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शनिवार, 2 जनवरी 2016

वित्त विहीन मान्यता प्राप्त विद्यालयों के अद्ध्यपक हालातों के मारे ??

वित्तविहीन मान्यता प्राप्त विद्यालयों के अध्यापक हालात के मारे:सरकार से कोई उम्मीद नहीँ!!
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लखनऊ;उप्र!16-17 के बजट में वित्तविहीन विद्यालयों के अध्यापकों को राहत हो ? इसकी कोई अभी उम्मीद नहीं दिख रही.बिचारे प्राइवेट अध्यापकों के हाल काफी खराब है.वे स्थानीय कमेटियों व चापलूस प्रधानाचार्य/वरिष्ठ अध्यापकों के बीच कठपुतली बन कर रह जाते है.कुछ देश होंगे ,जहां अध्यापक v i p होता होगा लेकिन यहां तो इनसे अच्छी नगर/गाँव के अमीरों /माफियाओ के नौकर हैं.शिक्षा की लोग a b c नहीं जानते,शिक्षा कमेटियों के मेम्बर बने बैठे है.किसी देश के लिए अब अध्यापक पद सर्वोच्च होगा लेकिन यहां तो वह बनियों की दुकानों पर नौकर से भी बुरी हालत में है.कोई अध्यापक कितना भी महान विचारक / समाज के बुध्दिजीवियों में प्रतिष्ठित हो वह इन प्राइवेट स्कूलोँ में किसी औकात का नहीं.और वह कमेटी के किसी सदस्य या चापलूस प्रधानाचार्य /अध्यापक से ऊपर न हो जाएं ; यहां ये भी एक खेल है.बुद्धिजीवीता/ज्ञान की बातों का अब इन विद्यालयों में ही महत्व नहीं.बस बनियागिरी,लक्ष्मी पूजा/सरस्वती की जरूरत नही.इतना जरूरी है धंधा चलता रहे,बच्चों की भीड़ बनी रहे.एक जो स्तर होना चाहिए ,उसकी जरूरत नहीं.देश के सामने सबसे बड़ा कलंक यही है-शिक्षक अब वैश्य हो गया है,जिसको पढ़ाया जा रहा है वह अब विद्यार्थी है ही नहीं,विद्यार्थी जीवन(ब्रह्म चर्य जीवन) में है ही नहीं.

एक अध्यापक का मानना है कि इन अध्यापकों के लिए बने सङ्गठन में भी कोई ईमानदारी से इनकी आबाज उठाने वाला नहीं  है.उनमें प्रधानाचार्य/आदि ही हैं.कोई शिक्षकनहीं.


ऐसे में अध्यापक सरकार से आस लगाए बैठे हैं.लेकिन वहां तक उनकी आबाज पहुँचाने वाला नहीं है.सपा/भाजपा ने अपने चुनाबी घोषणा पत्र में इन अध्यपकों को मानदेय देने की बात की थी लेकिन सरकार से न्याय मिलेगा इसकी उम्मीद नहीं.यदि न्याय मिला भी तो किन्हें ?नकल माफियो/चापलूसों को / या सबको?