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शनिवार, 25 अगस्त 2018

विलियम थॉमस/कुमार योगेश का आगाज!! @@@@@@@@@@@@@@@@ चंद सवाल हैं युवाओं से। --------------------------- क्या आप ऐसी ससुराल चाहते हैं जो आपको दामाद होने की इज्जत तो दे लेकिन बेटा होने का अंतरंग अहसास न दे ? क्या आप ऐसी बीवी लाना चाहते हैं जो बहू तो बन जाए बेटी कभी नहीं ? ड्रैकुला की तरह आपके बाप ने उसके बाप का सारा खून चूस लिया फिर भी आप उससे सीता बनने की ख्वाहिश चाहते हैं ? क्या आप चाहेंगे कि आपकी बीवी का बाप दोनों हाथों से लुटाता रहे और आपका बाप उसे खसोटता रहे ?अगर वो ऐसा ही धन-कुबेर था तो उसने आपके जैसे के साथ सम्बन्ध ही क्यों किया ?उसके मुंह को जाता निवाला छीन क्या आपकी भूख मिट जाएगी ? No Sir, No !!! दोनों परिवार आर्थिक रूप से क्यों टूट रहे हैं ? थोड़ा रुकिए, सोचिये,समझिए और फैसला कीजिये। . युवा और बुजुर्ग दोनों कभी दिल थामते हैं ,कभी सिर ! लड़कीवाले पास भी नहीं फटकते क्योंकि आपने लालच और लिप्सा की लक्ष्मण-रेखा खींच रखी है। मन की व्याकुलता और क्लेष युवाओं को चारों ओर नज़र दौड़ाने के लिए वाध्य कर देती है। उसकी धमनियों से जो demand आ रही है वो उसे उद्विग्न कर रही है। ऐसे में किसी नारी तन पर निगाह चस्पां हो जाती है और आँखों में सुहागरात के सपने थिरकने लगते हैं और सारे रीति-रिवाजों को ठोकर मारकर युवा विद्रोह कर बैठता है अंतर्जातीय विवाह करके। वो जानता है कि ऐसे बाप की छत्र-छाया में तो वो ता जिंदगी कुंवारा ही बैठा रह जाएगा। बुजुर्गवार ! ऐसी स्थिति आने से पहले अपने पैंतरे बदलिये !अपना नजरिया और अपना स्वभाव बदलिये। अपनी संस्कृति,शिष्टाचार और अनुशासन को बचाना है तो स्वयं की बुनियाद सही कीजिये। कहीं आपकी हठधर्मिता के कारण आपके बेटे ने भी अंतर्जातीय विवाह कर लिया तो रिश्तेदार,मित्र और परिचित प्रत्यक्षतः तो आपसे सहानुभूति बरतेंगे और पीठ फेरते ही नाक-भौं सिकोड़ेंगे और फब्ती कसेंगे। सम्बन्ध हो गया तो ऐसे नए रिश्तेदारों पर आप हावी न हो पाएंगे वे ही आप पर भारी पड़ेंगे। . इन पंक्तियों के लेखक के पास आज भी दसियों ऐसे ऑफर हैं -- असमी ,बंगाली ,नेपाली कोई भी लड़की देखो ,सिर्फ 'वो' न हो। 'वो' हुई या हुआ तो किब्ला 'अल्ला तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम' ! थोथी मर्यादा, बड़प्पन की मानसिकता ,आडम्बर का मुखौटा और भी ना जाने कितनी झिल्लियों तले आपकी आत्मा कराह रही है। आप जहर के घूंट दर घूंट पीए जा रहे हैं और एक बिंदास , बेलौस और बेलाग जिंदगी से महरूम हो रहे हैं। कहीं अंदर से उभरी हुई मुस्कान आंखों तक पहुंचते पहुंचते दम तोड़ देती है। आखिर अपनी सलीब अपने ही कन्धों पे ढोने की क्या लाचारी है ? मेरे भाई ! जीना है तो ठेठ जीओ। बेबाक और झक्कास बोलो , " मुझे जो ठीक लगा मैंने किया" ! इतने खर्च समेटो और पांच वस्त्रों में 'बेटी' लाओ। खुद भी जीओ ,उस बेटी के बाप को भी जीने दो।

विलियम थॉमस/कुमार योगेश का आगाज!!
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चंद सवाल हैं युवाओं से।
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क्या आप ऐसी ससुराल चाहते हैं जो आपको दामाद होने की इज्जत तो दे लेकिन बेटा होने का अंतरंग अहसास न दे ? क्या आप ऐसी बीवी लाना चाहते हैं जो बहू तो बन जाए बेटी कभी नहीं ? ड्रैकुला की तरह आपके बाप ने उसके बाप का सारा खून चूस लिया फिर भी आप उससे सीता बनने की ख्वाहिश चाहते हैं ? क्या आप चाहेंगे कि आपकी बीवी का बाप दोनों हाथों से लुटाता रहे और आपका बाप उसे खसोटता रहे ?अगर वो ऐसा ही धन-कुबेर था तो उसने आपके जैसे के साथ सम्बन्ध ही क्यों किया ?उसके मुंह को जाता निवाला छीन क्या आपकी भूख मिट जाएगी ? No Sir, No !!! दोनों परिवार आर्थिक रूप से क्यों टूट रहे हैं ? थोड़ा रुकिए, सोचिये,समझिए और फैसला कीजिये।
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युवा और बुजुर्ग दोनों कभी दिल थामते हैं ,कभी सिर !
लड़कीवाले पास भी नहीं फटकते क्योंकि आपने लालच और लिप्सा की लक्ष्मण-रेखा खींच रखी है। मन की व्याकुलता और क्लेष युवाओं को चारों ओर नज़र दौड़ाने के लिए वाध्य कर देती है। उसकी धमनियों से जो demand आ रही है वो उसे उद्विग्न कर रही है। ऐसे में किसी नारी तन पर निगाह चस्पां हो जाती है और आँखों में सुहागरात के सपने थिरकने लगते हैं और सारे रीति-रिवाजों को ठोकर मारकर युवा विद्रोह कर बैठता है अंतर्जातीय विवाह करके। वो जानता है कि ऐसे बाप की छत्र-छाया में तो वो ता जिंदगी कुंवारा ही बैठा रह जाएगा। बुजुर्गवार ! ऐसी स्थिति आने से पहले अपने पैंतरे बदलिये !अपना नजरिया और अपना स्वभाव बदलिये। अपनी संस्कृति,शिष्टाचार और अनुशासन को बचाना है तो स्वयं की बुनियाद सही कीजिये। कहीं आपकी हठधर्मिता के कारण आपके बेटे ने भी अंतर्जातीय विवाह कर लिया तो रिश्तेदार,मित्र और परिचित प्रत्यक्षतः तो आपसे सहानुभूति बरतेंगे और पीठ फेरते ही नाक-भौं सिकोड़ेंगे और फब्ती कसेंगे। सम्बन्ध हो गया तो ऐसे नए रिश्तेदारों पर आप हावी न हो पाएंगे वे ही आप पर भारी पड़ेंगे।
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इन पंक्तियों के लेखक के पास आज भी दसियों ऐसे ऑफर हैं -- असमी ,बंगाली ,नेपाली कोई भी लड़की देखो ,सिर्फ 'वो' न हो। 'वो' हुई या हुआ तो किब्ला 'अल्ला तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम' ! थोथी मर्यादा, बड़प्पन की मानसिकता ,आडम्बर का मुखौटा और भी ना जाने कितनी झिल्लियों तले आपकी आत्मा कराह रही है। आप जहर के घूंट दर घूंट पीए जा रहे हैं और एक बिंदास , बेलौस और बेलाग जिंदगी से महरूम हो रहे हैं। कहीं अंदर से उभरी हुई मुस्कान आंखों तक पहुंचते पहुंचते दम तोड़ देती है।
आखिर अपनी सलीब अपने ही कन्धों पे ढोने की क्या लाचारी है ?
मेरे भाई ! जीना है तो ठेठ जीओ। बेबाक और झक्कास बोलो , " मुझे जो ठीक लगा मैंने किया" ! इतने खर्च समेटो और पांच वस्त्रों में 'बेटी' लाओ। खुद भी जीओ ,उस बेटी के बाप को भी जीने दो।

शुक्रवार, 10 अगस्त 2018

लक्ष्मी बाई के पीठ बंध पुत्र का क्या हुआ??

समय मशीन पर एलियन्स देख रहे थे,उस मुस्लिम ने गद्दारी2 करके लक्ष्मी बाई को धोखा दिया था. वह मुस्लिम का परिवार अफगानिस्तान से लिंक रखता था जो देश के अंदर लूटमार करता था .ये मुस्लिम अपने परिवार को लूटमार के लिए निर्देश करता था, आज यहां लूट करनी है,कल वहां.. और इस तरह से खैर!!लक्ष्मी बाई के बाद उनकी पीठ पर बन्धे उस पुत्र क्या हुआ??

दामोदर राव अब युवा थे!वे इंदौर में अंग्रेजों की पेंशन के सहयोग से अपना जीवन यापन कर रहे थे. वे अब एक चित्रकार थे. उनकी बनाई तश्वीरें अब उनके परिवार की धरोहर
हैं.


वह ....???एक ब्रिटिश पत्रकार के सामने गम्भीर हो चुका था.

"अपने बचपन के बारे में क्या बताएं?"

"तब भी??"
हूँ!!
झांसी के अंतिम संघर्ष में महारानी की पीठ पर बंधा उनका बेटा दामोदर राव (असली नाम आनंद राव) सबको याद है । रानी की चिता जल जाने के बाद उस बेटे का क्या हुआ ??

वो कोई कहानी का किरदार भर नहीं था, 1857 के विद्रोह की सबसे महत्वपूर्ण कहानी को जीने वाला राजकुमार था जिसने उसी गुलाम भारत में जिंदगी काटी, जहां उसे भुला कर उसकी मां के नाम की कसमें खाई जा रही थी ।

अंग्रेजों ने दामोदर राव को कभी झांसी का वारिस नहीं माना था, सो उसे सरकारी दस्तावेजों में कोई जगह नहीं मिली थी । ज्यादातर भारतीयों ने सुभद्रा कुमारी चौहान के कुछ सही, कुछ गलत आलंकारिक वर्णन को ही इतिहास मानकर इतिश्री कर ली ।

1959 में छपी वाई एन केलकर की मराठी किताब ‘इतिहासाच्य सहली’ (इतिहास की सैर) में दामोदर राव का इकलौता वर्णन छपा ।

महारानी की मृत्यु के बाद दामोदार राव ने एक तरह से अभिशप्त जीवन जिया । उनकी इस बदहाली के जिम्मेदार सिर्फ फिरंगी ही नहीं भारत के लोग भी बराबरी से थे ।

आइये, दामोदर की कहानी दामोदर की जुबानी सुनते हैं –~~~~~

15 नवंबर 1849 को नेवलकर राजपरिवार की एक शाखा में मैं पैदा हुआ । ज्योतिषी ने बताया कि मेरी कुंडली में राज योग है और मैं राजा बनूंगा । ये बात मेरी जिंदगी में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से सच हुई । तीन साल की उम्र में महाराज ने मुझे गोद ले लिया । गोद लेने की औपचारिक स्वीकृति आने से पहले ही पिताजी नहीं रहे ।

मां साहेब (महारानी लक्ष्मीबाई) ने कलकत्ता में लॉर्ड डलहॉजी को संदेश भेजा कि मुझे वारिस मान लिया जाए । मगर ऐसा नहीं हुआ ।

डलहॉजी ने आदेश दिया कि झांसी को ब्रिटिश राज में मिला लिया जाएगा । मां साहेब को 5,000 सालाना पेंशन दी जाएगी । इसके साथ ही महाराज की सारी सम्पत्ति भी मां साहेब के पास रहेगी । मां साहेब के बाद मेरा पूरा हक उनके खजाने पर होगा मगर मुझे झांसी का राज नहीं मिलेगा ।

इसके अलावा अंग्रेजों के खजाने में पिताजी के सात लाख रुपए भी जमा थे । फिरंगियों ने कहा कि मेरे बालिग होने पर वो पैसा मुझे दे दिया जाएगा ।

मां साहेब को ग्वालियर की लड़ाई में शहादत मिली । मेरे सेवकों (रामचंद्र राव देशमुख और काशी बाई) और बाकी लोगों ने बाद में मुझे बताया कि मां ने मुझे पूरी लड़ाई में अपनी पीठ पर बैठा रखा था । मुझे खुद ये ठीक से याद नहीं । इस लड़ाई के बाद हमारे कुल 60 विश्वासपात्र ही जिंदा बच पाए थे ।

नन्हें खान रिसालेदार, गनपत राव, रघुनाथ सिंह और रामचंद्र राव देशमुख ने मेरी जिम्मेदारी उठाई । 22 घोड़े और 60 ऊंटों के साथ बुंदेलखंड के चंदेरी की तरफ चल पड़े । हमारे पास खाने, पकाने और रहने के लिए कुछ नहीं था । किसी भी गांव में हमें शरण नहीं मिली । मई-जून की गर्मी में हम पेड़ों तले खुले आसमान के नीचे रात बिताते रहे । शुक्र था कि जंगल के फलों के चलते कभी भूखे सोने की नौबत नहीं आई ।

असल दिक्कत बारिश शुरू होने के साथ शुरू हुई । घने जंगल में तेज मानसून में रहना असंभव हो गया । किसी तरह एक गांव के मुखिया ने हमें खाना देने की बात मान ली । रघुनाथ राव की सलाह पर हम 10-10 की टुकड़ियों में बंटकर रहने लगे ।

मुखिया ने एक महीने के राशन और ब्रिटिश सेना को खबर न करने की कीमत 500 रुपए, 9 घोड़े और चार ऊंट तय की । हम जिस जगह पर रहे वो किसी झरने के पास थी और खूबसूरत थी ।

देखते-देखते दो साल निकल गए । ग्वालियर छोड़ते समय हमारे पास 60,000 रुपए थे, जो अब पूरी तरह खत्म हो गए थे । मेरी तबियत इतनी खराब हो गई कि सबको लगा कि मैं नहीं बचूंगा । मेरे लोग मुखिया से गिड़गिड़ाए कि वो किसी वैद्य का इंतजाम करें ।

मेरा इलाज तो हो गया मगर हमें बिना पैसे के वहां रहने नहीं दिया गया । मेरे लोगों ने मुखिया को 200 रुपए दिए और जानवर वापस मांगे । उसने हमें सिर्फ 3 घोड़े वापस दिए । वहां से चलने के बाद हम 24 लोग साथ हो गए ।

ग्वालियर के शिप्री में गांव वालों ने हमें बागी के तौर पर पहचान लिया । वहां तीन दिन उन्होंने हमें बंद रखा, फिर सिपाहियों के साथ झालरपाटन के पॉलिटिकल एजेंट के पास भेज दिया । मेरे लोगों ने मुझे पैदल नहीं चलने दिया । वो एक-एक कर मुझे अपनी पीठ पर बैठाते रहे ।

हमारे ज्यादातर लोगों को पागलखाने में डाल दिया गया । मां साहेब के रिसालेदार नन्हें खान ने पॉलिटिकल एजेंट से बात की ।

उन्होंने मिस्टर फ्लिंक से कहा कि झांसी रानी साहिबा का बच्चा अभी 9-10 साल का है । रानी साहिबा के बाद उसे जंगलों में जानवरों जैसी जिंदगी काटनी पड़ रही है । बच्चे से तो सरकार को कोई नुक्सान नहीं । इसे छोड़ दीजिए पूरा मुल्क आपको दुआएं देगा ।

फ्लिंक एक दयालु आदमी थे, उन्होंने सरकार से हमारी पैरवी की । वहां से हम अपने विश्वस्तों के साथ इंदौर के कर्नल सर रिचर्ड शेक्सपियर से मिलने निकल गए । हमारे पास अब कोई पैसा बाकी नहीं था ।

सफर का खर्च और खाने के जुगाड़ के लिए मां साहेब के 32 तोले के दो तोड़े हमें देने पड़े । मां साहेब से जुड़ी वही एक आखिरी चीज हमारे पास थी ।

इसके बाद 5 मई 1860 को दामोदर राव को इंदौर में 10,000 सालाना की पेंशन अंग्रेजों ने बांध दी । उन्हें सिर्फ सात लोगों को अपने साथ रखने की इजाजत मिली । ब्रिटिश सरकार ने सात लाख रुपए लौटाने से भी इंकार कर दिया ।

दामोदर राव के असली पिता की दूसरी पत्नी ने उनको बड़ा किया । 1879 में उनके एक लड़का लक्ष्मण राव हुआ । दामोदर राव के दिन बहुत गरीबी और गुमनामी में बीते । इसके बाद भी अंग्रेज उन पर कड़ी निगरानी रखते थे । दामोदर राव के साथ उनके बेटे लक्ष्मणराव को भी इंदौर से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी ।
इनके परिवार वाले आज भी इंदौर में ‘झांसीवाले’ सरनेम के साथ रहते हैं । रानी के एक सौतेला भाई चिंतामनराव तांबे भी था । तांबे परिवार इस समय पूना में रहता है । झाँसी के रानी के वंशज इंदौर के अलावा देश के कुछ अन्य भागों में रहते हैं । वे अपने नाम के साथ झाँसीवाले लिखा करते हैं ।

जब दामोदर राव नेवालकर 5 मई 1860 को इंदौर पहुँचे थे तब इंदौर में रहते हुए उनकी चाची जो दामोदर राव की असली माँ थी । बड़े होने पर दामोदर राव का विवाह करवा देती है । लेकिन कुछ ही समय बाद दामोदर राव की पहली पत्नी का देहांत हो जाता है । दामोदर राव की दूसरी शादी से लक्ष्मण राव का जन्म हुआ । दामोदर राव का उदासीन तथा कठिनाई भरा जीवन 28 मई 1906 को इंदौर में समाप्त हो गया ।

अगली पीढ़ी में लक्ष्मण राव के बेटे कृष्ण राव और चंद्रकांत राव हुए । कृष्ण राव के दो पुत्र मनोहर राव, अरूण राव तथा चंद्रकांत के तीन पुत्र अक्षय चंद्रकांत राव, अतुल चंद्रकांत राव और शांति प्रमोद चंद्रकांत राव हुए ।

दामोदर राव चित्रकार थे उन्होंने अपनी माँ के याद में उनके कई चित्र बनाये हैं जो झाँसी परिवार की अमूल्य धरोहर हैं । लक्ष्मण राव तथा कृष्ण राव इंदौर न्यायालय में टाईपिस्ट का कार्य करते थे ।

अरूण राव मध्यप्रदेश विद्युत मंडल से बतौर जूनियर इंजीनियर 2002 में सेवानिवृत्त हुए हैं । उनका बेटा योगेश राव सॅाफ्टवेयर इंजीनियर है । वंशजों में प्रपौत्र अरुणराव झाँसीवाला, उनकी धर्मपत्नी वैशाली, बेटे योगेश व बहू प्रीति धन्वंतरिनगर इंदौर में रह रहे हैं ।

शनिवार, 26 मई 2018

उबन्तु उबन्तु::मैं हूँ क्योंकि हमसब हैं!!

सन 5020 ई0!
#बेचारा बचा इंसान!!

माता पिता थे तो हम थे! बढ़े हुए! कपड़े की फैक्टरी थी तो हमारे पास कपड़े थे !किसान थे तो हमारे पास अनाज था !डॉक्टर थे तो हमारा इलाज था !इसी तरह मैं हूं क्योंकि हम सब हैं !

        समाज में मानवता के बीज हमें फिर विकसित करने होंगे !
भाईचारा को हम विश्व बंधुत्व के आधार पर सोचना होगा !

जाति, मजहब, देश आदि से ऊपर उठकर हमें प्रकृति, विश्व ब्राह्माण्ड,अनंत यात्रा, सार्वभौमिक सत्य, शाश्वत आदि के आधार पर सोचना होगा!

 दक्षिण अफ्रीका में एक सिद्धांत है- उबंटू! जिसका अर्थ है-- मैं हूं क्योंकि हम सब हैं!
 हमें इस पर विचार करना चाहिए प्रकृति है तो हम हैं !
प्रकृति से ऊपर भी आगे अनन्त है ,शाश्वत है! संपूर्णता को हमें समझना होगा !मानता को हमें समझना होगा!!
#अशोक कु. वर्मा'बिंदु'
www.akvashokbindu.blogspot.com

बुधवार, 9 मई 2018

"हे अर्जुन(अनुराग)! उठ!!!इन माननीय सम्माननियों, वरिष्ठों आदि के रहते समस्याओं का हल होने वाला नहीं!"--श्री कृष्ण

कौटिल्य ने अपनी पुस्तक अर्थशास्त्र में  'सामन्त' का अर्थ 'पड़ोसी ' कहा है.कहने को जनतंत्र है लेकिन हम अब भी कहते हैं-सामन्तवाद ही आचरण में है.अब तन्त्र का पड़ोसी कौन है?गांव, वार्ड,ब्लाक, जिला आदि एवं विभिन्न संस्थाओं  के तन्त्र को जकड़े बैठे लोगों के पड़ोसी कौन है? इन पड़ोसियों से प्रभावित रहा है- समाज, तन्त्र ,शासन, प्रशासन आदि. ऐसे में कैसे कह सकते हैं कि तन्त्र व सरकारों में सभी की भागीदारिता, सहभागिता ,पारदर्शिता आदि है.?कुछ चापलूस, चाटुकार, माफिया, कुछ की मिलीभगत, कुछ जातिवादी,कुछ मजहबी,कुछ एक जैसे लोग आदिआदि से समाज संस्थाओं में ऊपर नीचे होता रहता है. समझौता की राजनीति भी देखो कैसी?कुछ मुट्ठी भर लोग स्वतन्त्र होते है,कुछ भी कहने व कुछ भी करने को और जब उनके खिलाफ केस बनता है या कोई उनकी शिकायत की हिम्मत करता है तो उन कुछ का जमघट दबाव, धमकी से पहले दबाने की कोशिश करता है,नहीं तो फिर समझौता???शोषण, अन्याय,गैक़ानून, कुप्रबन्धन,बुराई आदि के खिलाफ मुहिम नहीं.... ऐसे में सब निरर्थक!पाखण्ड!!! सरकारें, माननीय,सम्माननीय, वरिष्ठ आदि किस काम के??ऐसे में #नोटा  वोट की बर्बादी क्यों?ग़ैरमतदान बेकार क्यों??सामजिकता मुर्दाबाद!! मानवता जिंदाबाद!!!सत्य ही व्रत है!!ईश्वर सत्य को पाने का बहाना है!!जो है सो है!!भगत सिंह को यथार्थवाद पसन्द है...सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर..!!!!
#अशोकबिन्दु

बुधवार, 21 फ़रवरी 2018

हाड़ मांस के बाद का सम्बंध???

नारी शक्ति को भी अपनी निजता प्रति सजग होने की जरूरत::हाड़ मास के बाद का सम्बंध!!
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किसी ने कहा है कि किसी स्त्री का शिष्य होना क्रांति कारी है.सदियों से स्त्री को पुरुष के अधीन रखने  की तो साजिशें रची जाती रहीं. भौतिक/हाड़ मांस/आदि हेतु. लेकिन हम सब हाड़ मांस के बाद के सम्बन्धों की ओर नहीं बढ़ पाए. शिष्य होना उसका क्रांतिकारी क्यों है? डॉक्टर व डॉक्टर की ट्रेनिग लेने वाले में कितना फर्क है?वही फर्क है-शिष्य व गुरु में?गुरु मालिक है,शिष्य मालिक होने की ओर है. कोई फर्क नहीं?मालिक कैसे??मालिक गुरुता का!जीवन यात्रा का!जीवन का!वर्तमान का!भविष्य का!अन्तरप्रकाश का!विकास का!सार्वभौमिक यात्रा का!अनन्त यात्रा का!!आदि आदि!!! स्त्री का शिष्य होना क्रांति कारी इस लिए है क्योंकि मानव जीवन की शुरुआत,मध्य व अंत वही है.वही परिवार का आधार है,वही मानव व बच्चों की मित्र है.उसकी स्त्रैणता अर्थात सेवा, ममता, प्रेम, स्नेह, सहचर्य, मित्रता, सहयोग आदि मानव जगत की आवश्यकता है.मानव ,स्त्री हो या पुरुष अपनी निजता/अपनी सम्पूर्णता/अपने अल/अपने all/अपनी सवभौमिक्ता/अपने मूल(वेद)/आदि से दूर हुआ है,उसकी कल्पना/अहसास/अनुभव/आदि से दूर हुआ है..हमें विशेष रूप से स्त्री को समझना होगा-हम एक यात्रा का हिस्सा है.हमारा व हमारे परिजनों का हाड़ मांस शरीर सिर्फ एक पड़ाव है.
#शेष
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#कबिरापुण्य
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