजारे... .


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From: ashok kumar verma <akvashokbindu@gmail.com>
To: "admin" <admin@khabarindia.com>
Date: बुधवार, 31 अगस्त, 2011 2:57:07 पूर्वाह्न GMT-0700
Subject: 05सितम्बर शिक्षक दिवस:अब शिक्षक ही विद्या से विनय प्राप्त नहीं कर पाता.

अब शिक्षक ही विद्या से विनय प्राप्त नहीं कर पाता.वह आज स्वयं
युधिष्ठिर की मजाक बनाता है.महाभारत काल मेँ विद्यार्थी ही सिर्फ
युधिष्ठिर की मजाक बनाया करते थे . आज के भौतिक भोगवादी युग मेँ शिक्षक
मेँ शिक्षकत्व अर्थात ब्राह्मणत्व नजर नहीं आता.वैश्वत्व व शूद्रत्व नजर
आता है.पूंजीपतियों व सत्तावादियों ने मिल कर मनुष्य को शारीरिक व
एन्द्रिक लालसाओं के दलदल मेँ ला पटका.17-18वीं सदी से वैज्ञानिक
भौतिकवाद ने विश्व मेँ आधुनिक समस्याएं ला खड़ी कर दीं .वैज्ञानिक
अध्यात्मवाद के बिना सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकसित नहीं होने वाले.मानव
सत्ता के समक्ष सबसे बड़ी विडम्वना यही है कि आज का शिक्षक ही मानवीय
मूल्यों व सार्वभौमिक ज्ञान के लिए न जी कर भौतिक भोगवादी मूल्यों के लिए
जी रहा है.

जो राज्य व राष्ट्र पुरष्कृत शिक्षक हैं, वे भी कितने ज्ञान के
प्रति व्यवहारिक सजग हैँ ?बरेली मण्डल व आसपड़ोस जनपदों के ऐसे कुछ
शिक्षकों का अध्ययन करने से पता चलता है कि उन्होंने सिर्फ अधिकारियों के
सहयोग से जैसे तैसे अपनी फाइल अच्छी करवा ली बस.
शिक्षक आज स्वभाव से शिक्षक नहीं है.वे शिक्षक इसलिए बने हैं कि ....उनके
ही कथनानुसार -"आजकल रुपया किसे प्यारा नहीँ ".शिक्षकों में भी
भौतिकभोगवादी मूल्य उद्वेलित करते हैँ न कि मानवीय व दर्शन मूल्य.


आज के शिक्षकों को देखकर हमेँ तो नहीं लगता कि शिक्षकों के पास
सर्वश्रेष्ठ दिमाग होता है?सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था कि देश के
शिक्षकों के पास सर्वश्रेष्ठ दिमाग हो.नई पीढी का उद्धार वास्तव मेँ
शिक्षकों के हाथों ही है.हम आप प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से शिक्षा
जगत से जुड़े हैं यह दुनियाँ मेँ एक सर्वश्रेष्ठ घटना है.वास्तव मेँ यदि
शिक्षक नियति सोंच व स्वभाव से ज्ञानवान हो जाये तो क्रान्ति घटित हो
जाए.ओशो ने कहा है कि वर्तमान शिक्षा संस्थाएं व शिक्षक सिर्फ स्मृति के
केन्द्र हैं न कि अन्वेशण चिन्तन सूझबूझ एवं संस्कारों के.मेरा तो अपना
विचार है कि शिक्षण का कार्य वही संभाले जिनका उद्देश्य सिर्फ अपने व
अपने परिवार का पालन पोषण देखरेख व भौतिक स्तर सुधारना नहीँ है.


किसी ने कहा है कि वास्तविक शिक्षक सिर्फ वही हो सकता है जो सिर्फ शिक्षक
है न ही किसी का पिता है न ही किसी का पति है और सिर्फ अपने बच्चों की न
सोंच कर सारे समाज की सोंचता है.इसलिए दुनिया से सूझबूझ व संस्कार विदा
हो ही रहे हैं शिक्षा जगत से भी शिक्षा दूर हो रही है.क्योंकि शिक्षा जगत
से वे लोग जुड़ रहे हैँ जो आम आदमी की ही तरह सोंच नियति व स्वभाव बनाए
पड़े हैं.आम आदमी की ही तरह आम आवश्यकताओँ के जाल मेँ उलझे हुए हैँ.धरती
का सबसे महान कार्य है शिक्षा लेकिन सोंच नियति मेँ आम आदमी की ही
बू.....?!कहां है वह महानता वह सूझबूझ ....?! वह शूद्र ही है जो सिर्फ
अपने व्यक्तिगत स्वार्थों के लिए ज्ञान चाहता है...?!आज जब ब्राहमण ही जब
ब्राहमण नहीं है तो किससे उम्मीद रखेँ?जाति,धन,बाहु,आदि बल से व्यक्ति
जरुरी नहीं अच्छा इंसान बन सके ? शिक्षा से कितने व्यक्ति नम्र बन रहे
है?वर्तमान मेँ देश के आदर्श शिक्षक हैं डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम.


जब शिक्षित भी आम आदमी की तरह निरा शारीरिक एन्द्रिक आवश्यकताओं के
लिए सिर्फ जिए तो ये देश व विश्व के समक्ष एक बिडम्बना है.

सोमवार, 29 अगस्त 2011

सामाजिकता के दंश : सनातन धर्मयात्रा के समक्ष परम्परागत सामाजिकता के कलंक !

सन 2007ई0 के जुलाई मास की बात है,कालेज मेँ एडमीशन प्रक्रिया जारी
थी.मैं कक्षा 6ए और अरविन्द मिश्रा कक्षा 6ब के लिए एडमीशन कर रहे थे.दो
प्रवेशार्थी दो बार प्रवेशपरीक्षा मेँ बैठने के बाबजूद प्रवेशपरीक्षा मेँ
पास नहीं हो पाये थे. एक ही सत्र मेँ एक ही क्लास के लिए दो बार परीक्षा
.....?दोनों के दोनों प्रवेशपरीक्षा मेँ कुल टोटल ही शून्य था.ऐसे मेँ
मैँ उन दोनों का एडमीशन कैसे ले सकता था?


विद्यालय मेँ दो अध्यापक ऐसे हैं जो कि सामाजिकता के ठेकेदार
बनते हैँ.सामाजिकता के बहाने वे पीछे के रास्ते से भ्रष्टाचार,
मनमानी,आदि करने से नहीं चूकते.एक कहते हैं कि हमें तो समाज मेँ अपनी बना
के चलना है.बड़ेगुरुजी(प्रधानाचार्य) ईमानदारी पर चलेँ,वे वस्ती जिले से
हैं रिटायर हो कर वस्ती मेँ चले जाएंगे.हमेँ तो यहीं रहना है.हम
सामाजिकता को नहीं नकार सकते.तो क्या सामाजिकता का मतलब ये है कि नियमों
को ताख मेँ रख दिया जाए?मैं ने सोँचा.मुझसे इस अध्यापक ने कहा कि आपको इन
दो बच्चों के एडमीशन करने हैं.मैं बोला कि मैं कैसे कर सकता हूं इनका
एडमीशन?ये तो शून्य अंक रखते हैँ.तब वे बोले कि यहां रहना है तो ये
एडमीशन करना ही होगा.मैं बोला कैसे करना ?मैं नहीं कर सकता क्यों न कालेज
छोंड़ना पड़ जाए?वे बोले कि देखो समाज को लेकर चलना पड़ता है. मैं बोल दिया
कि मैं समाज को लेकर नहीं चलना चाहता.मैं सामाजिकता मेँ नहीँ.मैं
महापुरुषों से सीख लेना चाहता हूँ.आप जैसे सामाजिकता की वकालत करने वालों
से नहीँ.


मैं बचपन से ही सामाजिकता के नाम पर झूठ ,फरेब ,अन्धविश्वास
,कूपमंडूकता ,आदि को ही वर्दाश्त करता आया था.मैँ महसूस कर रहा था कि
धर्म, अध्याम,सत,आदि परम्परागत समाज के अपोजिट है.

सनातन धर्म की यात्रा पथ के पथिक कितने हैं?जो हैं परम्परागत भीड़ से
अलग थलग हैं.रामकृष्ण परमहंस जैसे अपने जिन्दा रहते परम्परागत भीड़ मेँ
उपेक्षित होते हैँ. मैं भी परम्परागत भीड़ मेँ उपेक्षित क्यों हूँ?मैं
उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतरता.आखिर मैं किनकी उम्मीदों पर खरा
उतरुँ?महापुरुषों व ग्रन्थों के सार के आधार पर या फिर इन निरे भौतिक
भोगवादी व संकीर्ण लोगों की नजर मेँ?


सनातनधर्म यात्रा के समक्ष सामाजिकता के DANSH बन कर आते हैँ भीड़ मेँ
बेहतर बनने के तरीके.सनातन यात्रा का संवाहक कौन है?सनातन यात्रा के पथ
पर जैन, बुद्ध, यहूदी, पारसी ,ईसाई, मुस्लिम, सिक्ख हो चलना तो समझ मेँ
आता है लेकिन हिन्दू होना नहीं.वह भी निरा सगुण हिन्दू की उम्मीदों के
आधार पर?सगुण निर्गुण के सम अस्तित्व(ब्रह्म व प्रकृति का समअस्तित्व)के
आधार पर ही मानव अपने सम्पूर्ण व्यक्तित्व का विकास सम्भव है.मेरे लिए
निर्गुण साधना का मतलब है अपने भाव,विचार,स्वपन, कल्पना,चिन्तन जगत में
मोह,लोभ,काम,आदि व ऋणात्मक सोंच के खिलाफ पल प्रति पल विद्रोह का प्रयत्न
करते रहना.ऋषियों ,मुनियों ,नबियों, आदि सनातन धर्म का तानाबाना बुनने
वालोँ के यात्रा को आगे बढ़ाने वाले प्रथम पथिक जिन अर्थात जैन नजर आते
हैँ.जिन का अर्थ है-'स्व को पाने वाले जो इन्द्रियों के विजेता'.फिर
बुद्ध.....प्रज्ञा को प्राप्त हुए.आगे मुस्लिम..अर्थात ईमान पर पक्के
....सिक्ख यानि कि शिष्य.....इन सब गुणों अर्थात जैन ,बुद्ध
,मुस्लिम,सिक्ख,आदि को समाहित कर ही आर्य हो सकते हैं.अब बात आती है
हिन्दू की ,आज के वैश्वीकरण में मुझे हिन्दू होने पर गर्व नहीं है
.भारतीय होने पर गर्व है.मेरी भारतीयता ही मेरा हिन्दुत्व है.डा ए पी जे
अब्दुल कलाम मेरी दृष्टि मेँ हिन्दुत्व मेँ है.

बुद्ध दर्शन मेरे लिए प्रयोगात्मक धर्म है.जो कि सनातन यात्रा पर आज भी
मुझे आकर्षित करता है.संत रैदास कहते हैं कि मन चंगा तो कठौती मेँ
गंगा.आज मन चंगा किसका है?मैँ ऊपर लिख चुका हूँ कि निर्गुण साधना का मतलब
है कि अपने भाव, विचार, चिन्तन, स्वपन, आदि जगत मेँ माया मोह लोभ के
खिलाफ विद्रोह मेँ पल प्रति पल रहना.मैं यहां पर एक वाक्य का और प्रयोग
करता हूँ कि मन का राजा बनना.हमारे विचार भाव स्वपन समृद्ध ही होना
चाहिए.माया लोभ काम क्रोध मेँ ही मन का बह जाना हमारी समृद्धता नहीं है.

कबीर अपने शिष्य धर्मदास से कहते हैं कि जगत मेँ मैं जो देने आया हूँ वह
हमसे कोई लेने ही नहीं आता. कबीर के इस कथन के जिक्र के बाद मैँ अब कहता
हूँ कि ऐसे जगत मेँ जगत की उम्मीदों पे खरा न उतरना पाप नहीं है.पाप है
सत्य को सत्य से मुकुरना.सत्य से मुकुरने वाला काफिर है.चाहेँ वह अपने
को मुसलमान ही क्यों न समझता हो.


सन 2011ई0 की पांच अगस्त!

दूसरे एक अध्यापक बड़े सामाजिक है.वे पाँच मिनट में ही पांच हजार व्यक्ति
इकठ्ठे कर सकते हैं लेकिन......?भीड़ किसके साथ होती है?भीड़ का कोई क्या
धर्म होता है?वह तो उन्माद व सम्प्रदायों मेँ होती है.धर्म के पथ पर
व्यक्ति अकेला होता है.अब कहोगे कि अन्ना के साथ क्या भीड़ नहीं थी?अन्ना
जिसको लेकर चल रहे वह क्या धर्म नहीँ?

शनिवार, 27 अगस्त 2011

अन्ना आन्दोलन की लहर मेँ!

अन्ना हजारे यदुवंशी होने के नाते यदुवंशी श्रीकृष्ण के कुरुशान अर्थात
गीता संदेश के महत्व को जन जन तक पहुंचायें.

---------- Forwarded message ----------
From: "akvashokbindu@gmail.com" <akvashokbindu@gmail.com>
Date: Fri, 26 Aug 2011 17:18:07 +0000
Subject: अन्ना आन्दोलन की लहर मेँ!
To: hindi@oneindia.co.in, shekhartimes@gmail.com,
teamannahazare@gmail.com, dsvvconf2010@gmail.com, pehel@jagran.com,
freelance@oneindia.co.in, editor.bhadohinews@gmail.com,
divyayoga@rediffmail.com

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------Original message------
From: ashok kumar verma <akvashokbindu@gmail.com>
To: "ईपत्रिका हमारीवाणी"
<news@hamarivani.com>,<rachanakar@gmail.com>,<gsbhaskar@rediffmail.com>,"admin"
<admin@khabarindia.com>
Date: शुक्रवार, 26 अगस्त, 2011 9:02:54 पूर्वाह्न GMT-0700
Subject: अन्ना आन्दोलन की लहर मेँ!

सन 2011ई0 का जन्माष्टमी पर्व! 22अगस्त, दिन सोमवार!मीरानपुर कटरा से
कुछ किलोमीटर दूरी पर सिउरा गांव मेँ बड़े धूमधाम से जन्माष्टमी पर्व
मनाया जा रहा था.मैं वहां पहुंच ही पाया था कि मन अन्तर्द्वन्द मेँ फंस
गया और वहां से वापस मीरानपुर कटरा आ गया.

"महापुरुषोँ पर सिर्फ कुछ समय के लिए कुछ स्थूल क्रियाओं से कब मानव व
समाज का उद्धार हुआ है?मानव किसी एक महापुरुष को ही अपने जीवन मेँ उतार
ले तो मानव के जीवन मेँ क्रान्तिकारी परिवर्तन हो जाए .वर्तमान मेँ अन्ना
आन्दोलन ने सभी को प्रभावित कर रखा है.प्रभावित नहीँ किया है तो निरे
भौतिक भोगवादी व्यक्तियों को.विद्यार्थी व बुद्धिजीवी व्यक्तियोँ की
संख्या ज्यादा है अन्ना आन्दोलन से जुड़ने वालों मेँ.इस आन्दोलन के लिए भी
कुरुशान (गीता) से सीख ली जा सकती है.लेकिन कमबख्त कृष्णभक्त व कृष्णवंशी
ही सीख नहीं लेना चाहते.साले,ये विदेशी आक्रमणकारियों से लड़ने वालों को
तो देशभक्त मान कर पूजते हैं लेकिन देशी दुश्मन इन्हेँ अपनी बिरादरी या
अपने दिखते हैँ.तब भूल जाते हैं श्रीकृष्ण संदेश को."


श्रीकृष्ण जीवन भर मुस्कुराते रहे यहां तक कि लाशों पर रोने वालों पर
भी लेकिन रोये तो सुदामा की दीन दशा पर.

अपने कमरे पर आ कर मैं मेडिटेशन पर बैठ गया.


"मैं रहूँ या न रहूँ लेकिन क्रान्ति की ये मशाल जलती रहनी
चाहिए."अन्ना का भाषण सुन मेरी आंखों मेँ आंसू आ गये. लेकिन मेरा मानना
है कि पूर्णतया कभी भी यह धरती भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं हो सकती.जब तक
माया मोह लोभ रहेगा भ्रष्टाचार रहेगा.बिन अध्यात्म ये कैसे सम्भव?लेकिन
हम आप को अन्ना समर्थन करना ही चाहिए.नक्सलियों से भी मेरी विनती है कि
वे अन्ना के समर्थन मेँ संघर्ष विराम करेँ.
दैनिक समाचारपत्र खुसरो मेल के सम्वाददाता के सामने मैने कहा कि
सुप्रबन्धन के लिए कठोर नियम बनने ही पाहिए लेकिन जब तक माया मोह रहेगा
तब तक भ्रष्टाचार रहेगा.यहां तो भ्रष्टाचार तो देश के आजादी की नींव मेँ
ही है.सरस्वती कुमार दादूपुर वाराणसी के अनुसार वर्तमान सभी विडम्बनाओं
के लिए जिम्मेदार है-'बेटन नेहरु पैक्ट यानी वशीकरण अभियान'.मौ अबुल कलाम
आजाद अपनी पुस्तक इंडिया विन्स फ्रीडम मे लिखा है कि मुझे जब यह आभास हुआ
कि लार्ड माउण्टबेयन ने जवाहर लाल तथा पटेल को अपने विचारों से प्रभावित
कर लिया है और वह भारतवर्ष के बँटबारे के विचार मेँ है तो मुझे महान कष्ट
हुआ.31मार्च1947को दिल्ली मेँ गांधी से जब मैं मिलने पहुंचा तो वे तुरन्त
बोले कि भारत विभाजन एक धमकी बन चुका है.ऐसा लगता है कि बल्लभ भाई तथा
जबाहर लाल ने हथियार डाल दिये हैं.सुना जाता है कि लार्ड माउन्टबेटन के
विभाजन योजना के दस्तावेज पर पं जवाहर लाल नेहरु सरदार पटेल आचार्य
कृपलानी मु अली जिन्ना लियाकत अली रबनिस्तर तथा बलदेव सिँह का हस्ताक्षर
लेकर बेटन प्रधानमंत्री एटली चर्चित और महामना षष्टम एडवर्ड का अनुमोदन
मिलने के बाद तीन जून को रेडियो पर प्रसारण सुन कर गांधी जी धैर्य का
बांध टूट गया.उन्होने कांग्रेस को समाप्त करने व बेटन की विभाजन योजना को
ध्वस्त करने के लिए सार्वजनिक घोषणा करने का संकल्प ले लिया और चार जून
की प्रार्थना सभा मेँ बोलने वाले थे.महात्मा गांधी विभाजन के विरोध में
ही खड़े रहे लेकिन पटेल व नेहरु के द्वारा गांधी को मनाने के लिए भेजे गये
माउण्टबेटन के पैने तर्कों ने उन्हें अन्दर ही अन्दर हचमचा कर रख दिया.वह
78वर्ष के हो चुके थे.तीस वर्षों मेँ आज पहली बार उन्हें अपने आप पर
अविश्वास जगा था.वे नितान्त अकेले पड़ चुके थे.विभाजन की शर्त पर
सत्तावादियों की आजादी प्रति स्वीकृति ने गांधी की हत्या करवा दी.न जाने
क्यों अन्ना के इस आन्दोलन के दौरान सन 1947-48ई0में गांधी का अकेलापन
मुझे स्मरण हो आता है?इन कांग्रेसियों के चरित्र की उल्टी गिनती तो सन
1947ई0से ही प्रारम्भ हो चुकी थी.जिस तरह आज अधिकतर नेताओं के पास साहस
नहीं है देश हित मेँ कठोर निर्णय लेने का .वर्तमान मेँ पब्लिक देख ही
रही है कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नेता कैसा व्यवहार कर रहे हैं कुछ
नेताओं को तो ये तक पता नहीं है कि अन्ना अभी तक जो कर रहे हैं वह
लोकतान्त्रिक है कि अलोकतान्त्रिक ?वे शायद संवैधानिक लोकतान्त्रिक
मूल्यों व लोक अधिकारों से भी अन्जान है.इस समय कांग्रेस नेता स्वयं
तर्कहीन बातें कह अपनी किरकिरी करा रहे हैँ.लोकतन्त्र है भाई,राजतन्त्र
नहीँ!राजतन्त्र होता तो ये नेता क्या करते?सांसद विधायक जनता के
प्रतिनिधि होते हैं न कि जनता के मालिक?नेताओंकेअसंवैधानिक व
अलोकतान्त्रिक व्यवहारों के खिलाफ लोकतंत्र मेँ शान्तिपूर्ण ढंग से
अभिव्यक्ति व आन्दोलन करने का लोक को अधिकार है.नेताओं को ये समझ मेँ
क्यों नहीं आता? अन्ना का आन्दोलन इन नेताओं के लिए अलोकतान्त्रिक है तो
अभी कुछ दिनों पहले जाटों का आन्दोलन था वह क्या था ?किस पार्टी के किस
नेता पर विश्वास करें कुछ चन्द नेताओं के अलावा?जो अन्ना के समर्थन मेँ
खड़े हैँ वे क्या अपने मन में खोंट नहीं रखते ?मैं रुहेलखण्ड क्षेत्र
अर्थात बरेली मण्डल के जनपदों व नगरों मेँ अन्ना आन्दोलन को विस्तार
देने वालों को देख रहा हूँ .वे कितने शुभचिन्तक हैं सुप्रबंधन के लिए
?वे दल ,जाति, मजहब,आदि से ऊपर उठकर व्यवहार नहीँ करते.अनेक दुकानदार
नकली सामान बेँचते है,अपने मेडिकल स्टोर पर अस्सी प्रतिशत दवाईयां नकली
रखते हैं,वकील सांप को रस्सी व रस्सी बनाने से नहीँ चुकते,अध्यापक स्कूल
नहीं जाने के बाबजूद अगले दिन पिछली अनुपस्थिति को उपस्थिति मेँ बदल देते
हैं,आदि;ऐसे भी अन्ना आन्दोलन को हवा देने मेँ लगे हैँ.एक नेता कहते है
कि अन्ना टीम सांसद बन कर दिखाये?मेरे सीट पर कोई जीत कर दिखाये.मैं
मुस्लिम व अपनी बिरादरी के वोट से जीतता आया हूँ.इसके अलावा शेष वोटरों
से कौन जीतने वाला? यादव यादव जी को, जाटव व अन्य हरिजन अपनी बहिन जी से
बाहर जाने वाले नहीं और ये कुर्मी कुर्मी प्रत्याशी से बाहर जाने वाले
नहीं.मन से अभी 98 प्रतिशत गुलाम हैं व भेंड़ की चाल चलें.

शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

मिशन पार्लियामेंट : स्वस्थ संसदीय कार्यवाही क्यों नहीँ?

एक वे आतंकवादी थे जो कि संसद को बमों से उड़ा देना चाहते थे.दूसरी ओर देश के अन्दर कुछ गद्दार हैं जो संसद को चलने नहीं देना चाहते हैँ.अब अन्ना को मिशन पार्लियामेंट चलाना चाहिए.सांसदों के लिए पाठशाला की व्यवस्था की जाए.ये सांसद आखिर चाहते क्या हैँ?जनता के द्वारा चुने गये प्रतिनिधि संसद मेँ जनता की आवाज पर स्वस्थ सम्वाद नहीं कर सकते?जनता की आवाज इन्हेँ सुनाई नहीँ देती.चीन पाक सीमा पर इन दो दिनों से जो हरकतेँ चल रही हैँ वे दिखाई नहीं दे रही हैँ.ये सांसद क्या अपनी या अपने चमचों की सुनना चाहते हैँ सिर्फ?कहाँ खो गया देश का क्षत्रियत्व?देश की जनता को क्या अर्जुन बन गाण्डीव उठाना होगा?आदि काल से ही भारत की शरहदे छोटी होती आयीं क्या आगे भी छोटी होती रहेँगी.मराठे जाग चुके हैं ये मुसलमानोँ तुम भी यदि जाग जाओ तो फिर पाक,कश्मीर, भारत व बांग्लादेश मिल कर भारतसंघ बन सकता है.
अन्ना के इस आन्दोलन से दूसरी आजादी की जंग छेंड़ी जा सकती है लेकिन पहले अन्ना आन्दोलन को आगे बढ़ाना होगा.भ्रष्टाचारमुक्त तंत्र बनाना होगा.इसके बाद गांव सुधार को जंग छेंड़ना होगा.संसदों विधायकों को जन प्रतिनिधि का मतलब समझाना होगा....

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रामदेव जी का आंदोलन समाप्त नहीं हुआ है !

बाबा रामदेव जिन मुद्दों ले चल रहे है वे देश के हित मेँ ही हैँ.

---------- Forwarded message ----------
From: vikas saini <shrivikassaini@gmail.com>
Date: Wed, 24 Aug 2011 12:53:02 +0530
Subject: विप्लव विकल्प विकास रामदेव जी का आंदोलन समाप्त नहीं हुआ है !
To:

--- *मंगल, 23/8/11 को, SAMVAD_MP : संवाद प्रभारी म.प्र.(पश्चिम)-डा. कृष्णा
राव <mp.w.samvadprabhari@gmail.com>* ने लिखा:


द्वारा: SAMVAD_MP : संवाद प्रभारी म.प्र.(पश्चिम)-डा. कृष्णा राव <
mp.w.samvadprabhari@gmail.com>
विषय: हरिद्वार की हलचल
दिनांक: मंगलवार, 23 अगस्त, 2011, 10:33 PM
*रामदेव जी का आंदोलन समाप्त नहीं हुआ है ,बल्कि भविष्य के लिए नयी ताकत एकत्र
की जा रही है .अन्ना के आंदोलन में तों अधिकाँश भीड़ तमाशबीनो की है ,जबकि
रामदेव जी देशभर के योग्य तरुणों को पूरी साधना करा के संघर्ष के लिए
संकल्पबद्ध करा रहे हैं !** बधाई हो ! बधाई हो !*

*
*

*हरिद्वार मे 15 अगस्त से 21 अगस्त तक युवा भारत शिविर योगपीठ फेस-2 हरिद्वार
उत्तराखंड मे और संपूर्ण आज़ादी और संपूर्ण क्रांति और राष्ट्र निर्माण संकल्प
यात्रा जो की हर की पोढ़ी पर एक महान संकल्प के रूप मे समाप्त हुई
| देश भर के ६५० जिलो से आये १५००० युवाओं ने योग ऋषि स्वामी स्वामी रामदेव जी
महाराज एवं स्वामी गनेशानंद जी महाराज के परम सानिध्य मे योग साधना सीखी | योग
ऋषि स्वामी स्वामी रामदेव जी महाराज ने सभी से आव्हान किया की अब ...आप सभी
अपने हाथ मे इस पवित्र गंगा जल को ले कर संकल्प ले की हम सब मिल कर विदेशों मे
जमा काला धन वापस लाएँगें और *
*गाँव गाँव तक योग की अलख जगाएगें सभी को काले धन का सच बताएँगे और भारत को
भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र बनाएँगे ! *
*गाँव गाँव जाएँगे सभी को योग सिखाएगें ! काला धन भी लाएँगे देश को बचाएँगें !
*
*साधु संतों का अपमान नही सहेगा हिन्दुस्तान ! *
*१ २ ३ ४ बंद करो ये भ्रष्टाचार ! *
*शहीदों हम शर्मिंदा हैं भ्रष्टाचारी जिंदा हैं !*
* *

-- डा. के कृष्णा राव प्रांतीय संवाद प्रभारी पतंजलि योग समिति एवं भारत
स्वाभिमान म.प्र. (पश्चिम) 09425451262

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हिंदुस्तान की आवाज़ ब्लॉग पर प्रकाशित करेंगे.
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सूची से हटा दिया जाएगा!


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FROM 8.00 P.M.
TO 9.00 P.M. IN THE NIGHT EVERY DAY -- MAKE "YOGA" AS YOUR DAILY ROUTINE*
*
*
*

अपने दैनिक कार्यक्रम में 'योग' को शामिल कर बिना पैसा खर्च किए स्‍वस्‍थ और
चुस्‍त रखने के लिए प्रतिदिन प्रात:काल 5 बजे से 8 बजे तक और रात में 8 बजे से
9 बजे तक ''आस्‍था'' चैनल देखिए।
*

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बुधवार, 24 अगस्त 2011

अन्ना आन्दोलन की कुछ तश्वीरेँ

अशोक कुमार वर्मा 'बिन्दु'
;जो कि मानवता हिताय सेवा समिति उप्र के संस्थापक.


#9044669901

ग्राम ददिउरी थाना बण्डा

जिला शाहजहाँपुर,उ.प्र.


जो कि अन्ना आन्दोलन का समर्थन करते हैं लेकिन मानना है कि पूर्णतया कभी भी यह धरती भ्रष्टाचार से मुक्त नहीं हो सकती.जब तक माया मोह लोभ रहेगा भ्रष्टाचार रहेगा.बिन अध्यात्म ये कैसे सम्भव?लेकिन हम आप को अन्ना समर्थन करना ही चाहिए.नक्सलियों से भी मेरी विनती है कि वे अन्ना के समर्थन मेँ संघर्ष विराम करेँ.

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अन्ना के सैलाब की कुछ तश्बीरों संग !

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------Original message------
From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: <akvashokbindu@gmail.com>
Date: मंगलवार, 23 अगस्त, 2011 12:35:13 अपराह्न GMT+0000
Subject: अन्ना के सैलाब की कुछ तश्बीरों संग !

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------Original message------
From: Ashok kumar Verma Bindu <akvashokbindu@yahoo.in>
To: "go@blogger.com" <go@blogger.com>,"ajay.mv@oneindia.co.in" <ajay.mv@oneindia.co.in>
Date: सोमवार, 22 अगस्त, 2011 8:27:22 पूर्वाह्न GMT+0000
Subject: अन्ना के सैलाब की कुछ तश्बीरेँ!

वे थे आंसू प्रधानमंत्री की मौत उनके ही रक्षकों द्वारा ही देख


वे आंसू कह रहे थे
कौन है सुरक्षित इस देश मेँ?


आज फिर आंसू अन्ना का सैलाब देख कर


बचपन से सहते खामोशी चुपचाप
आज निकले आंसू बन कर..

सज रहे हैं प्रजातन्त्र के मेले,
जहां अरमान रावण को नहीं रावणत्व को मारने के.

सत्ता परिवर्तन के नहीं, व्यवस्था परिवर्तन के मेले


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मंगलवार, 23 अगस्त 2011

भौतिक संलिप्तता का दंश : भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार एक पाप है लेकिन आदिकाल से कब यह धरती भ्रष्टाचार से मुक्त हुई है.माया,मोह,लोभ,द्वेष,आदि जब तक है तब तक भ्रष्टाचार रहेगा.भौतिक लालसाएं भ्रष्टचार की जननी हैँ.अपने से अधिक संसाधन रखने वालों से तुलना हम जब करते हैँ लेकिन संसाधन इकट्ठे करने के साधन हमारे पास नहीं होते,तब हम गैरकानून काम अपना कर संसाधन जुटाते हैँ,ऐसे में भ्रष्टाचार स्वाभाविक है.
एक कहावत है कि पैर उतने ही फैलाने चाहिए जितनी बड़ी चादर है लेकिन आज भौतिक युग मेँ भौतिकसंसाधनों की चकाचौंध मेँ आदमी खो गया है.जब व्यक्ति की क्षमताएं उन्हेँ प्राप्त करने मेँ अक्षम हो जाती है तो लालसाएं भ्रष्टाचार को जन्म देती हैं.लोग जैसे तैसे संसाधन पा लेना चाहते हैं.जीवन रुपी गाड़ी जब अध्यात्म व भौतिक रुपी दोनों पहियों पर बराबर बोझ लेकर चलेगी तभी भ्रष्टाचार मुक्त समाज की कल्पना की जा सकती है.नहीं तो कोरे निरे भौतिक भोगवाद मेँ भ्रष्टाचार फलता फूलता रहेगा.जब तक सांसारिक जगत व वस्तुओं से लगाव रहेगा,भ्रष्टाचार किसी न किसी रुप मेँ रहेगा.लोग अपने को धार्मिक व ईश भक्त मानते हैँ लेकिन धार्मिक व ईशभक्त हैँ नहीँ.अध्यात्मिकता तो दूर की बात.

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मंगलवार, 28 जून 2011

आठवीं फेल बाबा औ र ये पढ़े लिखे. लोग ......

koi bhi artist chahe vo painter ho ,musician ho unse certificate ,education
nahi mangti.....unks work bolta hai.......
waise hi baba ramdev ne desh ke logo ko health ke prati jis terah se jagaya
hai vo manan karne ke yogya hai......
meine bhi bina kuch bhi anya prayas ke sirf one month mein unke surya pranam
vo bhi on line video dekh ker 2 kg.weight kam kiya......
aur itni janta ne unse kitna laabh uthaya hoga...........iski garna nahi ki
ja sakti ........
aur aaj unki education ko highlight kiya ja raha hai..........bahut galat
baat hai.......
logo ko kisi ko dekhne ka nazeriya badalna chahiye............
hame ye zera bhi nahi bhulna chaiye ki unhone ddesh ko kitna gyan diya
hai.....
health is wealth......ye kyo bhul jate hai........
ham wealth bhi tabhi use ker payenge jub health hogi.......

2011/6/27 Sudhir Gupta

> Dushyant mai tumhare baato se sahmat hun....
> ------------------------------
> *From:* Dr shyam gupt
> *To:* loktantra@googlegroups.com
> *Sent:* Sunday, 26 June 2011 12:46 PM
> *Subject:* Re: विप्लव विकल्प विकास Fwd: Fw: आठवीं फेल बाबा और ये पढ़े
> लिखे. लोग ......
>
> एक दम सही टिप्पणी ...बधाई ..
>
> 2011/6/25 Dr. Ernest Albert
>
> अच्छा है ये लेख , कई परतें खोलता हुआ ! देश के जगजगाते प्रजातंत्र को
> भी सलाम करता हुआ !
> ज्ञानी ज़ैल सिंह याद आते हैं , मुख्य मंत्री भी रहे और देश के राष्ट्रपति भी
> !
> इसके एकदम उलट जाते हुए आज देखें तो ये क्रिकटर धोनी , ईशान आदि तो अभी दो साल
> पहले प्लस टू
> से जूझ रहे थे !
> आज भी अपने काफी नेतागण शायद ही किसी कालेज की डिग्री रखते हों !
> बाबा रामदेव आठवीं पास हैं, स्कूल गये भी की नहीं
> बाबा राम मुरारी , वो श्री श्री रविशंकर अन्य कितने सारे बाबा लोग , ये सब
> कितना पढ़े लिखे ?
> या वो मुंबई के "डब्बा वाला" जो हर दिन लाखों खाने के डिब्बे लोगों की टेबल तक
> पहुंचा देते हैं , जिनको हारवर्ड विश्वविद्यालय ने नवाज़ा !
> या वो अप्पा राव जो आज तक 82000 मुर्दे बा-इज्ज़त ठिकाने लगा चुके हैं उनकी
> एजुकेशन क्या है !
> ये सचमुच कुछ समाज-सुधार तो कर ही रहे की नहीं !
> सत्य साईं बाबा के कई मामले सामने आ रहे पर क्या उन्होंने, उनकी संस्थाओं ने
> कुछ भी अच्छा नहीं किया ?
> लाखों जनता की सेवा-सुश्रा में ये सब लगे हुए!
> अब इनके बर-अक्स अपने नेता लोग ?
> मैं ये मान के चलता हूँ की सारे के सारे भ्रष्ट नहीं , पर देश किस रसातल में ?
> और क्यों ?
> हमारे बीज, हमारी खेती हमारे किसान विदेशी कंपनियों के चंगुल में ...इन नेताओं
> के रहते !
> हमारी शिक्षा पर विदेशी प्रभाव ,
> यहाँ ये बताना भी ज़रूरी की लोग, जनता भी बहुत संवेदनहीन हो चुकी , उस पर कोई
> बात का असर नहीं अब,
> वो अपनी ही गंगा को, अन्य नदियों को प्रदूषित करती जा रही
> पर्यावरण की समस्या को वो सरकारी मामला मान चुकी, खुद कुछ भी करने को तत्पर
> नहीं!
>
> संत, साधू , बाबा लोगों को पूरा हक है , उनकी (भी) जिम्मेवारी है की वो देश
> में फैले भ्रष्टाचार के विरोध में उठें
> और जो लोग कहते हैं की बाबा, साधू लोगों को ये नहीं करना चाहिए
> उसका सीधा सादा जवाब यही है कि "तो फिर जो वो आये दिन दशकों से स्कैम-घोटाले
> कर रहे, उन्हें भी ये नहीं करना चाहिए उनको ये काम करने के लिए नहीं चुना गया"
> !
>
> जिसने भी इस धरती पे जन्म लिया है, इसकी फसलें, इसका अन्न-जल ग्रहण किया है
> उसके पास हर अधिकार है कि वो अपनी आवाज़ भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाये !
> ये हम सबकी जिम्मेवारी, हमारा पवित्र दायित्व है !
>
> डॉ.अर्नेस्ट एल्बर्ट
>
>
>
> 2011/6/25 shrivikassaini
>
>
>
> ---------- Forwarded message ----------
> From: *vikas saini*
> Date: 2011/6/25
> Subject: Fw: आठवीं फेल बाबा और ये पढ़े लिखे. लोग ......
> To: vikas Gmail vikas Gmail
>
>
>
>
> --- On *Sat, 25/6/11, balraj ji * wrote:
>
>
> From: balraj ji
> Subject: Fw: आठवीं फेल बाबा और ये पढ़े लिखे. लोग ......
> To:
> Date: Saturday, 25 June, 2011, 4:36 PM
>
>
>
> --- *शनि, 25/6/11 को, balraj ji * ने लिखा:
>
>
> द्वारा: balraj ji
> विषय: Fw: आठवीं फेल बाबा और ये पढ़े लिखे. लोग ......
> To:
> दिनांक: शनिवार, 25 जून, 2011, 4:33 PM
>
>
>
> --- *शनि, 25/6/11 को, balraj ji * ने लिखा:
>
>
> द्वारा: balraj ji
> विषय: आठवीं फेल बाबा और ये पढ़े लिखे. लोग ......
> To:
> दिनांक: शनिवार, 25 जून, 2011, 9:52 AM
>
> आठवीं फेल बाबा और ये पढ़े लिखे. लोग ......
> इधर रामदेव और उनके आन्दोलन पे काफी कुछ लिखा जा रहा है ....एक बात पे सभी
> लेखक सहमत है ...फिर वो चाहे अंग्रेजी के हों या हिंदी के .....कि बाबा आठवीं
> फेल है ......8th drop out .....अब मैं आपको बता दूं कि बाबा ने स्कूल ( अगर आप
> उसे स्कूल मानें तो ) आठवीं में छोड़ दिया और गुरुकुल खानपुर चले गए .........
> फिर वहां 20 साल तक उन्होंने संस्कृत का व्याकरण , litrature और दर्शन
> शास्त्र ...philosophy पढ़ा .......संस्कृत की पढ़ाई अष्टाध्यायी से शुरू
> होती है और महाभाष्य पे ख़तम पे होती है .इसमें बेहद brilliant students भी
> कम से कम दस साल लगाते है ..वैसे महाभाष्य के लिए तो सुना है की 20 साल भी कम
> हैं .....और महाभाष्य पढ़े student के सामने ये PhD लोग बच्चे लगते हैं
> ......अब हमारे मीडिया के ये पढ़े लिखे ( BA ) भाई लोग अगर बाबा को आठवीं फेल
> लिखते हैं अगर ,तो

सोमवार, 27 जून 2011

कांग्रेसी दंश (आधी रा�� को आजादी:लैरी कालिन्��� दामिनिक लैपियर)

देश की आजादी के वक्त गांधी जी अकेले पड़ गये थे.कांग्रेस सत्ता लोभी व महत्वाकांक्षी नेहरु व पटेल के चारो ओर केन्द्रित होने लगी थी.महात्मा गांधी तो चाहते थे कि कांग्रेस को भंग कर दिया जाए लेकिन-



लैरी कालिन्स दामिनिक लैपियर की पुस्तक'आधी रात की आजादी' के कुछ अंशों के माध्यम से आप देश की आजादी की नींव की नियति पर शायद पहुंच जाएं.



" नेहरु का सच्चा स्वरुप "




कैम्ब्रिज में उनके सहपाठियों की मंडली इतनी ऊंची थी कि उनमें से आज कोई प्रधानमंत्री बना था,कोई वायसराय,कोई महामना सम्राट के पद तक पहुंचा था,तो कोई जेल का अधिकारी . बंकिघम पैलेस के सोने की थाल में भोजन कर चुके थे. जिसमें वह भोजन भी हुआ करता था जो हिन्दू मुसलमानों के लिये निषिद्ध था.सात सालों में उन्होने इंग्लैण्ड का इतना कुछ ग्रहण कर लिया कि जब वे भारत लौटे तो यहां उनके रिश्तेदारों और दोस्तों ने देखा कि वह बुरी तरह अभारतीय हो चुके हैं.वे स्तब्ध रह गये जब एक स्थानीय ब्रिटिश क्लब में सदस्यता प्राप्त करने की उनकी अर्जी खारिज कर दी गयी.इसी घटना ने उन्हें गांधी के निकट लाकर खड़ा कर दिया.(पृष्ठ 77)




जवाहर लाल ने खादी पहनने को तो पहन ली थी लेकिन अपने सफेद टोपी के नीचे वह चुपचाप इंग्लिश जेण्टलमैन बने हुये थे. इस रहस्य को समझना आज भी मुश्किल है कि भारत जैसे नितान्त धार्मिक देश ने जवाहर लाल नेहरु जैसे नितांत अधार्मिक व्यक्ति के हाथों में अपनी बागडोर सौप कैसे दी?



लार्ड माउन्ट बेटन को जवाहर लाल की सांस्कारिता और मृदुता तुरन्त भा गई.वे जान गये कि जवाहर लाल अंतार्राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं का व्यक्ति है.आजाद होने के बाद भारत कामनवेल्थ की सदस्यता ग्रहण करने में नेहरु से पूरी सहायता मिलने की सम्भावना है.नोवाखाली में गांधी जी के भटकने के प्रति नेहरु की तीखी प्रतिक्रिया को समझते ही माउण्ट बेटन नेहरु को सबसे उपयोगी व्यक्ति समझने लगे . ( पृष्ठ 77-78)



यदि देश के विभाजन का फैसला करना पड़ गया तो इसमें सबसे बड़ी बाधा बनेंगे महात्मा गांधी.उनकी शक्ति को नाथने का सिर्फ एक तरीका होगा कांग्रेस के नेताओं का उनके साथ तीव्र मतभेद करा दिया जाय.यदि इस सीमा तक जाना ही पड़ गया,तो जवाहर लाल नेहरु से अमुल्य सहायता मिलने की पूरी सम्भावना है.लार्ड माउण्ट बेटन को जवाहर लाल अपने आदमी जैसे महसूस हो रहे थे.कांग्रेस पार्टी में कम से कम एक आदमी तो अपना होना ही चाहिए .जवाहर लाल का व्यक्ति अवश्य ऐसा है कि उन्हें महात्मा के विरुद्ध खड़ा किया जा सकता है.वशीकरण अभियान का जादू सर्वाधिक यदि किसी पर चल सकता है,तो जवाहर लाल नेहरु पर लार्ड माउण्ट बेटन ने उस कश्मीरी ब्राह्मण को वश में करने के लिये अपनी अधिकतम क्षमताओं को काम पर लगा दिया.यहां तक कि ऐडविना बेटन को भी.(पृष्ठ 80-81)



नेहरु ने कांग्रेस को देश व गांधी के सम्मान से निकल कर सत्ता लोभ में लिप्त कर दिया था.एक ओर देश साम्प्रदायिक आग में झुलस रहा था दूसरी ओर गांधी को छोंड़ अधिकांश कांग्रेसी नेहरु के साथ अंग्रेज अधिकारियों की पार्टियों प्याले से प्याले टकरा रहे थे.लार्ड माउण्ट बेटन के विभाजन योजना के दस्तावेज पर पं जवाहर लाल नेहरु,पटेल,आचार्य कृपलानी,मु,अली जिन्ना,लियाकत अली,रबनिरस्तर तथा बलदेव सिंह हस्ताक्षर कर चुके थे.परेशान हो 03जून1947को गांधी को तीखी प्रतिक्रिया देनी पड़ी-कांग्रेस को समाप्त करो.जिसकी सार्वजनिक घोषणा वे 4जून की प्रार्थना सभा मेँ करने वाले थे.4जून को पटेल नेहरु तो उनके सामने आने की हिम्मत नहीं जुटा पाये,वायसराय को गांधी के पास भेज दिया.


उस चार जून को गांधी अपने उद्गार सार्वजनिक न कर पाये लेकिन इस 4 जून दूसरी आजादी के लिए अन्ना के सहयोग से बाबा रामदेव विदेशी कठपुतली कांग्रेस की सरकार की मौजुदगी में अनशन पर बैठे लेकिन....यह काग्रेस.....?!


कमबख्त यह देश की जनता कब जागेगी और पारदर्शिता की क्रान्ति में मददगार बनेगी ?पर्दे के पीछे का कांग्रेसी सच कब जनता जानना चाहेगी?सुभाष सम्बन्धी ,नेहरु व वायसराय मध्य वार्ता सम्बन्धी,लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु सम्बन्धी,आदि सम्बन्धी दस्तावेज गायब करवाने वाले कौन थे औ क्योँ?


आओ अन्ना व बाबा के आन्दोलन के इस वक्त कम से कम विचारों का आदान प्रदान ही करें.सन2012-2020ई का समय बदलाव का समय है,आओ हम भी खुद को बदल देश हित में कुछ योगदान जरुर देँ.



अपने लिए जिए तो क्या जिए.

रविवार, 26 जून 2011

अपराधियों को सहयोग देने वाला अपराधी .....?

अपराधियों को किसी तरह का सहयोग करने वाला यदि अपराधी है तो भ्रष्ट नेताओं को चुनने वाली जनता अपराधी क्यों नहीं ? यदि अपराधी है तो क्या उसके खिलाफ कानुनी कार्यवाही हेतु विधेयक नहीं आना चाहिए ? जाति, मजहब, निजस्वार्थ, आदि के कारण यदि जनता किसी अपराध में दोषी पाये नेता को समर्थन देती है तो उसे कानूनी अपराधी क्यों न माना जाये ? ग्रामीण क्षेत्र मेँ एक कहावत है कि ' जो छिनरा वही डोली संग ' . ऐसा ही कुछ देश की डोली (इज्जत) के संग है .देश व विभिन्न संस्थाओं के रहनुमाओं की जो कण्डीशन है,वह बड़ी अफोससजनक है.हर कोई यहां अपराधी है .जाति,मजहब,इज्जत,अहंकार,निज स्वार्थ व
सामाजिकता के बहाने दूसरों को कष्ट देने वालों की मदद करने वाले नेता व स्वयं ऐसा करने वाले नेता क्या अपराधी नहीं हैं ?अपराधी तो हैं लेकिन इनके खिलाफ सबूत व गवाह नहीं हैं.मात्र शिकायत पर उनके खिलाफ कार्यवाही होना चाहिए.नार्को व ब्रेन परीक्षण अनिवार्य करके ऐसे अपराधों से निपटा जाना चाहिए.प्रत्येक कर्मचारी व नेता के लिए सैनिकों की भांति शारीरिक मानदण्ड बनने चाहिए.भ्रष्टाचार व कुप्रबन्धन व सामाजिकता के DANSH से बचने के लिए नियुक्ति के समय व प्रत्येक छ महीने बाद कर्मचारियों,नेताओं,आदि का नारको ब्रेन व शारीरिक परीक्षण किया जाना चाहिए . द्वेष,ईर्ष्या, निज स्वार्थ ,मनमानी,आदि का व्यवहार करने वालों को मानसिक अस्वस्थ मान कर विभिन्न नियुक्तियों व प्रत्याशी चयन के वक्त रोक होना चाहिए.लेकिन स्वार्थ की रोटियां सेंकने वाले नेता,आदि व नेताओं से बेईमानी व अपने कुकृत्यों का पक्ष रख वाने वाले लोग ऐसा कब चाहेंगे ?



दुनियां व देश को संभालने वाले दो प्रतिशत से भी कम हुए हैं शेष तो भेंड़ की चाल चले हैं या तटस्थ रहे हैं.अन्ना हजारे व बाबा रामदेव देश पर जो बात कर रहे हैं वह क्या तुम्हारे उसूलों के खिलाफ हैं?यदि हाँ ,तो तुम देश के भावी इतिहास में एक कलंक साबित होने वाले हो.राहुल गांधी जी तुम कहां हो?आज की युवा पीड़ी का क्या नेतृत्व नहीं करना?या फिर विदेशी ऐजेंटों के निर्देशों का इन्तजार कर रहे हो ?भ्रष्टाचार व काला धन क्या कुत्ते के गले की हड्डी की तरह हो गया है क्या कि न निगलते बनता है न ही उगते ?

शनिवार, 25 जून 2011

विप्लव विकल्प विका स Fwd: Fw: आठवीं फेल बाबा और ये पढ़े लिखे. लोग ......

---------- Forwarded message ----------
From: vikas saini
Date: 2011/6/25
Subject: Fw: आठवीं फेल बाबा और ये पढ़े लिखे. लोग ......
To: vikas Gmail vikas Gmail




--- On *Sat, 25/6/11, balraj ji * wrote:


From: balraj ji
Subject: Fw: आठवीं फेल बाबा और ये पढ़े लिखे. लोग ......
To:
Date: Saturday, 25 June, 2011, 4:36 PM



--- *शनि, 25/6/11 को, balraj ji * ने लिखा:


द्वारा: balraj ji
विषय: Fw: आठवीं फेल बाबा और ये पढ़े लिखे. लोग ......
To:
दिनांक: शनिवार, 25 जून, 2011, 4:33 PM



--- *शनि, 25/6/11 को, balraj ji * ने लिखा:


द्वारा: balraj ji
विषय: आठवीं फेल बाबा और ये पढ़े लिखे. लोग ......
To:
दिनांक: शनिवार, 25 जून, 2011, 9:52 AM

आठवीं फेल बाबा और ये पढ़े लिखे. लोग ......
इधर रामदेव और उनके आन्दोलन पे काफी कुछ लिखा जा रहा है ....एक बात पे सभी
लेखक सहमत है ...फिर वो चाहे अंग्रेजी के हों या हिंदी के .....कि बाबा आठवीं
फेल है ......8th drop out .....अब मैं आपको बता दूं कि बाबा ने स्कूल ( अगर आप
उसे स्कूल मानें तो ) आठवीं में छोड़ दिया और गुरुकुल खानपुर चले गए .........
फिर वहां 20 साल तक उन्होंने संस्कृत का व्याकरण , litrature और दर्शन शास्त्र
...philosophy पढ़ा .......संस्कृत की पढ़ाई अष्टाध्यायी से शुरू होती है और
महाभाष्य पे ख़तम पे होती है .इसमें बेहद brilliant students भी कम से कम दस
साल लगाते है ..वैसे महाभाष्य के लिए तो सुना है की 20 साल भी कम हैं .....और
महाभाष्य पढ़े student के सामने ये PhD लोग बच्चे लगते हैं ......अब हमारे
मीडिया के ये पढ़े लिखे ( BA ) भाई लोग अगर बाबा को आठवीं फेल लिखते हैं अगर ,तो
उनकी बुद्धि पर तरस आता है मुझे ......बीस साल तक संस्कृत litrature और grammar
पढ़ा लिखा आदमी ....उसे ये लोग 8th dropout लिखते हैं ......यानि संस्कृत कोई
subject ही नहीं और पढ़ा लिखा वो जो कॉलेज से BA की डिग्री ले ........और एक बात
बता दूं आप लोगों को ...पिछले ,महीने मुझे एक हफ्ता एक गुरुकुल में रहने का
मौका मिला ...वहां का स्टुडेंट रोज़ सुबह 3 .45 पे उठता है .........और कोई
उठाता नहीं है जनाब ....अपने से उठता है ......रोज़ 8 से 10 घंटे स्वाध्याय
करता है .....10 साल तक .......exam गुरु जी लेते हैं..... कहीं से कोई
question पेपर नहीं आता .......नक़ल मार के कॉपी नहीं भरता है .......और संस्कृत
litrature और philosophy पढने के लिए तो 50 साल भी कम हैं .
जहाँ तक बात योग की है तो योग मात्र चार आसन और deep breathing मात्र नहीं है
......ये एक जीवन दर्शन है ........यानि एक संपूर्ण जीवन शैली है ....जो आपके
thought process और stress level को regulate करती है ...आपके life style में
changes लाती है .......अब आपकी पूरी medical science खुद कहती है की सारी
problems की जड़ ये stress और life style ही है .....इसे योग से ठीक किया जा
सकता है ........योग को इस से सरल भाषा में नहीं समझाया जा सकता .......पर इसे
फील करने के लिए आपको इसे करना पड़ेगा ....इस से पहले मैं भी ये सारी बातें
सिर्फ सुनता था .......पिछले एक महीने से योग कर रहा हूँ ....6 किलो वज़न कम हो
चुका है ....बिना किसी dieting के.........स्ट्रेस गायब है जिंदगी से
........मैं अपने जीवन में आनंद महसूस कर रहा हूँ ...वैसे मैंने सुना है की
आनंद की अनुभूति कोकीन का shot लेने के बाद भी होती है .......अब ये आप को
decide करना है कि आपको कौन सा आनंद चाहिए ......किसी आदमी के लिए कुटिया में
भी आनंद हीआनंद है और अपने मुकेश भाई अम्बानी को अपने उस 23 मंजिला घर में भी
आनंद मिला या नहीं मैं कह नहीं सकता ........और आज मुझे ये भी पढने को मिला कि
बाबा के ज़्यादातर समर्थक intellectually challenged lower middle class लोग हैं
......मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ .....की हम सब लोग जो उस दिन रामलीलामैदान
में भूखे प्यासे बैठे थे ...रात भर पुलिस से पिटते रहे ......अगले दिन धूप
में...... 41 डिग्री में ....सारा दिन अपने दोस्तों को ढूंढते रहे ........(
तकरीबन सबके फोन बंद हो चुके थे ..चार्ज न होने के कारण ) हम लोग वाकई
intellectuals नहीं है ....intellectual होते तो अपने बेडरूम में ac 16 डिग्री
पे चला के सोते ...देश तो जैसे तैसे चल ही रहा है .......intellectual वो होता
है जो morning walk पे भी अपनी SUV में जाता है .......जिसकी लड़की की शादी में
850 dishes serve होती हैं जिसमे 25 किस्म के तो पुलाव होते हैं .......हम दाल
भात खाने वाले लोग ........हमें बात बात में कंधे उचका के oh noooo ....oh shit
कहना तक नहीं आता .......हम भोजपुरी और हरयाणवी में बात करने वाले लोग
.......हम कहाँ के intellectual .....
ये भी कहा जा रहा है की बाबा को अपना काम करना चाहिए ........जिसका जो काम है
उसे वो करना चाहिए ......सबको सिर्फ अपना काम करना चाहिए ......बात भी सही है
.......बाबा को योग सिखाना चाहिए ....चंदा बटोर के बड़ा सा AC आश्रम बना के
अपने भक्तों से चरण पुजवाने चाहिए ..........किसान खेती करे ...student पढ़ाई
करे ...दुकानदार दुकान चलाये ....... गृहणी घर का झाड़ू पोंछा करे ......अभिनेता
फिल्म बनाए ...लोगों की शादी में नाचे और पेप्सी बेचे ......हम अखबार और चैनल
चलायें .....नेता देश चलायें .......सही बात है ..हम साले दो कौड़ी के लोग
...खेती बाड़ी छोड़ के यहाँ क्या कर रहे हैं, दिल्ली में .......हम अनशन करेंगे
तो इनकी बेटी की शादी में 850 dishes बनाने के लिए अन्न कौन उगाएगा
.......हमारा बाप ???????? ऊपर से हमें मालूम ही क्या है काले धन क

गुरुवार, 23 जून 2011

क्रान्ति पथ प्रति एक ��त : samajikata ke dansh

हालांकि मानव सामाजिक प्राणी है लेकिन मुझे उसकी सामाजिकता से शिकायत रही है.मैं बचपन से सामाजिक ता की दुहाई देने वालों के बीच दंश (DANSH) झेलता आया हूँ.अपने घर में ही मैं अलग थलग पड़ चुका था.अंधेरे व प्रकाश का कुरुक्षेत्र बन कर रह गया था.जहां न कोई अर्जुन था न ही कृष्ण .कक्षा छ: में आते आते कुरुशान (गीता )हाथ आयी जब तो कुछ संवरना सिखाया स्वयं को स्वयं ही . मानवाधिकारों,बालाधिकारों व महिलाधिकारों को मैने सामाजिकता के दबाव में देखा है,सार्वभौमिक ज्ञान , धार्मिकता व आध्यात्मिकता पर सामाजिकता का दबाव देखा है , इन्सानियत को दबाव में देखा है.सनातन धर्म की बात चाहें यह समाज कितना भी करे लेकिन सनातन धर्म की यात्रा पथ के पथिकों
पर पथ के दोनों ओर अपना अपना डेरा जमाये अपने चक्र में फंसाने का ही कार्य करते रहे हैं.ओशो ने कहा है कि धर्म पथ कोई राजपथ जैसा चौंड़ा नहीं है वरन एक पगडण्डी है . जिस पर भीड़ नहीं होती.भीड़ जब चलती है तो पगडण्डी ही क्या दोनों ओर की प्रकृति को उजाड़ कर रख देती है.फिर खो जाता है धर्म .सृजित हो जाते हैं-पंथ , जाति , सम्प्रदाय , आदि .फिर कोई नया आता है आगे सनातन धर्म को आगे बढ़ाने वाला तो उस पर कुषड़यन्त्रों की अंगुलियां उठती हैं . इतिहास उठा कर देखो,आज जो महापुरुष मान कर पूजे जाते हैं जब वे जिन्दा थे तो उनमें से कितनों के साथ समाज से बीस प्रतिशत लोग ही थे ?



15 अगस्त 1947 की आजादी क्या सिर्फ सत्तापरिवर्तन बन कर नहीं रह गयी ? आम आदमी की आजादी क्या अभी दूर नहीं ? देशहित में कुछ कठोर निर्णयों के विरोध में नहीं खड़ी देश की जनता ? देश की जनता....... ?! हाँ , देश की जनता.प्रजातन्त्र में प्रजा ही जिम्मेदार है देश के हालात बनाने व बिगाड़ने मेँ .यह जनता ही तो है जो ग्राम सभाओं, नगर पंचायतों, विधान सभाओं, संसद, आदि में अपने प्रतिनिधि भेजती है .आजकल अन्ना हजारे व बाबा रामदेव चाहें हमारे दुश्मन ही ठीक लेकिन उनके मुद्दों पर हमें समर्थन नहीं करना चाहिए?धर्म पथ पर अपना कोई नहीं होता.उठा लो अपने साहस रुपी गाण्डीव को.जब तक आत्मा रुपी कृष्ण आपके शरीर में है करते रहो संघर्ष.क्या यह बकवास मचा रखी है ? तुम,तुम क्या बकते थे उस दिन?सत्तावादियों व पूंजीवादियों से कौन जीत पाया है?न जाने कितनों को शीशा पीस कर पिला दिया गया,जहर दे दिया गया , शूली पर चढ़ा दिया गया .कालाधन व लोकपाल का मुद्दा बड़ा जटिल मुद्दा है.मौत के अलावा क्या नसीब होगा ? नीचे से लेकर ऊपर तक के सारे के सारे नेता क्या हैं?चोरों को भी क्या चोरी न करने का निर्णय लेते देखा गया है ?तुम ऐसी बातें करने वाले अपने आदि महापुरुषों के दर्शन पर तो जरा सोंचें.क्या अपने अपने महापुरुषों के बताये रास्ते पर हैं आप ?मुसलमानों से भी मेरा यही प्रश्न है. 'ईमान पर पक्के होने ' का मतलब क्या है ?गैरजातियों व अपने देश के साथ हो रहे अन्याय पर चुप रहना ? तुम्हारी नजर में अन्ना हजारे व बाबा रामदेव मुसलमान नहीं हैं,व उनका समर्थन हिन्दूवादी संगठनों ने किया है तो क्या तुम्हारे मुसलमान होने का मतलब क्या यह है कि अन्ना हजारे व बाबा रामदेव का समर्थन न किया जाये ?



बुधवार, 22 जून 2011

कालसेन आश्रम बीसलपुर (पीलीभीत ) उप्र पर विश��व शान्ति के लिए

मंगलवार, 21जून 2011ई0.



बीसलपुर (पीलीभीत ) उप्र के बाहर उत्तर दिशा मेँ स्थित कालसेन आश्रम पर विश्व में शांति स्थापित करने,भ्रष्टाचार और आतंकवाद के खात्मे के लिए हवन पूजन और भंडारा किया गया . कार्यक्रम की व्यवस्था में धाराजीत गुप्ता,अनिल कुमार,मोहित कुमार,राकेश कुमार बाथम,आशाराम,नन्हे लाल,अरुण कुमार,गौरव कुमार ,रानू गंगवार,माधव,योगेन्द्र कुमार,नंदकिशोर,ऋषभ कुमार,नत्थू लाल गंगवार,जगदीश गंगवार,अजय गंगवार,राज कुमार,प्रेमराज वर्मा,अशोक कुमार वर्मा'बिन्दु', सुजाता देवी शास्त्री,अवनीश वर्मा,आदि हजारों लोग उपस्थित थे.आश्रम के लिए को रास्ता न होने पर प्रशासन के विरोध में प्रदर्शन भी किया गया.प्रदर्शन करने वालों में धाराजीत गुप्ता,अनिल कुमार ,मोहित कुमार,राकेश कुमार बाथम , आशाराम, नन्हे लाल,अरुण कुमार, गौरव कुमार,मिंटू, रानू गंगवार,माधव,योगेन्द्र कुमार , भानु प्रताप, राजीव कुमार, ऋषभ कुमार,आदि श्रद्धालु शामिल थे.



सांयकाल छ: बजे मैँ पुन: कालसेन आश्रम पहुंचा.मेरे साथ थे राजकुमार.महिलाओं की बहुतायत ऐसे कार्यक्रम में ज्यादा रहती है.इस पर संवाद प्रारम्भ होगये.कहां है धार्मिकता?कौन है धार्मिक?संसार की नजर में जो बेहतर जीना चाहते हैं,वे क्या धार्मिक हैं?या जो महापुरुषों की नजर मेँ बेहतर जीना चाहते हैं?धर्मस्थलों पर भी जाते हैं तो क्यों जाते हैं?सांसारिक सुख पाने के लिए कि आध्यात्मिक आनन्द या आत्मिक शान्ति के लिए ? सन्त कबीर तक को कहना पड़ा था कि मैं इस दुनिया में जो देने आया हूँ वह कोई लेने ही नहीं आता.सब सांसारिक सुख की लालसा से ही आते हैं.




ये स्त्रियां.....?!चर्चा चल रही थी स्त्रियोँ की धार्मिकता पर . स्त्रियोँ की संख्या यहां ऐसे कार्यक्रमों में ज्यादा नजर आती है लेकिन इनकी धार्मिकता संदिग्ध नजर आती है.स्त्रियां ही क्या पुरुष भी........भौतिक लालसा के लिए ही जीवन जीने वाले या भौतिक लालसाओं के लिए घर व बाहर अशान्ति ,कलह,दूसरों को कष्ट,आदि परोसने वाले क्या धार्मिक भी हो सकते हैं?दया, त्याग व समर्पण के बिना धार्मिकता कहाँ? धर्म के पथ पर व्यक्ति को अकेले ही चलना होता है.इतिहास गवाह है कि महापुरुषों के जिन्दा रहते कितने लोग उनके साथ थे ?
खैर....


लगभग सवा सात बजे हम वहाँ से चलने को हुए तो मेरे सैण्डल गायब.अब नंगे पैर कैसे जाना होगा ?एक बोले कि ऐसे कार्यक्रमों में चप्पलें जूते गायब होना मामूली बात है .

सोमवार, 20 जून 2011

मानवता हिताय सेवा सम��ति में आपका स्वागत है.

'मानवता हिताय विकास मंच उ प्र समिति' का नाम परिवर्तित कर इस बार मैने 'मानवता हिताय सेवा समिति ' के नाम से पंजीकरण करवाया है.



उत्तर प्रदेश के युवक युवतियां अपने गांव मेँ टोली बना कर समाज सेवा के कार्य के इच्छुक हों या समाज सेवा कर रहे हों,वे हमारी समिति से जुड़ सकते हैं.



'अपने लिए जिए तो क्या जिए' -कहते लोग मिल जाते हैँ.वास्तव में हम न ही अपने लिए न ही दूसरों के लिए जी पाते हैं . क्यों ,ऐसा क्यों ? सब अंधेरे में तीर चलाते हैं.ज्ञानी भी ज्ञानपूर्ण आचरण से दूर नजर आते हैँ.'स्व' व 'पर' से लोग अन्जान हैं .आज अधिकाश व्यक्ति स्वभाव से वैश्य व शूद्र हैं.कुरुशान(गीता) में स्व का अर्थ आत्मा व परमात्मा से लगाया गया है तथा पर का अर्थ स्थूल शरीर व प्रकृति से लगाया गया है.इस सन्दर्भ में हम ईमानदारी से न ही स्व के लिए न ही पर के लिए जीते हैं.वास्तव मेँ हम न ही स्वार्थी होते हैं न ही परमार्थी .सिर्फ अवसरवादी होते हैं.यदि हमें परमार्थी होना है तो अपने शरीर के लिए कम से कम एक घण्टा का समय अवश्य देना चाहिए व प्रकृति एवं समाज के लिए भी इस एक घण्टा के अतिरिक्त एक घण्टा का समय देना चाहिए.यदि स्वार्थ (आत्मा व परमात्मा के लिए) के लिए जीना है तो इन दो घण्टा के अतिरिक्त कम से कम एक घण्टा अवश्य मेडिटेशन व आत्मसाक्षात्कार के लिए देना चाहिए . लेकिन न जाने हम किस तरह से अपने लिए जीते हैं व किस तरह दूसरों के लिए जीते हैं कि हमें अशान्ति व असन्तुष्टि ही हाथ लगती है ?दया,समर्पण व त्याग के बिना न ही हम स्व का न ही पर का भला कर सकते हैं.अन्य ग्रहों की अपेक्षा यह पृथ्वी अनुपम क्यों है?प्रकृति व मानवता को संरक्षण के बिना मानव के सारे कृत्य निरर्थक हैँ .


जय मानवता !

काला धन व लोकपाल विधे���क पर एक दृष्टि

मैं सिर्फ यह जानता हूँ,सारा देश यह जानता है कि ईमानदार व्यक्ति को काला धन व भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलनों से कोई आपत्ति नहीं होना चाहिए.मेरा अनुभव तो यही कहता है कि नेताशाही व नौकरशाही के अलावा शेष जनता दबी जुबान अवश्य इन आन्दोलनों का समर्थन कर रही है या तटस्थ हैं.लोकपाल विधेयक को लेकर नागरिक समाज व सरकारी सदस्यों मेँ मतभेद का मतबल एक ग्रुप का ईमानदार होना व दूसरे ग्रुप का बेईमान होना भी हो सकता है ? क्या यह सत्य नहीं-बेईमान व ईमानदार में ही समझौते नहीं होते ,यदि समझौते होते भी हैं तो बिना न्याय के ? मैं तो यही कहूंगा कि काला धन व भ्रष्टाचार के खिलाफ आन्दोलन के विरोधी क्या देशद्रोही नहीं ?

अन्ना हजारे व बाबा रामदेव के द्वारा उठाए गये मुद्दे महत्व हीन नहीं कहे जा सके.

परमपूज्य बाबा रामदेव जी चरण स्पर्श ! भविष���य अपना है यदि हौसला क��� साथ आगे बढ़ते रहें.अस��लता में भी सफलता छिपी होती है.सन 2012-2020ई0 का समय बदलाव का समय है.

यह समय किसे नायक व किसे खलनायक बनाएगा ,यह तो भविष्य बताएगा.भ्रष्टाचार कुप्रबन्धन व काला धन की जड़ें काफी गहरी हैं,जिन्हें उखाड़ने के लिए एक तूफान चाहिए.



पूरी दुनिया से बदलाव की घटनाएं नजर में आ रही हैं.प्रजातन्त्र के पक्ष में भी निर्णय सामने आ रहे हैँ.किसी एक जाति पन्थ देश के विषय में न सोंच पूरी मनुष्यता,सार्वभौमिक ज्ञान ,कानून व्यवस्था,आदि पर विचार करना आवश्यक है. अपनी पन्थनिरपेक्षता को प्रमाणिकता की आवश्यक है.अपनी कम्पनियों,समितियों,ट्रस्टों में अल्पसंख्यकों को सदस्य बनाना आवश्यक है.यदि हमारा मंच गैरराजनैतिक है तो मंच पर गैरराजनैतिक व्यक्ति ही नजर आने चाहिए.जब तक माया ,मोह,लोभ,आदि है तब तक भ्रष्टाचार रहेगा . हां , हर व्यक्ति पर कानून का डण्डा चलते रहना चाहिए .इसके लिए कानून के रखवाले ईमानदार होना चाहिए .जिसके लिए स्वतन्त्र लोकपाल का होना आवश्यक है.विभिन्न परिस्थितियों में नारको परीक्षण व ब्रेन रीडिंग अनिवार्य करना आवश्यक है.एक बात और है ब्राह्मण स्वभाव के व्यक्ति से क्षत्रिय वैश्य व शूद्र के कार्य कराना कहां तक उचित है?आज कल तो मुझे सब वैश्य व शूद्र हैं.जो ब्राह्मण व क्षत्रिय हैं भी वे पैदल भी हैं.आज के तन्त्र की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि वेतन के लोभ मेँ लोग शिक्षक बन रहे हैं,देश के प्रहरी तैयार किए जा रहे हैं .जो देश के लिए चिन्तन रखते हैं वे एक सड़क किनारे पान की दुकान पर अपनी भड़ास निकाल कर रह जाते है और जो विभिन्न पदों पर बैठे होते हैं वे कानून को एक ताख कर रख कर सिर्फ निज स्वार्थ व अपने परिवार या बैंक की तिजोरियां भरने तक सीमित रह जाते हैं .यहां तक कि आज के संत......?! धन दौलत इकट्ठी करने मेँ लगे व अपने उत्पाद बेंचते संत धार्मिकता युक्त आर्थिक उपनिवेशवाद का अंग नजर आते हैं.



मैं आपके साथ कुछ दिन बिता कर विभिन्न विषयों पर चर्चा चाहता हूँ.


शेष फिर.....


ASHOK KUMAR VERMA
'BINDU'


संस्थापक/सचिव

मानवता हिताय सेवा समिति

शुक्रवार, 17 जून 2011

18 जून : बिटिया श्रुतिक��र्ति एक वर्ष की हुई.

मानव सत्ता के दो ध्रुव हैं-नर और नारी.नर यदि शिव है तो नारी शिवानी . शिवशक्ति यदि अन्तर्मुखी है तो शिवानीशक्ति वहिर्मुखी . श्रीअर्द्धनारीश्वर अवधारणा यहीं से प्रारम्भ होती है.जो देवी देवता व अवतारवाद के सगुण रुप को नहीं मानते उन्हें निर्गुण रुप को मानना चाहिए ही.चाहें किसी स्तर पर भी इसकी बात करो,प्रकृति या सूक्ष्म या अन्य ; बात की जा सकती है.शिव कल्याण है तो शिवानी कल्याणी.शिव यदि अल्लाह है तो शिवानी कुदरत.कुरुशान(गीता)में आत्मा व परमात्मा को स्व तथा शरीर,शरीरों व प्रकृति को ' पर ' कहा गया है.'स्व' व 'पर' का समभोग व समसम्मान ही अर्द्धनारीश्वर का सगुण रुप है.आज का विक्रत भौतिक भोगवाद भी क्या है? 'स्व' व 'पर' को नकार कर कृत्रिम वस्तुओं व शारीरिक ऐन्द्रिक आवश्यकताओं के लिए जीना व दोहन शोषण प्रदूषण का कारण है .मानव के लिए प्रकृति की ओर से सबसे सुन्दर कृति है-नारी. भारतीय संस्कृति में नारीशक्ति को मातृशक्ति माना गया है.जगत में भ्रष्टाचार व कुप्रबन्धन का कारण नर व नारी का संस्कारों से मुक्त हो सिर्फ माया ,मोह, लोभ ,काम ,आदि के लिए सिर्फ जीना है .
लिंगानुपात का कम होना नर नारी की संकीर्ण सोंच का कारण है.यह एक मजाकिया तथ्य है कि एक ओर कन्यापूजा का प्रावधान है व दूसरी ओर कन्याओं की जगह पुत्रों को महत्व है या फिर यौन शोषण या विभिन्न दबाव हैं.नारी को अपनी आधी शक्ति नारी होने के नाते व्यय हो जाती है.जन्म से लेकर मृत्यु व मृत्यु से लेकर जन्म तक प्रकृति के बिना सब शून्य है.यहां तक देवी देवता भी प्रकृति तक ही हैं.प्रकृति से शून्य होने के बाद ईश्वर है.ब्रह्मा विष्णु महेश भी शून्य से पहले के हैं.


प्रकृति में नर मादा श्रेष्ठ प्राकृतिक व ईश्वरीय मित्र हैं. दोनों एक दूसरे के बिना अपूर्ण हैं.नर मादा के बीच सम्बन्धों को लेकर समस्याएं ऋग्वैदिक काल के बाद तब पैदा होना प्रारम्भ हुईं जब दोनों के जीवन व परस्पर मित्रता का सम्बन्ध यौन इच्छाओं पर आकर टिकने लगा.फिर दोनों के बीच मित्रवत सम्बन्ध न हो कर कामुक होगया.अब वह दृष्टि खत्म हो चुकी है कि सन्तान उत्पत्ति की लालसा के बिना यौन सम्बन्धों की इच्छा पैदा न हो.कामान्धता व्यक्ति से मानवीय मूल्यों को अलग करने का कार्य करती है .स्त्रैणता के बिना मानवता कहाँ ? इसीलिए तो कहा गया है कि जहां स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं .कौन सी स्त्रियां पूजा(सम्मान) का हकदार हैं ? जो अपनी स्त्रैणता से दूर नहीं हुई है. स्त्रैणता .... ? स्त्रैणता यानि कि सेवा,दया,सहनशीलता, ममता,लज्जा,नम्रता,प्रेम,आदि गुणों से युक्त स्वभाव.जिन पुरुषों में यह गुण जाग जाते हैं वह बुद्ध बन जाता है. हां,याद आया -आज झांसी रानी लक्ष्मी बाई की पुण्यतिथि भी है . जब किसी स्त्री में पुरुष के गुण (अहंकार,संघर्ष,परिश्रम,आदि) जाग जाते हैं तो वह लक्ष्मीबाई बन जाती हैं .अर्द्धनारीश्वर अन्तस्थ ऊर्जा की निर्गुण अवधारणा में यह तथ्य मौजूद है .मानव सत्ता के दो ध्रुव है-नर व नारी.ऐसे में उसकी पचास प्रतिशत भागीदारी होनी ही चाहिए लेकिन स्त्रैणता बनाए रखते हुए.अब भी लोग बेटी की अपेक्षा बेटा को महत्व ज्यादा दिए हुए हैं. आज भी बेटियां बोझ व दबाव बनी हुई हैं.इसके लिए परम्परागत समाज दोषी है.



' स्व ' अर्थात आत्मा या परमात्मा के बाद प्रकृति जीवन के दो प्रमुख तत्व हैं . प्रकृति के माध्यम से ही हम ब्रह्म के अस्तित्व पर मोहर लगा सकते हैं . जिसके प्रति हममें सधर्म सम्मान होना चाहिए न कि भोगवादी उसका इस्तेमाल ऐसे में बेटा बेटियों के मध्य भेद ईश्वरप्रद्त प्रकृति का अपमान है.


आज मेरी बेटी 'श्रुति कीर्ति ' एक वर्ष की हो गयी है.उसके जन्म दिन पर कुछ तैयारी करने के उद्देश्य से अब.......

सोमवार, 13 जून 2011

अनशन के नौ दिन और आम आदमी !

चार जून से बड़े उत्साह में अनशन पर आये बाबा रामदेव बारह जून को अनशन तोड़ते तोड़ते उत्साहहीन हो गये.नौ दिन अनशन के........एक योग गुरु की यह हालत?हमारे गांव में नवदुर्गा व्रत के दौरान बिना कुछ खाये रह कुछ लोग कठिन कार्य निपटाते हैं.लोग कहने लगे है कि योग गुरु के स्वास्थ्य की यह हालत ?जो दस सालों से न जाने क्या क्या दाबा कर रहा था.



खैर, जान है तो जहान है.वैसे भी काले धन को लेकर लड़ाई अभी काफी लम्बी है.साथ में राजनैतिक सिस्टम में भारी मात्रा में बदलाव की आवश्यकता है.हमें विश्वास है बाबा रामदेव मरते दम तक हिम्मत नहीं हारेंगे.स्वस्थ होने के बाद फिर अपने मिशन को आगे बढ़ायेंगे.दुनिया भर के उनके शुभचिन्तक चाहने लगे थे कि बाबा अपनी अस्वस्थता के चलते अनशन को तोड़ें.काला धन व भ्रष्टाचार पर देश में माहैल बनाने मेँ योगदान हमेशा चिरस्मरणीय रहेगा.



हमें लगता है कि आम आदमी सिर्फ अपने व अपने परिजनों के शारीरिक आवश्यकताओं के लिए जीना चाहता है . उसे काले धन व भ्रष्टाचार सम्बन्धी व अन्य मुद्दों से कोई मतलब नहीं है.उसे तो तुरन्त का लाभ चाहिए ,अपने व परिजनों की वर्तमान आवश्यकताओं के सम्बन्ध मेँ.नब्बे प्रतिशत से भी ऊपर व्यक्ति को सिर्फ रोटी कपड़ा मकान के लिए जी रहा है.उसकी धार्मिकता तक सिर्फ शारीरिक ऐन्द्रिक आवश्यकताओं के लिए है.

शनिवार, 11 जून 2011

भविष्य कथांश: मेरे आं��ों में क्यों आंसू?

10जून 2011 से काले धन व भ्रष्टाचार को लेकर अनशन पर बैठे बाबा की तबियत काफी बिगड़ गयी.चार जून की रात सपने मेँ मैने बाबा को अपने मिशन में शहीद होते देखा था.दस जून को शाम पूर्वमंत्री रामशरन वर्मा के रामलीला मैदान बीसलपुर(पीलीभीत)कार्यक्रम से वापस आने के बाद बहनोई ओपी गंगवार का मकान पर टीवी में बीमार बाबा को अस्पताल ले जाते हुए तश्वीरों को देखा तो मेरा मन प्रार्थना से भर गया.आज अभी जब ग्यारह जून को01.55PM पर मेरे मोबाइल में मैसेज आया कि चिकित्सा के बाबजूद उनका BP 40 से 80 बना हुआ है और कोई सुधार नहीं हैं तो मेरे आंखों में आंसू आ टपके.किसी व्यक्ति को अपने व देश से जोड़ते हुए ऐसे आंसूं दूसरी बार मेरी आंखों में थे.इससे पूर्व1984के 31अक्टूबर की शाम इन्दिरा की हत्या के समाचार पर.



बाबा की अभी देश को जरुरत है.

इसे पोस्ट करने के बाद मैं मेडिटेशन पर ......


राहुल गांधी को आत्मसाक्षात्कार की जरुरत!

कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी पांच सालों से युवकों को एक जुट करने में लगे हैं लेकिन सफल नहीं हो पाये.उनकी तुलना में अन्ना हजारे व बाबा रामदेव ज्यादा सफल हुए हैं .राहुल गांधी को विचार करना चाहिए कि हमें देश का हित चाहिए या फिर कांग्रेसियों का ?आम आदमी का या पूंजीपतियों का ?समाजसेवियों का या फिर दबंगों व सत्ता लोभियों का ?



हम अपने आसपड़ोस में देख रहे हैं कि कांग्रेस से जो युवक जुड़ भी रहे हैं ,वे अपने गली में कितने शरीफ हैं?चरित्रवान युवक क्या कांग्रेस से जुड़ रहे हैं ?वे युवक क्या समाज के लिए त्याग करना चाहते हैं या अपने स्वार्थ की रोटियां सेंकना चाहते हैं ? आप कभी भी विभिन्न स्थितियों में नारको परीक्षण व ब्रेन मेपिंग के अनिवार्यता की वकालत नहीं कर सकते .पारदर्शिता की क्रान्ति ,चाहें वह देश के हित में कितनी भी हो,आप मदद नहीं कर सकते . 5 जून को रामलीला के मैदान में रावणलीला के बाद आप राहुल जी मैन क्यों हैं?

शुक्रवार, 10 जून 2011

बाबा रामदेव आन्दोलन में पहला शहीद!

04 जून से काला धन व भ्रष्टाचार को लेकर प्रारम्भ हुए आन्दोलन व अनशन मेँ पहला शहीद कौन है?मेरे संज्ञान में - सुखूराम पटेल.



छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में बाबा रामदेव के समर्थन में धरना दे रहे एक किसान का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. पुलिस के अनुसार दुर्ग जिला मुख्यालय के पटेल चौक पर पतंजलि योग समिति द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ एवं बाबा रामदेव के समर्थन में आयोजित धरने में बेरला क्षेत्र का किसान सुखूराम पटेल (62) भी शामिल था. रविवार दोपहर उसकी तबीयत खराब हो गयी.किसान को अस्पताल लेजाया गया,जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.



सुखूराम पटेल को श्रद्धांजलि के साथ बाबा रामदेव के स्वस्थ रहने की कामना करता हूँ.देश को उनकी जरुरत है.वे देश के भविष्य निर्माता हैं.

सन्त का मतलब यह तो नही���....

भ्रष्टाचार में संलिप्त,भौतिकभोगवादी व तामसी प्रवृत्ति के लोग अन्ना हजारे व बाबा रामदेव का समर्थन नहीं करने की सोंच तक नहीं रखते.जहां सही बात को सही कहने तक की सामर्थ्य नहीं है. लोग न जाने क्या क्या नगेटिव बातें करने वाले भी मिल जाते हैँ -अरे रामदेव को दुनियादारी से क्या मतलब,वे सिर्फ योग ही सिखायें तभी ठीक हैँ,वे तो आर एस एस व भाजपा का मुखौटा हैं,वे सन्त हैं तो रामलीला मैदान से वेष बदल भागने की कोशिस क्यों की,आदि.इस बीच जयगुरुदेव,आदि के अनुयायियों की ओर से भी इन आन्दोलनों के अपोजिट सुनने को मिल रहा है.मै तो बस इतना ही जानता हूँ कि सत के लिए संघर्ष दो प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने प्रारम्भ नहीं किया है.
आखिर सन्तों व गुरूओं को दुनियादारी मेँ पड़ने की जरुरत क्यों नहीं?हूँ,जब आज के शिक्षक गुरुत्व की ओर नहीं हैं,और दिमाग से पैदल होने जैसे व्यवहार साबित करते हैँ,जब ज्ञान केन्द्रों से ही ज्ञान का हेतु समाप्त होता जा रहा है,जिन युधिष्ठरों को अपना पाठ याद करने में वक्त लगता है ऐसे युधिष्ठरों की मजाक बनाने वालों की अब भी कमी नहीं है,आदि जैसों से पटे समाज व ऐसे की सामाजिकता व प्रतिष्ठतता के बीच लोगोँ से क्या उम्मीद की जा सकती है?वे शायद गौरवशालि अतीत को भूल मलेच्छों के समर्थन में लगे हैं.



सन्त होने का मतलब क्या समाज व देश का हित नहीं है ? यदि हां,तो बाबा रामदेव क्या गलत हैं? हाँ!सन्त अहिंसक आन्दोलन का समर्थक नहीं होता.उनके द्वारा युवकों की फौज का निर्माण करने की बात पचती नहीं.कुल मिला कर उनका आन्दोलन देश के हित में है .ऐसे में हर देशभक्त को हर हालत में उनकी मदद करनी चाहिए.

गुरुवार, 9 जून 2011

कहां गायब हो गए का ंग्रेस के युवराज?

bahut khoob

2011/6/9 Updesh Awasthee

> कहां गायब हो गए कांग्रेस के युवराज?
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> *धर्मेद्र केशरी*
> *नई दिल्ली *
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> कुछ दिन पहले ही कांग्रेस के युवराज और युवाओं के हिमायती राहुल गांधी आधी रात
> के बाद भट्टा परसौल गांव पहुंचे थे। राहुल के मुताबिक वहां वो किसानों के हक की
> लड़ाई लड़ने गए थे। वो भी तब, जब शायद उस समय उसकी कोई जरूरत नहीं थी। उनके
> जाने के बाद बहुत हंगामा हुआ और आधी रात की नौटंकी हिट रही । उत्तर प्रदेश
> सरकार ने जब उन्हें गिरफ्तार करके नोएडा की सीमा से बाहर भेज दिया तो खूब
> हो-हंगामा हुआ।
> पढ़ते रहिये...
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2011/6/9 Updesh Awasthee <gandhi4indian@gmail.com>


कहां गायब हो गए कांग्रेस के युवराज?






 


धर्मेद्र केशरी
नई दिल्ली


 
कुछ
दिन पहले ही कांग्रेस के युवराज और युवाओं के हिमायती राहुल गांधी आधी रात
के बाद भट्टा परसौल गांव पहुंचे थे। राहुल के मुताबिक वहां वो किसानों के
हक की लड़ाई लड़ने गए थे। वो भी तब, जब शायद उस समय उसकी कोई जरूरत नहीं
थी। उनके जाने के बाद बहुत हंगामा हुआ और आधी रात की नौटंकी हिट रही ।
उत्तर प्रदेश सरकार ने जब उन्हें गिरफ्तार करके नोएडा की सीमा से बाहर भेज
दिया तो खूब हो-हंगामा हुआ। 







राहुल गांधी को आत्मसाक्षात्कार की जरुरत हैँ.अन्ना व बाबा राहुल की अपेक्षा कई गुना सफल हुए हैं युवा शक्ति को देश प्रति जागरुक करने प्रति.ऐसा क्यों न हो देश हित व सत्ता हित में फर्क होता है.

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